क्या कांग्रेस ही छीन रही है हिंदुस्तानी मुसलमानों से उनका स्वाभिमान ? या दूसरी पार्टियां भी ऐसा ही कर रही हैं ?


आज यह सवाल वे लोग भी पूछ रहे हैं जो कि ख़ुद भारतीय मुसलमानों के स्वाभिमान पर और उनकी धार्मिक परंपराओं पर चोट करते रहते हैं।
इसे कहते हैं घड़ियाली आंसू बहाना।
जिनके पास खुद स्वाभिमान नहीं है, 
वे भी स्वाभिमान की चिंता करते दिखते हैं और वह भी उन लोगों के स्वाभिमान की जिन्हें वे मांसाहार के कारण विदेश चले जाने का सुझाव देते हैं।
पता नहीं ये किसे धोखा देते हैं ?
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इनका एजेंडा हिडेन बिलकुल नहीं है ...



सुज्ञ जी ने भी कुर्बानी के विरोध में पोस्ट लगाई है मगर एक फ़र्क़ है. 
शिल्पा जी अपने लिए जो अधिकार चाहती हैं  , ठीक वही अधिकार  दूसरे के लिए वह नहीं मानतीं मगर सुज्ञ जी के ब्लॉग पर ऐसा नहीं है,  
मुलाहिज़ा कीजिये -


पशु-बलि : प्रतीकात्मक कुरीति पर आधारित हिंसक प्रवृति

http://niraamish.blogspot.com/2011/11/mass-animal-sacrifice-on-eid.html

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सिरफिरा पर विश्वास रखें

फ़ेसबुक के कई हजार अकाउंट्स हैक हुए हैं (अधिकांश ID बंगलोर के हैं), जिनसे अश्लील और अभद्र वीडियो और फोटो भेजे जा रहे हैं…। किसी मित्र को यदि मेरे नाम या आई डी (ID) से ऐसा कोई अश्लील क्लिप अथवा फ़ोटो मिलता है तब उसे तुरन्त डिलीट करें और मुझ पर विश्वास रखें कि ऐसी "घटिया हरकत" मैंने नहीं की; न कभी भविष्य में कर सकता हूँ. जैसा आप सबको सनद होगा ही कि मैं पेशे से एक पत्रकार भी हूँ और मुझे तकनीकी ज्ञान भी ज्यादा नहीं है. पुलिस, सीबीआई एवं साइबर क्राइम विशेषज्ञ इस मामले की जाँच कर रहे हैं… अगर भविष्य में कभी ऐसा हो भी धैर्य रखें और मुझ पर विश्वास भी रखें और संभव हो तो मुझे फोन करके सूचित भी करें. कभी मेरे विरोधी साजिश करके मुझे आपकी नजरों में गिराने के लिए ऐसी ओछी हरकत कर सकते हैं.…। आपका अपना दोस्त-रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा
नोट:- इस संदेश में अपनी आवश्यकता अनुसार बदलाव करके अपने स्टेटस में भी डाले|
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अलग अलग है

अलग नहीं है किसी की दुनिया मगर जिन्दगी अलग अलग है
भले हैं खोये वो रौनकों में मगर सादगी अलग अलग है

यूँ मुस्कुराते मिलेंगे चेहरे कहीं खुलापन कहीं पे पहरे
कई जो दिखते हैं मुतमईन पर वहाँ तिश्नगी
अलग अलग है

वो रोज मिलते हैं मुझसे आ के चले भी जाते हैं दिल जला के
बहुत ही नाजुक खिंचाव उस पे नई ताज़गी
अलग अलग है

मकान जितने बड़े बड़े हैं बिना प्यार बेज़ान खड़े हैं
इधर है कोशिश दिलों को जोड़ें उधर बानगी
अलग अलग है

धरम अलग पर है साथ जीना कभी खुशी और ग़मों को पीना
हैं एक मालिक सभी सुमन के मगर बंदगी
अलग अलग है





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अरे भई साधो......: आणविक सृष्टि बनाम रासायनिक सृष्टि

जीवन की उत्पत्ति के संदर्भ में कई अवधारणाएं प्रचलित रही हैं. भौतिक भी और आध्यात्मिक भी. भौतिकवाद की अवधारणा मुख्य रूप से डार्विन के विकासवाद पर टिकी है जिसमे पानी के बुलबुले में रासायनिक तत्वों के समन्वय से एककोशीय जीव अमीबा और फिर उससे तमाम जलचरों, उभयचरों, थलचरों और नभचरों की एक लंबी प्रक्रिया के तहत उत्पत्ति और विकास की बात कही गयी है. एक हद तक कोशा (सेल) विभाजन के बाद नर-मादा के अस्तित्व में आने और मैथुनी सृष्टि की बात कही गयी है. यह अवधारणा काफी वैज्ञानिक और विश्वसनीय भी लगती है.
इधर अध्यात्म की दुनिया में नज़र दौडाएं तो विभिन्न धर्मों में जीवन की उत्पत्ति की अवधारणाएं प्रस्तुत की गयी हैं लेकिन सबका सार यह है कि इस सृष्टि और उसमें जीवन की उत्पत्ति एक महाशून्य से हुई है. दुर्गा सप्तसती के प्राधानिकं रहस्यम के मुताबिक त्रिगुणमयी महालक्ष्मी ही पूरी सृष्टि का आदि कारण हैं. वे दृश्य (साकार) और अदृश्य (निराकार) रूप से सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त कर स्थित हैं. उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को शून्य देखकर तमोगुण से चतुर्भुजी महाकाली और सत्वगुण से महासरस्वती को प्रकट किया.इसके बाद उन्हें नर और मादा के जोड़े उत्पन्न करने को कहा. खुद भी एक जोड़ा उत्पन्न किया जिससे ब्रह्मा, विष्णु, शिव नर और लक्ष्मी, सरस्वती और गौरी मादा के रूप में प्रकट हुए. यहां से मैथुनी सृष्टि की शुरुआत हुई. मैथुनी सृष्टि को हम रासायनिक सृष्टि भी कह सकते हैं.
इससे यह परिलक्षित होता है कि मैथुनी सृष्टि के पहले महाशून्य से अमैथुनी सृष्टि हुई थी. महाशुन्य यानी कॉस्मिक रेज. कॉस्मिक रेज से ही परमाणुओं की उत्पत्ति मानी जाती है. या फिर अणुओं तो तोड़ते जाने के बाद अंत में कॉस्मिक रेज या एब्सोल्यूट एनर्जी शेष बचता है. इस एब्सोल्यूट एनर्जी से ही परमाणुओं की उत्पत्ति होती है. इसका सीधा सा अर्थ यह है कि मैथुनी सृष्टि के पहले आणविक सृष्टि हुई थी या दोनों सृष्टियाँ कुछ समय तक समान रूप से जारी रही थीं. आणविक सृष्टि से उत्पन्न हुए लोग अपने शरीर के परमाणुओं को इच्छानुसार संगठित या विघटित कर सकते थे. वे मनचाहा आकार या स्वरूप धारण कर सकते थे. उनका व्यक्तित्व भी तीन गुणों सत्व, रज और तम से संचालित होता था लेकिन वे आणविक होने के कारण शक्तिशाली और जीवन मरण के चक्र से परे अर्थात अमर थे. इस वर्ग के जीवों को ही हिन्दू धर्म में देवता और एनी धर्मों में फ़रिश्ता या देवदूत माना गया और सर्वव्यापी बताया गया. तमाम जीवधारी रासायनिक सृष्टि से आणविक सृष्टि में परिणत होने के प्रयास में लगे रहते हैं. यह साधना के जरिये अपनी चेतना को सूक्ष्मतम अवस्था में पहुंचाने के जरिये ही संभव है. तमाम पूजा पद्धतियां इसका मार्ग ही प्रशस्त करती हैं.

-----देवेंद्र गौतम

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आलू टमाटर को पसंद है मांसाहार

आपको पता नहीं है कि ये दोनों मांसाहारी पौधे हैं। आपको ही नहीं बल्कि ज़्यादातर शाकाहारी यह बात नहीं जानते।
यह बात अजीब सी लगती है कि मांसाहारी व्यक्ति तो शाकाहारी जीव खाए और शाकाहारी भाई बहन मसाले लगाकर मांसाहारी पौधों के अंग खाएं।
हज़ारों साल से खाते आ रहे हैं अज्ञानवश।
चलिए पहले तो पता नहीं था लेकिन क्या अब शाकाहारी लोग इन दोनों मांसाहारी पौधों के अंग खाना बंद करेंगे या बदस्तूर पहले की तरह ही खाते रहेंगे ?
देखिए -

आलू-टमाटर मांसाहारी, खान-पान पर संकट भारी

निकट भविष्‍य में आचार-विचार के पुराने मानदंडों से काम नहीं चलनेवाला। 
आनेवाले वर्षों में शाकाहार-मांसाहार के बीच की रेखा भी उतनी स्‍पष्‍ट नहीं रहेगी, जितनी अब तक रहते आयी है। यह बात प्रयोगशाला में कृत्रिम मांस से संबंधित पिछले आलेख में कही गयी थी। उन शब्‍दों के लिखे जाने के एक सप्‍ताह के अंदर ही यह खबर दुनिया भर में सुर्खियों में रही है कि ब्रिटिश वनस्‍पति विज्ञानियों ने नए शोध में यह निष्कर्ष निकाला है कि आलू व टमाटर मांसाहारी हैं, क्‍योंकि ये पौधे कीड़ों को मारकर अपने लिए खाद बनाते हैं।

रॉयल बॉटेनिकल गार्डन, कियू और लंदन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया है कि दोनों सब्जियों के पौधों के तनों में मौजूद बालों में एक चिपचिपा पदार्थ बहता रहता है। यह पदार्थ आसपास उड़ने वाले कीट-पतंगों को तने से चिपका देता है। कुछ दिन बाद कीटों के बेजान शरीर सूखकर जमीन में गिर जाते हैं। तब पौधों की जड़ें कीटों के शरीर के पोषक तत्वों को सोख लेती हैं। शोधकर्ता मार्क चेज ने बताया, ‘टमाटर और आलू की फसल कटने के बाद भी पौधों में बाल साफ नजर आते हैं। ये नियमित तौर पर कीड़ों को पकड़कर मार देते हैं।’

जीव विज्ञान के पितामह चा‌र्ल्स डार्विन की दूसरी जन्म शताब्दी मना रहे वैज्ञानिक नए-नए शोध कर रहे हैं। इसी क्रम में ये नतीजे भी सामने आए हैं। इस शोध से जुड़े डा. माइक फे के अनुसार अब तक हम मानते थे कि पेड़-पौधों की करीब 650 प्रजातियां मांसाहारी हैं, जो कीट-पतंगों और जीवों का रक्त चूस कर पोषण पाती हैं लेकिन इस श्रेणी में 325 और पेड़-पौधे जुड़ गए हैं।

नए शोध में जिन पौधों को मांसाहारी बताया गया है, उनमें आलू और टमाटर के साथ तंबाकू भी शामिल है। हालांकि ये मुख्य रूप से कीट-पतंगों पर निर्भर नहीं होते, लेकिन पोषण पाने के लिए इनका शिकार करते हैं।

इससे पहले यह माना जाता था कि बंजर स्थानों व जंगलों में पाए जाने वाले पौधे ही पोषक तत्वों की प्रतिपूर्ति के लिए कीड़ों को मारते हैं। लेकिन नए शोध से ज्ञात हुआ है कि घरेलू किचन गार्डन में लगे पौधों में भी यह हिंसक आचरण मौजूद रहा है।
आलू-टमाटर मांसाहारी, खान-पान पर संकट भारी
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (17) Happy Children's Day

 
ब्लॉगर्स मीट वीकली (17) बाल दिवस की शुभकामनाएं
 
सबसे पहले मेरे सभी ब्लॉगर  साथियों को प्रेरणा अर्गल का प्रणाम और सलाम /बाल दिवस के मोके पर हमें अपने बच्चों को ये शिक्षा देनी है की आने वाले समय में भारत देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो /जिससे हमारा देश उन्नति के पथ पर अग्रसर हो /
सबसे पहले में ब्लोगर्स मीट वीकली (१७) के मंच पर इस मंच के सभापति आ .शास्त्रीजी का अभिनन्दन करती हूँ /जिनका आशीर्वाद हमेशा इस मंच को मिलता रहे /आप सभी का भी स्वागत करती हूँ कि आप सब पधारें और अपने अनमोल विचारों से हमें कृतार्थ करें /                        
 ब्लॉगर्स मीट वीकली (17)
      आदरणीय रूपचंद शास्त्रीजी  
आज सबसे पहले मंच की पोस्ट्स 

 अनवर जमाल जी की रचनाएँ 

  अख्तर  खान  "अकेला जी "   की रचनाएँ

डॉ.अयाज अहमद जी की रचना 

मंच के बाहर की पोस्ट   

 कैलाश सी.शर्मा जी की रचना 

एक बार बचपन मिल जाये 

अशोक कुमार शुकला जी की रचना 
सत्यम शिवम जी की रचना 

दिव्या जी की रचना 

अना जी की रचना 

जलधि विशाल

रश्मि प्रभा जी की रचना 

प्रदीप नील जी की रचना 


प्रवीण पांडे जी की रचना 

अनिता जी की रचना 
अंजू चौधरी जी की रचना 
 
दीनदयाल शर्मा जी की रचना 
कविता रावत जी की रचना 

कार्टून:- हर बात का मतलब हो, ज़रूरी तो नहीं

काजल कुमार  



साधना वैद जी की ताज़ा पोस्ट

बाल दिवस --- एक चिंतन

 प्रति दिन एक करोड़ बच्चे सर पर छत के अभाव में आधा पेट खाना खाकर सड़कों पर ही रात गुजारने के लिये मजबूर होते हैं !

मस्सों का घरेलू इलाज 

कुमार राधा रमण जी 


हर कोई खूबसूरत चेहरे की कामना करता है, लेकिन इस खूबसूरत चेहरे पर जब कोई दाग, मुंहासे या मस्से इत्यादि हों तो चेहरा एकदम बिगड़ सा जाता है।

एक चाहत थी... 

महेश बारमाटे 'माही'

एक चाहत थी,तुमसे मिलने की...गर पूरी हो पाती तो...एक चाहत थी,तेरे संग कुछ वक़्त साथ बिताने की...गर पूरी हो पाती तो...एक चाहत थी,तेरे संग हंसने गाने की...गर पूरी हो पाती तो...एक चाहत थी... 'ब्लॉग की ख़बरें' पर 

प्रिय प्रवीण शाह जी का एक यादगार कमेंट Eid ul azha

ब्लॉगिंग की दुनिया में ऐसा कम ही होता है कि कोई कमेंट एक यादगार कमेंट बन जाए। इल्म ए जफर का उसूल है कि हरेक सवाल में ही उसका जवाब छिपा होता है.
'मुशायरा' ब्लॉग पर

जितनी बंटनी थी बंट चुकी ये ज़मीं


जितनी बंटनी थी बंट चुकी ये ज़मीं,
अब तो बस आसमान बाकी है |
सर क़लम होंगे कल यहाँ उनके,
जिनके मुंह में ज़बान बाक़ी है ||

शिल्पा मेहता जी की एक यादगार पोस्ट
कुर्बानी क्या होती है ?
कुर्बानी का अर्थ 'त्याग' है . 
यह पोस्ट कई अर्थों में एक यादगार पोस्ट है. 
शिल्पा जी के सवालों का जवाब देती हुई एक पोस्ट  

मानव जाति की समस्याओं का सच्चा समाधान है इस्लामी हज और क़ुरबानी Qurbani 

हम अपने दैनिक क्रिया कलाप करते हुए ईश्वर का अनुग्रह और ईश्वर का सामीप्य पा सकते हैं बल्कि यही तरीक़ा है जो ईश्वर ने हमारे लिए अनिवार्य किया है।
हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम से पहले के और उनके बाद के नबियों ने यही बताया है।

 अंत में एक 'परिचर्चा'

कौन कितने तत्व का बना है ?

जब लोगों से यह कहा जाता है कि वनस्पति की तरह मवेशी पशु भी मनुष्य का जायज़ आहार हैं तो कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि पेड़ पौधे एक तत्व के बने होते हैं।
किसने कह दिया है कि पेड़ पौधों में एक तत्व होता है ?
जबकि पेड़ पौधों में जल, वायु, मिट्टी, अग्नि और आकाश सभी तत्व पाए जाते हैं।
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अंदाज ए मेरा: माथे पर लिख दिया- दत्‍तक बालिका....!!!!!

अंदाज ए मेरा: माथे पर लिख दिया- दत्‍तक बालिका....!!!!!: सरकारी योजनाएं जनता के भले के लिए होती हैं लेकिन जब सरकारी योजनाओं के माध्‍यम से जनता का मजाक बनने लग जाए या फिर मासूम बचपन को सरकारी योजन...
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सर क़लम होंगे कल यहाँ उनके, जिनके मुंह में ज़बान बाक़ी है


जितनी बंटनी थी बंट चुकी ये ज़मीं,
अब तो बस आसमान बाकी है |
सर क़लम होंगे कल यहाँ उनके,
जिनके मुंह में ज़बान बाक़ी है ||
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/11/blog-post_7018.html
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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    12 years ago

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