विविधताओं से भरे इस देश में अपार प्रतिभाएं है। बस जरूरत है उन्हें पहचान कर मौका देने की। स्कॉलरशिप युवाओं की प्रतिभा को मुकाम देने का प्रमुख टूल है। इस बारे में बता रहे हैं अनुराग मिश्र
स्कॉलरशिप छात्र की मुश्किलों को जहां आसान करती है, वहीं दूसरी तरफ उसे मानसिक संबल प्रदान करने का भी काम करती है। उसे इस बात का भरोसा देती है कि उसकी प्रतिभा को तराशने और पहचानने वाला कोई है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है, जो सफलता के हर द्वार को खोलता है। ऐसे में स्कॉलरशिप मिलना किसी प्रत्याशी की हौसला अफजाई करता है। कई बड़ी सिलेब्रिटीज, महापुरुषों के जीवन को बदलने में स्कॉलरशिप का अहम योगदान रहा है। अहम बात यह है कि इसके द्वारा कई छात्र-छात्राओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का प्लेटफॉर्म मिल पाता है। विविधताओं से भरे देश में हर छात्र की ख्वाहिश अलग-अलग होती है। किसी की तमन्ना है कि वह इंजीनियर बनें तो कोई डॉक्टर। किसी की हसरत आगे प्रबंधन के क्षेत्र में करियर बनाने की है तो कोई सीए बनने का ख्वाब संजोए होता है। यही नहीं, कुछ की वैज्ञानिक बनने की इच्छा है तो कोई लेखक बनना चाहता है। इतने सारे अरमानों को कभी-कभार इसलिए पंख नहीं लग पाते कि अड़चन आड़े आ जाती है या फिर उनकी प्रतिभा को पहचानने वाला कोई नहीं होता। ऐसे में स्कॉलरशिप उनके अंदर के विश्वास को जगाने का काम करती है। छात्रवृत्ति कितनी आवश्यक है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि मंदी के दौर में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि ‘अरबपति और खरबपति, ऑयल और गैस कंपनी को टैक्स में अधिक छूट देने का परिणाम होगा कि कुछ स्कूली बच्चों को स्कॉलरशिप नहीं मिल पाएगी’। वाकई में स्कॉलरशिप किसी उम्मीदवार के जीवन में आशा की किरण होती है। कई स्कॉलरशिप ऐसी होती हैं, जिनका सामाजिक महत्त्व काफी होता है। ये प्रत्याशी को पैसे के साथ-साथ समाज में प्रतिष्ठा भी दिलाती हैं। प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप अपने उज्जवल भविष्य के सपनों को साकार करने के मार्ग में जब बाधाएं खड़ी नजर आती हैं तो किसी ऐसे सहारे की जरूरत महसूस होती है, जो संसाधनों के अभाव को दूर करने में मददगार बन जाए। कौन आएगा मसीहा बन कर? सामाजिक जिम्मेदारियों में बढ़-चढ़ कर निरंतर अपना योगदान देते आ रहे हिन्दुस्तान ने इस जिम्मेदारी को भी बखूबी समझा और हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप के तहत ऐसे प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहित करने का एक अभियान शुरू किया। इसके तहत स्कॉलरशिप देने का उद्देश्य यह था कि मेधावी विद्यार्थियों को न सिर्फ सक्षम बनाया जाए, बल्कि उन्हें मानसिक तौर पर भी मजबूत किया जाए, ताकि उनकी जिंदगी में सुनहरे भविष्य के लिए उमड़ रहे अरमान साकार करने की दिशा में रचनात्मक मदद की जा सके। सभी के लिए प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप में वह सभी विद्यार्थी भाग ले सकते हैं जिन्होंने 2011 में दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है। स्कॉलरशिप को इस बार दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है- पहली श्रेणी ऐसे छात्रों की है, जिनकी मासिक आय बीस हजार से ज्यादा है और दूसरी श्रेणी उनकी, जिनके परिवार की मासिक आय बीस हजार रुपए या इससे कम है। इस तरह से यह स्कॉलरशिप सभी के लिए है। अंकों की बाध्यता भी इस स्कॉलरशिप में नहीं रखी गई है। यानी आपके अंक कितने भी हों, आप इस स्कॉलरशिप में आवेदन करने के हकदार हैं। कुछ अलग करने का सपना संजोए छात्रों के लिए हिन्दुस्तान प्रतिभा सम्मान स्कॉलरशिप 2011 एक बेहतरीन अवसर है। कितनी मिलेगी राशि चूंकि यह स्कॉलरशिप सभी के लिए है, ऐसे में इस बार इसकी राशि को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है। जिन छात्रों के परिवारों की मासिक आय बीस हजार रुपए से अधिक है, उन्हें 25 हजार रुपए की छात्रवृत्ति प्रदान की जाएगी और जिन छात्रों के परिवारों की मासिक आय बीस हजार रुपए से कम है, उन्हें बतौर स्कॉलरशिप 50 हजार रुपए प्रदान किए जाएंगे। 120 छात्रों को कुल चालीस लाख रुपए की स्कॉलरशिप प्रदान की जाएगी। इनमें चालीस छात्रवृत्तियां उन छात्रों के लिए होंगी, जिनके अभिभावकों की मासिक आय बीस हजार रुपए से कम है। एपीजी अब्दुल कलाम: इन्होंने लिखी स्कॉलरशिप से नई इबारत भारत के 11वें राष्ट्रपति और देश में मिसाइल मैन के नाम से मशहूर अबुल पाकिर जैनुअल अबादीन अब्दुल कलाम ने स्कॉलरशिप की बदौलत सफलता की सीढ़ियां चढ़ीं। कलाम के परिवार में सात भाई-बहन थे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले कलाम के पिता चाहते थे कि वे पढ़ाई करें। कलाम सुबह चार बजे उठते थे और उसके बाद गणित की कक्षा में जाया करते थे। सुबह की कक्षा पढ़ने के बाद वह अपने चचेरे भाई के साथ कस्बे में अखबार बांटा करते थे। उनके कस्बे में बिजली नहीं थी। उनके घर में सात से नौ बजे तक कैरोसीन लैंप जलता था। चूंकि कलाम 11 बजे तक पढ़ते थे, इसलिए उनकी मां उनके लिए कुछ कैरोसीन तेल बचा लिया करती थी। मद्रास इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई में कलाम को स्कॉलरशिप मिली। वह वहां पर सिस्टम डिजाइन के प्रोजेक्ट के प्रमुख थे। एक दिन कलाम के प्राचार्य कक्षा में आए और उन्होंने उनसे कहा कि अगर अगले दो दिन में प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ तो उनकी स्कॉलरशिप रद्द कर दी जाएगी। कलाम ने अगले दो दिन तक बिना खाए-सोए काम किया। अंतिम दिन प्रोफेसर उनकी प्रगति को जांचने आए और काफी प्रभावित हुए। उन्होंने कलाम से कहा कि मैंने तुम्हें तनाव में रखा, पर तुमने डेडलाइन को समय से पूरा कर सबको हतप्रभ कर दिया। उसके बाद कलाम ने सफलता का नया इतिहास रच दिया। भारत के पोखरण नाभिकीय परीक्षण के वे पुरोधा थे। कलाम को पद्म विभूषण से नवाजा गया। कैसे होगा चयन चयन प्रक्रिया को पारदर्शी और बेहतर बनाने के लिए इसे चरणों में बांटा गया है। उद्देश्य है कि प्रतिभाशाली छात्र सफलता की इबारत लिखने से चूक न जाएं। उम्मीदवारों का चयन तीन आधारों पर किया जाएगा-दसवीं कक्षा में मिले अंकों, अपने बारे में लिखे सौ शब्दों और साक्षात्कार। दोनों ही श्रेणियों के लिए इंटरव्यू की प्रक्रिया समान होगी। कैसे करूं आवेदन स्कॉलरशिप में आवेदन करने के काफी तरीके हैं। हिन्दुस्तान अखबार में फॉर्म प्रकाशित किए जा रहे हैं। नई दिशाएं के इस अंक के दूसरे पेज पर भी फॉर्म प्रकाशित किया गया है। इसके अलावा स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में हिन्दुस्तान के प्रतिनिधियों द्वारा भी फॉर्म का वितरण किया जा रहा है। फॉर्म को हिन्दुस्तान की वेबसाइट www.livehindustan.com से भी डाउनलोड किया जा सकता है। कैसे प्राप्त होगी स्कॉलरशिप स्कॉलरशिप का वितरण एक राज्य स्तरीय समारोह में आयोजित किया जाएगा, जिसका विस्तृत विवरण हिन्दुस्तान में प्रकाशित किया जाएगा। परिणाम की घोषणा जुलाई/अगस्त माह में की जाएगी।
जिन्होंने हासिल की सफलता स्कॉलरशिप ने दी जीवन को नई दिशा
डॉ. रोहीदास वाघमरे, प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट कहते हैं सफलता हासिल करने के लिए बस किसी के द्वारा दिखाई गई एक दिशा ही काफी होती है। स्कॉलरशिप ऐसी ही एक दिशा है, जो किसी व्यक्ति के जीवन में नई रोशनी लाती है और उसे कुछ अलग करने की प्रेरणा देती है। ऐसी ही दास्तां डॉ. रोहीदास वाघमरे की है, जिन्होंने स्कॉलरशिप की बदौलत करियर में बुलंदियां छुईं। वाघमरे एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे, उनके पिता जूतों पर पॉलिश किया करते थे। उनकी आजीविका द्वारा घर का गुजारा मुश्किल था। बकौल डॉ. वाघमरे, हालात ये थे कि उन्हें भी कभी-कभार जूते पालिश करने पड़ते थे। वाघमरे की पढ़ाई-लिखाई लातूर के जिला परिषद स्कूल से हुई। वह बताते हैं कि आधा स्कूल उर्दू माध्यम का और आधा हिंदी माध्यम का था। स्कूल में सिर्फ मुङो ही स्कॉलरशिप मिला करती थी। यहां तक कि स्कूल के शिक्षक मेरी पढ़ाई से खुश होकर मुङो घर पर खाना खिलाने ले जाया करते थे। 1965 के दौरान स्कूल में मुङो अस्सी रुपए स्कॉलरशिप मिला करती थी। इसके बाद मैंने कॉलेज में पढ़ाई की। लातूर कॉलेज में मुझे भारत सरकार की पिछड़ा वर्ग और मेरिट, दोनों स्कॉलरशिप प्राप्त थीं, लेकिन सरकार के नियमों के मुताबिक एक स्कॉलरशिप ही मिल सकती थी। उन्होंने बताया कि मेडिकल परीक्षा में सात जिलों में उनका पहला स्थान था, लेकिन तंगी का आलम यह था कि लातूर से औरंगाबाद जाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। मेरे प्राचार्य ने एडमिशन इंचार्ज से मेरी सहायता करने के बारे में जब बात की तो उन्होंने कहा कि आधिकारिक तौर पर ऐसा कर पाना संभव नहीं है। पर उस दौरान मेरे प्राचार्य डॉ. एमवी सूर्यवंशी ने मुझे आने-जाने के लिए सौ रुपए दिए। वाघमरे को दिल्ली में श्रेष्ठ नागरिक का पुरस्कार मिला तो सीताराम केसरी द्वारा अंबेडकर पुरस्कार मिला।
वाघमरे कहते हैं कि स्कॉलरशिप किसी भी छात्र के जीवन में बड़ी खुशी की तरह होती है। स्कॉलरशिप उसके लिए शाबाशी की तरह होती है। उसे इस बात की प्रेरणा देती है कि उसकी प्रतिभा की परख करने वाला कोई जौहरी मौजूद है। मैं मानता हूं कि छात्रवृत्ति जरूरतमंद छात्रों को मिलनी चाहिए। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे वो छात्र हतोत्साहित होते हैं, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता है। स्कॉलरशिप पाने वाले छात्रों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह उनके लिए एक बड़े मौके की तरह है, जिसे कैश करने की जरूरत है। उन्हें यह बात भी जेहन में रखनी होगी कि वह भी जरूरतमंद लोगों की मदद करें।
Source: http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/article1-schoolarship-50-50-182390.html
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