अपने समाज के अच्छे लोगों को परेशान मत करो
किरण बेदी जी बिज़नेस क्लास का टिकट लेकर इकॉनॉमी क्लास में सफ़र कर रही हैं तो इससे देश की अर्थव्यवस्था पर क्या बुरा असर पड़ा ?
अगर वह कुछ रक़म बचा कर इसे ज़रूरतमंदों को दे रही हैं तो यह एक तारीफ़ के लायक़ बात है।
भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ आवाज़ उठाने वालों को इतना मत सताओ कि इस देश में कोई भी सही बात के लिए आवाज़ उठाना ही छोड़ दे।
छोटी छोटी बातों को तूल वे लोग दे रहे हैं जो देश का माल हड़प किये बैठे हैं।
इनकी चालबाज़ी से सावधान रहना चाहिए।
अन्ना के मददगारों को तोड़ने की साज़िश के तहत यह सब हो रहा है।
6 लाख आत्महत्याएं ?
क्या शहरी खुदकुशी मुद्दा नहीं?
जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं। आशा-निराशा के साथ जीवन की राहों पर चलना होता है। ऐसे में आशा-निराशा का अनुपात ही तय करता है कि कोई व्यक्ति कितना सुखी या दुखी होता है। कई बार काफी धनी-मानी लोग भी तनाव में जीते हैं और अक्सर बेहद गरीब मेहतनकश मजदूरों को कड़ी धूप में भी सड़क पर मजे में सोते देखा जा सकता है। बेशक आशा-निराशा के अलावा संतोष और लोभ भी यह तय करते हैं कि कोई कितने सुख-दुख से रहता है। मगर आशा-निराशा के भाव सफलता-असफलता पाने के लिए सबसे प्रेरक तत्व होते हैं। आशा का भाव अधिक हो, तो प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच से सहजता से निकला जा सकता है। निराशा का भाव अधिक हो, तो सामान्य समय भी विषम और सहज जीवन भी असुविधाजनक लगने लगता है। निराश व्यक्ति अक्सर असामान्य, असहज और गलत फैसले करता है। उसे सही रास्ता या तो सूझता ही नहीं, और अगर सूझता भी है तो वह उस रास्ते पर चलने का साहस नहीं कर पाता। उसकी निराशा बढ़ती चली जाती है... वह अवसाद में चला जाता है। गहन अवसाद में जाने पर तो वह कुछ अनहोनी तक कर सकता है... आत्महत्या तक!
अक्सर कर्ज से दबे किसानों की आत्महत्या की खबरें आती हैं। पिछले 10 साल में देश भर में एक लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। शहरों का आंकड़ा इससे भी ज्यादा है यह और बात है कि किसानों की आत्महत्या सरकार की बेरुखी को उबारने के कारण सुर्खियों में रहती है। दूसरी ओर, शहरियों की आत्महत्याएं एक-एक खबर के रूप में तो सामने आती हैं, मगर समग्र रूप से उनमें ऊपरी तौर पर कोई ट्रेंड नजर नहीं आता। किसानों की आत्महत्याओं में साफ-साफ वजह नजर आती है- गरीबी, भुखमरी, कर्ज वगैरह। यानी उनके आर्थिक हालात ही उन्हें ऐसा भयावह कदम उठाने को मजबूर करते हैं। वहीं, शहरों-महानगरों में होने वाली आत्महत्याओं के पीछे पहली नजर में ऐसा कोई ट्रेंड नजर नहीं आता। पारिवारिक कलह, विवाहेतर संबंध, बेरोजगारी, नौकरी से निकाला जाना, कारोबार में नुकसान हो जाना या असाध्य रोग जैसी वजहों से शहरों में आत्महत्याओं की खबरें आती हैं। तो जाहिर है कि फिर इनकी संख्या भी शहरों-महानगरों की आबादी के अनुपात में ही होनी चाहिए। हाल के वर्षों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। शहरों-महानगरों में आबादी और आत्महत्याओं का अनुपात उलझाव पैदा करने वाला है।
नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, देश में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं बेंगलुरु में होती हैं। प्रति एक लाख आबादी पर सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भी बेंगलुरु में होती हैं। इस मामले में वह जबलपुर, राजकोट और कोयंबटूर जैसे छोटे शहरों के बराबर है। बंज्ज्लौर में 2009 में 2167 आत्महत्याएं हुई। उससे काफी ज्यादा आबादी वाले महानगरों मुंबई (1051) और दिल्ली (1215) की तुलना में यह दोगुना है। आबादी के अनुपात के आधार पर तुलना की जाये, तो कहा जा सकता है कि बेंगलुरु में मुंबई और दिल्ली की तुलना में करीब 150 प्रतिशत ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। और यह ट्रेंड पिछले एक-दो साल का नहीं है। सिलिकॉन सिटी बेंगलुरु कई सालों से भारत की आत्महत्या राजधानी बना हुआ है। हालांकि शिक्षा, रोजगार, आवास और जीवन-स्तर के आधार पर बेंगलुरु को देश के बेहतरीन शहरों में गिना जाता है। यहां के मध्यमवर्गीय लोग स्वभाव से शांतिप्रिय और संतोषी हैं। उच्चवर्गीय भी आदर्शवादी हैं और विभिन्न व्यवसायों से कमाये धन को समान के जरूरतमंद लोगों पर खर्च करके कॉपोर्रेट जिम्मेदारी निभाते हैं। तो क्या निम्नवर्ग के लोग ज्यादा परेशान हैं और आत्महत्याएं कर रहे हैं?
����हीं। चौंकाने वाली बात यही है कि शिक्षित, मध्यवर्गीय और अपने सपनों को पूरा करने के नजदीक पहुंच चुके युवाओं की तादाद अपनी जिंदगी खत्म करने वालों में सबसे ज्यादा है। पिछले एक-डेढ़ दशक में आईटी का बड़ा केन्द्र बनने के कारण बेंगलुरु इस क्षेत्र के युवा प्रफेशनलों की पहली पसंद बना हुआ है। देश के कोने-कोने से आईटी में माहिर नौजवान यहां आकर अच्छे वेतन पर अच्छी नौकरियां पा रहे हैं। पढ़ने के लिए भी यहां काफी युवा आते हैं। अपने आसपास वे रोजगार का बेहतरीन माहौल देखते हैं। जीवन में कुछ पाने के उनके सपने बढ़ते चले जाते हैं। वे 50 हजार रुपये महीने की नौकरी को तो कुछ समझते ही नहीं। मिलियन रुपीज (10 लाख रुपये सालाना) से कम का पैकेज वे अपमानजनक मानते हैं। जब 23-24 साल की उम्र में पहला वेतन इस रेंज में मिलता है, तो खर्च भी वैसे ही किया जाता है। फिर लाइफस्टाइल इस तरह ढलती चली जाती है कि क्रेडिट पर खर्च होने लगता है। कई-कई एटीएम कार्ड इस्तेमाल करके बेतहाशा खर्च किया जाता है।
ऐसे में, करियर या जीवन में जरा सी गड़बड़ होते ही जो ठोकर लगती है, उससे संभलना मुश्किल हो जाता है। आर्थिक मंदी के कारण नौकरी चली जाए, क्रेडिट पर लेकर खर्च किया पैसा वापस करना मुहाल हो जाए या ऐसे हालात में दोस्तों के मुंह मोड़ने से जिंदगी में अकेलापन आ जाए, तो फिर युवा इन हालात में संघर्ष करने की मानसिक स्थिति में नहीं होते। वे 12 घंटे के ऑफिस आवर्स के बाद मल्टीफ्लेक्स, मॉल, पब और बार के जीवन के आदी हो चुके होते हैं और जिंदगी के इस मुकाम पर लगभग एकाकी होते हैं। कोई नहीं होता उन्हें संभालने वाला। सभी महानगरों की यही स्थिति है। अब तो मध्यम आकार के शहरों में भी ऐसा होने लगा है। ये युवा निराशा के भंवर में फंसकर जब कोई रास्ता नहीं देख पाते, तो मौत को गले लगा लेते हैं।
पिछले 1 साल में देश भर में एक लाख किसानों ने आत्महत्या की। मगर इसी दौरान शहरों महानगरों में पांच लाख से ज्यादा युवाओं ने आत्महत्या की। किसान गरीबी की वजह से मौत के आगोश में गए, पर शहरी युवाओं ने मनोवांछित वैभव-विलास न मिलने के कारण मृत्यु का वरण किया। क्या आपका ध्यान इस ओर गया है?
-भुवेंद्र त्यागी
अक्सर कर्ज से दबे किसानों की आत्महत्या की खबरें आती हैं। पिछले 10 साल में देश भर में एक लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। शहरों का आंकड़ा इससे भी ज्यादा है यह और बात है कि किसानों की आत्महत्या सरकार की बेरुखी को उबारने के कारण सुर्खियों में रहती है। दूसरी ओर, शहरियों की आत्महत्याएं एक-एक खबर के रूप में तो सामने आती हैं, मगर समग्र रूप से उनमें ऊपरी तौर पर कोई ट्रेंड नजर नहीं आता। किसानों की आत्महत्याओं में साफ-साफ वजह नजर आती है- गरीबी, भुखमरी, कर्ज वगैरह। यानी उनके आर्थिक हालात ही उन्हें ऐसा भयावह कदम उठाने को मजबूर करते हैं। वहीं, शहरों-महानगरों में होने वाली आत्महत्याओं के पीछे पहली नजर में ऐसा कोई ट्रेंड नजर नहीं आता। पारिवारिक कलह, विवाहेतर संबंध, बेरोजगारी, नौकरी से निकाला जाना, कारोबार में नुकसान हो जाना या असाध्य रोग जैसी वजहों से शहरों में आत्महत्याओं की खबरें आती हैं। तो जाहिर है कि फिर इनकी संख्या भी शहरों-महानगरों की आबादी के अनुपात में ही होनी चाहिए। हाल के वर्षों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। शहरों-महानगरों में आबादी और आत्महत्याओं का अनुपात उलझाव पैदा करने वाला है।
नैशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, देश में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं बेंगलुरु में होती हैं। प्रति एक लाख आबादी पर सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भी बेंगलुरु में होती हैं। इस मामले में वह जबलपुर, राजकोट और कोयंबटूर जैसे छोटे शहरों के बराबर है। बंज्ज्लौर में 2009 में 2167 आत्महत्याएं हुई। उससे काफी ज्यादा आबादी वाले महानगरों मुंबई (1051) और दिल्ली (1215) की तुलना में यह दोगुना है। आबादी के अनुपात के आधार पर तुलना की जाये, तो कहा जा सकता है कि बेंगलुरु में मुंबई और दिल्ली की तुलना में करीब 150 प्रतिशत ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं। और यह ट्रेंड पिछले एक-दो साल का नहीं है। सिलिकॉन सिटी बेंगलुरु कई सालों से भारत की आत्महत्या राजधानी बना हुआ है। हालांकि शिक्षा, रोजगार, आवास और जीवन-स्तर के आधार पर बेंगलुरु को देश के बेहतरीन शहरों में गिना जाता है। यहां के मध्यमवर्गीय लोग स्वभाव से शांतिप्रिय और संतोषी हैं। उच्चवर्गीय भी आदर्शवादी हैं और विभिन्न व्यवसायों से कमाये धन को समान के जरूरतमंद लोगों पर खर्च करके कॉपोर्रेट जिम्मेदारी निभाते हैं। तो क्या निम्नवर्ग के लोग ज्यादा परेशान हैं और आत्महत्याएं कर रहे हैं?
����हीं। चौंकाने वाली बात यही है कि शिक्षित, मध्यवर्गीय और अपने सपनों को पूरा करने के नजदीक पहुंच चुके युवाओं की तादाद अपनी जिंदगी खत्म करने वालों में सबसे ज्यादा है। पिछले एक-डेढ़ दशक में आईटी का बड़ा केन्द्र बनने के कारण बेंगलुरु इस क्षेत्र के युवा प्रफेशनलों की पहली पसंद बना हुआ है। देश के कोने-कोने से आईटी में माहिर नौजवान यहां आकर अच्छे वेतन पर अच्छी नौकरियां पा रहे हैं। पढ़ने के लिए भी यहां काफी युवा आते हैं। अपने आसपास वे रोजगार का बेहतरीन माहौल देखते हैं। जीवन में कुछ पाने के उनके सपने बढ़ते चले जाते हैं। वे 50 हजार रुपये महीने की नौकरी को तो कुछ समझते ही नहीं। मिलियन रुपीज (10 लाख रुपये सालाना) से कम का पैकेज वे अपमानजनक मानते हैं। जब 23-24 साल की उम्र में पहला वेतन इस रेंज में मिलता है, तो खर्च भी वैसे ही किया जाता है। फिर लाइफस्टाइल इस तरह ढलती चली जाती है कि क्रेडिट पर खर्च होने लगता है। कई-कई एटीएम कार्ड इस्तेमाल करके बेतहाशा खर्च किया जाता है।
ऐसे में, करियर या जीवन में जरा सी गड़बड़ होते ही जो ठोकर लगती है, उससे संभलना मुश्किल हो जाता है। आर्थिक मंदी के कारण नौकरी चली जाए, क्रेडिट पर लेकर खर्च किया पैसा वापस करना मुहाल हो जाए या ऐसे हालात में दोस्तों के मुंह मोड़ने से जिंदगी में अकेलापन आ जाए, तो फिर युवा इन हालात में संघर्ष करने की मानसिक स्थिति में नहीं होते। वे 12 घंटे के ऑफिस आवर्स के बाद मल्टीफ्लेक्स, मॉल, पब और बार के जीवन के आदी हो चुके होते हैं और जिंदगी के इस मुकाम पर लगभग एकाकी होते हैं। कोई नहीं होता उन्हें संभालने वाला। सभी महानगरों की यही स्थिति है। अब तो मध्यम आकार के शहरों में भी ऐसा होने लगा है। ये युवा निराशा के भंवर में फंसकर जब कोई रास्ता नहीं देख पाते, तो मौत को गले लगा लेते हैं।
पिछले 1 साल में देश भर में एक लाख किसानों ने आत्महत्या की। मगर इसी दौरान शहरों महानगरों में पांच लाख से ज्यादा युवाओं ने आत्महत्या की। किसान गरीबी की वजह से मौत के आगोश में गए, पर शहरी युवाओं ने मनोवांछित वैभव-विलास न मिलने के कारण मृत्यु का वरण किया। क्या आपका ध्यान इस ओर गया है?
-भुवेंद्र त्यागी
Source : नवभारत टाइम्स
http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/mumbaimerijaan/entry/%E0%A4%95-%E0%A4%AF-%E0%A4%95-%E0%A4%B8-%E0%A4%95-%E0%A4%A7-%E0%A4%AF-%E0%A4%A8-%E0%A4%87%E0%A4%B8-%E0%A4%93%E0%A4%B0-%E0%A4%97%E0%A4%AF-%E0%A4%B91
चरित्रहीनता क्या है ?
सबसे पहले हमें जानना होगा कि चरित्र कहते किसे हैं !... शरीर से जुड़ा है चरित्र या आत्मा से !.... चरित्र एक बहुत बड़ा अंश है भीतर का . एक मामूली सी बात पर हम किसी को चरित्रहीन ठहरा देते हैं ,जो सही नहीं है ! ....चोरी , झूठ , ह्त्या , शारीरिक संबंध ...... अवश्य ही इनसे चरित्र का निर्माण होता है ..... पर भूख के लिए की गई चोरी ? मुख्य चोर से अधिक उसे बेरहमी से मारा जाता है, क्योंकि उसकी ज़रूरतों ने उसे पलटकर वार करना नहीं सिखाया होता है ! झूठ की आदत और भयग्रसित झूठ , किसी को बचाने के लिए बोला गया झूठ , किसी व्यक्तिविशेष के अत्याचारों से बचने में बोला गया झूठ - फर्क होता है ! सुकून के लिए किसी को मारना , किसी प्राप्य के लिए किसी की ह्त्या , बचाव में की गई ह्त्या , अनजाने में हुई हत्या .... इनके भी मायने अलग हैं ! शरीर .....शरीर तो हर आचार विचारों का दान धर्म का भावनाओं का उच्च निम्न विचारों का व्यभिचार का ज़रूरतों का स्रोत है ...तो हम शरीर की ही विस्तृत व्याख्या करेंगे !
उससे पहले हमें यह भी जानना होगा कि आदत और चरित्र में अंतर है। आदतें अच्छी और बुरी हो सकती हैं। चरित्र कोई वस्त्र नहीं है , जिसे ओढ़ा और सुरक्षित हो गए , चरित्रवान हमेशा अहंकार से दूर रहता है। वह अपनी उपलब्धियों पर इतराता नहीं। वह जीवन को नींद में नहीं बिताता। चरित्रवान मेहनती होता है। वह हमेशा सतर्क रहता है, सावधान रहता है। दुष्टों के साथ से दूर रहता है। बु़द्धिमानों का साथ करता है। ऐसे चरित्रवान व्यक्ति के पास धन-सम्पदा और यश ख़ुद चलकर आते हैं।
अधिकांश लोग शरीर से चरित्र को जोड़ते हैं ... शरीर की अपनी एक ज़रूरत होती है, इसके लिए ही विवाह जैसी संस्था बनाई गई . शरीर एक बहुत ही ख़ास पहलू है , यह प्यार चाहता है . मनुष्य का शरीर जानवर नहीं , तो निःसंदेह वह एक प्यार से शुरू होता है, सम्मान से शुरू होता है - जहाँ प्यार और सम्मान नहीं , उसे सामाजिक ,पारिवारिक स्वीकृति ही क्यूँ न मिली हो - वह आत्मा का हनन है , और आत्मा का हनन चरित्रहीनता है . ...... जो स्त्रियाँ शरीर का व्यापार करती हैं - हम अक्सर उन्हें ही चरित्रहीन कहते हैं , पर जो शान से वहाँ जाते हैं , उनकी कीमत लगाते हैं - उनको कुछ नहीं कहते .
मनुष्य-चरित्र को परखना भी बड़ा कठिन कार्य है, किन्तु असम्भव नहीं है। कठिन वह केवल इसलिए नहीं है कि उसमें विविध तत्त्वों का मिश्रण है बल्कि इसलिए भी है कि नित्य नई परिस्थितियों के आघात-प्रतिघात से वह बदलता रहता है। वह चेतन वस्तु है। परिवर्तन उसका स्वभाव है। प्रयोगशाला की परीक्षण नली में रखकर उसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता। उसके विश्लेषण का प्रयत्न सदियों से हो रहा है। हजारों वर्ष पहले हमारे विचारकों ने उसका विश्लेषण किया था। आज के मनोवैज्ञानिक भी इसी में लगे हुए हैं। फिर भी यह नहीं कह सकते कि मनुष्य-चरित्र का कोई भी संतोषजनक विश्लेषण हो सका है।
'चरित्र' व्यापक शब्द है। साधारणतः चरित्र का अर्थ होता है नैतिक सदाचार। जब हम कहते हैं कि अमुक व्यक्ति चरित्रवान है तो हमारा अर्थ होता है कि वह नैतिक सदाचारशील है। चरित्र का व्यापक अर्थ लिया जाय तो वह व्यक्ति की दयालुता, कृपालुता, सत्यप्रियता, उदारता, क्षमाशीलता और सहिष्णुता का द्योतक होता है। चरित्रवान व्यक्ति में सभी दैवी गुणों का समावेश रहता है। नैतिक दृष्टिकोण से तो वह सिद्ध होगा ही, साथ-साथ दैवी गुणों का विकास भी उसमें पूर्णतया होना चाहिए।
जानबूझकर असत्य भाषण करना, स्वार्थी और लोलुप होना, दूसरों के दिल को चोट पहुँचाना – इन सबसे मनुष्य के दुश्चरित्र का बोध होता है
पर समाज में चरित्र का मापदण्ड वह होता है जो दिखता है. यानी कि अगर आप ने ऊपरी दिखावा कर लोगों के दिलों में जगह बना ली तो आप राम वरना रावण. अंदर चाहे आप कत्ल करें या किसी की इज्ज़त ले लें - कोई फर्क नहीं पड़ता. दिखता वही है जो ऊपर होता है.
इसके साथ पैसा भी चरित्र मापने का एक पैमाना माना जाता है. हमारे समाज में अधिकांशतः आदमी का चरित्र रुपए से तौला जाता है. यदि कोई व्यक्ति संपन्न है, लेकिन उसका आचरण भ्रष्ट है तो भी समाज उसे भले-मानुष के तौर पर स्वीकार लेगा, जबकि गरीब आदमी की छोटी-सी गलती से भी उस पर लोग चरित्रहीन होने की मुहर लगा देंगे.
परिस्थितियाँ भी मायने रखती हैं - चरित्र एक सूक्ष्म दर्पण है, जिसकी व्याख्या संभव नहीं ....
परिवार सहित आत्महत्या क्यों ?
इक्का दुक्का लोगों की खुदकुशी को अब लोग ज़्यादा तवज्जो नहीं देते। कह देते हैं कि भावना में बहकर उन्होंने ऐसा क़दम उठा लिया लेकिन जब पूरा परिवार ही खुदकुशी कर ले तो आज भी लोग सिहर उठते हैं।
यह हमारे समाज का सच है।
जब हमारा समाज सभ्य है और लोग बताते हैं कि इसमें दूसरों के दुख दर्दों के प्रति संवेदनशीलता भी है और कंबल बांटते हुए और प्याऊ का उद्घाटन करते हुए लोगों के फ़ोटो भी अख़बारों में छपते रहते हैं तो यह सब होते हुए भी पूरे के पूरे परिवार आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ?
देखिए ऐसे ही एक हादसे की रिपोर्ट :
यह हमारे समाज का सच है।
जब हमारा समाज सभ्य है और लोग बताते हैं कि इसमें दूसरों के दुख दर्दों के प्रति संवेदनशीलता भी है और कंबल बांटते हुए और प्याऊ का उद्घाटन करते हुए लोगों के फ़ोटो भी अख़बारों में छपते रहते हैं तो यह सब होते हुए भी पूरे के पूरे परिवार आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ?
देखिए ऐसे ही एक हादसे की रिपोर्ट :
एक ही परिवार के 10 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली है | |
2011-10-04 19:34:59 | |
उत्तराखंड में देहरादून के पास यमुना के नहर में कूदकर एक ही परिवार के 10 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली है. पुलिस अधिकारियों के अनुसार ये सभी लोग मूल रूप से मुजफ़्फ़रनगर के थे और देहरादून और आसपास के इलाकों में मेहनत-मज़दूरी करके अपना पेट पालते थे. मंगलवार की सुबह इस घटना का पता चला जब यमुना पर बने शक्तिनहर के पास एक बूढ़ी महिला बेहोशी की हालत में मिली जिसके हाथ-पांव बंधे हुए थे. पुलिस ने छानबीन की तो ये पाया कि 10 लोगों ने यमुना में कूदकर जान दे दी है. इसमें तीन महिलाएं, छह बच्चे और एक पुरुष शामिल हैं. ये तीन महिलाएं उस बूढ़ी महिला की बेटियां थीं, पुरुष उस महिला का दामाद और सभी छह बच्चे उन तीन महिलाओं के थे. इनमें से एक चार महीने का बच्चा भी था जिसे उसकी मां ने अपने शरीर से बांधकर नहर में छलांग लगाई थी. बताया जा रहा है कि सोमवार शाम मनोज ही इन सबको समझा-बुझाकर अपने साथ ले गया था और देर रात उन्होंने एक साथ मौत को गले लगा लिया. पुलिस के अनुसार नहर के पास मिली बूढ़ी महिला अभी भी बेहोशी की हालत में है. पुलिस ने छह बच्चों सहित तीन महिलाओं के शव ढकरानी पावर हाउस के पास से बरामद कर लिये हैं और पुरुष मनोज के शव की तलाश जारी है. घटना के बाद शक्ति नहर को बंद करवा दिया गया है. अवसाद या ग़रीबी? \"परिवार में अब एक बहन बच गई है और उससे पूछताछ की तो उसने बताया कि आत्महत्या करने से पहले उसे फ़ोन करके बताया गया था कि परिवार के ये सभी लोग नहर में कूदने जा रहे हैं\" पुलिस इंस्पेक्टर एसएस बिष्ट घटनास्थल पर गये वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जी एन गोस्वामी ने कहा, “प्रारंभिक जांच में ये आत्महत्या का मामला दिखता है हालांकि अन्य पहलुओं से भी जांच की जा रही है.” नहर से जब एक-एक कर नौ शव निकाले गए तो वहां मौजूद लोग स्तब्ध होकर देख रहे थे और उनकी आंखों में आंसू थे. घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. हालांकि नींद की गोलियों के रैपर मिले हैं इससे अंदेशा ज़ाहिर किया जा रहा है कि शायद बच्चों को दवा देकर नींद और बेहोशी की हालत में नहर में फेंका गया होगा. पुलिस के मुताबिक़ तीन महीने पहले इसी परिवार की एक जवान बेटी की बीमारी से मौत हो गई थी और उसके बाद से ही पूरा परिवार अवसाद यानी डिप्रेशन का शिकार था और अक्सर हमेशा ही दुनिया छोड़ देने की बात करता था. पुलिस इंस्पेक्टर एसएस बिष्ट ने बताया, \"परिवार में अब एक बहन बच गई है और उससे पूछताछ की तो उसने बताया कि आत्महत्या करने से पहले उसे फ़ोन करके बताया गया था कि परिवार के ये सभी लोग नहर में कूदने जा रहे हैं.” पुलिस जाँच अभी भी परिवार के एकमात्र पुरुष सदस्य का शव नहीं मिला है पुलिस अधिकारियो का कहना है कि घटना के बाद रीटा नाम की ये महिला भी सदमे में है और जान देने की बात कर रही है. सामूहिक आत्महत्या की इस घटना का कारण वैसे तो अवसाद बताया जा रहा है लेकिन कहा जा रहा है कि आर्थिक तंगी भी बड़ी वजह हो सकती है. हांलाकि पुलिस ऐसा कहने से बच रही है. आसपास के लोगों का कहना है कि इतने बड़े परिवार का खर्च मुश्किल से चल पाता था. उनका कहना है कि तीन महीने पहले भी परिवार की जिस बेटी की मौत हुई थी तो उसके इलाज के लिये भी परिवार के पास पैसे नहीं थे |
यह कैसा विकास !
इक्कीसवीं सदी के इस मुकाम पर पहुँच कर हम गर्व से मस्तक ऊँचा कर खुद के पूरी तरह विकसित होने का ढिंढोरा पीटते तो दिखाई देते हैं लेकिन सच में हमें आत्म चिंतन की बहुत ज़रूरत है कि हम वास्तव में विकसित हो चुके हैं या विकसित होने का सिर्फ़ एक मीठा सा भ्रम पाले हुए हैं ।
विकास को सही अर्थों में नापने का क्या पैमाना होना चाहिये ? क्या आधुनिक और कीमती परिधान पहनने से ही कोई विकसित हो जाता है ? क्या परम्परागत जीवन शैली और नैतिकता को अमान्य कर पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करने से ही कोई विकसित हो जाता है ? क्या सामाजिक मर्यादा और पारिवारिक मूल्यों की अवमानना कर विद्रोह की दुंदुभी बजाने का साहस दिखाने से ही कोई विकसित हो जाता है ? या फिर उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेने के दम्भ में अपने से पीछे छूट जाने वालों को हिक़ारत और तिरस्कार की दृष्टि से देखने वालों को विकसित माना जा सकता है ? या फिर अकूत धन दौलत जमा कर बड़े बड़े उद्योग खड़े कर समाज के चन्द चुनिन्दा धनाढ्य लोगों की श्रेणी में अपना स्थान सुनिश्चित कर लेने वालों को विकसित माना जा सकता है ? या फिर वे लोग विकसित हैं जिन्होंने विश्व के अनेकों शहरों में आलीशान कोठियाँ और बंगले बनवा रखे हैं और जो समाज के अन्य सामान्य वर्गों के साथ एक मंच पर खड़े होने में भी अपना अपमान समझते हैं ? आखिर हम विकास के किस माप दण्ड को न्यायोचित समझें ? यह तस्वीर भारत के ऐसे बड़े शहरों की है जहाँ समाज के सबसे सभ्य और सम्पन्न समझे जाने वाले लोग रहते हैं । लेकिन ऐसे ही विकसित और सभ्य लोगों के बीच जैसिका लाल हत्याकाण्ड, नैना साहनी हत्याकाण्ड, मधुमिता हत्याकाण्ड, बी. एम. डबल्यू काण्ड, शिवानी हत्याकाण्ड, निठारी काण्ड, आरुषी हत्याकाण्ड ऐसे ही और भी न जाने कितने अनगिनत जघन्य काण्ड कैसे घटित हो जाते हैं ? इन घटनाओं के जन्मदाता तो विकसित भारत का प्रतिनिधित्व करते जान पड़ते हैं । तो क्या ‘विकसित’ और ‘सभ्य’ भारतीयों की मानसिकता इतनी घिनौनी और ओछी है ? उनमें मानवीयता और सम्वेदनशीलता का इतना अभाव है कि इस तरह की लोमहर्षक और रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदातें हो जाती हैं और बाकी सारे लोग निस्पृह भाव से मूक दर्शक बने देखते रहते हैं कुछ कर नहीं पाते । क़्या सभ्य होने की हमें यह कीमत चुकानी होगी ? तो क्या भौतिक सम्पन्नता को विकास का पैमाना मान लेना उचित होगा ?
भारत के छोटे शहरों की तस्वीर भी इससे कुछ अलग नहीं है । सभ्य और सुसंस्कृत होने का दम्भ हमारे छोटे शहरों के लोगों को भी कम नहीं है और विकास का झंडा वे भी बड़ी
शान से उठाये फिरते हैं । लेकिन यहाँ अशिक्षा, अंधविश्वास, पूर्वाग्रह और सड़ी गली रूढ़ियों ने अपनी जड़ें इतनी मजबूती से जमा रखी हैं कि आसानी से उन्हें उखाड़ फेंकना सम्भव नहीं है । शायद इसीलिये यहाँ 21वीं सदी के इस दौर में भी जात पाँत और छूत अछूत का भेद भाव आज भी मौजूद है । आज भी यहाँ सवर्णो द्वारा किसी दलित युवती को निर्वस्त्र कर गाँव में परेड करायी जाती है तो सारा गाँव दम साधे चुप चाप यह अनर्थ होते देखता रहता है विरोध का एक भी स्वर नहीं फूटता । आज भी यहाँ ठाकुरों की बारात में यदि कोई दलित सहभोज में साथ में बैठ कर खाना खा लेता है तो उसे सरे आम गोली मार दी जाती है । आज भी यहाँ अबोध बालिकायें वहशियों की हवस का शिकार होती रहती हैं और थोड़ी सी जमीन या दौलत के लिये पुत्र पिता का या भाई भाई का खून कर देता है । तो फिर हम कैसे खुद को सभ्य और विकसित मान सकते हैं ? हमें आत्म चिंतन की सच में बहुत ज़रूरत है । विकास भौतिक साधनों को जुटा लेने से नहीं आ जाता । अपने विचारों से हम कितने शुद्ध हैं, अपने आचरण से हम कितने सात्विक हैं, और दूसरों की पीड़ा से हमारा दिल कितना पसीजता है यह विचारणीय होना चाहिये । अपने अंतर में झाँक कर देखने की ज़रूरत है कि निज स्वार्थों को परे सरका कर हम दूसरों के हित के लिये कितने प्रतिबद्ध हैं, कितने समर्पित हैं । सही अर्थ में विकसित कहलाने के लिये मानसिक रूप से समृद्ध और सम्पन्न होना नितांत आवश्यक है और इसके लिये ज़रूरी है कि हम अपनी सोच को बदलें , अपने आचरण को बदलें और एक बेहतर समाज की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में कृत संकल्प हो जायें ।
साधना वैद
विकास को सही अर्थों में नापने का क्या पैमाना होना चाहिये ? क्या आधुनिक और कीमती परिधान पहनने से ही कोई विकसित हो जाता है ? क्या परम्परागत जीवन शैली और नैतिकता को अमान्य कर पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करने से ही कोई विकसित हो जाता है ? क्या सामाजिक मर्यादा और पारिवारिक मूल्यों की अवमानना कर विद्रोह की दुंदुभी बजाने का साहस दिखाने से ही कोई विकसित हो जाता है ? या फिर उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेने के दम्भ में अपने से पीछे छूट जाने वालों को हिक़ारत और तिरस्कार की दृष्टि से देखने वालों को विकसित माना जा सकता है ? या फिर अकूत धन दौलत जमा कर बड़े बड़े उद्योग खड़े कर समाज के चन्द चुनिन्दा धनाढ्य लोगों की श्रेणी में अपना स्थान सुनिश्चित कर लेने वालों को विकसित माना जा सकता है ? या फिर वे लोग विकसित हैं जिन्होंने विश्व के अनेकों शहरों में आलीशान कोठियाँ और बंगले बनवा रखे हैं और जो समाज के अन्य सामान्य वर्गों के साथ एक मंच पर खड़े होने में भी अपना अपमान समझते हैं ? आखिर हम विकास के किस माप दण्ड को न्यायोचित समझें ? यह तस्वीर भारत के ऐसे बड़े शहरों की है जहाँ समाज के सबसे सभ्य और सम्पन्न समझे जाने वाले लोग रहते हैं । लेकिन ऐसे ही विकसित और सभ्य लोगों के बीच जैसिका लाल हत्याकाण्ड, नैना साहनी हत्याकाण्ड, मधुमिता हत्याकाण्ड, बी. एम. डबल्यू काण्ड, शिवानी हत्याकाण्ड, निठारी काण्ड, आरुषी हत्याकाण्ड ऐसे ही और भी न जाने कितने अनगिनत जघन्य काण्ड कैसे घटित हो जाते हैं ? इन घटनाओं के जन्मदाता तो विकसित भारत का प्रतिनिधित्व करते जान पड़ते हैं । तो क्या ‘विकसित’ और ‘सभ्य’ भारतीयों की मानसिकता इतनी घिनौनी और ओछी है ? उनमें मानवीयता और सम्वेदनशीलता का इतना अभाव है कि इस तरह की लोमहर्षक और रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदातें हो जाती हैं और बाकी सारे लोग निस्पृह भाव से मूक दर्शक बने देखते रहते हैं कुछ कर नहीं पाते । क़्या सभ्य होने की हमें यह कीमत चुकानी होगी ? तो क्या भौतिक सम्पन्नता को विकास का पैमाना मान लेना उचित होगा ?
भारत के छोटे शहरों की तस्वीर भी इससे कुछ अलग नहीं है । सभ्य और सुसंस्कृत होने का दम्भ हमारे छोटे शहरों के लोगों को भी कम नहीं है और विकास का झंडा वे भी बड़ी
शान से उठाये फिरते हैं । लेकिन यहाँ अशिक्षा, अंधविश्वास, पूर्वाग्रह और सड़ी गली रूढ़ियों ने अपनी जड़ें इतनी मजबूती से जमा रखी हैं कि आसानी से उन्हें उखाड़ फेंकना सम्भव नहीं है । शायद इसीलिये यहाँ 21वीं सदी के इस दौर में भी जात पाँत और छूत अछूत का भेद भाव आज भी मौजूद है । आज भी यहाँ सवर्णो द्वारा किसी दलित युवती को निर्वस्त्र कर गाँव में परेड करायी जाती है तो सारा गाँव दम साधे चुप चाप यह अनर्थ होते देखता रहता है विरोध का एक भी स्वर नहीं फूटता । आज भी यहाँ ठाकुरों की बारात में यदि कोई दलित सहभोज में साथ में बैठ कर खाना खा लेता है तो उसे सरे आम गोली मार दी जाती है । आज भी यहाँ अबोध बालिकायें वहशियों की हवस का शिकार होती रहती हैं और थोड़ी सी जमीन या दौलत के लिये पुत्र पिता का या भाई भाई का खून कर देता है । तो फिर हम कैसे खुद को सभ्य और विकसित मान सकते हैं ? हमें आत्म चिंतन की सच में बहुत ज़रूरत है । विकास भौतिक साधनों को जुटा लेने से नहीं आ जाता । अपने विचारों से हम कितने शुद्ध हैं, अपने आचरण से हम कितने सात्विक हैं, और दूसरों की पीड़ा से हमारा दिल कितना पसीजता है यह विचारणीय होना चाहिये । अपने अंतर में झाँक कर देखने की ज़रूरत है कि निज स्वार्थों को परे सरका कर हम दूसरों के हित के लिये कितने प्रतिबद्ध हैं, कितने समर्पित हैं । सही अर्थ में विकसित कहलाने के लिये मानसिक रूप से समृद्ध और सम्पन्न होना नितांत आवश्यक है और इसके लिये ज़रूरी है कि हम अपनी सोच को बदलें , अपने आचरण को बदलें और एक बेहतर समाज की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में कृत संकल्प हो जायें ।
साधना वैद
रिफाइन सर्च के चंद फॉर्मूले Hindi Blogging Guide (37)
सर्च इंजन में सामग्री ढूंढ़ते समय कुछ छोटी-छोटी टिप्स वक्त भी बचा सकती हैं और मेहनत भी
इंटरनेट पर मनचाही सामग्री की तलाश के लिए मदद ली जाती है सर्च इंजन की। सामग्री से जुड़े की-वर्ड को जैसे ही सर्च इंजन में डाला जाता है, हजारों रिजल्ट मिलते हैं। अब समस्या शुरू होती है कि इनमें से कौनसे पेज को खोलकर देखा जाए, जिसमें जरूरत के मुताबिक सामग्री मिल सके। एक-एक कर पेज खोले जाते हैं और उसी रफ्तार से बंद भी कर दिए जाते हैं। अगर किस्मत अच्छी है तो जल्द ही सामग्री मिल जाती है और अगर आप किसी खास चीज को तलाश कर रहे हैं, तो हो सकता है कि इसके लिए कई घंटे लग जाएं। गहन और सटीक सर्च के लिए सर्च इंजन की भाषा समझना जरूरी है। इसके कुछ छोटे-छोटे नियम हैं, जो आमतौर पर काम में नहीं लिए जाते। अगर इन नियमों का ध्यान रखा जाए तो न केवल सर्च काफी धारदार हो जाएगी, बल्कि वक्त और मेहनत की भी बचत होगी। सर्च को धारदार बनाने के लिए जानिए कुछ टिप्स-
की-वर्ड्स का चयन
सर्च के लिए आपको सही की-वर्ड का निर्धारण करना होता है और दूसरे नतीजों के लिए विकल्प भी तैयार रखना होता है। जैसे अगर आप ब्लॉग के लिए टेम्पलेट ढूंढ रहे हैं और holidays singapore से आपको मनचाहे रिजल्ट नहीं मिल रहे हैं तो singapore vacation को आजमा सकते हैं। अगर आपको शब्दों की सही स्पेलिंग नहीं आती तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। गूगल और याहू जैसे अधिकतर सर्च इंजन इस मामले में इंटेलिजेंट हैं और सही स्पेलिंग खुद-ब-खुद सुझा देते हैं।
कैटेगरी का चयन
कई बार सही कैटेगरी नहीं चुनने की वजह से भी सर्च में समस्या आ सकती है। मसलन अगर आप भारत-बांग्लादेश टेस्ट मैच की ताज़ा जानकारी तलाश रहे हैं तो आप वेब की बजाय न्यूज कैटेगरी में जाइए। अगर आप वेब कैटेगरी में तलाशेंगे तो ऊपर के नतीजों में आपको इन टीमों से जुड़ी पुरानी जानकारी भी मिल सकती है। जबकि न्यूज कैटेगरी में सबसे ऊपर ताजा जानकारी मिल जाएगी। इसी तरह इमेज, ग्रुप, मैप आदि कैटेगरी को चुनकर आप सर्च को शार्प कर सकते हैं। आजकल गूगल सर्च इंजन में वेब कैटेगरी में भी एक रिजल्ट न्यूज कैटेगरी का दिखाया जाता है।
प्रिपोजिशन हटाएं
सर्च इंजन इस तरह डिजायन किए गए हैं कि अधिकतर प्रिपोजिशन उनके लिए बेमानी हैं। मसलन and, of, for, in जैसे शब्दों को ये इंजन अपनी सर्च में शामिल नहीं करते। इसलिए बेहतर है कि की-वर्ड्स में इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाए। इसके अलावा आप सर्च के लिए जितने शब्द लिखेंगे, सर्च इंजन उन सभी शब्दों को ढूंढ़ते हैं, भले ही वे मैटर में किसी भी जगह और किसी भी क्रम में क्यों नहीं हो।
फ्रेज को यूं तलाशें
मान लीजिए आपको the long and winding road एक साथ तलाशना है तो इसके लिए उद्धरण चिन्हों (इन्वर्टेड कोमाज) की मदद लेनी चाहिए। अगर आप इसे इन्वर्टेड कोमाज के बीच "the long and winding road" लिखकर सर्च करेंगे तो आपको केवल वे ही रिजल्ट मिलेंगे जिसमें ये सभी शब्द एक साथ इसी क्रम में हैं।
वर्ड नहीं चाहिए
कई बार ऐसा होता है कि आपको clinton पर सामग्री चाहिए पर वो नहीं जिसमें lewinsky के बारे में जिक्र हो। इसके लिए आप एक शब्द के बाद स्पेस देकर माइनस चिन्ह का प्रयोग कर सकते हैं। मसलन अगर आप clinton -lewinsky तलाशेंगे तो आपको वे ही रिजल्ट मिलेंगे जिनमें केवल क्लिंटन है और लेविंस्की नहीं।
यूआरएल सर्च
यूआरएल या वेब एड्रेस में अगर आपको किसी शब्द की सर्च करनी है तो आप inurl की मदद ले सकते हैं। मसलन अगर आपको वे वेब एड्रेस चाहिए जिनमें time शब्द आता हो आप सर्च इंजन में inurl:time लिखकर एंटर करें। सभी रिजल्ट वे ही मिलेंगे जिनके वेब एड्रेस में कहीं न कहीं time शब्द आता है।
परिभाषा जानें
अगर आपको किसी शब्द का अर्थ जानना है तो वेब डिक्शनरी पर जाने की जरूरत नहीं है। अगर आप define:time सर्च इंजन में डालेंगे तो आपको time शब्द की परिभाषा मिल जाएगी। इसी तरह आप दूसरे शब्दों की परिभाषा और अर्थ जान सकते हैं।
आई एम फीलिंग लकी
गूगल सर्च इंजन वक्त बचाने के लिए यह फेसिलिटी प्रोवाइड करा रहा है जिसमें सर्च करते वक्त वही पेज खुलता है जो सबसे रेलेवेंट होता है। इसके लिए सर्च बॉक्स में की-वर्ड लिखकर सर्च की बजाय आई एम फीलिंग लकी बटन को प्रेस कीजिए। सबसे रेलेवेंट साइट के ही खुलने से वक्त की बचत होती है।
हिन्दी में सर्च
अगर आपको अपनी सर्च के नतीजे देवनागरी हिन्दी में चाहिए तो आप इस लिंक की मदद लेकर अपने नतीजे हिन्दी में प्राप्त कर सकते हैं। यहां आप रोमन में लिखिए और ट्रांसलिटरेटर सेवा इसे देवनागरी में बदलकर नतीजे देवनागरी में ही उपलब्ध कराती है।
उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।
हैपी ब्लॉगिंग
इंटरनेट पर मनचाही सामग्री की तलाश के लिए मदद ली जाती है सर्च इंजन की। सामग्री से जुड़े की-वर्ड को जैसे ही सर्च इंजन में डाला जाता है, हजारों रिजल्ट मिलते हैं। अब समस्या शुरू होती है कि इनमें से कौनसे पेज को खोलकर देखा जाए, जिसमें जरूरत के मुताबिक सामग्री मिल सके। एक-एक कर पेज खोले जाते हैं और उसी रफ्तार से बंद भी कर दिए जाते हैं। अगर किस्मत अच्छी है तो जल्द ही सामग्री मिल जाती है और अगर आप किसी खास चीज को तलाश कर रहे हैं, तो हो सकता है कि इसके लिए कई घंटे लग जाएं। गहन और सटीक सर्च के लिए सर्च इंजन की भाषा समझना जरूरी है। इसके कुछ छोटे-छोटे नियम हैं, जो आमतौर पर काम में नहीं लिए जाते। अगर इन नियमों का ध्यान रखा जाए तो न केवल सर्च काफी धारदार हो जाएगी, बल्कि वक्त और मेहनत की भी बचत होगी। सर्च को धारदार बनाने के लिए जानिए कुछ टिप्स-
की-वर्ड्स का चयन
सर्च के लिए आपको सही की-वर्ड का निर्धारण करना होता है और दूसरे नतीजों के लिए विकल्प भी तैयार रखना होता है। जैसे अगर आप ब्लॉग के लिए टेम्पलेट ढूंढ रहे हैं और holidays singapore से आपको मनचाहे रिजल्ट नहीं मिल रहे हैं तो singapore vacation को आजमा सकते हैं। अगर आपको शब्दों की सही स्पेलिंग नहीं आती तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। गूगल और याहू जैसे अधिकतर सर्च इंजन इस मामले में इंटेलिजेंट हैं और सही स्पेलिंग खुद-ब-खुद सुझा देते हैं।
कैटेगरी का चयन
कई बार सही कैटेगरी नहीं चुनने की वजह से भी सर्च में समस्या आ सकती है। मसलन अगर आप भारत-बांग्लादेश टेस्ट मैच की ताज़ा जानकारी तलाश रहे हैं तो आप वेब की बजाय न्यूज कैटेगरी में जाइए। अगर आप वेब कैटेगरी में तलाशेंगे तो ऊपर के नतीजों में आपको इन टीमों से जुड़ी पुरानी जानकारी भी मिल सकती है। जबकि न्यूज कैटेगरी में सबसे ऊपर ताजा जानकारी मिल जाएगी। इसी तरह इमेज, ग्रुप, मैप आदि कैटेगरी को चुनकर आप सर्च को शार्प कर सकते हैं। आजकल गूगल सर्च इंजन में वेब कैटेगरी में भी एक रिजल्ट न्यूज कैटेगरी का दिखाया जाता है।
प्रिपोजिशन हटाएं
सर्च इंजन इस तरह डिजायन किए गए हैं कि अधिकतर प्रिपोजिशन उनके लिए बेमानी हैं। मसलन and, of, for, in जैसे शब्दों को ये इंजन अपनी सर्च में शामिल नहीं करते। इसलिए बेहतर है कि की-वर्ड्स में इस तरह के शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाए। इसके अलावा आप सर्च के लिए जितने शब्द लिखेंगे, सर्च इंजन उन सभी शब्दों को ढूंढ़ते हैं, भले ही वे मैटर में किसी भी जगह और किसी भी क्रम में क्यों नहीं हो।
फ्रेज को यूं तलाशें
मान लीजिए आपको the long and winding road एक साथ तलाशना है तो इसके लिए उद्धरण चिन्हों (इन्वर्टेड कोमाज) की मदद लेनी चाहिए। अगर आप इसे इन्वर्टेड कोमाज के बीच "the long and winding road" लिखकर सर्च करेंगे तो आपको केवल वे ही रिजल्ट मिलेंगे जिसमें ये सभी शब्द एक साथ इसी क्रम में हैं।
वर्ड नहीं चाहिए
कई बार ऐसा होता है कि आपको clinton पर सामग्री चाहिए पर वो नहीं जिसमें lewinsky के बारे में जिक्र हो। इसके लिए आप एक शब्द के बाद स्पेस देकर माइनस चिन्ह का प्रयोग कर सकते हैं। मसलन अगर आप clinton -lewinsky तलाशेंगे तो आपको वे ही रिजल्ट मिलेंगे जिनमें केवल क्लिंटन है और लेविंस्की नहीं।
यूआरएल सर्च
यूआरएल या वेब एड्रेस में अगर आपको किसी शब्द की सर्च करनी है तो आप inurl की मदद ले सकते हैं। मसलन अगर आपको वे वेब एड्रेस चाहिए जिनमें time शब्द आता हो आप सर्च इंजन में inurl:time लिखकर एंटर करें। सभी रिजल्ट वे ही मिलेंगे जिनके वेब एड्रेस में कहीं न कहीं time शब्द आता है।
परिभाषा जानें
अगर आपको किसी शब्द का अर्थ जानना है तो वेब डिक्शनरी पर जाने की जरूरत नहीं है। अगर आप define:time सर्च इंजन में डालेंगे तो आपको time शब्द की परिभाषा मिल जाएगी। इसी तरह आप दूसरे शब्दों की परिभाषा और अर्थ जान सकते हैं।
आई एम फीलिंग लकी
गूगल सर्च इंजन वक्त बचाने के लिए यह फेसिलिटी प्रोवाइड करा रहा है जिसमें सर्च करते वक्त वही पेज खुलता है जो सबसे रेलेवेंट होता है। इसके लिए सर्च बॉक्स में की-वर्ड लिखकर सर्च की बजाय आई एम फीलिंग लकी बटन को प्रेस कीजिए। सबसे रेलेवेंट साइट के ही खुलने से वक्त की बचत होती है।
हिन्दी में सर्च
अगर आपको अपनी सर्च के नतीजे देवनागरी हिन्दी में चाहिए तो आप इस लिंक की मदद लेकर अपने नतीजे हिन्दी में प्राप्त कर सकते हैं। यहां आप रोमन में लिखिए और ट्रांसलिटरेटर सेवा इसे देवनागरी में बदलकर नतीजे देवनागरी में ही उपलब्ध कराती है।
उम्मीद है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।
हैपी ब्लॉगिंग
साभार : http://tips-hindi.blogspot.com/2010/01/blog-post.html
क्यों मर रहे हैं उच्च शिक्षित हिन्दू युवा ?
लोग कहते है कि समस्याओं का समाधान है शिक्षा , तब समस्याएँ लगातार क्यों बढती जा रही हैं जबकि शिक्षा लगातार बढ़ रही है और उसका स्टार भी बढ़ता ही जा रहा है ?
आप देखिये यह रिपोर्ट :
गर्लफ्रेंड के इनकार पर आईआईटियन ने दी जान
वस॥ गोविंदपुरी
कालकाजी स्थित गोविंदपुरी में सोमवार रात 25 साल के एक युवक ने पंखे से लटकर आत्महत्या कर ली। युवक की पहचान अमित सिंह के रूप में हुई है। जो आईआईटी दिल्ली से बीटेक कर चुका था और सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था।
पुलिस के मुताबिक मृतक आगरा का रहने वाला था। पुलिस के मुताबिक गर्लफ्रेंड ने शादी से इनकार किया तो वह डिप्रेशन में चला गया था। पुलिस को घटनास्थल से एक सूइसाइड नोट बरामद हुआ। पुलिस सूत्रों ने बताया कि अमित आगरा से दिल्ली आकर यहां गली नंबर 4 में किराए के कमरे में रहता था। आईआईटी दिल्ली से 2008 में बीटेक करने के बाद वह साल भर पहले आईएएस की तैयारी में जुट गया। उसने मुखर्जी नगर में करीब एक साल पहले कोचिंग लेनी शुरू कर दी। यहां उसके पहचान एक लड़की से हुई। देखते ही देखते दोस्ती रिलेशनशिप में बदल गई। पुलिस ने बताया कि लड़की ने अमित के सामने शर्त रखी कि अगर वह कुछ बन जाएगा तो वह उससे शादी कर लेगी। कुछ दिन पहले एक कंपीटीटिव एग्जाम के दूसरे राउंड का अमित के पास कॉल आया। पुलिस के मुताबिक अमित ने जब अपनी गर्लफ्रेंड को इस बारे में बताकर शादी का प्रस्ताव रखा तो उसने कहा कि वह किसी और से रिलेशनशिप में है। इसके बाद अमित ने आत्महत्या कर ली।
कालकाजी स्थित गोविंदपुरी में सोमवार रात 25 साल के एक युवक ने पंखे से लटकर आत्महत्या कर ली। युवक की पहचान अमित सिंह के रूप में हुई है। जो आईआईटी दिल्ली से बीटेक कर चुका था और सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था।
पुलिस के मुताबिक मृतक आगरा का रहने वाला था। पुलिस के मुताबिक गर्लफ्रेंड ने शादी से इनकार किया तो वह डिप्रेशन में चला गया था। पुलिस को घटनास्थल से एक सूइसाइड नोट बरामद हुआ। पुलिस सूत्रों ने बताया कि अमित आगरा से दिल्ली आकर यहां गली नंबर 4 में किराए के कमरे में रहता था। आईआईटी दिल्ली से 2008 में बीटेक करने के बाद वह साल भर पहले आईएएस की तैयारी में जुट गया। उसने मुखर्जी नगर में करीब एक साल पहले कोचिंग लेनी शुरू कर दी। यहां उसके पहचान एक लड़की से हुई। देखते ही देखते दोस्ती रिलेशनशिप में बदल गई। पुलिस ने बताया कि लड़की ने अमित के सामने शर्त रखी कि अगर वह कुछ बन जाएगा तो वह उससे शादी कर लेगी। कुछ दिन पहले एक कंपीटीटिव एग्जाम के दूसरे राउंड का अमित के पास कॉल आया। पुलिस के मुताबिक अमित ने जब अपनी गर्लफ्रेंड को इस बारे में बताकर शादी का प्रस्ताव रखा तो उसने कहा कि वह किसी और से रिलेशनशिप में है। इसके बाद अमित ने आत्महत्या कर ली।
Source : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/10406659.cms
नवभारत टाइम्स पर भी "सिरफिरा-आजाद पंछी"
नवभारत टाइम्स पर पत्रकार रमेश कुमार जैन का ब्लॉग क्लिक करके देखें "सिरफिरा-आजाद पंछी" (प्रचार सामग्री)
क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं.वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है.उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये.एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं,प्रजा के दुःख दूर करना,सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना,उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेचली और किसी ने खबर.
अभी तो अजन्मा बच्चा हूँ दोस्तो
घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय
घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय-2
स्वयं गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूं
अब आरोपित को ऍफ़ आई आर की प्रति मिलेगी
यह हमारे देश में कैसा कानून है?
नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ
देशवासियों/पाठकों/ब्लॉगरों के नाम संदेश
आलोचना करने पर ईनाम?
जब पड़ जाए दिल का दौरा!
आओ दोस्तों हिन्दी-हिन्दी का खेल खेलें
हिंदी की टाइपिंग कैसे करें?
हिंदी में ईमेल कैसे भेजें
आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये
क्या मैंने कोई अपराध किया है?इस समूह में आपका स्वागत है
एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी
भगवान महावीर की शरण में हूँ
क्या यह निजी प्रचार का विज्ञापन है?
आप भी अपने मित्रों को बधाई भेजें
हमें अपना फर्ज निभाना है
क्या ब्लॉगर मेरी मदद कर सकते हैं ?
कटोरा और भीख
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी
घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय
घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय-2
स्वयं गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूं
अब आरोपित को ऍफ़ आई आर की प्रति मिलेगी
यह हमारे देश में कैसा कानून है?
नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ
देशवासियों/पाठकों/ब्लॉगरों के नाम संदेश
आलोचना करने पर ईनाम?
जब पड़ जाए दिल का दौरा!
पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव
भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई
माफ़ी मांग लेना काफी है?
मैं दूध पीता बच्चा हूँ और अपना जन्मदिन कब मनाऊं?
"शकुन्तला प्रेस" का व्यक्तिगत "पुस्तकालय" क्यों?भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई
माफ़ी मांग लेना काफी है?
मैं दूध पीता बच्चा हूँ और अपना जन्मदिन कब मनाऊं?
आओ दोस्तों हिन्दी-हिन्दी का खेल खेलें
हिंदी की टाइपिंग कैसे करें?
हिंदी में ईमेल कैसे भेजें
आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये
क्या मैंने कोई अपराध किया है?इस समूह में आपका स्वागत है
एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी
भगवान महावीर की शरण में हूँ
क्या यह निजी प्रचार का विज्ञापन है?
आप भी अपने मित्रों को बधाई भेजें
हमें अपना फर्ज निभाना है
क्या ब्लॉगर मेरी मदद कर सकते हैं ?
कटोरा और भीख
भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी
अच्छे सवाल की मिसाल
हमने एक पोस्ट लिखी थी
‘इस्लाम पर सवाल क्यों आते हैं ?‘
इस पर हमारे एक ब्लॉगर भाई की टिप्पणी हमें प्राप्त हुई है और आप देखेंगे कि इसमें बड़े सादा और स्पष्ट से अंदाज़ में एक बात कह दी गई है।
आदरणीय रविकर जी ने हमारी पोस्ट पर कहा कि
‘इस्लाम पर सवाल क्यों आते हैं ?‘
इस पर हमारे एक ब्लॉगर भाई की टिप्पणी हमें प्राप्त हुई है और आप देखेंगे कि इसमें बड़े सादा और स्पष्ट से अंदाज़ में एक बात कह दी गई है।
आदरणीय रविकर जी ने हमारी पोस्ट पर कहा कि
- रविकर said...
- यह व्यक्तिगत नासमझी है भाई, और कुछ नहीं || सुधार सतत चलने वाली प्रक्रिया है और sab jante हैं ki इस्लाम बहुत पुराना नहीं || कमियां हर जगह हैं -- एक उंगली के विपरीत अन्य उंगलियाँ उठती हैं -- नासमझों को क्षमा करें -- सभी धर्म श्रेष्ठ हैं -- यदि दोष दिखता है तो वह दोष आचरण-कर्त्ता में है -- किसी धर्म में नहीं | यह मेरी पहली टिप्पणी है जो अतुकांत है -- पर इसका तुक और केवल तुक ही है--बेतुक-बेतुकी नहीं क्या ख्याल है भाईजान का ??
- DR. ANWER JAMAL said...
- इस्लाम कितना पुराना है ?
आदरणीय रविकर जी , ईश्वर 1400 साल से नहीं है बल्कि सदा से है। उसने किसी समय विशेष में सृष्टि की रचना की और फिर इसी सिलसिले में मनुष्य को उत्पन्न किया। पहले जोड़े को संस्कृत साहित्य में मनु और शतरूपा कहा गया है जबकि हिब्रू और अरबी में इस जोड़े को आदम और हव्वा कहा गया है। ईश्वर ने इस जोड़े को जीवन भी दिया और भले-बुरे की तमीज़ भी जो कि धर्म का मूल है। इसी धर्म को संस्कृत में सनातन धर्म कहा गया है और अरबी में इसी धर्म को इस्लाम कहा गया है। पैग़म्बर आदम अलैहिस्सलाम अर्थात पहले मनु के बाद समय समय पर बहुत से ऋषि-पैग़म्बर हुए हैं। इसी क्रम में जल प्लावन वाले मनु महर्षि भी हुए हैं जिन्हें बाइबिल और क़ुरआन में नूह कहा गया है। इस्लामी मान्यता के अनुसार लगभग 1 लाख चौबीस हजार हुए हैं। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. का नाम इस क्रम में सबसे अंत में आता है। अब आप तय कर सकते हैं कि इस्लाम कितना पुराना है। हमने अपनी पोस्ट के अंत में एक लिंक भी दिया है ‘इस्लाम में नारी‘
2. इस पोस्ट में या इस पूरे ब्लॉग में किसी की तरफ़ भी उंगली नहीं उठाई गई है तब क्यों इस्लाम की तरफ़ उंगलियां उठाई जा रही हैं ?
3. कमी की बात कभी धर्म नहीं होती इसीलिए धर्म में कभी कमी नहीं होती और मानव समुदाय सदा से ही उत्थान और पतन का शिकार रहा है, यह सही है।
आपका शुक्रिया !
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि
- रविकर said...
- जी नई जानकारी प्राप्त हुई शुक्रिया ||
...और फिर इस पोस्ट को उन्होंने चर्चामंच में अपनी चर्चा में भी जगह दी।
यह उनके खुले दिलो-दिमाग़ की अलामत है।
इसी विषय को आप विस्तार से यहां देख सकते हैं
Islam is Sanatan . सनातन है इस्लाम , मेरा यही पैग़ाम
रविकर जी की टिप्पणी को एक बेहतरीन टिप्पणी कहा जाय तो कुछ ग़लत न होगा। इस प्रकरण से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
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वक्त की दीमक तुम्हें खा लेगी
राम की तो राम जानें /
खग-मृग से उन्होंने क्या पूछा,
क्या सुना जवाब
पर व्याकुल, एकाकी मैं...
तलाशता रहा तमाम ठीहे,जहां, कोई खग दिखे,
चोंच में तिनका या चिट्ठियां दबाए...
पर, नदारद सब के सब
पक्षिशास्त्र की किताबों में शामिल ब्योरों बीच कहीं गुटरगूं करते होंगे।
मृग,
`जू' में तालियां बचाते बच्चों के कंकड़ों और व्यर्थ के कुरकुरे संग कन्फ्यूज़ हैं...
सो, खग-मृग के बिना,
मृ़गनयनी तुम्हारे न होने की रपट मैं कहां दर्ज कराता,
किससे पूछता सवाल
बिरला मंदिर के ऐन सामने, कौन-सा है असली पंडित पावभाजी वाला...
यह जरूर तलाशता था..., तभी चिल्लाया कानों के ठीक बगल कोई...
कहो कहां है तुम्हारी वसंतलता...
कहां गई वो मृगनयनी!
मैं निस्तब्ध, अवाक्...
निरुत्तर हूं,
उन शहरों के सभी रास्ते,
जहां हम-तुम साथ-साथ हमेशा `रंगे हृदय' पकड़े गए थे,
मुझसे सवाल करते हैं,
अकेले, तुम अकेले, कहां गई वह...
जिसके साथ तुम ज़िंदा थे भरपूर।
अब उदास मुंह लिए कैसे फिर सकते हो?
राहों ने मेरे तनहा क़दम संभालने से इनकार कर दिया है।
अल्बर्ट हॉल में संरक्षित ममी ने पूछा--
तुम वहां, बाहर, क्या करते हो...
बिना प्रेम का लेप लगाए,
वक्त की दीमक तुम्हें खा लेगी, बेतरह!
शाम के तारे,
दोपहर का ताप
और सुबह का गुलाल...
नहीं सहा जाता कुछ भी मुझसे
न ही मुझे स्वीकार करता है कोई बगैर तुम्हारे...
वसंत,
तुम्हारे न होने को मंजूर कर लिया है मैंने.
इन दिशाओं से, रास्तों और राहगीरों से भी कह दो
मान लें,
हम-तुम कभी साथ नहीं चले,
नहीं रहे!
Chandiduttshukla @ 08824696345
खग-मृग से उन्होंने क्या पूछा,
क्या सुना जवाब
पर व्याकुल, एकाकी मैं...
तलाशता रहा तमाम ठीहे,जहां, कोई खग दिखे,
चोंच में तिनका या चिट्ठियां दबाए...
पर, नदारद सब के सब
पक्षिशास्त्र की किताबों में शामिल ब्योरों बीच कहीं गुटरगूं करते होंगे।
मृग,
`जू' में तालियां बचाते बच्चों के कंकड़ों और व्यर्थ के कुरकुरे संग कन्फ्यूज़ हैं...
सो, खग-मृग के बिना,
मृ़गनयनी तुम्हारे न होने की रपट मैं कहां दर्ज कराता,
किससे पूछता सवाल
बिरला मंदिर के ऐन सामने, कौन-सा है असली पंडित पावभाजी वाला...
यह जरूर तलाशता था..., तभी चिल्लाया कानों के ठीक बगल कोई...
कहो कहां है तुम्हारी वसंतलता...
कहां गई वो मृगनयनी!
मैं निस्तब्ध, अवाक्...
निरुत्तर हूं,
उन शहरों के सभी रास्ते,
जहां हम-तुम साथ-साथ हमेशा `रंगे हृदय' पकड़े गए थे,
मुझसे सवाल करते हैं,
अकेले, तुम अकेले, कहां गई वह...
जिसके साथ तुम ज़िंदा थे भरपूर।
अब उदास मुंह लिए कैसे फिर सकते हो?
राहों ने मेरे तनहा क़दम संभालने से इनकार कर दिया है।
अल्बर्ट हॉल में संरक्षित ममी ने पूछा--
तुम वहां, बाहर, क्या करते हो...
बिना प्रेम का लेप लगाए,
वक्त की दीमक तुम्हें खा लेगी, बेतरह!
शाम के तारे,
दोपहर का ताप
और सुबह का गुलाल...
नहीं सहा जाता कुछ भी मुझसे
न ही मुझे स्वीकार करता है कोई बगैर तुम्हारे...
वसंत,
तुम्हारे न होने को मंजूर कर लिया है मैंने.
इन दिशाओं से, रास्तों और राहगीरों से भी कह दो
मान लें,
हम-तुम कभी साथ नहीं चले,
नहीं रहे!
Chandiduttshukla @ 08824696345
ब्लॉगर्स मीट वीकली (13) 'माँ' The mother
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" घोटालों की बेल" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आज राम के देश में, फैला रावण राज।
कैसे अब बच पाएगी, सीताओं की लाज।। लीजिए 13 वीं महफ़िल का समय भी आ पहुंचा है और आप सभी हिंदी ब्लॉगर्स के स्वागत के लिए हम भी तैयार हैं।
हमारे सभापति आदरणीय श्री रूपचंद शास्त्री जी का भी स्वागत है जिनके मार्गदर्शन में यह साप्ताहिक समारोह हिंदी ब्लॉग जगत में अपनी पहचान बना चुका है।
जितना हो सका है, अच्छा ही करने की कोशिश की है और फिर भी जो कमी रह जाये या किसी का लिंक आदि छूट जाए तो स्मरण दिलाते ही उसे जोड़ लिया जाएगा।
आप सभी के सहयोग से ही ज्ञान और संवाद की यह पावन ऊर्जा यहां प्रवाहित हो पाती है।
आप सभी का आभार !!!
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आप सभी का आभार !!!
आज सबसे पहले मंच की पोस्ट्स |
अनवर जमालजी की रचनाएँ |
अख्तर खान "अकेलाजी' की रचना पत्रकारों की खरीद फरोख्त और फिर बिक्री ......... |
कैलाश सी.शर्मा जी की रचना कुमार राधारमण जी की रचना |
पल्लवी जी की रचना "हिन्दी की दशा और दिशा " मीनाक्षी पंत जी की रचना नई सुबहघनश्याम मौर्य जी की रचना एक हिन्दुस्तान यह भीवंदना जी की रचना |
दिव्या जी की रचना मेरे देश की धरती गद्दार उगले , उगले रोज़ मक्कार .. .. |
मनीष कुमार ‘नीलू’जी की रचना मेरा प्यार नीरज द्विवेदी जी की रचना पलकों की पीर भूषण जी की रचना ओशो परिभाषित गाधीवादी हिंसा संतोष कुमार प्यासा जी घर से बाहर {कविता}अब मेरी रचना करवा चौथलक्ष्मण को इल्ज़ाम न दोइस्लाम पर सवाल क्यों आते हैं ?खेल खेल में प्रबुद्ध बनाता है बड़ा ब्लॉगर ?एक है धर्मसारइस्लाम में नारी'माँ' The mother Part 1हमारे ब्लॉग ‘बुनियाद‘ की यह 100वीं पेशकश है। यह एक विशेष भेंट है जो कि हम अपने पाठकों की नज़्र कर रहे हैं। उम्मीद है कि यह भेंट आप सभी भाई बहनों को ज़रूर पसंद आएगी। ------------------ मौत की आग़ोश में जब थक के सो जाती है माँ तब कहीं जाकर ‘रज़ा‘ थोड़ा सुकूं पाती है माँ |
रविकर जी ने कर दिया कमाल Great Job Posted by DR. ANWER JAMAL at 9:07 PM चर्चामंच अपनी उत्तम सेवा के लिए पहचाना जाता है। निष्पक्षता इसका विशेष गुण है। कोई बड़े से बड़ा एग्रीगेटर भी ऐसा नहीं है, जिसकी निष्पक्षता पर हिन्दू धर्म की जानकारी Posted by DR. ANWER JAMAL at 9:36 AM हिन्दू धर्म की जानकारी देने वाली एक साइटHindu Rituals and Practices http://www.ratana.in/vedas.html इस्लाम में नारी Posted by DR. ANWER JAMAL at 12:09 PM इस्लाम में महिला का अधिकार क्या है ?यह सवाल हिंदी ब्लॉग जगत में बहुत पूछा जाता है , यह वेबसाइट इस विषय पर अच्छी जानकारी देती है -http://wom कमाल की जानकारी Hindi Blogging Tips Posted by DR. ANWER JAMAL at 7:11 AM आज देखिये आप यह पोस्ट , क्या कमाल की जानकारी है यहाँ ... .fullpost{display:inline;} सर्च इंजन में सामग्री ढूंढ़ते समय कुछ छोटी-छोटी टिप्स... |
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