रहस्य-रोमांच: जिन्नात की शादी

आरा शहर की घटना है. लगभग 70  वर्ष पुरानी. लेकिन लोगों के बीच अभी भी कही-सुनी जानेवाली. 
आरा शहर का एक मोहल्ला है शिवगंज. वहां हाल के वर्षों तक रूपम सिनेमा हॉल हुआ करता था. उसके बगल की गली में एक बड़े ही विद्वान पुरोहित रहा करते थे जो अपनी ज्योतिष विद्या की जानकारी के लिए दूर-दूर तक जाने जाते थे. 
एक बार की बात है. रात के करीब 2 बजे वे दूसरे शहर के किसी जजमान के यहां से पूजा संपन्न कराकर लौट रहे थे. अपनी गली के मोड़ पर रिक्शा से उतर कर वे घर की और बढे ही थे कि अचानक एक गोरा चिटठा, लम्बा-चौड़ा आदमी उनके सामने आकर खड़ा हो गया. पंडित जी डर  गए. उन्होंने पूछा-'कौन हो भाई! क्या बात है?'
'आप डरें नहीं. मैं एक जिन्न हूं. आपसे बहुत ज़रूरी काम है.' उसने जवाब दिया.
'अरे भाई! एक जिन्नात को मुझसे क्या काम....'
'आपको एक सप्ताह बाद मेरी शादी करनी है. कर्मन टोला की एक युवती का देहांत उसी दिन होना है. उसी के साथ मेरी शादी आपको करनी है. मुहमांगी दक्षिणा दूंगा.'
'जिन्नात की शादी..? मैंने ऐसी शादी कभी कराई नहीं. इसका विधान भी मुझे नहीं मालूम.'
'पंडित जी! शादी तो आप ही को करनी है. कैसे आप जानें. आज से ठीक आठवें दिन आप रात के एक बजे अबर पुल पर आपका इंतज़ार करूँगा. आपको वहां समय पर पहुँच जाना होगा. यह बात किसी को बताना नहीं है.' इतना कहकर जिन्नात गायब हो गया.
पंडित जी घर पहुंचे. रात भर सो नहीं सके. दूसरे दिन तमाम शास्त्रों को पलट डाला लेकिन जिन्नात की शादी की विधि नहीं मिली. अंततः उन्होंने कई किताबों का अध्ययन कर एक अपना तरीका निकाला.
आठवें दिन पंडित जी! डरते-सहमते रात के एक बजे से पहले ही अबर पुल पर पहुँच गए. एक बजे...डेढ़ बजे..दो बज गए लेकिन जिन्न नहीं पहुंचा. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें. तभी अचानक झन्न की आवाज़ के साथ जिन्नात प्रकट हुआ. उसके चेहरे पर परेशानी झलक रही थी.
' माफ़ कीजिये पंडित जी! यह शादी नहीं हो सकेगी.'
'क्यों क्या हो गया.'
'वह लडकी मरी तो ज़रूर लेकिन मरने के वक़्त जब उसे ज़मीन पर लिटाया गया तो रुद्राक्ष का एक दाना उसके शरीर को छू रहा था. इसके कारण मरने के बाद वह सीधे शिवलोक चली गयी. अब वह वहां से वापस नहीं लौटेगी. इसलिए अब उसके साथ मेरी शादी नहीं हो पायेगी.'
उसने पंडित जी की ओर चांदी के  सिक्कों  की एक थैली बढ़ाते हुए कहा-'आप मेरे आग्रह पर यहां तक आये. इसे दक्षिणा समझ कर रख लीजिये. आपकी बड़ी मेहरबानी होगी.'
पंडित जी ने कहा कि जब शादी करवाई नहीं तो दक्षिणा कैसा. लेकिन जिन्नात उनके हाथ में थैली थमाकर  गायब हो गया.
पंडित जी घर वापस लौट आये. कई वर्षों तक उन्होंने इस घटना का किसी से जिक्र नहीं किया. बाद में अपने कुछ करीबी लोगों को यह घटना सुनाई. धीरे-धीरे लोगों तक यह किस्सा पहुंचा.

----छोटे 

रहस्य-रोमांच: जिन्नात की शादी:

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खबरगंगा: मैंने नेत्रदान किया है..और आपने ?


कई साल पहले की बात है ...शायद बी. एस सी. कर रही थी ..मेरी आँखों में कुछ परेशानी हुई तो डोक्टर के पास गयी..वहां नेत्रदान का पोस्टर लगा देखा... पहली बार इससे  परिचित हुई...उत्सुकता हुई तो पूछा, पर पूरी व सही जानकारी नहीं मिल पाई ....डॉक्टर ने बताया कि अभी हमारे शहर में ये सहूलियत उपलब्ध नहीं, पटना से संपर्क करना होगा ...फिर मै अपने कार्यों में व्यस्त होती गयी...सिविल सर्विसेस की तैयारी में लग गयी. हालाँकि इंटरव्यू  तक पहुँचने के बाद भी  अंतिम चयन नहीं हुआ ..पर इसमें कई साल निकल गए, कुछ सोचने की फुर्सत नहीं मिली...उसी दौरान एक बार टीवी पर ऐश्वर्या राय को नेत्रदान के विज्ञापन में देखा था....मुझे अजीब लगा कोई कैसे अपनी आंखे दे सकता है ?  आंखे न हो तो ये खूबसूरत दुनिया दिखेगी कैसे?  फिर सोचा जो नेत्रदान करते है वो निहायत ही भावुक किस्म के बेवकूफ होते होंगे.... कुछ साल इसी उधेड़-बुन में निकल गए...फिर एक आलेख पढ़ा और नेत्रदान का वास्तविक मतलब समझ में आया...' नेत्रदान' का मतलब ये है कि आप अपनी मृत्यु के पश्चात् 'नेत्रों ' के दान के लिए संकल्पित है...वैसे भी इस पूरे शरीर का मतलब जिन्दा रहने तक ही तो है....मृत्यु के बाद शरीर से कैसा प्रेम? मृत शरीर मानवता के काम आ जाये तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है, है न?. 


सोचिये, जिनके नेत्र नहीं, दैनिक जीवन  उनके लिए कितना दुष्कर है ... छोटे-छोटे कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भरता ..अपने स्नेहिल संबंधों को भी न देख पाने का दुःख ...कितनी  बड़ी त्रासदी है...यह कितना कचोटता होगा, है न! ....नेत्रहीन व्यक्ति के लिए ये खूबसूरत, प्रकाशमय दुनिया अँधेरी होती है (यहाँ बाते सिर्फ शारीरिक अपंगता की है,  कई ऐसे लोग है जो नेत्रों के नहीं होने पर भी  दुनिया को राह दिखने में सक्षम  हुए, जबकि कई नेत्रों के होते हुए भी अंधे है) .

बहरहाल, अभी कुछ महीने पहले फेसबुक पर ऐसे एक विज्ञापन को देखा.एक बार फिर 'नेत्रदान' की बाते जेहन में घूमने  लगी ..उस तस्वीर को मैंने अपने वाल पर भी लगाया...उसी एक क्षण में मैंने संकल्प लिया कि मुझे नेत्रदान करना है ..पता करने पर मालूम चला कि इसके लिए सरकारी अस्पताल में फॉर्म भरना होता है...हमारे छोटे से शहर में सदर अस्पताल है... वहां  जाकर फॉर्म माँगा तो कर्मचारी चौंक गया ..उसने ऊपर से नीचे तक घूरकर देखा, जैसे की  मै चिड़ियाघर से  भागा हुआ जानवर हूँ ..फिर शुरू हुई फॉर्म खोजने की कवायद ...कोना-कोना छान मारा गया पर फॉर्म नहीं मिला ( सोचिये, इतने हो-हल्ला  के बावजूद इस अभियान का क्या हाल है) ...कहा गया कि एक सप्ताह बाद आये ...गनीमत है एक सप्ताह बाद एक पुराना फॉर्म मिल गया ...हालाँकि उस फॉर्म की शक्ल ऐसी थी एक बार मोड़ दे तो फट जाये...
अब सुने आगे की दिलचस्प कहानी..मेरा भाई अनूप फॉर्म ले कर आया ..तब मै और मेरे अन्य भाई-बहन  मम्मी  के पास बैठे थे...हंसी-मजाक का दौर चल रहा था...अनूप आया उसने मुझे देने के बजाये मम्मी को फॉर्म दे दिया..मम्मी ने अभी पढना ही शुरू किया था कि मेरे शेष भाईयों ने भयानक अंदाज़ में (हालाँकि सब हंसने के मूड में ही थे ) मम्मी को बताना शुरू किया की वो किस चीज़ का फॉर्म है...मम्मी रोने लगी और फॉर्म के टुकड़े-टुकड़े कर दी ...बोलने लगी.. तुमको कौन सा दुःख है जो ऐसा चाह रही हो..लाख समझाने पर भी नहीं समझ पाई की नेत्रदान असल में क्या है ..उलटे मुझे खूब डांट पिलाईं कि ऐसा करना महापाप है...मतलब यह कि उन्हें भी वही गलतफहमियां है जो आमतौर पर लोगों को है...ये बात बताने का मकसद भी यही है  कि  नेत्रदान संबधित भ्रांतियों को समझा जाये...हालाँकि मैंने बाद में फिर फॉर्म लिया और उसे भर दिया....

अब थोड़ी जानकारी...आँखों का गोल काला हिस्सा 'कोर्निया' कहलाता है.. यह बाहरी वस्तुओं का बिम्ब  बनाकर हमें दिखाता  है.. कोर्निया पर चोट लग जाये, इस पर झिल्ली पड़ जाये या धब्बे हो जायें तो दिखाई देना बन्द हो जाता है..हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग कोर्निया  की समस्यायों से ग्रस्त  हैं..जबकि करीब 1करोड़ 25 लाख लोग दोनों आंखों से और करीब 80 लाख एक आंख से देखने में अक्षम हैं. यह संख्या पूरे विश्व के नेत्रहीनों की एक चौथाई है. किसी मृत व्यक्ति का कोर्निया मिल जाने से ये परेशानी दूर हो सकती है ...डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कोर्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि उसने अपने जीवित होते हुए ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना की हो..ऐसा होने पर मरणोपरांत नेत्रबैंक लिखित सूचना देने पर मृत्यु के 6 घटे के अन्दर कोर्निया  निकाल ले जाते हैं..किंतु जागरूकता के अभाव में यहाँ  नेत्रदान करने वालों की संख्या बहुत कम है. औसतन 26 हजार ही दान में मिल  पाते हैं... दान में मिली तीस प्रतिशत आंखों का ही इस्तेमाल हो पाता है क्यूंकि ब्लड- कैंसर, एड्स जैसी गंभीर  बीमारियों वाले लोगों की आंखें नहीं लगाई जाती ...  धार्मिक अंधविश्वास के चलते भी ज्यादातर मामलों में लिखित स्वीकृति के बावजूद अंगदान नहीं हो पाता....दूसरी तरफ मृतक के परिजन शव विच्छेदन के लिए तैयार नहीं होते.... अंगदान-केंद्रों को जानकारी ही नहीं देते  ..हमारे देश के कानून में मृतक की आंखें दान करने के लिए पारिवारिक सहमति जरूरी है, यह एक बड़ी बाधा है...जबकि चोरी-छिपे, खरीद-फरोख्त कर अंग प्रत्यारोपण का व्यापार मजबूत होता जा रहा है...

----स्वयम्बरा 

खबरगंगा: मैंने नेत्रदान किया है..और आपने ?:

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राम तुम्हें वनवास मिलेगा

दुहराता इतिहास मिलेगा
राम तुम्हें वनवास मिलेगा

हर युग में हैं लोग बदलते
रावण खासमखास मिलेगा

मिल सकते सुग्रीव परन्तु
दुश्मन का आभास मिलेगा

भले मिलेंगे कई विभीषण
वैसा नहीं समास मिलेगा

शायद नाव बिठाये केवट
बदले में संत्रास मिलेगा

लक्ष्मण, सीता साथ चलेंगे
क्या वैसा एहसास मिलेगा

राम नहीं चूको तुम फिर भी
सुमन सदा उपहास मिलेगा
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अनवर बाबू की ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ का असर


ब्लागर दिव्या ने अपना कमेंट बॉक्स हटा लिया।
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने उनकी ताज़ा नीति का ख़ुलासा ही इस तरह किया।
शीर्षक -

Zealzen Blog एक सस्पेंस , एक पहेली

ब्लागर दिव्या ने शिकायत करते हुए डा. अनवर जमाल साहब से यह कहा है कि 
पर उनकी यही बात हमें पसंद नहीं आती कि वे गाय भैंस की लाश खाते हैं जबकि आजकल कटहल अरवी पनीर रायता पुलाव खाना चाहिए।
अगर उनसे बस यही एक शिकायत है तो वह उनकी ग़लतफ़हमी है।
ब्लाग जगत शुरू से ही उनके बारे में जानता है कि हाज़्मे की दिक्क़त के चलते वह गाय भैंस का मांस तो क्या, वह अंडा तक नहीं खाते।
शादी ब्याह में भी कहीं हमारे साथ जाते हैं तो वह वेजेटेरियन्स के साथ रायता पुलाव ही खाते हैं।

मुझे भी ब्लागर दिव्या की पोस्ट पढ़कर हंसी छूटी कि कमेंट करने वाले सारे ही भाग खड़े हुए। यह तो अपने हाथों अपनी बेइज़्ज़ती ख़ुद करना हुआ। तीन पांच कमेंट लेने की आदत नहीं है। इसलिए कमेंट के बॉक्स को लॉक करना ही ठीक लगा।
हंसिए डा. दिव्या, आप हंसिए. 
आप हंसेगी तो आपके टेंशन्स कुछ तो दूर होंगे।
हंसते हुए इंसान का चेहरा वैसे भी ख़ूबसूरत हो जाता है।
बातों पर भी कुछ न कुछ असर तो ज़रूर ही आएगा।

सच पूछो तो हमें कभी कभी यह भी लगता है कि ब्लागर अनवर और ब्लागर दिव्या अंदरख़ाने कहीं आपस में दोस्त तो नहीं हैं ?
क्योंकि उनके खि़लाफ़ ब्लाग पर लिखने वाले कई ब्लागर के फ़ोन उनके पास आते रहते हैं और हमारे सामने ही वे खिलखिलाकर ऐसे बातें करते हैं जैसे कि वे आपस में दोस्त हों।
ब्लाग जगत में बड़ा गेम चलता है।
पर्दे के पीछे की कहानी कौन जानता है ?
अब जबकि सब वंदना जी के मसले पर सिर खपा रहे थे तब अचानक अनवर साहब ने दिव्या पर पोस्ट लिख डाली और इस तरह अब ब्लाग जगत के चर्चा के केंद्र में दिव्या है।
यह सच है कि अनवर साहब जैसा आदमी विरोध करे तो शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचेगा ही ब्लागर।
दिव्या ने भी यह माना है.
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ग़ज़लगंगा.dg: ऐसी सूरत चांदनी की

ऐसी सूरत चांदनी की.
नींद उड़ जाये सभी की.

एक लम्हा जानते हैं
बात करते हैं सदी की.

हम किनारे जा लगेंगे
धार बदलेगी नदी की.

मंजिलों ने आंख फेरी
रास्तों ने बेरुखी की.

जंग जारी है मुसलसल
आजतक नेकी बदी की.

जाने ले जाये कहां तक 
अब ज़रुरत आदमी की.

अब ज़रूरत ही नहीं है 
आदमी को आदमी की.

एक जुगनू भी बहुत है
क्या ज़रूरत रौशनी की.

ग़ज़लगंगा.dg: ऐसी सूरत चांदनी की:

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fact n figure: जन-आस्था के दोहन के समूल तंत्र पर हमला करे मीडिया

निर्मल बाबा प्रकरण में एक दिलचस्प मोड़ आया है. देश के 84  तीर्थस्थलों के पुरोहितों ने कुम्भ मेले में निर्मल बाबा के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग करने का निर्णय लिया है. पुरोहितों के तीर्थ महाधिवेशन में 84  तीर्थस्थलों के  350 प्रतिनिधियों ने यह निर्णय लिया है. उनको अंदेशा है कि कुम्भ के पवित्र आयोजन के दौरान पाखंडी धर्मगुरु धर्म और अध्यात्म के नाम पर पैसे की वसूली करते हैं. पुरोहित लोगों को अपने बारे में क्या खयाल है और अंधविश्वास तथा आस्था के व्यवसाय का विरोध करने वाले मीडिया का इन पुरोहितों के बारे में क्या ख़याल हैं. क्या वे लोग मेले में जन-आस्था के नाम पर वसूली का काम नहीं करते या अंधविश्वास  फ़ैलाने में इनकी कोई भूमिका नहीं होती. या उनको इसका पुश्तैनी अधिकार है जिससे मीडिया का कुछ लेने-देना नहीं है. निर्मल बाबा ने अभी तक कुम्भ मेले में जाने की कोई घोषणा नहीं की है. फिर पुरोहितों को यह भय क्यों सताने लगा कि निर्मल बाबा उनके व्यवसाय में हिस्सेदारी कर सकते हैं. महालक्ष्मी यंत्र और गंडे ताबीज से लेकर बहुमूल्य रत्नों का व्यवसाय करने वाले दूसरे बाबाओं के आगमन की आशंका ने उन्हें इस कदर भयभीत नहीं किया इसका क्या कारण है? जन-आस्था के दोहन का दायरा बहुत विशाल है. निर्मल बाबा उसके एक छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनका भंडाफोड़ कर मीडिया ने अपनी पीठ थपथपा ली. टीआरपी और प्रसार संख्या में भी बढ़ोत्तरी कर ली. संभवतः उनका लक्ष्य भी यही था. यदि जन-आस्था के दोहन के समूल तंत्र पर हमला करेंगे तो उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. इसके लिए साहस भी चाहिए जो शायद ही किसी मीडिया घराने में मौजूद हो. वे खून लगाकर शहीदों की कतार में खड़े होनेवाले लोग हैं. उनका काम थोड़ी सनसनी पैदा करना भर था जो उन्होंने सफलता पूर्वक कर लिया. अब पूरे तंत्र की सफाई करने का उन्होंने ठेका थोड़े ही ले रखा है. अंधश्रद्धा का कारोबार चलता है तो चलता रहे उनका क्या. है न यही बात.

---देवेंद्र गौतम

fact n figure: जन-आस्था के दोहन के समूल तंत्र पर हमला करे मीडिया:

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पेशे और देश से ग़ददारी है डाक्टर का विदेश भाग जाना



जबकि अपने देश में लोग इलाज की कमी से मर रहे हों.
देश में 7 लाख डाक्टरों की कमी है. लोग मर रहे हैं मगर डाक्टर विदेश में चले जाते हैं. एक एमबीबीएस डाक्टर की पढ़ाई में एम्स में 1.50 करोड़ रूपये का ख़र्च आता है. सरकार फ़ीस की शक्ल में सिर्फ़ 1 लाख रूपया ही वसूलती है.
12 से 15 हज़ार डाक्टर स्टडी लीव लेकर अमरीका वग़ैरह में मुनाफ़ा कमा रहे हैं. इनसे भी ज़्यादा वे डाक्टर हैं जो सरकारी नौकरी में जाए बिना सीधे ही विदेश निकल लेते हैं.
इनमें से कुछ तो विदेश में बैठकर राष्ट्रवाद की डींगें भी मारते हैं मगर अपनी सेवाएं देने के लिए अपने ही देस वापस नहीं आते. राष्ट्र बीमार हो तो हो, भारत माता की संतानें रोगी हों तो हों उन्हें कोई परवाह नहीं है. उन्हें तो बस नफ़रतें फैलानी हैं और माल कमाना है.
उनकी तरफ़ से देस के लोग मरें या चाहे सिसक सिसक कर जिएं.
मज़ेदार यह है कि ऐसे विदेशियों की सेवा करने वाले ये लालची डाक्टर देस में रहकर सेवा करने वाले डाक्टरों को गालियां देने से भी नहीं चूकते.
काश ! ये लोग अपने दिल से लालच निकाल पाते और अपने देस लौटकर अपनी सेवाएं देते.

केंद्रीय स्वास्थ मंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद ने इस सिलसिले में कड़ा रूख़ अपनाया है.
उनके मौक़िफ़ की हम ताईद करते हैं.

अब माल के लालच में देश से भागे हुए डाक्टर हिंदुस्तानी समाज में ज़िल्लत की नज़रों से देखे जाएंगे और शायद वे ख़ुद भी अपनी नज़रों से गिर जाएं।
शायद यही अहसासे ज़िल्लत उन्हें अपनी वतन वापसी पर आमादा कर सके ?

ग़ुलाम नबी आज़ाद का बयान और अख़बारी रिपोर्ट यहां है-

बाहर की डॉक्टरी तो गई डिग्री
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता


स्टडी लीव लेकर विदेश जाने और वापस न आने वाले डॉक्टरों को अब अपने पेशे से हाथ धोना पड़ सकता है। केंद्र सरकार ऐसे डॉक्टरों की वापसी सुनिश्चित कराने के लिए कड़ा कदम उठाने जा रही है।
स्टडी लीव की अवधि खत्म होने के बाद डॉक्टर वापस नहीं आते हैं तो उनका रजिस्ट्रेशन निलंबित या रद्द कर दिया जाएगा। इससे वे विदेश में भी डॉक्टरी नहीं कर पाएंगे। पिछले तीन वर्षों में करीब तीन हजार डॉक्टर स्टडी के लिए विदेश गए, लेकिन ज्यादातर वापस नहीं लौटे।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने बताया कि अब कोई डॉक्टर स्टडी लीव पर विदेश जाना चाहेगा तो उसे एक बॉन्ड भरकर देना होगा। इसमें यह वादा करना होगा कि निर्धारित अवधि के बाद वह स्वदेश लौट आएगा। यदि रजिस्ट्रेशन निलंबित या रद्द हो जाए तो संबंधित डॉक्टर देश में प्रैक्टिस नहीं कर सकता। साथ ही उसे विदेश में भी प्रैक्टिस से रोका जा सकता है। देश के सरकारी अस्पतालों में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उनमें कार्यरत डॉक्टर उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए स्टडी लीव पर विदेश चले जाते हैं और फिर वहीं बस जाते हैं।
लंबे समय तक वे इस्तीफा भी नहीं देते, जिस कारण रिक्त पद पर नियुक्ति नहीं हो पाती है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में विदेश जाने वाले डॉक्टरों से बॉन्ड भराने की व्यवस्था थी, लेकिन वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव में राजग सरकार के कार्यकाल में इसे खत्म कर दिया गया था।
सरकार की मजबूरी 
चिकित्सा क्षेत्र में हो रही प्रगति के मद्देनजर डॉक्टरों को स्टडी लीव लेने से नहीं रोका जा सकता है। पिछले पांच वर्षों के दौरान एम्स से करीब तीन दर्जन डॉक्टर स्टडी लीव लेकर विदेश गए, लेकिन लौटे नहीं। ऐसे ही राममनोहर लोहिया, एलएनजेपी, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज समेत तमाम अस्पतालों के कई मनोचिकित्सक ब्रिटेन गए, लेकिन वापस कम ही आए।
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सलीब ढोते हैं

सुलगती रोज चिताओं पर लोग रोते हैं
जमीर बेच के जिन्दा जो, लाश होते हैं

कुदाल बन के भी जीना क्या, जिन्दगी होती
चमक में भूल के नीयत की, सलीब ढोते हैं

शुकून कल से मिलेगा ये, चाहतें सब की
मिले क्यों आम भला उनको, नीम बोते हैं

लगी है आग पड़ोसी के घर में क्यों सोचें
मिलेंगे ऐसे हजारों जो, चैन सोते हैं

नहीं सुमन को निराशा है, भोर आने तक
जगेंगे लोग वही फिर से, जमीर खोते हैं
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (40) The Last Sermon

दोस्तो ! आप सभी के लिए मालिक से शांति की कामना है।
आज हमारा जन्म दिन है।
एक नई ड्रग कंपनी भी शुरू की है। उसकी मसरूफ़ियत भी बढ़ती जा रही है। इन्हीं सब मसरूफ़ियतों के बीच पेश है आज हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल की 40वीं पेशकश।
मंच की सप्ताह भर की पोस्ट्स
1- Dr. Ayaz Ahmad

अवैध संबंधों के शक में धड़ाधड़ हो रही हैं बेटियों-बीवियों की हत्याएं

आनंद बाइक मैकेनिक था। उसने अपनी दो बेटियों और अपनी बीवी की हत्या की और फिर खुद भी फांसी पर लटक गया। यह घटना कल गुड़गांव के सूरत नगर में हुई।  

फ़क़ीरी में भी बादशाही के मज़े दिला सकती है औरत


अच्छी आदतों की मालिक नेक और पाकदामन औरत किसी फ़क़ीर के घर में भी हो तो उसे बादशाह बना देती है। -शैख़ सादी रहमतुल्लाह अलैह...

 

बेडरूम लाइफ़ सेहत और उम्र पर असर डालती है 

स्वस्थ रहने में सहायक एक स्टडी कहती है कि यदि हफ्ते में दो बार अच्छा सेक्स करेंगे तो शरीर में ऐंटिबॉडीज का लेवल बढ़ेगा जिससे शरीर की कोल्ड और फ्लू से रक्षा होगी। 

मंत्री को गाली देने वाला मेंबर असेंबली सस्पेंड

11 सदस्यीय कमेटी की सिफ़ारिश पर डिप्टी स्पीकर का फ़ैसलाजयपुर। वज़ीर मुमलकत बराय सेहत राजकुमार शर्मा को असेंबली में गाली देने वाले मेंबर असेंबली हनुमान बेनीवाल को कल असेंबली से निलंबित कर दिया है।

 

हलाल रिज़्क़ बच्चों की कामयाबी का ज़ामिन

गोरखपुर। रिज़्क़ से बरकत ग़ायब, घरों का सुकून ग़ारत, हर तरफ़ नाचाक़ी व नाइत्तेफ़ाक़ी, वालिदैन की नाफ़रमानी, लोगों की बदहवासी व परेशानी का सबब यह है कि लोगों ने दुनिया तलबी और पैसों की चाहत में हलाल व हराम का फ़र्क़ ख़त्म कर दिया है।

2- Devendra Gautam

fact n figure: निर्मल बाबा ही क्यों......!

यदि मैं निर्मल बाबा की जगह होता तो इस वक़्त सुल्तान अख्तर का यह शेर पढता- 'अपने दामन की स्याही तो मिटा लो पहलेमेरी पेशानी पे रुसवाइयां जड़ने वालो!' स्टार न्यूज़ पर निर्मल बाबा की अग्नि-परीक्षा कार्यक्रम देख रहा था. उसमें निर्मल बाबा का विरोध करते हुए एक सज्जन ने कहा की गाय को रोटी खिलाना तो ठीक है लेकिन गधे को घास मत खिलाइए. सवाल उठता है कि क्या गधा जीव नहीं है ?

3- श्यामल सुमन

सोचने को विवश करते कुछ प्रचलित शब्द

हमारे, आपके, प्रायः सबके जीवन में जाने अनजाने कुछ शब्दों के ऐसे प्रयोग होते रहते हैं जिनके शाब्दिक अर्थ कुछ और लेकिन उनके प्रचलित अर्थ कुछ और। मजे की बात है कि शब्दार्थ से अलग (कभी कभी विपरीत भी) अर्थ ही सर्व-स्वीकार्य भी हैं।

बस दिल्ली का समाचार है

सबसे पहले हम पहुँचे।हो करके बेदम पहुँचे।हर चैनल में होड़ मची है,दिखलाने को गम पहुँचे।सब कहने का अधिकार है।चौथा-खम्भा क्यूँ बीमार है।

खार में भी प्यार है

वक्त के संग चल सके तो, जिन्दगी श्रृंगार हैवक्त से मिलती खुशी भी, वक्त ही दीवार हैवक्त कितना वक्त देता,

कुछ लोगों की फितरत है

मान बढ़ाकर, मान घटाना, कुछ लोगों की फितरत है कारण तो बस अपना मतलब, जो काबिले नफ़रत है गलती का कठपुतला मानव,
4- अफसर पठान (afsarpathan)

किताबघर


बेनीपुरी साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन पुस्तक- बेनीपुरी की साहित्य-साधना, लेखक- डा0 कमलाकांत त्रिपठीप्रकाशक- पुस्तक पथ, वाराणसी, वितरक- शारदा संस्कृत संस्थान, सी. 27/59, जगतगंज, वाराणसी-221002, मूल्य- 350 रूपये (पेपर बैक)।डा0 कमलाकांत त्रिपठी द्वारा लिखित पुस्तक ‘बेनीपुरी...


मालिक हम सब को शांति दे ! आमीन . शांति के साथ सबसे पहले हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल की ताज़ा पोस्ट्स का लुत्फ़ उठाइये





मंच के बाहर की पोस्ट्स में आज सबसे पहले रविकर जी 
...और अब अपने चर्चा मंच से 

"नदी के रेत पर" -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उच्चारण
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उम्र पचपन की और अहवाल बचपन के,
देखिए

रोमांस और रोमांच की अद्भुत कॉकटेल --जंगल में मंगल (भाग-२)

चिल्ला वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी जो राजा जी नेशनल पार्क का एक हिस्सा है . दिल्ली से हरिद्वार पहुंचते ही बायीं ओर हैं गंगा घाट यानि हर की पौड़ी . ठीक इसके विपरीत दायीं ओर , गंगा पार फैला है चिल्ला फोरेस्ट .

 चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ की

उल्फ़त का असर देखेंगे!

बाख़ुदा आज हम उल्फ़त का असर देखेंगे।
इश्क़ के सामने ख़म हुस्न का सर देखेंगे॥

फ़र्रूख़ाबादी स्टाइल की कविता भी बना सकती है बड़ा ब्लॉगर Hindi Poetry - जब से कविता जी की कविता हिट हुई है तब से ब्लॉग जगत में अजीब सी गहमा गहमी है। ब्लॉगर्स को कविता जी से बड़ी उम्मीदें हो गई हैं। पहले तो वे जैसे दूसरे ब्लॉग प... 
 तिब्बे नबवी‘ ब्लॉग पर देखिए

योग किसी भी उम्र में फायदेमंद होता है। योग के जरिए आप ना सिर्फ फिट और चुस्त -फुस्त  रहते हैं बल्कि आप मानसिक रूप से भी तरोताजा रहते हैं। योग के जरिए आप बहुत सी बीमारियों से आसानी से निजात पा सकते हैं।
आर्य भोजन ब्लॉग पर देखिए

मर्द को अपने खान पान को भी ‘औरत ओरिएंटिड‘ रखना चाहिए

ब्लॉग की ख़बरें पर देखिए

रविन्द्र जी के नए सामूहिक ब्लॉग की घोषणा पर kanishka kashyap की टिप्पणी

 


रविन्द्र जी ने एक नए सामूहिक ब्लॉग की घोषणा करते हुए ब्लॉगर्स से जुड़ने की अपील की है। उनकी अपील के जवाब में कुछ ने अपने पते छोड़े तो कुछ ने...
मां बाप को चाहिए कि वे यह ज़रूर देख लें कि उनकी लड़की जिन लड़कियों के साथ दोस्ती रखती है। उनका शौक़ क्या हैं ? कहीं ऐसा न हो कि कोई ग़लत लड़की आप...
औरतें मर्दों से अच्छी लीडर होती हैं & Ghar Aman ka Gehwara kaise Bane ? एक वीडियो - वे पहल करने और ग़लतियों से सबक़ लेने और नई चीज़ों को सीखने में पुरूषों से आगे होती हैं। बेहतर नतीजे हासिल करने की ललक भी उनमें पुरूषों से ज़्यादा होती है। ... 
एक मूल प्रश्न : पैमाना अगर बुद्धि हो तो किसकी बुद्धि हो ? Wisdome - किरपा का धंधा और आत्मविश्वास [image: My Photo] दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi कोटा, राजस्थान, India पर हमारी टिप्पणी एक मूल प्रश्न गुटखा नुक्सान देत... 
मुझे गालियां देने वाले इस देश, समाज और मानवता का अहित ही कर रहे हैं Abusive language of so called nationalists - 'देश की अखंडता की रक्षा करने के लिए अपने मुस्लिम साथियों के साथ श्रीनगर में पीछे शंकराचार्य हिल दिखाई दे रही है' ' कोई गाली ऐसी नहीं है जो इन सभ्य और हिन्द...
शादी के लिए होती है महिलाओं की खरीद-फरोख्त Women as animal - [image: women-sold.jpg] *शादी के लिए होती है महिलाओं की खरीद-फरोख्त* जयपुर।। राजस्थान में महिलाओं की खरीद-फरोख्त करने वाले मानव तस्कर किस हद तक सक्रिय हैं, ...
गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस की जरूरत क्यों होती है? - *गाड़ी चलाने के लिए लाइसेंस की जरूरत क्यों होती है? - विजय, जयपुर * गाड़ी चलाना व्यक्तिगत कार्य लगता है, पर वस्तुतः यह एक सामूहिक क्रिया है। सड़क पर आप कु...

संतुष्टि के उपाय ख़ुद नारी बताए और महिलाओं के लिए नैचरोपैथी - *बुनियाद* ताज़ा पोस्ट 3 ख़ास पेशकश डा. अनवर जमाल ख़ान Tuesday April 10, 2012 ‘मुशायरा‘ ब्लॉग पर 3 ख़ास पेशकश मां बाप हैं अल्लाह की बख्शी हुई नेमत म...
- मोबाइल में हिंदी वेबसाईट खोलने का तरीका*सबसे पहले आपको अपने मोबाइल में *यहाँ से ओपेरा मिनी डाउनलोड करना होगा* मोबाइल में ओपेरा मिनी इंस्टाल होने के बाद ऊपर ...
Standing at the Window - I stand at the window; thoughts crawl like a shadow. My eyes on the wide blue sky, Wind blows around with a sigh. Dew tears cover the grass; It wings me to a...
पपीता का असर....ऐसे करेगी ये पेट और स्कीन की सारी परेशानियों को बेअसर - पपीता एक ऐसा फ्रूट है। जो टेस्टी होने के साथ ही गुणों से भरपूर है। पपीते के नियमित सेवन से शरीर को विटामिन-ए और विटामिन सी की एक निश्चित मात्रा प्राप्त होत...
मुशायरा ब्लॉग पर देखिए
डा. रूपचंद शास्त्री 'मयंक' जी
सद्र (अध्यक्ष), महफ़िल ए मुशायरा

जमाना है तिजारत का, तिजारत ही तिजारत है
तिजारत में सियासत है, सियासत में तिजारत है


ज़माना अब नहीं, ईमानदारी का सचाई का
खनक को देखते ही, हो गया ईमान ग़ारत है

डॉ॰ मोनिका शर्मा

मेरा फोटो 

घर छोड़कर जाता छोटू 

‘मैं घर छोड़कर जा रहा हूं।’ बच्चों के मुंह से ऐसी बातें सुनकर किसी के भी चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है, पर असल जिंदगी में होने वाले ऐसे हादसे बच्चों का ही नहीं पूरे परिवार का जीवन बदल देते हैं।  

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सार सार को गहि रहे

साहित्य में हंस को नीर-क्षीर विवेक ग्राही माना गया है. ऐसा व्यक्ति जो संसार से सत् को तो ग्रहण करे असत् को त्यागता जाये, हंस कहा जाता है, जैसे रामकृष्ण, परमहंस कहलाते हैं.
 कुमार राधा रमण जी

त्वचा के लिए विटामिन थेरपी


अगर आप फेयर, सॉफ्ट और ग्लो करती हुई स्किन चाहती हैं, साथ ही रिंकल्स, एक्ने और पिंपल्स से छुटकारा चाहती हैं, तो आपकी हेल्प के लिए मार्केट में कई प्रॉडक्ट्स मिल जाएंगे। हालांकि इन सबमें केमिकल्स होते हैं, जिनका आगे चलकर कोई-न-कोई साइड इफेक्ट तो होता ही है। ऐसे में विटामिन थेरपी एक ऐसी चीज है, जिसका लॉन्ग टर्म में कोई भी नुकसान नहीं होता।
सोने पे सुहागा ब्लॉग पर
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब का आखि़री ख़ुत्बा The Last Sermon of the Prophet Muhammad (peace be upon him)

Sufi Darwesh  ब्लॉग पर 

ख़ुदा की मुहब्बत का झरना जब बंदे के दिल में बहने लगता है और वह अपने रब की मर्ज़ी में अपनी मर्ज़ी फ़ना कर देता है तो वह दुख और भय से आज़ाद हो जाता है।
कोई दुख न तो उसे हार्ट अटैक कर पाएगा और न ही किसी डर से वह आत्महत्या करेगा।
लौकिक जीवन भी ढंग से वही जी पाता है जो अपने रब से प्यार करता है।

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ऐसे रचनाकार कई

कहते हम सब भाई भाई, ऐसे रचनाकार कई
आपस में छीटें रोशनाई, ऐसे रचनाकार कई

समझाने के वो काबिल हैं, जिसने समझा रिश्तों को
इनको अबतक समझ न आई, ऐसे रचनाकार कई

बोझ ज्ञान का ढोना कैसा, फ़ेंक उसे उन्मुक्त रहो
कहते, होती है कठिनाई, ऐसे रचनाकार कई

इधर उधर से शब्द उड़ाकर, कहते हैं रचना मेरी
कविता पे होती कविताई, ऐसे रचनाकार कई

अलग अलग दल बने हए हैं, राजनीति और लेखन में
अपनी अपनी राम दुहाई, ऐसे रचनाकार कई

लेखन की नूतन प्रतिभाएँ, किस दुकान पर जायेंगे
खो जातीं हैं यूँ तरुणाई, ऐसे रचनाकार कई

लिखते हैं जिसके विरोध में, वही आचरण अपनाते
यही सुमन की है चतुराई, ऐसे रचनाकार कई
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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  • - कहीं भी अपनी भाषा में टंकण (Typing) करें - Google Input Toolsप्रयोगकर्ता को मात्र अंग्रेजी वर्णों में लिखना है जिसप्रकार से वह शब्द बोला जाता है और गूगल इन...
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