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मैंने आहुति बन कर देखा,यह प्रेम यज्ञ कि ज्वाला है....!!!सुषमा
मैंने आहुति बन कर देखा,यह प्रेम यज्ञ कि ज्वाला है....!!!सुषमा मै भी दरिया हूँ सागर मेरी मंजिल है, मै भी सागर मेँ मिल जाऊँगी, मेरा क्या रह जायेगा... कल बिखर जाऊँगी हर पल मेँ शबनम की तरह, किरने चुन लेगी मुझे.... जग मुझे खोजता रह जायेगा.....!!! सुषमा कुछ खुद के बारे में अपना इसी तरह से परिचय देती है ............ कानपुर...
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