ZEAL: वतन की राह में वतन के नौजवाँ शहीद हों....
यह आह्वान कर रही हैं डा. दिव्या श्रीवास्तव जी।
अच्छी प्रेरणा है।
पोस्ट पढ़ने के लिए गए तो देखा कि 39 कमेंट भी हो गए हैं लेकिन किसी ने भी यह नहीं कहा कि वतन की नौजवां तो आप भी हैं, आप भी शहीद होने के लिए अपने वतन आ जाईये न !
इसी का नाम है पर उपदेश कुशल बहुतेरे !!
आजकल के नेता लोग इसी तरकीब से काम चला रहे हैं।
खुद को बचाए रखेंगे और लोगों से कहेंगे कि ‘चढ़ जा बेटा सूली पर राम भली करेगा‘
लेकिन अब जनता की आंखें कुछ कुछ खुलने लगी हैं।
वह चाहती है कि जो शहीद होने की प्रेरणा दे रहा है पहले इस रास्ते पर वह खुद तो चलकर दिखाए !!!
क्या दिव्या जी भारत आएंगी अपने वतन पर शहीद होने के लिए ?
इसे हम भी पूछ रहे हैं और आप भी पूछिए .
अगर वे नहीं आतीं और खुद थाईलैंड में रहकर विदेशी मुद्रा कमा रही हैं तो दूसरों को भी बताएं कि वे अपना देश छोड़कर कैसे अपना भविष्य बेहतर बना सकते हैं ?
जिस काम का उन्हें तजुर्बा है, उस काम की सलाह देना ज़्यादा ठीक है बनिस्बत शहादत की प्रेरणा देने के , कि जो काम उन्होंने न तो किया है और न ही कभी करना है।
12 comments:
यदि एक विवाहित स्त्री, डॉक्टर हैं, और फिर भी अपने पति के job के चलते देश के बाहर रह रही हैं (जबकि उनका भी मन होता ही होगा अपने देश में रहने को ) तो यही बहुत बड़ी कर्तव्यनिष्ठ लगती है मुझे तो |
धर्म (religion वाला धर्म नहीं, duty वाला धर्म ) के अनुसार जो स्त्री यह कर रही हैं - उन्हें किसी और कर्त्तव्य का उलाहना देना ही अनैतिक है | कि अपनी संस्कृति का निर्वाह ही कर रही हैं वे - यह कर के तो | इसके लिए वे व्यंग्य की नहीं - बल्कि तारीफ की हक़दार हैं |
शिल्पा मेहता जी ! जब देश संकट में हो और यह पता चल जाए कि इस समय देश को नौजवानों की क़ुरबानी की ज़रूरत है तो फिर एक राष्ट्रवादी दुनिया के जिस कोने में भी हो, उसे अपने वतन पर क़ुरबान होने के लिए वापस लौट आना चाहिए। यही उसका धर्म है और यही उसका कर्तव्य है।
डा. दिव्या के पति भी भारतीय हैं और वे भी नौजवान ही होंगे। उनके दिल में भी अपने वतन पर मर मिटने का जज़्बा ज़रूर होगा। अगर दिव्या जी उन्हें संकेत मात्र भी करेंगी कि अब वतन पर मर मिटने का समय आ गया है तो न केवल वे उन्हें इसकी अनुमति दे देंगे बल्कि उनके साथ ख़ुद भी मर मिटेंगे। ऐसी कल्पना करनी चाहिए।
...लेकिन अगर भारतीय होने के बावजूद उनके पति न तो ख़ुद वतन पर मर मिटना पसंद करें और न ही अपनी फ़ौलादी बीवी को ही वतन पर क़ुरबान होने की इजाज़त दें तो फिर समझा जा सकता है कि विदेश में बसे हुए इन भारतीयों के दिल में अपने वतन के लिए क्या जगह है ?
ज़बानी जमा ख़र्ची के सिवा कुछ भी नहीं है उनकी पोस्ट !!!
जिनकी आभा दिव्य होती हैं वो सब जगह विराजमान होते हैं . और उनकी दिव्य ज्योति से लोगो की आँखों के आगे अँधेरा रहता हैं
दूसरी बात आप ब्लॉगर वो ब्लॉगर इस मै परिवार को खीचना क्या सही हैं , किसी की पत्नी , किसी का पति , किसी के बच्चे जो ब्लॉग पर नहीं हैं उनको क्यूँ इस प्रकार से लाया जाता है
परिवार का सम्मान करना सीखिये , अगर किसी की क़ोई बात गलत या सही हैं तो उसके लिये उसके परिवार के लोग क्यूँ जिम्मेदार हैं और उनका नाम लेना क्या जरुरी हैं
आप किसी गली में नुक्कड़ ड्रामा नहीं खेल रहे हैं मर्यादा का पालन करना ही चाहिये और परिवार के ऊपर जो लिखा हैं उसको डिलीट करना चाहिये
its disguting rashmi prabha and shalini kaushik that you are there on the panel and yet such post come where family is being abused
@ रचना जी ! पोस्ट में हमने दिव्या जी के परिवार का कोई ज़िक्र नहीं किया है क्योंकि एक ब्लॉगर की मर्यादा हम जानते भी हैं और उसे निभाते भी हैं।
कमेंट में उनके परिवार का ज़िक्र आया है जो कि दरअस्ल शिल्पा मेहता जी के ऐतराज़ का जवाब है।
आपको कमेंट करने का सलीक़ा और तरीक़ा ज़रूर सीख लेना चाहिए।
दिव्या जी के परिवार का ज़िक्र शिल्पा मेहता जी ने उठाया है जिन्हें दिव्या जी अपनी बड़ी बहन कहती हैं। बड़ी बहन का मतलब है कि वह खुद भी परिवार का ही एक हिस्सा हैं। शिल्पा जी को चाहिए था कि वह उनके परिवार का ज़िक्र करके हमारी पोस्ट पर ऐतराज़ न करतीं तो हम भी जवाब में उनके परिवार का कोई ज़िक्र न करते।
वैसे भी ब्लॉगर्स के परिवार के सदस्यों का ज़िक्र करना यहां आम है।
कई ब्लॉगर के बेटे बेटियों के फ़ोटो तक यहां दूसरे ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर डालते रहते हैं।
## आप तो संविधान की दुहाई देती रहती हैं।
क्या किसी ब्लॉगर के परिवार के सदस्यों का ज़िक्र संविधान के खि़लाफ़ है ?
अगर नहीं है तो फिर यह फड़फड़ाहट क्यों ?
आओ भाई आप भी टट्टुओं में शामिल होने आ जाओ|
दिव्या श्रीवास्तव तो अब ब्लॉग जगत में ब्रांड एम्बेसडर बन गयी हैं| लोग चाहते हैं कि हमारे ब्लॉग पर भी उनका नाम आए ताकि हमारी भी थोड़ी मार्केटिंग हो जाए| तुम लोग भी तो इसी राह को पकडे हुए हो| तुम्हारा अपना कोई क्रियेशन तो है नही| उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते, हगते-मूतते तुम्हे तो यही ख़याल रहता है कि दिव्या ने क्या लिखा होगा, ताकि हमे हमारी अगली पोस्ट के लिए कुछ मसाला मिले| मुझे लगता है आप ब्लॉग नहीं, मनोहर कहानियां लिख रहे हैं|
दिव्या के नाम का इतना आतंक, फिर तो उनकी तारीफ़ करनी पड़ेगी जो उन्होंने अच्छे खासे छड़ो को छठी का दूध याद दिला दिया| सोते समय भी दिव्या का नाम याद आ जाए तो पिछवाड़े पीले हो रहे हैं|
और किसने कह दिया कि विदेश में रहना देशद्रोह है? नेताजी सुभाष बाबू ने आज़ाद हिंद फौज का निर्माण विदेश में बैठकर ही किया था| यदि कोई व्यक्ति किसी नयी तकनीक पर काम करने, उसे सीखने व उसे भारतीयों को सिखाने विदेश जाए तो क्या यह देशद्रोह है? क्या इसका मतलब यह है कि वह देश पर शहीद होने का जिगरा नहीं रखता|
और शहादत की बात तुम लोग (जमाल, अयाज़, शाहनवाज़) न ही करो तो अच्छा है|
पहले अपनी बुद्धि चलाना तो सीख लो, कि कैसे अपने खुद के दिमाग से कोई पोस्ट लिखी जाए, फिर किसी को शहादत के लिए आमंत्रण देना|
शिल्पा जी का कमेन्ट बिलकुल सही है, उसमे कुछ गलत नहीं है| यहाँ उन्होंने उनके परिवार को नहीं घसीटा| और यदि घसीटा भी है तो इसका उत्तर यहाँ पेलने की क्या ज़रूरत है?
मुझसे तमीज की अपेक्षा मत रखना| बदतमीजों पर भारी पड़ जाना मुझे अच्छी तरह आता है| कम से कम किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप करती पोस्ट तो नहीं लिखी मैंने| इससे बड़ी बदतमीजी और क्या होगी ब्लॉग जगत में?
रचना जी को तमीज सिखाने वालों, पहले खुद तमीज पर कुछ अध्ययन कर लो|
रचना जी का सलीका और तरीका तो सही है किन्तु आप पोस्ट लिखने का तरीका और सलीका सीख लीजिये|
कोई ब्लॉगर (भले ही किसी काम से अभी वह विदेश में हो) यदि अपने देश के लिए चार पंक्तियाँ अपने ब्लॉग पर लिख देता है तो उसपर प्रश्न चिन्ह लगाने से अच्छा उसका समर्थन करो| ऊँगली उठाना देशद्रोह है न की देश भक्ति पर लिखना|
शिल्पा जी व रचना जी ने सही कहा....्विचार व भाव कोई भी कहीं बैठ कर दे सकता है..उद्बोधन भी आवश्य्क कर्म होता है ....अन्यथा कोई जनरल अपने सिपाही से आगे बढने को कहे तो सिपाही कह सकता है पहले जनरल स्वयं सीमा पर बन्दूक ले कर लडे....या कोई कवि बीर रस की कविता ही न लिखे जब तक वह स्वयं लडे नही....
--.ओब्जेक्शन करने वाले पहले स्वय़ं देश में रहकर देश पर मिट कर तो दिखायें या बतायें कि अब तक उन्होंने यहां रहकर क्या किया ...अपनी देश-भक्ति का परिचय दें....दूर रहने वाले भी आ ही जायेंगे....
क्या किसी ब्लॉगर के परिवार के सदस्यों का ज़िक्र संविधान के खि़लाफ़ है ?
internet has some rules which i think you dont know
right to privacy is one such rule
samvidhan kaa mehtav wahii samjh sakta haen jo usko maantaa ho aur uskae daayarae mae aanae kae liyae tayaar ho
बाबू जी सुभाष चंद बोस ने देश की ख़ातिर विदेशियों की नौकरी छोड़ दी थी जबकि दिव्या जी ने विदेशियों की नौकरी के लिए देश ही छोड़ दिया है। ऐसे में उनकी तुलना सुभाष चंद बोस से कैसे की जा सकती है ?
@ इं. दिवस दिनेश गौड़ जी ! आपने हमें भाई कहा है और टटटू भी कहा है। इससे आपको खुद भी यह पता चल गया होगा कि टटटू का भाई भी टटटू ही होता है।
यह अच्छा किया कि आपने मान लिया है कि आप एक बदतमीज़ आदमी हैं और आपने अपने कमेंट से साबित भी कर दिया है।
चूंकि हमें बदतमीज़ी पसंद नहीं है , सो आप आइन्दा इस ब्लॉग पर कमेंट करने की जुर्रत न कीजिएगा।
बदतमीज़ी में महारत का घमंड ज़्यादा ही हो तो किलर झपाटा से जाकर भिड़ो।
@ डा. श्याम गुप्ता ! आप मानते हैं कि लोगों को वतन के लिए शहीद होने के लिए कह देने वाला देशभक्त होता है, चाहे वह उस पर ख़ुद न चले ?
जिनसे आप देशभक्ति का परिचय चाहते हैं, ऐसे लेख उन्होंने भी लिखे हुए हैं , फिर आप क्यों नहीं मान लेते कि वे भी देशभक्त हैं ?
हा हा
मुझे टट्टुओं को भाई कहने में कोई आपत्ति नहीं| आखिर उन्हें भी उसी ईश्वर ने बनाया है जिसने मुझे बनाया है|
खैर छोडिये
पहली बात तो आपने सभी बातों को भुलाकर मेरी बदतमीजी को टार्गेट किया है, तो क्यों न इसी पर चर्चा कर लें?
आपने मुझे यहाँ टिपण्णी करने से मना कर दिया और कह दिया कि आइन्दा इस ब्लॉग पर कमेन्ट करने की जुर्रत न करना|
केवल नसीहत देनी ही आती है या उस पर अमल करना भी आता है? तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई कि तुम पिछले हर पोस्ट में दिव्या के पीछे पड़े हो? क्यों लाइन से दिव्या के नाम पर पोस्ट लिख रहे हो? किसने अधिकार दिया तुन्हें उनका अपमान करने का? वे भी किसी की बहन हैं, माँ हैं, बेटी हैं, पत्नी हैं, और सबसे बड़ी बात एक स्त्री हैं| वह तुम्हारी बपौती नहीं है कि जब चाहे उनका अपमान कर लो| तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई यूं सार्वजनिक रूप से किसी स्त्री का अपमान करने की? किसकी आज्ञा से तुम यहाँ ये गंदगी फैला रहे हो? क्या पोस्ट लिखने से पहले तुमने दिव्या की परमिशन ली थी, जो मुझे धमकी दे रहे हो कमेन्ट न करने की?
कोई तुम्हारी माँ-बहन के खिलाफ इतनी गंदगी फैलाए तो तुम क्या करोगे?
तुमने तो उनके परिवार को भी घसीट लिया| तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई अपनी मर्यादा भंग करने की?
क्या यही सिखाया जाता है तुम्हारे दीन में? क्या कुरआन में यही शिक्षा दी जाती है कि जो स्त्री तुम्हारे हाथ न आए, जिससे तुम्हे खतरा हो, उसका सरे बाज़ार अपमान करो? कोई स्त्री यदि पुरुषों पर भारी पड़ जाए तो इसको कुचल दो?
अब मुझसे यह मत कहना कि मैंने तुम्हारे दीन को क्यों घसीटा? यदि तुम किसी के परिवार को ब्लॉग में घसीट सकते हो तो मैं किसी के दीन को भी ब्लॉग में घसीटने के लिए स्वतंत्र हूँ|
दिव्या के नाम का इतना खौफ?
यदि किसी का सम्मान नहीं कर सकते तो अपमान करने की भी इजाज़त नहीं है|
पोस्ट लिखने के लिए विषय ख़त्म हो गए हैं तो दिव्या दीदी के आगे हाथ फैला दो, विषय वे बता देंगी| फिर भी लिखना न आए तो कन्टेंट भी दे देंगी| और यदि फिर भी न लिख सको तो छोड़ दो ब्लॉगिंग|
तुम सब छड़ों से तो वे कहीं आगे हैं| जिस औरत ने अपने लेखों से तुम सब मर्दों(?) की रातों की नींद हराम कर दी, उसकी सार्थकता के लिए इससे अच्छा उदाहरण और क्या होगा?
अभी तक तो तुम्हे कोई भी जवाब देने नहीं आया तो क्या समझ लिया ब्लॉग जगत में सभी नामर्द हैं? जब कोई जवाब देने आया तो उसे धमकियां दे रहे हैं की कमेन्ट करने की जुर्रत न करें|
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