पश्चिमी उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट बेंच स्थापना संघर्ष समिति की बैठक कल दिनाँक 4.1.2020 को बिजनौर में हुई, बैठक में सभी दलों के नेताओं ने एक सुर में हाईकोर्ट बेंच की मांग का समर्थन किया। जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा नेता साकेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट बेंच वेस्ट यूपी में खुल गई तो वादकारियों को अपने केस लड़ने के लिए प्रयागराज नहीं जाना होगा। जनता का पैसा और समय दोनों ही बचेंगे। इस मांग को हर हाल में पूरा किया जाना चाहिए। पूर्व मंत्री सपा नेता स्वामी ओमवेश ने कहा कि जिस दिन वकीलों के दिलो दिमाग में यह बात आ जाएगी कि उन्हें बेंच चाहिए तो उस दिन उन्हें बेंच मिल जाएगी। इसके लिए अभी वकील ही तैयार नहीं हैं।
बैठक में सपा नेता स्वामी ओम वेश की बात ही सर्वाधिक विचारणीय है कि जिस दिन वकीलों के दिमाग में यह बात आ जाएगी कि उन्हें बेंच चाहिए तो उस दिन उन्हें बेंच मिल जाएगी और इस बात में वकीलों के लिए सर्वाधिक कचोटने वाली उनकी यह बात रही कि इसके लिए अभी वकील ही तैयार नहीं हैं कितना बड़ा कटाक्ष है यह वकीलों पर कि वे अभी बेंच के लिए तैयार नहीं हैं.
1979 से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता हाई कोर्ट बेंच के लिए आंदोलन कर रहे हैं किन्तु रह रह कर आंदोलन डूबता ही जा रहा है और राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा जन्म ले लेती है कि वकील अभी भी इसके लिए तैयार नहीं हैं. कमी किसी और की है भी नहीं, कमी है ही यहां के वकीलों की क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से समर्पित होकर इसके लिए कार्य किया ही नहीं है.. आंदोलन की सबसे बड़ी कमी है सबसे अधिक जरूरत मंद का आंदोलन की जरूरत से नावाकिफ होना और उसका इसमें कोई सहयोग न होना और वह जरूरत मंद है आम जनता जिसकी भलाई इस आंदोलन की मुख्य वज़ह है किन्तु उसे आज तक केवल इतना ही पता है कि ये वकीलों की मांग है और इसे पूरी कराने के लिए ही वे आए दिन हड़ताल करते रहते हैं.
अब ये जिम्मेदारी किसकी है कि जनता आंदोलन की वास्तविक स्थिति को जाने और वकीलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो, स्पष्ट रूप से वकीलों की, ये वकीलों का ही कर्तव्य है कि वे जनता को बताएं कि वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच स्थापित होने से वकीलों के तो केवल काम में इजाफा होगा मगर जनता के तो न्यायिक हित में जो इतनी बड़ी प्रयाग राज की दूरी खड़ी है वह हट जाएगी, कभी दूरी के कारण तो कभी ख़र्चे के कारण तो कभी विपक्षी के डर के कारण अपने न्याय हित को छोड़ देने वाले पीड़ित इस तरह न्याय के करीब पहुंच जाएंगे और न्याय में विलंब दूर हो सकेगा.
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी यहां वकीलों के आंदोलन की सफलता का रोड़ा बन गई है और उन्हें खुद में इस इच्छाशक्ति को जगाने के लिए मोदी शाह का अनुसरण करना होगा और उनसे सीखना होगा कि कैसे वर्तमान विकास का फायदा उठाकर ज़न समर्थन हासिल किया जाता है. आज लगभग सभी के फेसबुक, ट्विटर, व्हाटसएप अकाउंट हैं और इन दोनों ने इन्हीं का फायदा उठाकर सोशल मीडिया के द्वारा इनसे खुद को जोड़कर आज अपनी इतनी मजबूत स्थिति की है, साथ ही दूसरी बार सत्ता हासिल की हैं यही नहीं, हाल ही में CAA व NRC के मुद्दे पर भी विवादस्पद स्थिति उत्पन्न होने पर इनकी कार्यवाही प्रशंसनीय है, अमित शाह ने ऐसे में घर घर भाजपाईयों को भेज लोगों को कानून समझाने का कदम उठाया है।
ऐसे में वकीलों को भी इनसे सीख लेते हुए जनता के, सामाजिक संस्थाओं के सोशल मीडिया अकांउट से जुड़ना चाहिए और घर घर जाकर जनता को आंदोलन की जरूरत समझाने का प्रयास करना चाहिए और ये सब जल्दी ही करना चाहिए क्योंकि अभी देश व प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा के मोदी व शाह ही ऐसे तिकड़मी हैं कि तमाम व्यवधानों के बावजूद ये वकीलों व जनता के हित में प्रयाग राज के वकीलों द्वारा तैयार ओखली में सिर दे सकते हैं.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल )
बैठक में सपा नेता स्वामी ओम वेश की बात ही सर्वाधिक विचारणीय है कि जिस दिन वकीलों के दिमाग में यह बात आ जाएगी कि उन्हें बेंच चाहिए तो उस दिन उन्हें बेंच मिल जाएगी और इस बात में वकीलों के लिए सर्वाधिक कचोटने वाली उनकी यह बात रही कि इसके लिए अभी वकील ही तैयार नहीं हैं कितना बड़ा कटाक्ष है यह वकीलों पर कि वे अभी बेंच के लिए तैयार नहीं हैं.
1979 से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता हाई कोर्ट बेंच के लिए आंदोलन कर रहे हैं किन्तु रह रह कर आंदोलन डूबता ही जा रहा है और राजनीतिक हल्कों में यह चर्चा जन्म ले लेती है कि वकील अभी भी इसके लिए तैयार नहीं हैं. कमी किसी और की है भी नहीं, कमी है ही यहां के वकीलों की क्योंकि उन्होंने पूरी तरह से समर्पित होकर इसके लिए कार्य किया ही नहीं है.. आंदोलन की सबसे बड़ी कमी है सबसे अधिक जरूरत मंद का आंदोलन की जरूरत से नावाकिफ होना और उसका इसमें कोई सहयोग न होना और वह जरूरत मंद है आम जनता जिसकी भलाई इस आंदोलन की मुख्य वज़ह है किन्तु उसे आज तक केवल इतना ही पता है कि ये वकीलों की मांग है और इसे पूरी कराने के लिए ही वे आए दिन हड़ताल करते रहते हैं.
अब ये जिम्मेदारी किसकी है कि जनता आंदोलन की वास्तविक स्थिति को जाने और वकीलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो, स्पष्ट रूप से वकीलों की, ये वकीलों का ही कर्तव्य है कि वे जनता को बताएं कि वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच स्थापित होने से वकीलों के तो केवल काम में इजाफा होगा मगर जनता के तो न्यायिक हित में जो इतनी बड़ी प्रयाग राज की दूरी खड़ी है वह हट जाएगी, कभी दूरी के कारण तो कभी ख़र्चे के कारण तो कभी विपक्षी के डर के कारण अपने न्याय हित को छोड़ देने वाले पीड़ित इस तरह न्याय के करीब पहुंच जाएंगे और न्याय में विलंब दूर हो सकेगा.
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी यहां वकीलों के आंदोलन की सफलता का रोड़ा बन गई है और उन्हें खुद में इस इच्छाशक्ति को जगाने के लिए मोदी शाह का अनुसरण करना होगा और उनसे सीखना होगा कि कैसे वर्तमान विकास का फायदा उठाकर ज़न समर्थन हासिल किया जाता है. आज लगभग सभी के फेसबुक, ट्विटर, व्हाटसएप अकाउंट हैं और इन दोनों ने इन्हीं का फायदा उठाकर सोशल मीडिया के द्वारा इनसे खुद को जोड़कर आज अपनी इतनी मजबूत स्थिति की है, साथ ही दूसरी बार सत्ता हासिल की हैं यही नहीं, हाल ही में CAA व NRC के मुद्दे पर भी विवादस्पद स्थिति उत्पन्न होने पर इनकी कार्यवाही प्रशंसनीय है, अमित शाह ने ऐसे में घर घर भाजपाईयों को भेज लोगों को कानून समझाने का कदम उठाया है।
ऐसे में वकीलों को भी इनसे सीख लेते हुए जनता के, सामाजिक संस्थाओं के सोशल मीडिया अकांउट से जुड़ना चाहिए और घर घर जाकर जनता को आंदोलन की जरूरत समझाने का प्रयास करना चाहिए और ये सब जल्दी ही करना चाहिए क्योंकि अभी देश व प्रदेश में भाजपा की सरकार है और भाजपा के मोदी व शाह ही ऐसे तिकड़मी हैं कि तमाम व्यवधानों के बावजूद ये वकीलों व जनता के हित में प्रयाग राज के वकीलों द्वारा तैयार ओखली में सिर दे सकते हैं.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल )