अंधविश्वास

अंधविश्वास

हमारे देश में अंधविश्वास के कारण कितनी ही जाने चली जाती हैं /इन पंडित पुजारी के द्वारा  धर्म के नाम पर पाप पुण्य का डर दिखा कर हमारे देश की गरीब जनता को कितना लूटते है /और ये सिर्फ अच्छी अच्छी बातें बोलकर अपनी तिजोरी भरते हैं ./अभी हरिद्वार में गायत्री परिवार के यज्ञ समारोह में कितने ही लोग धुऐं की घुटन के कारण हुई भगदड़ में अपनी 

जान से हाथ धो बैठे और कितने ही घायल हो गए /ऐसे ही हमेशा कुम्भ या अर्धकुम्भ के समय कुछ ना कुछ हादसे ज्यादा भीड़ के कारण हो जाते हैं और कितने ही लोगों की जान चली जाती है /जिसमे बच्चों और औरतों की संख्या ज्यादा होती है /अब इसमे किसको कितना पुण्य मिल रहा है और कितना पाप यह तो ऊपरवाला ही जाने /परन्तु उसके बाद भी हमारे धर्म के ठेकेदार यह जरुर कहते हैं की आप ने भगवान् की भक्ति में कोई कमी की होगी इसीलिए आपके साथ ये हादसा हुआ है /अगर आप इतना दान -पुण्य और करेंगे तो आपका अगला जनम बहुत अच्छा गुजरेगा /इस जनम का 

तो पता नहीं अगले जनम की बात करते हैं या मोक्ष मिल जाने का आशा बांधते हैं / और पैसे लूट कर अपना ये जनम सुधारते है /और हमारी 
अनपढ़ गरीब जनता अपनी मेहनत की कमाई मोक्ष प्राप्त होने की आशा और अपना दूसरा जनम सुधारने की आशा में इन धर्म के ठेकेदारों के चरणों में अर्पित कर देती है / और कई बार अपनी जान से भी हाथ धो बैठती है /
पता नहीं इन धर्म के ठेकेदारों द्वारा फैलाये अन्धविस्वासों के कारण कई तरह की भ्रांतियां हमारे देश के अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग ढंग से फैली हुई हैं /कहीं छोटे -छोटे बच्चों को आधा जमीन के अंदर गाडा जाता है 

कहीं ऊपर  से फेंका जाता है ,कहीं बलि तक चदा दिया जाता है / और इसके खिलाफ कोई आवाज उठाने की कोशिश करे तो ये धर्म के ठेकेदार अपने स्वार्थ के कारण उसकी आवाज को साम.दाम.दंड के द्वारा दबा देते हैं /
अनपढ़ ही नहीं बल्कि पदे लिखे लोग भी साधू -संतों और गुरुओं के शिष्य बनकर उनके हाथों की कठपुतलियाँ बन जाते हैं और अपने अन्ध्विस्वास के कारण लाखों रुपया इन पर लूटाते हैं /और वो लोग बिना मेहनत किये  इन्हीं पैसों से एसो आराम की जिंदगी ब्यतीत करते  हैं / कब तक हमारे देश में लोग इन अन्ध्विस्वासों के कारण अपने लोगों की जान जोखिम में डालते रहेंगे /आज जब हमारे वैज्ञानिक चाँद पर और अंतरिक्ष में नई दुनिया बसा रहे हैं हम इन ढोंगी साधुओं की बातों में आ रहे हैं और उनको भगवान् बना रहे हैं /
जागो और देश के अनपढ़ ओर गरीब लोगों को भी जगाओ
और अपने देश में फैले इन अन्धविस्वासों को मिटाओ 

महा कुम्भ मेला    
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गुलछर्रे मुबारक, कमेंट ऑप्शन बंद बिल्कुल भी नहीं है


कोई देश तीरथों के लिए जाना जाता है और कोई देश दुनिया में वेश्यालयों के लिए पहचाना जाता है।
वेश्यालयों के देश से कोई तीरथों के देश में आए तो वह अच्छा करता है मगर तीरथों के देश को छोड़कर कोई वेश्यालयों के देश में जाकर नौकर बन जाए तो इसका क्या तुक है ?
कोई तुक हो या न हो मगर लोग ऐसा कर रहे हैं और चलिए कर रहे हैं तो करें लेकिन फिर बड़ी बेशर्मी से वहां बैठकर प्रवचन भी झाड़ रहे हैं।
अरे भई ! आप वहां बैठकर वह कीजिए, जिस काम के लिए तुम वहां पहुंचे हो।
उस काम में माल भी मोटा मिलता है और पाबंदी भी कुछ नहीं होती।
बस गुलछर्रे ही गुलछर्रे हैं।
गुलछर्रे मुबारक हों आपको।
उड़ाओं ख़ूब गुलछर्रे ...
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आमंत्रण


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प्रधानमंत्री जी का बच्चों के नाम संदेश



  

आज शिक्षा दिवस है. शिक्षा दिवस पर भारत के माननीय प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह जी ने बच्चों के नाम संदेश सभी स्कूलों में भेजा है. सम्भवत: इसे स्कूलों में पढ़ा गया होगा. जो बच्चे इससे वंचित रहे उनके लिए ब्लॉग पर यह संदेश प्रस्तुत है.


                           संदेश 
 इस महान देश के होनहार बच्चो !
  
आज शिक्षा दिवस है - अपने देश के पहले शिक्षामंत्री अबुल कलाम आज़ाद का जन्म दिन. इस वर्ष हम इस दिन से पूरे देश में ' शिक्षा का हक अभियान ' शुरू करने जा रहे हैं.
               मौलाना आज़ाद भी जब आपकी तरह ही एक छात्र थे तब उन्होंने खूब मन लगाकर पढाई की थी. पढने-लिखने में उनकी लगन ऐसी बेमिसाल थी कि ग्यारह-बारह साल की छोटी सी उम्र में ही वे अपने से दोगुनी उम्र के लोगों के शिक्षक बन गए. वे बाद में पत्रकार बने, फिर देश की आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गाँधी के साथी और जब देश आज़ाद हुआ तो उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में एक ऐसे भारत का सपना देखा जहाँ हर नागरिक पढ़ा-लिखा हो. मैं चाहता हूँ आप भी मौलाना आज़ाद की तरह पढ़ें-लिखें. 
                  मेरे पास एक जादू है जिससे आप बहुत बड़े काम कर सकते हैं. उस जादू का नाम है शिक्षा. शिक्षा सिर्फ इसलिए ही नहीं जरूरी है कि पढ़-लिख जाने के बाद नौकरी मिल सकती है या समाज में आदर सम्मान मिल सकता है. शिक्षा इसलिए जरूरी है कि पढ़-लिखकर हम एक नया संसार बना सकते हैं. शिक्षा जादू है, क्योंकि पढने-लिखने के बाद हर इन्सान का एक नया जन्म होता है.  
              शिक्षा हासिल करने के बाद मेरा भी एक नया जन्म हुआ था. मेरी स्कूली पढ़ाई एक गाँव में हुई. ऐसे गाँव में जहाँ बिजली नहीं थी. मिट्टी के तेल से जलने वाली ढ़िबरी की रौशनी में मैंने स्कूली पढाई की है. तब मेरे गाँव में न तो कोई पक्की सडक थी और न ही स्कूल जाने के लिए कोई तेज-रफ्तार गाड़ी. मीलों पैदल चलकर मैं स्कूल पहुंचता था. मैंने अपनी तरफ से खूब मेहनत की और देश ने मुझे इस मेहनत का हमेशा बड़ा मीठा फल दिया. जीवन के इस सफर में, मैं जहाँ भी पहुंचा अपनी पढाई के कारण पहुंचा . इसीलिए मैं आपसे फिर कहता हूँ कि शिक्षा ऐसा जादू है जिसके सहारे हम जहाँ चाहें पहुंच सकते हैं.
                      मेरे बचपन में प्राथमिक शिक्षा न तो आज की तरह मुफ्त थ और न ही सभी बच्चों को आज की तरह शिक्षा पाने का अधिकार था. आज के भारत में बिना भेदभाव के शिक्षा सभी बच्चों का बुनियादी हक है. गाँधी जी ने कहा था कि किसी भी प्रकार की शिक्षा के लिए स्वस्थ जिज्ञासा और सवाल पूछते रहना परम आवश्यक है. आप खूब सवाल पूछिए, खूब जवाब मांगिए और मन लगाकर पढाई कीजिए, और आप सभी को आगे बढ़ने के अवसर मिलते जाएँगे.
       
आप भी पढ़-लिखकर नई बुलंदियों को छूएं. मेरा प्यार व आशीर्वाद आपके साथ है.


नई दिल्ली
11 -11 -11  
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कुल्टा औरत की पहचान , पहले और अब

अच्छी नारी को सुल्टा नहीं कहा जाता तो फिर बुरी नारी को कुल्टा क्यों कहा जाता है ?
इस बात को हम आज तक नहीं जान पाए लेकिन यह बात ज़रूर जानते हैं कि बालों के समूह को लट कहते हैं और यह भी सच है कि मर्द के लिए लट बोला जाता है तो औरत के लिए भी लट और लटें ही बोला जाता है। ऐसा नहीं है कि मर्द के लिए तो लट बोला जाए और औरत के लिए लटा और लटाएं बोला जाता हो।
पुराने ज़माने में अगर कोई औरत कुल्टा पाई जाती थी तो समाज के चौधरी साहब उसकी लटाएं काट दिया करते थे यानि कि उसकी चोटी काट दिया करते थे ताकि उसे दूर से देखते ही सब जान जाएं कि यह औरत कुल्टा है और उससे सदा दूर ही रहें।
इसी महान व्यवस्था का नतीजा यह हुआ कि परंपरागत यौन रोगों के अलावा एड्स जैसे किसी सर्वथा नए यौन रोग दुनिया में चाहे कहीं भी पैदा हुए लेकिन भारत पर ऐसा एक भी इल्ज़ाम नहीं आने पाया।
कुछ कुल्टा औरतों की चोटियां गईं , सो गईं। थोड़ा बहुत मानवाधिकारों का हनन हुआ सो हुआ लेकिन मानव बच गया , मानवता बच गई।
ज़माना बदला तो यह रस्म भी बदल गई।
अब समाज के किसी चौधरी और पंचायत की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। जो औरत कुल्टा होती है, आज वह अपनी चोटी ख़ुद ही काट लेती है।
पहले औरत चाहती थी कि उसका कुल्टापन छिपा रहे ताकि उसकी इज़्ज़त बची रहे लेकिन आज कुल्टा चाहती है कि लोग उसके कुल्टापन को जान लें क्योंकि आज कुल्टापन उसकी तरक्क़ी में सहायक है न कि रूकावट।
... लेकिन यह कोई कंपलसरी रूल नहीं है कि जिसके बाल कटे हों वह कुल्टा ही हो। बहुत सी औरतें अच्छी और शरीफ़ होती हैं लेकिन अपने बाल काट लेती हैं, बस ऐसे ही, एक नए लुक की ख़ातिर।
...और यह भी ज़रूरी नहीं है कि जिसके सिर पर चोटी लहरा रही हो वह शरीफ़ ही हो, लंबी चोटी वाली औरत कुल्टा भी हो सकती है।
आजकल बड़ा कन्फ़्यूझन है, पहले ऐसा नहीं था।
हमने तो यही पाया है कि मर्दों की ही तरह औरतों में भी अच्छी और बुरी दोनों तरह की ख़सलत पाई जाती है और कौन अच्छी और कौन बुरी है, इसका फ़ैसला आजकल किसी के बाल देखकर बिल्कुल भी न किया जाए।

आपका क्या ख़याल है ?
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त्रिया की बदबूदार पोस्ट

जैसे कि बहादुरी को मर्दानगी और डरकर भाग जाने को बुज़दिली कहा जाता है , ठीक ऐसे ही पति की वफ़ादार औरत को सती और बेवफ़ा को त्रिया कहा जाता है। औरत और मर्द, दोनों में ही दोनों तरह के लोग हमेशा से पाए जाते हैं। ब्लॉगिंग की दुनिया में भी इन्हें देखा जा सकता है।
ब्लॉगिंग किसी भी भाषा में और किसी भी देश में की जा रही हो लेकिन सभी ब्लॉगर अच्छे, सच्चे और नेक नहीं होते।
कुछ लालची और ग़ददार भी होते हैं।
ये लोग अपने ऐब छिपाने के लिए दूसरों पर बेवजह इल्ज़ाम लगाते रहते हैं और इस तरह  उनकी पोस्ट्स से नफ़रत और बदबू फैलती रहती है।
जो आदमी अपनी बीवी का और जो औरत अपने शौहर की वफ़ादार नहीं है और ग़ैरों के साथ इश्क़ फ़रमा रहे हैं, इनसे किसी नेकी और सुधार की उम्मीद करना ही बेकार है।
बस इनसे होशियार रहने की ज़रूरत है।
नीचे जिस पोस्ट का लिंक है, वह ऐसी ही किसी त्रिया चरित्र ब्लॉगर की कारस्तानी है , आप देखें और अपनी राय न भी दें तो भी चलेगा।
10 things I hate about India
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भंवरी देवी के भंवर ने आखिर राजस्थान की राजनीति और पत्रकारों को नंगा कर ही दिया


भंवरी देवी के भंवर ने आखिर राजस्थान की राजनीति और पत्रकारों को नंगा कर ही दिया ..इतना ही नहीं इस भंवर ने जाट सभा का एक नया चेहरा चोरी और सीना जोरी वाला उजागर कर दिया है ............. कहने को तो बात आम है एक नर्स के साथ एक नेता जी के अवेध रिश्ते कायम होते है नेता जी मंत्री बनते है और फिर नेता जी इस प्रेमिका को सेक्स बम बनाकर सभी को परोसना चाहते है .....खुबसूरत सी दिखने वाली एक तुच्छ महिला जब उब जाती है तो फिर वोह इन मंत्री जी की सीडी बनाती है और इस मामले में मंत्री जी को ब्लेकमेल करने के लियें सीडी मुख्यमंत्री जी को देकर आती है राजस्थान के मुख्यमंत्री जी सी डी का सच देखते है मंत्री को मामला सेटलमेंट करने की हिदायत देते है यानी उनकी निगाह में अय्याश मंत्री को हटाने का मन नहीं था और वोह किसी महिला अस्मत का कोई मोल नहीं समझते थे ..बस मामला भड़क गया भंवरी देवी और उसके साथियों ने सी डी का सच अख़बारों और मिडिया चेनलों में पहुंचाया अख़बार तो अखबार है और चेनलों का सच सभी जान गये है इस सीडी को प्रकाशित कर अय्याश मंत्री को सजा दिलवाने की जगह उन्हें बचाया जाता रहा और एक नंगा सच अपने दफ्तर में इन मिडिया वालों ने छुपा कर रखा आप अंदाजा लगा सकते है ऐसी ना जाने कितने लोगों की अय्याशियाँ और बेईमानियाँ इन मिडिया कर्मियों ने अपने दफ्तरों में छुपा कर रखे होंगे .अब जब भंवरी गायब हुई तब भी अख़बार वाले और मिडिया कर्मी सच जानकर चुप रहे सरकार जो न्याय दिलवाती है वोह इस सच को जानकार भी नोटंकी करती रही अदालतों ने सरकार को लताड़ा लेकिन सरकार ने सी बी आई को जान्च देकर अपना पल्लू झाड लिया ..अब एक मिडिया कर्मी जिसे सीडी मिली जब उसने भन्दा फोड़ किया तो सरकार और विपक्ष जो इस मुद्दे पर खामोश थे बोलने लगे भाजपा की वसुंधरा और दुसरे नेता जिनके पास यह सीडी थी वोह भी इसे छुपाये बेठे थे बस सीडी को मिडिया चेनल ने चलाया और पता चला के सोदेबाज़ नेताओं और मिडिया दलालों के पेरों तले ज़मीं खिसक गयी सी बी आई को मजबूरी में सी डी के लियें इंकार के बाद स्वीकारोक्ति देना पढ़ी .इधर जाट समाज से ऐसे अय्याश नेता को निकलने के स्थान पर सभी जाट समुदाय के लोग इक्खत्ते होते है और मंत्री महिपाल मदेरणा को दूध का साबित करते है कोंग्रेस और भाजपा के नेता एक ही मंच पर जाकर चोरी और सीना जोरी की तर्ज़ पर सेक्सी मंत्री को बचाने की बात करते है इस कहानी ने देश के सामने राजस्थान और राजस्थान की राजनीति पक्ष विपक्ष और पत्रकारिता का सर शर्म से झुका दिया है वहीं यह साबित कर दिया है के जाती समाज की पंचायते गरीबों के साथ नहीं न्याय के साथ नहीं अमीर और प्रभावशाली लोगों की बंधक गुलाम है .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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क्या आप मूत्र पीने के शौक़ीन हैं ?


मल मूत्र का नाम आते ही आदमी घृणा से नाक भौं सिकोड़ने लगता है लेकिन ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है जो कि मूत्र पीते हैं।
मूत्र पीने को आजकल बाक़ायदा एक थेरेपी के रूप में भी प्रचारित किया जाता है।
मूत्र का सेवन करने वालों में आज केवल अनपढ़ और अंधविश्वासी जनता ही नहीं है बल्कि बहुत से उच्च शिक्षित लोग भी हैं और ऐसे लोग भी हैं जो कि दूसरे समुदाय के लोगों को आए दिन यह समझाते रहते हैं कि उन्हें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए लेकिन खुद कभी अपने पीने पर ध्यान नहीं देते कि वे क्या पी रहे हैं और क्यों पी रहे हैं ?
बहरहाल यह दुनिया है और यहां रंग बिरंगे लोग हैं।
सबकी अक्ल और सबकी पसंद अलग अलग है।
जो लोग पेशाब पीते हैं , उन्हें भला कौन रोक सकता है ?
देखिए एक लिंक -

(Coen Van Der Kroon) 
Urine therapy consists of two parts: internal appication (drinking urine) and external application (massaging with urine). Both aspects comple-ment each other and are important for optimal results. The basic principle of urine therapy is therefore quite simple: you drink and massage yourself with urine. Even so, there are a number of different ways to apply urine therapy. After your initial experiences, you will be able to determine. Throughout the civilized world, blood and blood products are used in the medical world without evoking the repugnance associated with urine. We often use prepacked cells, plasma, white blood cells and countless other blood components. Urine is nothing other than a blood product. 
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क्या दिव्या जी भारत आएंगी अपने वतन पर शहीद होने के लिए ?

ZEAL: वतन की राह में वतन के नौजवाँ शहीद हों....
यह आह्वान कर रही हैं डा. दिव्या श्रीवास्तव जी।
अच्छी प्रेरणा है।
पोस्ट पढ़ने के लिए गए तो देखा कि 39 कमेंट भी हो गए हैं लेकिन किसी ने भी यह नहीं कहा कि वतन की नौजवां तो आप भी हैं, आप भी शहीद होने के लिए अपने वतन आ जाईये न !

इसी का नाम है पर उपदेश कुशल बहुतेरे !!
आजकल के नेता लोग इसी तरकीब से काम चला रहे हैं।
खुद को बचाए रखेंगे और लोगों से कहेंगे कि ‘चढ़ जा बेटा सूली पर राम भली करेगा‘
लेकिन अब जनता की आंखें कुछ कुछ खुलने लगी हैं।
वह चाहती है कि जो शहीद होने की प्रेरणा दे रहा है पहले इस रास्ते पर वह खुद तो चलकर दिखाए !!!

क्या दिव्या जी भारत आएंगी अपने वतन पर शहीद होने के लिए ?
इसे हम भी पूछ रहे हैं और आप भी पूछिए .
अगर वे नहीं आतीं और खुद थाईलैंड में रहकर विदेशी मुद्रा कमा रही हैं तो दूसरों को भी बताएं कि वे अपना देश छोड़कर कैसे अपना भविष्य बेहतर बना सकते हैं ?
जिस काम का उन्हें तजुर्बा है, उस काम की सलाह देना ज़्यादा ठीक है बनिस्बत शहादत की प्रेरणा देने के , कि जो काम उन्होंने न तो किया है और न ही कभी करना है।
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मैदानी क्षेत्रों में मांस क्यों खाया जाए ?


हिंदू भाई बहनों में कुछ जो शाकाहारी हैं, वे ये सवाल अक्सर पूछते हैं। उनके सवालों का जवाब देती है यह पोस्ट

बौद्धिक बौनेपन का ख़तरा 


इसे पढ़कर आपकी इस तसल्ली ज़रूर हो जाएगी।
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‘लिव इन रिलेशनशिप‘ में रहने वाली लड़कियां सभी उच्च शिक्षित हैं

चर्चा मंच: "दिल को देखो : चेहरा न देखो ! " (चर्चा मंच-693)
हम चर्चा मंच के नियमित पाठक हैं। पिछले बुधवार की चर्चा में भाई अरूणेश दवे जी ने हमारे विरूद्ध लिखी एक पोस्ट को प्रमुखता से यहां पेश किया लेकिन हमने उस पर टिप्पणी नहीं दी क्योंकि एक व्यंग्यकार को हक़ है कि वह जो कहना चाहता है कहे।
अरूणेश जी को शायद हमसे ऐसी ख़ामोशी की अपेक्षा नहीं थी। सो वह अगले बुधवार की प्रतीक्षा करते रहे और आज यहां उन्होंने हमारे विरूद्ध लिखी व्यंग्यात्मक पोस्ट्स के लिंक भी दिए और यह भी बताया कि हमारा नज़रिया क्या है ?
अपनी पोस्ट्स के और दूसरों की पोस्ट्स के लिंक्स देना तो उनका हक़ है लेकिन उन्होंने हमारा नज़रिया जो बताया है वह एक अनाधिकार चेष्टा है।
सभी ब्लॉगर्स यह अच्छी तरह जानते हैं कि
1. मौलाना वस्तानवी का विरोध करने वाले आलिमों को हमने ऐलानिया ग़लत कहा।
2. अन्ना हजारे का विरोध करने पर हमने मौलाना अहमद बुख़ारी साहब के नज़रिये और तरीक़े को ग़लत कहा।
3. इंडिया इस्लामिक सभागार दिल्ली में नाच गाना होने के बाद हमने कहा कि ‘मुसलमानों का परम चरम पतन‘ हो चुका है।

इसी सिलसिले में हमने एक पोस्ट में कहा है कि उच्च शिक्षा को समस्याओं का समाधान समझा जाता है लेकिन जैसे जैसे उच्च शिक्षा बढ़ रही है, युवा वर्ग और देश की समस्याएं भी बढ़ रही हैं। इसका मतलब यह है कि इस आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में कहीं न कहीं कुछ कमी ज़रूर है।
4. हमने कहा है कि
जब हम मुसलमानों को दूध का धुला साबित नहीं कर रहे हैं तो फिर आप कैसे कुछ भी कह सकते हैं ?
‘लिव इन रिलेशनशिप‘ में रहने वाली लड़कियां सभी उच्च शिक्षित हैं।
आधुनिक शिक्षा भारतीय नौजवान लड़कियों को यह बना रही है।
इमोशनल अत्याचार नामक सीरियल में देखो कि क्या कर रहे हैं पढ़े लिखे हिंदू ?
...................
हमारा कहना यह है कि इन्होंने हिंदू का लेबल लगा लिया है लेकिन हिंदू होने के लिए कुछ साधना करनी पड़ती है वह इन्होंने की ही नहीं है। अगर ये उस साधना को करते तो ये इन कुकर्मों को कभी न करते।
बताओ हमारी बात कहां ग़लत है ?
यही बात जरायम पेशा मुसलमानों के लिए कहता हूं कि मुसलमान का केवल लेबल लगा लिया है। इस्लामी क़ायदे क़ानून पर चलते तो वे दूसरों की तबाही का ज़रिया न बनते।
देखिए लिंक :
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%AE%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%B9-%E0%A4%B9-%E0%A4%89%E0%A4%9A-%E0%A4%9A-%E0%A4%B6-%E0%A4%95-%E0%A4%B7-%E0%A4%A4-%E0%A4%B9-%E0%A4%A8-%E0%A4%A6-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5

...और लुत्फ़ की बात यह है कि यह पूरी पोस्ट एक समाचार मात्र है जिसमें हमारी लिखी हुई केवल 3 पंक्तियां हैं और उन तीनों पंक्तियों में एक शब्द भी हिंदू धर्म की आलोचना में नहीं है।
......और यह भी सही है कि हम लोगों के विरोध को सकारात्मक रूप में ही देखते हैं और अपने विरोधियों को हमेशा अपने प्रचारक के रूप में ही देखते हैं। इनसे हमें अभी तक लाभ ही हुआ है। यही वजह है ज़्यादातर विरोधियों से हमारे दोस्ताना ताल्लुक़ात हैं।
वैसे भी हम इन्हें दिल का बुरा नहीं मानते, बस ग़लतफ़हमी का शिकार ही मानते हैं।

चर्चा मंच के व्यवस्थापक , पाठक और सभी लेखकों को शुभकामनाएं।
भाई अरूणेश दवे जी को विशेष तौर पर शुभकामनाएं !!!
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क़ुरबानी पर फ़िज़ूल के ऐतराज़ क्यों ?

ZEAL: ईद मुबारक
विज्ञान के युग में क़ुरबानी पर ऐतराज़ क्यों ?
ब्लॉगर्स मीट वीकली 16 में यह शीर्षक देखकर लिंक पर गया तो उन सारे सवालों के जवाब मिल गए जो कि क़ुरबानी और मांसाहार पर अक्सर हिंदू भाई बहनों की तरफ़ से उठाए जाते हैं।
पता यह चला कि अज्ञानतावश कुछ लोगों ने यह समझ रखा है कि फल, सब्ज़ी खाना जीव को मारना नहीं है। जबकि ये सभी जीवित होते हैं और इनकी फ़सल को पैदा करने के लिए जो हल खेत में चलाया जाता है उससे भी चूहे, केंचुए और बहुत से जीव मारे जाते हैं और बहुत से कीटनाशक भी फ़सल की रक्षा के लिए छिड़के जाते हैं।
ये लोग दूध, दही और शहद भी बेहिचक खाते हैं और मक्खी मच्छर भी मारते रहते हैं और ये सब कुकर्म (?) करने के बाद भी दयालुपने का ढोंग रचाए घूमते रहते हैं।
यह बात समझ में नहीं आती कि जब ये पाखंडी लोग ये नहीं चाहते कि कोई इनके धर्म की आलोचना करे तो फिर ये हर साल क़ुरबानी पर फ़िज़ूल के ऐतराज़ क्यों जताते रहते हैं ?
अपने दिल में ये लोग जानते हैं कि हमारी इस बकवास से खुद हमारे ही धर्म के सभी लोग सहमत नहीं हैं। इसीलिए ये लोग कमेंट का ऑप्शन भी बंद कर देते हैं ताकि कोई इनकी ग़लत बात को ग़लत भी न कह सके।
सचमुच यह लेख बहुत अच्छा है,
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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