वकीलों से सवाल

अगर गुनहगार का साथ देना भी गुनाह है तो गुनाह साबित हो जाने पर वकीलों को सजा देने का प्रावधान क्यों नहीं है, जो सबकुछ जानते हुए भी अपने मुवक्किल को बेगुनाह बताता है और गुनाह साबित हो जाने पर तरह तरह के बहाने बनाके सजा न देने की भीख माँगता है । अगर ये उनके प्रोफेशन का हिस्सा है तो ये कैसा प्रोफेशन है-चंद फीस के लिए गुनाह का साथ दो ?

क्या ज़मीर नाम की जो चीज़ होती है वो वकीलों के लिए नहीं है ? उनका दिल ये कैसे गवाही देता है कि सबकुछ जानते हुए भी वो अंतिम समय तक गुनहगार को बचाने का प्रयास करते रहते हैं ?

आप भी सोचे ? अपराध दिन ब दिन इतना बढ़ता क्यों जा रहा है क्योंकि कानून को लेके किसी के मन में कुछ भय नहीं है | सब सोचते हैं कि कुछ भी कर लो, अगर पकड़े गए तो पैसों के दम पे अच्छा से अच्छा वकील रख लो; वो कानून को तोड़-मरोड़ कर, झूठ को सही साबित करके बचा ही लेगा | अगर कुछ ऐसा प्रावधान हो जाए कि मुजरिम साबित हो जाने पर मुजरिम के साथ-साथ उसका केस लड़ रहे वकील को भी सजा मिलेगी तो डर से वकील जान कर गलत लोगों का केस लेना बंद कर देंगे और इस से अपराध करने वाले के मन में भी भय बैठ जाएगा और आधे से ज्यादा जुर्म ऐसे ही कम हो जाएंगे |


(संदर्भ-दिल्ली में गैंग रेप के आरोपियों का केस लड़ रहे वकील ने गुनाह साबित हो जाने के बाद भी मांग की है कि कम से कम सजा मिले)
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"बैन" (प्रतिबंध) के मायने

क्या हमारे देश में हर बात का उल्टा अर्थ होता है ? जहां लिखा हो "थूकना माना है" वहीं सबसे ज्यादा थूका जाता है | "यहाँ पेशाब करना माना है" यह लिखा हुआ भी प्रायः दिख जाता है, पर कोई पालन नहीं करता | हाँ, कुछ बुद्धिजीवी इसका हल निकाल लेते हैं | सीधे शब्दों में लिखने के बजाय ये लिख देते हैं -"देखो कुत्ता पेशाब कर रहा है" | और इसका असर भी होता है |

खैर, मेरे इस पोस्ट का केंद्र कई पदार्थों पर आए दिन लगने वाले "बैन या प्रतिबंध" है | आखिर इस बैन के मायने है क्या ? हमारे झारखण्ड में तंबाकू, गुटखा आदि अन्य तरह के तंबाकू उत्पादों पर बैन लगे एक वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है पर वास्तविक तौर पे आज तक कहीं ये तथाकथित बैन दिखा नहीं | हाँ शुरू शुरू में कई जगह छापे मारे गए, इन उत्पादों को जप्त किया गया, जलाया गया, जुर्माना लगाया गया  | पर क्या इतना ही काफी था ? सरकार की ज़िम्मेदारी क्या बैन घोषित करके समाप्त हो गई ? आज हर चौक चौराहे पे ये "बैन्ड" चीज़ें खुलेआम बिक रही हैं | खुद कानून के पालक भी चाव से खाते देखे जा सकते हैं | इस बैन का इतना ही प्रभाव पड़ा कि इन उत्पादों के दाम तिगुने हो गए और इन बैन्ड पदार्थों का कारोबार तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ गया | जब बैन की आधिकारिक घोषणा हुई थी तब कई समाचार पत्र इसका क्रेडिट लेते दिखे | सबने यह दावा किया कि उनके रिपोर्ट या प्रयास के प्रभाव से ह यह हुआ | आज वो समाचार पत्र वाले भी इस विषय में कुछ भी छापने से झिझकते हैं | आखिर झिझकें भी क्यों न, शर्म आती होगी | वो तो उस चीज़ का क्रेडिट पहले ही ले चुके हैं जो आज तक हुआ ही नहीं है |

मिला-जुला कर यही बात सामने आती है कि ऊपर में जो मैंने हम भारतीयों के गुण की चर्चा की वो सेम है, और सबके लिए लागू है | चाहे सरकार हो, पुलिस-प्रशासन हो, बनाने वाले हो या खाने वाले हो | हर किसी को उल्टा अर्थ लेने का पूरा अधिकार है |
अतः इस "बैन" (प्रतिबंध) के मायने भी यही है कि ज्यादा बनाओ, ज्यादा खाओ, ज्यादा दाम बढ़ाओ, ज्यादा कमाओ |
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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