स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी का नायाब वीडियो देखा ब्लॉगर्स मीट वीकली 21 में


उनका प्रवचन सही बात सामने लाता है।
दूसरे लिंक भी अच्छे हैं और सबसे अच्छा तब लगता है जब हमें अपनी पोस्ट के लिंक भी यहां दिखाई देते हैं। जिसके लिए हम प्रेरणा जी के शुक्रगुज़ार हैं।
ब्लॉगर मीट वीकली सच में ही उम्दा बन पड़ी है। ऐसे आयोजन इंसान के सामने इंसानियत के उसूल रखते हैं और इसमें मंदिर मस्जिद की समस्या सच्चा समाधान भी बताया गया है।

ब्लॉगर्स मीट वीकली (21) Save Girl Child

Posted on 
  • Monday, December 12, 2011

  • by 
  • prerna argal

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    ख़ंज़र की क्या मजाल जो इक ज़ख़्म कर सके ? - Swami Ramtirth


    शुभ विचार

    लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं ।

    आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।

    ख़ंज़र की क्या मजाल जो इक ज़ख़्म कर सके।
    तेरा ही है ख़याल कि घायल हुआ है तू।।

    स्वामी रामतीर्थ
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    दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ?


      दोस्तों, आप दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ? दोस्तों, पिछले दिनों फेसबुक के मेरे एक मित्र ने एक अपने मित्र की दोस्ती का निवेदन स्वीकार करने के लिए कहा. तब मैंने कहा उनकी प्रोफाइल का अवलोकन करने के लिए कहा. तब उस मित्र का कहना था कि-इतना घंमड ठीक नहीं है. हमने जवाब दिया-दोस्त! आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है. अपशब्दों को छोड़कर जैसे मर्जी अपने विचार व्यक्त करें. आपको जवाब जरुर मिलेगा. वैसे मैं ऐसा इसलिए करता हूँ सुरक्षा* कारणों के चलते ही प्रोफाइल का अवलोकन करता हूँ. मुझे नहीं पता आपकी नजरों में मेरा यह घंमड या कुछ और है. लेकिन यह मेरा देश और समाज के प्रति सभ्य व्यवहार की परिभाषा है.
          *सुरक्षा- जहाँ तक सुरक्षा की बात कई विकृत मानसिकता के व्यक्तियों की प्रोफाइल में अश्लील फोटो व वीडियों होते है, जिनका प्रयोग खासतौर अपने या मेरे लड़कियों या महिलाओं की प्रोफाइल पर डाल कर करते हैं. दोस्तों अगर आपको कभी भी मेरी प्रोफाइल में इसे दोस्तों की जानकारी हो तो मुझे अपनी प्रोफाइल में दिए ईमेल, फ़ोन या एड्रेस पर पत्र द्वारा सूचित करके दोस्ती के पवित्र रिश्ते को कायम करें. अभी कल ही मैंने फेसबुक और ऑरकुट की अपनी दोस्त एक महिला और एक लड़की की "वाल" पर उसके दोस्त द्वारा डाली आपत्तिजनक फोटो देखी. मगर में उनको यह सूचना उनके द्वारा दी प्रोफाइल में जानकारी के अभाव में देने में असमर्थ रहा. लेकिन शुक्र था कि-वो विकृत मानसिकता का व्यक्ति मेरा दोस्त नहीं था.
             अब सुरक्षा का एक दूसरा नमूना भी देखें-एक दोस्त कहूँ या व्यक्ति को लिखे शब्दों में कठोरता है पर सभ्य भाषा का प्रयोग किया है.
    पूरा लेख पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.
     दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता
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    रामकथा पर रार क्यों ? -सुभाष गाताडे

    परिचर्चा 

    रामकथा पर रार क्यों ?

    सुभाष गाताडे


    शिक्षा संस्थान और सैनिक स्कूलों में क्या फरक होता है ? शिक्षा संस्थान जहां उसमें दाखिला लेनेवाले छात्रों में ज्ञान हासिल करने का जज्बा पैदा करते हैं, स्वतंत्र चिंतन के लिए उन्हें तैयार करते हैं, उनकी सृजनात्मकता को नए पंख लगाने में मुब्तिला होते हैं, वही सैनिक स्कूलों की कोशिश ऐसे इन्सान रूपी रोबोट यानी यंत्रमानव बनाने की होती है, जो सोचें नहीं, बस अपने सीनियरों के आदेशों पर अमल करने के लिए हर वक्त तैयार रहें. लाजिम है कि विचारद्रोही प्रवृत्तियां समाज में जब भी हावी होती हैं, हम यही पाते हैं कि वे शिक्षा संस्थानों और सैनिक स्कूलों के फरक को मिटा देना चाहती हैं. वे ऐसे माहौल को बनाना चाहती हैं कि ज्ञान हासिल करने की पहली सीढ़ी- हर चीज़ पर सन्देह करने की प्रवृत्ति - से शिक्षा संस्थान में तौबा किया जा सके और वहां आज्ञाकारी रोबो का ही निर्माण हो.
    रामायण
     
    दिल्ली के अकादमिक जगत में इन दिनों जारी विवाद को लेकर यही कहने का मन करता है और इसका ताल्लुक कन्नड एवं अंग्रेजी भाषा के मशहूर कवि, नाटककार एवं विद्वान प्रोफेसर ए के रामानुजन (1929-1993) के उस चर्चित निबंध ‘थ्री हण्ड्रेड रामायणाज: फाइव एक्जाम्पल्स एण्ड थाटस आन ट्रान्सलेशन’ यानी तीन सौ रामायण: पाँच उदाहरण और अनुवादों पर तीन विचार, से है जिसमें दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया में विद्यमान रामायण कथाओं की विभिन्न प्रस्तुतियों की चर्चा की गयी है.

    अपने अनुसन्धान में उन्होंने यह पाया था कि विगत 2,500 वर्षों में दक्षिण एवं दक्षिणपूर्व एशिया में रामायण की चर्चा तमाम अन्य भाषाओं, समूहों एवं इलाकों में होती आयी है.

    मालूम हो कि अन्नामीज, बालीनीज, बंगाली, कम्बोडियाई, चीनी, गुजराती, जावानीज, कन्नड, कश्मीरी, खोतानीज, लाओशियन, मलेशियन, मराठी, उड़िया, प्राकृत, संस्कृत, संथाली, सिंहली, तमिल, तेलगु, थाई, तिब्बती आदि विभिन्न भाषाओं में रामकथा अलग अलग ढंग से सुनायी जाती रही है. उनके मुताबिक तमाम भाषाओं में रामकथा के एक से अधिक रूप मौजूद हैं. उन्होंने यह भी पाया था कि संस्कृत भाषा में भी 25 अलग अलग रूपों में (महाकाव्य, काव्य, पुराण, पुरानी दन्तकथात्मक कहानियां आदि) रामायण सुनायी जाती रही हैं.

    वैसे यह बात सर्वविदित ही है कि दक्षिण एव दक्षिण पूर्व के देशों में रामकथाओं का प्रभाव किसी न किसी रूप में आज भी दृष्टिगोचर होता है. मिसाल के तौर पर इंडोनेशिया जैसे मुस्लिमबहुल मुल्क में सड़कें, बैंक, ट्रैवल एजेंसीज, या अन्य उद्यम मिलते हैं, जिनके नाम रामायण के पात्रों पर रखे गए हैं. लोकसंस्कृति में भी किस हद तक रामकथा का वजूद बना हुआ है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है.

    इण्डोनेशिया में बच्चे के जनम पर ‘मोचोपाट’ नामक समारोह होता है. अगर परिवार हिन्दु है तो वह धार्मिक आयोजन कहलाता है और अगर परिवार गैरहिन्दु है तो उसे संस्कृति के हिस्से के तौर पर आयोजित किया जाता है. ‘मोचोपाट’ में एक जानकार व्यक्ति लोगों के बीच बैठ कर रामायण के अंश सुनाता है, और फिर श्रोतागणों में उस पर बहस होती है. कभी-कभी यह आयोजन दिन भर चलता है. मकसद होता है, परिवार में जो नया सदस्य जनमा है, वह रामायण के अग्रणी पात्रों की तरह बने. आठवीं-नवीं सदी में इण्डोनेशिया में पहुंची रामायण कथा जावानीज भाषा में लिखी गयी थी.

    सवाल यह उठता है कि एक सच्चे भारतीय के लिए- रामकथा के यह विभिन्न रूप, जिसने अलग-अलग समुदायों, समूहों में पहुंच कर अलग-अलग रूप धारण किए हैं- यह हक़ीकत किसी अपमान का सबब बननी चाहिए, या मुल्क की बहुसांस्कृतिकता, बहुभाषिकता, बहुविधता को ‘सेलेब्रेट’ करने का एक अवसर होना चाहिए.

    साफ है कि ऐसे लोग, जो भारत की साझी विरासत की हक़ीकत को आज तक जज्ब़ नहीं कर पाए हैं और भारत का भविष्य अपने खास इकहरे एजेण्डा के तहत ढालना चाह रहे हैं, उन्हें रामायण के इन विभिन्न रूपों की मौजूदगी की बात को कबूल करना भी नागवार गुजर रहा है और इसलिए उन्होंने इसे आस्था के मसले के तौर पर प्रोजेक्ट करने की कोशिश की है.

    मालूम हो कि विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यापकों की अनुशंसा पर वर्ष 2006 में इस निबंध को पाठयक्रम में शामिल किया था. वर्ष 2008 में हिन्दुत्ववादी संगठनों की छात्रा शाखा ने इसे लेकर विरोध प्रदर्शन किया. उनका कहना था कि इस निबंध को पाठयक्रम से हटा देना चाहिए. अन्ततः मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा तब उसके निर्देश पर चार सदस्यीय कमेटी बनायी गयी, जिसके बहुमत ने यह निर्णय दिया कि प्रस्तुत निबंध को छात्रों को पढ़ाया जाना चाहिए, सिर्फ कमेटी के एक सदस्य ने इसका विरोध किया.

    मामला वहीं खतम हो जाना चाहिए था, मगर जानबूझकर इस मसले को अकादमिक कौन्सिल के सामने रखा गया, जहां बैठे बहुलांश ने अपने होठों को सीले रखना ही मंजूर किया. फिलवक्त ‘बहुमत’ से इस निबंध को पाठयक्रम से हटा दिया गया है.

    प्रस्तुत विवाद को लेकर प्रख्यात कन्नड साहित्यकार प्रो यू आर अनन्तमूर्ति के विचार गौरतलब हैं ‘‘भारत में हमेशा ही श्रुति, स्मृति और पुराणों में फरक किया जाता रहा है. अलग-अलग आस्थावानों के लिए अलग-अलग ढंग की श्रुतियां हैं, जो वेदों, कुराणों की तरह लगभग अपरिवर्तित रहती हैं. दूसरी तरफ स्मृति और पुराण गतिमान होते हैं और समय एवं संस्कृति के साथ बदलते हैं. भास जैसे महान कवियों ने महाभारत की समूची समस्या को बिना युद्ध के हल किया. यह बात विचित्र जान पड़ती है कि आधुनिक दौर में धार्मिक विश्वासों एवं आचारों का व्यवसायीकरण एवं विकृतिकरण किया जा रहा है. हमारे पुरखे आस्था, विश्वासों की जिस विविधता को सेलिब्रेट करते थे, उस सिलसिले को हम लोगों ने छोड़ दिया है.”

    सवाल निश्चित ही महज एक निबंध का नहीं है. यह सोचने एवं तय करने की जरूरत है कि शिक्षा संस्थानों में पाठयक्रम तय करने का अधिकार अध्यापकों का अपना होगा या वहां दखलंदाजी करने की राज्य कारकों या गैरराज्यकारकों को खुली छूट होगी. निबंध को लेकर खड़ा विवाद दरअसल इस बात का परिचायक कि अकादमिक संस्थानों में विचारों के सैन्यीकरण का दौर लौट रहा है, जिस पर आस्था का मुलम्मा चढ़ाया जा रहा है. अभी ज्यादा दिन नहीं बीता जब शिवसेना के शोहदों ने मुंबई विश्वविद्यालय में पढ़ाये जा रहे रोहिण्टन मिस्त्री के उपन्यास ‘सच ए लांग जर्नी’ को हटाने में कामयाबी हासिल की थी, तो कुछ अन्य अतिवादी तत्वों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद जेम्स लेन की ‘शिवाजी’ पर प्रकाशित किताब पर सूबा महाराष्ट्र में अघोषित पाबन्दी लगा रखी है.

    ऐसे सभी लोग, जो शिक्षा संस्थानों को खास ढंग से ढालना चाहते हैं, उन्हें इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं पर निगाह डालनी चाहिए. इस वर्ष का रसायन का नोबेल इस्त्राएली मूल के डैनिएल शेश्टमान को क्वासिक्रिस्टल्स की खोज को लेकर मिला है, जिसने पदार्थ की स्थापित धारणाओं को भी चुनौती दी है.

    मालूम हो कि जब प्रोफेसर शेश्टमान ने पहली दफा यह संकल्पना रखी तो ऐसा वाहियात विचार रखने के लिए विश्वविद्यालय ने उन्हें रिसर्च ग्रुप छोड़ने के लिए कहा, मगर वह डटे रहे. सभी मानवीय ज्ञान क्या मानव की इसी अनोखी आदत से विकसित नहीं हुआ है- सभी चीजों पर सन्देह करो.

    निश्चित ही शिक्षा संस्थानों को कुन्द जेहन रोबोट के निर्माण की फैक्टरी के तौर पर देखनेवाले लोग इस सच्चाई को कैसे जान सकते हैं !
    Source : http://raviwar.com/news/626_three-hundred-ramayanas-ak-ramanujan-gatade.shtml
     
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    ब्लॉगर्स मीट वीकली (21) Save Girl Child

                                                     




                                     ब्लॉगर्स मीट वीकली (21)

    सबसे पहले मेरे सारे ब्लॉगर साथियों को प्रेरणा अर्गल का प्रणाम और सलाम /आप सभी का अभिनन्दन करती हूँ /आपसे अनुरोध करती हूँ .आप सब मंच पर पधारें और  अपने विचारों से हमें अवगत करें ,और हमारा उत्साह बढायें /
    आज सबसे पहले मंच की पोस्ट्स 

     अनवर जमाल जी की रचनाएँ 

      अख्तर  खान  "अकेला जी "   की रचनाएँ

    डॉ.राजेंद्र तेला "निरंतर जी "

    हास्य कविता निरंतर की कलम से.........: हँसमुखजी ने प्रेमपत्र लिखा (हास्य कविता)अयाज अहमद जी की रचना 
    पत्रकार अडियार को इमरजेंसी के दौर में जेल जाना पड़ा और वहां कुरआन पढ़ने का मौक़ा मिला तो इस्लाम के उसूल सामने आ गए।
    दिलबाग विर्क जी की रचना 


    देवेन्द्र गौतम जी की रचना 

    ईं. प्रदीप कुमार जी 


    बाकि अभी नापना सारा आसमान है


    कैलाश.सी.शर्मा जी की रचना 

    क्षणिकायें और मुक्तक

    रमेश कुमार जैन उर्फ़ "  सिरफिरा "


    अतुल श्रीवास्तव जी की रचना 
    अंदाज ए मेरा: सिब्‍बल बनाम रमन....!!!!!

    मंच के बाहर की पोस्ट  

    मीनाक्षी पंतजी की दिल को छु लेने वाली रचना 

     हाय गरीबी

    अर्चना गौतम जी की रचना 

     अन्ततः....

    डॉ.टी.एस.दराल जी की रचना 


    रश्मि जी की रचना 

    अनामिका जी की रचना 
    संजय भास्कर जी की रचना 

    सुनील कुमार जी की रचना 


    संगीता स्वरुप जी की रचना 
    दिनेश पारीख जी की रचना 
    girl child enfanticide 300x232 कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ एक पहल
    शिखा कौशिक  जी की रचना 
     आओ चुप्पी तोड़कर इन सबका भांडा फोड़ दें
    ब्लोगिंग का महिला सशक्तिकरण में योगदान [भाग एक ]
    रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा जी" की रचना 
    क्या आप पत्नी द्वारा सताए हुए है 


    आशीष तिवारी जी की रचना 
    खिसिया सिब्बल फेसबुक नोंचे

    अमित चंद्र जी की रचना 

    ये फूल.....

    ..

    प्रेरणा अर्गलजी की रचना 

    फेस-बुक क्या है ?


    ब्लॉग की ख़बरें पर
    Hindu Scholar (Swami Lakshmi Shankaracharya) speaks about Islam- 24 verses



    स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी से हमने मुलाक़ात की तो उन्हें बहुत सादा पाया। हमने लखनऊ में उनके आवास पर 8 मई 2011 को भेंट की थी और उनका एक इंटरव्यू भी रिकॉर्ड किया था।

    जर्नलिस्ट तो ठीक है, पर करते क्या हैं ?

    मौका खुशी का है, सोच रहा हूं कि आज अपने ब्लाग परिवार से खुल कर बातें करूं। 17 साल पहले आज ही के दिन लखनऊ में हम विवाह बंधन में बंध गए थे। 
    एक एक्टिविस्ट की तरह हम काम करते थे, पहले मरीज के बेहतर इलाज के लिए संघर्ष फिर दफ्तर पहुंच कर रिपोर्ट लिखते थे। अब ऐसा नहीं है, अब तो पत्रकार महज रिपोर्टर बनकर रह गए हैं। वो सिर्फ रिपोर्ट लिखते हैं।
    सी. एम्. प्रसाद जी
     दाढ़ी मूँछ का प्रभाव
    दाढ़ी वाले ने दाढ़ी पर कसीदा पढ़ दिया-

    दाढ़ी वो दाढ़ी जिस दाढ़ी पे हो गुमां
    दाढ़ी शेरों के हुआ करती है बकरों के कहाँ॥

    अब मूँछ वाला शायर भी कहाँ पीछे हटने वाला था! उसने भी लाइन मिलाई-

    मूँछ वो मूँछ जिस मूँछ पे हो गुमां
    मूँछें मर्दों के हुआ करती है हिजड़ों के कहाँ॥
    कार्टूनिस्ट सुरेश जी की पोस्ट "
    आज अंतिम पोस्ट है दोस्तों..फेसबुक पर मिला करेंगे ....":
    टिप्पणियाँ चाहिए तो ..एक हाथ दें ..दुसरे हाथ ले..का प्रचलन शुरू हो गया है ..ऐसे में ब्लॉग पर पोस्ट चिपकाने का
     ...जाते-जाते आज अंतिम कार्टून प्रस्तुत है

    ******************************
    हकीकत यह है कि  हिंदी ब्लॉगिंग गुटबंदी और माफ़ियागिरी के चंगुल में फंसी हुई है। नकारात्मक तत्वों की  वजह से पहले ही बहुत से ब्लॉगर अपना ब्लॉग बंद कर चुके हैं बल्कि ब्लॉगवाणी जैसे एग्रीगेटर तक को भी इन्होंने काम करने के लायक़ न छोड़ा।
    QnA  पर 
    प्रिय प्रवीन शाह जी 

    'हिन्दी ब्लागिंग', बोले तो- निट्ठल्ले लोगों का आत्मालाप... समाज के दोयम दर्जा प्राप्त लोगों का प्रलाप ???

    इतनी सी बात पर इरफ़ान साहब

    ऐसे-कैसे पाकिस्तान जायेंगे मोदी जी???

    ### परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
    मोदी जी भी बदलेंगे।
    बड़े बड़े बदल गए हैं।
    साधना वैद जी

    एक सच

    जनाब चन्द्र भूषण प्रसाद 'गाफ़िल' साहब

    आदरणीय रूपचंद शास्त्री जी की रचना

    "मन को मत इतना भरमाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



    मुझको पाठ पढ़ाने वाले,
    मन को मत इतना भरमाओ।
    कुमार राधा रमण जी की सलाह

    सर्दियों के खानपान में 5 चीज़ें हैं ज़्यादा ज़रूरी 

    सर्दियों का खानपान अलग होता है, यह तो आपने भी सुना होगा। कुछ ऐसा, जिससे शरीर को भरपूर पौष्टिक तत्व मिलें और आप बीमारियों से भी बचे रहें। इस बार हम ले कर आए हैं ऐसे 5 फूड टिप्स,

    अपने विचार ब्लॉग पर
    बताया जा रहा है कि
    ‘व्यक्तित्व को भी नष्ट कर देता है अहंकार‘
    फेसबुक पर 

    • Farhat Durrani
      The legend of Rahab Sidh Datt
      As per Mohyal folklore, a Mohyal of the Dutt clan had fought on
    हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु ने मानवता के सामने आदर्श पेश किया है और हमें आदर्श के संकट से मुक्ति दी है और जो उनके आदर्श का पालन नहीं करता उसे सही ग़लत और ज़िंदगी के मक़सद की पहचान होना मुमकिन नहीं है।
    देखिए हमारे तीन लेख
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    बाकि अभी नापना सारा आसमान है


    १९ अन्य कवियों के साथ मेरा पहला काव्य संग्रह:
    "टूटते सितारों की उड़ान"

    अभी तो है ये पहली उड़ान,
    बाकि अभी नापना सारा आसमान है;
    दो पग ही पथ में बढ़ा हूँ अभी,
    आगे तो अभी पुरा जहाँ है |

    हृदय में है ख्वाहिश, मन है सुदृढ़,
    हाथों की लकीरों में भी कुछ निशान है :
    अभी तो है ये पहली उड़ान,
    बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

    बड़ों का आशीष, अपनों का साथ,
    लेकर चला, मुझे खुद पर गुमान है;
    अभी तो है ये पहली उड़ान,
    बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

    मित्रों की दुआ, ईश्वर की दया,
    मिल जाए फिर सब आसान है;
    अभी तो है ये पहली उड़ान,
    बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

    हरेक पग रखना है बहुत संभल के,
    उंचाई तक जाना सोपान दर सोपान है;
    अभी तो है ये पहली उड़ान,
    बाकि अभी नापना सारा आसमान है |

    जमींदोज होंगी हर विषम परिस्थितियाँ,
    साहित्य की दुनिया से ये पहला मिलान है;
    अभी तो है ये पहली उड़ान,
    बाकि अभी नापना सारा आसमान है |
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    अंदाज ए मेरा: सिब्‍बल बनाम रमन....!!!!!

    अंदाज ए मेरा: सिब्‍बल बनाम रमन....!!!!!: कपिल सिब्‍बल कपिल सिब्‍बल। पेशे से वकील। कांग्रेस के बडे नेता और मौजूदा मनमोहन सरकार में मानव संसाधन मंत्री। डा रमन सिंह। पेशे से चि...
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    ग़ज़लगंगा.dg: नज़र के सामने जो कुछ है अब सिमट जाये

    ग़मों की धुंध जो छाई हुई है छंट जाये.

    कुछ ऐसे ख्वाब दिखाओ कि रात कट जाये.


    नज़र के सामने जो कुछ भी है सिमट जाये.

    गर आसमान न टूटे, ज़मीं ही फट जाये.


    मेरे वजूद का बखिया जरा संभल के उधेड़

    हवा का क्या है भरोसा, कहीं पलट जाये.


    मैं तय करूंगा हरेक लम्हा इक सदी का सफ़र

    कि मेरी राह का पत्थर जरा सा हट जाये.


    सफ़र तवील है कुछ सुनते-सुनाते चलिए

    कि बात-बात में ये रास्ता भी कट जाये.


    उसे पता है कि किस राह से गुज़रना है

    वो कोई रूह नहीं है कि जो भटक जाये.


    मैं अपनी आंख में सूरज के अक्स लाया हूं

    अंधेरी रात से कह दो कि अब सिमट जाये.


    -----देवेंद्र गौतम

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