इमाम ए हरम हिन्दुस्तान आये और उन्होंने इस्लाम का पैगाम दिया जोकि मुहब्बत और इंसानियत से भरा है . इस मौके पर मुल्क भर के अख्बरात और रसाएल उनके पैगाम से भरे नज़र आये . टी वी चैनल्स ने भी अच्छी कवरेज दी . दैनिक भास्कर लिखता है -
दिल्ली। मक्का में मस्जिद हरम शरीफ के इमाम डॉक्टर अब्दुल रहमान अल सुदाइस ने कहा कि मुल्क (हिंदुस्तान) में रहने वालों में मुहब्बत बरकरार रहे और इंसानियत के रिश्ते बने रहें।
इमाम-ए-हरम ने उन्हें सुनने आए लोगों की अपार भीड़ को देखकर सभी का शुक्रिया अदा किया और पूरे जोश के साथ जिंदाबाद के नारे भी लगाए।
रामलीला मैदान में जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अरशद मदनी) के बैनर तले आयोजित अजमत-ए-सहाबा कांफ्रेंस में बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने आगे कहा कि यहां लाखों की संख्या में लोगों के आने से एहसास होता है कि काबे और इमाम का कितना एहतराम करते हैं।
उन्होंने बताया कि वह अलग-अलग धर्मो के लोग लंबे समय से भाईचारे के साथ रह रहे हैं। यह तारीफ के काबिल है। साथ ही वायदा किया कि वापस मक्के में जाकर हिंदुस्तान में अमन और तरक्की के लिए दुआ करेंगे।
उन्होंने मुस्लिमों को नसीहत देते हुए कहा कि मां-बाप के अलावा टीचर सहाबा (पैगंबर मोहम्मद साहब के सिपहसालार) से मुहब्बत करना बच्चों को सिखाएं और सहाबा पर तंज कसने वालों पर नकेल कसें।
उन्होंने कहा कि इस्लाम की सही तस्वीर पेश करने और सहाबा के बारे में बताने वाला चैनल शुरू होना चाहिए। साथ ही मदरसों में सहाबा के बारे में पढ़ाने पर विशेष कोर्स भी हो। अपने भाषण के अंत में लोगों का शुक्रिया अदा और जोश के साथ जिंदाबाद-जिंदाबाद नारे भी लगाए।
इमाम-ए-हरम के पीछे नमाज पढ़ने के लिए लाखों की संख्या में लोग मौजूद थे। दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग जलसे में शामिल होने के लिए आए थे। इमाम-ए-हरम ने जलसे में आने चंद मिनट बाद में ही पहले मगरिब(शाम) और अंत में इशा(रात) की नमाज पढ़ाई। सुदाइस ने अपना भाषण अरबी में दिया। बाद में उसको हिंदी में अनुवाद जमीयत के अध्यक्ष अरशद मदनी ने किया।
जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बताया कि जलसा पूरी तरह से मजहबी है, इसका कोई सियासत से ताल्लुक नहीं है। फिलहाल मुस्लिमों को इस्लाम के बारे में सही ढंग से दूसरे धर्मो के लोगों को समझाना चाहिए। साथ ही पैगंबर और सहाबा के बारे में भी बच्चों को बताएं।
चौदह सौ वर्षो से सहाबा के जरिए जो इस्लाम मिला है, वह पूरी तरह से महफूज है। जलसे को यूपी के जमीयत के अध्यक्ष अशहद सिद्दीकी, मौलाना सलमान, मौलाना शाहिद आदि उलेमाओं ने भी संबोधित किया और इस्लाम और सहाबा के बारे में विस्तार से बताया। संचालन अब्दुल अलीम ने किया।
इमाम-ए-हरम ने उन्हें सुनने आए लोगों की अपार भीड़ को देखकर सभी का शुक्रिया अदा किया और पूरे जोश के साथ जिंदाबाद के नारे भी लगाए।
रामलीला मैदान में जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अरशद मदनी) के बैनर तले आयोजित अजमत-ए-सहाबा कांफ्रेंस में बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने आगे कहा कि यहां लाखों की संख्या में लोगों के आने से एहसास होता है कि काबे और इमाम का कितना एहतराम करते हैं।
उन्होंने बताया कि वह अलग-अलग धर्मो के लोग लंबे समय से भाईचारे के साथ रह रहे हैं। यह तारीफ के काबिल है। साथ ही वायदा किया कि वापस मक्के में जाकर हिंदुस्तान में अमन और तरक्की के लिए दुआ करेंगे।
उन्होंने मुस्लिमों को नसीहत देते हुए कहा कि मां-बाप के अलावा टीचर सहाबा (पैगंबर मोहम्मद साहब के सिपहसालार) से मुहब्बत करना बच्चों को सिखाएं और सहाबा पर तंज कसने वालों पर नकेल कसें।
उन्होंने कहा कि इस्लाम की सही तस्वीर पेश करने और सहाबा के बारे में बताने वाला चैनल शुरू होना चाहिए। साथ ही मदरसों में सहाबा के बारे में पढ़ाने पर विशेष कोर्स भी हो। अपने भाषण के अंत में लोगों का शुक्रिया अदा और जोश के साथ जिंदाबाद-जिंदाबाद नारे भी लगाए।
इमाम-ए-हरम के पीछे नमाज पढ़ने के लिए लाखों की संख्या में लोग मौजूद थे। दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग जलसे में शामिल होने के लिए आए थे। इमाम-ए-हरम ने जलसे में आने चंद मिनट बाद में ही पहले मगरिब(शाम) और अंत में इशा(रात) की नमाज पढ़ाई। सुदाइस ने अपना भाषण अरबी में दिया। बाद में उसको हिंदी में अनुवाद जमीयत के अध्यक्ष अरशद मदनी ने किया।
जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बताया कि जलसा पूरी तरह से मजहबी है, इसका कोई सियासत से ताल्लुक नहीं है। फिलहाल मुस्लिमों को इस्लाम के बारे में सही ढंग से दूसरे धर्मो के लोगों को समझाना चाहिए। साथ ही पैगंबर और सहाबा के बारे में भी बच्चों को बताएं।
चौदह सौ वर्षो से सहाबा के जरिए जो इस्लाम मिला है, वह पूरी तरह से महफूज है। जलसे को यूपी के जमीयत के अध्यक्ष अशहद सिद्दीकी, मौलाना सलमान, मौलाना शाहिद आदि उलेमाओं ने भी संबोधित किया और इस्लाम और सहाबा के बारे में विस्तार से बताया। संचालन अब्दुल अलीम ने किया।
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