विधवा समस्या इस बार की मीट का ख़ास टॉपिक था। वृंदावन में बहुत सी विधवाएं रहती हैं। जो निर्धन विधवाएं हैं, उनके मरने पर उनके शरीर को स्वीपर छोटे छोट पीस में काटकर थैलियों में भरकर फेंक देते हैं।
अंतिम संस्कार क्यों नहीं हो पाता इन विधवाओं का ?
और इससे भी बढ़कर यह कि उन्हें विधवा रहने पर मजबूर कौन करता है ?
अगर उनके सामने विवाह का विकल्प हो तो क्या वे विधवा रहकर कीर्तन करते रहना पसंद करेंगी ?
लेकिन बात यह है कि समाज में तो कुंवारियों को ही वर मिलने मुश्किल हो रहे हैं फिर विधवा को स्वीकारेगा कौन ?
वह कौन सी विचारधारा है जो विधवा के विवाह को प्रमुखता देती है ?
वह कौन सी विचारधारा है जिसके आदर्श पुरूषों ने विधवाओं से विवाह किया है , इस पर ग़ौरो फ़िक्र ज़माने की ज़रूरत है लेकिन किया किसी ने भी नहीं।
कहीं से किसी ने नहीं बताया कि इसका हल क्या है ?
ब्लागर मीट कहीं जंगल में रख लो तो मंगल मनाने हंसने बतियाने वहां पहुंच जाएंगे सब के सब और वृंदावन में बदहाल विधवाओं की चिंता न किसी दक्खनपंथी को है और न किसी मक्खनपंथी को।
हमदर्दी के जज़्बात से ख़ाली होकर कविताएं गाने का मतलब क्या रह जाता है ?
बस हरेक अपनी आज़ादी और अपनी सहूलत का ख़याल रख रहा है और बस ख़ुद के लिए पाना चाहता है।
दूसरों के लिए सोचना जब आएगा तब ब्लागर सच में इंसान कहलाएगा।
सही सोच का यही नक्शा पेश किया था पिछली ब्लागर मीट वीकली में
और अब तो नई मीट का दिन भी आ पहुंचा है।
ब्लॉगर्स मीट वीकली (26) Dargah Shaikh Saleem Chishti
अंतिम संस्कार क्यों नहीं हो पाता इन विधवाओं का ?
और इससे भी बढ़कर यह कि उन्हें विधवा रहने पर मजबूर कौन करता है ?
अगर उनके सामने विवाह का विकल्प हो तो क्या वे विधवा रहकर कीर्तन करते रहना पसंद करेंगी ?
लेकिन बात यह है कि समाज में तो कुंवारियों को ही वर मिलने मुश्किल हो रहे हैं फिर विधवा को स्वीकारेगा कौन ?
वह कौन सी विचारधारा है जो विधवा के विवाह को प्रमुखता देती है ?
वह कौन सी विचारधारा है जिसके आदर्श पुरूषों ने विधवाओं से विवाह किया है , इस पर ग़ौरो फ़िक्र ज़माने की ज़रूरत है लेकिन किया किसी ने भी नहीं।
कहीं से किसी ने नहीं बताया कि इसका हल क्या है ?
ब्लागर मीट कहीं जंगल में रख लो तो मंगल मनाने हंसने बतियाने वहां पहुंच जाएंगे सब के सब और वृंदावन में बदहाल विधवाओं की चिंता न किसी दक्खनपंथी को है और न किसी मक्खनपंथी को।
हमदर्दी के जज़्बात से ख़ाली होकर कविताएं गाने का मतलब क्या रह जाता है ?
बस हरेक अपनी आज़ादी और अपनी सहूलत का ख़याल रख रहा है और बस ख़ुद के लिए पाना चाहता है।
दूसरों के लिए सोचना जब आएगा तब ब्लागर सच में इंसान कहलाएगा।
सही सोच का यही नक्शा पेश किया था पिछली ब्लागर मीट वीकली में
और अब तो नई मीट का दिन भी आ पहुंचा है।
ब्लॉगर्स मीट वीकली (26) Dargah Shaikh Saleem Chishti
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