tag:blogger.com,1999:blog-4921957767931460670.post1287790743768464384..comments2024-03-23T23:09:02.255+05:30Comments on Hindi Bloggers Forum International: कहते हैं कल रावण वध है .................DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4921957767931460670.post-35672052400788137942011-10-06T12:03:38.480+05:302011-10-06T12:03:38.480+05:30जी हाँ... बिलकुल सही कहा.
असत्य पर सत्य की जीत क...जी हाँ... बिलकुल सही कहा.<br />असत्य पर सत्य की जीत के पर्व दशहरा की शुभकामनाएं………मदन शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07083187476096407948noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4921957767931460670.post-67614984220251150392011-10-05T23:50:53.027+05:302011-10-05T23:50:53.027+05:30बुराई पर अच्छाई की जीत.... बातें हैं बातों का क्या...बुराई पर अच्छाई की जीत.... बातें हैं बातों का क्याचंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4921957767931460670.post-59220671856015299392011-10-05T21:40:11.394+05:302011-10-05T21:40:11.394+05:30दस सिर सहमत नहीं रहे थे |
गिरि-कानन में बैठ दशानन ...दस सिर सहमत नहीं रहे थे |<br />गिरि-कानन में बैठ दशानन त्रेता में मुस्काया था |<br />बीस भुजाओं से सिर सारे मन्द मन्द सहलाया था ||<br />सीता ने तृण-मर्यादा का जब वो जाल बिछाया था-<br />बाँये से पहले वाला सिर बहुत-बहुत झुँझलाया था |<br />ब्रह्मा ने बाँधा था ऐसा, कुछ भी ना कर पाया था |<br />कायर जैसे वचन सहे थे |<br />दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||<br /> <br />दहन देख दारुण दुःख लंका दूजा मुख गुर्राया था |<br />क्षत-विक्षत अक्षय को देखा गला बहुत भर्राया था |<br />अंगद के कदमों के नीचे तीजा खुब अकुलाया था |<br />पैरों ने जब भक्त-विभीषण पर आघात लगाया था |<br />बाएं से चौथे सिर ने आँखों की नमी छुपाया था-<br />भाई ने तो पैर गहे थे |<br />दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||<br />सहस्त्रबाहु से था लज्जित दायाँ वाला पहला सिर |<br />दूजे ने रौशनी गंवाई एक आँख बाली से घिर |<br />तीजा तो बचपन से निकला महादुष्ट पक्का शातिर |<br />मन्दोदरी से चौथा चाहे बातचीत हरदम आखिर |<br />नव माथों ने जुल्म सहे थे |<br />दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||<br /> <br />शीश नवम था चापलूस बस दसवें की महिमा गाये |<br />दो पैरों के, बीस हाथ के, कर्म - कुकर्म सदा भाये |<br />मारा रावण राम-चन्द्र ने, पर फिर से वापस आये |<br />नया दशानन पैरों की दस जोड़ी पर सरपट धाये |<br />दसों दिशा में बंटे शीश सब, जगह-जगह रावण छाये -<br />जैसा सारे शीश चहे थे |<br />दस सिर सहमत नहीं रहे थे ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.com