ये जि़दगी है बड़ी बेवफा किसी की नहीं

है सब नसीब की बातें खता किसी की नहीं
ये जि़दगी है बड़ी बेवफा किसी की नहीं।

तमाम जख्म जो अंदर तो चीखते हैं मगर
हमारे जिस्म से बाहर सदा किसी की नहीं।

वो होंठ सी के मेरे पूछता है चुप क्यों हो
किताबे-ज़ुर्म में ऐसी सज़ा किसी की नहीं।

बड़े-बड़े को उड़ा ले गई है तख्त केसाथ
चरा$ग सबके बुझेंगे हवा किसी की नहीं।

'नज़ीर सबकी दुआएं मिली बहुत लेकिन
हमारी मां की दुआ-सी दुआ किसी की नहीं।
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गाँधीजी, कुरान और मुसलमान

वर्तमान परिदृष्य को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो गाँधीजी का भारत में जन्म हुआ ही नहीं हो। चारों ओर बेईमानी का चलन हो गया है। क्षेत्र चाहे राजनीति हो या कुछ और बजाय योग के भोग की आदत पड़ गई है लोगों को। अधिक से अधिक पैसा बनाना हर व्यक्ति की दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग बन गया है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह पैसा हलाल की कमाई का है या हराम की कमाई का। वैसे सच्चाई तो यह है कि ईमानदारी से काम करने वाले के हाथ सदा खाली ही रहते हैं। 

ऐसे में गाँधीजी की बड़ी याद आती है। अब तो गाँधीजी को याद करना भी एक औपचारिकता ही रह गया है। हम हिन्दुस्तानियों का यह सौभाग्य था कि गाँधीजी यहाँ जन्मे, मगर यह दुर्भाग्य रहा कि उनके बताए रास्ते पर चलने की बजाय हमने उनकी खिल्ली उड़ानी शुरू कर दी।एक बार सवेरे लगभग पौने पाँच बजे मौलाना आजाद गाँधीजी के निवास पर फज्र की नमाज के बाद गए तो देखा कि गाँधीजी कुरान पढ़ रहे हैं। पहले तो मौलाना साहब को विश्वास ही नहीं हुआ मगर जब उनके मुख से शुद्ध अरबी उच्चारण में 'सूरा-ए-इख्लास' सुनी तो वे स्तब्ध रह गए। मौलाना साहब की इस असमंजस वाली स्थिति को देखते हुए गाँधीजी बोले, 'मौलाना साहब, मैं रोज सवेरे कुरान शरीफ पढ़ता हूँ और तरजुमे से पढ़ता हूँ। इससे मुझे मन की अभूतपूर्व शांति प्राप्त होती है।' मौलाना साहब को अब तक यह पता नहीं था कि गाँधीजी को उर्दू, अरबी और फारसी का सटीक ज्ञान था और यह कि बचपन में मौलाना अब्दुल कादिर अहमदाबादी नक्शबंदी से उन्होंने यह ज्ञान गुजरात में ही प्राप्त किया था। उस दिन से मौलाना की नजरों में गाँधीजी का कद और भी ऊँचा हो गया था।आजादी से थोड़ा पहले ही संपूर्ण बंगाल में हिन्दू-मुस्लिम दंगे प्रारंभ हो गए थे। गाँधीजी के वे दिन अवसादपूर्ण व निराशा से भरे थे। जब वे नोआखाली के बाबू बाजार में शांति यात्रा पर घर-घर जा रहे थे तो एक बंगाली मुसलमान भीड़ में से आया और उनका गला दबाते हुए उन्हें जमीन पर गिरा दिया और बोला- 'काफिर ! तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ कदम रखने की?' गाँधीजी तो पहले ही उपवास रख कर जीर्ण-शीर्ण हो चुके थे, इस वार को न सह सके और गिरते-गिरते उन्होंने 'सूरा-ए-फातिहा' पढ़ी। यह देख वह बंगाली मुसलमान, जिसकी बड़ी चमकदार दाढ़ी थी, 
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भौंचक्का रह गया और यह सोचकर शर्म से पानी-पानी हो गया कि ऐसे सदोगुणी प्रवृत्ति वाले महात्मा पर उसने हाथ उठाया। उसने गाँधीजी के पाँव पकड़ लिए और क्षमा याचना की। गाँधीजी ने उसे माफ कर दिया। यही नहीं, अपने साथ चल रहे हिन्दू व मुसलमान हिमायतियों के रोष को भी उन्होंने ठंडा किया। इस घटना के पश्चात वह व्यक्ति, जिसका नाम अल्लाहदाद खान मोंडल था, गाँधीजी का पक्का अनुयायी बन गया और प्रत्येक व्यक्ति से यही कहा करता था कि गाँधीजी की एक बात उसके मन पर लिख गई। गाँधीजी ने अल्लाहदाद मोंडल से कहा था- 'देखो खुदा के निकट मैं तुमसे अच्छा मुसलमान हूँ।' इस घटना के तुरंत बाद गाँधीजी ने अपने साथ चल रहे लोगों को सख्त आदेश दिया था कि कोई भी इस बात का वर्णन आगे कहीं न करे। गाँधीजी के स्थान पर अन्य कोई और नेता होता तो अवश्य सांप्रदायिक आग की लपटें भड़क उठतीं मगर गाँधीजी सदा उन लोगों में से थे जिन्होंने आग पर हमेशा पानी ही डाला।विभाजन के तुरंत बाद गाँधीजी ने तनाव की खबरें आने पर फिर नोआखाली जाने का मन बनाया परंतु परिस्थिति को देखते हुए वे कलकत्ता छोड़ नहीं पाए। अविभाजित बंगाल के प्रधानमंत्री एचएस सुहरावर्दी ने गाँधीजी से अनुरोध किया था कि जब तक कलकत्ता में पूर्ण रूप से शांति न हो जाए, तब तक वे कलकत्ता में ही रहें। गाँधीजी मान गए परंतु उन्होंने शर्त रखी कि सुहरावर्दी भी उनके साथ ही एक ही छत के नीचे रहें।

कलकत्ता में जिस घर में गाँधीजी रह रहे थे वह किसी बूढ़ी मुस्लिम महिला का था। यह मकान एक ऐसे मुहाने पर था जिस पर आसानी से आक्रमण किया जा सकता था। हिन्दू नवयुवक बहुत नाराज थे क्योंकि वे मानते थे कि गाँधीजी मुसलमानों को अपना संरक्षण दे रहे हैं। उनका कहना था कि एक वर्ष पूर्व जब मुसलमानों ने हिन्दुओं का कत्ल किया था तब गाँधीजी कहाँ थे? गाँधीजी के लिए यह परिस्थिति कोई नई नहीं थी और वे भली- भाँति इससे परिचित थे। मगर बावजूद इसके उन्होंने किसी भी सशस्त्र पुलिस की सहायता लेने से इंकार कर दिया था।

एक बार तो उत्सुक भीड़ उतावली हो उठी और लोगों ने 'गाँधी वापस जाओ' के नारे लगाने शुरू कर दिए। लेकिन सुहरावर्दी के मना करते रहने पर भी वे दरवाजे पर आए और क्रुद्ध भीड़ का सामना किया। अंत में जब वे घर के भीतर आए तो भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया। घर के शीशे आदि तोड़ दिए गए और घर के अंदर पत्थरों की बारिश हो रही थी। गाँधीजी ने प्रदर्शनकारियों के पास अपना संदेश भेजा कि वे उनकी जान लेना चाहते हैं तो इस शर्त पर लें कि उसके बाद वे सुहरावर्दी या उनके साथियों का बाल भी बाँका नहीं करेंगे। गाँधीजी के इस संदेश का जबर्दस्त प्रभाव पड़ा उस भीड़ पर और थोड़ी देर में ही लोग वहाँ से चले गए। उसके बाद सद्‌भावना की ऐसी बारिश हुई कि एक आमसभा में हिन्दू और मुस्लिम युवकों ने एक ही मंच से भारत की आजादी का संकल्प लिया।गाँधीजी एक साथ हजरत मुहम्मद, कृष्ण, गुरु नानक और ईसा मसीह से प्रभावित थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपने अनेक पत्रों में गाँधीजी की इस्लाम के प्रति जिज्ञासा का वर्णन किया है। 'अल-अहरार' संस्था के मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी को एक पत्र में उन्होंने लिखा कि हरिजनों से प्यार व छुआछूत से दूरी गाँधीजी ने हजरत मुहम्मद सल्ल से सीखी, जिन्होंने सभी इंसानों को बराबर समझा। गाँधीजी ने 'यंग इंडिया' एक संपादकीय में लिखा था कि गुलामों और यतीमों के साथ हजरत मुहम्मद सल्ल का व्यवहार कहीं अधिक अच्छा हुआ करता था। गुजराती में अपने प्रकाशन 'नवजीवन' में गाँधीजी लिखते हैं कि अहिंसा का मुख्य पाठ उन्होंने ईसा मसीह से सीखा और मजे की बात तो यह है कि वे बाइबिल का भी बड़े चाव से अध्ययन किया करते थे। यह कितने खेद की बात है कि आजकल गाँधीजी को गाली देने वालों की पूछ हो रही है। मायावती और बाल ठाकरे जैसे लोगों को इसके बदले कुर्सियाँ दी जा रही हैं। यह बड़ी सोचनीय और गंभीर समस्या है कि राष्ट्र पर सब कुछ न्योछावर कर देने वाले महात्मा को कोई भी ऐरा-गैरा-नत्थु-खैरा कुछ भी कह देता है। भारत के लिए गाँधीजी का स्थान अवतार जैसा है। ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल के नेताओं के लिए यह फैशन सा हो गया है कि गाँधीजी को गाली दी जाएगी तो दुनिया में नाम होगा, मगर वास्तविकता यह है कि फैशन के मारे लोग गाँधीजी को गाली दें या कोसें, उनकी इज्जत बढ़ती ही जाएगी। अहिंसा के पुजारी गाँधीजी की महानता तो इस बात से ही आँकी जा सकती है कि उनको गाली देने वालों ने भी उनसे लाभ उठाया है। गाँधीजी का रुतबा हर दिन बढ़ता ही जा रहा है।

 - फिरोज बख्त अहमद
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं मौलाना आजाद के पौत्र हैं।)

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लोग आलोचनात्मक टिप्पणियों को पचा नहीं पाते


यह बात सही है कि
 लोग आलोचनात्मक टिप्पणियों को पचा नहीं पाते है अक्सर उन्हें या तो प्रकाशित नहीं किया जाता या फिर हटा दिया जाता है | कई बार तो लोग आलोचनात्मक टिप्पणी करने वाले को ही भला बुरा कहने लगते है | किंतु क्या कभी किसी ने इस बात पर भी ध्यान दिया है की आलोचना है किस बला का नाम क्योंकि यहाँ तो यदि कोई आप की बात से असहमत हो जाये या आप की विचारों के विपरीत विचार रख दे,  जो उसके अपने है तो लोग उसे भी अपनी आलोचना के तौर पर देखने लगते है , जबकि वास्तव में कई बार ऐसा नहीं होता है है कि दूसरा ब्लॉगर आप को कोई टिप्पणी दे रहा है जो आप के विचारों से मेल नहीं खा रहा है तो वो आप की आलोचना ही करना चाह रहा है | कई बार इसका कारण ये होता है की वो बस उस विषय में अपने विचार रख रहा है जो संभव है की आप के सोच से मेल न खाता हो , कई बार सिक्के का दूसरा पहलू भी दिखाने का प्रयास किया जाता है | 
शुक्रिया मैंगो पीपुल 
  http://mangopeople-anshu.blogspot.com/2011/10/mangopeople_07.html
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मैं छह महीने पुराना हो गया...


मित्रों आठ अक्टूबर ! ये तारीख मेरे लिए खास है, क्योंकि आज मेरा ब्लाग " आधा सच " छह महीने पुराना हो गया। इस दौरान मैने विभिन्न विषयों पर कुल 51 लेख लिखे। इसे लेख कहना शायद सही नहीं होगा, हम इसे अपना विचार कहें तो ज्यादा ठीक है। वैसे मेरा ब्लागिंग में आना महज एक संयोग है, जिसके लिए मैं अपने साथी रजनीश कुमार का दिल से शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने ब्लाग बनाने से लेकर हर तकनीक की बारीकियों से मुझे रुबरू कराया।
ब्लाग पर मेरा पहला लेख आठ अप्रैल 2011 को " अब तो भ्रष्ट्राचार भी हो गया है भ्रष्ट्र " ये लिखा। इस लेख के जरिए मैं गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के आंदोलन से सहमत होते हुए ये बताने की कोशिश की कि ये लड़ाई आसान नहीं है। क्योंकि आप भ्रष्ट्राचार के खिलाफ जंग छेड़ने जा रहे हैं, जबकि हम इस भ्रष्ट्राचार में भी ईमानदारी खो चुके हैं। इस पहले लेख को पोस्ट करने के कुछ समय के भीतर ही सबसे पहला कमेंट मुझे इंदौर से कविता पांडेय का मिला। उन्होंने मेरी सराहना की, मुझे अच्छा लगा। हालाकि ये लेख तीन चार दिन ब्लाग पर रहा, इस दौरान कुल पांच लोगों के ही कमेंट मिले। मुझे लगा कि यहां बहुत जबर्दस्त प्रतियोगिता है, इसमें जगह बना पाना आसान नहीं है।
बहरहाल कुछ सहयोगियों ने कहा कि अभी शुरुआत है, आप लिखना बंद ना करें, कुछ समय लगेगा, क्योंकि आपकी लेखनी कुछ हटकर है। बस फिर क्या था, मैने तय किया कि छह महीने मैं पूरी शिद्दत के साथ यहां समय दूंगा और देखता हूं ये ब्लाग परिवार मुझे स्वीकार करता है या नहीं। इसके कुछ समय बाद ही कालेधन के मामले में बाबा रामदेव का आंदोलन शुरू हुआ, चूंकि मैं मीडिया में होने के कारण बहुत कुछ जानता था कि यहां क्या होता है। बालकृष्ण को लेकर मैने पहले भी कई स्टोरी की थी, लिहाजा मैंने अपनी जानकारी के हिसाब से पांच लेख लिखे। मैने देखा कि मुझे कई लोग जो स्नेह करते थे, वो मेरे खिलाफ हो गए, कांग्रेसी बताकर मेरे खिलाफ टिप्पणी की। मै टिप्पणी से ज्यादा निराश नहीं था, लेकिन आशुतोष जैसे मित्र का साथ छूटने का मलाल आज भी है।
ब्लाग लिखते हुए एक महीना भी नहीं बीता था कि मुझे "भारतीय ब्लाग लेखक मंच" से ना सिर्फ हरीश सिंह ने जोड़ा बल्कि एक निबंध प्रतियोगिता का निर्णय देने को कहा। मैने अपने विवेक के अनुसार इस काम को अंजाम दिया। मुझे खुशी हुई कि मेरे निर्णय पर किसी को आपत्ति नहीं थी। मैं लंबे समय तक हरीश जी और उनके साथियों के संपर्क में रहा, पर इस साथ का जिस तरह से अंत हुआ, उसकी चर्चा करना मैं ठीक नहीं समझ रहा हूं। हालाकि हरीश जी को लेकर मेरे मन में आज भी वही स्नेह बरकरार है, क्योंकि वो पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुझे एक सार्वजनिक मंच से जोड़ा था।
ये सब बातें चल ही रहीं थी कि दिल्ली में अन्ना हजारे भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लगाने के लिए जनलोकपाल बिल के लिए अनशन पर बैठ गए। मैं अन्ना की मांगों को पूरी तरह जायज मानता हूं, लेकिन मेरा मानना है कि उनका तरीका लोकतंत्र को कमजोर करने वाला था। लिहाजा मैने तर्कों के आधार पर अपने विचार व्यक्त किए। इस पर मेरा समर्थन करने वालों का प्रतिशत ज्यादा था। मेरी हिम्मत बढी और मैं जो ठीक समझा उसे बेबाक तरीके से लिखता रहा। बहरहाल मेरे ब्लाग पर उतने कमेंट भले दर्ज ना हों, पर ब्लाग को हिट करने की संख्या संतोषजनक थी।
इसी दौरान मैं डा. अनवर जमाल के संपर्क में आया और उन्होंने मुझे "आल इंडिया ब्लागर्स फोरम" के साथ जोड़ा। मैं यहां भी अपनी क्षमता के मुताबिक योगदान देता रहा। इस फोरम से भी मुझे अपार स्नेह मिला। लगभग दो महीने पहले फोरम पर शुरू हुए वीकली मीट में मुझे बराबर स्थान मिलता रहा। इसके लिए भी मैं भाई डा.अनवर जमाल साहब और बहन प्रेरणा जी का दिल से आभारी हूं।
मैं अपने इस छह महीने के सफर में आद. डा रुपचंद्र शास्त्री जी की चर्चा ना करुं, तो सफर पूरा हो ही नहीं सकता। कम समय में ही मुझे यहां कई बार स्थान मिला। चर्चा मंच पर जगह मिलने का नतीजा है कि आज मेरे ब्लाग पर आने वालों की संख्या रोजाना 100 से ऊपर है। इसके अलावा श्री राज भाटिया जी के ब्लाग परिवार, ललित जी  के ब्लाग4 वार्ता, बंदना गुप्ता जी के तेताला और यशवंत माथुर जी के नई पुरानी हलचल का भी मैं दिल आभारी हूं, जिन्होंने मुझे समय समय पर अपनी चर्चाओं में शामिल कर मेरे मुश्किल सफर को आसान बनाने में योगदान दिया। चर्चा मंच के सहयोगी चंद्रभूषण मिश्र गाफिल, श्रीमति विद्या जी, अरुणेश सी दबे, दिलबाग बिर्क, रविकर जी, मासूम साहब और मनोज जी का आभार व्यक्त ना करुं तो ये नाइंसाफी होगी। इन सभी लोगों ने मुझे बराबर सम्मान दिया है। हां यहां एक बात का और जिक्र करना जरूरी है, मैं आज ही भाई सलीम खान के जरिए आल इंडिया ब्लागर्स एसोसिएशन से जुडा हूं, कोशिश होगी कि यहां मैं अपना योगदान पूरी क्षमता के अनुसार दे सकूं।
छह महीने का समय बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इस दौरान मुझे ब्लाग परिवार का अपार स्नेह मिला है। ब्लाग जगत में रश्मि जी एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। मैं जानता हूं कि उनके पास समय का अभाव जरूर होगा, पर मेरे ज्यादातर लेख को ना सिर्फ उन्होंने पढा, बल्कि अपने विचार भी व्यक्त किए। इससे बढकर उन्होंने मुझे छोटे भाई का जो सम्मान दिया है, वो मेरे लिए अनमोल है। आज मैं बंदना गुप्ता जी को भी दिल याद करना चाहता हूं। हमलोग सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के जरिए एक दूसरे के संपर्क में आए। उन्होंने मुझे बहुत पहले सलाह दी थी कि आप एक ब्लाग बनाएं और इसमें कुछ ना कुछ लिखें। पर मित्रों उस दौरान मैं फील्ड में रहकर रेल मंत्रालय के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति से जुड़े मुद्दों की रिपोर्टिंग करता था, लिहाजा मेरे पास समय की बहुत कमीं थी। इसलिए मैं ब्लाग से दूर रहा। आज मुझे लगता है कि अगर मैने बंदना जी की बात को उसी समय स्वीकार कर लिया होता तो शायद मेरे ब्लाग की उम्र कुछ ज्यादा होती। वंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
ब्लाग को कैसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जाए, इसके लिए कविता वर्मा जी ने मुझे बहुत सहयोग किया। कई बार ब्लाग पर तरह तरह की कठिनाई आई, जिसे कविता जी के जरिए मैने दूर किया। हालाकि मेरे बहुत सारे लेख से वो  कत्तई सहमत नहीं हैं, उनके सोचने का अपना अलग नजरिया है, और मेरी सोच कुछ अलग है। कई लेख पर विवाद की स्थिति भी पैदा हुई, हालत बातचीत बंद होने तक पहुंची, पर हम लोग मानते हैं कि विचारों में भिन्नता से आपस की दूरियां नहीं बढनी चाहिए। वो बहुत पुराने समय से लिख रही हैं, अगर मैं ये कहूं कि उनके अनुभवों से मुझे काफी फायदा हुआ है, तो गलत नहीं होगा।
ब्लाग परिवार में मैं अनु चौधरी जी से और डा. दिब्या श्रीवास्तव से काफी प्रभावित हूं। स्पष्ट सोच और बेबाक लेखन की दोनों महारथी हैं। ऐसे हालात में कई बार दिव्या जी को तो मुश्किलों का सामना तक करना पडा, लेकिन मैं उनकी हिम्मत की दाद देता हूं कि वो कैसे सभी मसलों को सुलझाते हुए अपना रास्ता बना लेती हैं। आप दोनों ने मेरे ब्लाग पर आकर मेरा सम्मान बढाया है और मुझे ब्लाग की मुख्यधारा से जुडने में मेरी मदद की है।
मैं आज इस मौके पर अगर अपने प्रिय लोगों की चर्चा न करुं, जिनके साथ मैने ये सफर तय किया है तो गलत होगा। मेरे हर लेख पर इन सभी लोगों ने मुझे स्नेह और शुभकामनाओं से नवाजा है। इसमें राजेश कुमारी जी, मीनाक्षी पंत जी, रचना दीक्षित जी, डा. वर्षा सिंह जी, अमृता तन्मय जी, डा. मोनिका शर्मा जी, पूनम श्रीवास्तव जी, कविता रावत जी, माहेश्वरी किरण जी, रजनी मल्होत्रा, अनीता अग्रवाल जी, सुमन जी, रचना जी, हरिकीरत हीर जी, अपनत्व जी, बबली जी, शालिनी कौशिक जी, शिखा जी, अल्पना वर्मा जी, निर्मला कपिला जी, निवेदिता जी और संध्या शर्मा जी शामिल हैं।
इसके अलावा श्री चंद्र मोलेश्वर प्रसाद जी, प्रवीण पांडेय जी, विजय माथुर जी, सुनिल कुमार जी, महेन्द्र वर्मा जी, जयकृष्ण तुषार जी, नीलकमल जी, राकेश कौशिक जी, केवल राम जी, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी जी, अरुण चंद्र राय जी, डा. विजय कुमार शुक्ल जी, कुवर कुसुमेश जी, कैलाश सी शर्मा, वीरेंद्र चौहान जी, संजय भाष्कर जी, संतोष त्रिवेदी जी, योगेन्द्र पाल जी, अतुल श्रीवास्तव जी, अभिषेक जी, अमित श्रीवास्तव जी, वीरभूमि जी, आशुतोष जी, मिथिलेश जी और बृजमोहन श्रीवास्तव जी प्रमुख हैं। मित्रों याददाश्त ही है, हो सकता है कि यहां किसी का जिक्र करना रह गया हो, तो इसे मेरी गल्ती समझ कर माफ कर दीजिएगा।
इस छह महीने में एक वाकये ने मुझे बहुत दुख पहुंचाया, जब एक ब्लागर ने मेरे किसी लेख से नाखुश होने पर मुझे मेल करके आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया। अगर मैं इस वाकये को भूल जाऊं तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मेरा ये सफर बहुत ही संतोष जनक रहा है। मुझे नही पता कि इस छह महीने में मेरे ब्लाग को 9328 हिट मिले हैं, ये संख्या आप लोगों की नजर में ठीक है या नहीं, लेकिन मैं व्यक्तिगत तौर पर संतुष्ट हूं। मुझे लगता है कि मैं अपनी बात आप सभी तक पहुंचाने में कामयाब रहा हूं। ये मेरे दिल की बात है, अगर किसी को इससे पीडा पहुंची हो तो मैं उनसे बिना किसी लाग लपेट के खेद व्यक्त करता हूं।
 
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कैसे दूर करें शिकायतें ?

ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग के ज़रिये फ़ासले ख़त्म हो जाते हैं और एक इंसान दूसरे इंसान से जुड़ जाता है। यह जुड़ना इंसान को कुछ पा लेने का अहसास दिलाता है, उसमें आशा के दीप जलाता है और उसे ताक़तवर भी बनाता है। इंसान और इंसान के बीच बनने वाला यह रिश्ता कुछ ख़ुशियों के साथ कुछ ज़िम्मेदारियां भी लेकर आता है। जब उन ज़िम्मेदारियों को भुला दिया जाता है तो फिर वह ख़ुशी भी काफ़ूर हो जाती है, जो कि उस रिश्ते के बनते समय मिली थी। ब्लॉगिंग के दौरान ब्लॉगर्स भी कुछ भूलें और कुछ ग़लतियां कर जाते हैं और तब दुख देने वाले हालात पैदा हो जाते हैं, जिनसे सिर्फ़ दो इंसान ही दुखी नहीं होते बल्कि उन दोनों ब्लॉगर्स से जुड़े हुए लोग भी दुखी हो जाते हैं। भूल और ग़लती हो जाने पर उसे सुधार लेना ही एकमात्र व्यवहारिक हल है इस समस्या का।

'शिकायत जिस से हो उसी से बात की जाये . इधर उधर शिकायतें करने वालों का मकसद शिकायत करना नहीं बल्कि बेइज्ज़त करना हुआ करता है.'
यदि हमारी बातों या व्यवहार से किसी को चोट पहुंची हो तो अहसास होते ही तुरंत क्षमा मांग लेनी चाहिए। यह तनाव को दूर रखने का एकमात्र तरीका है। यदि समय रहते क्षमा याचना न की जाए तो यह तनावपूर्ण हो सकता है। हमें अपनी गलतियों से सबक लेकर उनसे ऊपर उठना चाहिए। अपने जीवन व कार्यों के प्रति उत्तरदायी होने का यही एक तरीका है, परंतु इस राह में अहं हमारी सबसे बड़ी समस्या है, जो अक्सर हमारे व भूल को स्वीकारने के बीच आ जाता है। यदि आप सोचते हैं कि जीवन में कोई व्यक्ति भूलें किए बिना रह सकता है तो यह आपका भ्रम है। यदि हम भूलों से सबक नहीं लेते तो इसका अर्थ होगा कि हम एक और अवसर गंवा रहे हैं। गलतियों व संभावित गलत कदमों का निरंतर मूल्यांकन  ही उनसे कुछ सीखने व भविष्य में उन्हें अनदेखा करने का तरीका है।

ब्लॉगर्स अपनी भूल कैसे सुधारें ? Hindi Blogging Guide (17)

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हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ में कभी नहीं जलता रावण का पुतला

देश के अन्य हिस्सों की तरह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के प्राचीन धार्मिक कस्बा बैजनाथ में दशहरा के दिन रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि ऐसा करना दुर्भाग्य और भगवान शिव के कोप को आमंत्रित करना है।

हिमाचल के मंदिरों की अधिकार प्राप्त उच्चस्तरीय समिति के सदस्य सचिव प्रेम प्रसाद पंडित के अनुसार इस स्थान पर रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तपस्या की थी। इसलिए यहां उसका पुतला जलाकर उत्सव मनाने का अर्थ है शिव का कोपभाजन बनना।
यह कस्बा जिला मुख्यालय कांगड़ा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है। पंडित ने कहा कि दशहरा के दिन यहां का बाजार बंद रहता है और लोग पटाखे और मिठाइयां नहीं खरीदते हैं। 13वीं शताब्दी में निर्मित बैजनाथ मंदिर के एक पुजारी ने कहा कि 

भगवान शिव के प्रति रावण की भक्ति से यहां के लोग इतने अभिभूत हैं कि वे रावण का पुतला जलाना नहीं चाहते।

उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों का विश्वास है कि रावण का पुतला जलाने का अर्थ दुर्भाग्य को बुलावा देना है। इसी कस्बे में जन्मे और पले-बढ़े 65 वर्षीय रमेश सूद ने कहा कि उन्होंने कभी दशहरा नहीं मनाया है। उन्होंने कहा कि चूंकि हमारे पूर्वज दशहरा नहीं मनाते थे इसलिए हम भी नहीं मनाते हैं। हमारे बच्चे और उनके भी बच्चे इस परम्परा को निभा रहे हैं।


हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रावण ने भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था। राम ने रावण से युद्ध कर सीता को मुक्त कराया था। उन्होंने रावण को पराजित कर उसका वध किया था। इसी घटना की याद ताजा करने के लिए देश के कई हिस्सों में रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं।
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  • कमाल है पापियों का सम्मान करने वाले भी यहाँ बसते हैं और उनका समर्थन करने वाले भी यहाँ धार्मिक ही कहलाते हैं .
          इन्हें धर्म का कुछ पता होता तो ये ऐसा न करते .
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टोपी न लेना क्या 'ताज' गंवा देना है ?

हमारे हिंदू भाई शकुन-अपशकुन को बहुत मानते हैं।
यह उनकी चिंता का विषय हो सकता है।
कुछ लोगों ने  मोदी जी के इस अमल के बारे में तरह तरह की बातें लिख डालीं।

लोग जानते तो यह बात न लिखते कि गेरूआ वस्त्र पहनने पर फ़तवा जारी हो जाता।

सबको पता होना चाहिए कि मुसलमान मौलाना सफ़ेद लिबास पहनते हैं और चिश्ती साबरी दरवेश गेरूआ रंग भी इस्तेमाल करते हैं। हिंदू आचार्य और सन्यासी भी इन दोनों रंगों को इस्तेमाल करते हैं और दोनों ने ही आज तक इन दोनों रंगों को लेकर कोई फतवा जारी नहीं किया है।
मोदी भाई साहब ने मुस्लिम टोपी नहीं ली तो उनकी इच्छा।
इसमें मुसलमानों को नाराज  नहीं होना चाहिए।
वैसे भी नाराज  तो उससे हुआ जाता है जिससे प्यार का कोई रिश्ता हो।
हम तो उनसे नाराज  हैं जो टोपियां पहन पहन कर वहां गए, मोदी जी को 'टोपी पहनाने'।
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/09/blog-post_20.html

चिश्ती साबरी दरवेश गेरूआ रंग भी इस्तेमाल करते हैं

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अगले पांच साल में ढह जाएगा ताजमहल !



दुनिया के अजूबों में एक 358 वर्ष पुराने ताजमहल का वजूद खतरे में है। यदि तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए तो दुनिया का ये नायाब और अनमोल अजूबा इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। शहंशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल के प्रेम की अभिव्यक्ति की खातिर इस खूबसूरत स्मारक का निर्माण करवाया था। इस प्रेम के प्रतीक का दीदार करने के‌ लिए हर साल दुनिया से करीब 40 लाख लोग आगरा आते हैं।

ताजमहल के वजूद पर खतरे का आकलन कर रहे इतिहासकारों, पर्यावरणविदों और राजनेताओं के एक समूह का कहना है कि आने वाले पांच सालों में शायद ताज अपनी जगह पर न दिखे, क्योंकि ताजमहल की नींव लगातार कमजोर हो रही है।

आगरा के सांसद रामशंकर कठेरिया के मुताबिक अगर खतरे को नहीं भांपा गया तो आने वाले 2 से 5 सालों में ताजमहल खंडहर में तबदील हो जाएगा। ताजमहल की मीनारों के गिरने का खतरा बढ़ता जा रहा है, क्योंकि इसकी बुनियाद लकड़ी की बनी हुई है और यह पानी की कमी के चलते सड़ रही है। कठेरिया का कहना है कि ताजमहल की बुनियाद पिछले तीन दशकों में किसी ने नहीं देखी है। अगर सब कुछ सही है तो वहां किसी को जाने क्यों नहीं दिया जा रहा है?

ताजमहल पर शोध कर चुके इतिहासकार राम नाथ ने कहा कि ताजमहल यमुना नदी के बिल्कुल किनारे है, लेकिन इसकी जड़ों में पानी सूख चुका है। रामनाथ ने कहा कि इस बात का अनुमान इसके निर्माताओं ने कभी नहीं किया होगा। यमुना नदी ताजमहल के वास्तु का एक अहम हिस्सा है। अगर नदी के वजूद पर संकट आता है तो ताजमहल टिक नहीं सकता है।

इतिहासकार और पुरातत्व के जानकारों के मुताबिक मुगल काल में बनी ताज की नींव में वही तकनीक इस्तेमाल की गई है जो उस दौर की दूसरी ऐतिहासिक इमारतों को बनाने में की गई थी। ऐसा माना जाता है कि ताजमहल के चारों तरफ एक हजार से भी ज्यादा कुएं खोदे गए हैं। इन कुओं की गहराई करीब 50 फीट है। इन कुओं को ईंट, पत्थर, चूना, गारे और लकड़ी से भर दिया गया है। कुओं में आबनूस और महोगनी की लकडि़यों के लट्ठे डाले गए। ये कुएं ताजमहल की नींव को मजबूत बनाते हैं।

इन कुओं को इस तरह बनाया गया कि यमुना नदी के पानी से नमी मिलती रहे। इसकी वजह ये है कि नींव में मौजूद आबनूस और महोगनी की लकड़ी को जितनी नमी मिलेगी वो उतनी ही फौलादी और मजबूत रहेंगी। इससे ताजमहल की नींव भी मजबूत बनी रहेगी। लेकिन खतरे की बात ये है कि अब धीरे-धीरे यमुना का पानी कम होता जा रहा है और ताजमहल की नींव में बने कुओं में मौजूद लकड़ियों को मिल रही नमी में कमी आ गई है। ताजमहल का पूरा वजन इन्हीं नीवों पर टिका है।

यमुना नदी के जलस्तर को वापस लाने और नदी की सफाई के नाम पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन नतीजा सिफर रहा है। हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ रहे हैं। ताज के आसपास बढ़ते प्रदूषण ने पहले ही देश की शान को खतरे में डाल रखा है। जानकारों की मानें तो यहां ग्राउंड वाटर कफी नीचे चला गया है।

क्या ताजमहल के मौजूदा ढांचे को देखकर लगता है कि यह पांच सालों में खंडहर में तबदील हो जाएगा?
Source : http://www.amarujala.com/national/nat-Taj-Mahal-in-danger-of-collapsing-within-5-years-agra-tourist-love-16820.html
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तीर्थ यात्रियों पर बस चढ़ा कर 7 को मार डाला ड्राइवर ने किराए के विवाद में News


राजस्थान के करौली जिले के कोतवाली थाना इलाके में बुधवार तड़के बस चालक ने यात्रियों से किराये विवाद को लेकर पहले बस यात्रियों को नीचे उतारा और फिर उन पर बस चढ़ा दी, जिससे सात लोगों ने दम तोड़ दिया और इक्कीस घायल हो गये।

पुलिस अधीक्षक, करौली, ओम प्रकाश ने आरंभिक जांच के हवाले से बताया कि जयपुर से हिंडौन जा रही बस के चालक का यात्रियों से किराये को लेकर विवाद हुआ था। विवाद के बाद चालक ने यात्रियों को नीचे उतार दिया और बस के दूसरे चालक ने यात्रियों पर बस चढ़ा दी।उन्होंने बताया कि हादसे में सात यात्रियों ने दम तोड़ दिया और घायल इक्कीस यात्रियों को नजदीक के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।पुलिस अधीक्षक के अनुसार, बस में दो चालक थे और बस में सवार अधिकांश यात्री आगरा के थे, जो संभवत करौली में धार्मिक स्थल कैला मैया मन्दिर जा रहे थे। उन्होंने बताया कि बस के दोनों चालक मौके से फरार हो गये। मृतकों में राहुल और सिंधी नाम के युवक शामिल है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
Source : http://www.livehindustan.com/news/desh/national/article1-Rajasthan-bus-39-39-194393.html
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कहते हैं कल रावण वध है .................

जी हाँ दोस्तों बुराई पर अच्छाई की जीत .....अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक रावण दहन पुरे देश में कल उसका वध कर किया जाएगा हर जगह राजनीति से जुड़े लोग जिनपर भ्रष्टाचार और अन्याय अत्याचार के सेकड़ों आरोप होंगे वही रावण का वध कर उसके दहन की परम्परा को आगे बढ़ाएंगे ...................जी हाँ दोस्तों आप देख लोग हर साल हमारे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत की इस धार्मिक परम्परा को प्रेक्टिकल कर सिखाया जाता है .....अधिकतम धर्म से जुड़े लोग जो घंटो पूजा पाठ में अपना वक्त लगाते हैं .धर्म के नाम पर कट्टर पंथी की बातें कर समाज को ज़हर घोल हिस्सों में बांटते हैं वही लोग रावण की परम्परा को आगे बढ़ते है .अभी हम देश की राजनीति को ही देख लें टू जी स्पेक्ट्रम से लेकर शक्कर घोटाले ..क्रिकेट घोटाले .....कोमन वेल्थ घोटाले से लेकर महिलाओं का अपहरण कर उनकी हत्या करने वाले मंत्रियों की पोल खुलने के बाद भी वोह जनता के सामने शेर बन कर घूम रहे हैं सारे सुबूत सारे हालात उनके खिलाफ है लेकिन यह रावण हैं के मानते ही नहीं कोई सद्भावना यात्रा निकालता है ,,,,तो कोई रथयात्रा निकालता है कोई उपवास यात्रा निकालता है कोई भ्रस्टाचार मुक्त भारत को घोषित करवाने की यात्रा निकालता है और जनता है के इन रावणों के आगे सिसक सिसक कर दम तोडती हैं इन रावणों ने देश की खुश हाली ..सुख शांति .तरक्की ...अमन सुकून .भाईचारा सद्भावना .संस्क्रती .ईमानदारी सभी को सीता माता की तरह हरण कर लिया हैं हमारे देश में रावण तो हैं लेकिन राम कोई बन नहीं पा रहा है चारो तरफ जिधर जिस पार्टी में नज़र उठाकर देखो रावण ही रावण नज़र आते है और अफ़सोस जो रावण जितना बढा है वही सत्ता में रहकर मेले दशहरे के बुराई के प्रतीक रावण का वध कर उसे जलाने की परम्परा निभाता है सब जानते है रावण का वध राम ने किया था लेकिन उसके शव का अंतिम संस्कार राक्षसों ने किया था और बस रावण का दहन भी राक्षस ही कर रहे हैं हालात यह हैं के राम राज रावण राज में खो गया है और आज या भविष्य में कोन राम बन कर इस रावण से जनता और देश को छुटकारा दिलाएगा इस सवाल का जवाब भविष्य के भूगर्भ में छुप गया है ..............तो जनाब दुआ करो फिर से बने कोई राम फिर से अवतार ले कोई राम जो वध करे देश के इस रावण का ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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यहां मुसलमान करते हैं रामलीला का आयोजन Indian tradition



नसीम खान वैसे तो अपनी छोटी सी सिलाई की दुकान की आय से संतुष्ट हैं लेकिन हर वर्ष दशहरे से पहले वह थोड़े से चिंतित हो जाते हैं। गांव में दशकों से हो रही रामलीला का आयोजन सुचारू रूप से हो सके इसलिए उन्हें बड़े पैमाने पर मिले काम लेकर ज्यादा पैसों का बंदोबस्त करना पड़ता है।
उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के मुमताज नगर गांव में नसीम की तरह दूसरे मुसलमान भी रामलीला के आयोजन में दिल खोलकर चंदा देकर सालों से चली आ रही इस परम्परा को संजोए हुए हैं। दशकों से मुसलमान इस रामलीला का आयोजन करते आ रहे हैं।
नसीम खान के अनुसार हमें गर्व है कि हम इस तरह की परम्परा निभा रहे हैं, जो सही अर्थों में आपसी भाईचारे को मजबूत करती है। हर साल दशहरे पर जब हम लोग रामलीला का आयोजन करते हैं तो हम में ऐसी भावनाएं उमड़ती हैं कि जैसे हम ईश्वर की सेवा कर रहे हैं। आखिरकार हिंदू भाई भी तो उसी ईश्वर की रचना हैं।
रामलीला का आयोजन रामलीला रामायण समिति के बैनर तले होता है। अब से करीब 47 साल पहले गांव के मुस्‍लमानों ने मिलकर आपसी भाईचारे को मजबूत करने के उद्देश्य से इस समिति का गठन किया था। मुमताजनगर गांव की आबादी करीब 600 है जिसमें से तकरीबन 65 फीसदी मुसलमान समुदाय के लोग हैं। समिति के अध्यक्ष माजिद अली ने बाया कि एक मुस्लिम बहुल गांव होने के मद्देनजर मुस्लिम त्योहारों के दौरान मुमताज नगर का महौल बहुत जीवंत और आकर्षक लगता था। गांव में हिंदुओं की आबादी को सीमित देखते हुए हमारे पूर्वजों ने सोचा कि उन्हें हिंदुओं के त्योहारों को बढ़ावा देने के लिए कुछ करना चाहिए। फिर उन्होंने 1963 में रामलीला के आयोजन की शुरुआत की, जो तब से लगातार जारी है।अली कहते हैं कि मुस्‍लमान समुदाय के विभिन्न वर्गों के लोग इस समिति के सदस्य हैं। कम आय होने के बावजूद गांव के मुस्‍लमान रामलीला के आयोजन में हर तरह से आर्थिक मदद देते हैं। जो लोग चंदा देने में असफल होते हैं वे रामलीला के आयोजन में श्रमदान देते हैं।गांव के मुस्‍लमान केवल आर्थिक सहयोग और श्रमदान के जरिए रामलीला के आयोजन तक ही खुद को सीमित नहीं रखते बल्कि वे इसमें अभिनय भी करते हैं। अली ने बताया कि हमारे भाई-बंधु राम, सीता और रावण जैसे रामलीला के मुख्य किरदारों के अलावा मंच पर अन्य कई महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं।इस साल यहां रामलीला की शुरुआत एक अक्टूबर से हुई है, जो आठ तारीख तक चलेगी। रामलीला का आयोजन शुरुआत से ही गांव के किनारे एक मैदान में होता आ रहा है। पहले रामलीला का मंचन अस्थाई मंच पर होता था लेकिन कुछ साल पहले आपसी सहयोग से वहां पर एक सीमेंट का मंच बना दिया गया है।
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इंटरनेट के नशे से बचें Hindi Blogging Guide (35)

एक प्रतीकात्मक चित्र मंच की और से 
अगर आपको लगता है कि आप इंटरनेट के नशे में फंसते जा रहे हैं तो उससे बचने के लिए बताई जा रही विधियों को अपनाएं। श्वेता तनेजा बता रही हैं कुछ नुस्खे :
दुनिया इंटरनेट के सूत्र में बंध चुकी है। यहां तक कि आज हम में से अधिकांश लोग छुट्टी के दिन भी इंटरनेट या फोन के बिना अधूरा महसूस करते हैं। सोशल मीडिया प्रोफेशनल और स्वघोषित ‘ट्विटर नशेड़ी’ हरीश थोटा कहते हैं, ‘हाइकिंग के दौरान जब मैं खुद को ऑनलाइन दुनिया से दूर कर लेता हूं तो अकेला महसूस करने लगता हूं। मुझे लगता है कि यात्रा के कई अनुभव मैं मित्रों के साथ शेयर करना चाहता हूं। वैसे भी मैं अपना अधिकांश समय ऑनलाइन काम करके बिताता हूं।’ हरीश प्रतिदिन 8-9 घंटे सोशल नेटवर्किग साइट्स और चैटिंग में बिताते हैं और 3-4 घंटे ईमेल करने में।
अमेरिका में 2010 में यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के इंटरनेशनल सेंटर फॉर मीडिया एंड द पब्लिक एजेंडा ने ‘ए डे विदाउट मीडिया’ नामक अध्ययन किया था। अध्ययन में 200 विद्यार्थियों को 24 घंटे के लिए हरेक मीडिया के इस्तेमाल से दूर रहने को कहा गया था। उसके बाद उन्हें ब्लॉग पर अपने अनुभव लिखने को कहा गया। एक विद्यार्थी ने लिखा, ‘हालांकि दिन की शुरुआत अच्छी रही थी, लेकिन मुझे लगा कि दोपहर से मेरा मूड बदलने लगा था। मैं अकेला और कटा हुआ महसूस करने लगा। ऐसे कई फोन आए, जिनका जवाब मुझे देने की मनाही थी। दोपहर दो बजे मुझे अपनी मेल चैक करने की जरूरत बेहद महसूस होने लगी और साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है, से जुड़े लाखों कारण भी मेरे दिमाग में घूमने लगे थे। मैं एक ऐसे व्यक्ति-सा महसूस कर रहा था, जो किसी निजर्न टापू पर फंसा हो.. मुझे अपने भीतर बेचैनी महसूस हुई, क्योंकि मैं आइपॉड और अन्य मीडिया से गहरे से जुड़ा था, शायद इसीलिए।’ मूलचंद अस्पताल के मनोवैज्ञानिक सलाहकार जितेंद्र नागपाल कहते हैं, ‘आज अधिकांश युवा सेलफोन या ऑनलाइन वर्ल्ड के बिना जीवन की बात सोच भी नहीं सकते। वह कनेक्टिविटी टूटने से व्याकुल महसूस करने लगते हैं, चाहे वह बैटरी कम होने के कारण हो या ऐसे क्षेत्र में होने के कारण जहां सिगनल नहीं पहुंचते या पैसे की कमी से।’ मनोवैज्ञानिकों ने इस स्थिति को नाम दिया है इंटरनेट एडिक्शन डिसॉर्डर (आईएडी) का। वर्ल्ड वाइड वेब का नशा एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। अपने चारों ओर आपको ऐसे संकेत मिलेंगे : एक बेचैन सहकर्मी, जिसे लगातार ट्वीट करने की आदत है, डिनर डेट पर गया एक मित्र, जो फेसबुक पर रिफ्रैश बटन दबाता दिखता है या आपको पता चलता है कि दोपहर में जब आप ब्राउजिंग करने बैठे थे, तब से
समय ऐसा बीता कि अंधेरा घिर आया और अभी तक आपका काफी काम बाकी पड़ा है। कई बार जरूरी काम के समय व्यर्थ की ब्राउजिंग के कारण भी देर तक काम करना पड़ जाता है। सर्फिग के बाद कई लोगों के हाथों में फोन आ जाता है। तो यदि आप इस ऑनलाइन ‘बीमारी’ से निजात न पा रहे हों तो इन उपायों को अपनाएं : समय बर्बाद करने वाले कारण जानें
अनुभव बताता है कि फेसबुक पर दो मिनट का ब्रेक भी घंटों ले लेता है। हम सबकी पसंद की ऐसी वेबसाइटें हैं, जिन पर हम समय व्यर्थ करना पसंद करते हैं।
इसे आजमाएं : सेल्फ कंट्रोल (http//:visitsteve.com/made/selfcontrol) एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जो आपको सोशल नेटवर्किग साइट्स की आदत से निजात दिलाता है। इस सॉफ्टवेयर को लोड करें और किसी भी ऐसे डोमेन का नाम उसकी ब्लैकलिस्ट में डाल दें। इसके बाद टाइमर ऑन करके सॉफ्टवेयर को सूचित करें कि दिन में कितनी बार आप वह साइट कब इस्तेमाल करना चाहते हैं। इस्तेमाल के बाद वह आपके ब्राउजर से उस दिन के शेष समय के लिए ब्लॉक रहेगी। सैल्फकंट्रोल एप्लीकेशन को तभी इस्तेमाल करें, जब आपने मन बना लिया हो। एप्लीकेशन को डिलीट करना या कंप्यूटर रीबूट करने से वह साइट अनब्लॉक नहीं होगी।  
अनप्लग करें
कुछ समय पहले तक इंटरनेट नहीं था। लोगों के पास अपनी जरूरत की सामग्री को सर्च करने के लिए गूगल सर्च नहीं था। इसलिए हम जानते हैं कि डिस्कनेक्ट करना संभव है। माह में एक सप्ताह के लिए नेट डिस्कनेक्ट करने की कसम खाएं।
इसे आजमाएं: अपना विचार पुख्ता करने से पूर्व सब्बाथ मैनिफेस्टो (www.sabbathmanifesto.org) अपने स्मार्टफोन में इंस्टॉल करें। यह मुफ्त एप्लीकेशन शुरू में आपको तकनीक से एक दिन दूर रहने को प्रेरित करती है। फिर यह आपको ऑफलाइन रहने के समय को चुनने की छूट देती है। इसमें ट्विटर या फेसबुक के जरिए संदेश जाता है कि आप कुछ समय के लिए संपर्क में नहीं रहेंगे। यह मुफ्त एप्लीकेशन आइफोन, एंड्रॉयड और ब्लैकबेरी पर काम करती है।
डिस्ट्रैक्शन करें दूर
खाते समय किसी प्रेजेंटेशन पर काम करना दरअसल समय बचाने का एक गलत तरीका है। इसकी बजाय एक टाइम मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करें, जो आपको ऑनलाइन समय बचाने में सहायक हो, ताकि आप लंच ब्रेक ले सकें, सहकर्मियों के साथ बाहर जा सकें, हल्की-फुल्की गप्प कर के ताजादम होकर वापस आ सकें।
इसे आजमाएं: रेस्क्यू टाइम (www.rescuetime.com) एक वेब बेस्ड टाइम मैनेजमेंट एवं एनालैटिक्स टूल है, जो उत्पादकता बढ़ाता है। यह आपके बताए समय के दौरान उन वेबसाइटों को ब्लॉक करता है, जिन पर आपका समय व्यर्थ होता है। साथ ही आपके डेस्कटॉप पर मौजूद उन डॉक्यूमेंट्स, वेबसाइट्स या एप्लीकेशंस की ओर भी ध्यान दिलाता है, जो अधिकाधिक इस्तेमाल होते हैं। यह तीन वजर्न्स में आता है: सोलो लाइट, जो बेसिक फीचर्स मुफ्त है, सोलो प्रो, जो 275-415 रुपए प्रतिमाह का है, और टीम एडिशन, जो कंपनियों के लिए होता है, जिसकी कीमत प्रतिमाह इस्तेमालकर्ताओं से तय होती है।
ईमेल से रहें दूर
ईमेल जरूरी कार्य होता है। जब भी आप अपने मेलबॉक्स में नए ईमेल आए देखते हैं तो आप अपने जरूरी कार्य से भटकते हैं। जब जरूरी कार्य में व्यस्त हों तो इस आदत पर काबू लगाने की कोशिश करें।
इसे आजमाएं: फ्रीडम (www.macfreedom.com) एक सिम्पल प्रोडक्टिविटी एप्लीकेशन है, जो इंटरनेट को एक बार में आठ घंटे के लिए बंद कर देता है। ऑफलाइन होने पर आप अपनी रचनात्मकता का अधिक इस्तेमाल कर सकते हैं। फ्रैड स्टट्ज्मैन ने यह सॉफ्टवेयर और इसका सिस्टर-सॉफ्टवेयर एंटी-सोशल (http://anti-social.cc) बनाया था, जो सभी सोशल नेटवर्किग साइट्स को एक निश्चित समय के लिए ब्लॉक कर सकता है। सॉफ्टवेयर 15 डॉलर कीमत से एक बार के लिए डाउनलोड हो सकता है। इसका फ्री ट्रायल भी मौजूद है।
सोशल नेटवर्क को ऑटोमेट करें
सोशल नेटवर्क जैसे कि गूगल प्लस की आपकी जरूरत अपनी जगह है, परंतु इसका मतलब यह नहीं कि आप इसके लिए अपने ऑफलाइन जीवन को तिलांजलि दे दें। इंटरनेट में 160 से अधिक सोशल नेटवर्किग साइट्स हैं और उनमें से 1/10 पर भी यदि आप मौजूद हैं तो इसका असर आपकी ऑफलाइन लाइफ पर पड़ता है। एक साधारण सॉफ्टवेयर आपका सोशल नेटवर्क्स पर स्टेटस अपडेट करता है।
इसे आजमाएं: आपके एकाधिक सोशल नेटवर्क अपडेट के लिए कई फोन और डेस्कटॉप एप्लीकेशंस हैं। डिग्स्बी (www.digsby.com), ट्वीटडैक (www.tweetdeck.com), सीस्मिक (http://seesmic.com) और हूटसूट (http://hootsuite.com) इस मायने में श्रेष्ठ हैं। ये सभी लगभग एक ही तरीके से कार्य करते हैं, इसलिए अपनी पसंद का सॉफ्टवेयर चुनें। यह आपके सभी सोशल नेटवर्क को कनेक्ट करके एक ही पृष्ठ पर उनका अपडेट दिखाता है, ताकि आप परिवर्तनों को देख सकें। कमेंट के लिए एक माउस क्लिक काफी है।
 Source - http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-193975.html
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काश नफरतें और फासले खत्म हो जायें

मसला कोई भी और कितना भी बिगड़ा हुआ क्यों न हो लेकिन वह जब भी सुलझेगा , बातचीत से ही सुलझेगा .
यह एक अहम सूत्र है.
हम सभी की कोशिश तो यह होनी चाहिए कि नफरतें और फासले खत्म हो जायें, इस देश से और इस दुनिया से और विचारशील लोग इस विषय में गंभीर प्रयास सदा से करते आए हैं लेकिन उन्हें जितना सहयोग समाज से मिलना चाहिए उतना मिल नहीं पाया इसी का नतीजा है कि हम असुरक्षा और आशंका के साए तले जी रहे हैं।
हिंदी ब्लॉगिंग में भी ऐसे तत्व सक्रिय हैं जो अपनी विचारधारा के लिए किसी को कुछ भी कह देते हैं। यही वजह है कि नभाटा को कमेंट अप्रूव करने के बारे में अपनी नीति पर पुनर्विचार करना पड़ा , यह दुखद है।
हिंदी भाषा बोलने वालों के मुंह से तो फूल झड़ने चाहिएं थे।
आप सभी के विचार अमूल्य हैं , हिन्दी ब्लॉगिंग को समृद्ध करने में इनका उपयोग करें.
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (11) 2 October

 ब्लॉगर्स मीट वीकली (11)
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आदरणीय श्री रूपचंद शास्त्री मंयक जी का इस 11वीं महफ़िल में  अपने सभापति  के रूप  में स्वागत करते हैं और आप सभी हिंदी ब्लॉगर्स का भी  दिल से स्वागत है .
और सभी  ब्लॉगर्स  को  प्रेरणा अर्गल का प्रणाम और सलाम .



आज सबसे पहले मंच की पोस्ट्स 

 अनवर जमाल जी की रचनाएँ 

आज अपने गिरेबान में झांक कर देखें- अज़ीज़ बर्नी

ऐसे काम कीजिए, जिससे आपको दुआ मिले

  अख्तर  खान  "अकेलाजी "   की रचनाएँ

रमेश कुमार जैन उर्फ़ "  सिरफिरा "  जी  की रचना 

हाइकू    सुमन दुबेजी की रचना 
साधना वैद जी की रचना 

खोटे सिक्के

दर्सन कौरजी की रचना 


मेरे गुरु की नगरी~श्री हजूर साहेब--पार्ट -1.

तख़्त श्री सचखंड साहेब  'नांदेड ' 
वंदना जी की रचना 
खुशखबरी आपके लिये……दिवाली की सौगात


दीप्ती शर्मा जी की रचना  


तेरे लाज के घूँघट से





मीनाक्षी पन्त जी की रचना 

फूल


सुनील कुमार जी की रचना 

रिश्तों का  सोफ्टवेयर












 रश्मि प्रभा जी की रचना 

कभी घर से बाहर निकलकर तो देखो


विवेक जैन जी की रचना 

कनुप्रिया - तुम मेरे कौन हो


रविकर जी  की रचना 

पत्नी पग-पग पर परे, पल-पल पति पतियाय-
Rakhi Sawant and Elesh Parujanwala
नीलकमल वार्ष्णेय जी की रचना 



दिव्या जी की रचना 


कैलाश सी.शर्माजी की रचना 

बेटी


संगीता स्वरूप जी की रचना 

तुम यहीं कहीं हो


अब मेरी प्रस्तुति 

मेरे सारे ब्लोगर साथियों को नवरात्रि की शुभकामनायें /

माँ सबका कल्याण करे /



ब्लॉग की ख़बरें 

"गांधी एक विचार" {चर्चा मंच - 655}

ब्लॉगप्रहरी नेटवर्क : मुबारक हो जन्मदिन

मृदुला जी की एक ख़ास पेशकश

आपके अंदर के अपराधी को मार सकती है शादी

महिलाओं के लिए अघोषित आरक्षण ?

अहसास की परतें 

जो लोग खाना पेट में उतारना जानते हैं उन्हें यह भी जानना चाहिए कि उसे पेट में उतारने लायक कैसे बनाया जाए ?

मुशायरा::: नॉन-स्टॉप

एक क़तआ ....ड़ा श्याम गुप्त....

वो आएंगे तो हड़काएंगे ही


आज़ाद फिलिस्तीन की संभावना कितनी है ?

नारी को आगे बढ़ने में मदद करते हैं पुरूष भी

पाकिस्तान नफ़रत में अंधा हो गया है

 झोला छाप ही नहीं , सड़क छाप डॉक्टर भी होते हैं ---

-डॉ. टी. एस. दराल  

भूतों की भूतनी - R. S. Shekhawat 

 जब सब लोग महल से निकल गए तो ताऊ ने महल में जाकर अपनी धोती के पायचे टांगे अपनी कमीज व बनियान फाड़कर चीथड़े चीथड़े कर लिए और अपनी जूतियाँ हाथ में ले कुंवर की तरफ बेतहासा भागते हुए कहने लगा - " अरे भूत ! भाग ,ताई आ गयी है |"

एक अच्छा लेख जो दिल को छू गया 

आओ भारत को बनाएं ‘यंगिस्तान’! 

भारत में मुर्दे बोलने लगे हैं

कश्मीर भारत के दो युद्ध क्षेत्रों में से एक है, जहां से कोई खबर बाहर नहीं निकल सकती. लेकिन गुमनाम कब्रों में दबी लाशें खामोश नहीं रहेंगी . - अरुंधति राय

  •  यदि आप भी ब्लॉग पोस्टों की चोरी से परेशान हैं तो आज अपनाइए "ब्लॉग सुरक्षा करने तरीका" जो सभी ब्राउज़रों (इंटरनेट एक्सप्लोरर, फ़ायरफ़ॉक्स, गूगल क्रोम, ओपेरा) पर काम करता है। 
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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    11 years ago

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