हरेक समस्या का अंत आप कर सकते हैं तुरंत Easy Solution

पशु-पक्षियों की तरह खाने-पीने और प्रजनन की क्रियाएं मनुष्य भी करता है। उनकी तरह मनुष्य भी अपनी, अपने परिवार की और अपने समूह की देखभाल करता है। इन बातों में समानता के बावजूद पशु-पक्षियों से जो चीज़ उसे अलग करती है, वह है उसकी नैतिक चेतना। पशु-पक्षियों में भी भले-बुरे की तमीज़ पाई जाती है लेकिन एक तो वह मनुष्य के मुक़ाबले बहुत कम है और दूसरे वह उनके अंदर स्वभावगत है यानि कि अगर वे चाहें तो भी अपने स्वभाव के विपरीत नहीं कर सकते जबकि मनुष्य में भले-बुरे की तमीज़ भी बहुत बढ़ी हुई होती है और उसे यह ताक़त भी हासिल है कि वह अपने स्वभाव के विरूद्ध जाकर बुरा काम भी कर सकता है।

भले-बुरे का ज्ञान और उनमें चुनाव का अधिकार ही मनुष्य की वह विशेषता है जो कि उसे पशु-पक्षियों से अलग और ऊंची हैसियत देती है।

मनुष्य सदा से ही समूह में रहता है और समूह सदैव किसी न किसी व्यवस्था के अधीन हुआ करता है। हज़ारों साल पर फैले हुए मानव के विशाल इतिहास को सामने रखकर देखा जाए और जिन जिन व्यवस्थाओं के अधीन वह आज तक रहा है, उन सबका अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि इन सभी सभ्यताओं में एक नियम प्रायः समान रहा है कि ‘जो व्यवहार मनुष्य अपने लिए पसंद नहीं करता, उसे वह व्यवहार दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए।‘

मनुष्य की नैतिक चेतना में उतार-चढ़ाव के साथ साथ इस नियम का स्थान कभी प्रमुख तो कभी गौण होता रहा है और कभी कभी ऐसा भी हुआ कि शक्ति संपन्न समुदाय ने इस नियम की अवहेलना भी की लेकिन तब भी इस नियम का पालन वे अपने वर्ग में अवश्य करते रहे। इस नियम की पूर्ण अवहेलना कोई न कर सका है और न ही कर सकता है। इसकी पूर्ण अवहेलना का मतलब है पूर्ण अराजकता। जिसका नतीजा है मुकम्मल तबाही।

आस्तिक और नास्तिक, पूर्वी और पश्चिमी, सभी लोग इस नियम को स्वीकारते रहे हैं। नैतिकता का द्वार यही है। इसमें प्रवेश किए बिना मनुष्य शांति में प्रवेश नहीं कर सकता। सभ्यता की स्थिरता और उसकी उन्नति का द्वार भी यही है। मनुष्य कहलाने का हक़दार भी वही है जो कि इस नियम को मानता है। जो इस नियम को नहीं मानता, वह पशुओं से भी बदतर है और उसके असामाजिक होने में कोई शक नहीं है। लोगों ने इसे केवल व्यक्तिगत रूप से ही नहीं बल्कि सामूहिक रूप से भी स्वीकार किया है। इसके बावजूद ऐसा बहुत कम हुआ जबकि किसी सभ्यता ने इस नियम का पालन किया हो। ज़्यादातर इस नियम का पालन व्यक्तिगत सतह पर ही हुआ है और व्यक्तिगत सतह पर भी ऐसे लोग बहुत ही कम हुए हैं जिन्होंने इस नियम का पालन इसकी संभावनाओं के शिखर तक किया हो लेकिन जिन्होंने किया है मानवता ने उन्हें सदा ही एक आदर्श का दर्जा दिया है।

ऐसा क्यों हुआ कि एक सिद्धांत को उसके ठीक रूप में जान लेने के बाद भी अक्सर लोग उसका पालन न कर सके ?
इस बात पर ग़ौर करते हैं तो यह हक़ीक़त सामने आती है कि मनुष्य के अंदर भविष्य की चिंता और सुख की इच्छा भी मौजूद है। उसके अंदर डर और लालच जैसे जज़्बात भी पाए जाते हैं। उसके अंदर ईष्र्या और क्रोध की लहरें भी जब-तब उठती रहती हैं। उसके अंदर ज्ञान के साथ अज्ञान और विवेक के साथ जल्दबाज़ी भी पाई जाती है। वह केवल अपने लाभ-हानि के आधार पर सोचता है और किसी भी हाल में वह नुक्सान नहीं उठाना चाहता। यही वजह है कि वह भला काम तभी तक करता है जब तक कि उसे उसमें लाभ नज़र आता है लेकिन जब उसे भला काम करने में नुक्सान नज़र आता है तो वह भला काम छोड़ बैठता है। मनुष्य बुरे काम से तभी तक बचता है जब तक कि उसे बुरे काम से बचने में लाभ नज़र आता है लेकिन जब उसे बुरा काम करने में लाभ नज़र आने लगता है तो वह बुरा काम करता है। लाभ का लालच और नुक्सान का डर मनुष्य को भले काम करने की प्रेरणा भी देते हैं और यही जज़्बात उसे भलाई के काम करने से रोक भी देते हैं।
भलाई के काम में नुक्सान और बुराई के काम में लाभ होता देखकर भी जिन लोगों ने भलाई का रास्ता नहीं छोड़ा, उन्हें बहुत नुक्सान उठाना पड़ा। अक्सर उन्हें बेदर्दी से क़त्ल कर दिया गया, उनके परिवार को तबाह कर दिया गया, उनके साथियों की भी बड़ी बेदर्दी से हत्याएं की गईं। उनकी क़ुर्बानियां देखकर लोगों ने उन्हें महान और आदर्श तो घोषित कर दिया लेकिन उनके रास्ते पर चलने की हिम्मत अक्सर लोग न जुटा सके।
यह एक बड़ी विडंबना है कि मनुष्य जाति भले-बुरे की तमीज़ भी रखती है और उसका पालन करके दिखाने वाले आदर्शों की भी उसके पास कमी नहीं है लेकिन फिर भी मनुष्य उस रास्ते से हटकर चल रहा है। दुनिया भर की सभ्यताएं आज जितनी भी समस्याओं से दो चार हैं, उनके पीछे मूल कारण यही है।
इसी की वजह से मानव जाति बहुत से टुकड़ों में बंटी और फिर उसने एक धरती के बेशुमार टुकड़े कर डाले। उसने धरती ही नहीं बल्कि पानी भी बांट और फिर आकाश भी बांट डाला। जब वे ख़ुद बंट गए तो फिर उनमें संघर्ष भी हुआ और हार-जीत भी हुई। हार जाने वालों पर ज़ुल्म भी हुए और जीतने वालों से नफ़रत भी की गई और फिर ऐसा भी हुआ कि समय के साथ जीतने वाले कमज़ोर पड़ गए तो दबाकर रखे गए लोगों ने उन्हें पलट डाला और उन पर उन्होंने उनसे भी बढ़कर ज़ुल्म किए। बंटवारे और संघर्ष की इसी रस्साकशी में भयानक हथियार बनाए गए। उसने अपनी रोटी का पैसा हथियार बनाने में ख़र्च किया और आज आलम यह है कि हथियारों की मद में जो देश जितना ज़्यादा पैसा ख़र्च करता है, वह उतना ही ज़्यादा विकसित समझा जाता है। हथियारों पर ख़र्च होने वाला दुनिया का पैसा लोगों की रोटी, शिक्षा और चिकित्सा पर ख़र्च होता तो यह दुनिया आज स्वर्ग सी सुंदर होती।
जब यह रक़म अपनी जेब से ख़र्च करना मुश्किल हो जाता है तो फिर ये विकसित देश कमज़ोर देशों के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जबरन करने लगते हैं और अपने लालच का विरोध करने वालों को तबाही का डर दिखाते हैं और डर कर समर्पण न करने वालों को सचमुच ही तबाह कर डालते हैं। इस तरह हिंसा-प्रतिहिंसा और संघर्ष की एक बहुचक्रीय प्रक्रिया जन्म लेती है जो एक लंबे अर्से से चली आ रही है और यह ख़त्म होगी भी नहीं जब तक कि मनुष्य जाति सामूहिक रूप से उस नियम को अपने आचरण से मान्यता नहीं देगी जिसे वह सदा से जानती है कि दूसरों से वह व्यवहार हरगिज़ नहीं करना चाहिए जिसे अपने लिए पसंद नहीं किया जा सकता।
लेकिन सवाल यह है कि वह कौन सा तरीक़ा है जो मनुष्य को इस बात के लिए तैयार कर सके कि चाहे वह तबाह ही क्यों न हो जाए तब भी उसे बुरा काम और मानव जाति का बंटवारा और रक्तपात किसी भी हाल में नहीं करना है, उसे इस धरती पर सदा शांति से ही रहना है, सामूहिक हितों के लिए उसे व्यक्तिगत हितों की क़ुर्बानी देते हुए ही जीना चाहिए और अगर इस रास्ते में उसे मौत भी आ जाए तो उसे मौत को स्वीकार लेना चाहिए लेकिन भलाई के रास्ते से नहीं हटना चाहिए।
लोग पूछ सकते हैं कि जब वे मर ही जाएंगे तो फिर इस दुनिया में शांति रहे या नहीं, उसे इससे क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है ?
तब क्यों न वह अपने जीवन की परवाह और रक्षा करे, चाहे इसके लिए उसे सामूहिक हितों को ही क्यों न क़ुर्बान करना पड़े ?
आज सामूहिक हितों पर इसीलिए चोट की जा रही है और नतीजा यह है कि सभी बर्बाद हो रहे हैं। डर और आशंका से कोई दिल आज ख़ाली नहीं है।
इन्हीं डर और आशंकाओं के चलते निजी हित के लिए जीने वाले लोगों ने अपने से मिलते जुलते लोगों के साथ मिलकर गुटबंदी कर ली है और फिर अपना अपराध बोध कम करने के लिए साक्ष्य, तर्क और प्रमाण भी जमा कर लिए हैं। इस तरह बहुत से दर्शन भी वुजूद में आ चुके हैं। जिसे जहां लाभ मिल रहा है वह उसी गुट के दर्शन का क़ायल हो रहा है। कहीं पूंजीवाद है तो कहीं जनवाद है। कहीं नास्तिकवाद है तो कहीं अध्यात्मवाद। हरेक वाद बहुत से नए विवाद को जन्म दे रहा है। नए नए दर्शन लेकर लोग मसीहाई का स्वांग रच रहे हैं। कोई राजनीतिक रूप से मुक्ति का झूठा दावा करके निजी हित साध रहा है और कोई आत्मा की मुक्ति के उपाय बता रहा है। मुक्ति की जितनी कोशिशें की जा रही हैं, पाश और बंधन उतने ही ज़्यादा बढ़ते जा रहे हैं। इनसे मुक्ति की कोशिश में प्रबुद्ध वर्ग वर्जनाएं और मर्यादा तक को तोड़कर देख रहा है कि शायद इन्हें तोड़कर ही कुछ सुकून मिल जाए।
ज्यों ज्यों दवा की जा रही है मर्ज़ बढ़ता ही जा रहा है। विश्वास करके छले जाने के बाद अब विश्वास करने का रिवाज भी कम होता जा रहा है। मनुष्य जाति अपने स्वाभाविक गुणों से धीरे-धीरे रिक्त होती जा रही है। लोग विश्वास न करके भी बर्बाद हो रहे हैं और जो विश्वास कर रहे हैं वे भी छले जा रहे हैं, ठगे जा रहे हैं। जिन लोगों को वे अपना नेता और मार्गदर्शक चुनते हैं वही उन्हें धोखा दे रहे हैं, इस देश में भी और उस देश में भी।
ज़्यादातर लोग तो ऐसे हैं कि वे अपने जज़्बात के क़ब्ज़े में हैं। जो मन में आया कर डाला। जायज़-नाजायज़ और मर्यादा का ख़याल ही ख़त्म कर लिया और कुछ लोगों ने इनसे नुक्सान होता हुआ देखा तो इन जज़्बात की जड़ ही काट दी। न विवाह किया, न बच्चे पैदा किए और न ही समाज के दुख में दुखी और उसकी ख़ुशी में ख़ुश हुए और समझा कि उन्होंने मनुष्य के स्वाभाविक गुणों को नष्ट करके कोई बहुत बड़ा काम कर दिया। उन्हें अपना आदर्श समझने वाले भी उनके रास्ते पर चले और इस तरह समाज में दो अतियां वुजूद में आ गईं जबकि बेहतर था कि जज़्बात को सिरे से ही कुचल डालने के बजाय उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश की जाती। लाभ के लिए उनसे काम लिया जाता और नुक्सान की जगह उन्हें क़ाबू किया जाता।दो अतियों के बीच का यही मध्यमार्ग वास्तव में ऐसा है जिसका पालन सभी से संभव है।
जो सबके लिए कल्याणकारी हो, उसकी स्थापना की कोशिश ही मनुष्य के लिए व्यवहारिक है। एक-दो या चंद आदमी कुछ भी कर सकते हैं, उनका मार्ग बस उनके के लिए ही है। सारी दुनिया की सभ्यता के लिए वही मार्ग है जो दुनिया को तोड़ने के बजाय सारी दुनिया को जोड़ने की बात करे। जो जज़्बात में बहने के बजाय या उन्हें मिटाने के बजाय उन्हें क़ाबू करना सिखाए। जिस पर हरेक देश-काल और इलाक़े के मर्द-औरत हरेक आयु में चल सकें, बचपन में भी, जवानी में भी और बुढ़ापे में भी। ऐसे मार्ग पर चलने वाला आदमी ही ऐसी व्यवस्था दे सकता है जो कि सभ्यता की समस्याओं का सच्चा समाधान हो।

मानव जाति के इतिहास में ऐसे बहुत से आदमी समय समय पर हुए हैं और हरेक इलाक़े में हुए हैं। उनमें से कुछ का इतिहास भी कम या ज़्यादा आज हमारे पास सुरक्षित है, जिसके द्वारा हम जानते हैं कि तमाम विपरीत हालात के बावजूद उन्होंने अपनी नैतिक चेतना से हटकर कभी कोई काम नहीं किया। जो आदमी उनके प्रभाव में आया उसने भी नुक्सान उठाना गवारा किया लेकिन भलाई की राह से हटना गवारा न किया। उन्होंने लोगों को अपने डर, लालच, ग़ुस्से और जलन को क़ाबू करने का क्या उपाय बताया ?
उन्होंने वह कौन सा लाभ बताया जिसे पाने के लिए आदमी दुनिया का हरेक नुक्सान उठाने के लिए ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो जाता है। यह जानना आज बहुत ज़रूरी है।
ऐसा नहीं है कि इन महान हस्तियों के बारे में लोग नहीं जानते या इनका नाम नहीं लेते लेकिन बस नाम भर ही लेते हैं या उनके जैसे कुछ काम करते भी हैं तो बस केवल कुछ ही काम करते हैं और बहुत कुछ छोड़ देते हैं। ये लोग आज उनके प्रतिनिधि के तौर पर जाने जाते हैं लेकिन इन लोगों की हालत भी यही है कि इन महापुरूषों की जिस बात को मानकर लाभ मिलता उसे तो वे मान लेते हैं और जिस बात को मानकर नुक्सान होता है उसे छोड़ बैठते हैं। दरअसल ये चाहे उनके जैसे कुछ काम कर रहे हों लेकिन चल रहे हैं ये भी डर और लालच के उसी उसूल पर जिस पर कि उन महापुरूषों को न मानने वाले चल रहे हैं। ऐसे लोग समाज में न मानने वालों से ज़्यादा समस्याएं पैदा कर रहे हैं।
इन महापुरूषों का वास्तविक प्रतिनिधि केवल वह है जो कि हर हाल में उनके मार्ग पर चलता है। उनकी मंशा से भी केवल वही आदमी सही तौर पर वाक़िफ़ है। ऐसे आदमियों का वुजूद हमारे बीच आज भी है, जिससे पता चलता है कि उम्मीद की किरण अभी बाक़ी है। बुराई का दौर रूख़सत हो सकता है और भलाई का दौर आ सकता है। आज इंसान भले ही जानवर से बदतर हालत में जी रहा हो लेकिन वह अपने अधिकार से काम ले तो फिर से इंसान बन सकता है। एक ऐसा इंसान जो कि बुराई से हर हाल में बचता है और भलाई की राह चलता है।
सामूहिक रूप से यह हालत समाज में जब भी आए लेकिन व्यक्तिगत रूप से आदमी जब चाहे यह हालत पा सकता है। 
समूह जो चाहे वह करे लेकिन व्यक्ति को सदैव वही करना चाहिए जो कि हक़ीक़त में सच और सही है, जो कि वास्तव में उसके जीवन का मर्म है क्योंकि मानव का यही धर्म है। इसी मार्ग पर चलकर इंसान ख़ुद को भटकने बचा सकता है, केवल इसी तरीक़े से वह अपनी ख़ुदी को रौशन कर सकता है और ऐसे ही लोगों को देखकर इंसान सदा से सद्-प्रेरणा पाते आए हैं।
समय समय पर महापुरूष आए और ‘अपना कर्म‘ करके चले गए। अब महापुरूषों की इस पावन भूमि पर आप हैं। सद्-प्रेरणा लेना-देना और सत्कर्म करना अब आपकी ज़िम्मेदारी है। देखिए कि आप क्या कर रहे हैं ?
इसी आत्मावलोकन से हरेक समस्या का अंत आप कर सकते हैं तुरंत।
इंसान का असल इम्तेहान यही है कि वह अपने ज्ञान और अपनी ताक़त का इस्तेमाल क्या करता  है ?
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गौरवशाली हिंदी मंच के नए पुराने साथियो से एक विनम्र विनती Hope

गौरवशाली हिंदी मंच के नए पुराने साथियो ! आपने देखा कि ‘हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल‘ ने कैसे एक बिल्कुल अछूता ख़याल ब्लॉग जगत को दिया कि ‘ब्लॉगर्स मीट‘ ब्लॉग पर ही होनी चाहिए। इस मीट में कोई भी आदमी दुनिया के किसी भी कोने से शरीक हो सकता है। भौतिक जगत में होने वाली मीट में यह संभव नहीं है। भौतिक जगत में भी जो लोग एकत्र होकर हिंदी ब्लॉगिंग के लिए कुछ बेहतर करना चाहें तो निश्चय ही उन्हें ऐसा करना ही चाहिए। हिंदी ब्लॉगिंग को बढ़ावा देने के लिए जिस स्तर पर भी प्रयास किया जाए, उसका स्वागत है।
श्री रूपचंद शास्त्री ‘मयंक‘ जी के हम बेहद आभारी हैं, जिन्होंने इस वीकली मीट का सभापति होना स्वीकार किया और हमें बेहतर राहनुमाई और सरपरस्ती दी। हम उन सभी लोगों के आभारी हैं जिन्होंने इस मीट को पढ़ा है या कमेंट के माध्यम से कोई अच्छी सलाह दी या फिर सराहना करके उत्साहवर्धन किया। मंच के सदस्यों में से भी कुछ लोगों ने अपनी ज़िम्मेदारी को समझा और उसे बख़ूबी अदा किया लेकिन यह देखकर दिल थोड़ा सा मुरझा गया कि मंच के सदस्यों में भी केवल युवा या फिर अपेक्षाकृत नए ब्लॉगर्स ही इस साप्ताहिक समारोह में शरीक हुए जबकि पुराने और ज़िम्मेदार ब्लॉगर ग़ैर-हाज़िर ही रहे और यह देखकर तो दुख भी हुआ कि वे दूसरे ब्लॉग पर घूम घूम कर टिप्पणी भी कर रहे हैं।
क्या देश और समाज के प्रति चिंतित होने का यही तरीक़ा है कि जिस मंच में शरीक हैं वहां से नदारद ही रहा जाए और यहां वहां हाज़िरी दी जाए ?
साहित्यिकता और बौद्धिकता के किस पैमाने पर यह बात खरी उतरती है ?
मंच मेरा अकेले का नहीं है।
यह मंच हरेक हिंदी भाषी का है, आप सबका है। आप सभी का है तो ज़िम्मेदारी भी आप सभी की है।
इस आशय का पत्र बार-बार लगातार इस मंच के सभी सदस्यों को निरंतर मेरे द्वारा प्रेषित किए गए हैं जिनके फलस्वरूप एक-दो लोगों ने मंच की ओर रूख़ भी किया है लेकिन अधिकांश ने फिर भी कोई तवज्जो नहीं दी है।

मंच के सभी सदस्यों को सूचित किया जाता है कि आगामी सोमवार को ब्लॉगर्स मीट वीकली की दूसरी महफ़िल मुनक्क़िद की जा रही है जिसमें आप सभी मेज़बान की हैसियत से आमंत्रित हैं। आप अपने लेख मंच पर पेश करें ताकि उन्हें मीट में रखा जा सके या फिर अपने लेखों का लिंक ही भेज दें।
आप कितने भी लिंक भेज सकते हैं लेकिन ईमेल में यह शीर्षक ज़रूर डालें कि
‘वास्ते प्रकाशन ब्लॉगर्स मीट वीकली‘
ताकि उन्हें डिलीट न कर दिया जाए ।
आशा है इस बार पत्र पर समुचित ध्यान देने की मेहरबानी फ़रमाएंगे। 
ब्लॉगर्स मीट वीकली की पहली सभा सफल के साथ संपन्न हुई और उसे ब्लॉग की लोकप्रिय पोस्ट के कॉलम में भी देखा जा सकता है जो कि उसकी लोकप्रियता का एक प्रमाण भी है।
धन्यवाद !
देखिए

ब्लॉगर्स मीट वीकली : एक ऐतिहासिक आयोजन

http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_8924.html
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प्लीज.. भगवा को बख्श दो बाबा


आइये आज एक बार फिर चलते हैं हरिद्वार के पतंजलि योग पीठ और बात करते है बाबा रामदेव के साथ ही उनके सहयोगी बालकृष्ण की। चोर पुलिस के खेल में जिस तरह बाबा रामदेव और बालकृष्ण के आगे पीछे पुलिस, सीबीआई दौड भाग कर रही है, इससे लगता है कि बाबा ने भगवा को भी दागदार कर दिया। इसलिए प्लीज बाबा इस कपडे पर रहम करो। मैं कोई ज्ञान की बात नहीं बता रहा हूं, ये सभी जानते हैं कि जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फैंकते, लेकिन लगता है कि ये बाबा इस मूलमंत्र से भी नावाकिफ हैं।
पहले मैं बाबा की मांगो के बारे में आपको बता दूं कि विदेशों में जमा काला धन वापस आना चाहिए। मुझे लगता है कि जिनके पैसे बाहर हैं, उनके अलावा देश का कोई भी व्यक्ति इस मांग का विरोध नहीं करेगा। मैं भी बाबा के इस मांग का समर्थक हूं, लेकिन उनकी दूसरी मांग भ्रष्ट्राचारियों को फांसी पर लटका दो, मैं इसका विरोधी हूं। दुनिया भर के दूसरे देशों में आज एक बहस छिड़ी हुई है कि फांसी की सजा को खत्म कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये अमानवीय है। हां सजा सख्त होनी चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन हर आदमी को सुधरने का मौका जरूर मिलना चाहिए।
जब मैं कहा करता था कि अन्ना के साथ बाबा रामदेव का नाम जोड़कर अन्ना को गाली नहीं दिया जाना चाहिए, तो तमाम बाबा समर्थक मेरे लिए अनर्गल बातें कर रहे थे। अब देखिए बाबा योग भूल गए हैं, पूरे दिन अपने ट्रस्टों और कंपनियों का लेखा जोखा दुरुस्त करने में लगे हैं। अब पूरी तरह से बचाव की मुद्रा में हैं। घबराए इतना हैं कि भाषा की मर्यादा भी बाबा भूल चुके हैं। मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है कि अगर बाबा रामदेव पाक साफ हैं तो सवालों से भागते क्यों हैं। जो कुछ जानकारी पुलिस चाहती है, उसे देने में आखिर क्या गुरेज है। बाबा जी आप पुलिस को क्यों नहीं बता देते कि आपके गुरु महाराज कहां हैं। वो अब इस दुनिया में हैं या नहीं। अगर हैं तो कहां हैं, नहीं हैं तो उन्होंने कैसे प्राण त्याग दिया ?
आजकल बाबा टीवी पर योग करते तो कम दिखाई देते हैं, अपने और बालकृष्ण पर लगे आरोपों पर सफाई देने में ही उनका समय कटता है। इतना ही नहीं बाबा से बात करो राम की तो वो रहीम की सुनाते हैं। यानि जब उनसे पूछा जाता है कि ये हजारों करो़ड़ का साम्राज्य आपने कैसे खडा किया, तो बाबा इसकी जानकारी नहीं देते, वो कहते हैं कि जो कुछ भी किया है, वो सौ प्रतिशत प्रमाणिकता के साथ किया है। बाबा जी सवाल का ये तो कोई जवाब नहीं है। ऐसे तो देश में जितने भी चोट्टे हैं, किसी के भी खिलाफ कार्रवाई करना संभव नहीं होगा। कालेधन का मामला आपने उठाया है तो पहले साफ कीजिए ना कि आपके साम्राज्य में काले धन का इस्तेमाल नहीं हुआ है। वैसे तो एक दिन आपने हिसाब देने की कोशिश की और अपने छह ट्रस्टों के बारे में कुछ पेपर पत्रकारों के सामने पेश कर दिया। लेकिन जब पत्रकारों ने उन 39 कंपनियों के बारे में जानकारी की तो आप बगले झांकने लगे। ऐसे में सवाल तो उठेगा ही एक संत को इतनी कंपनियां बनाने की जरूरत क्यों पडी, जाहिर है टैक्स चोरी करने के लिए।
बैसे भी बाबा रामदेव जी आजकल आपकी बाडी लंग्वेज भी बताती है कि आप सामान्य नहीं हैं। हमेशा तल्ख टिप्पणी, गुस्से से तमतमाया चेहरा, नेचुरल हंसी भी गायब है, चाल में भी आक्रामकता आ गई है। सच कहूं बाबा जी तो आप जब तक सामान्य ना हो जाएं प्लीज भगवा कपड़े पहनना छोड़ दीजिए। भगवा कपडे में आज करोड़ों हिंदुस्तानियों की आत्मा बसती है, लोग इस कपडे का सम्मान करते हैं। वैसे भी पुलिस से बचने के लिए आपने जिस तरह से महिलाओं का सलवार सूट पहना, उससे आपका भगवा वस्त्र पहनने का व्रत टूट चुका है। भगवा वस्त्र का व्रत टूटने के बाद इसे ऐसे ही दोबारा नहीं पहन सकते हैं। अब आपको कोर्ट, कचहरी, पुलिस, सीबीआई का सामना करना पड रहा है, हो सकता है जेल तक जाना पडे, ऐसे में इस भगवा का तब तक त्याग कर दें, जब तक आप सभी मामलों से पाक साफ बरी ना हो जाएं। देखिए नेताओं को जिन्हें आप पानी पी पी कर कोसते हैं, वो भी इतने नैतिक हैं कि आरोप लगने पर कुर्सी छोड़ देते हैं। मुझे लगता है कि आपको भी एक उदाहरण पेश करना चाहिए, लेकिन बाबा जी आप से ऐसी उम्मीद करना बेमानी है, क्योंकि आप में कानून के प्रति श्रद्धा होती तो फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट बनवाने वाले बालकृष्ण की पैरवी ना करते।

मुझे बालकृष्ण से ज्यादा शिकायत नहीं है। फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर तमाम लोग पायलट बन गए, कुछ दिन पहले इनकी पहचान हुई और इन्हें गिरफ्तार किया। मुझे पता है कि ये बालकृष्ण नेपाली है, उसका जन्मतिथि प्रमाण पत्र फर्जी है, उसकी डिग्रियां फर्जी हैं, इतना ही नहीं उसने फर्जी कागजातो के आधार पर पासपोर्ट तक हासिल कर लिया। ऐसा नहीं है कि बाबा रामदेव के धरने के बाद ये मामला खुला है, सच ये है कि इसकी जांच तीन साल पहले उत्तराखंड पुलिस ने की थी और अपनी रिपोर्ट में साफ कर दिया था कि बालकृष्ण नेपाली नागरिक है और गलत प्रमाण पत्रों के आधार पर इन्होंने पासपोर्ट लिया है। लेकिन उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार है, जिसे बाबा रामदेव लाखों रुपये चंदा देते हैं। इसलिए इस मामले में वहां की सरकारने कोई कार्रवाई नहीं की। खैर बालकृष्ण जैसे आरोपी के बारे में ज्यादा चर्चा क्या करूं, इसकी जगह जेल है, और जाना भी तय है, जिस तरह से भागता फिर रहा है, उससे तो उस पर तरस आ रही है।
मित्रों बालकृष्ण की डिग्री फर्जी होने से ज्यादा शर्मनाक ये है कि बाबा रामदेव एक गलत आदमी के लिए सफाई दे रहे हैं। पुलिस जाती है सीबीआई की नोटिस लेकर, कहा जाता है कि बालकृष्ण आश्रम में नहीं हैं। पुलिस को नोटिस आश्रम में बालकृष्ण के कमरे के बाहर चस्पा करना पड़ता है, दो घंटे बाद भगवाधारी रामदेव आते हैं, वो कहते हैं कि बालकृष्ण आश्रम में ही हैं। बताइये संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति इनकी डिग्री को फर्जी बताते हैं, बाबा रामदेव कहते हैं कि इस सर्टिफिकेट से नौकरी तो नहीं मांग ली। इससे घटिया सोच भला क्या हो सकती है, एक बाबा ऐसी बातें करे, इससे भद्दा, फूहडपन भला क्या हो सकता है। बाबा जी अब आपके मुंह से सच्चाई, ईमानदारी, राष्ट्रवादी बातें बेईमानी नहीं गाली लगती हैं।

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खतरनाक होते हैं सोते हुए लोग Police Opinion - अविनाश वाचस्‍पति

बाबा रामदेव की अनशन वाली सभा पर रामलीला मैदान में रात को पुलिस ने खूब सारी लाठियां बरसाईं। पुलिस जब लाठियां बरसाती हैं तो बेदर्दी से बरसाती है। बेरहमी से पब्लिक का खून बहाती है। खून बह रहा होता है और पुलिस की लाठियां चार्ज हो रही होती हैं। ऐसा सब कहते हैं जबकि लाठियां कोई मोबाइल फोन नहीं हैं जिनमें बैटरी लगी हुई होती हो और उन्‍हें चार्ज करना जरूरी हो। इसलिए पहले सिरे से ही इस आरोप को हम पुलिसवाले नकारते हैं कि लाठियों को किसी प्रकार भी चार्ज किया गया था। जबकि लाठियों से पिटाई करने से पहले लाठियों को तेल पिलाया जाता रहा है। हमने तो उन्‍हें तेल की छोडि़ए, दूध पानी तक भी नहीं पिलाया था। जिन लाठियों ने कुछ पिया ही नहीं , वे भला कैसे चार्ज हो सकती थीं। वैसे अगर आप बाबा रामदेव की अनशन सभा को तितर-बितर करने के लिए लाठियां मारने को चार्ज करना कह रहे हैं फिर तो मोबाइल फोन को भी मार मार कर चार्ज किया जा सकता होगा और ऐसा करने का क्‍या हश्र हो सकता है, आप एक बार मोबाइल को कहीं पर मार कर खुद ही चार्ज करके देख लीजिए। जब मोबाइल फोन ही चार्ज नहीं हो रहे हैं मारने से तो भला लाठियां कैसे चार्ज हो सकती हैं। उसी प्रकार जिस प्रकार पत्‍थर मारे जाने पर पत्‍थर चार्ज करना नहीं कहा जाता है। जिन चीजों को चार्जिंग की जरूरत पड़ती है, उसके बारे में तो सारी दुनिया जानती है। दिमाग जरूर चार्ज करना पड़ता है। उसको भी अगर दीवार में या पत्‍थर पर दे मारें तो जो चार्जिंग बची हुई होगी वो भी डिस्‍चार्ज हो जाएगी। अगर दिमाग चार्ज नहीं किया जाता होता तो ऐसे नायाब तरीके भला पुलिस को कैसे सूझ सकते थे। जिसके कारिंदों के दिमाग अपने ठेठ गंवारपने के लिए मशहूर हैं।जहां तक फोटो और वीडियो की बात है वो तो आजकल तकनीक इतनी सक्षम है कि जो नहीं हुआ उसे ऐसे और इतने सारे सबूतों के साथ पेश कर दिया जाता है कि ऑरीजनैलिटी भी शर्मा जाए। यही रामलीला की लीला देखने दिखाने के लिए किया जाता है।  वैसे तो समाज में लीला करने के लिए सब लालायित रहते हैं। कितनी प्रकार की लीलाएं हम आप बचपन से देखते सुनते रहते हैं। कभी कृष्‍ण लीला, कंस लीला, राम लीला, रास लीला, रावण लीला इनमें अगर पुलिस लीला और जुड़ गई तो क्‍या आफत आ गई। आखिर एक और लोक कला में इजाफा हुआ है। कलाओं की बेहतरी और वृद्धि के लिए तो हम सब लोग और समाज वैसे ही प्रयत्‍न करते रहते हैं। हमने इसमें थोड़ा सा संशोधन कर दिया तो क्‍या बुरा कर दिया। इतना हो हल्‍ला लीलाओं के लिए मचाने की क्‍या जरूरत है कि सब मचान बांधकर पुलिस के विरोध में तैनात हो गए हैं। जब आपके साथ कुछ होता है तब भी तो आप पुलिस की शरण मे ही आते हो, अगर हमने उस दिन खुदही आपको अपनी शरण में लेना चाहा और आप हमें देखकर ही डरकर त्राहि त्राहि करने लगे।जहां तक चैनलों की बात है तो वे तो सब कुछ सनसनीखेज बनाकर परोसने के लिए सदा तैयार रहते हैं। तो यह सब करामात अगर मीडिया ने कर ही दी तो क्‍या हुआ, आप इतने बेचैन क्‍यों हो रहे हैं।फिर लीला ही तो की है बाबा को लील तो नहीं लिया है हमने। जबकि बाबा खुद ही भ्रष्‍टाचार को लीलने के लिए नौ दिन से खाना पीना छोड़ रखे थे। कोशिश ही तो की थी पर लील तो एकाध को ही पाए हैं पर आप इस तरह चिल्‍लाए हैं कि मानो पुलिस ने लीला करके सारी कायनात ही लील ली हो।लाठीचार्ज की बात बेमानी है। वैसे भी बाबा भड़का रहे थे। यह कैसे साबित हो सकता है कि सोते हुए लोग भड़क नहीं सकते। सोते हुए लोग तो सबसे अधिक खतरनाक होते हैं। जो बोलते नहीं, उनसे सबको भय लगता है। सोते हुए लोगों पर बल प्रयोग करके पुलिस ने अपनी उद्यमशीलता का परिचय दिया है। कहा भी गया है कि एक चुप्‍पी का मुकाबला करना आसान नहीं है तो हमने सोते हुए चुप लोगों का मुकाबला करके कितना बड़ा तीर मारा है, इसे आप कैसे महसूस कर पायेंगे। वैसे भी पुलिस जोखिम वाले कार्य ही करती है, उसे मालूम था कि इस कार्रवाई पर उसे जरूर जवाबदेही का सामना करना पड़ेगा लेकिन हम तनिक चिंतित नहीं हए हैं और हमने पूरा जोखिम लिया है। हमें पुरस्‍कार देना तो दूर की बात, सीधी नजरों से भी नहीं देख रहे हैं आप आम लोग।
Source : http://avinashvachaspati.jagranjunction.com/2011/07/21/%E0%A4%96%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%8F-%E0%A4%B2/

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अविनाश वाचस्‍पति जी की यह पोस्ट जागरण जंक्शन की सप्ताह की सर्वाधिक देखी गयी पोस्ट घोषित की गयी है .
अविनाश जी ! मुबारक हो आपको , आपका यह लेख सचमुच ही अच्छा है . इसे हम अपनी हिन्दी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेश्नल पर पेश कर रहे हैं आज शाम ५ बजे और सोमवार को (१ अगस्त २०११) ब्लॉगर्स मीट वीकली में भी इसे पेश किया जाएगा  , आप सादर आमंत्रित है .
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ब्लॉग लिखने का तरीक़ा Hindi Blogging Guide (20)

देवेंद्र गौतम
ब्लॉग अभिव्यक्ति का एक ऐसा माध्यम है जिसे संचालित करने के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण या तकनीकी ज्ञान की ज़रुरत नहीं पड़ती. आप आसानी से अपनी बात पलक झपकते लोगों तक पहुंचा सकते हैं. इसमें पोस्ट करना तो बहुत ही आसान है. इसके लिए आप सबसे पहले www.blogger.com की वेबसाईट पर जाकर अपनी ईमेल आई डी और अपना पासवर्ड डालकर लॉग इन  करें , फिर अपने ब्लॉग के डैश बोर्ड में न्यू पोस्ट बटन को क्लिक करें यदि आप ब्लॉग इन ड्राफ्ट का इस्तेमाल करते हैं तो यह कॉलम के लोगो से युक्त दिखाई देगा. इसे क्लिक करने के साथ ही पोस्ट लिखने का बॉक्स खुल जायेगा. उसमें बायीं तरफ कम्पोज़ और एचटीएमएल का ऑप्शन मिलेगा. आपको कम्पोज़ करना है इसलिए उसे क्लिक कर दें. अब यदि आप हिंदी में लिखना चाहते हैं तो बॉक्स के ऊपर पट्टी में दायीं तरफ हिंदी वर्णमाला का अक्षर दिखाई पड़ेगा. उसे क्लिक कर दें तो ट्रांसलिटेरेशन एक्टिवेट हो जायेगा. अब आप रोमन में अपनी बात लिखते जायें और स्पेस देते जायें. वह देवनागरी में रूपांतरित होता जायेगा. बस अपनी पोस्ट तैयार कर लें. लिखने के अलावा ऊपर पट्टी में और भी बहुत सी सुविधाएं उपलब्ध हैं. आप अपनी पोस्ट में तस्वीर जोड़ सकते हैं. वीडियो क्लिप अटैच कर सकते हैं. लिंक जोड़ सकते हैं. फ़ॉन्ट के भी कई ऑप्शन दिए गए हैं. फॉण्ट साइज को छोटा बड़ा कर सकते हैं. टेक्स्ट को मनचाहे रंगों से सजा सकते हैं. उसे इटैलिक, बोल्ड या नॉर्मल रख सकते हैं. अपनी पसंद का अलाइनमेंट सेट कर सकते हैं. अपनी पोस्ट को अपनी पसंद के अनुसार सजाने के बाद बॉक्स के ऊपर पोस्ट टाइटल पर क्रशर ले जाकर पोस्ट की हेडिंग दे-दें. इसके बाद दायीं तरफ लेबल्स को क्लिक कर अपनी पोस्ट की प्रकृति मसलन 'कहानी', 'कविता', 'आलेख', 'विचार' लिख दें. लेबल का वर्गीकरण भी ब्लौगिंग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. एक लेबल के तमाम पोस्ट आपके ब्लॉग पर एक जगह संगृहीत   होंगे. किस लेबल से कितने पोस्ट हैं उनकी संख्या दिखाई देगी. आपके पाठक उसे क्लिक करके भी उन पोस्टों को देख सकेंगे. एक बात और पोस्ट टाइटल या लेबल्स में ट्रांसलिटेरेशन काम नहीं करेगा. उनमें हिंदी में लिखने के लिए आपको टेक्स्ट बॉक्स में ही लिखकर कट करना और उनमें पेस्ट करना होगा. 

            अब आपकी पोस्ट तैयार हो चुकी है. यदि आप उसे ब्लॉग पर प्रकाशित करना चाहते हैं तो पब्लिश बटन को क्लिक कर दें. आपकी पोस्ट ब्लॉग पर प्रकाशित होकर आपके फ़ोलोअर्स  के डैशबोर्ड पर रीडिंग बॉक्स में दिखने लगेगीं. यदि आप पोस्ट को अभी ब्लॉग में प्रकाशित नहीं करना चाहते तो सेव का बटन क्लिक कर दें. वह आपके ड्राफ्ट में सुरक्षित रहेगी. फिर आप जब भी चाहें डैशबोर्ड में एडिट का बटन क्लिक कर उसे खोल सकते हैं. उसमें कुछ जोड़ सकते हैं. कोई अंश डिलीट कर सकते हैं और फिर बटन दबाकर उसे प्रकाशित कर सकते हैं. आप यदि प्रकाशित होने से पहले यह देखना चाहते हैं कि आपके ब्लॉग पर वह कैसा दिखेगा तो प्रीव्यू  बटन को क्लिक कर उसका पूर्वालोकन कर सकते हैं . ब्लॉगर की ही तरह दूसरी वेबसाइट पर भी आप अपने ब्लॉग के लिए पोस्ट तैयार कर सकते हैं . हरेक वेबसाइट पर केवल थोड़ी-बहुत सुविधाओं का अंतर है वर्ना पोस्ट लिखने और उसे पब्लिश करने का एक ही तरीक़ा है . सो यह बुनियादी क़ायदा सब जगह काम देगा .
क्यों ...,है न पोस्ट तैयार  करना और उसे प्रकाशित करना बिलकुल आसान ?
तो देर किस बात की बस हो जाइये शुरू.

                                                              ---देवेंद्र गौतम
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मनी मैटर? नो टेंशन, स्कॉलरशिप है न ! -Sapna Kushwaha

स्कूली शिक्षा के बाद छात्र उच्च शिक्षा के सपनों के ताने-बाने बुनने लगते हैं, लेकिन आर्थिक तंगी उनके सपनों को उड़ान नहीं भरने देती। पर अब उनकी मदद के लिए अनेक स्कॉलरशिप योजनाएं सामने हैं।
इन स्कॉलरशिप के बारे में विस्तार से बता रही हैं सपना कुशवाहा
हर साल रिजल्ट आने के बाद प्रतिभा सम्पन्न नौजवान आर्थिक तंगी के कारण अपनी एजुकेशन को आगे जारी रख पाने में नाकाम साबित होते हैं। ऐसी समस्या से परेशान युवाओं की मदद के लिए अब तेजी से सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं सामने आई हैं। यह संस्थाएं स्कॉलरशिप व फैलोशिप से छात्रों की आर्थिक समस्या का समाधान करती हैं। किसी भी स्कॉलरशिप के लिए आवेदन करने के लिए निर्धारित योग्यता क्या है? शर्ते क्या हैं? इस बात की जानकारी होना बेहद जरूरी हो गया है। यहां ऐसी ही राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्कॉलरशिप की जानकारी दी जा रही है-
सेंट्रल सेक्टर स्कीम ऑफ स्कॉलरशिप फॉर कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले युवाओं को बेहतर संसाधन मुहैया कराने और उनके कमजोर आर्थिक पक्ष को मजबूती प्रदान करने के मकसद से सीबीएसई यह स्कॉलरशिप प्रदान करता है। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय के माध्यम से उपलब्ध होने वाली यह स्कॉलरशिप 12वीं में अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होने वाले छात्रों को दी जाती है। इस स्कॉलरशिप के तहत ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए एक हजार रुपये प्रतिमाह और पोस्ट ग्रेजुएट व प्रोफेशनल पाठयक्रमों के लिए दो हजार रुपये प्रतिमाह दो साल के लिए प्रदान किए जाते हैं। ग्रेजुएशन स्तर पर प्रोफेशनल कोर्स करने वालों को तीसरे व चौथे साल के लिए दो हजार रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं।
पता है- सेक्शन ऑफिसर स्कॉलरशिप, सीबीएसई, शिक्षा केन्द्र, प्रीत विहार, नई दिल्ली-110092
वेबसाइट- www.cbse.nic.in  
आईआईएमसी यंग फैलोशिप इन साइंस 12वीं  क्लास में टॉपर्स को यह फैलोशिप प्रदान की जाती है। इसके लिए बोर्ड, विश्वविद्यालय परीक्षा अथवा इसके समकक्ष परीक्षा में पहले 20 स्थानों पर आने वाले गणित विषय के स्टूडेंट्स को यह सहायता मिलती है। इसके अलावा यह सहायता इन स्टूडेंट्स को भारत में अपनी पसंद के कॉलेज व यूनिवर्सिटी में साइंस साइड में करियर बनाने के लिए प्रदान की जाती है।
पता है- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सांइस, बेंगलुरू द 
पॉल फाउडेंशन स्कॉलरशिप यह स्कॉलरशिप स्नातक स्तर की पढ़ाई, शोध और प्रशिक्षण हेतु दी जाती है। इसके विषय हैं- ह्यूमेनिटीज, एप्लाइड साइंस, मेडिसिन, लॉ, फाइन आर्ट्स, कम्युनिटी व सोशल मैनेजमेंट। यह भारत और विदेशों के विख्यात विश्वविद्यालय व संस्थानों में दाखिला पा चुके छात्रों को दी जाती है। इसके तहत 2 वर्ष तक प्रति वर्ष अधिकतम 15 लाख रुपये दिए जाते हैं।
पता है- एपीजे हाउस, 15 पार्क स्ट्रीट, कोलकाता
वेबसाइट-  www.thepaulfoundation.org  
ललित कला अकादमी स्कॉलरशिप इस स्कॉलरशिप के तहत एक साल के लिए 3 हजार रुपये प्रतिमाह की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसके लिए आवेदक का 35 साल से कम उम्र का होने के साथ-साथ कला जगत से जुड़ा कलाकार, कला समीक्षक, कला विश्लेषक व कला का जानकार होना जरूरी है।
पता है- ललित कला अकादमी, रवीन्द्र भवन, 35 फिरोजशाह रोड, नई दिल्ली
वेबसाइटwww.lalitkala.gov.in  
राष्ट्रीय विज्ञान प्रतिभा खोज परीक्षा छठी, सातवीं, आठवीं, नौवीं, दसवीं और ग्यारहवीं के छात्रों में से प्रतिभा सम्पन्न तथा योग्य छात्रों की तलाश कर उन्हें प्रोत्साहित करना ही इस परीक्षा का मूल उद्देश्य है। इसे तहत कुल 8 लाख रुपये तक के पुरस्कार छात्रों को प्रदान किए जाते हैं। यह पुरस्कार स्कॉलरशिप के रूप में होते हैं। विभिन्न कक्षाओं के लिए परीक्षा का आयोजन अलग-अलग वर्ग में किया जाता है। देश के पचास से ज्यादा प्रमुख शहरों में यह परीक्षा आयोजित की जाती है।
पता है- प्रोजेक्ट डायरेक्टर, यूनिवर्सल ट्रस्ट, ग्रेटर कैलाश, दिल्ली  
ओएनजीसी स्कॉलरशिप ओएनजीसी की ओर से यह स्कॉलरशिप अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों को प्रदान की जाती है। आवेदक का स्नातक, ग्रेजुएट इन इंजीनियरिंग, मास्टर डिग्री प्रथम वर्ष जियोलॉजी, एमबीए का छात्र होना अनिवार्य है। स्कॉलरशिप की कुल संख्या 75 रहती है, जिसके तहत पहले व दूसरे साल में 12 हजार रुपये और तीसरे व चौथे साल में 18 हजार रुपये प्रदान किए जाते हैं।
पता है- मैनेजर एचआर, एससी-एसटी सेल, रूम नम्बर-05, ओएनजीसी, तेल भवन, देहरादून, उत्तराखंड। अवॉर्ड फॉर जूनियर रिसर्च फैलोशिप इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च की ओर से प्रदान की जाने वाली यह फैलोशिप देश के युवाओं को रिसर्च के क्षेत्र में काम करने के लिए प्रदान की जाती है। इसके लिए आवेदक का एमएससी, बीई, बीटेक, एमई, एमटेक और बीएससी, इंजीनियरिंग पास होना जरूरी है। इसके अलावा आवेदक की आयु 28 साल होनी चाहिए। इस सहायता के तहत योग्य रिसर्चर को 12 हजार रुपये मासिक प्रदान किए जाते हैं।
पता है- भारत सरकार, डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी, इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च, कलपक्कम-603102
वेबसाइट- www.igcar.gov.in  
फास्ट ट्रेक स्कीम विज्ञान विषय में कुछ नया करने के इच्छुक युवाओं को यह स्कॉलरशिप प्रदान की जाती है। इसके लिए आवेदक का पीएचडी इन बेसिक साइंस या मास्टर्स इन इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी, मेडिसिन, फार्मेसी होना जरूरी है। इसके अलावा आवेदक की आयु 35 साल से कम होनी चाहिए। सहायता राशि के तौर पर योग्य उम्मीदवारों को 17 लाख रुपये की सहायता दी जाती है।
पता  है- हैड, एसईआरसी, डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, टेक्नोलॉजी भवन, न्यू महरौली रोड, दिल्ली
आवेदन का समय- साल में कभी भी।
वेबसाइट- www.serc-dst.org  
राजीव गांधी साइंस टैलेंट रिसर्च फैलोशिप यह फैलोशिप विज्ञान विषय में अपना भविष्य तलाश रहे युवाओं को प्रदान की जाती है। जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च की ओर से प्रदान की जाने वाली यह स्कॉलरशिप बीई, बीएससी, बीटेक, बी फार्मा और एमसीए सेकंड व थर्ड ईयर स्टूडेंट्स को प्रदान की जाती है। हर साल लगभग 75 स्टूडेंट्स का चुनाव किया जाता है। अवधि एक से दो साल होती है।
पता है- जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, जाक्कुर, बंगलुरू
वेबसाइट- www.eduction.nic.in
आवेदन का समय- अक्तूबर-दिसम्बर क्रिमिनोलॉजी व पुलिस साइंस फैलोशिप यह फैलोशिप क्रिमिनोलॉजी व पुलिस साइंस में तीन साल के लिए प्रदान की जाती है। इसके लिए क्रिमिनोलॉजी, सोशलॉजी, सोशल वर्क, सोशल एंथ्रोपोलॉजी, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, पोलीटिकल साइंस में प्रथम व द्वितीय श्रेणी अथवा लॉ ग्रेजुएट स्टूडेंट आवेदन कर सकते हैं।
पता है- ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च व डेवलपमेंट, मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स, सीजीओ कॉम्प्लेक्स, लोधी रोड, दिल्ली डीबीटी पोस्ट डॉक्टरल फैलोशिप यह स्कॉलरशिप भारत के किसी भी विश्वविद्यालय अथवा रिसर्च सेंटर में बायोटेक्नोलॉजी या एप्लाइड बॉयोलॉजी में रिसर्च करने वाले ऐसे स्टूडेंट को दी जाती है, जो सांइस, इंजीनियरिंग में पीएचडी डिग्री प्राप्त हो और जिसका एकेमिक रिकार्ड अच्छा हो। फैलोशिप के लिए आवेदन करने वाले स्टूडेंट की उम्र 40 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।
पता है- डीबीटी-पीडीएफ प्रोग्राम, बायोकेमिस्ट्री विभाग, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू  

सफलता के सूत्र
ज्वाला गट्टा के 5 सक्सेस मंत्र ज्वाला गट्टा का नाम देश में बैडमिंटन प्रेमियों के बीच किसी परिचय का मुहताज नहीं है। वे देश की सवश्रेष्ठ डबल्स खिलाड़ी हैं। उनके नाम महिला डबल्स के 9 और मिक्स्ड डबल्स के पांच नेशनल खिताब हैं। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय खिताब भी जीते हैं। क्या है उनकी सफलता का राज :  
लक्ष्य मैंने हमेशा अपने खेल को प्राथमिकता दी। उसी का नतीजा है कि आज मैं इस मुकाम पर पहुंच सकी हूं। मैंने लगातार प्रैक्टिस को हमेशा तरजीह दी है। किसी भी टूर्नामेंट से पहले ही मैं लक्ष्य हासिल करने के लिए साथी खिलाड़ी के साथ विचार-विमर्श करके उसी के अनुसार खुद को तैयार करती हूं। जिस तरह हमें किसी भी परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालना आना चाहिए, उसी तरह लक्ष्य हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने और खुद को एडजस्ट करने को भी तैयार रहना चाहिए।
कड़ी मेहनत नेशनल लेवल पर नंबर वन बरकरार रहना आसान नहीं है। इसके लिए बेशक कड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ती है, साथ ही उसके लिए खुद को मानसिक व शारीरिक रूप से तैयार करना पड़ता है। किसी भी हालात में मेहनत से पीछे न हटना, ये मैंने सफलता का सूत्र बनाया हुआ है।  
प्रतिबद्धता किसी भी चीज को हासिल करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना बहुत मुश्किल होता है। इसके लिए उस चीज के प्रति एक जुनून की जरूरत होती है। उसी को ध्यान में रखते हुए हमें खुद को हमेशा उस जुनून से बांधे रखना चाहिए। बेशक आपकी निजी जिंदगी में किसी भी तरह के हालात हों, उसका असर आपकी प्रतिबद्धता पर नहीं पड़ना चाहिए।  
फिटनेस किसी भी खेल में सबसे जरूरी है फिटनेस। मेरा मानना है कि जब  तक हम फिट हैं, खेलते रहना चाहिए। अगर आज पीटर गेड और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी इस उम्र में खेल रहे हैं तो सिर्फ अपनी फिटनेस की वजह से। इसलिए हमें अपनी फिटनेस पर ध्यान देना चाहिए। खेलों के लिए ही, निजी जिंदगी में भी अपनी फिटनेस पर पूरा ध्यान देना चाहिए, क्योंकि हेल्थ इस वेल्थ। 
संयम और धैर्य
परेशानियों का सामना धैर्य और संयम के साथ करना चाहिए। ऐसा करने से हम मानसिक रूप से विचारशील रह सकते हैं और प्रतिकूल परिस्थितियों का हम पर कोई असर नहीं पड़ता। मेरी जिंदगी में भी कई बार ऐसी स्थितियां आईं, जब मुझे दिल के साथ-साथ दिमाग का इस्तेमाल करके फैसला लेना था। डबल्स में मेरी जोड़ी श्रुति कुरियन के साथ काफी समय से थी, लेकिन उसके टूटने से लगे झटके को मैंने बहुत संयम के साथ स्वीकार किया और फिर अश्विनी पोनप्पा के साथ जोड़ी बनाई। नतीजा, हमने कॉमनवेल्थ में पहली बार देश को पदक दिलाया।
प्रस्तुति : सौरभ अग्रवाल

जिन्होंने कर दिखाया  
दिल जो चाहे वही करें
रुचि
पानी की बोतलें बनाने वाली कंपनी के लिए मार्केटिंग से लेकर मेकमाईट्रिप डॉट कॉम जैसे बड़े ट्रैवल पोर्टल तक का सफर सचिन भाटिया ने कई उतार-चढ़ाव के साथ पूरा किया। अपनी जिंदगी में हमेशा कुछ नया करने की कोशिश में रहने वाले सचिन ने सफलता का यह सफर कैसे पूरा किया, बता रही हैं रुचि ‘मेरी पढ़ाई दिल्ली से हुई है। पहले आरके पुरम के दिल्ली पब्लिक स्कूल में और फिर दक्षिणी दिल्ली के शहीद भगत सिंह कॉलेज में। मैं जब दसवीं में था तो मुझे पता था कि मैंने मार्केटिंग एंड एडवर्टाइजिंग के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना है, इसीलिए मैंने बीकॉम में ग्रेजुएशन की।’ सचिन की प्रैक्टिकल शिक्षा-दीक्षा की शुरुआत उनके घर से ही शुरू हो गई थी। ‘मेरी मां एक फ्लोरिस्ट हैं और जब मैं कॉलेज आने-जाने लगा तो मुझे बाइक की जरूरत थी और उसे पाने के लिए मेरी मां ने मुझे 6 महीने काम करने की नसीहत दी। उनके पास काम करने के बाद ही मुझे बाइक भी मिली।’ सचिन ने अपने करियर की दिशा पहले ही तय कर ली थी। वे मार्केटिंग और एडवर्टाइजिंग में अपना करियर ढूंढ़ रहे थे, लेकिन इस क्षेत्र में एमबीए करने से पहले उन्होंने इस क्षेत्र का अनुभव पाना जरूरी समझा। इसके लिए उन्होंने इससे पहले न्यूकैम-वीर में सेल्स का काम किया। उनका कहना है, ‘मार्केटिंग और सेल्स, दोनों एक-दूसरे से बेहद करीब से जुड़े हुए हैं। बिना सेल्स की जानकारी के आप मार्केटिंग के गुरों को पूरी तरह से नहीं सीख सकते।’ न्यूकैम-वीर नाम की यह कंपनी पानी के डिसपेंसर्स पर लगने वाली बोतलें बनाती थी, जिनकी डिमांड उस समय फैक्ट्रियों और कंपनियों के दफ्तरों में ज्यादा थी। सचिन की जिंदगी की पहली जॉब ने उन्हें गर्मियों की दोपहर में बाइक पर एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस घूमने के लिए मजबूर कर दिया। पर बिना किसी शिकायत सचिन कहते हैं, ‘यह मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा अनुभव था, जिसने मुझे बिजनेस के लिए सेल्स के पहलू को जानने में काफी मदद भी की।’ इसके बाद उन्होंने स्कॉटलैंड के स्ट्रेक्लाइड ग्रेजुएट बिजनेस स्कूल से एमबीए की डिग्री भी ली। आज से लगभग 15 साल पहले उन्हें विजक्राफ्ट कंपनी में इवेंट्स का काम करने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने ग्रे एडवर्टाइजिंग से एडवर्टाइजिंग का और एएमएफ बाउलिंग से मार्केटिंग का अनुभव लिया। कहा जा सकता है कि सचिन की जिंदगी में यही वह टर्निग पॉइंट था, जहां से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। यहीं उनकी मुलाकात दीप कालड़ा से हुई (मेकमाईट्रिप डॉट कॉम के संस्थापक)। सचिन और दीप ने मिल कर वर्ष 2000 में एक प्राइवेट ट्रैवल पोर्टल तैयार किया। लेकिन उस वक्त वेब पोर्टल का बाजार देश में न के बराबर था, इसलिए उन्होंने अपने पोर्टल को अमेरिका में लॉन्च किया। अपने कारोबार के बारे में सचिन का कहना है, ‘हमारे लिए अमेरिका में अपने क्लाइंट्स को समझाना और उसे कारोबार में तब्दील करना काफी मुश्किल था, क्योंकि हम यहां भारत में थे और हमारा बाजार अमेरिका में था।’ अमेरिका में मिली सफलता के लगभग 5 साल बाद मेकमाईट्रिप को भारत में लॉन्च करने का जोखिम एक बड़ा कदम था, क्योंकि 2005 तक भी भारत में ऑनलाइन ट्रैवल बुकिंग का सपना देखना एक बड़ी बात थी। लेकिन उन्हें उम्मीद से इतर भारत में जबरदस्त कारोबार दिखाई दिया। सचिन का कहना है, ‘आज के समय में मेकमाईट्रिप डॉट कॉम पर रोजाना लगभग 10,000 से भी अधिक एयरलाइन टिकटों का कारोबार होता है।’ मेकमाईट्रिप को बुलंदियों तक ले जाने में एक मुख्य सहायक की भूमिका निभाने वाले सचिन ने पिछले साल मेकमाईट्रिप डॉट कॉम में मुख्य मार्केटिंग अधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया। उनका कहना है, ‘मैं अब भी वहां बतौर सलाहकार मौजूद हूं, पर मैं अब कुछ और करना चाहता हूं।’ सचिन को एडवेंचर बहुत पसंद है और अपनी पसंद को ध्यान में रखते हुए वे शिवपुरी (ऋषिकेश) में एक एडवेंचर रिजॉर्ट ‘एक्टिवा’ पर काम कर रहे हैं। उनका यह रिजॉर्ट तीन से चार महीने में तैयार हो जाएगा। इसके अलावा भी वे एडवेंचर के क्षेत्र में दूसरे रिजॉर्ट्स के मालिकों से बातचीत कर रहे हैं। नौकरी से बिजनेस में उतरे सचिन का सफलता के बारे में यही कहना है, ‘जो हम करना चाहते हैं, हम उसे ही करें और सही तरीके से करें तो हमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। साथ ही हमें अपनी सफलता के लिए कड़ी मेहनत और धैर्य दोनों की जरूरत है। आप रातोरात सफल नहीं हो सकते।’ ‘जो हम करना चाहते हैं, उसे ही करें और सही तरीके से करें तो हमें सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। ’
सचिन भाटिया  
फैक्ट फाइल जन्म तिथि: 15 अप्रैल, 1972
शिक्षा: दिल्ली पब्लिक स्कूल, आरके पुरम, दिल्ली
कॉलेज: शहीद भगत सिंह कॉलेज
एमबीए : स्कॉटलैंड में
अचीवमेंट: 2000 में मेकमाईट्रिप डॉट कॉम के रूप में लॉन्च ट्रैवल पोर्टल के सह-संस्थापक
Source : http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-Money-matter-no-tansion-Schoolarship-50-50-178942.html
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खबरगंगा: हीरा भी है सोना भी लेकिन किस काम का

जहांगीर के शासन काल में झारखंड में एक राजा दुर्जन सिंह थे. वे हीरे के जबरदस्त पारखी हुआ करते थे. वे नदी की गहराई में पत्थर चुनने के लिए गोताखोरों को भेजते थे और उनमें से हीरा पहचान कर अलग कर लेते थे. एक बार मुग़ल सेना ने उनका राजपाट छीनकर उन्हें कैद कर लिया. जहांगीर हीरे का बहुत शौक़ीन था. एक दिन की बात है. उसके दरबार में एक जौहरी दो हीरे लेकर आया. उसने कहा कि इनमें एक असली है एक नकली. क्या उसके दरबार में कोई है जो असली नकली की पहचान कर ले. कई दरबारियों ने कोशिश की लेकिन विफल रहे. तभी एक दरबारी ने बताया कि कैदखाने में झारखंड का राजा दुर्जन सिंह हैं. उन्हें हीरे की पहचान है. वे बता देंगे. जहांगीर के आदेश पर तुरंत उन्हें दरबार में बुलाया गया. उनहोंने हीरे को देखते ही बता दिया कि कौन असली है कौन नकली. जहांगीर ने साबित करने को कहा. उनहोंने दो भेड़ मंगाए एक के सिंघ पर नकली हीरा बांधा और दूसरे के सिंघ पर असली दोनों को अलग-अलग रंग के कपडे से बांध दिया. फिर दोनों को लड़ाया गया. नकली हीरा टूट गया. असली यथावत रहा. दरबार की इज्ज़त बच गयी. जहांगीर इतना खुश हुआ कि दुर्जन सिंह तो तुरंत रिहा कर उसका राजपाट वापस लौटा दिया.
यह कहानी इसलिए याद आ गयी कि केंद्रीय खान मंत्रालय देश के विभिन्न राज्यों में हीरे और सोने की बंद पड़ी खदानों में उत्खनन के लिए निजी क्षेत्र के निवेशकों को प्रोत्साहित करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. झारखंड में हीरा भी है और सोना भी लेकिन खान मंत्रालय की इस योजना का लाभ इस सूबे को मिलने की संभावना नहीं के बराबर है. इसका कारण है इसके व्यावसायिक उत्पादन की अल्प संभावना. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने अपने सर्वेक्षण में सिंहभूम, गुमला, लोहरदगा आदि जिलों में कई जगहों पर सोने और हीरे की उपलब्धता के संकेत दिए हैं. विभिन्न कालखंडों में इन स्थलों पर उत्खनन के प्रयास भी किये गए हैं लेकिन अलाभकारी पाए जाने के कारण अभी तक व्यावसायिक स्तर पर उत्खनन नहीं किया जा सका. स्थानीय ग्रामीणों द्वारा अल्प मात्रा में इन्हें चुनकर कर औने-पौने भाव में बेच देने का सिलसिला जरूर चलता रहा है. भूतत्ववेत्ता डा.नीतीश प्रियदर्शी के मुताबिक स्वर्णरेखा, संजई कोयल आदि नदियों की रेत में स्वर्णकण और हीरे मिलते हैं लेकिन उसकी मात्रा इतनी कम है कि व्यावसायिक स्तर पर इसे निकालना घाटे का सौदा होगा. 1913 से 1919 के बीच मनमोहन मिनिरल उद्योग ने सिंहभूम के पोटका ब्लॉक के कुंडरकोचा में करीब 50 एकड़ में फैले निजी क्षेत्र के प्रथम स्वर्ण खदान में 30 मीटर तक खुदाई की थी लेकिन अंततः उसने अपने हाथ खींच लिए थे.
वर्ष 2003 में झारखंड सरकार ने स्वर्ण खनन क्षेत्र की विश्व विख्यात कंपनी डीवियर्स को स्वर्ण और हीरक उत्खनन का जिम्मा दिया था लेकिन कंपनी के सर्वे की रिपोर्ट निराशाजनक रही. इसके बाद उसने अपने हांथ खींच लिए. डा. प्रियदर्शी ने सरकार को सुझाव दिया है कि सोने और हीरे के कण एकत्र करने के काम में स्थानीय ग्रामीणों की सोसाइटी को लगाया जाये और उन्हें इसकी वाजिब कीमत दिलाने की व्यवस्था की जाये तो यह स्वरोजगार का एक माध्यम बन सकता है. अभी तो सबसे बड़ी समस्या विधि-व्यवस्था की है. जिन इलाकों में इनकी उपलब्धता है वहां माओवादियों का दबदबा है. कोई निजी कंपनी उन इलाकों में काम करने के लिए शायद ही तैयार हो.

---देवेंद्र गौतम

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प्रतिभा का सम्मान है स्कॉलरशिप -Anurag Mishra

विविधताओं से भरे इस देश में अपार प्रतिभाएं है। बस जरूरत है उन्हें पहचान कर मौका देने की। स्कॉलरशिप युवाओं की प्रतिभा को मुकाम देने का प्रमुख टूल है। इस बारे में बता रहे हैं अनुराग मिश्र
               स्कॉलरशिप छात्र की मुश्किलों को जहां आसान करती है, वहीं दूसरी तरफ उसे मानसिक संबल प्रदान करने का भी काम करती है। उसे इस बात का भरोसा देती है कि उसकी प्रतिभा को तराशने और पहचानने वाला कोई है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जो सफलता के  हर द्वार को खोलता है। ऐसे में स्कॉलरशिप मिलना किसी प्रत्याशी की हौसला अफजाई करता है। कई बड़ी सिलेब्रिटीज, महापुरुषों के जीवन को बदलने में स्कॉलरशिप का अहम योगदान रहा है। अहम बात यह है कि इसके द्वारा कई छात्र-छात्राओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का प्लेटफॉर्म मिल पाता है। विविधताओं से भरे देश में हर छात्र की ख्वाहिश अलग-अलग होती है। किसी की तमन्ना है कि वह इंजीनियर बनें तो कोई डॉक्टर। किसी की हसरत आगे प्रबंधन के क्षेत्र में करियर बनाने की है तो कोई सीए बनने का ख्वाब संजोए होता है। यही नहीं, कुछ की वैज्ञानिक बनने की इच्छा है तो कोई लेखक बनना चाहता है। इतने सारे अरमानों को कभी-कभार इसलिए पंख नहीं लग पाते कि अड़चन आड़े आ जाती है या फिर उनकी प्रतिभा को पहचानने वाला कोई नहीं होता। ऐसे में स्कॉलरशिप उनके अंदर के विश्वास को जगाने का काम करती है। छात्रवृत्ति कितनी आवश्यक है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि मंदी के दौर में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि ‘अरबपति और खरबपति, ऑयल और गैस कंपनी को टैक्स में अधिक छूट देने का परिणाम होगा कि कुछ स्कूली बच्चों को स्कॉलरशिप नहीं मिल पाएगी’। वाकई में स्कॉलरशिप किसी उम्मीदवार के जीवन में आशा की किरण होती है। कई स्कॉलरशिप ऐसी होती हैं, जिनका सामाजिक महत्त्व काफी होता है। ये प्रत्याशी को पैसे के साथ-साथ समाज में प्रतिष्ठा भी दिलाती हैं। प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप अपने उज्जवल भविष्य के सपनों को साकार करने के मार्ग में जब बाधाएं खड़ी नजर आती हैं तो किसी ऐसे सहारे की जरूरत महसूस होती है, जो संसाधनों के अभाव को दूर करने में मददगार बन जाए। कौन आएगा मसीहा बन कर? सामाजिक जिम्मेदारियों में बढ़-चढ़ कर निरंतर अपना योगदान देते आ रहे हिन्दुस्तान ने इस जिम्मेदारी को भी बखूबी समझा और हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप के तहत ऐसे प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहित करने का एक अभियान शुरू किया। इसके तहत स्कॉलरशिप देने का उद्देश्य यह था कि मेधावी विद्यार्थियों को न सिर्फ सक्षम बनाया जाए, बल्कि उन्हें मानसिक तौर पर भी मजबूत किया जाए, ताकि उनकी जिंदगी में सुनहरे भविष्य के लिए उमड़ रहे अरमान साकार करने की दिशा में रचनात्मक मदद की जा सके। सभी के लिए प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप में वह सभी विद्यार्थी भाग ले सकते हैं जिन्होंने 2011 में दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। स्कॉलरशिप को इस बार दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है- पहली श्रेणी ऐसे छात्रों की है,  जिनकी मासिक आय बीस हजार से ज्यादा है और दूसरी श्रेणी उनकी, जिनके परिवार की मासिक आय बीस हजार रुपए या इससे कम है। इस तरह से यह स्कॉलरशिप सभी के लिए है। अंकों की बाध्यता भी इस स्कॉलरशिप में नहीं रखी गई है। यानी आपके अंक कितने भी हों, आप इस स्कॉलरशिप में आवेदन करने के हकदार हैं। कुछ अलग करने का सपना संजोए छात्रों के लिए हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप 2011 एक बेहतरीन अवसर है।  कितनी मिलेगी राशि चूंकि यह स्कॉलरशिप सभी के लिए है, ऐसे में इस बार इसकी राशि को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। जिन छात्रों के परिवारों की मासिक आय बीस हजार रुपए से अधिक है, उन्हें 25 हजार रुपए की छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी और जिन छात्रों के परिवारों की मासिक आय बीस हजार रुपए से कम है, उन्हें बतौर स्कॉलरशिप 50 हजार रुपए प्रदान किए जाएंगे। 120 छात्रों को कुल चालीस लाख रुपए की स्कॉलरशिप प्रदान की जाएगी। इनमें चालीस छात्रवृत्तियां उन छात्रों के लिए होंगी, जिनके अभिभावकों की मासिक आय बीस हजार रुपए से कम है। एपीजी अब्दुल कलाम: इन्होंने लिखी स्कॉलरशिप से नई इबारत भारत के 11वें राष्ट्रपति और देश में मिसाइल मैन के नाम से मशहूर अबुल पाकिर जैनुअल अबादीन अब्दुल कलाम ने स्कॉलरशिप की बदौलत सफलता की सीढ़ियां चढ़ीं। कलाम के परिवार में सात भाई-बहन थे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले कलाम के पिता चाहते थे कि वे पढ़ाई करें। कलाम सुबह चार बजे उठते थे और  उसके बाद गणित की कक्षा में जाया करते थे। सुबह की कक्षा पढ़ने के बाद वह अपने चचेरे भाई के साथ कस्बे में अखबार बांटा करते थे। उनके कस्बे में बिजली नहीं थी। उनके घर में सात से नौ बजे तक कैरोसीन लैंप जलता था। चूंकि कलाम 11 बजे तक पढ़ते थे, इसलिए उनकी मां उनके लिए कुछ कैरोसीन तेल बचा लिया करती थी। मद्रास इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई में कलाम को स्कॉलरशिप मिली। वह वहां पर सिस्टम डिजाइन के प्रोजेक्ट के प्रमुख थे। एक दिन कलाम के प्राचार्य कक्षा में आए और उन्होंने उनसे कहा कि अगर अगले दो दिन में प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ तो उनकी स्कॉलरशिप रद्द कर दी जाएगी। कलाम ने अगले दो दिन तक बिना खाए-सोए काम किया। अंतिम दिन प्रोफेसर उनकी प्रगति को जांचने आए और काफी प्रभावित हुए। उन्होंने कलाम से कहा कि मैंने तुम्हें तनाव में रखा, पर तुमने डेडलाइन को समय से पूरा कर सबको हतप्रभ कर दिया। उसके बाद कलाम ने सफलता का नया इतिहास रच दिया। भारत के पोखरण नाभिकीय परीक्षण के वे पुरोधा थे। कलाम को पद्म विभूषण से नवाजा गया। कैसे होगा चयन चयन प्रक्रिया को पारदर्शी और बेहतर बनाने के लिए इसे चरणों में बांटा गया है। उद्देश्य है कि प्रतिभाशाली छात्र सफलता की इबारत लिखने से चूक न जाएं। उम्मीदवारों का चयन  तीन आधारों पर किया जाएगा-दसवीं कक्षा में मिले अंकों, अपने बारे में लिखे सौ शब्दों और साक्षात्कार। दोनों ही श्रेणियों के लिए इंटरव्यू की प्रक्रिया समान होगी। कैसे करूं आवेदन
स्कॉलरशिप में आवेदन करने के काफी तरीके हैं। हिन्दुस्तान अखबार में फॉर्म प्रकाशित किए जा रहे हैं। नई दिशाएं के इस अंक के दूसरे पेज पर भी फॉर्म प्रकाशित किया गया है। इसके अलावा स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में हिन्दुस्तान के प्रतिनिधियों द्वारा भी फॉर्म का वितरण किया जा रहा है। फॉर्म को हिन्दुस्तान की वेबसाइट www.livehindustan.com से भी डाउनलोड किया जा सकता है। कैसे प्राप्त होगी स्कॉलरशिप स्कॉलरशिप का वितरण एक राज्य स्तरीय समारोह में आयोजित किया जाएगा, जिसका विस्तृत विवरण हिन्दुस्तान में प्रकाशित किया जाएगा। परिणाम की घोषणा जुलाई/अगस्त माह में की जाएगी।  

जिन्होंने हासिल की सफलता स्कॉलरशिप ने दी जीवन को नई दिशा
डॉ. रोहीदास वाघमरे, प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट कहते हैं सफलता हासिल करने के लिए बस किसी के द्वारा दिखाई गई एक दिशा ही काफी होती है। स्कॉलरशिप ऐसी ही एक दिशा है, जो किसी व्यक्ति के जीवन में नई रोशनी लाती है और उसे कुछ अलग करने की प्रेरणा देती है। ऐसी ही दास्तां डॉ. रोहीदास वाघमरे की है, जिन्होंने स्कॉलरशिप की बदौलत करियर में बुलंदियां छुईं।
वाघमरे एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे, उनके पिता जूतों पर पॉलिश किया करते थे। उनकी आजीविका द्वारा घर का गुजारा मुश्किल था। बकौल डॉ. वाघमरे, हालात ये थे कि उन्हें भी कभी-कभार जूते पालिश करने पड़ते थे। वाघमरे की पढ़ाई-लिखाई लातूर के जिला परिषद स्कूल से हुई। वह बताते हैं कि आधा स्कूल उर्दू माध्यम का और आधा हिंदी माध्यम का था। स्कूल में सिर्फ मुङो ही स्कॉलरशिप मिला करती थी। यहां तक कि स्कूल के शिक्षक मेरी पढ़ाई से खुश होकर मुङो घर पर खाना खिलाने ले जाया करते थे। 1965 के दौरान स्कूल में मुङो अस्सी रुपए स्कॉलरशिप मिला करती थी। इसके बाद मैंने कॉलेज में पढ़ाई की। लातूर कॉलेज में मुझे भारत सरकार की पिछड़ा वर्ग और मेरिट, दोनों स्कॉलरशिप प्राप्त थीं, लेकिन सरकार के नियमों के मुताबिक एक स्कॉलरशिप ही मिल सकती थी। उन्होंने बताया कि मेडिकल परीक्षा में सात जिलों में उनका पहला स्थान था, लेकिन तंगी का आलम यह था कि लातूर से औरंगाबाद जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। मेरे प्राचार्य ने एडमिशन इंचार्ज से मेरी सहायता करने के बारे में जब बात की तो उन्होंने कहा कि आधिकारिक तौर पर ऐसा कर पाना संभव नहीं है। पर उस दौरान मेरे प्राचार्य डॉ. एमवी सूर्यवंशी ने मुझे आने-जाने के लिए सौ रुपए दिए। वाघमरे को दिल्ली में श्रेष्ठ नागरिक का पुरस्कार मिला तो सीताराम केसरी द्वारा अंबेडकर पुरस्कार मिला।
वाघमरे कहते हैं कि स्कॉलरशिप किसी भी छात्र के जीवन में बड़ी खुशी की तरह होती है। स्कॉलरशिप उसके लिए शाबाशी की तरह होती है। उसे इस बात की प्रेरणा देती है कि उसकी प्रतिभा की परख करने वाला कोई जौहरी मौजूद है। मैं मानता हूं कि छात्रवृत्ति जरूरतमंद छात्रों को मिलनी चाहिए। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे वो छात्र हतोत्साहित होते हैं, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता है। स्कॉलरशिप पाने वाले छात्रों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह उनके लिए एक बड़े मौके की तरह है, जिसे कैश करने की जरूरत है। उन्हें यह बात भी जेहन में रखनी होगी कि वह भी जरूरतमंद लोगों की मदद करें।
Source: http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-schoolarship-50-50-182390.html
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नवभारत टाइम्स की प्रतिष्ठित वेबसाइट पर अपना ब्लॉग बनाने का तरीक़ा Hindi Blogging Guide (19)


नवभारत टाइम्स की वेबसाइट पर इसके संपादकों और कॉलम लेखकों के ब्लॉग तो काफ़ी पहले से हैं लेकिन अब इसके पाठकों को भी यहां अपना ब्लॉग बनाने की इजाज़त दे दी गई है। यह एक बेहतरीन साइट है। यहां आपको अच्छे ब्लॉग मिलेंगे और अपने ब्लॉग को किसी एग्रीगेटर में रजिस्टर कराने के झंझट में भी आपको नहीं पड़ना होगा।
नवभारत टाइम्स के रीडर्स ब्लॉग मंच में अपना ब्लॉग बनाने का सबसे आसान तरीक़ा यह है कि आप ‘नवभारत टाइम्स‘ पर क्लिक कीजिए और वेबसाइट पर पहुंच जाइये। वहां आपको बायीं तरफ़ ऊपर लिखा हुआ मिलेगा ‘अपना ब्लॉग रजिस्टर करें‘
आप इस पर क्लिक करेंगे तो आपको 3 स्टेप्स में ब्लॉग बनाने के बारे में जानकारी दी जाएगी जो कि नीचे दी जा रही है। यहां ब्लॉग बनाने के लिए आपके पास फ़ेसबुक का या ट्विटर का अकाउंट होना चाहिए। इंडियाटाइम्स डॉट कॉम की ईमेल आई डी से भी आप यहां अपना ब्लॉग बना सकते हैं और यह आई डी बनाने का आॅप्शन भी आपको यहीं तीसरे स्टेप में मिल जाएगा।
ब्लॉग बनाने के बाद एक या दो दिन बाद आपको मेल द्वारा ख़बर दी जाएगी कि आपका ब्लॉग अप्रूव हो गया है। उसके बाद आप वहां अपने ब्लॉग में पोस्ट डालने के लिए वेबसाइट पर ‘मौजूदा ब्लॉगर्स लॉग इन करें‘ पर करेंगे तो आप अपने ब्लॉग पर लिख पाएंगे।
शुरू में आपको अपनी पोस्ट लिखकर अप्रूवल के लिए सबमिट करनी होगी और उसे अप्रूव करने के बाद वेबसाइट के प्रबंधन की ओर प्रकाशित कर दिया जाएगा। आपकी ओर से संतुष्ट होने के बाद वेबसाइट आपके ब्लॉग पर आपको नियंत्रण दे देगी।
देखिए अपना ब्लॉग रजिस्टर करें के शुरूआती 2 चरणों की जानकारी
 
नवभारत टाइम्स के रीडर्स ब्लॉग मंच में आपका स्वागत है
नवभारत टाइम्स का रीडर्स ब्लॉग मंच आपके लिए है। आप यहां अपनी लिखी कोई भी रचना पाठकों के साथ शेयर कर सकते हैं – चाहे वह राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक घटनाक्रम पर टिप्पणी हो या अपनी लिखी कविता, कहानी या व्यंग्य हो। आप अपने इलाके के पाठक पत्रकार भी बन सकते हैं और ‘मेरी खबर’ के तहत अपने इलाके की खबरें भी दे सकते हैं। हम देश भर में नवभारत टाइम्स के पाठक पत्रकारों की एक फौज खड़ी करना चाहते हैं ताकि कोई भी ज़रूरी खबर दुनिया के सामने आने से छूटे नहीं। इन खबरों के स्तर, तेज़ी और शैली के आधार पर हम छह महीनों के बाद हर शहर से एक पाठक पत्रकार को मान्यता देंगे।
आइए देखें, अपना ब्लॉग शुरू करने के लिए और क्या-क्या चाहिए।
इंडियाटाइम्स नेटवर्क में आपका रजिस्ट्रेशन
आप फेसबुक, ट्विटर या इंडियाटाइम्स की किसी भी आईडी से लॉग-इन कर सकते हैं। लॉग-इन करने के बाद आपको अपने और अपने ब्लॉग के बारे में कुछ सूचनाएं देनी होंगी।
अपना नाम/ब्लॉग के लिए नाम
आप ब्लॉग के लिए अपना वास्तविक नाम या उसका छोटा रूप या कोई दूसरा नाम भी चुन सकते हैं।
ब्लॉग का नाम
आप अपने ब्लॉग के लिए दो-तीन अच्छे-से नाम सोच कर रखिए। ख्याल रहे कि ये नाम किसी और पाठक के ब्लॉग के नाम से मिलते-जुलते न हों।
अपना संक्षिप्त परिचय
करीब 100-150 शब्दों में अपना परिचय पहले से तैयार करके रखिए। उसे आप परिचय पृष्ठ पर कॉपी पेस्ट कर सकते हैं। यदि आप हिंदी टाइपिंग नहीं जानते तो पेज पर ही अपना परिचय अंग्रेज़ी में लिखकर हिंदी में भी टाइप कर सकते हैं।
एक तस्वीर
वर्गाकार साइज़ की अपनी एक तस्वीर (जिसकी लंबाई और चौड़ाई बराबर हो) तैयार रखिए।
यूनिकोड फॉन्ट में टाइप करने की क्षमता
आपके ब्लॉग में सिर्फ यूनिकोड (मंगल) फॉन्ट चलेगा। अगर आप इन्स्क्रिप्ट कीबोर्ड पर हिंदी टाइप कर सकते हैं तो बहुत ही बढ़िया। अगर नहीं भी कर सकते तो आपको हर लेवल पर ट्रांसलिटेरेशन की सुविधा दी गई है। आप अंग्रेज़ी अक्षरों में लिखकर हिंदी में टाइप कर सकते हैं।

अगर आपने ब्लॉग का नाम सोच लिया है और वर्गाकार तस्वीर तैयार हो तो यहां क्लिक करें।
नियम और शर्तें – कुछ मोटी-मोटी बातें

1. ब्लॉग लिखते समय शब्द सीमा का ध्यान रखें। आम तौर पर 600-1000 शब्दों की पोस्ट ज्यादा पढ़ी जाती हैं। ज़्यादा लंबी पोस्ट लिखने में जहां आप अपना कीमती समय देंगे, वहीं अगर ज़्यादा पाठकों ने उसे नहीं पढ़ा तो आपका मकसद भी पूरा नहीं होगा। यदि आप किसी ऐसे विषय पर लिखना चाहें जो कम शब्दों में पूरा नहीं होता हो तो उसे हिस्सों में लिखें।

2. पोस्ट लिखते समय मौलिकता का ख्याल रखें। जो भी लिखें, वह आपकी निजी रचना/विचार हों। यदि ‘अ’ ने कोई बात कही है और आप भी वही बात कह रहे हैं तो पाठक को नया कुछ नहीं मिलेगा। यदि विषय और विचार समान हों तो भी नई शैली और/या नए तर्कों का इस्तेमाल करें। अगर कभी किसी और की रचना/विचार/उद्धरण का इस्तेमाल करना ज़रूरी लगे तो उस व्यक्ति का वहां उल्लेख करें। कॉपी राइट वाली सामग्री का उपयोग उसके स्वामी की अनुमति से ही करें।

3. अपने ब्लॉग में किसी व्यक्ति, संस्था-संगठन या प्रॉडक्ट का प्रचार करने से बचें। यह मुमकिन है कि आप किसी संस्था, संगठन या विचारधारा से प्रभावित हों और आपकी लेखनी में उसकी झलक मिले। इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन यह अंध-समर्थन जैसा नहीं लगना चाहिए। यदि कोई पाठक आपके विचारों से सहमत न हो तो उसके तर्कों को भी समुचित सम्मान दें।

4.अपनी पोस्ट में गाली-गलौज या अनर्गल आरोपों का इस्तेमाल न करें। चाहे प्रधानमंत्री हो या सड़क पर काम करता हुआ मजदूर, सभी के लिए सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें।

4. नवभारत टाइम्स रीडर्स ब्लॉग पर प्रकाशित किसी भी रचना का उपयोग आप उसके प्रकाशन के 48 घंटों के बाद किसी निजी या सार्वजनिक वेबसाइट पर कर सकते हैं। लेकिन हमारी प्रतिस्पर्धी वेबसाइटों पर उसका उपयोग नहीं कर पाएंगे।आप अपनी पोस्ट में टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड या टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप की प्रतिष्ठा और हितों को नुकसान पहुंचाने वाली कोई सामग्री नहीं डालेंगे।

5. नवभारत टाइम्स रीडर्स ब्लॉग में प्रकाशित सामग्री के लिए ब्लॉगर स्वयं जिम्मेदार होंगे। पोस्ट के कॉन्टेंट के लिए टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं होगा। यदि किसी ब्लॉगर ने ऐसी पोस्ट डाली जो देश के संविधान के खिलाफ है या कानून की नज़र में आपत्तिजनक है तो उसे तुंरत हटा दिया जाएगा।

6.नवभारत टाइम्स रीडर्स ब्लॉग में प्रकाशित रचनाओं के लिए कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाएगा। इसका एकमात्र मकसद हमारे रचनाशील और विचारशील पाठकों को एक मंच देना है ताकि वे अपने विचारों को सार्वजनिक कर सकें और समाज उससे लाभान्वित हो सके।

ये थे कुछ मोटे-मोटे बिंदु जो ब्लॉग शुरू करने से पहले आपके लिए जानना आवश्यक था। लेकिन यदि आप विस्तृत नियमों और शर्तों को पढ़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

स्टेप 3 (लॉग-इन करने) के लिए यहां क्लिक करें।
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कॉन्ट्रैक्ट पर आती हैं लड़कियां, 1 दिन की कमाई 1 लाख - पंकज त्यागी


ग्रेटर कैलाश।। इन दिनों सेक्स रैकेटों की लगातार धरपकड़ कर रहे क्राइम ब्रांच को ग्रेटर कैलाश में पकड़ी गई छह उजबेक लड़कियों की सरगना जुलेखा उर्फ जूली (40) की तलाश है। गिरफ्तार लड़कियों ने पुलिस को बताया है कि उजबेकिस्तान की जुलेखा के पास मल्टीपल वीजा है।

क्राइम ब्रांच के सीनियर अफसर ने बताया कि गिरफ्तार की गई छह लड़कियों में से सिर्फ एक से पासपोर्ट बरामद हो सका है। उसके पास वैलिड टूरिस्ट वीजा मिला। बाकी पांच लड़कियों ने पुलिस को पासपोर्ट नहीं दिए। इसकी वजह यह है कि केस के दौरान पासपोर्ट सीज हो जाते हैं, जिस कारण ये लड़कियां भारत से बाहर नहीं जा पातीं। इन पांच लड़कियों के खिलाफ देह व्यापार निरोधक कानून के साथ फॉरनर्स एक्ट के तहत भी एफआईआर दर्ज की गई है।

ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 के फ्लैट से पुलिस को बरामद हुए जुलेखा के दो रजिस्टरों से जानकारी मिली है कि ये लड़कियां हर दिन 75,000 से एक लाख रुपये तक कमा रही थीं। इन लड़कियों ने इस तरह के इंटरनैशनल सेक्स रैकेटों के बारे में क्राइम ब्रांच को जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि पूर्व सोवियत संघ से अलग हुए देशों उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि में बेरोजगारी की वजह से बहुत सी लड़कियां इन रैकेटों के  चंगुल में फंस जाती हैं। बहुत सी लड़कियां ईजी मनी कमाने के मकसद से इन रैकेटों से कॉन्ट्रैक्ट करती हैं। 


1 लाख डेली
ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 में फ्लैट से बरामद जुलेखा के दो रजिस्टरों से पता चला है कि ये लड़कियां हर दिन 75,000 से 1 लाख रुपये तक कमाकर देती थीं।

15 दिन के एक लाख
कॉलगर्ल और रैकेट में कॉन्ट्रैक्ट अमूमन 15 दिन से दो महीने का होता है। कॉलगर्ल रैकेटियर को अपने बैंक अकाउंट का नंबर देती है , जिसमें तय रकम जमा करा दी जाती है। 15 दिन के लिए एक लाख से लेकर तीन महीनों के लिए पांच - छह लाख रुपये में कॉन्ट्रैक्ट होता है।

हर दिन 4-5 कस्टमर
दिल्ली आने के बाद लड़कियों की रिहाइश , खाने और ट्रांसपोर्टेशन का इंतजाम रैकेट की जिम्मेदारी होती है। हर लड़की को एक दिन में कम से कम चार - पांच कस्टमर के पास जाना होता है। इससे ज्यादा जगह जाने के लिए कोई लड़की तैयार नहीं होती।

10-15 दिन जेल
कस्टमर से पैसा पिम्प लेता है , लड़की नहीं। कॉन्ट्रैक्ट के दौरान अगर पुलिस की रेड पड़ गई तो 10-15 दिन तक जेल में रहना तय है , नहीं तो लड़कियां वापस अपने मुल्क चली जाती हैं।
कॉम्पिटिशन से भंडाफोड़
इन दिनों सेक्स रैकेटों की ज्यादा धरपकड़ की वजह इन रैकेटों में आपसी कॉम्पिटिशन बताया जा रहा है। एक गिरोह के पिंप पुलिस वालों से गठजोड़ कर दूसरे रैकेट की लड़कियों को गिरफ्तार करवा रहे हैं। पिछले दिनों महरौली से गिरफ्तार नगमा खान ने आरोप लगाया था कि उसे पुलिस वालों से मिलकर सोनू पंजाबन ने गिरफ्तार कराया था । 
News Source : http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/9362521.cms
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भगवान के लिए सेना को बख्श दो..


काफी दिनों से देख रहा हूं कि देश में कुछ ऐसे मुद्दों पर बहस छिड़ि हुई है, जिसके चलते अहम मुद्दे पर लोग की नजर नहीं जा रही है। मित्रों जिस तरह पड़ोसी देशों से हमारे रिश्ते लगातार खराब हो रहे हैं, उससे सेना की भूमिका को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। हमारी सेना की ताकत पाकिस्तान के मुकाबले कई गुनी ज्यादा है, फिर भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है, जिससे सीमा पर तनाव बना ही रहता है। साल दो साल से चीन की नजर भी टेढी है। हालत ये है कि चीनी सीमा से लगे भारतीय इलाकों में हम विकास का काम भी नहीं कर पा रहे हैं, चाहे अरुणाचल, उत्तराखंड से लगी सीमा हो या फिर गंगटोक से। चीनी सेना हमें सड़क और पुल बनाने से भी रोक देती है। नत्थी बीजा का मामला अभी तक नहीं सुलटा है। ये बातें मैं महज आपको इसलिए बता रहा हूं कि आज देश की सीमाएं भले ही सुरक्षित हों, पर यहां तनाव तो बना ही हुआ है। ऐसे में सेना से जुडे़ अहम मसलों पर जिस तरह संजीदा होकर फैसले लेने चाहिए, वो नहीं लिए जा रहे हैं।
ताजा विवाद सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह को लेकर है। इस मामले में लिखने का मकसद ही यही है कि मैं आपको सच्चाई की जानकारी दे सकूं। मित्रों दरअसल सेना का मसला ऐसा गुप्त रखा जाता है कि आसानी से यहां चल रहे गोरखधंधे को जनता के सामने लाना आसान नहीं होता है। मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि जितना भ्रष्टाचार सेना में है, शायद और कहीं नहीं होगा। दूसरे मंत्रालय साल भर में जितना घोटाला करते होंगे, सेना के एक सौदे में उससे बड़े रकम की हेराफेरी हो जाती है। बहरहाल इन खराब हालातों के बावजूद जनरल वी के सिंह की छवि एक सख्त और ईमानदार जनरल की है। सेना प्रमुख होने की पहली शर्त ही ये है कि आपकी पहले की सेवा पूरी तरह बेदाग होनी चाहिए।  इस पर खरा उतरने के बाद ही जनरल को सेनाप्रमुख बनाया गया।
अब आप देखें कि सेना में आखिर हो क्या रहा है। ईमानदार जनरल के चलते आर्म्स लाबी ( हथियारों के सौदागर) नाराज हैं। वो चाहते हैं कि सेना के लिए हथियारों की खरीददारी पहले की तरह होती रहे। यानि सेना के अफसरों, नेताओं, कांट्रेक्टर्स सबकी चांदी कटती रहे। लेकिन जनरल बीके सिंह के सेना प्रमुख रहते ये सब संभव नहीं है। इसलिए एक साजिश के तहत सभी रक्षा सौदों में देरी की जा रही है। इतना ही नहीं ये लांबी इतनी ताकतवर है कि इसने अब सेना प्रमुख को रास्ते से हटाने का रास्ता साफ कर दिया। जनरल के जन्मतिथि विवाद को लेकर उन्हें अब साल भर पहले ही रिटायर करने की तैयारी हो गई है और सरकार ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी। ऐसे में अहम सवाल ये क्या इस गोरखधंधे में सरकार के भी कुछ नुमाइंदे शामिल हैं। ये सब मैं आप पर छोड़ता हूं, लेकिन पूरी तस्वीर आपके सामने मैं हुबहू रखने की कोशिश करता हूं।
मित्रों सेना प्रमुख के हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है। इस हिसाब से उन्हें जून 2013 में रिटायर होना चाहिए, लेकिन यूपीएसई में कमीशन के दौरान सेना मुख्यालय में जो रिकार्ड है, उसमें उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 लिखा है। इस हिसाब से उन्हें अगले ही साल जून में रिटायर होना होगा। देश में यही परंपरा रही है कि अगर कोई अभ्यर्थी हाईस्कूल पास है तो उस सर्टिफिकेट में जो जन्मतिथि दर्ज है, वही मान्य होगी। अगर कोई हाईस्कूल पास नहीं है तो जन्म के दौरान नगर पालिका के स्वास्थ्य विभाग या फिर ग्राम पंचायत में दर्ज जन्म की तारीख को ही मान्यता दी जाएगी। लेकिन सेनाप्रमुख के मामले में ऐसा नहीं किया गया, उनके हाईस्कूल के सर्टिफिकेट में दर्ज जन्मतिथि को खारिज करते हुए सेना के रिकार्ड में दर्ज जन्मतिथि को स्वीकार कर लिया गया। हालांकि जनरल वी के सिंह अगर इस मामले में कोर्ट का सहारा लें तो उन्हें निश्चित रूप से राहत मिल जाएगी, लेकिन वो सेना प्रमुख जैसे पद को विवाद में लाने के खिलाफ हैं।
अब आसानी से समझा जा सकता है कि सेना में किसकी चलती है। मुझे पक्का भरोसा है कि सेना में ऐसा नहीं होता होगा, लेकिन खबरें तो यहां तक आती रहती हैं कि सेना में " पंजाबी वर्सेज अदर्स " के बीच छत्तीस का आंकडा है और जो जहां भारी पड़ता है वो एक दूसरे पटखनी देने से नहीं चूकता। पिछले दिनों जनरल वी के  सिंह ने सियाचिन, लेह और लद्दाख के दौरा करने के दौरान पाया कि यहां सीमा पर तैनात जवानों को घटिया किस्म का खाना दिया जा रहा है। इस पर उन्होंने सख्त एतराज जताया था। सीमा पर तैनात जवाबों के लिए रोजाना चंडीगढ से सब्जी और मांस की खरीददारी की जाती है। बताते हैं कि इसमें भी काफी घपलेबाजी की जा रही थी, जो सड़ी गली सब्जी आढ़त पर बची रह जाती थी, जिसका कोई खरीददार नहीं होता था, वही घटिया सब्जी सेना के जवानों के लिए भेज दी जाती थी। इसके अलावा घटिया किस्म के अंडे की भी सप्लाई होती थी। मांस निर्धारित मात्रा से कम दिया जाता था। वी के सिंह को ये सब नागवार लगा और उन्होंने मांस की मात्रा भी बढवा दी और ये भी सुनिश्चित की किया कि ताजी सब्जियां ही खरीदी जाएं। इन सब में काफी धांधली हुआ करती थी, इन सबको एक एक कर सेना प्रमुख ने चेक कर लिया।
हैरत की बात तो ये सेना के जवाब जिस ठंड में 24 घंटे तैनात रहते हैं, उन्हें जूते भी घटिया किस्म के दिए जाते थे। इससे उनके पैरों की उंगलियां सड़ने लगी थीं। इस मामले को भी जनरल ने बडे ही गंभीरता से लिया था। इसे लेकर भी कुछ बडे अधिकारी जनरल से नाराज चल रहे थे। खैर सैन्य अफसर एक दूसरे से नाराज हों और खुश हों, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब सियासी लोग भी इसमें पार्टी बन जाते हैं तो कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला जरूर नजर आता है।
सेना प्रमुख के जन्मतिथि विवाद को जिस तरह से आनन फानन में निपटाया गया और हाईस्कूल की सर्टिफिकेट को ही रद्द कर दिया गया, इससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। बताया जा रहा है कि जिसको अगले साल सेना प्रमुख की कुर्सी मिलने वाली है, उनकी प्रधानमंत्री से बहुत अच्छी मुलाकात है, तो क्या इस पूरे मामले में पीएमओ तो शामिल नहीं है। बहरहाल मैं तो नेताओं से यही कहूंगा कि सेना को अनुशासन की पटरी पर रहने दें, कहीं सेना पटरी से उतरी तो ये सियासियों पर बहुत भारी पड़ेगा। पडोसी देश पाकिस्तान से ही सबक ले लो। इसीलिए मैं कहता हूं कि भगवान के लिए सेना को बख्श दो। मुझे लगता है कि जनरल वी के सिंह के मामले में खुद प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना चाहिए, जिससे सेना की साख पर कोई धब्बा ना लगे।
दरअसल दोस्तों हम गैरजरूर मामलों में ही इतना घिरे रहत हैं कि गंभीर मसले हमारी नजरों में आते ही नहीं। सेना को लेकर जिस तरह आज सियासत चल रही है, निश्चित ही ये दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।



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‘मौलाना‘ के भेस में छिपे हैं कुछ राहज़न भी

हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के संपादकीय में आज (28 January 2011) दारूल उलूम देवबंद में चल रहे संघर्ष का विश्लेषण किया गया है। संपादक महोदय की संवेदनाओं को मोहतमिम मौलाना गुलाम मुहम्मद वस्तानवी साहब के साथ देखकर अच्छा लगा। उन्होंने उनके व्यक्तित्व की भी तारीफ़ की और उनकी उन घोषणाओं की भी जिनमें उन्होंने कहा है कि वे मदरसे के पाठ्यक्रम में विज्ञान, इंजीनियरी और चिकित्सा आदि भी शामिल करेंगे। इन घोषणाओं को संपादक महोदय ने उदारवादी और सुधारवादी क़रार दिया जो कि वास्तव में हैं भी और मौलाना वस्तानवी का विरोध करने वालों को उन्होंने पुरातनपंथी और कट्टरवादी क़रार दे दिया और निष्कर्ष यह निकाला कि दारूल उलूम देवबंद में जो संघर्ष फ़िलहाल चल रहा है वह वास्तव में पुरातनपंथियों और सुधारवादियों के बीच चल रहा है।
यह निष्कर्ष सरासर ग़लत है। जो लोग मौलाना वस्तानवी का विरोध कर रहे हैं वे पुरातनपंथी और कट्टर (बुरे अर्थों में) हरगिज़ नहीं हैं। उन्होंने भी दारूल उलूम देवबंद के पाठ्यक्रम में कम्प्यूटर और हिंदी व गणित आदि विषय शामिल किए हैं और हिंदी की भी वही किताब वहां पढ़ाई जाती है जो कि बाज़ार में सामान्य रूप से उपलब्ध है, जिसमें कि राम, सीता और हनुमान की कहानियां लिखी हुई हैं। अगर वे सामान्य अर्थों में कट्टर और पुरातनपंथी होते तो वे ऐसा हरगिज़ न करते या कम से कम वे हिंदी की ऐसी किताब तो चुन ही सकते थे जिसमें कि रामायण की कहानी के बजाय मुसलमान बुजुर्गों के क़िस्से होते। किसी चीज़ को देखे बिना महज़ लिखित सूचनाओं के आधार पर जब निष्कर्ष निकाला जाता है तो वे निष्कर्ष इसी तरह ग़लत होते हैं जैसे कि आज के संपादकीय में निकाला गया है।
जो लोग देवबंद में रहते हैं वे जानते हैं कि देवबंद का एक आलिम घराना संघर्ष का इतिहास रखता है। वह दूसरों से भी लड़ता है और खुद अपनों से भी। उसकी लड़ाई का मक़सद कभी मुसलमानों का व्यापक हित नहीं होता बल्कि यह होता है कि ताक़त की इस कुर्सी पर वह नहीं बल्कि मैं बैठूंगा। वर्तमान संघर्ष के पीछे भी असली वजह कट्टरता और पुरानी सोच नहीं है बल्कि अपनी ताक़त और अपने रूतबे को बनाए रखने की चाहत है। यह संघर्ष पुरातनपंथी सोच और उदारवादी सोच के बीच नहीं है बल्कि दरअस्ल यह संघर्ष दो ऐसे लोगों के दरम्यान है जिनमें से एक आदमी मौलाना वस्तानवी हैं जो मुसलमानों और देशवासियों के व्यापक हितों के लिए सोचते हैं और दूसरा आदमी महज़ अपने कुनबे के हितों के लिए। यह संघर्ष परोपकारी धार्मिक सोच और खुदग़र्ज़ परिवारवादी सोच के दरम्यान है। परिवारवादी खुदग़र्ज़ो के साथ भी वही लोग हैं जो कि उन्हीं जैसे हैं, जिनके लिए इस्लाम और इंसाफ़ के बजाय अपने निजी हित ज़्यादा अहम हैं। ये लोग अक्सर इस्लाम के नाम पर पहले अपने पीछे मुसलमानों की भीड़ इकठ्ठी करते हैं और फिर सियासत के धंधेबाज़ों से उन्हें दिखाकर क़ीमत वसूल करके अपने घर को महल में तब्दील करते रहते हैं और बेचारे मुसलमानों का कोई एक भी मसला ये कभी हल नहीं करते। मुसलमान सोचता है कि ये रहबरी कर रहे हैं जबकि ये रहज़नी कर रहे होते हैं। मुसलमानों की दशा में लगातार बिगाड़ आते चले जाने के असल ज़िम्मेदार यही ग़ैर-ज़िम्मेदार खुदग़र्ज़ हैं। धर्म की आड़ में ये लोग अर्से से जो धंधेबाज़ी करते आए हैं, मौलाना वस्तानवी के आने से उसे ज़बरदस्त ख़तरा पैदा हो गया है। उनका वजूद ही ख़तरे में पड़ गया है। यही वजह है कि वे मौलाना वस्तानवी का विरोध कर रहे हैं और इसके लिए छात्रों को अपना मोहरा बना रहे हैं। वे नहीं चाहते कि दारूल उलूम देवबंद में कोई ऐसा ढर्रा चल पड़े जिसकी वजह से मदरसे के छात्रों  और आम मुसलमानों में दोस्त-दुश्मन और रहबर और रहज़न की तमीज़ पैदा हो जाए और उनके लिए अपनी ग़र्ज़ के लिए उनका इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाए।
यही असल वजह है दारूल उलूम देवबंद में जारी मौजूदा संघर्ष की। इस संघर्ष को इसी नज़रिए से देखा जाना चाहिए और उम्मीद करनी चाहिए कि मौलाना वस्तानवी इसमें विजयी रहेंगे क्योंकि एक तो वजह यह है कि उम्मीद हमेशा अच्छी ही रखनी चाहिए और दूसरी बात यह है कि गुजरात के मुसलमान आर्थिक रूप से बहुत मज़बूत हैं और वे आर्थिक रूप से दारूल उलूम देवबंद की बहुत इमदाद करते हैं। उन्हें नज़रअंदाज़ करना या उनके साथ धौंसबाज़ी करना आसान नहीं है, ख़ासकर तब जबकि वे अपने विरोधी की नीयत को भी पहचान चुके हों कि उनके विरोधी की नीयत इस्लाम का हित नहीं है बल्कि खुद अपना निजी हित है। देवबंद की जनता और मीडिया के समर्थन ने भी मौलाना वस्तानवी के विरोधियों की हिम्मत को पस्त करना शुरू कर दिया है। दारूल उलूम देवबंद में बेहतर तब्दीली के लिए मीडिया एक बेहतर रोल अदा कर सकता है और उसे करना भी चाहिए क्योंकि मुसलमानों के साथ साथ अन्य देशवासियों के हित में भी यही है।

हमने 28 जनवरी 2011 को यह लेख लिखा था और जिन चाचा भतीजा को ज़िम्मेदार माना था इस पूरे हंगामेबाज़ी का। मौलाना वस्तानवी ने भी अपने हटाए जाने के बाद अब खुलकर कहा है कि उन्हें हटाने के पीछे मदनी ख़ानदान का हाथ है।
जिस तरह राजनीति के मैदान में भ्रष्ट तत्वों ने क़ब्ज़ा जमा लिया है, ठीक ऐसे ही बहुत से भ्रष्ट तत्वों ने इस्लाम की तालीम देने वाले मदरसों को अपने निजी रूतबे को ऊंचा करने के लिए क़ब्ज़ा लिया है। राहबरी के रूप में राहज़नी करना इसी को कहा जाता है।
ये राहज़न जब कभी बयान या फ़तवा देते हैं तो वह भी इस्लाम की कल्याणकारी भावना को सामने रखकर नहीं देते बल्कि यह देखकर देते हैं कि उसमें इन्हें क्या मिल रहा है। जब समूह का लीडर समूह की हितचिंता छोड़ देता है तो फिर वह समूह पिछड़ता चला जाता है। मुसलमानों के साथ आज यही हो रहा है।
जब मुसलमान सोचता है कि वह अन्य समूहों से पिछड़ क्यों रहा है तो ‘मौलाना‘ के भेस में छिपे हुए ये राहज़न बताते हैं कि यह हिन्दुस्तान है यहां हिन्दू तुम्हारे साथ भेदभाव कर रहे हैं। इसीलिए तुम पिछड़ रहे हो।
इसके बाद ये राहज़न अपनी तरफ़ से ध्यान हटाने के लिए मुसलमानों को हिन्दुओं से भिड़ा डालते हैं, कभी आरक्षण दिलाने के नाम पर और कभी किसी और नाम पर लेकिन यह कभी क़ुबूल नहीं करते कि इस्लाम में एकता के ऊपर ज़ोर दिया है, उसे तोड़ने वाले हम हैं। इस्लाम ने सामूहिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए ज़कात-ख़ैरात की व्यवस्था की है, उस व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने वाले हम हैं और ‘मुस्लिम बैंकों‘ के रूप में मुसलमानों के धन पर सरकारी बैंकों से सूद खाने वाले भी हम ही हैं, जबकि इस्लाम में सूद-ब्याज खाना हराम है।
जब ऐसे लोग इस्लाम की नुमाइंदगी करते हैं तो फिर इस्लाम का सही पैग़ाम मुसलमानों तक ही सही नहीं पहुंच पाता तो ग़ैर-मुस्लिमों तक सही कैसे पहुंच सकता है ?
इस्लाम के बारे में ग़लतफ़हमियां फैलने की बड़ी वजहों में से एक वजह यह भी है।
इस सबके बावजूद अच्छी बात यह है कि लोग लगातार जागरूक हो रहे हैं और इन तत्वों के लिए यह बात सबसे बड़ी चिंता है। लोगों को जागरूकता से दूर रखने के लिए भी ये लोग सिर्फ़ इसीलिए कोशिश करते हैं ताकि इनकी साज़िशें बेनक़ाब न हो जाएं जबकि इस्लाम चाहता है कि लोग क़ुरआन को भी मानें तो उसे पढ़कर और सोच-समझकर मानें।
ऐसे लोग कब तक मुस्लिम समुदाय के नेतृत्व पद पर अपना क़ब्ज़ा जबरन बनाए रखते हैं ?
यह आने वाला समय ही बताएगा लेकिन हक़ीक़त यह है कि अगर मुस्लिम समुदाय पाखंडियों को ‘नो मोर‘ कर दे तो न सिर्फ़ उसके बहुत से मसले ख़तम हो जाएंगे बल्कि हमारे देश और दुनिया में बसने वाले दूसरे भाईयों की भी बहुत सी चिंताएं दूर हो जाएंगी।
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