स्मरण करो सिया राम का


स्मरण करो सिया राम का,
स्मरण करो सिया राम का,
कृपा सिन्धु गुण धाम का;
उल्टा जपके भी तर जाते,
पावन से उस नाम का |
स्मरण करो सिया राम का |


घट-घट में वे बसने वाले,
श्रद्धा सुमन वे देने वाले;
शिव भी जिनको जपते हैं,
पुरोषोत्तम घनश्याम का |
स्मरण करो सिया राम का |


असुरों का वध करने वाले,
धरनि का दुःख हरने वाले,
हनुमान जस भक्त हैं जिनके,
त्रिपुरारी भगवान् का |
स्मरण करो सिया राम का |


शबरी के फल खाने वाले,
उच्च चरित दर्शाने वाले;
भरत, लखन सम भ्रात जो पाए,
रघुकुल नायक राम का |
स्मरण करो सिया राम का |

धनुष बाण जिन हस्त को सोहे,
अनुपम रूप जगत को मोहे;
त्रिलोकी होकर भी मानव,
बन गए उस मतिमान का |
स्मरण करो सिया राम का |

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की लगाई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

DR. ANWER JAMAL said...

आज भारत विश्व की एक उभरती हुई शक्ति है लेकिन हम खुद अन्दर से ही कमज़ोर हैं। मन्दिर-मस्जिद के विवाद को न सुलझा पाना हमारी एक ऐसी कमज़ोरी है जिसे आज सारी दुनिया देख रही है। ऐसे में क्या तो हमारी छवि बनेगी और कौन हमसे मार्गदर्शन लेगा ?

राम नाम में शक्ति है

हम कहते हैं कि राम नाम में शक्ति है, अल्लाह के नाम में ताक़त है। हमारे धर्मगुरू सत्य और न्याय की बात करते हैं। तब क्यों नहीं हमारे धर्मगुरू बताते कि राम कौन है और रहीम कौन है ?


उसकी पूजा-इबादत की सही रीति क्या है ?


उसके बन्दों के दरम्यान जब विवाद की नौबत आ जाए तो उन्हें क्या करना चाहिए ?


राम के भक्त और रहीम के बन्दे आपस में लड़ेंगे तो उनका मालिक उनसे राज़ी नहीं होगा और उनके हालात देखकर दूसरे बहुत से लोग ईश्वर और धर्म से पल्ला झाड़कर नास्तिक ज़रूर बन जाएंगे। इन सबके पापों का बोझ भी उनपर ही पड़ेगा।

रामचन्द्र उपासक थे , उपासनीय नहीं
यह आलिम-ज्ञानियों का काम है। उनका कर्तव्य है कि वे लोगों को बताएं कि राम-रहीम एक ही मालिक के नाम हैं और यह कि रामचन्द्र जी जीवन भर उपासना करते रहे, वे उपासक थे , उपासनीय नहीं हैं। वे सर्वज्ञ नहीं थे, दूसरे राजकुमारों की तरह उन्होंने भी वसिष्ठ को गुरू बनाकर उनसे ज्ञान प्राप्त किया। वे सर्वशक्तिमान भी नहीं थे, उन्हें अपनी योजनाओं को सफल बनाने के लिए बहुत से लोगों से सहयोग लेना पड़ा। उन्होंने त्याग किया, कष्ट सहे, संघर्ष किया और विजय पाई। उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम कहकर याद किया जाता है। उन्हें ईश्वर कहना उनके सारे परिश्रम पर पानी फेरना है, ईश्वर की अवज्ञा करना है।
ईश्वर उपासनीय है और श्री रामचन्द्र जी आदरणीय हैं।

Shikha Kaushik said...

JAI SHREE SIYAPATI RAM CHANDR JI KI .BAHUT SUNDAR BHAKTIMAY PRASTUTI HETU AABHAR .

मदन शर्मा said...

शब्दों का खूबसूरत संयोजन ,बेहद खूबसूरत ,बहुत सुंदर.........
मै अनवर जमाल जी से पूरी तरह सहमत हू .

सत्य को स्वीकार करने में हमें कोई संकोच नहीं होना चाहिए |
क्यों की प्रत्येक मानव मानव का कर्त्तव्य है की सत्य बातों समर्थन तथा असत्य बातों का विरोध करना चाहिए |
धर्मों की पुस्तक बनाने वाले भी हम ही हैं तो क्या हम उसमे गलत बातों का सुधार नहीं कर सकते ?

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