बच्चों की मैगज़ीन की Top 5 Websites

बालेन्दु शर्मा दाधीच।।
बच्चों को इंटरनेट
पर हल्के-फुल्के मनोरंजन की तलाश रहती है लेकिन कई बार वे भटककर गलत जगह पहुंच जाते हैं। जो माता-पिता बच्चों को मनोरंजक और शिक्षाप्रद साहित्य पढ़ते देखना चाहते हैं, वे अक्सर निराश होते हैं क्योंकि बच्चों के मतलब की अच्छी भारतीय वेबसाइटों की संख्या कम है। आप अपने बच्चों को इन वेबसाइटों के बारे में बताएं, जो साफ-सुथरी और अच्छी कहानियां, कविताएं, गेम और ऐक्टिविटीज़ को प्रमोट करती हैं।

chandamama.com चंदामामा बच्चों की बहुत पुरानी और लोकप्रिय पत्रिका है और चंदामामा डॉट कॉम उसी पत्रिका का ऑनलाइन वर्जन है। यहां बच्चे न सिर्फ कहानियां, पहेलियां आदि पढ़ सकते हैं बल्कि जिन्हें लिखने का शौक है, वे अपनी रचनाएं भी पोस्ट कर सकते हैं। यहां चंदामामा पत्रिका में बरसों से छपती रही कहानियों का संग्रह भी है, यानी बच्चे पढ़ना शुरू करेंगे तो सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा। यह वेबसाइट हिंदी समेत कई भाषाओं में है।

pitara.com
बच्चों के लिए साफ-सुथरी और सुरक्षित वेबसाइट है पिटारा डॉट कॉम। यहां काफी वरायटी दिखाई देती है। इस अंग्रेजी साइट में छह खास-खास हिस्से हैं, जिन्हें टेलस्पिन, मैगजीन, डिस्कवर, एक्टिविटीज, गेम्स और रेफरेंस नाम दिए गए हैं। टेलस्पिन और मैगजीन सेक्शंस में कहानियां, लेख और मनोरंजक जानकारियां हैं। फन ऐक्टिविटीज में आर्ट ऐंड क्राफ्ट से जुड़ी गतिविधियां सिखाई जाती हैं। डिस्कवर और रेफरेंस में ऐसी सूचनाएं हैं जो बच्चों का ज्ञान बढ़ाएंगी और पढ़ाई में भी उपयोगी साबित होंगी।

dimdima.com
डिमडिमा डॉट कॉम भारतीय विद्या भवन की तरफ से चलाई जाने वाली वेबसाइट है जो इसी नाम की एक पत्रिका का ऑनलाइन वर्जन कही जा सकती है। पत्रिका के पुराने अंकों की सामग्री यहां आर्काइव्ज के रूप में मौजूद है। लेकिन उसके साथ-साथ प्ले ऐंड विन, क्राफ्ट ऐंड ऐक्टिविटीज, फन जोन, स्टोरी टाइम और पोयट्री कॉर्नर जैसी चीजें बच्चों को पसंद आएंगी। यहां बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों, शिक्षकों और स्कूलों के लिए भी अलग सेक्शन हैं। विज्ञान, इतिहास, भूगोल और पर्यावरण जैसे विषयों पर भी अच्छी सामग्री है।

kidswebindia.com
किड्सवेबइंडिया डॉट कॉम पर सिर्फ मनोरंजक चीजें ही नहीं हैं बल्कि बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से जुड़े राय-मशविरे भी दिए जाते हैं। जैसे यह कि इम्तिहानों के वक्त तैयारी कैसे करें और तनाव से कैसे बचें। अपने देश, इतिहास, संस्कृति, त्योहारों वगैरह के बारे में बहुत सी जानकारी यहां है जो सीखने के साथ-साथ होमवर्क में भी काम आएगी। पहेलियां, चुटकुले, गेम्स जैसी टाइमपास चीजें भी हैं।

balmitra.com
बालमित्र डॉट कॉम वेबसाइट चार हिस्सों में बांटकर पेश की गई है - अबाउट इंडिया, स्टोरी बुक, लैंग्वेज बुक और रीडर्स स्पेशल। जैसा कि नाम से जाहिर है, पहले हिस्से में भारत के बारे में ब्योरेवार जानकारियां दी गई हैं और स्टोरी बुक में लोककथाएं और दिलचस्प कहानियां हैं। बहरहाल, लैंग्वेज बुक सेक्शन लाजवाब है जहां बच्चे हिंदी, मराठी, तेलुगू, मलयालम, तमिल और अंग्रेजी जैसी भाषाएं भी सीख सकते हैं।
Source : http://navbharattimes.indiatimes.com/top-websites-for-childrens-magazines/articleshow/15090418.cms
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लोग "दूसरों" की विकृतियों के माहिर हो चले हैं


विकृति को समझना मुनाफ़े का सौदा है। कविता और लेख लिखो तो कोई टिप्पणी नहीं देता मगर किसी की विकृति को पहचान लो लोग अपनी राय देने आ जाते हैं मगर शर्त यह है कि विकृति ‘दूसरों‘ में से किसी की होनी चाहिए।
अपना कोई हो तो उसे संविधान और झंडे की तौहीन करने की भी पूरी छूट है। कोई नंगेपन और समलैंगिकता का हामी हो तो हो। उसकी सोच विकृति नहीं मानी जाएगी क्योंकि वह अपने गुट का है। अपनी विकृति पर चर्चा न करना और दूसरों की विकृतियों पर तब्सरा करना भी एक विकृति है। इसे कौन समझ पाएगा ?
दूसरा सुनेगा नहीं और अपनी विकृति लोग दूर करेंगे नहीं तो सुधार कैसे होगा ?
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खबरगंगा: 'डायन' : औरतों को प्रताड़ित किये जाने का एक और तरीका

वे बचपन के दिन थे ....मोहल्ले में दो बच्चों की मौत होने के बाद  काना-फूसी शुरू हो गयी और एक बूढी विधवा को 'डायन' करार दिया गया...हम उन्हें प्यार से 'दादी' कहा करते थे...लोगो की ये बाते हम बच्चों तक भी पहुची और हमारी प्यारी- दुलारी दादी एक  'भयानक डर' में तब्दील हो गयी... उनके घर के पास से हम दौड़ते हुए निकलते कि वो पकड़ न ले...उनके बुलाने पर भी पास नहीं जाते ...उनके परिवार को अप्रत्यक्ष तौर पर बहिष्कृत कर दिया गया ....आज सोचती हूँ तो लगता है कि हमारे बदले व्यवहार ने उन्हें कितनी 'चोटे' दी होंगी ...और ये सब इसलिए कि हमारी मानसिकता सड़ी हुई थी....जबकि हमारा मोहल्ला बौद्धिक (?) तौर पर परिष्कृत (?) लोगो का था ..!...................................

खबरगंगा: 'डायन' : औरतों को प्रताड़ित किये जाने का एक और तरीका:

'via Blog this'
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ग़रीबों की मदद करने वाला ग़रीब BAI FANG LI चला गया


ग़रीबों की मदद करने वाला ग़रीब चला गया.
वह हम सबके लिए एक मिसाल छोड़कर गया है.
BAI FANG LI was a Tricycle Driver for 20 years and has Donated 350,000 Renminbi to support the EDUCATION OF 300 STUDENTS WHO LIVE IN POVERTY.One winter, he gave his last 500 Renminbi to their Teacher, “THIS IS WILL BE MY LAST DONATION AS I AM NO LONGER FIT TO WORK”. He Passed Away at the Age of 93.
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मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .


मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
 Old manThe art of loving
जुबैर अहमद अपने ब्लॉग ''बी.बी.सी ''में लिखते हैं कि राजेश  खन्ना जी को शायद तनहाइयाँ  मर गयी .तन्हाई शायद यही तन्हाई उनकी जिंदगी में अनीता आडवानी के साथ लिव -इन- रिलेशन के रूप में गुज़र रही थी न केवल फिल्मो में बल्कि आज सभी जगह देश हो या  विदेश शहर हो या गाँव अपनों के साथ छोड़ने पर बड़ी उम्र के लोग तनहाइयों में जीवन गुज़ारने को विवश हैं और उनमे से कितने ही ये रास्ता अपनाने लगे हैं जिसकी शायद उन्होंने उम्र  के आरंभिक दौर में आलोचना की होगी.

Funny at old hats

अभी हाल ही में शामली [उत्तर प्रदेश ]में ओम प्रकाश -गसिया प्रकरण चर्चा में रहा .बेटों ने बाप की वृद्धावस्था में देखभाल नहीं की और एक अन्य महिला ने जब सेवा -सुश्रुषा की तो उसे अपनी पेंशन जो स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें मिलती है ,दिलाने के लिए उन्होंने कोर्ट-मैरिज की सोची ये समाचार फैलते ही बेटों के आराम में खलल पड़ा और उन्होंने इसे रोकने को एडी चोटी का जोर लगा दिया .हाल ये है कि प्रतिष्ठा व् जायदाद बच्चों के लिए बूढ़े माँ-बाप से ऊपर स्थान रखते हैं और जब प्रतिष्ठा पर आंच आती है या जायदाद छिनने की नौबत आती है तब उन्हें बूढ़े माँ-बाप की याद आती है और तब ये कथित युवा पीढ़ी उन्हें ''सठिया गए हैं ''जैसे तमगों से नवाजने लगती है .
बच्चों का माँ-बाप के प्रति ये रवैय्या बड़ों को ऐसी परिस्थिति में डाल देता है कि वे गहरे अवसाद के शिकार हो जाते हैं .अपने बच्चों के प्रति मोह को वे छोड़ नहीं पाते  और उनके तकलीफ  देह  व्यवहार को ये सोच कर ''कि जिंदगी दो चार दिन की है ''सहते रहते हैं .


Old WomanAn Older Worker

फिल्मे समाज का आईना हैं .चाहे अवतार हो या बागवान दोनों में बच्चों के व्यवहार ने माँ बाप को त्रस्त किया है   किन्तु उनमे जो आदर्श दिखाया गया है वही हमारे समाज के बुजुर्गों को अपनाना होगा उनमे बच्चों के व्यवहार से माँ बाप को टूटते नहीं दिखाया बल्कि उन्हें सबक सिखाते हुए दिखाया गया है .उनमे दिखाया गया है कि ऐसे में माँ बाप को बच्चो के प्रति क्या व्यवहार अपनाना चाहिए.   
जो माँ बाप अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करते हैं उन्हें जिंदगी जीने लायक बनाते हैं उन्हें अपने को अपने बच्चों के सामने लाचार बनने की कोई ज़रुरत नहीं है .अवतार व् बागवान में तो फ़िल्मी माँ बाप है जो कोई कार्य करते हैं और उन्हें सफलता मिल जाती है असलियत में ऐसा बिरलों के साथ ही होता है इसलिए ऐसे में बच्चों को सबक सिखाने के लिए कानून भी माता पिता का साथ देता है 

दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा १२५ में पत्नी ,संतान  और माता पिता के लिए भरण-पोषण के लिए आदेश दिया गया है . धारा १२५[१] कहती है कि यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति -
  ''[घ]अपने पिता या माता का ,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं,भरण पोषण करने की उपेक्षा करता है ,या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित हो जाने पर ऐसे व्यक्ति को ये निर्देश दे सकेगा कि वह अपने पिता या माता के भरण पोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर ,जिसे मजिस्ट्रेट ठीक  समझे ,भरण पोषण मासिक भत्ता दे .''            
बालन नायर बनाम भवानी अम्मा वेलाम्मा और अन्य ए .आई .आर १९८७ केरल ११० में केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि धारा १२५ विपत्ति में पड़े पिता के लिए भी भरण पोषण की व्यवस्था करता है और यह संविधान के अनुच्छेद १५[३] एवं 39 के अनुकूल है .
  डॉ.श्रीमती विजय मनोहर अरबत बनाम कांशी राम राजाराम सवाई और अन्य ए.आई.आर. १९८७ एस.सी.११०० में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपने माता पिता का भरण पोषण करने का दायित्व न केवल पुत्रों का है अपितु अविवाहित पुत्रियों का भी है .
 इस प्रकार कानून ने भी वृद्ध माता पिता की सहायता के लिए व्यवस्था की है किन्तु इस सहायता से लाभ उठाना और उपेक्षित व्यवहार कर घर परिवार समाज में अव्यवस्था फ़ैलाने वाले बच्चों को सीधे रास्ते पर लाने का कार्य तो उन वृद्ध माता पिता को स्वयं ही करना होगा .संतान मोहपाश में बंधे इन लोगों को अपने  बच्चों को सही रास्ते पर लाने का दायित्व स्वयं ही  निभाना होगा ताकि आगे आने वाले बच्चों के लिए ये एक ऐसा सबक बने जिसे नज़रंदाज़ कर अपने कर्तव्य को भूलने की गलती कोई भूल से भी न करे .
                                       शालिनी कौशिक 
                                            [कानूनी ज्ञान ]
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अन्ना आंदोलन का भविष्य

शुरू में जरूर लगा कि अन्ना आंदोलन बड़े ताकतवर तरीके से उठा है, लेकिन लगातार आंतरिक मतभेदों और विवादों ने इसकी छवि को काफी धक्का पहुंचाया है। बेशक टीम अन्ना कहे कि सब कुछ ठीक है, लेकिन इनसे यह सवाल पूछा जाता रहेगा कि बिना ‘हेल्दी इंटरनल डेमोक्रेसी’ के आप देश के लोकतंत्र की कमियां दूर करने की बात कैसे कर सकते हैं? इस टीम के कई अहम सदस्य बीते कुछ महीनों में इसे छोड़ चुके हैं। अगर वे गलत थे, तो आपने उन्हें आंदोलन में साथ क्यों लिया? अगर ऐसा नहीं है, तो क्या आंदोलन किसी एक या दो लोगों की मर्जी का गुलाम तो बनने नहीं जा रहा? टीम अन्ना के मौजूदा और पूर्व सदस्यों से बात करने पर एक बात तो साफ होती है कि टीम में सहमति और तालमेल का भारी अभाव है, जो किसी लक्ष्य को पाने में बड़ी बाधा साबित हो सकता है। बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा जरूरी है, क्योंकि लोकतंत्र में जो काम हमारी राजनीतिक पार्टियों को करना था, वे कर न सकीं। देश ने उन्हें छह दशक से ज्यादा का समय दिया, जो काफी है।
ऐसे में टीम अन्ना की अगुआई में इन मुद्दों को उठाया और लागू कराया जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या रथ का सारथी कृष्ण है या नहीं, क्योंकि रथ पर सवार अजरुन रूपी जनता सिर्फ प्रदर्शन कर सकती है, मंच तो किसी कृष्ण को ही तैयार करना होगा। टीम अन्ना का फेल होना देश की राजनीतिक पार्टियों को मनमानी करने का एक्सटेंशन जैसा होगा, जो कितना लंबा खिंचेगा, कहा नहीं जा सकता।
आईबीएन खबर में अफसर अहमद
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आधा सच...: अनशन: टीम अन्ना का टीवी प्रेम ...

आधा सच...: अनशन: टीम अन्ना का टीवी प्रेम ...: आज एक बार फिर जरूरी हो गया है कि टीम अन्ना की बात की जाए । वैसे तो मेरा मानना है कि इनके बारे में बात करना सिर्फ समय बर्बाद करना है, लेकिन द...
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इस्लाम धर्म का रोजा सिर्फ भूखे या प्यासे रहने की परंपरा मात्र नहीं है


हिजरी कैलेंडर का नवां महीना रमज़ान होता है। पूरी दुनिया में फैले इस्लाम के अनुयायियों के लिए रमज़ान का पवित्र महीना एक उत्सव होता है। इस्लाम धर्म की परंपराओं में रमज़ान में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरुरी फर्ज होता है, उसी तरह जैसे 5 बार की नमाज अदा करना जरुरी है। इस बार रमज़ान के पाक महीने की शुरुआत 21 जुलाई, शनिवार (यदि 20 जुलाई को चांद नहीं दिखा तो रमज़ान 22 से शुरु होगा) से हो रही है।




इस्लाम धर्म में रमज़ान के महीने में रोजा गहरी आस्था के साथ रखे जाते हैं। किंतु इस्लाम धर्म का रोजा सिर्फ भूखे या प्यासे रहने की परंपरा मात्र नहीं है बल्कि रोजे के दौरान कुछ मानसिक और व्यावहारिक बंधन भी जरुरी बताए गए हैं। जानते हैं रोजे के दौरान पालन किए जाने वाले नियमों को -

1- रोजे के दौरान सिर्फ  भूखे-प्यासे ही न रहें बल्कि आंख, कान और जीभ का भी गलत इस्तेमाल न करें यानी न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा कहें।

- हर मुसलमान के लिए जरुरी है कि वह रोजे के दौरान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बीच के समय में खान-पान न करे। यहां तक कि कुछ गलत सोचे भी नहीं। 

- रोजे की सबसे अहम परंपराओं में सेहरी बहुत लोकप्रिय है। सेहरी शब्द सेहर से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है सुबह। जिसका नियम है कि सूर्य के उदय होने से पहले उठकर रोजेदार सेहरी खाते हैं। इसमें वह खाने और पीने योग्य पदार्थ लेते हैं। सेहरी करने के बाद सूर्य अस्त होने तक खान-पान छोड़ दिया जाता है। इसके साथ-साथ मानसिक आचरण भी शुद्ध रखते हुए पांच बार की नमाज और कुरान पढ़ी जाती है। सूर्यास्त के समय इफ्तार की परंपरा है।

- इस्लाम धर्म में बताए नियमों के अनुसार पांच बातें करने पर रोजा टूट जाता है- पहला झूठ बोलना, दूसरा बदनामी करना, तीसरा किसी के पीछे बुराई करना,चौथा झूठी कसम खाना और पांचवां लालच करना।
माखज़ - http://religion.bhaskar.com/article/utsav--ramzan-the-month-of-lords-prayer-keep-these-things-in-mind-3547126-NOR.html
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नौकरी के साथ करिए एमबीए -प्रो आर. सी. मिश्र

देश में एमबीए करने वालों की मांग तेजी से बढ़ी है। इस मांग को पूरा करने के लिए सरकारी विश्वविद्यालयों और संस्थानों के अलावा निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालय और संस्थान कई विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं। हालांकि   इनमें एक बड़े वर्ग के लिए उपयुक्त विकल्प उपलब्ध नहीं हैं। इस वर्ग में वे अभ्यर्थी आते हैं, जो व्यावसायिक गतिविधियों या उद्योगों में पहले से ही काम कर रहे हैं। ऐसे अभ्यर्थियों के लिए एमबीए की डिग्री का विशेष महत्व है, क्योंकि उन्हें व्यवसाय और उद्योग का प्रत्यक्ष अनुभव है, लेकिन वे पूर्णकालिक विद्यार्थी के रूप में यह अध्ययन नहीं कर सकते। इसी प्रकार की समस्या अंशकालिक पाठय़क्रमों या एमबीए (एक्जीक्यूटिव) के साथ भी है, क्योंकि जहां एक ओर अंशकालिक एमबीए वहीं से किया जा सकता है, जहां यह सुविधा उपलब्ध हो और दूसरी ओर एमबीए (एक्जीक्यूटिव) के लिए एक साल का पूर्ण अवकाश लेना आवश्यक होता है। यहां पर यह बताया जाना भी जरूरी है कि निजी संस्थानों में एक तो शिक्षण-शुल्क बहुत अधिक है, दूसरे उनकी विश्वसनीयता की समस्या भी रहती है।इन सभी समस्याओं से निदान दिलाते हुए सेवारत अभ्यर्थियों को उनके अपने घर अथवा कार्य-स्थल से ही  एमबीए की उपाधि प्राप्त करने का एक बेहतर विकल्प उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध कराया गया है। इसमें मान्यता प्राप्त सरकारी विश्वविद्यालय से अपने घर अथवा कार्यस्थल पर रहते हुए तथा अपना कार्य करते हुए एमबीए की उपाधि प्राप्त की जा सकती है। दूसरे सरकारी विश्वविद्यालय होने के नाते यहां फीस भी कम है   (इसे किश्तों में भी दे सकते हैं) तथा किसी भी संबंध में विश्वसनीयता का कोई भी प्रश्नचिन्ह नहीं है। वैसे यह सुविधा केवल काम करने वाले लोगों के लिए ही नहीं है, बल्कि वे सभी लोग जो ग्रेजुएट हैं और एमबीए करना चाहते हैं, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय से  कर सकते हैं।दरअसल दूरस्थ माध्यम अपनी कुछ खास विशेषताओं के कारण पूरे विश्व में एक सशक्त विकल्प के रूप में उभरा है। भारत में भी इग्नू के बाद लगभग हर राज्य में स्थानीय विद्यार्थियों की सुविधा के लिए मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। इसी क्रम में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। इस विश्वविद्यालय का सीधा-सा मतलब है कि सरकारी विश्वविद्यालय आपके द्वार अर्थात आप अपने घर या कार्य-स्थल से एक बहुत ही लचीली और उदार व्यवस्था में अन्य विकल्पों की तुलना में बहुत कम खर्च पर एमबीए की डिग्री प्राप्त कर सकते हैं। इस विश्वविद्यालय से हिंदी माध्यम से भी एमबीए की पढ़ाई की जा सकती है। इसके लिए इन दिनों दाखिला चल रहा है।
प्रो़ आर. सी. मिश्र, निदेशक, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी)पूरे उत्तराखंड में एकमात्र विवि, जहां से हिंदी में कर सकते हैं एमबीए
न्यूनतम शुल्क और लचीली व्यवस्था
मान्यताप्राप्त सरकारी विश्वविद्यालय
पूरे प्रदेश में अध्ययन केंद्र उपलब्ध
वीडियो लेक्चर तथा सीडी भी उपलब्ध
कमाई करते हुए पढ़ें के सिद्धान्त पर अमल
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रोज़ा के आध्यात्मिक लाभ


आध्यात्मिक लाभः 
(1) इस्लाम में रोजा का मूल उद्देश्य ईश्वरीय आज्ञापालन और ईश-भय है, इसके द्वारा एक व्यक्ति को इस योग्य बनाया जाता है कि उसका समस्त जीवन अल्लाह की इच्छानुसार व्यतीत हो। एक व्यक्ति सख्त भूक और प्यास की स्थिति में होता है, खाने पीने की प्रत्येक वस्तुयें उसके समक्ष होती हैं, एकांत में कुछ खा पी लेना अत्यंत सम्भव होता है, पर वह नहीं खाता पीता। क्यों ? इस लिए कि उसे अल्लाह की निगरानी पर दृढ़ विश्वास है। वह जानता है कि लोग तो नहीं देख रहे हैं पर अल्लाह तो देख रहा है। इस प्रकार एक महीने में वह यह शिक्षा ग्रहण करता है कि सदैव ईश्वरीय आदेश का पालन करेगा और कदापि उसकी अवज्ञा न करेगा।
(2) रोज़ा ईश्वरीय उपकारों को याद दिलाता औऱ अल्लाह कि कृतज्ञता सिखाता है क्योंकि एक व्यक्ति जब निर्धारित समय तक खान-पान तथा पत्नी के साथ सम्बन्ध से रोक दिया जाता है जो उसकी सब से बड़ी इच्छा होती है फिर वही कुछ समय बाद मिलता है तो उसे पा कर वह अल्लाह ती प्रशंसा बजा लाता है।
(3) रोज़ा से कामवासना में भी कमी आती है। क्योंकि जब पेट भर जाता है तो कामवासना जाग उठता है परन्तु जब पेट खाली रहता है तो कामवासना कमज़ोर पड़ जाता है। इसका स्पष्टिकरण मुहम्मद सल्ल. के उस प्रबोधन से होता है जिसमें आया है कि "हे नव-युवकों के समूह ! तुम में से जो कोई विवाह करने की शक्ति रखता हो उसे विवाह कर लेना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा आँखें नीची रहती हैं और गुप्तांग की सुरक्षा होती है।"
(4) रोज़े से शैतान भी निदित और अपमानित होता है क्योंकि पेट भरने पर ही कामवासना उत्तेजित होता है फिर शैतान को पथभ्रष्ट करने का अवसर मिलता है। इसी लिए मुहम्मद सल्ल0 के एक प्रवचन में आया है "शैतान मनुष्य के शरीर में रक्त की भांति दौड़ता है।भूख (रोज़ा) के द्वारा उसकी दौड़ को तंग कर दो"।

(माखज़ व मुसन्निफ़ : Safat Alam Taimi))
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कैप्टन लक्ष्मी सहगल को भावभीनि श्रद्धांजलि




आज़ाद हिन्द फ़ौज की कमांडर रह चुकी 98 वर्षीय कैप्टन लक्ष्मी सहगल का आज निधन हो गया |

डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 में एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ और उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली, फिर वे सिंगापुर चली गईं। वहीं पर उनकी मुलाक़ात सुभाष चंद्र बोस जी से हुई और वो आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं।

वे बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया। वे 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। एक डॉक्टर की हैसियत से वे सिंगापुर गईं थीं लेकिन 87 वर्ष की उम्र में भी वो कानपुर के अपने घर में बीमारों का इलाज करती थी।

आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। फिर उन्हे कैप्टन बना दिया गया और बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा। वो एशिया की पहली महिला कमांडर बनी | जिस जमाने मे औरतों का घर से निकालना भी जुर्म समझा जाता था उस समय उन्होने 500 महिलाओं की एक फ़ौज तैयार की जो एशिया मे अपने तरह की पहली विंग थी |

कैप्टन लक्ष्मी सहगल तमाम महिलाओं के साथ साथ हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत रही और हमेशा ही रहेंगी | अपनी मृत्यु के बाद उन्होने अपना पार्थिव शरीर मेडिकल कॉलेज को दान करने की इच्छा जताई थी जिसे कि पूरा किया जाएगा |

महान वीरांगना को भावभीनि श्रद्धांजलि | ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें |
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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