स्मरण करो सिया राम का


स्मरण करो सिया राम का,
स्मरण करो सिया राम का,
कृपा सिन्धु गुण धाम का;
उल्टा जपके भी तर जाते,
पावन से उस नाम का |
स्मरण करो सिया राम का |


घट-घट में वे बसने वाले,
श्रद्धा सुमन वे देने वाले;
शिव भी जिनको जपते हैं,
पुरोषोत्तम घनश्याम का |
स्मरण करो सिया राम का |


असुरों का वध करने वाले,
धरनि का दुःख हरने वाले,
हनुमान जस भक्त हैं जिनके,
त्रिपुरारी भगवान् का |
स्मरण करो सिया राम का |


शबरी के फल खाने वाले,
उच्च चरित दर्शाने वाले;
भरत, लखन सम भ्रात जो पाए,
रघुकुल नायक राम का |
स्मरण करो सिया राम का |

धनुष बाण जिन हस्त को सोहे,
अनुपम रूप जगत को मोहे;
त्रिलोकी होकर भी मानव,
बन गए उस मतिमान का |
स्मरण करो सिया राम का |
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काव्य का संसार


अनुपम, अक्षय होता है ये काव्य का संसार,
अखिल जगत में अकथ, अकाय और निराकार |


साहित्य की यह विधा अनूठी, पद्य भी कहाय,
हृदय से उत्थित, सरस शब्दों में उकेरा जाय |


भावों की ये मंजूषा, मञ्जीर, मधुर मानिक,
मुतक्का साहित्य का दृढ, मनन करो तनिक |


अमरसरित सी पावन, जनश्रुत ये अपार,
अद्भूत, असम, अनुरक्त है ये काव्य का संसार |


(शब्दार्थ: मञ्जीर=मनोहर, मुतक्का=खम्भा,
अमरसरित=गंगा, जनश्रुत=प्रसिद्द, अनुरक्त=प्रेम युक्त )
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ये पूछने का हक़ हर भारतीय मुसलमान को है !


Omar Abdullah
[इन.कॉम से साभार ]
जब भी कोई हिन्दुस्तानी सच कहने की हिम्मत दिखाता है उसे सबकी आलोचना का शिकार होना पड़ता है .आखिर क्यों ? जम्मू -कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री ने २४ कैरेट शुद्ध सवाल पूछा है -क्या भारत में तब भी ऐसी ही मूक प्रतिक्रिया होती यदि j &k विधानसभा ''अफजल गुरु ''की फांसी की सजा पर दया हेतु फिर से विचार हेतु प्रस्ताव पारित करती .उनका कहना सौ फीसदी सच है .आज तमिलनाडु की सरकार ने श्री राजीव गाँधी हत्याकांड के तीन दोषियों की फांसी की सजा पर दया के आधार पर पुनर्विचार का प्रस्ताव पारित कर जिस परम्परा का बीजारोपण किया है अगर उमर अब्दुल्लाह जी इसे आगे बढ़ाते हैं तो उसमे गलत क्या है ?केवल ये न कि राजीव जी एक पार्टी विशेष के थे -इससे आगे हमारे राजनीतिज्ञ और उनके चेले कुछ सोच नहीं पाते .इसलिए उनके हत्यारों को सजा मिले या न मिले किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता पर ''अफजल गुरु ''का नाम आते ही इन सभी के खून में उबाल आ जाता है .इस मुद्दे को सियासी रंग में रंग दिया जाता है .देश की अस्मिता पर हमले का नाम देकर भावनाओं को भड़काया जाता है .यदि वे तीन तमिल हमारे पूर्व प्रधानमंत्री की निर्मम हत्या करके भी दया के हक़दार हैं तो अफजल गुरु क्यों नहीं ? मेरा मानना है कि सभी हत्यारों को जितनी जल्दी हो फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए .सभी हत्यारों को सजा मिलने में जब भी देर हो हमारी प्रतिक्रिया एक समान होनी चाहिए .तभी हम कह सकते हैं -हम केवल हिन्दुस्तानी है -हिन्दू या मुसलमान नहीं .वरना उमर जी जैसा सवाल करने का हक तो हर हिन्दुस्तानी मुसलमान को है ही .
शिखा कौशिक
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क्या है साझा ब्लॉग ? Hindi Blogging Guide (32)


जिस ब्लॉग पर एक ही ब्लॉगर लिखता है वह निजी ब्लॉग कहलाता है और वह ब्लॉग साझा ब्लॉग कहलाता है जिस पर एक से ज़्यादा ब्लॉगर लिखते हैं। ब्लॉगर डॉट कॉम की वेबसाइट पर साझा ब्लॉग के लिए 100 ब्लॉगर्स तक संख्या निर्धारित है।
जहाँ तक मेरा मानना है कि अब तक आपने अपना ब्लॉग बना ही लिया होगा. और अगर आपने हिंदी ब्लॉग्गिंग के क्षेत्र में थोड़ा भी रिसर्च किया होगा तो आपने जाना होगा कि कुछ ऐसे भी ब्लॉग्स हैं, जिनमे एक से ज्यादा ब्लॉगर्स के लेख या कविताएँ वगैरह हैं. देख के थोड़ा आश्चर्य हुआ होगा कि एक ही ब्लॉग में एक से ज्याद ब्लॉगर कैसे लिख सकते हैं. है ना ?  अगर ऐसा ना भी हुआ हो या आपने ऐसे कोई ब्लॉग्स न देखें हों तो कोई बात नहीं.
ऐसे ब्लॉग्स को  साझा ब्लॉग या सामूहिक ब्लॉग या टीम ब्लॉग कहा जाता है. दरअसल साझा ब्लॉग भी एक आम ब्लॉग की तरह ही होता है बस यहाँ एक से ज्यादा लोग अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं, बिल्कुल किसी मैगजीन (पत्रिका) की तरह. जिस प्रकार एक पत्रिका में एक से ज्यादा लेखकों के लेख होते हैं और उस सब लेखों को चयन करने व सम्पादित करने के लिए एक संपादन मंडल होता है उसी तरह साझा ब्लॉग में भी कई लेखक व कवि अपने लेख प्रकाशित कर सकते हैं. बस फर्क इतना है कि साझा ब्लॉग में भी एक संपादन मंडल व ब्लॉग नियंत्रण समिति होती है पर साझा ब्लॉग में डाले गए लेखों व कविताओं को पहले संपादन मंडल की डेस्क (टेबल) से गुजरना हो ये जरूरी नहीं, कोई भी ब्लॉगर अपने हिसाब से लेख डाल सकता है या अपना लेख डिलीट कर सकता है. पर जो संपादन मंडल या ब्लॉग नियंत्रण समिति है उसके पास उसके अपने कुछ अधिकार होते हैं जो ब्लॉगर.कॉम की ओर से पहले से ही समिति को दिए गए हैं और इन अधिकारों के तहत समिति किसी भी लेख को डिलीट कर सकती है, लेखक मंडल से किसी भी ब्लॉगर को हटा सकती है और नए ब्लॉगर भी शामिल कर सकती है.

साझा ब्लॉग्स की महत्ता -  
साझा ब्लॉग की महत्ता उतनी ही है जितनी कि अपने व्यक्तिगत ब्लॉग की. अपने ब्लॉग पर आप कुछ भी लिख सकते हैं और डाल सकते हैं, लेकिन साझा ब्लॉग पर अनर्गल प्रकाशन उसकी गरिमा को कम करता है. इसीलिए सभी जुड़े लोगों (ब्लॉगर्स) को कुछ नियम व कानून से बंधे होना और उसका मान भी करना चाहिए.
श्रीमती रेखा श्रीवास्तव (प्रेसिडेंट - लखनऊ ब्लॉगर्स एसोसिएशन) 
इसीलिए अगर आप किसी भी साझा ब्लॉग से जुड़ते हैं तो कृपया उस ब्लॉग से जुड़ने के पहले ब्लॉग संचालक से सारे नियम व क़ानून की एक प्रति जरूर मांगें जो कि आपके तथा साझा ब्लॉग के हित में होगा. 

हमारे अगले लेख मे आप पढ़ेंगे की साझा ब्लॉग कैसे बनाएँ...?  
                                                                                   
                                                            -महेश बारमाटे 'माही'
...और देखिये 
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सन्नाटा


श्री गणपतिजी सदा सहाय करें 



  सबसे पहले मेरे सारे ब्लोगर्स साथियों को गणेशोत्सव की बहुत बहुत
शुभकामनाएं 

सन्नाटा
 
 मैं इस कोठी में बरसों से खडा हूँ ,जिंदगी के उतार चदाव को देखता हुआ
    इंसान को इंसान से लड़ते हुए,एक दूसरे की जान लेते हुए
  और सोचता हूँ,ये किस तरह के जीव हैं ,लालची ,स्वार्थी
     जो अपने स्वार्थ और लालची प्रवृति के कारण कुछ भी कर सकते हैं
       मैं एक बरगद का पेड , जवान से बूढा हो गया यही सोचता हुआ
   दिल दुःख से भर जाता है ,उस प्यारी सी लड़की की कहानी याद करके 
   वो प्यारी सी गुडिया मेरे देखते देखते अति सुंदर नवयोवना बन गई 
       जब वो इस बगीचे में अदा से अपने आधे चेहरे को शर्मा कर छुपाती 
         अपने प्रियतम की याद में लाल रुखसार लिए, तो ईद का चाँद सी नजर आती 
    उसी की तरह सुंदर,सजीला,बांका ,प्यारा सा प्रियतम था उसका
तन की तरह मन भी बहुत सुंदर था जिसका
          दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे,उनके ब्याह को अभी छै महीने ही हुए थे  
    आज वो उसको घर ले जाने आनेवाला था,उसके सपनों को पंख लगानेवाला था
       इसीलिए आज वो खिलखिला रही थी ,इठला रही थी,शर्मा रही थी
        बगीचे के झूले में झूलते हुए मीठे मीठे प्यारे से गीत गुनगुना रही थी
    इतने में उसके मोबाईल की घंटी घनघनाई ,उसने ख़ुशी ख़ुशी उसेअपने कान से लगाईं 
      उसके बाद उसकी एक चीख दी सुनाई ,और वो नीचे गिरी और बेसुध नजर आई
           वहां एक सन्नाटा सा बिखर गया था,जिसे सिर्फ खाली झूले की झूलनेकी आवाज भंग कर रहा था
     उसका हर सपना बिखर गया था, उसका खुशियों से भरा संसार उजड़ गया था
        उसका प्रियतम कुछ स्वार्थी और दुष्कर्मी लोगों के दुष्कर्म के कारण
      इस बुराईयों से भरी दुनिया से कूच कर गया था
     उसने गुंडों से लड़कर एक अबला की इज्जत तो बचाई थी 
    पर उसकी कीमत अपने प्राणों की बलि देकर चुकाई थी
         इंसान सिर्फ इंसान को ही नहीं मारता उससे जुड़े हर रिश्ते को मारता है
     उन रिश्तों के सपने ,आशाएं, जरुरत को मारता है
    और उनकी जिंदगी में छोड़ देता है कभी ना मिटने वाला सन्नाटा 
  सन्नाटा  सन्नाटा   सन्नाटा


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हिंदू मुस्लिम की मुहब्बत का ताजमहल है देवबंद

देवबंद। देवबंद में ईद की नमाज़ सकुशल संपन्न हुई।

देवबंद की ईदगाह में क़ारी उस्मान साहब की इमामत में ईद की नमाज़ 9 बजकर 30 मिनट पर अदा हुई।
जामा मस्जिद में मौलाना सालिम क़ासमी साहब की इमामत में 9 बजे सुबह अदा हुई जबकि मस्जिद ए रशीद में सुबह 7 बजकर 15 मिनट पर ही ईदुल फित्र की नमाज़ अदा की जा चुकी थी।
इस मौक़े पर शान्ति व्यवस्था के लिए पुलिस प्रशासन की ओर से उचित प्रबंध किए गए।
देवबंद की सरज़मीन प्यार मुहब्बत की सरज़मीन है। ईदगाह के बाहर ही बहुत से पंडाल लगाकर हिन्दू भाई बैठ जाते हैं और जैसे मुसलमान भाई नमाज़ अदा करके निकलते हैं तो वे उनसे गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं के अलावा राजनीतिक पार्टियों के लीडर भी ईद मिलन के आते हैं और दिन भर अलग अलग जगहों पर ईद मिलन के औपचारिक और अनौपचारिक कार्यक्रम चलते ही रहते हैं बल्कि कई बड़े आयोजन तो कई दिन बाद तक होते रहते हैं।
इस साल भी प्यार मुहब्बत की यही ख़ुशनुमा फ़िज़ा देखने में आ रही है। कोई हिन्दू भाई अपने मुसलमान दोस्तों के घर ईद मिलने जा रहा है और कहीं कोई मुसलमान अपने हिन्दू दोस्तों के घर शीर लेकर जा रहा है और उसका मक़सद उनकी मां से दुआ प्यार पाना भी होता है।
दुनिया भर में देवबंद की जो छवि है,  वह यहां आकर एकदम ही उलट जाती है।
बड़ा अद्भुत समां है।
आम तौर पर कुछ लोग कहते हैं कि धर्म नफ़रत फैलाता है और अपने अनुयायियों को संकीर्ण बनाता है लेकिन ईद के अवसर पर हर जगह यह धारण ध्वस्त होते देखी जा सकती है और देवबंद का आपसी सद्भाव देख लिया जाए तो बहुत लोग यह जान जाएंगे कि इंसान को इंसान से जोड़ने वाली ताक़त सिर्फ़ धर्म के अंदर ही है।
जो लोग धर्म के बारे में लिखने पढ़ने के शौक़ीन हों या फिर वे सामाजिक संघर्ष के विराम पर चिंतन कर रहे हों, उन्हें चाहिए कि वे एक नज़र देवबंद के हिन्दू मुस्लिम रिलेशनशिप का अध्ययन ज़रूर कर लें।
आगरा में अगर पत्थर का ताजमहल है तो यहां सचमुच मुहब्बत का ताजमहल है।
हिंदू मुस्लिम की मुहब्बत का ताजमहल है देवबंद।
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खुदा का शुक्र है फितरा और ईद की नमाज़ अदा हुई ...


खुदा का शुक्र है के कोटा में फितरा और ईद की नमाज़ सुकून से अदा हो गयी .कल जिस तरह से कोटा में चाँद देखने की शहादत लेकर ईद की घोषणा की थी उससे सभी लोग खुश थे ..लेकिन कल से ही तेज़ बरसात ने माहोल को ठंडा और भीगा किया हुआ था.. सडकों पर पानी था .ईदगाह पर नमाज़ का वक्त सुबह साढ़े नो बजे था सुबह साढ़े आठ बजे तक बरसात चल रही थी सभी मुस्लिम भाई ईद की नमाज़ को लेकर चिंतित थे .कुछ मस्जिदों के इमाम काजी साहब के घर मोजूद थे और चाहते थे के मुकामी मस्जिदों में ईद की नमाज़ पढने की इजाजत दे दी जाए ..........क़ाज़ी साहब का कहना था के खुदा पे भरोसा रखो इंशा अल्लाह कोई न कोई करिश्मा जरुर होगा और वही हुआ ..ईद की नमाज़ के वक्त पानी रुक गया लोग कीचड़ को उन्घालते हुए ईदगाह की तरफ बढ़ने लगे और देखते ही देखते कुछ ही देर में ईदगाह भर चुकी थी करीब चालीस हजार लोग बढ़ी ईदगाह में और दूसरी ईदगाह और मस्जिदों में पचास हजार लोगों ने नमाज़ पढ़ी सब कुछ ठीक चला फितरा दिया नमाज़ अदा हुई लोगों से ईद मिले और फिर फोन पर मेसेज पर मुबारकबाद का सिलसिला शुरू हुआ जो थमने का नाम नहीं लेता था ..खुदा का शुक्र यह है के कोटा के सभी कट्टरपंथी लोग भी एक दुसरे को ईद की मुबारकबाद दे रहे थे और में सोच रहा था के देखो अपना तो यह नारा है ईद हो चाहे हो दिवाली चारो तरफ देश में भाईचारा है यह सपना सच होता नज़र आ रहा है एक बार फिर ईद मुबारक हो .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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फ़ित्रा वह रक़म है जो ग़रीबों को ईदुल्फित्र की नमाज़ से पहले अदा की जाती है

ईद की नमाज़ से पहले फ़ित्रा देने के बारे में

ईद अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है ख़ुशी। सो ईद से ख़ुशी जुड़ी हुई है। ईदुल्फित्र से रोज़े और फ़ित्रे की ख़ुशी। फ़ित्रा वह रक़म है जो ईदुल्फित्र की नमाज़ से पहले अदा की जाती है। यह रक़म ग़रीबों को दी जाती है, जिससे वह भी ईद मना सकें।
जब तक रोज़ेदार फ़ित्रा अदा नहीं करेगा, अल्लाह उसके रोज़े भी क़ुबूल नहीं करेगा। सो मुसलमान पर लाज़िम है कि ईद की नमाज़ से पहले पहले फ़ित्रा अदा कर दे वर्ना तो लौटकर ज़रूर ही अदा कर दे। यह एक निश्चित रक़म होती है जो अलग अलग साल में गेहूं की क़ीमत के मददे नज़र अलग अलग होती है। इस्लामी विद्वान हर साल हिसाब निकाल इसकी घोषणा करते हैं। यह रक़म मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम हरेक को दी जा सकती है, बस आदमी ग़रीब होना चाहिए। इसी के साथ यह भी एक ख़ास बात है कि पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. ने कहा है कि मेरी औलाद को ज़कात और फ़ित्रा वग़ैरह मत देना, यह मेरी औलाद पर हराम है अर्थात वर्जित है। अक्सर मुसलमान इसी माह में अपनी ज़कात भी निकालते हैं। मुसलमानों को सदक़ा देने की ताकीद भी क़ुरआन और हदीस में बहुत की गई है और कमज़ोर आय वर्ग के लोगों को ‘क़र्ज़ ए हसना‘ देने के लिए भी बहुत प्रेरणा दी गई है।
‘क़र्ज़ ए हसना‘ की शक्ल यह होती है कि क़र्ज़ देने वाला आदमी अल्लाह की रज़ा की ख़ातिर जब किसी ज़रूरतमंद को क़र्ज़ देता है तो न तो वह उस पर सूद लेता है और न ही कोई अवधि निश्चित करता है बल्कि यह सब वह क़र्ज़ लेने वाले पर छोड़ देता है कि वह जैसे चाहे और जब चाहे क़र्ज़ लौटाए और न चाहे तो न लौटाए। इन सबके बदले में अल्लाह का वादा है कि वह ईमान वालों को दुनिया में इज़्ज़त की ज़िंदगी देगा और मरने के बाद जन्नत की ज़िंदगी। हक़ीक़त यह है कि अगर दुनिया के मालदार इस तरीक़े से ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करने लगें तो दुनिया से भूख और ग़रीबी का ख़ात्मा हो जाएगा और जो जुर्म इनकी वजह से होते हैं वे भी दुनिया से ख़त्म हो जाएंगे। अमीर और ग़रीब की आपसी नफ़रत और आपसी संघर्ष भी मिट जाएगा। तब यह दुनिया भी जन्नत का ही एक बाग़ बन जाएगी। दुनिया के सामने इसका नमूना मुसलमानों को पेश करना है।
धर्म की उन शिक्षाओं को सामने लाने की ज़रूरत आज पहले से कहीं ज़्यादा है जिनका संबंध जन कल्याण से है। जो लोग यह कहते हैं कि धर्म शोषण करना सिखाता है और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए धर्म को छोड़ना ज़रूरी है।‘ उन लोगों से हमारा यही कहना है कि भाईयो , आपने धर्म के नाम पर अधर्म के दर्शन कर लिए होंगे। एक बार इस्लाम के दर्शन तो कीजिए, बराबरी और इंसाफ़ की, आपस में भले बर्ताव के बारे में इस्लामी शिक्षाओं को जान लीजिए और फिर उससे बेहतर या उस जैसी ही शिक्षा स्वयं बनाने की कोशिश कर लीजिए और हमारा दावा है कि आप दोनों ही काम नहीं कर पाएंगे। इस्लाम की बिना सूदी अर्थ व्यवस्था अर्थ शास्त्रियों की समझ में अब आ रही है।
इसी व्यवस्था में से एक है ‘फ़ित्रा‘।
क़ुरआन कहता है कि ‘...और मोमिन के माल में याचक और वंचित का भी हक़ है।‘ यानि ऐसा करके दौलतमंद मोमिन किसी याचक और किसी वंचित पर कोई अहसान नहीं कर रहा है बल्कि वह उन्हें वही धन दे रहा है, जिस पर उनका हक़ है। यह हक़ ईश्वर अल्लाह ने निश्चित किए हैं। जो ईश्वर अल्लाह को और उसके धर्म को नहीं मानते, वे उसके निश्चित किए हुए हक़ को भी नहीं मानते और दुनिया में भूख और ग़रीबी मौजूद है तो इसका कारण यही है कि दुनिया अल्लाह के ठहराए हुए हक़ को मानने के लिए तैयार ही नहीं है और सारी समस्या की जड़ यही न मानना है और इनका हल केवल मान लेना है। जो मान लेता है , वह ईमान वाला कहलाता है। ईमान वालों को चाहिए कि जो हक़ अल्लाह ने मुक़र्रर कर दिए हैं, उन्हें पूरा करने की कोशिश करे ताकि लोग जान लें कि धर्म इंसानियत को क्या कुछ देता है ?
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आधी जीत के मायने....

मित्रों इसके पहले की मैं विषय पर अपने विचार रखूं, मैं व्लागर साथियों से बडी ही विनम्रता से एक बात कहना चाहता हूं। जिस दिन आप ये समझ लेते हैं कि जो कुछ जानते हैं सिर्फ आप ही जानते हैं तो समझ लीजिए की आपका पतन शुरू हो गया है। किसी के भी विचारों से आप सहमत या असहमत हो सकते हैं। उस विषय पर आपकी राय अलग हो सकती है और आप अपनी राय व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन आपकी सोच के मुताबिक विचार ना हो तो आप लिखने वाले को मेल भेज कर भाषा की मर्यादा की अनदेखी करें और उसे गाली दें। मुझे लगता है कि ऐसे कृत्य को किसी भी सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं है। मैं हैरान हूं लखनऊ के डा. श्याम गुप्ता के कारनामों से। मेरे एक लेख पर उन्होंने मुझे जिस तरह अभद्र भाषा में मेल भेजा, वो मुझे परेशान करने वाला है। हालाकि मैं उन्हें जबाव दे चुका हूं, फिर भी इस बात का जिक्र यहां इसलिए कर रहा हूं कि लोगों को भी इस बात की जानकारी होनी चाहिए। मैं आपको बताना चाहता हूं कि आदरणीय रुपचंद्र शास्त्री जी कई बार मेरी राय से सहमत नहीं होते हैं, और टिप्पणी करते हैं " असहमत " । मुझे कोई दिक्कत नहीं होती। क्योंकि कोई जरूरी नहीं कि मेरा विचार ही अंतिम सच है। सिक्के का दूसरा पहलू भी है, शायद वो सही हो। बहरहाल मेरा अनुभव है कि ब्लाग पर तमाम लोग कुछ खास विचारधारा से ना सिर्फ प्रभावित हैं, बल्कि वो यहां दूसरों को भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ये मन की पीडा थी, जिसे आप सब के साथ मैं बांटना चाहता था। आइये बात करते हैं अपने विषय की......।

सच कहूं तो ये एक बड़ा सवाल है। आधी जीत की परिभाषा क्या है। मेरी नजर में तो जीत सिर्फ जीत होती है, आधी या फिर चौथाई कहकर खुद को खुश करने का ये बहाना भर है। मैने पिछले लेख में आपको संसदीय प्रक्रिया की जानकारी देने की कोशिश की थी, जिसमें बताया था कि संसद में किसी विषय पर कैसे चर्चो होती है। पहले तो आप यही जान लें कि शनिवार को जो चर्चा हुई, वो बेमानी है, उसका कोई मतलब ही नहीं है। क्योंकि केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने संसद में कोई प्रस्ताव नहीं रखा, सिर्फ एक बयान दिया, जिस पर चर्चा तो हुई, पर संसद के किसी नियम के तहत नहीं। लिहाजा चर्चा खत्म होने पर कोई प्रस्ताव स्थाई समिति को नहीं भेजा गया, बल्कि ये कहा गया कि नेताओं ने जो भाषण दिए हैं, वही स्थाई समिति को भेज दी जाए। इसमें कौन सी जीत आपको दिखाई दे रही है।
लोकपाल का बिल ड्राप्ट करना है स्थाई समिति को। उस स्थाई समिति को जिसमें लालू यादव जैसे सांसद भी इसके सदस्य हैं। लालू खुलेआम सिविल सोसाइटी का विरोध कर रहे हैं। इसके अलावा मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी ने भी इसका विरोध किया। कई राजनीतिक दलों ने मंत्री के वक्तव्य पर टिप्पणी की और उसमें कई तरह के संशोधन का जिक्र किया। इसके बावजूद सरकार की ओर से कहा गया कि प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ। मित्रों आप खुद समझ सकते हैं कि सरकार की मंशा क्या है। सच सिर्फ इतना है कि अन्ना के आंदोलन से सरकार ही नहीं विपक्ष की भी मुश्किलें बढ गई थीं और वो किसी भी सूरत में अन्ना का अनशन समाप्त कराना चाहते थे, जिसमें वो कामयाब हो गए।
अन्ना क्या मांग कर रहे थे। वो कह रहे थे कि संसद में जनलोकपाल बिल पेश किया जाए और उसे पास कर 30 अगस्त तक कानून बनाया जाए। उनकी ये बात पूरी नहीं हुई। फिर अन्ना ने 30 अगस्त तक कानून बनाने की बात छोड दी और कहा कि उनके बिल पर संसद में चर्चा की जाए और उस पर मतदान कराया जाए। लेकिन सरकार ने बिना किसी नियम के संसद में महज एक बयान देकर चर्चा की और कोई प्रस्ताव पास नहीं किया। अन्ना ने कहा कि संसद मे सर्वसम्मति से बिल पास हो जाने पर वो अनशन तो तोड़ देगें लेकिन रामलीला मैदान में धरना जारी रहेगा। लेकिन हुआ क्या.. संसद में चर्चा के बाद अन्ना के पास कोई प्रस्ताव भेजने के बजाए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का पत्र लेकर विलासराव देशमुख पहुंचे और अन्ना को अनशन खत्म करना पड़ गया।
सवाल ये है कि अन्ना खुद अपना जनलोकपाल बिल संसद की स्थाई समिति को सौंप आए थे। बाद में प्रधानमंत्री ने भी इसे स्थाई समिति को भेज दिया था। उस दौरान टीम अन्ना से कहा गया कि अब वो अपनी बात स्थाई समिति से करें। लेकिन टीम अन्ना ने उस समय ऐसा नहीं किया। अब नई बात क्या हुई, क्या टीम अन्ना स्थाई समिति से बात नहीं कर रही है। मित्रों संसद में पेश किए जाने वाले किसी भी बिल को स्थाई समिति ही ड्राप्ट करती है। ऐसे में टीम अन्ना किस जीत की बात कर रही है। ये कम से कम मेरे समझ से परे है।
हां इस बात के लिए मैं अन्ना जी को जरूर क्रेडिट देना चाहूंगा कि भ्रष्टाचार जो आज एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन इस पर आम जनता खामोश थी, उसमें जान फूंकने का काम किया अन्ना ने। आज जिस तरह से लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हैं, वो आने वाले समय में सिर्फ नेताओं के लिए नहीं, बेईमान अफसरों और कर्मचारियों पर भी लगाम लगाने मे जरूर कामयाब होगा।
इस दौरान एक चौंकाने वाला आरोप लगा अन्ना के अनशन पर। अगर टीम अन्ना ने सरकारी डाक्टरों को अन्ना के चेकअप करने से ना रोका होता तो ये आरोप को सिरे से खारिज किया जा सकता था। लेकिन लालू यादव ने अन्ना और उनके चिकित्सक डा. नरेश त्रेहन को बातों बातों में संदेह के घेरे में खडा कर दिया। उन्होंने यहां तक कहा कि इस पर दुनिया भर के डाक्टरों को रिसर्च करना चाहिए कि 74 साल का बुजुर्ग 12 दिन भूखे रहने के बावजूद किस तरह टनाटन बोल रहा है। वैसे अन्ना इसका जवाब ना देते तो बेहतर था, लेकिन उन्होंने लालू यादव की बात का जवाब दिया कि जिसने 12 बच्चे पैदा किए हों, वो ब्रह्मचर्य जीवन जीने वालों की ताकत को क्या जानेगें। हालाकि इसके बाद जो बात हुई, इससे ये विवाद और गहरा गया। कहा गया कि तो क्या बाबा रामदेव जो छह दिन में ही ढीले पड गए थे, वो ब्रह्मचर्य का जीवन नहीं जी रहे हैं। बहरहाल इस विवाद को यहीं छोड देता हूं, लेकिन इतना सही है कि अन्ना के अनशन पर तो उंगली उठ ही रही है।
इस पूरे प्रकरण में मीडिया की भूमिका पर सवाल खडे़ हो रहे हैं। ये सही है कि मीडिया को अन्ना और उनकी टीम ने खूब सराहा। आम जनता को भी मजा आ रहा था, वो जो कुछ कहना चाहती थी, मीडिया ने उन्हें भरपूर मौका दिया। लेकिन मुझे लगता है कि मीडिया को मंथन करना होगा कि ऐसे मौकों पर क्या जनभावना के साथ उन्हें भी बह जाना चाहिए, या फिर किसी तरह का नियंत्रण जरूरी है। मित्रों आपको बताना चाहता हूं कि मुंबई में जब ताज होटल पर हमला हुआ तो यहां मीडिया ने जिस तरह रिपोर्टिंग की, उससे ताज होटल में मौजूद आतंकी टीवी पर बाहर की सभी गतिविधियों को देख रहे थे, उन्हें पता चल रहा था कि उन्हें घेरने के लिए किस तरह कमांडो कार्रवाई की जा रही है। बाद में मीडिया ने यह कह कर पीछा छुडाने की कोशिश की कि ऐसा हमला पहली बार हुआ है, और हमें जो सतर्कता बरतनी थी वो नहीं बरत सके। देश की इलेक्ट्रानिक मीडिया अभी अपरिपक्व है, लेकिन प्रिंट से बेहतर की उम्मीद थी, पर जनभावना के आगे उन्होंने भी घुटने टेक दिए। दूसरे देशों में इस आंदोलन की तुलना सीरिया, लीबिया और मिश्र के आंदोलनों से की जाने लगी। दुनिया में देश के सम्मान को चोट पहुंचा। मुझे लगता है कि मीडिया आंदोलन की रिपोर्ट देने के बजाए इस आंदोलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गई थी। सच ये है कि सरकारी चाल की जानकारी अगर मीडिया ने लोगों को दी होती तो सबको सच्चाई का पता चलता।
इस आंदोलन की सबसे बडी ताकत थी गांधीवादी तरीके से आंदोलन का संचालन। हजारों की भीड लेकिन सब अनुशासन में। लेकिन इस अनुशासन को मंच पर तार तार किया ओमपुरी और किरन बेदी ने। सस्ती लोकप्रियता के लिए किरन बेदी भले ही अपने कृत्य को जायज ठहराएं, लेकिन मैं इसे कत्तई गांधीवादी आंदोलन का हिस्सा नहीं कह सकता। मंच पर इससे फूहड कुछ भी नहीं हो सकता। इसने आंदोलन की गंभीरता को कम किया। बाकी कसर स्वामी अग्निवेश ने पूरी कर दी।
सामाजिक संगठनो ने भी इसमें सही भूमिका नहीं निभाई। सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने जब मीडिया के सामने लोकपाल पर जब एक अलग बिल आगे बढाया तो ऐसा लगा कि अन्ना के खिलाफ ये एक साजिश है। लोग इसे सरकारी हथकंडा तक बताने लगे। बहरहाल अब स्थाई समिति के सामने ये मेरा बिल ये तेरा बिल करके लोकपाल को लेकर इतने मसौदे आ चुके हैं कि सभी का निस्तारण करने में समिति के हाथ पांव फूल रहे हैं। संवैधानिक मर्यादाओं में बंधी समिति को सभी मसौदों पर चर्चा करना जरूरी है। ऐसे में जाहिर है कि उसे और समय देना हो होगा।
जनलोकपाल बिल में कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनका सीधा संबंध राज्य सरकारों से है। ऐसे में बिल पास करने के पहले समिति को ये भी ध्यान रखना होगा कि कहीं राज्य सरकारों की स्वायत्तता का अधिग्रहण ना हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो बिल पास हो जाने के बाद राज्य सरकारों को इस बिल पर विधानसभा में भी सहमति बनानी पडेगी। इससे ये खतरा भी बढ सकता है कि कुछ राज्यों में ये कानून लागू हो जाए और कुछ स्थानों पर इसे लागू ना किया जाए।
बहरहाल सच ये है कि भ्रष्टाचार से देशवासी परेशान हैं और इसके लिए सख्त कानून बनना ही चाहिए। लेकिन कहते हैं ना कि वीणा के तार को इतना ना कसें कि तार ही टूट जाए और ना ही इतना ढीला कर दें कि उसमें सुर ही ना निकले। आपको पता है कि कानून से अपराध रुकते नहीं हैं, बल्कि इससे अपराधियों को सजा मिलती है। महात्मा गांधी जी का ही कहना था कि हमारी कोशिश ऐसी होनी चाहिए 99 गुनाहगार भले ही छूट जाएं, पर एक भी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए। मुझे लगता है कि दहेज के मामले में बहुत सख्त कानून जरूर बना, पर इसका दुरुपयोग भी सबसे ज्यादा हो रहा है। ऐसे में मुझे भरोसा है कि कानून में गांधी जी की भावना का ध्यान रखा जाएगा और भ्रष्टाचार पर एक सख्त कानून जरूर पास होगा।
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अन्ना के बारे में सबसे हटकर एक चिंतन

अन्ना ने 13 दिन तक अनशन किया। 13 के अंक को मनहूस माना जाता है और हमारे क़ाबिल नेताओं के लिए वाक़ई यह अंक मनहूस ही साबित हुआ। वे तो यह समझते थे कि एक बार माल ख़र्च करके इलेक्शन में खड़े हो जाओ, अब कोई न कोई तो ज़रूर ही जीतेगा। जनता में दम ही नहीं है कि वह सबको हरा सके। अब जब एक बार संसद में घुस गए तो चाहे आतंकवाद, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुददे पर बहस करने के लिए सदन में न भी पहुंचो तो कोई कुछ कहने वाला नहीं है और पहुंच जाओ तो वहां भी अध्यक्ष के आसन तक जा चढ़ो और कुर्सी उछालो या एक दूसरे पर माइक से हमला कर दो। सब चलता है।
जब अन्ना ने हल्ला मचाया तो ये सब कहने लगे कि यह आदमी संसद की गरिमा से खेल रहा है। आप लोग जो वहां आपस में एक दूसरे के कपड़े फाड़ते हो भई, उससे संसद गौरवान्वित होती है क्या ?
ख़ैर बड़ी तरकीब से सरकार और विपक्ष ने अन्ना का बोरिया बिस्तर लिपटवाया वर्ना तो संसद के हमाम में दोनों ही नंगे नज़र आने लगे थे।
अब आगे क्या होगा ?
सरकार भी यही सोच रही है और विपक्ष भी यही सोच रहा है और ख़ुद अन्ना भी यही सोच रहे हैं।
अन्ना अमर होने का पूरा मूड बना चुके हैं।
जनता के हित में काम करते हुए अगर दम निकल जाए जो जज़्बाती जनता ऐसे आदमी को अमर घोषित कर देती है और उसकी घोषणा के सामने सरकार भी कुछ नहीं कर पाती। मिसाल के तौर पर सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह को सरकार ने आज तक शहीद और अमर घोषित नहीं किया लेकिन जनता है कि उन्हें आज तक आतंकवादी मानने के लिए तैयार नहीं है जैसा कि अंग्रेज़ चाहते हैं।
अंग्रेज़ हमेशा जनता से इसीलिए परेशान रहे कि एक तो यह अधिकार मांगती है और दूसरे कहना नहीं मानती।
अंग्रेज़ों ने अपने देस में पढ़ाकर जिन लोगों को अपने पैटर्न पर हुकूमत चलाने की ट्रेनिंग दी थी , उन लोगों को भी जनता से यही शिकायतें हैं।
जनता है ही नामाक़ूल, अपने चुने हुए प्रतिनिधियों की भी नहीं सुनती।
और उससे भी ज़्यादा नामाक़ूल यह तब साबित होगी कि अगर अन्ना महाराष्ट्र छोड़कर किसी ऐसे प्रदेश से खड़े हो गए जहां उनकी भाषा और उनकी जाति के लोग न हों तो जनता इन्हें वोट ही न देगी।
अब चुनाव आएंगे, जनता फिर उन्हीं को वोट देगी जो पूंजीपतियों से सैटिंग करके महंगाई को बढ़वाते रहते हैं और खाद्यान्न को बारिश में डालकर सड़वाते रहते हैं।
इस समय सब एक दूसरे के लिए जान का अज़ाब बने हुए हैं। नेता जनता को तकलीफ़ें दे रहे हैं और जनता नेताओं की मुर्दाबाद के नारे लगा रही है और उनके पुतले जला रही है।
ऐसा लगता है जैसे कि नरक ज़मीन पर ही उतर आया हो।
फिर भी लोग हैं कि मानते ही नहीं कि स्वर्ग-नर्क होता है।
ख़ुद को चेक कीजिए कि आप क्या पा रहे हैं ?
सुख या दुख ?
सुख और दुख की सप्लाई स्वर्ग-नर्क से ही होती है।
जब सप्लाई है तो एजेंसी भी है और मरकर तो हरेक देख ही लेगा।
अन्ना मरने के मूड में आ चुके हैं और ऐसे लोगों से हमारे चुने हुए प्रतिनिधि और हमारा प्रशासन, दोनों ही घबराते हैं।
यह भी आत्मघात का ही एक प्रकार है।
भारत भी अजीब देश है। यहां अहिंसा के ज़रिये जंग लड़ी जाती है और उसकी बुनियाद आत्मघात पर रखी जाती है।
ख़ैर अगर आदमी मरने पर उतारू हो जाए तो फिर हरेक चीज़ उसके सामने झुक जाती है। अफ़ग़ानिस्तान के आत्मघाती हमलावरों के सामने तो अमेरिका भी घुटने टेक चुका है।
अन्ना का प्रभाव तो उनसे कहीं ज़्यादा व्यापक है क्योंकि उनकी मरने की धमकी की शैली गांधी शैली है।
लोग अफ़गान आत्मघातियों को बुरा कह सकते हैं लेकिन गांधी शैली को नहीं।
भारत व्यक्ति पूजक लोगों का समूह है, यहां ऐसे ही होता है। वह करे तो ग़लत और हम करें तो महान।
बहरहाल अब जब तक अन्ना जिएगा, उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि सरकार की गर्दन में गांधी शैली का फंदा टाइट ही रखे।
उन्हें हमारा समर्थन इसी बात के लिए है।
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ब्लॉगर्स मीट वीकली 6 की ख़ास बात


ब्लॉगर्स मीट वीकली 6 की ख़ास बात यह है कि इसमें बहुत आसान अल्फ़ाज़ में बता दिया है कि ज़िंदगी की हक़ीक़त असल में क्या है ?
इसी के साथ हिंदी ब्लॉगिंग गाइड के 31 मज़ामीन भी नज़्रे अवाम किए गए हैं.
अन्ना इस मीट में भी छाये रहे, अन्ना ने जितना बड़ा आंदोलन खड़ा किया और जिस तरह जनता ने उनका साथ दिया वह बेनज़ीर है लेकिन जाने हमें अब भी यही लगता है कि सरकार जनता के साथ फ़रेब से काम ले रही है.
पत्रकार भी झूठ का सहारा ले रहे हैं.
मीट में इस मौज़ू पर भी कई मज़ामीन हैं.
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/6-eid-mubarak.html

एक शेर जो हमें पसंद आया वह यह है





फ़लक के चांद को मुश्किल में डाल रखा है
ये किसने खिड़की से चेहरा निकाल रखा है 

'बुनियाद' पर कुछ  उम्दा शेर
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (6) Eid Mubarak

आदरणीय सभापति श्री रूपचंद शास्त्री 'मयंक' जी और आप सभी हिंदी ब्लॉगर्स का ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली की छठी महफ़िल‘ में सादर स्वागत है।
आप सभी को प्रेरणा अर्गल और अनवर जमाल का प्रणाम और सलाम !
आप का साथ हमारी ताक़त है और आपके सुझाव हमारे लिए मार्गदीप हैं।

दोस्तो ! इंसान की ज़िंदगी पैदाइश से शुरू होकर मौत पर ख़त्म हो जाती है और इस बीच वह कुछ खोता है तो कुछ पाता भी है। खोना उसे ग़मज़दा करता है तो पाना उसे ख़ुशी का अहसास दिलाता है। यही है ज़िंदगी।
जिन लोगों ने ज़िंदगी के इस स्वाभाविक प्रारूप को नहीं समझा, वे हमेशा ज़िंदगी से ग़ैर मुतमइन ही रहे। उन्होंने कभी ज़िंदगी को ठुकरा दिया और कभी ज़िंदगी ने उन्हें ठुकरा दिया।

जीने का सही तरीक़ा यह है कि जो कुछ जाता रहे, आदमी उस पर सब्र करे और जो कुछ मिले उस पर आदमी अपने दाता का शुक्र करे। दुनिया उसी की है तो यहां योजना और इच्छा भी उसी की चलती है। यह तरीक़ा तत्वदर्शियों और वलियों का तरीक़ा है। यही तरीक़ा समर्पण की उम्दा मिसाल है और यही तरीक़ा ज़िंदगी के हर सांस को भक्ति और इबादत बना देता है।
इंसान वह है जो ज़िंदगी को अपने मालिक की दी हुई नेमत समझकर उसकी क़द्र करता है और उसके बताए हुए रास्ते पर चलकर भलाई के काम नेक नीयती से करता है चाहे उसे बदले में कुछ मिले या न मिले। यही बात भ्रष्टाचार का ख़ात्मा कर सकती है।
अन्ना ने भ्रष्टाचार के जिस मुददे को उठाया है, उसके ख़ात्मे का तरीक़ा इसके सिवा दूसरा कोई नहीं है।
सरकार ने अन्ना की तीन मांगों को माना है और जनता के दबाव में माना है।
यह जनता की जीत है, चाहे कितनी ही छोटी क्यों न हो !
सारा देश ख़ुश है, आप और हम भी ख़ुश हैं।

ख़ुशी का यह मौक़ा एक ऐसे समय में आया है जबकि रक्षा बंधन, स्वतंत्रता दिवस और जन्माष्टमी के पर्व अभी अभी गए हैं और अब ईद भी बिल्कुल सामने ही है।
धार्मिक-सामाजिक त्यौहारों की इस मनोहारी बेला में हम चाहते हैं कि ये ख़ुशियां और ज़्यादा बढ़ जाएं।
आदरणीय सभापति श्री रूपचंद शास्त्री ‘मयंक‘ जी के सभापतित्व में आज हम 
‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ के संक्षिप्त संस्करण का लोकार्पण कर रहे हैं।
इस संस्करण में अभी तक कुल 31 पोस्ट्स संकलित की जा चुकी हैं और इन पोस्ट्स की मदद से एक नया ब्लॉगर अपना ब्लॉग बनाने से लेकर उसे चलाने तक सभी काम आसानी से अंजाम दे सकता है। 

इन सभी पोस्ट्स के शीर्षक (लिंक) एक ही पेज पर नज़र आएंगे और नए लेख के शीर्षक इसमें बढ़ते रहेंगे। इस तरह हिंदी ब्लॉगिंग गाइड का काम आगे भी बढ़ता रहेगा और जितने लेख अब तक प्रकाशित हो चुके हैं, उनसे नए पुराने ब्लॉगर्स लाभ भी उठाते रहेंगे।
इस संक्षिप्त संस्करण का फ़ायदा यह होगा कि केवल एक लिंक पर ही 31 से ज़्यादा लेख मिल जाएंगे, जो कि हिंदी ब्लॉगिंग में रीढ़ की हड्डी की हैसियत रखते हैं।
इसके लिए हम इस गाइड की तैयारी में लगी हुई टीम के सभी सदस्यों को मुबारकबाद देते हैं और विशेष तौर पर मुबारकबाद के पात्र हैं हमारे युवा भाई श्री
महेश बार्माटे 'माही'। इन्होंने इस गाइड के लिए कई लेख लिखे हैं और बहुत सी साइट्स पर ‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ नेट यूज़र्स को उपलब्ध कराई और उन्हें हिंदी ब्लॉगिंग का रास्ता दिखाया। अपने काम को उन्होंने अंजाम पहले दिया और तब हमने उन्हें इस गाइड का ‘मुख्य प्रचारक‘ घोषित किया। 
सभापति श्री रूपचंद शास्त्री 'मयंक'
इस गाइड में लिखने वालों में शालिनी कौशिक जी, शिखा कौशिक जी, देवेन्द्र गौतम जी, कुंवर कुसुमेश जी, प्रेरणा अर्गल जी, हकीम यूनुस ख़ान साहब, डा. अयाज़ साहब और श्री रूपचंद शास्त्री जी के नाम मुख्य हैं। जनाब सलीम ख़ान साहब और जनाब एस. एम. मासूम साहब के लेख भी इस गाइड में एक ख़ास अहमियत रखते हैं। इसका ख़ूबसूरत टाइटिल भाई एजाज़ उल हक़ साहब के हुनर का कमाल है। हमें ख़ुशी है कि इस गाइड में कुछ योगदान हमारा भी है। कुछ लेखक और भी हैं जिनके लेख समय आने पर आपके सामने लाये जाते रहेंगे। हम इन सभी भाई बहनों के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने दुनिया की पहली हिंदी ब्लॉगिंग गाइड लिखकर बहुत से लोगों के लिए ब्लॉगिंग को आसान बना दिया है। सभी ने पूरी तरह निःशुल्क काम किया है जो कि इनकी निष्ठा और इनके ख़ुलूस का परिचायक है।
 
जनाब अख़तर ख़ान अकेला साहब ने 3500 पोस्ट्स रचकर एक इतिहास रच दिया है।
यह भी हमारे लिए ख़ुशी की बात है और यह हिंदी ब्लॉगिंग की एक बड़ी उपलब्धि है। लोगों ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया और करने वाले तो उन्हें आज तक नज़रअंदाज़ कर रहे हैं लेकिन उन्होंने अपना सारा ध्यान लेखन पर दिया और पाठक उनके ब्लॉग को भारी संख्या में पढ़ने लगे। ब्लॉगर का काम है लिखना, पाठक तो देर सवेर अपने मतलब की चीज़ तक पहुंच ही जाते हैं।
इन उपलब्धियों के बीच जो हमने खोया है, वह है डा. अमर कुमार जी का साथ।
मौत एक ऐसी हक़ीक़त है जो हमारे प्यारों को हमसे जुदा कर देती है।
क्या इन जुदा हो चुके साथियों से हम दोबारा फिर कभी मिल पाएंगे ?
अगर हां तो किस हाल में और कहां ?
इन सवालों के हल होने के बाद फिर जुदाई का ग़म देर तक नहीं रहता क्योंकि आज जहां एक गया है, धीरे धीरे हरेक को वहीं जाना है।
इस अस्थायी दुनिया के वास को हम प्यार मुहब्बत से और सीखते-सिखाते हुए गुज़ार लें, इससे अच्छी और क्या बात होगी ?

इस ब्लॉगर्स मीट वीकली का मक़सद यही है।
तो दोस्तो, प्रेरणा अर्गल जी की कई दिनों की मेहनत अब आपकी नज़्र की जाती है और उनके साथ ही हमारा चुनाव भी मिक्स है।
आज सबसे पहले

"एस. एम. मासूम साहब के जन्मदिवस पर विशेष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

आज 26 अगस्त को सय्यद मासूम साहब को 

उनकी यौम-ए-पैदाइश की बहुत-बहुत मुबारकबाद

समाज, नैतिकता, धर्म और अध्यात्म पर अनवर जमाल के विचार

बाप अपनी ही बेटियों से बरसों करता रहा बलात्कार ; मां की अहमियत समझाती हुई एक ख़बर

ईमान की एक निशानी है रोज़ा

कुछ कलाम पानीपत के मुशायरे से

डा. अमर कुमार जी की ख़ुशी के लिए कम से कम एक दिन सभी लोग अपने ब्लॉग से मॉडरेशन हटा लें  ये उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी

अख़तर ख़ान अकेला साहब ने ब्लॉग की दुनिया में रच डाला इतिहास साढ़े तीन हज़ार पोस्ट्स लिख कर

मुसलमानों की समस्याओं को बढ़ा रहे हैं बुख़ारी साहब जैसे मुस्लिम रहनुमा

हिन्दुस्तान जॉब्स : हजारों रोजगार

काशी की चेतना का सच और भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बनने लिए बाध्य 'पत्रकार जगत का चित्रण'

हमारे मंच के एक बहुपठित लेखक महेंद्र श्रीवास्तव जी बता रहे हैं
 संसद पर हमला है ये आंदोलन..
 दिल्ली दूर है अन्ना जी...
image

बड़ी देर भई नंदलाला   ,हमारा देश महान 

 प्रेरणा  अर्गल

imageभारतीय नारी , शिखा कौशिक जी

भाई बहन के पाक रिश्तों के तार तार होने के बाद  

१- ''गुडिया मुझे माफ़ कर देना !''

२- विजेता बनने का मौका मत चूकिए

अलबेला खत्री जी की अलबेली सलाह

हरामखोरो ! चुल्लू भर पानी में डूब मरो.. पानी न हो तो मेरे आँसू ले जाओ लेकिन भगवान् के लिए अब तुम मर खप जाओ

http://jagranjunction.com/avatar/user-390-96.pngअन्ना जी को संत बताते हुए देवेन्द्र गौतम जी बता रहे हैं

 राजनैतिक संतों की परंपरा 

 अन्ना के आन्दोलन को हिन्दू मुस्लिम साप्रदायिकता में बांटने की सरकारी साज़िश नाकाम

 जी हाँ में आज़ाद भारत का नेता हूँ ....

नेताओं की फितरत के बारे मैं बता रहे अख्तर खान "अकेला जी "

बीमारी हो गई दूर , आब ए ज़म ज़म का करिश्मा     ज़म ज़म पानी के अहमियत बता रहें हैं डॉ.अयाज अहमद जी

NBT पर रेखा झा 

 आज सुबह दस बजे के आस-पास अन्ना ने अपना अनशन तोडा

एक नई सोच का आगाज़

 


महान गायक मुकेश जी की पुण्य तिथि (27 Aug) पर कुछ गीत --यशवंत माथुरजी पेश कर रहे हैं जरुर सुनिए /

अब ज़रा पिछले साप्ताहिक समारोह का भी आनंद लीजिए
 ब्लॉगर्स मीट वीकली (5) Happy Janmashtami & Happy Ramzan
...और अब हिंदी ब्लॉग जगत से कुछ पोस्ट्स

कल्याण के लिए हमें क्या करना होगा ?


रमज़ान की विदाई -डा. फ़ितरतुल्लाह अंसारी ‘फ़ितरत‘

एक उस्ताद शायर हैं मिर्जा दाग़ दहलवी का संक्षिप्त परिचय

महंगाई के चूहे -रश्मि गौड़

सच्चाई जी सरकार पर  व्यंग्य कर रहे हैं 

ब्यंग - "झंडू बाम और च्विंगम "

 एक औरत   रचनाजी  औरत की हस्ती  बता रहीं हैं 

लोकतंत्र ने लोकतंत्र को ललकारा...- शंभु चौधरी

 Bellary Iron Ore Mines : बेल्लारी की आयरन ओर माइंस 

शिल्पा मेहता जी

कुवंर कुसुमेश जी अन्ना की तुलना तूफां के मुक़ाबिल अन्ना

 

 


नई ग़ज़ल / मेरे हरेक दर्द ने उनको मज़ा दिया.......?

गिरीश पंकज 


हर दौर ने सबको यहाँ ये ही सिला दिया
सच बोलता था जो उसे फ़ौरन मिटा दिया

काव्‍यजगत् के महासागर ब्‍लॉग कवि‍ताकोश का समाचार स्‍तब्‍ध कर देने वाला आकुलजी बता रहे हैं


गांधी के दिखाए पथ पर ...

अनुज  खरे 

-------------- 


अनामिका जी की

सुन लो ..........

ऊपर  गगन है नीचे जन
भ्रष्ट तंत्र  -भूखे  जन-गण
नेताओं की लूट कथा को
बांच  रही नभ कर-कर वर्णन

शालिनी कौशिक जी   फ़ोर्ब्स की सूची :कृपया सही करें आकलन

दिगम्बर नासवा जी अपने सपनों का कर रहे हैं आह्वान ..

इतिहास और पुराण की मान्यताओं के प्रति ही अपनी चिंताएं ज़ाहिर कर रहे हैं विनोद हौसलेवाला जी, और वाक़ई उनकी चिंताओं का निराकरण होना ही चाहिए।
देखते हैं कौन करता है उन्हें संतुष्ट ?

हमारी सबसे बड़ी दौलत , हमारे बुज़ुर्ग

डा. दिव्या श्रीवास्तव

अनवर जमाल का ख़ास तोहफ़ा

हिंदी ब्लॉगिंग गाइड से

नए पुराने हिंदी ब्लॉगर्स के लिए हिंदी ब्लॉगिंग के अनोखे राज़ देखिए इन पोस्ट्स में

टिप्पणी को बोल्ड और इटालिक दिखाने के लिए कोड Hindi Blogging Guide (25)

डिज़ायनर ब्लॉगिंग के ज़रिये अपने ब्लॉग को सुपर हिट बनाईये Hindi Blogging Guide (26)

डिज़ायनर ब्लॉगिंग में रामबाण है ‘हनी बी तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (27)

कबूतर की तरह भी पकड़ी जाती हैं टिप्पणियां Hindi Blogging Guide (28)

ब्लॉग जगत का नायक बना देती है ‘क्रिएट ए विलेन तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (29)

आपकी जेब भर सकती है ‘हातिम ताई तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (30) 

 दुष्टों के विनाश के लिए ‘अवतार तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (31)

Gift with a bow
  नवभारत टाइम्स की वेबसाईट पर

इंसानी चरित्र पर रमज़ान का प्रभाव

अख़तर ख़ान अकेला ने रच डाला इतिहास

   और इसी साइट पर एक ही दिन में बल्कि एक घंटे में तीन पोस्ट्स का रिकॉर्ड पहली बार

1- त्यौहारों की बुनियाद

2- बुख़ारी का बयान इस्लाम के खि़लाफ़

3- श्री कृष्ण जीके विषय में अनर्गल न कहें

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फ़लक के चांद को मुश्किल में डाल रखा है
ये किसने खिड़की से चेहरा निकाल रखा है 

'बुनियाद' पर कुछ  उम्दा शेर
Picture 114 डा. अमर कुमार को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 
देने वाले  एस एम मासूम को ब्लॉगजगत 
 अमन के पैग़ाम  के  लिए जानता है . जनाब को महिला जगत के बारे में भी काफी मालूमात है.

और दीन के साथ दुनिया

हे विश्वासियो ! रोज़ा तुमहारे लिए निर्धारित है, रमज़ान  उल   मुबारक    

इंसानी सेहत ,जिस्म की बीमारियाँ और इलाज ( 1 )

इंसानी सेहत ,जिस्म की बीमारियाँ और इलाज ( 2 )

न्याय व मानवताप्रेम के प्रतीक हज़रत अली

 एक सस्पेंस बताती हुई                                                       

कौन है वो  मीनाक्षी पंत जी की रचना

imageवंदना जी बता रही हैं 
हाल अहवाल एक ब्लॉगर मीट का
image मेरी ताजा रचनाएँ |
-राष्ट्र नवनिर्माण के लिए एक उम्मीद की किरण दिखाती एक रचना |

अख्तर खान अकेला जी का ऐलान

स्वामी अग्निवेश आखिर गद्दार निकले .....कॉँग्रेस  और भाजपा भी चोर चोर मोसेरे भाई साबित हुए

सिगरेट और शराब के सेवन  को  आज़ादी का द्योतक बता रही हैं नारी जी और कहती हैं कि आज़ादी की चाह किसे नहीं हैं ? 
कैसी होगी यह रचना ?
देखिये उनके ब्लॉग पर,
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2011/08/blog-post_26.html
और कुमार राधा रमण जी कहते हैं कि

चाय है गुटखे से भी ज्यादा नुकसानदेह


आज हिन्दी ब्लॉगिंग में चर्चा मंच
एक नायाब मोती की तरह चमकने लगा है! 
khush2जो बात सबसे अच्छी है उसे ही फाइनल लोकपाल बिल में जगह दी जाए...मकसद भ्रष्टाचार को मिटाना होना चाहिए एक दूसरे को नहीं.. 
जनलोकपाल को लेकर

मेरे (कु)तार्किक सवाल का (सु)तार्किक जवाब दीजिए...खुशदीप

 ...और खुशदीप जी की एक अनूठी कोशिश 

 (अमर कहानियां)

डॉक्टर अमर कुमार...श्रद्धासुमन

इंसानी फ़ितरत...डॉ अमर कुमार (साभार- डॉ अनवर जमाल)

दिलबाग विर्क जी की रचनाएं
साहित्य सुरभि पर 

 अनिता निहालानी जी 
तब और अब 
जब छोटा सा था जीवन अपना
दुनिया बहुत बड़ी लगती थी
 फुर्सत मिले तो चन्द्र मौलेश्वर जी का लेख भी ज़रूर देखें
अज्ञेय पर ‘स्रवंति’ के तीन विशेषांक
हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के लिए लिखे सलीम खान जी और एस. एम. मासूम जी के लेखों को देखिये मेरी नज़र से - ( महेश बार्माटे 'माही' )

http://meri-mahfil.blogspot.com/2011/08/6.html
कुछ ताज़ा पोस्ट  ख़ास आपके लिए 
*  सीमा सिंह जी को  
 ठाकरे के सुझाव पर हंसी आती है

* प्रमोद जोशी जी बता रहे हैं  

नरेगा के मजदूर से भी कम पैसा देने वाली व्यवस्था हिन्दी पत्रकार को कितना सम्मानित मानती है वह जाहिर है। पत्र मालिकों को साख चाहिए भी नहीं। धंधा चाहिए। अंग्रेजी पत्रकारिता का भी यही हाल है। अलबत्ता वहाँ का पत्रकार अपर-लोअर केस में कॉपी बनाने के बदले हिन्दी पत्रकार से कई गुना ज्यादा पैसा लेता है। और उससे कई गुना ज्यादा पैसा सेल्स और मार्केटिंग का सद्यः नियुक्त एक्जीक्यूटिव लेता है।

क्या मीडिया का कारोबारी नज़रिया उसे जन-पक्षधरता से दूर तो नहीं करता?

हरिशंकर परसाई की यह रचना रोचक है और आज के संदर्भों से जुड़ी है। इन दिनों नेट पर पढ़ी जा रही है। आपने पढ़ी न हो तो पढ़ लें। 

* दस दिन का अनशन

* K. D. Sharma का नुस्ख़ा ज़ुकाम के लिए

* सारा सच का आह्वान

 आज ज़रुरत है जागने की, भ्रष्टाचार को मिटाने की....

( हरिवंश राय बच्चन ) from राजभाषा हिंदी by संगीता स्वरुप ( गीत )








* अगहन में

by मनोज कुमार

अगहन में।

चुटकी भर धूप की तमाखू,
बीड़े भर दुपहर का पान,
दोहरे भर तीसरा प्रहर,
दाँतों में दाबे दिनमान;

by Sadhana Vaid
मेरा फोटोअहिंसा में कितनी ताकत होती है और शान्ति और प्रेम का कवच कितना कारगर होता है अन्ना के आंदोलन ने इस बात को सिद्ध कर दिया है !


"अलख जगाएँ जन-जन में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

उठो साथियों वक्त आ गया, अपनी शक्ति दिखाने का।
वसुन्धरा को काले अंग्रेजों से, मुक्त कराने का।।

बहुत समय के बाद आज फिर, गांधी ने अवतार लिया।
भ्रष्टाचार मिटाने को, सत्याग्रह का व्रत धार लिया।।

देख आमरण अनशन को, सरकार हो गई जब आहत।
नकली आँसू बहा-बहाकर, देती है झूठी राहत।।

डाँवाडोल हो रहा अब तो, मक्कारों का सिंहासन।
गद्दारों का जल्दी ही, अब छिनने वाला है आसन।।

भोली-भाली मीनों का अब होगा काम तमाम नहीं।
घड़ियालों का मानसरोवर में, होगा विश्राम नहीं।।

नाती-पोतों के शासन की परम्परा नहीं छायेगी।
जनता पर जनता के शासन की अब बारी आयेगी।।

गर्दन को जो नाप सके, अब लोकपाल वो आयेगा।
घूसखोर कितना बलिष्ट हो इससे बच ना पायेगा।।

जुग-जुग जिएँ हमारे अन्ना, अलख जगाएँ जन-जन में।
रिश्वतखोरी के विकार अब, कभी न आयें तन-मन में।।
Gift with a bow अलविदा जुमा की मुबारकबाद Star
प्रेरणा अर्गल
फ़ेसबुक के साथी, डायरेक्टर श्रीपाल चौधरी और फ़िल्म एडिटर संजीव के साथ अनवर जमाल
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