अवैध संबंधों के शक में धड़ाधड़ हो रही हैं बेटियों-बीवियों की हत्याएं


आनंद बाइक मैकेनिक था। उसने अपनी दो बेटियों और अपनी बीवी की हत्या की और फिर खुद भी फांसी पर लटक गया।
यह घटना कल गुड़गांव के सूरत नगर में हुई। इस घटना की जांच जो भी होगी, सामने आ जाएगी।
इस तरह की घटनाओं में ज़्यादातर शक ही सामने आया है। नए ज़माने में पढ़े लिखे लोगों का जीने का ढर्रा बदल चुका है। बेटियां और बीवियां बाहर जाएंगी तो वे कुछ भी कर सकती हैं, अच्छा भी और बुरा भी।
ज़माने का चलन बुरा है तो बुरा करने के इम्कान ज़्यादा हैं।
लोग पुराना ज़हन लेकर नए चलन के समाज में कैसे जी पाएंगे ?
चक्की के इन्हीं दो पाटों के बीच आज लोग पिस रहे हैं।
नई तहज़ीब की तरक्क़ी इंसान और इंसानियत के ख़ून से हो रही है।

और यहां भी एक पूरी कहानी मौजूद है-

मुझे गालियां देने वाले इस देश, समाज और मानवता का अहित ही कर रहे हैं Abusive language of so called 


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सोचने को विवश करते कुछ प्रचलित शब्द

हमारे, आपके, प्रायः सबके जीवन में जाने अनजाने कुछ शब्दों के ऐसे प्रयोग होते रहते हैं जिनके शाब्दिक अर्थ कुछ और लेकिन उनके प्रचलित अर्थ कुछ और। मजे की बात है कि शब्दार्थ से अलग (कभी कभी विपरीत भी) अर्थ ही सर्व-स्वीकार्य भी हैं। इस प्रकार के कुछ शब्दों को को समेटते हुए प्रस्तुत है यह लघु आलेख।

मृतात्मा - अक्सर अखबारों में, समाचारों में, शोक सभाओं में इस शब्द का प्रयोग होता है। लोग प्रायः कहते हैं कि "मृतात्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन"। अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि "क्या आत्मा भी मरती है?" यदि हाँ तो फिर उन आर्ष-वचनों का क्या होगा जिसमें हजारों बार कहा गया है कि "आत्मा अमर है।" या फिर गीता के उस अमर श्लोक - "नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि -----" का क्या होगा? फिर अगर आत्मा नहीं मरती तो इस "मृतात्मा" शब्द के प्रयोग का औचित्य क्या है?

आकस्मिक मृत्यु - ये शब्द भी धड़ल्ले से प्रयोग हो रहे हैं लेखन और वाचन में भी। इस संसार में किसी की भी जब स्वाभाविक मृत्यु होती है तो आकस्मिक या अचानक ही होती है। किसी की मृत्यु क्या सूचना देकर आती है? क्या इस तरह का कोई उदाहरण है? शायद नहीं। मेरे समझ से ऐसा हो भी नहीं सकता। मृत्यु हमेशा आकस्मिकता की ओर ही ईशारा करती है। फिर "आकस्मिक मृत्यु" शब्द के लगातार प्रयोग से उलझन पैदा होना स्वाभाविक है।

दोस्ताना संघर्ष - राजनीति की दुनिया में, जब से "गठबन्धन संस्कृति" का आविर्भाव हुआ है, इस शब्द का प्रयोग खूब प्रचलन में है जबकि इसमे प्रयुक्त दोनों शब्दों के अलग अलग अर्थ एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं। जब दोस्ती है तो संघर्ष कैसा? या फिर जब आपस में संघर्ष है तो दोस्ती कैसी? शायद आम जनता की आँखों पर गठबन्धन धर्म की आड़ में शब्दों के माध्यम से पट्टी बाँधने की कोशिश में इसका जन्म हुआ है।

दर्पण झूठ न बोले - ये कहावत न जाने कब से हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है और आम जीवन में खूब प्रचलित भी है। हम सभी जानते हैं कि "दर्पण बोल नहीं सकता" चाहे वो झूठ हो या सच। दर्पण सिर्फ हमारे प्रतिबिम्बों को दिखला सकता है। यदि और एक परत नीचे जाकर सोचें तो दर्पण मे दिखने वाला प्रतिबिम्ब भी पूरी तरह सच नहीं है बल्कि विपरीत है। बायाँ हाथ दर्पण में दाहिना दिखलाई देता है। मगर "दर्पण झूठ न बोले" प्रयोग हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे।

एक दिन दर्पण के सामने खड़ा इसी सोच में डूबा था कि तत्क्षण कुछ विचार आये जो गज़ल की शक्ल में आपके सामने है -

छटपटाता आईना

सच यही कि हर किसी को सच दिखाता आईना
ये भी सच कि सच किसी को कह न पाता आईना

रू-ब-रू हो आईने से बात पूछे गर कोई
कौन सुन पाता इसे बस बुदबुदाता आईना

जाने अनजाने बुराई आ ही जाती सोच में
आँख तब मिलते तो सचमुच मुँह चिढ़ाता आईना

कौन ऐसा आजकल जो अपने भीतर झाँक ले
आईना कमजोर हो तो छटपटाता आईना

आईना बनकर सुमन तू आईने को देख ले
सच अगर न कह सका तो टूट जाता आईना

यूँ तो इस तरह के और कई शब्द हैं, खोजे जा सकते हैं लेकिन आज इतना ही।
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फ़क़ीरी में भी बादशाही के मज़े दिला सकती है औरत




अच्छी आदतों की मालिक नेक और पाकदामन औरत किसी फ़क़ीर के घर में भी हो तो उसे बादशाह बना देती है।
-शैख़ सादी रहमतुल्लाह अलैहि

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बेडरूम लाइफ़ सेहत और उम्र पर असर डालती है

स्वस्थ रहने में सहायक 
एक स्टडी कहती है कि यदि हफ्ते में दो बार अच्छा सेक्स करेंगे तो शरीर में ऐंटिबॉडीज का लेवल बढ़ेगा जिससे शरीर की कोल्ड और फ्लू से रक्षा होगी। और जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, स्टडी कहती है कि, उन्हें इन चीजों से दो-चार ज्यादा होना पड़ता है। 

तो दोस्तो, जितना जरूरी हफ्ते में 5 दिन ऑफिस में 'काम' करना है, उतना ही जरूरी हफ्ते में दो दिन बेडरूम में 'काम' करना है।
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बस दिल्ली का समाचार है

सबसे पहले हम पहुँचे।
हो करके बेदम पहुँचे।
हर चैनल में होड़ मची है,
दिखलाने को गम पहुँचे।

सब कहने का अधिकार है।
चौथा-खम्भा क्यूँ बीमार है।
गाँव में बेबस लोग तड़पते,
बस दिल्ली का समाचार है।

समाचार हालात बताते।
लोगों के जज्बात बताते।
अंधकार में चकाचौंध है,
दिन को भी वे रात बताते।

चौथा - खम्भा दर्पण है।
प्रायः त्याग-समर्पण है।
भटके हैं कुछ लोग यही तो,
सुमन-भाव का अर्पण है।
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मंत्री को गाली देने वाला मेंबर असेंबली सस्पेंड


11 सदस्यीय कमेटी की सिफ़ारिश पर डिप्टी स्पीकर का फ़ैसला
जयपुर। वज़ीर मुमलकत बराय सेहत राजकुमार शर्मा को असेंबली में गाली देने वाले मेंबर असेंबली हनुमान बेनीवाल को कल असेंबली से निलंबित कर दिया है।
ज़्यादा देखना हो तो यहां देखो

MLA Hanuman Beniwal suspended from assembly

Rajasthan MLA Hanuman Beniwal suspended for a year from the assembly for using foul language against a minister during assembly session. Hanuman Beniwal, who represents Khinsar assembly constituency in Nagaur district, was suspended by Deputy Speaker Ramnarayan Meena when two ministers in the state cabinet including Minister of State for Health Rajkumar Sharma staged a sit-in demanding action the legislator. It was alleged that Beniwal had used abusive language against Sharma Monday. Beniwal and Sharma had come close to a fistfight Monday after a heated exchanged of words.
The two legislators shed their ‘parliamentary behaviour’ and almost came to blows with each other, before fellow MLAs intervened and separated them.  It all started when Rajkumar Sharma was replying to a debate on state initiatives in the health sector and Beniwal suddenly got up and alleged that ministers go with sweets to the legislators when their questions are listed for debate in the Assembly. Sharma was quick to warn Beniwal and asked him to mind his language, which angered the Khinwsar MLA. who reminded Sharma’s of his days in the University of Rajasthan in language laced with expletives. An enraged Sharma then challenged Beniwal. The assembly was disrupted over the issue by the ruling Congress party members several times since Tuesday morning. After Beniwal's suspension, the opposition also staged a walk-out demanding suspension of Sharma also. Elected on a Bharatiya Janata Party ticket, Beniwal was suspended in December 2011 from the party for publicly condemning former chief minister Vasundhra Raje and other senior party leaders.

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खार में भी प्यार है

वक्त के संग चल सके तो, जिन्दगी श्रृंगार है
वक्त से मिलती खुशी भी, वक्त ही दीवार है

वक्त कितना वक्त देता, वक्त की पहचान हो
वक्त मरहम जो समय पर, वक्त ही अंगार है

वक्त से आगे निकलकर, सोचते जो वक्त पर
वक्त के इस रास्ते पर, हर जगह तलवार है

क्या है कीमत वक्त की, जो चूकते, वो जानते
वक्त उलझन जिन्दगी की, वक्त से उद्धार है

वक्त होता क्या किसी का, चाल अपनी वक्त की
उस रिदम में चल सुमन तो, खार में भी प्यार है
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fact n figure: निर्मल बाबा ही क्यों......!

यदि मैं निर्मल बाबा की जगह होता तो इस वक़्त सुल्तान अख्तर का यह शेर पढता-

'अपने दामन की स्याही तो मिटा लो पहले
मेरी पेशानी पे रुसवाइयां जड़ने वालो!'

स्टार न्यूज़ पर निर्मल बाबा की अग्नि-परीक्षा कार्यक्रम देख रहा था. उसमें निर्मल बाबा का विरोध करते हुए एक सज्जन ने कहा की गाय को रोटी खिलाना तो ठीक है लेकिन गधे को घास मत खिलाइए. सवाल उठता है कि क्या गधा जीव नहीं है. उसे आहार देना गलत है. कुत्ते की पूंछ पर भी उन्हें आपत्ति थी. जीव-जंतुओं के प्रति दो भाव रखने वाले लोग जब धर्म और अध्यात्म की बातें करें तो इसे क्या कहा जाये. एक बच्चा जब निर्मल बाबा के पक्ष में कुछ बोलना चाहता था तो उसे यह कहकर चुप करा दिया कि उन जैसे बुद्धिजीवियों के होते हुए बच्चे से क्या पूछते हैं. यानी वे स्वयं को आध्यामिक और बुद्धिजीवी दोनों मान रहे थे. दूसरे पक्ष को वे कुछ बोलने ही नहीं दे रहे थे. यह गैरलोकतांत्रिक आचरण था. मेरे ख्याल में तो वे न आध्यात्मिक हो सकते थे, न बुद्धिजीवी और न ही लोकतान्त्रिक. बुद्धिजीवी सभी पक्षों की बातें ध्यान से सुनते और अपने तर्कों के जरिये अपनी बात मनवाते हैं. वे तो पूरी तरह पूर्वाग्रह से ग्रसित और ईष्यालु किस्म के व्यक्ति लग रहे थे. एक और आपत्तिजनक बात यह कही गई कि समस्याओं से घिरे कमजोर बुद्धि के लोग ही निर्मल बाबा के पास जाते हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि लाखों लोग निर्मल बाबा को मानते हैं और किसी न किसी रूप में उनसे जुड़े हुए हैं. तो क्या सभी कमजोर बुद्धि के लोग हैं. यदि यह विचार व्यक्त करने वाले कुशाग्र बुद्धि के हैं तो उनके पीछे कोई जमात क्यों नहीं है. कुल मिलाकर तीन घंटे के इस कार्यक्रम का कुछ फलाफल नहीं निकला. एक तरफ यह स्वीकार किया गया कि तीसरी आंख अथवा छठी इन्द्रिय का अस्तित्व होता है. महाभारत के ध्रितराष्ट और संजय का उदाहरण दिया गया. यह हर व्यक्ति के अन्दर किसी न किसी मात्रा में मौजूद रहता है. उसे कभी-कभी घटनाओं का पूर्वाभास होता है. पशु-पक्षियों में यह और अधिक विकसित होता है. तभी तो वे प्राकृतिक आपदाओं के समय विचित्र हरकतें करने लगते हैं. योग साधना के जरिये इसे और जागरूक किया जा सकता है. लेकिन निर्मल बाबा के पास इसके जागरूक होने पर सवाल उठाया गया. समस्याओं के निदान के उनके बताये गए उपायों की खिल्ली उड़ाई गई. सवाल उठता है कि क्या अन्धविश्वास की शुरूआत निर्मल बाबा से हुई और इसका अंत भी उन्हीं से होगा. यहां तो हर कदम पर अन्धविश्वास के प्रतिमान भरे हैं जनाब. और भक्तों से मिली रकम का किस बाबा ने निजी इस्तेमाल नहीं किया. बाबा रामदेव आज यदि 11  सौ करोड़ के मालिक हैं तो कोई खेत बेचकर संपत्ति नहीं बनाई है. आसाराम बापू या उन जैसे बाबाओं का पूरा कुनबा अपने भक्तों के सहयोग से ही करोडो-करोड़ में खेलते हैं. क्या ऐसा कोई बाबा अभी मौजूद है जिसे भारतीय अध्यात्म का आदर्श पुरुष कहा जा सके. अध्यात्म की गहराइयों में उतरे हुए महात्माओं का यहां क्या काम. वे अपने आप में मस्त किसी गुफा किसी कन्दरा में पड़े मिलेंगे. निर्मल बाबा सिर्फ समस्याओं से घिरे लोगों को उससे निजात पाने के उपाय बताते हैं. बहुत ही आसन उपाय. यहां तो ज्योतिषाचार्य लाखों के रत्न पहनने की सलाह दे डालते हैं. मान्त्रिक सवा लाख जाप करने के नाम पर हजारों रूपये ले लेते हैं. तांत्रिक भरी-भरकम रकम लेकर अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं. फिर निर्मल बाबा ही क्यों. और लोग क्यों नहीं.

----देवेंद्र गौतम

fact n figure: निर्मल बाबा ही क्यों......!:

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किताबघर


बेनीपुरी साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन



पुस्तक- बेनीपुरी की साहित्य-साधना, लेखक- डा0 कमलाकांत त्रिपठी
प्रकाशक- पुस्तक पथ, वाराणसी, वितरक- शारदा संस्कृत संस्थान, सी. 27/59, जगतगंज, वाराणसी-221002, मूल्य- 350 रूपये (पेपर बैक)।


डा0 कमलाकांत त्रिपठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘बेनीपुरी की साहित्य साधना’ भारतीय ग्राम्य जीवन और आदर्शोन्मुक्त यथार्थवाद के प्रतिनिधि कथाकार रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य को समग्रता में व्यक्त करते हुए उसे वर्तमान जीवन के विविध आयामों में व्याख्यायित करती है। यह पुस्तक बेनीपुरी के जीवन-कार्य तथा साहित्य साधना का सर्वांगीण परिचय ही नहीं प्रस्तुत करता बल्कि उनके कार्य तथा साधना का सूक्ष्म विशलेषण कर उन समस्त विशेषताओं को अधोरेखित भी करता है जो व्यक्ति बेनीपुरी तथा लेखक बेनीपुरी को अलग कर देता है।
पुस्तक के प्रथम दो अध्यायों में लेखक ने बेनीपुरी के साहित्य साधना के लगभग सभी पक्षों पर दृष्टिपात किया है। कथामकता को आधार बनाते हुए उन्होने बेनीपुरी साहित्य को दो प्रधान वर्गों में विभाजित किया है- कथा-साहित्य और कथेतर-साहित्य। तृतीय अध्याय में डा0 त्रिपाठी ने प्रेरण स्रोत, विषयोपन्यास, सैद्धांतिक मान्यताएं तथा कथ्य उपशीर्षकों के अन्तर्गत बेनीपुरी के साहित्य की विशेषताओं को अंकित किया है। अन्य कतिपय विशिष्टताओं के साथ-साथ बेनीपुरी साहित्य का जनवादी पक्ष लेखक को सर्वोपरी लगता है। उन्होने लिखा है- ‘‘जनता के साहित्यकार बेनीपुरी ने जनता के पक्ष को जनता की भाषा दी। उनका यह जनवादी पक्ष उनके साहित्य में सर्वत्र मुख्य है।’’ बेनीपुरी की कथ्यगत विशिष्टताओं की चर्चा में लेखक लिखता है- ‘‘उनका भाव लोकसंघर्ष के साथ आनन्द का भी है। परिस्थितयों के संघर्ष में क्रांतिकारी और संघर्ष की समाप्ति के बाद उल्लास के गायक का रूप-दर्शन बेनीपुरी में होगा।
शैलीकार की भाषा का पूरा विश्लेषण तब तक अधुरा माना जाता है जब तक साहित्यिक भाषा की समग्र प्रक्रिया उसके विविध स्तरों की संरचना के आधार पर सोदाहरण स्पष्ट नहीं की जाती। डाॅ0 त्रिपाठी ने पुस्तक के चतृर्थ अध्याय ‘बेनीपुरी की भाषा शैली’ में यह कार्य बड़ी सुक्ष्मता, गहन विश्लेषण क्षमता के साथ किया है। तुलनात्मक विवेचना का आधार ग्रहण करते हुए लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि भाषा के प्रत्येक स्तर के इकाई का चयन करते हुए बेनीपुरी ने किस प्रकार प्रभाव विस्तार का ध्यान रखा है। बेनीपुरी के गद्य के शब्द-वर्ग, वाक्य-विन्यास, परिच्छेद, विराम-चिन्ह, मुहावरें-कहावतें आदि सभी इकाईयों की उपयोगिता तथा अनुकूलता की चर्चा सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव विस्तार के आधार पर साहित्य भाषा का सही आकलन प्रस्तुत किया है।
डा0 कमलाकांत त्रिपाठी का ग्रन्थ बेनीपुरी की साहित्य साधना बेनीपुरी की विशिष्टता के आकलन का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। बेनीपुरी साहित्य पर अधावधि प्रकाशित प्रबन्धों में यह प्रबंध अपना अलग स्थान रखता है। साहित्य के अध्येताओं की आकलन परिधि के विस्तार की दृष्टि से यह निश्चय ही उपयोगी रचना है।


एम अफसर खां सागर

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हलाल रिज़्क़ बच्चों की कामयाबी का ज़ामिन


गोरखपुर। रिज़्क़ से बरकत ग़ायब, घरों का सुकून ग़ारत, हर तरफ़ नाचाक़ी व नाइत्तेफ़ाक़ी, वालिदैन की नाफ़रमानी, लोगों की बदहवासी व परेशानी का सबब यह है कि लोगों ने दुनिया तलबी और पैसों की चाहत में हलाल व हराम का फ़र्क़ ख़त्म कर दिया है। ऐसे नाज़ुक वक्त में दुखतराने इस्लाम (इस्लाम की बेटियों) की ज़िम्मेदारियां कुछ ज़्यादा हो गई हैं। वो अपने मर्दों को हराम की कमाई से रोकें और अपने बच्चों की परवरिश हलाल के रिज़्क़ से करें।
इन ख़यालात का इज़्हार बंगाल से आई आलिमा सिददीक़ा इमाम ने कल रात गोरखनाथ इमाम बाड़े के क़रीब औरतों के एक बड़े इज्तमा को खि़ताब करते हुए किया।
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कुछ लोगों की फितरत है

मान बढ़ाकर, मान घटाना, कुछ लोगों की फितरत है
कारण तो बस अपना मतलब, जो काबिले नफ़रत है

गलती का कठपुतला मानव, भूल सभी से हो सकती
गौर नहीं करते कुछ इस पर, कुछ की खातिर इबरत है

आज सदारत जो करते हैं, दूर सदाकत से दिखते
बढ़ती मँहगाई को कहते, गठबन्धन की उजरत है

कुछ पानी बिन प्यासे रहते, कुछ पानी में डूब रहे
किसे फिक्र है इन बातों की, ये पेशानी कुदरत है

जागो सुमन सभी मिलकर के, बदलेंगे हालात तभी
फिर आगे ऐसा करने की, नहीं किसी की जुर्रत है

इबरत - नसीहत, बुरे काम से शिक्षा
उजरत - बदला, एवज में
पेशानी - किस्मत
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (39) Nirmal Baba ki tisri aankh

मालिक हम सब को शांति दे !
आमीन .
शांति के साथ सबसे पहले हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल की ताज़ा पोस्ट्स का लुत्फ़ उठाइये
1- श्यामल सुमन

खबरों की अब यही खबर है

देश की हालत बुरी अगर हैसंसद की भी कहाँ नजर है

सूर्खी में प्रायोजित घटनाखबरों की अब यही खबर है


सुमन अंत में सो जाए

कैसा उनका प्यार देख ले 

आँगन में दीवार देख ले

दे बेहतर तकरीर प्यार पर

फिर उनका तकरार देख ले  

चेतना

कहीं बस्ती गरीबों की कहीं धनवान बसते हैं

सभी मजहब के मिलजुल के यहाँ इन्सान बसते हैं

भला नफरत की चिन्गारी कहाँ से आ टपकती है,

जहाँ पर राम बसते हैं वहीं रहमान बसते हैं

3- डा. अयाज़ अहमद

हमने बादल देख के मटके फोड़ लिए थे

तुम से मिल कर सबसे नाते तोड़ लिए थे 
हमने बादल देख के मटके फोड़ लिए थे

 4- डा. अशोक कुमार

सितारा बन जगमगाते रहो

दर्द कैसा भी हो आंख नम न करो,रात काली सही कोई गम न करो ।

एक सितारा बनो जगमगाते रहो,जिंदगी मेँ सदा मुस्कुराते रहो

5- Devendra Gautam

fact n figure: निर्मल बाबा के विरोध का सच

निर्मल बाबा की पृष्ठभूमि खंगाली जा रही है. प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया और इन्टरनेट मीडिया तक ने उनके विरुद्ध हल्ला बोल दिया है.  

fact n figure: कृपा के कारोबार में टीवी चैनलों की भूमिका

निर्मल बाबा का ईश कृपा का कारोबार पूरी तरह इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बदौलत चल रहा है. प्रिंट मीडिया ने साथ उनका कोई लेना देना नहीं रहा.

fact n figure: अपना ही गिरेबां भूल गए निर्मल बाबा

आज तक चैनल पर निर्मल बाबा का इंटरभ्यू उनपर लगे आरोपों का खंडन नहीं बन पाया. किसी सवाल का वे स्पष्ट जवाब नहीं दे सके.

जाने किस उम्मीद के दर पे खड़ा था.

जाने किस उम्मीद के दर पे खड़ा था. 

बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था. 

6- Dr. Anwer Jamal

देबी प्रसाद चटटोपाध्याय की ‘लोकायत‘ पर चर्चा बनी ब्लॉगर्स मीट में देरी की वजह


आज हमारे एक पुराने मित्र आ गए। वेद, क़ुरआन, साइंस और इतिहास पर उनसे चर्चा चली तो वह 5 घंटे तक चली। अभी अभी उठकर गए हैं। अब रात के 3 बजने वाले हैं। यही टाइम था जबकि हम ब्लॉगर्स मीट वीकली 39 की तैयारी करते। 

ब्लॉगर्स मीट वीकली (38) Human Nature


अस्-सलामु अलैकुम और ओउम् शांति के बाद, आप सभी का हार्दिक स्वागत है हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल की ताज़ा पोस्ट्स के साथ  
डॉ. श्यामल सुमन 
भाई से प्रतिघात करोमजबूरी का नाम न लो मजबूरों से काम न लो वक्त का पहिया घूम रहा है व्यर्थ कोई इल्जाम न लो  खुदा भी क्या मौसम देते हैं खुशियाँ जिनको हम देते हैंवो बदले में गम देते हैंजख्म...
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मंच से बाहर ब्लॉग जगत की ताज़ा ख़बर वही पुरानी ख़बर है जिसका तज़्करा देवेन्द्र पाण्डेय जी कर रहे हैं

ब्लॉग चर्चा

हम परेशान हैं। ईर्ष्या और जलन से हमारी छाती फटी जा रही है।

उनकी जलन दूर करने के लिए हमने एक लिंक का फ़व्वारा उन पर छोड़ा है। 


"खादी का अपमान किया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

नर ही नारायण बनकर, कल्याण स्वयं का करते हैं
भोले-भालों को भरमाकर, अपनी झोली भरते हैं
मकड़ी के जालों में उलझी, जनता सीधी-सादी है

 

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खुद कृपा के लिए लाचार है निर्मल बाबा ...


निर्मल बाबा मुश्किल में हैं, भक्तों के लिए ईश्वर की कृपा का रास्ता खोलने वाले बेचारे बाबा अब खुद कृपा के लिए लाचार हैं।

...उनकी अपील के बाद इक्का दुक्का फोन ही टीवी चैनल्स के दफ्तरों में पहुंचे, जो बाबा के गुण गा रहे हैं। बल्कि बाबा की ठगी के शिकार  भक्त ज्यादा फोन कर रहे हैं।
बताओ कोई भक्त मुश्किल में है, उससे ये बाबा पूछता है कि तुम्हारे सामने मुझे आलू की टिक्की क्यों दिखाई दे रही है।

लोग ऐसी बातें देख धर्म से भी दूर हो जाते हैं इसीलिए हमने सदा ही ऐसे लोगों का विरोध किया है लेकिन हरेक बाबा के भक्त अपने बाबा को ठीक मानते हैं।
ईश्वर के स्वरूप और मनुष्य के लिए उसकी योजना और आदेश को जब तक न जाना जाएगा तब निर्मल बाबा टाइप के व्यापारियों से बचना असंभव है। 



कुँवर कुसुमेश 

प्रतिदिन होता जा रहा,मौसम तुनक मिज़ाज.

मानो गिरने जा रही, हम पर कोई गाज.

भ्रष्ट कौन (लघु कथा)

संगीता तोमर Sangeeta Tomar at नुक्कड़

पर दिनेश रविकर जी की टिप्पणी
ग्यानी ध्यानी शिक्षिका, जाने सब गुण-दोष ।
मुखड़ा अपना न लखे,  दर्पण अति-अफ़सोस ।

दर्पण अति-अफ़सोस, दूध में बड़ी कमाई ।
गर परचून दूकान, मिलावट हर घर आई ।

पुलिस भ्रष्टतम किन्तु, गौर कर मूर्ख सयानी ।
गंदे वाणी-कर्म, बनी फिरती है ग्यानी ।।

नारियां भी कम भ्रष्ट नहीं.
10 Most Corrupt Indian Politicians 

इस सच्चाई से भी हम इंकार नहीं कर सकते कि कितनी ही गृहणियां  अपने पतियों को भ्रष्टाचार  के लिए उकसाती हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने हेतु दबाव डालती हैं.


          -ममी! इस बार कितने दिन के लिये आई हो? शिप्रा ने आईने पर से नज़र हटाते हुए मेरी ओर देखते हुए पूछा तो मैं खिलखिला कर हँस दी।  शिप्रा को बाँहों में भरते हुए मैंने कहा- मेरी बेटी जब तक चाहेगी मैं उसके पास रह लूँगी।            
-अगर मैं वापिस ही न जाने दूँ...?
प्यारी माँ ब्लॉग पर 
साधना वैद

सूर्यास्त


मैं धरा हूँ रात्रि के गहन तिमिर के बाद भोर की बेला में जब तुम्हारे उदित होने का समय आता है मैं बहुत आल्हादित उल्लसित हो तुम्हारे शुभागमन के लिए पलक पाँवड़े बिछा अपने रोम रोम में निबद्ध अंकुरों को कुसुमित पल्लवित कर तुम्हारा स्वागत करती हूँ ! 

कम आयु में विवाह करना ही है बेहतर विकल्प !!

एक समय था जब बच्चों के विवाह संबंधी लगभग सभी फैसले परिवार के बड़े और उनके माता-पिता अपनी सूझबूझ से ले लिया करते थे. बच्चों का विवाह किस उम्र में किया जाना चाहिए और उनके लिए कैसा जीवनसाथी उपयुक्त रहेगा आदि ...

बाप रे बाप, 600 बच्चों का एक बाप!


अपने पिता बर्टोल्ड वाइजनर की तस्वीर के साथ बैरी स्टीवंस। (साभार: डेली मेल)पीटीआई ।। लंदन/ हाल ही में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि ब्रिटेन के एक जानेमाने वैज्ञानिक करीब 600 बच्चों के पिता थे।

वालिदैन (मां बाप)

मां बाप हैं अल्लाह की बख्शी हुई नेमत 

मिल जाएं जो पीरी में तो मिल सकती है जन्नत 

बड़ा ब्लॉगर कैसे बनें ? ब्लॉग पर 

यौन शिक्षा देता है बड़ा ब्लॉगर

आत्मा कहां से आती है कोई नहीं जानता लेकिन जिस मार्ग से मनुष्य शरीर आता है, उसे सब जानते हैं। ज्ञात के सहारे अज्ञात का पता लगाना मनुष्य का स्वभाव है। आत्मा, परमात्मा और परमेश्वर सब कुछ अज्ञात है। अगर हमें कुछ ज्ञात है तो वह मनुष्य शरीर है या फिर वह मार्ग जहां से वह आता है। ‘इश्क़े मजाज़ी‘ का मार्ग यही है और ‘इश्क़े हक़ीक़ी‘ तक भी पहुंचने के लिए ‘इश्क़े मजाज़ी‘ लाज़िम है।
इसी रास्ते की खोज ने आदमी को वैज्ञानिक बना दिया।
Dr. Arvind Mishra 

बच्चों को नहीं यहाँ प्रौढ़ों को यौन शिक्षा की जरुरत है !

 दो मुख्य यौन रसायन -टेस्टोस्टेरान  और इस्ट्रोजेन का उत्पादन मस्तिष्क शुरू करता है -यह वही अवसर है जब विपरीत लिंग के प्रति जबरदस्त आकर्षण होता है .
ब्लॉग की ख़बरें पर ब्लॉग जगत की ताज़ा ख़बरें 

बलात्कार का पुरस्कार महिला सैनिक को ?

 
वाशिंगटन । अमरीकी फ़ौज में आबरू रेज़ी के वाक़यात में मुसलसल इज़ाफा हो रहा है.
रिपोर्ट में बताया गया है इन हमलों की बड़ी वजह शराबनोशी है.



हिंदी  ब्लॉग जगत की ताज़ा ख़बर
... की कविता पर गिनती के कुछ ऐतराज़ आये तो उन्होंने पहले तो अपनी बहुचर्चित कविता की

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Quranic Morals / Values - Solution to Issues of World - Urdu

قرآنی اخلاق دنیا کے مسائل کا حل A great documentary in Urdu language, highlighting some of the major issues of the world, and emphasizing that ...
by MrJafri110 3 months ago 33 views
चंद्र भूषण मिश्र जी की पेशकश चर्चा मंच पर  
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
 लिंक नं. 1-
क्षणिकाएँ-
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 सुरक्षित नहीं है अपने आप दवा लेना

पेन किलर्स हैं खतरनाक 
जब आप स्लीपिंग पिल्स और ऐंटिबायॉटिक अपनी मर्जी से लेते हैं , तो ये आपके लिए बेहद नुकसानदेह हो सकती हैं। खासतौर पर जब आपको नहीं पता कि आप इसके जरिए कौन से स्पेसिफिक कंपाउंड ले रहे हैं ? 
अच्छी सेहत के लिए देखें ‘तिब्बे नबवी‘ 

 

चुकंदर  लिवर,पित्ताषय,तिल्ली, और गुर्दे के विकारों को  लाभप्रद पाया गया है। इन अंगों के दूषित तत्वों को बाहर निकालने की शक्ति  चुकंदर में पाई गई है।

तकनीक का इस्तेमाल करने से हम निश्चित तौर पर खुद को काफी रिलैक्स यानी आराम की स्थिति में पाते हैं। अब यदि आपसे कहा जाए कि जितने भी गैजेट्स आपके पास हैं वह सब वापस कर दें और वैसे ही जिएं जैसे हमसे 3 दशक पहले की पीढिय़ां जीती थीं। क्या यह संभव होगा? 
मोबाइल फोन के रेडिएशन के खतरे बढ़ते जा रहे हैं लेकिन बड़ी-बड़ी कंपनियों के व्यापारिक हितों की वजह से ऐसे शोध सामने नहीं आ पा रहे हैं, जिनमें इससे स्वास्थ्य पर होने वाले नुकसान की पुष्टि हुई है।

लंबी उम्र के लिए कई मोर्चों पर चाक -चौबंद रहने की जरूरत पड़ती है।
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खबरों की अब यही खबर है

देश की हालत बुरी अगर है
संसद की भी कहाँ नजर है
सूर्खी में प्रायोजित घटना
खबरों की अब यही खबर है

खुली आँख से सपना देखो
कौन जगत में अपना देखो
पहले तोप मुक़ाबिल था, अब
अखबारों का छपना देखो

चौबीस घंटे समाचार क्यों
सुनते उसको बार बार क्यों
इस पूँजी, व्यापार खेल में
सोच मीडिया है बीमार क्यों

समाचार में गाना सुन ले
नित पाखण्ड तराना सुन ले
ज्योतिष, तंत्र-मंत्र के संग में
भ्रषटाचार पुराना सुन ले

समाचार, व्यापार बने ना
कहीं झूठ आधार बने ना
सुमन सम्भालो मर्यादा को
नूतन दावेदार बने ना
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देबी प्रसाद चटटोपाध्याय की ‘लोकायत‘ पर चर्चा बनी ब्लॉगर्स मीट में देरी की वजह

आज हमारे एक पुराने मित्र आ गए।
वेद, क़ुरआन, साइंस और इतिहास पर उनसे चर्चा चली तो वह 5 घंटे तक चली। अभी अभी उठकर गए हैं। अब रात के 3 बजने वाले हैं। यही टाइम था जबकि हम ब्लॉगर्स मीट वीकली 39 की तैयारी करते। अब सोते हैं।
सुबह उठकर मीट तैयार करेंगे या फिर शाम को।
हमारे मित्र डा. अनवार अहमद साहब ने हमें कुछ किताबें पढ़ने का सजेशन दिया। उनमें से एक है देबी प्रसाद चटटोपाध्याय की ‘लोकायत‘
आप में से किसी ने पढ़ी हो तो बताए कि कैसी लगी ?

Debiprasad Chattopadhyaya
Debiprasad Chattopadhyaya (Bengalisch: দেবীপ্রসাদ চট্টোপাধ্যায়, Debīprasād Caṭṭopādhyāẏ; * 19. November 1918 in Kolkata; † 8. Mai 1993 ebenda)
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सुमन अंत में सो जाए

कैसा उनका प्यार देख ले
आँगन में दीवार देख ले
दे बेहतर तकरीर प्यार पर
फिर उनका तकरार देख ले

दीप जलाते आँगन में
मगर अंधेरा है मन में
है आसान उन्हीं का जीवन
प्यार खोज ले सौतन में

अब के बच्चे आगे हैं
रीति-रिवाज से भागे हैं
संस्कार ही मानवता के
प्राण-सूत्र के धागे हैं

सुन्दर मन काया सुन्दर
ये दुनिया, माया सुन्दर
सभी मसीहा खोज रहे हैं
बस उनकी छाया सुन्दर

मन बच्चों सा हो जाए
सभी बुराई खो जाए
गुजरे जीवन इस प्रवाह में
सुमन अंत में सो जाए
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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