शीर्षक के अंतर्गत इस रात के बारे में कुछ जानकारी दी गयी है.
इस विषय पर कुछ वीडियो भी यू-ट्यूब पर उपलब्ध हैं. उनमें से एक यह है-
आज 29 वीं रात है. रमज़ान विदा हो रहा है. हमें अहद करना चाहिये कि हम साल भर बुराइयों से परहेज़ करेंगे और भलाईयों के कामों में सबका सहयोग करेंगे बल्कि दूसरे सब लोगों से आगे निकलने की कोशिश करेंगे. अगर ऐसा किया गया तो रमज़ान के रोज़ों का मक़सद हासिल हो गया ऐसा समझना चाहिये वर्ना रोज़े सिर्फ एक रस्म थे . मोमिन का अमल हक और हक़ीक़त होता है और दूसरों का सिर्फ दिखावा या भुलावा.
हम किसी भुलावे में न पड़ें और किसी का दिखावा हमें धोखे में न डाले. इसलिये हमेशा आप यह देखें कि इस रोज़े या नमाज़ के बाद आप अपने जानकारों और अजनबियों के लिये कितने ज़्यादा कल्याणकारी बन पाये. जो भी इबादत आप उसकी रूह और आत्मा के साथ संपन्न करेंगे वह आपको ईश्वर अल्लाह से जोड़ेगी और अल्लाह से जुड़ा होने की यह पहचान है कि वह खुद दुख उठाकार भी दूसरों के दुख दूर कर रहा होगा. यही अल्लाह का फरमान है. क़ुर्'आन में उसने यही कहा है. इस्लाम यही है. इंसान का रास्ता यही है. इंसानों को भलाई का यही रास्ता दिखाने के लिये शबे क़द्र में यह क़ुर्'आन नाज़िल किया गया है.
यह बात समझ में आ जाये तो लोगों के दुख बहुत कम हो जायेंगे.
हम किसी भुलावे में न पड़ें और किसी का दिखावा हमें धोखे में न डाले. इसलिये हमेशा आप यह देखें कि इस रोज़े या नमाज़ के बाद आप अपने जानकारों और अजनबियों के लिये कितने ज़्यादा कल्याणकारी बन पाये. जो भी इबादत आप उसकी रूह और आत्मा के साथ संपन्न करेंगे वह आपको ईश्वर अल्लाह से जोड़ेगी और अल्लाह से जुड़ा होने की यह पहचान है कि वह खुद दुख उठाकार भी दूसरों के दुख दूर कर रहा होगा. यही अल्लाह का फरमान है. क़ुर्'आन में उसने यही कहा है. इस्लाम यही है. इंसान का रास्ता यही है. इंसानों को भलाई का यही रास्ता दिखाने के लिये शबे क़द्र में यह क़ुर्'आन नाज़िल किया गया है.
यह बात समझ में आ जाये तो लोगों के दुख बहुत कम हो जायेंगे.
अगर आप साहिबे निसाब हैं तो आप देख लें कि आपने ज़कात दे दी है या नहीं ?
ईद की नमाज़ को जाने से पहले गरीब और ज़रूरतमंदों को फ़ितरा ज़रूर दें . अगर आपके पड़ोस में कोई गरीब है , बीमार है या किसी भी तरह से ज़रूरतमंद है और आप उसके काम आ सकते हैं तो आप अपने जान , माल और वक़्त से उसके काम ज़रूर आयें चाहे उसका धर्म और उसकी जाति आपसे मुख़्तलिफ़ ही क्यों न हो .
आखिरकार सब एक खुदा के बंदे हैं और सब एक बाप 'आदम' की औलाद हैं. सब एक परिवार ही हैं. नफरत की कोई जायज़ वजह किसी के पास नहीं है.
सबकी भलाई के लिये अल्लाह से दुआ करें तो हमें भी याद रखें.
अल्लाह सबकी जायज़ मुराद पूरी करे ,
आमीन.
ईद की नमाज़ को जाने से पहले गरीब और ज़रूरतमंदों को फ़ितरा ज़रूर दें . अगर आपके पड़ोस में कोई गरीब है , बीमार है या किसी भी तरह से ज़रूरतमंद है और आप उसके काम आ सकते हैं तो आप अपने जान , माल और वक़्त से उसके काम ज़रूर आयें चाहे उसका धर्म और उसकी जाति आपसे मुख़्तलिफ़ ही क्यों न हो .
आखिरकार सब एक खुदा के बंदे हैं और सब एक बाप 'आदम' की औलाद हैं. सब एक परिवार ही हैं. नफरत की कोई जायज़ वजह किसी के पास नहीं है.
सबकी भलाई के लिये अल्लाह से दुआ करें तो हमें भी याद रखें.
अल्लाह सबकी जायज़ मुराद पूरी करे ,
आमीन.