‘बांझ औरत प्रसूता की वेदना को क्या समझेगी ?‘- Anna Hajare

अन्ना ने कहा-‘बांझ औरत प्रसूता की वेदना को क्या समझेगी ?‘

अन्ना तो अन्ना हैं।
अन्ना ख़ालिस देहाती आदमी हैं।
वे भी शहरी लोगों की तरह आगा पीछा सोचा किये होते तो बस कर लेते क्रांति ?
किसी पार्टी से मोटा माल पकड़कर वे भी मौज मारते।
जितने लोग सभ्य और सुशील हैं, जो शिक्षा में उनसे ज़्यादा हैं,
वे कर लें आंदोलन !
बांझ औरत प्रसव की पीड़ा नहीं जानती ,
यह सच है और यह भी सच है कि बच्चों को जन्म देने वाली मांएं यह नहीं जानतीं कि बांझ रह जाने वाली औरत की पीड़ा क्या होती है ?
ख़ैर, इस समय अन्ना का मूड बुरी तरह ख़राब है,
वे कांग्रेस को हराने के लिए कमर कस चुके हैं।
कोई दूसरा होता तो इस काम के लिए भी पैसे पकड़ लिए होते किसी से
लेकिन हमारे अन्ना यह काम बिल्कुल मुफ़्त कर देंगे,
बिल्कुल किसी हिंदी ब्लॉगर की तरह।

ब्लॉगर इस या उस पार्टी को हराने के लिए लिख रहा है बिल्कुल मुफ़्त,
जबकि अख़बार और चैनल वाले मोटा माल पकड़ रहे हैं।

कम से कम कोई एग्रीगेटर ही पकड़ ले इनसे कुछ।
आमदनी का मौक़ा है,
ऐसे में अन्ना बनकर काम नहीं चलता,
बस अन्ना को ही अन्ना रहने दो
और ख़ुद मौक़े से लाभ उठाओ।

नया साल आ गया है,
नए मौक़े लेकर आया है,

सबको नव वर्ष की शुभकामनाएं।
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****नए साल में****


जियेंगे नए साल में, जिन्दगी तुझे फिर से,
अश्कों को लेकर हम खुशियाँ उधार देंगे;
काँटों से भी रण गर होता है तो हो ले,
जीने का सलीका अब फिर सुधार देंगे |

बहुत हो गया, बहुत सहा, बस, अब नहीं है होता,
इस नैतिक गुलामी को तेरे मुँह पे मार देंगे;
माना तुम बलशील हो. अडिग हो मेरु जैसे,
पर तेरे हर चोट पे अब, हम भी वार देंगे |

सोच लिया नववर्ष को खुशनुमा है बनाना,
गत वर्ष का आडंब यहाँ अब उतार देंगे;
करेंगे वही जो हुकुम ह्रदय से मिलेगा,
खुद भी उबरेंगे और सबको उबार देंगे |

सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें |
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तुम्हें याद रहे



जिसे नहीं रहना अब
उसे लहरें अपने आगोश की पनाह देती हैं
फिर मंथन मंथन मंथन
और यादें बाहर रख जाती हैं
कुछ मीठी कुछ खट्टी कुछ तीती कुछ ज़हरीली ....
सिर्फ ज़हर क्यूँ उठाना ?
अगर उठाना ही चाहते हो
तो एक बार सागर को देखो
ज़हर को तो उसने पी लिया
जो लौटा गया है-
वह सीख है
कि तुम्हें याद रहे
ज़हरीले लोग कौन थे !
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साहित्य सुरभि: अग़ज़ल - 31

साहित्य सुरभि: अग़ज़ल - 31: ऐसे लगता है जैसे यह जिन्दगी देवदासी है बाँट दी हैं सब खुशियाँ, मेरे पास सिर्फ उदासी है । बड़े अरमानों से देखा था तेरी ...
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झा जी कहिन: आओ बात करें ............१

झा जी कहिन: आओ बात करें ............१
कठिनाई तो यह है कि जनता की जागृति अल्पायु होती है और फिर ज़िंदगी उसी ढर्रे पर चलने लगती है.... कुत्ते की दुम टेढी की टेढी :)
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सभी को नए साल २०१२ की मुबारकबाद

आप सभी को नए साल २०१२ की मुबारकबाद .
मालिक हम सबको हर मुसीबत से बचाए और हरेक नेकी का रास्ता दिखाए ताकि हमारा अंजाम अच्छा हो.
आमीन .

अब कुछ अच्छे संदेसे

Something in your smile which speaks to me,
Something in your voice which sings to me,
Something in your eyes which says to me,
That you are the dearest to me.
“Happy New Year”


Another day, another month, another year.
Another smile, another tear, another winter.
A summer too, But there will never be another you!
Wishing a very HAPPY N BLESSED New Year to You!!


We will open the new book.
Its pages are blank.
We are going to put words on them ourselves.
The book is called Opportunity
and
its first chapter is New Year's Day.


When the mid-nite bell rings tonight..
Let it signify new and better things for you,
Let it signify a realisation of all things you wish for,
Wishing you a very...very...very prosperous new year.


Like birds, let us, leave behind what we don’t need to carry…
GRUDGES, SADNESS, PAIN, FEAR and REGRETS.
Life is beautiful.. Enjoy it.
HAPPY NEW YEAR


Beauty..
Freshness..
Dreams..
Truth..
Imagination..
Feeling..
Faith..
Trust..
This is begining of a new year!
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अन्ना हज़ारे के साथ खड़े हैं हमारे मौलाना शमऊन क़ासमी

अन्ना हज़ारे के साथ हम हैं लेकिन आज उनके साथ अपने दोस्त मौलाना शमऊन क़ासमी साहब को भी खड़े देखा। अन्ना के साथ उनका फ़ोटो आज के उर्दू अख़बार ‘राष्ट्रीय सहारा‘ में मुखपृष्ठ पर ही है। हमने उन्हें फ़ोन मिलाया तो मालूम हुआ कि फ़ोटो उनका ही है और कल वह मुम्बई से दिल्ली आ रहे हैं। हमने कहा कि जब आप दिल्ली आ रहे हैं तो पहले हमसे मिलिएगा, बिजनौर बाद में जाइयेगा।
उन्होंने कहा कि ठीक है, हम पहले आपके पास ही आएंगे।
मौलाना शमऊन क़ासमी हमारे 25 साल पुराने दोस्त हैं। दावती शऊर के हामिल हैं और इसी के साथ वह सियासत में भी सरगर्म रहते हैं। ऊंची पहुंच के लोगों से उनकी अच्छी जान पहचान है। उनके परिचितों का और उनसे मुहब्बत करने वालों का दायरा इतना बड़ा है कि एक बार हमने उनके साथ सफ़र किया तो उनकी जान-पहचान के जितने लोग मिले और अलग अलग शहरों में मिले, उन्हें देखकर हमें सचमुच ताज्जुब हुआ।
दारूल उलूम देवबंद के मोहतमिम हज़रत मौलाना मरग़ूबुर्-रहमान साहब रहमतुल्लाह अलैह भी बिजनौर के ही रहने वाले थे। एक बार उनके घर भी हम मौलाना के साथ ही गए थे। हज़रत मौलाना मरग़ूबुर्-रहमान साहब शमऊन साहब से ख़ास ताल्लुक़ रखते थे। जब वह दारूल उलूम देवबंद में पढ़ रहे थे तो वह हज़रत मौलाना के साथ उनके दस्तरख्वान पर ही खाना तनावुल फ़रमाते थे।
बहरहाल अन्ना के साथ हमारे दोस्त खड़े हैं। यह आज की ख़बर है और हम तो खड़े ही हैं, चाहे उनके साथ फ़ोटो में हम मौजूद न हों।
देश अन्ना के साथ खड़े हैं लेकिन लोग यहां भी राजनीतिक हित साधने से बाज़ नहीं आ रहे हैं और एक जन-आंदोलन को भी विवादित बना देना चाहते हैं।
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क्या उसूलों पर चलने वालों का कोई घर नहीं होता है ?...

दोस्तों, क्या आप इस विचार से सहमत है कि-अपने उसूलों(सिद्धांतों) पर चलने वालों का कोई घर* नहीं होता है, उनके तो मंदिर बनाये जाते हैं. क्या देश व समाज और परिवार के प्रति ईमानदारी का उसूल एक बेमानी-सी एक वस्तु है ?
*आवश्कता से अधिक धन-दौलत का अपार, भोगविलास की वस्तुओं का जमावड़ा, वैसे आवश्कता हमारे खुद द्वारा बड़ी बनाई जाती हैं. जिसके कारण धोखा, लालच और मोह जैसी प्रवृतियाँ जन्म लेती हैं. इस कारण से हम अनैतिक कार्यों में लीन रहते हैं. मेरे विचार में अगर जिसके पास "संतोष' धन है, उसके लिए आवश्कता से अधिक भोग-विलास की यह भौतिकी वस्तुएं बेमानी है. उसके लिए सारा देश ही उसका अपना घर है.
दोस्तों, अपनी पत्रकारिता और लेखन के प्रति कुछ शब्दों में अपनी बात कहकर रोकता हूँ. मैं पहले प्रिंट मीडिया में भी कहता आया हूँ और इन्टरनेट जगत पर कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं.जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं.
दोस्तों-गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे. 

पूरा लेख यहाँ पर क्लिक करके पढ़ें: क्या उसूलों पर चलने वालों का कोई घर नहीं होता है ?
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (23) Merry Christmas

वंदे ईश्वरम् !
सभी ब्लॉगर्स साथियों का स्वागत है।
मोहतरमा प्रेरणा अर्गल जी दो हफ़्ते के टूर पर हैं, सो खि़दमत बस हमें ही अंजाम देनी है और नेट की स्पीड बहुत कम है।
ख़ैर सबसे पहले ‘ईसा मसीह‘ के दिन की मुबारकबाद !
महापुरूष किसी एक इलाक़े या किसी एक नस्ल के लिए ही नहीं होते।
जो सच्चा है वह सबका है।
भाई दिलबाग़ विर्क जी की  कुंडलियां यही बताती हैं:
कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


बहुरंगी ये तोहफे , बांटे सांता क्लॉज । यीशू के जन्म दिन की , याद दिलाए आज ।।याद दिलाए आज , मिली थी सच को सूली ।थी बहुत बड़ी बात, न थी घटना मामूली ।।सच कब है आसान , है तलवार ये नंगी ।पर सच से ही विर्क , बने जीवन बहुरंगी ।।

हमारी पोस्ट भी अरब-हिंद के दरम्यान प्यार की एक अजीबो-ग़रीब दलील पेश करती है।

अरब लोग केवल शून्य को ही भारत की देन नहीं मानते बल्कि वे सारे अंकों को ही भारत की देन मानते हैं इसीलिए उन्होंने गिनती के सभी अंकों को ‘हिन्दसा‘ का नाम दिया है


अजित जी ! आपकी पोस्ट 'शून्य में समृद्धि है…' निश्चय ही अच्छी है। आपने बताया है कि भारत ने शून्य की खोज की और अरबी भाषा में इसे सिफ़र कहा गया है। 



और अब देखिए इस सप्ताह इस मंच पर प्रकाशित लेख
प्रेरणा अर्गल जी

                                                                                 ब्लॉगर्स मीट वीकली (22) Ramayana


कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


       अफजल- कसाब से कई , ठूंसे हमने जेल ।        फाँसी लटकाए नहीं , देश रहा है झेल ।।       देश रहा है झेल , किया खर्च करोड़ों में ।       पारा बनकर बैठ , ये गए हैं जोड़ों में ।।       कहे विर्क कविराय , मिले ऐसा इनको फल । ...


दफ्तर लगते दस बजे, औ ' आठ बजे स्कूल ।अजब नीति सरकार की , टेढ़े बहुत असूल  ।टेढ़े बहुत असूल , फ़िक्र ना मासूमों की ए.सी. में बैठकर , बात हो कानूनों की ।न सुनें हैं फरियाद , न दर्द जानते अफ़सरजमीं के साथ विर्क , कब जुड़ेंगे ये दफ्तर ?     

भारत देश की मांओं और बहनों के नाम एक अपील


मेरी बहनों/मांओं ! क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि किसी के भाई और बेटे नहीं थें ? क्या भारत देश में देश पर कुर्बान होने वाले लड़के/लड़कियाँ मांओं ने पैदा करने बंद कर दिए हैं ? जो भविष्य में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और झाँसी की रानी आदि बन सकें. अगर पैदा किये है तब उन्हें कहाँ अपने...

मंच के बाहर की पोस्ट   

 ‘मुशायरा ब्लॉग‘ पर

मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए

पेशकश - Farhat Durrani

जिंदगी चाहिए मुझको मानी भरी,
चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।

जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।

--कन्हैयालाल नंदन

सच-झूठ पर दोहे


कुँवर कुसुमेश

सच्चाई फुटपाथ पर, बैठी लहू-लुहान.
झूठ निरंतर बढ़ रहा,निर्भय सीना तान.

राजेश कुमारी जी 

कुछ कड़वी क्षणिकाएं



गैरों पे शक करता रहा 
दिल नासमझ निकला 
अपनी जमीं तो खींचने वाला 
कोई अपना ही निकला !

 साधना वैद जी की क़लम से

क्या राष्ट्रीय सम्मान भी छोटा या बड़ा माना जाना चाहिये ?

विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट योगदान के लिये या अभूतपूर्व मुकाम हासिल करने के लिये सम्मानित किया जाना किसे अच्छा नहीं लगता ! बहुत प्रसन्नता होती है जब आपके कार्यों को और आपकी उपलब्धियों को सराहा जाता है और मान्यता मिलती है ! लेकिन इस प्रक्रिया के लिये भी क्या छोटी बड़ी लकीरें खींचना ज़रूरी है ?

और उनकी एक कविता भी देखिये

सपने


डा. टी. एस.  दराल जी पूछ रहे हैं

शनि देव को मनी क्यों चाहिए --एक सवाल !

शनिवार का दिन सड़कों पर थोडा सकूं का दिन होता है । ज्यादातर सरकारी कार्यालय इस दिन बंद होते हैं ।
लेकिन चौराहों पर इस दिन एक विशेष नज़ारा देखने को मिलता है । हर चौराहे पर दर्ज़नों बच्चे जय शनिदेव कहते हुए भीख मांगते नज़र आते हैं ।

और शनि देव का क्या महत्त्व है ?
डोंगे में तेल , त्रिशूल , नीम्बू और हरी मिर्च के पीछे क्या धारणा है ?
ये लोग कौन हैं जो शनि के नाम पर भीख मांगते हैं ?

शायद ज्ञानी लोग इन सवालों के ज़वाब दे पायें !

देखिए एक बढ़िया गर्मागर्म चर्चा 

आत्म-हत्या: इस्लामी दृष्टिकोण

इस समय पूरी दुनिया में दुर्भाग्य से आत्म-हत्या की मानसिकता बनती जा रही है। पश्चिमी देशों में सामाजिक व्यवस्था के बिखराव के कारण समय से आत्म-हत्या की मानसिकता बढ़ती जा रही है। भारत सरकार की तत्कालिन रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर एक घंटे...
आगे पढ़ें...
और इसी ब्लॉग पर एक आपतिजनक पोस्ट भी है 

यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भव्ति भारत:

                  जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब  धर्म के उत्थान और अधर्म के नाश के लिए में आता हूँ. कभी-कभी मैं सोचता हूँ की कब धर्म की हानि होगी और कब किशन कन्हैया जी...
'उच्चारण' ब्लॉग पर 

"चाँद और तारों की बातें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


बात-बात में हो जाती हैं, देखो कितनी सारी बातें।
घर-परिवार, देश-दुनिया की, होतीं सबसे न्यारी बातें।।

अलविदा -2011

अलविदा कह के वो चल दिए, अब कभी न आऊंगा ये लफ्ज़ कह दिए। इक साल फिर से अलविदा कह दिया दोस्तों. एक नयी योजना के साथ 2011 आया था और अब फिर से हमने उन योजनाओं को अलविदा कह कर 2011 को अलविदा कर दिया। 2011 हर किसी के जीवन में ख़ुशी, ग़म, हंसी, आंसूं ददे गया। हम चाहते थे कि भाई महेश बारमाटे जी, माहेश्वरी कनेरी जी, अतुल श्रीवास्तव जी और इस ब्लॉगर्स मीट वीकली के नियमित पाठकों की पोस्ट्स के लिंक लगाए जाएं लेकिन रात के साढ़े बारह बज रहे हैं और उनके ब्लॉग तक पहुंचना इस समय मुश्किल है। सो अपने प्रिय पाठकों से क्षमा याचना करते हैं।
कृप्या नियमित रूप से अपने लिंक ईमेल के ज़रिये उपलब्ध करा दिया करें और जो लोग इस मंच के सदस्य हैं वे हफ़्ते में एक दो लेख यहां पब्लिश कर दिया करें ताकि हमें लिंक संकलन में अनावश्क दिक्क़त न उठानी पड़े।
सादर ,
धन्यवाद !
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कुंड़लिया ----- दिलबाग विर्क


बहुरंगी ये तोहफे , बांटे सांता क्लॉज ।
यीशू के जन्म दिन की , याद दिलाए आज ।।
याद दिलाए आज , मिली थी सच को सूली ।
थी बहुत बड़ी बात, न थी घटना मामूली ।।
सच कब है आसान , है तलवार ये नंगी ।
पर सच से ही विर्क , बने जीवन बहुरंगी ।।


                * * * * * 
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ता एक संयुक्त ब्लॉग.... .....*साहित्य प्रेमी संघ*:->साहित्य पुष्पों की खुशबु फैला

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