लो जीत ली हे दुनिया मेने

जी हाँ दोस्तों हिन्दुस्तान जिंदाबाद ,मेरा भारत महान ,मेरे भारत के क्रिकेटर महान जिन्होंने हिन्दुस्तान की जनता के होसले से आज क्रिकेट पर फतह हासिल कर जीत का झंडा गाढ़ दिया हे , इस कामयाबी के लियें इण्डिया टीम को बधाई . 

दोस्तों एक हफ्ते से भी अधिक समय से मुझ सहित मेरे जेसे १२१ करोड़ लोग मेरे इस देश की जीत के लियें मन्दिर ,मस्जिद,गिरजा में दुआएं कर रहे थे और थेंक्स गोंड खुदा ने हमारी सुन ली आज हमें विश्व कप क्रिकेट का विजेता बना दिया . क्रिकेट के इस मैदान में श्रीलंका की भारत को कड़ी चुनोती थी लेकिन कहते हें माँ की दुआ और भाइयों का आशीर्वाद जिसके साथ रहे वोह अविजित रहता हे और इसीलियें आज भारत ने श्रीलंका को जीत लिया भारत की यह जीत ऐतिहासिक कामयाब जीत हे और इस जीत ने देश के करोड़ों करोड़ लोगों की आँखों में ख़ुशी के आंसू छलका दिए इस जीत के लियें मेरे इस देश को मेरे इस देश के खिलाड़ियों को मेरे इस देश की जनता को मेरे ब्लोगर भाइयों बहनों को मुबारकबाद आप लोगों की दुआओं से ही आज जीत ली हे दुनिया हमने ..................... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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जीतो इंडिया, जीतो!

गो इंडिया गो!




हवाएं जोर कितना ही लगायें आंधियां बनकर
मगर जो घिर के आता है वो बदल छा ही जाता है

आप दुआ करें कि आज भारत विश्व कप जीते।
भारत जीतेगा, देश जीतेगा, हम जीतेंगे।
जय हिंद!
एम अफसर खान सागर
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कैसी यह मुहब्बत है और कैसा यह त्यौहार है ? Holi 2011

बच्चे ज़्यादा समझदार हैं बड़ों से, इस होली पर मुझे ऐसा ही लगा।
Dr. Anwer Jamal
Dr. Anwer Jamal
शनिवार को मुझे अपने पेट में दर्द महसूस हुआ। दवाई ले ली। रविवार को सोचा कि अल्ट्रासाउंड करा लिया जाए ताकि पित्ताशय की पत्थरी के साइज़ का भी पता चल जाए। होली की वजह से सभी सेंटर्स मुझे बंद मिले। लौटते हुए एक मशहूर चैराहे पर मुझे कुछ  बच्चों ने अपनी पिचकारी दिखाई, मैंने कहा, बेटे ! हरेक आदमी पर रंग नहीं डालते।
मेरे इतना कहते ही वे मान गए।
आज सुबह मैं अपने घर से निकल कर चंद क़दम ही गया था कि हमारे पड़ोसी पं. प्रेमनारायण शर्मा जी हाथ में रंग की बाल्टी और गुलाल लेकर मेरी तरफ़ बढ़े। मैं घबराया नहीं। मुझे उम्मीद थी कि मैं उन्हें बताऊंगा कि मेरे पेट में दर्द हो रहा है, हल्का सा बुख़ार भी है और मैं अल्ट्रासाउंड कराने जा रहा हूं तो वह मान जाएंगे।
वह मेरे पास आए और मेरे मना करने के बाद भी और मुझसे मेरी परेशानी जानने के बावजूद भी उन्होंने मेरा मुंह गुलाल से हरा कर दिया और फिर जब उनका दिल इससे भी नहीं भरा तो उन्होंने दो मग भरकर रंगीन पानी डाल दिया।
Pandit Premnarayan Sharma
Pandit Premnarayan Sharma

उनकी इस हरकत से मुझे तकलीफ़ तो हुई लेकिन मैंने उन्हें बुरा भला इसलिए नहीं कहा क्योंकि अपनी तरफ़ से वे अपनी मुहब्बत का इज़्हार कर रहे थे
क्या मुहब्बत में अपने प्यारों की तकलीफ़ को भी नज़रअंदाज़ कर देना मुनासिब है ?
मैं घर लौटा और कपड़े बदले और दोबारा फिर घटिया से कपड़े पहने ताकि फिर से कोई अपनी मुहब्बत का इज़्हार करने वाला मिले कम से कम कपड़े तो बच जाएं।
कैसी यह मुहब्बत है और कैसा यह त्यौहार है ?
बच्चे फिर भी ग़नीमत हैं।
बड़े लोग अगर बच्चों की तरह हो जाएं तो काफ़ी दिक्क़तें दूर हो जाएं।
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ये क्‍या होने जा रहा है....

अतुल श्रीवास्तव 
तस्वीर आपको नज़र आएगी निम्न लिंक पर.
http://www.atulshrivastavaa.blogspot.com/


सबसे पहले मैं माफी चाहता हूं, इस तस्‍वीर को अपने ब्‍लाग में लगाने के लिए, लेकिन क्‍या करूं लगाना पडा। फिल्‍मों में हिरोईन कम कपडों में दिखाई देती हैं और अंतरंग दृश्‍य देती हैं, बाद में यह कहकर अपना पल्‍ला झाड लेती हैं कि कहानी की यह मांग थी। मैं भी शायद इसी सोच के साथ इस तस्‍वीर का प्रयोग कर रहा हूं। अब वे हिरोईनें कितना सच बोल रही होती हैं, यह तो मैं नहीं जानता पर मैं यहां सोलह आने सच बोल रहा हूं यह मैं आपको यकीन दिलाता हूं। (इसीलिए मैंने इस तस्‍वीर को निंगेटिव शेड दे दिया है।)  
अब आता हूं मुददे  की बात पर। भारत विश्‍व कप के फायनल में पहुंच गया है। दो अप्रैल को उसका श्रीलंका से मुकाबला है। क्रिकेट पर सटटा लग रहा है, क्रिकेट को लेकर जुनून चरम पर है। कोई व्रत रख रहा है  तो कोई हवन कर रहा है, इस उम्‍मीद में कि भारत विश्‍वकप जीत जाए। 1983 का इतिहास दोहरा दिया जाए। कुल मिलाकर जुनून पूरे चरम पर है। विश्‍वकप में भारत जीते यह हर भारतीय की इच्‍छा है और हर भारतीय विश्‍व कप को इस बार अपने देश में ही रखने की तमन्‍ना रखता है लेकिन इसी बीच एक माडल ने जो बात कही है वह अपने आप में न सिर्फ आपत्तिजनक है बल्कि भारतीय परंपरा के बिल्‍कुल विपरीत भी है।
अब फिर से इस तस्‍वीर पर आता हूं। यह तस्‍वीर है, एक उभरती हुई माडल पूनम पांडे की। किंगफिशर जैसी कंपनियों के लिए विज्ञापन करने वाली पूनम का कहना है कि भारत के विश्‍वकप जीतने पर वह न्‍यूड  होकर अपनी खुशी का इजहार करेगी। वह कहती है कि वह ऐसा टीम इंडिया के हौसले को बढाने के लिए करना चाहती है। अब यह तो पूनम पांडे ही जाने कि यदि टीम विश्‍वकप जीत जाती है तो उसकी इस ‘हरकत’ से टीम का हौसला किस तरह बढ जाएगा। खैर अपनी धुन में मगन पूनम यह भी कहती है कि वह ड्रेसिंग रूप में खिलाडियों के सामने न्‍यूड होगी और यदि सरकार और बीसीसीआई उसे इजाजत दे तो वह स्‍टडियम में भी ऐसा कर सकती है।
विदेशों में इस तरह की घटनाएं आम हैं लेकिन भारत में इस तरह की घोषणा अपने आप में नई बात है और आश्‍चर्यजनक भी। पूनम की इस घोषणा ने यह तो दर्शाया  है कि भारत में क्रिकेट को लेकर दीवानगी किस हद तक है लेकिन क्‍या पूनम की इस तरह की घोषणा भारतीय संस्‍कृति के अनुकूल है। क्‍या किसी को अपनी दीवानगी दिखाने का यही एक तरीका सूझ सकता है।
इस खबर को जब मैंने पढा तो ऐसा लगा कि यह महज क्रिकेट के प्रति दीवानगी की बात  नहीं, कहीं न कहीं प्रचार पाने का तरीका है और मानसिक दीवालिएपन का भी परिचायक है। आप इस बारे में क्‍या सोचते हैं। हर भारतीय चाहता है कि भारत विश्‍वकप जीते लेकिन क्‍या एक भी भारतवासी ऐसा होगा जो यह सोचता होगा कि इसके बाद पूनम की इच्‍छा पूरी हो। ईश्‍वर से यही कामना कि भारत को विश्‍व विजेता बनाए और पूनम को सदबुध्दि दे।

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        बाबाजी खाना तैयार है, खा लीजिये, चलिये। पोते आराध्य की आवाज़ सुनकर मैंने पढ़ने की मेज से सिर उठाया। बेटा ! पापा गये, मैंने पूछा तो आराध्य  ने बताया कि पापा तो बिज़ी हैं, देर से आयेंगे।
मैं सोचने लगा, बेटे के पास तो समय ही नहीं होता पिता से बात करने का। मैं सोचता गया कि जैसे स्त्रियों को सदैव सहारा-सराहना चाहिये; बचपन में माता, पिता, भाई, तदुपरान्त पति-पुत्र; इसी प्रकार पुरुष को भी तो सहारा चाहिये होता है। बचपन में असहाय बालक के लिये मां-बहन, बाद में पत्नी-बेटी, वृद्धावस्था में बेटी-बहू आदि।
          सेवानिवृत्ति के पश्चात मुझे लगता है मैं पुनः बचपन में गया हूं। जैसे बचपन में अपने कमरे में कुर्सी पर बैठकर सोचते रहना, पढ़तेलिखते रहना, कभी-कभी गृहकार्य में हाथ बंटा देना, खाना-पीना या कुछ सामाजिक कार्य कर देना। उसी तरह मैं अब भी अपनी कुर्सी पर बैठकर सोचता, पढ़ता, लिखता रहता हूं, कभी कोई समाज का कार्य कभी-कभी गृहकार्य में हाथ बंटा देता हूं। पहले खाने-पीने, सहारे के लिये मां-बहन थीं, तदुपरान्त पत्नी बेटी और अब वही कार्य पुत्रवधू, नाती-पोते कर रहे हैं। मूलतः परिवार का मुखिया ( जो उस समय पिता की भूमिका में होता है ) तो सदैव ही परिवार के पालन-पोषण की व्यवस्था में ही व्यस्त रहता है, इन सब से असम्पृक्त। वह तो अपने पारिवारिक निर्वहन के रूप में, आर्थिक व्यवस्था में व्यस्त रहकर ही समाज, देश, राष्ट्र की सेवा में रत होता है। उसे कब समय होता है दादी-बाबा से संवाद करने का। संबाद तो प्रायः दादी-बाबा, पोते-पोती ही आपस में करते हैं। इसीलिये कहा जाता है कि प्रायः पोता ही बाबा के पद चिन्हों पर चलता है, पुत्र की अपेक्षा। जैसे पहले मेरे पिता इस भूमिका में थे, बाद में मैं स्वयं और अब वही दायित्व कृतित्व मेरे पुत्र द्वारा निभाया जा रहा है। यह तो जग-रीति चक्र है, विष्णु का चक्र है, पालन,पोषण चक्र; संसार चक्र है, जीवन चक्र, वंश चक्र,---भव चक्र है। यह परिवर्ती-क्रमिक चक्र सामाजिक क्रम है। यही तो मानव का नित्य याथार्थिक, सार्थक जीवन क्रम है, जिससे वंश, जाति संसार उन्नति-प्रगति को प्राप्त होता है। ---

परिवर्तिन संसारे को मृत वा जायते।
जातो, येन जातेन याति वंश समुन्नितम॥
          यद्यपि आजकल आणविक ( मौलेक्यूलर) परिवार में दादी-बाबा का महत्व घटता जा रहा है। पितामाता के दायित्व वहु-विधात्मक होने से पुत्र-पुत्रियों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया जा रहा फ़लतः परिवार के पुत्र-पुत्री, भावी पीढ़ी प्रायः दिशा विहीन होती जा रही है……
       अभी भी सोच ही रहे हैं बाबाजी….खाना ठंडा हो रहा है। मुझे भी भूख लग रही है……. आराध्य  की अधीरता भरी आवाज़ से मे्री तन्द्रा भंग हुई। मैंने मुस्कुराकर आराध्य की ओर देखा…..हां..हां चलो……हाथ धो लिये या नहीं।
------डॉ. श्याम गुप्त

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अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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