ब्लॉग जगत का नायक बना देती है ‘क्रिएट ए विलेन तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (29)

इसमें एक ब्लॉगर को विलेन घोषित करना एक बुनियादी तत्व है। जिसे विलेन घोषित किया जा रहा है, उसका सचमुच विलेन होना ज़रूरी नहीं है।
इसे आम तौर पर पुराने ब्लॉगर इस्तेमाल करते हैं और इसके ज़रिये वे ब्लॉग जगत में अपना क़द ऊंचा करना और उसकी बागडोर अपने हाथों में लेना चाहते हैं। बिल्कुल नया ब्लॉगर प्रायः इसे इस्तेमाल नहीं कर पाता क्योंकि इसके लिए ब्लॉग जगत में बहुसंख्यकों की जनभावनाओं का ज्ञान बहुत ज़रूरी है।
इस तकनीक के तहत पहले से स्थापित एक ब्लॉगर पहले यह जायज़ा लेता है कि किस ब्लॉगर को हिंदी ब्लागर्स के कौन कौन से गुट कितना ज़्यादा नापसंद करते हैं ?
जिस ब्लॉगर को ज़्यादातर गुट नापसंद करते हों, डिज़ायनर ब्लॉगर उसी के विरूद्ध उठ खड़ा होता है और पहले उसे नर्मी से समझाने का दिखावा करता है और इन्कार की दशा में उसे उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हो जाता है। वह उसके सामूहिक बहिष्कार के लिए अपील करता है। इससे बहुत सारे गुटों का समर्थन उसे तुरंत ही मिल जाता है और उन गुटों के सदस्यों की टिप्पणियां भी उसके ब्लॉग पर आने लगती हैं और उसे मार्गदर्शक मान लिया जाता है।
इस तकनीक से एक ब्लॉगर तुरंत ही एक शासक का सा आभासी आनंद पा सकता है। इसके अंतर्गत उसे बहुत से ब्लॉगर्स को टिप्पणियां और ईमेल्स करनी पड़ती है और उन्हें बताना पड़ता है कि वे उसके द्वारा घोषित विलेन ब्लॉगर को टिप्पणी रूपी दाना पानी बिल्कुल भी न दें और लोग तुरंत ही मान लेते हैं क्योंकि वह तो वही बात कह रहा है जो कि वे पहले से ही कर रहे होते हैं। इस तरह ब्लॉग जगत में यह संदेश जाता है कि यह ब्लॉगर बहुसंख्यकों के हितों के लिए आवाज़ उठाता है और इसकी बात में दम है। लोग इसकी बात को मानते हैं।

Magic Tricks With Animals

यह एक तरह का इल्यूज़न और भ्रम होता है। कोई उसकी बात नहीं मानता है बल्कि वह कहता ही ऐसी बात है जिसे लोग उसके कहे बिना भी मानते हैं। जादूगरों की सारी कला ‘इल्यूज़न‘ पर ही टिकी होती है और जो जादूगर जितना बड़ा ‘इल्यूज़न‘ और भ्रम पैदा करता है, वह उतना ही बड़ा जादूगर मान लिया जाता है और उतनी ही ज़्यादा उसकी वाह वाह होती है।
यही इल्यूज़न जब एक डिज़ायनर ब्लॉगर पैदा करता है तो वाह वाह उसके ब्लॉग पर टिप्पणियों की शक्ल में बरसती हैं।
हिंदी ब्लॉगिंग में कई ब्लॉगर्स ने इस तकनीक को आज़माया और अपनी छवि एक मसीहा और नायक की बना ली।
कामयाबी की सौ फ़ी सद गारंटी के बावजूद इस तकनीक का नकारात्मक पक्ष यह है कि इस तकनीक के तहत आदमी को अपने ज़मीर के खि़लाफ़ जाकर बहुसंख्यकों की भावनाओं का साथ देना पड़ता है। कई बार बहुसंख्यक लोग किसी से इसलिए भी ख़फ़ा हो जाते हैं कि वे अपनी कमी, कमज़ोरी और कुरीतियों पर चोट सहन नहीं कर पाते और वे सत्य के लिए प्रतिबद्ध सत्कर्मी ब्लॉगर के विरूद्ध खड़े हो जाते हैं।
ऐसी कोशिशों में डिज़ायनर ब्लॉगर को निजी लाभ तो बेशक मिल जाता है लेकिन पूरे समूह को अंततः नुक्सान ही होता है।
ब्लॉगवाणी के संचालकों ने ब्लॉगवाणी को बंद (अपडेट न) करने का जो निर्णय लिया है। उसके पीछे वास्तव में डिज़ायनर ब्लॉगर्स की महत्वाकांक्षा ही ज़िम्मेदार है। इस नुक्सान की भरपाई के लिए बाद में उन्होंने कई पोस्ट्स लिखकर वापसी के लिए ब्लॉगवाणी की मिन्नतें भी कीं लेकिन उनकी बदतमीज़ियों से आजिज़ ब्लॉगवाणी संचालकों ने उनकी राय को ठकुरा दिया और इस तरह हिंदी ब्लॉगिंग को वे जो नुक्सान पहुंचा चुके थे, वह स्थायी बनकर रह गया। 

‘क्रिएट ए विलेन‘ के बजाय अगर ‘सर्च ए विलेन तकनीक‘ पर काम किया जाए तो वह ज़्यादा बेहतर है और उसे एक नया ब्लॉगर भी आसानी से अंजाम दे सकता है और उसमें भी इसी तकनीक की तरह कामयाबी सौ फ़ी सद ही यक़ीनी है।

‘सर्च ए विलेन तकनीक‘
इस तकनीक के अंतर्गत हम दो तकनीकों का संयुक्त अध्ययन करेंगे।
इसमें पहली तकनीक का नाम है ‘हातिम ताई तकनीक‘
और दूसरी का नाम है ‘अवतार तकनीक‘
आगामी पोस्ट में इन दोनों तकनीकों के बारे में विस्तृत चर्चा की जाएगी, इंशा अल्लाह !
इस विषय में ये दो पोस्ट भी फायदेमंद हैं :
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आंदोलन या आराजकता....


धरा बेच देगें, गगन बेच देगें,
नमन बेच देगें, शरम बेच देगें।
कलम के पुजारी अगर सो गए तो,
वतन के पुजारी, वतन बेच देगें।
बात कहां से शुरू करूं, समझ नहीं पा रहा हूं। दरअसल मैं बताना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री के निकम्मे सलाहकारों की वजह से आज देश का लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है। मैं मानता हूं कि अन्ना जी का तरीका गलत हो सकता है, लेकिन उनकी मांग पूरी तरह जायज है। देश भर में अन्ना को जिस तरह का समर्थन मिल रहा है, उसके पीछे वजह और कुछ नहीं, सिर्फ सरकारी तंत्र में फैला भ्रष्टाचार है। आज देश में नीचे से ऊपर तक फैले भ्रष्टाचार से लोग उकता गए हैं और अब तो इस तंत्र से बदबू भी आने लगी है। ये जनसैलाब जो सड़कों पर उतरा है, इसके पीछे यही भ्रष्टाचार ठोस वजह है।
इस भीड़ का दुश्मन नंबर एक कौन है ? इस सवाल का सिर्फ एक जवाब है वो है राजनेता। इस सवाल का दूसरा कोई जवाब हो ही नहीं सकता। लोग जब देखते हैं पहला चुनाव लड़ने के दौरान जिस आदमी की हैसियत महज एक 1974 माडल जीप की थी, आज वो कई एकड वाले रिसार्ट, आलीशान बंगला, फरारी, पजीरो और होंडा सिटी कार का मालिक कैसे बन गया। नेताओं के बच्चे कैसे विदेशों में पढाई करने के साथ ही मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पा गए। हम तो यही सोच कर शांत हो  गए कि.....
प्यास ही प्यास है जमाने में, एक बदली कहां कहां बरसे।
ना जाने कौन कौन उसे छलकाएगा, कौन दो घूंट के लिए तरसे।।
लेकिन मित्रों ये सोच लेने भर से हम शांत नहीं हो सकते हैं, क्योंकि हमारी भूख का क्या होगा। रोजी रोटी भी तो जरूरी है। इसके लिए क्या किया जाए। आज करोडों नौजवानों के हाथ पढाई पूरी करने के बाद भी खाली हैं। अगर पढा लिखा नौजवान किसी भी नौकरी के लिए जाता है, तो जिस तरह पैसे की मांग होती है, वो किसी से छिपी नहीं है। जब देश की सीमा की रखवाली करने के लिए हम सेना में भर्ती होने की बात करते हैं और वहां भी पैसे की मांग होती है, तब सच में शर्म आने लगती है भारतीय होने पर। आज नौकरी के लिए केंद्र या राज्य सरकार के किसी भी महकमें में नौजवान आवेदन करता है तो उससे खुलेआम पैसे की मांग की जाती है। तब मै सोचता हूं जो लोग लाखों रुपये रिश्वत देकर नौकरी पाते हैं तो हम उनसे ईमानदारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। इस मामले को लेकर अगर आप अपने इलाके के सांसद के पास चले गए तो भगवान ही मालिक है। उसके रवैये पर हैरत होती है।
कोई राहत की भीख मांगे, तो  आप संगीन तान लेते हैं।
और फौलाद के शिकंजे में, फूल का इंतहान लेते हैं।।
ये बात सच है दोस्तों की इन नेताओं ने रिश्वतखोरी,बेईमानी को न सिर्फ बढावा दिया है, बल्कि ये इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए हमारा गुस्सा इनको लेकर जितना भी है वो कम है। बहरहाल इस गंभीर मामले में जब जनता ने आवाज बुलंद की तो उसे चुप कराने का जो तरीका सरकार ने इख्तियार किया, इससे इतना तो साफ है कि ये सत्ता के नशे में चूर हैं। जबकि कांग्रेस को जनता के गुस्से का कई बार पहले भी सामना करना पड़ चुका है। लेकिन कांग्रेस नेता इतिहास से पता नहीं क्यों सबक लेने को तैयार नहीं हैं।
दोस्तों अब दो एक बातें देश के लिए भी कहनी है। पडो़सी देश पाकिस्तान को ले लें, इसकी आज जो दशा है उसकी मुख्य वजह वहां लोकतंत्र का लगभग खात्मा हो चुका है। उसका रिमोट कंट्रोल पूरी तरह अमेरिका के हाथ में है। लोकतंत्र कमजोर होने से नेपाल की अस्थिरता भी किसी से छिपी नहीं है। आज अन्ना का आंदोलन भी कहीं ना कहीं लोकतंत्र के लिए सबसे बडा खतरा है। संसद की सर्वोच्चता किसी भी सूरत में बरकरार रखनी ही होगी।
मैं ही नहीं टीम अन्ना भी जानती है कि उनके आंदोलन का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है। मैं आज ही बता देता हूं कि आंदोलन के दवाब में सरकार सिविल सोसाइटी के जनलोकपाल के मसौदे को संसद में किसी रूप में पेश कर सकती है। फिर ये मसौदा संसद की स्थाई समिति में जाएगा। वहां दोबारा सिविल सोसाइटी को अपनी बात रखने का मौका मिल सकता है। आप जानते हैं कि स्थाई समिति में सभी दलों के नेता हैं, इसलिए यहां से भी सिविल सोसायटी को ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए। बहरहाल स्थाई समिति अगर इसे मान भी लेती है और ये मसौदा कैबिनेट से होता हुआ संसद में आएगा तो यहां उसकी वही हश्र होने वाला है जो महिला आरक्षण विल का हो रहा है।
आइए अन्ना की तर्ज पर हुए कुछ पुराने लेकिन बडे आंदोलनों की चर्चा कर लें। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की नीतियों और इमरजेंसी के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश ने आंदोलन का बिगुल फूंका। रामलीला मैदान की तरह ही पटना के गांधी मैदान में भी हजारों लोग जुटे। जेपी ने जनता पार्टी का गठन कर सरकार का विकल्प खडा किया, लेकिन बाद में जनता पार्टी के जितने नेता थे, उतनी पार्टी बन गई। ये आंदोलन बिखर गया और एक बार फिर सत्ता कांग्रेस के हाथ में आ गई।  
दूसरा आंदोलन पूर्व प्रधानमंत्री स्व वीपी सिंह ने खडा़ किया। बोफोर्स घोटाले और मंडल कमीशन को लेकर आवाज बुलंद कर राजीव गांधी को सत्ता से बाहर करने के बाद  बी पी सिंह भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। ना बोफोर्स में भ्रष्टाचार साबित कर पाए और ना ही मंडल कमीशन को लेकर ऐसा कुछ कर पाने में कामयाब हुए, जिससे लोगों की तकदीर बदल गई हो। हां वीपी सिंह खुद जरूर राजनीति के हाशिए पर आ गए।
तीसरा बडा आंदोलन हमने राम मंदिर के लिए देखा। इसके जरिए भारतीय जनता पार्टी एक बार केंद्र में और एक बार उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में भले कामयाब हो गई हो, लेकिन बाबरी मस्जिद ढहाने का जो धब्बा इस आंदोलन से देश पर लगा, उससे दुनिया भर में देश की किरकिरी हुई। आज बीजेपी कहां है, किसी से छिपा नहीं है।
मैं नहीं कहता कि जनता को अपनी आवाज उठाने का हक नहीं है, जरूर उठाना चाहिए। लेकिन हमें ये भी देखना है कि कहीं संवैधानिक संस्थाओं का अस्तित्व खतरे में ना पड़ जाए। मैं फिर दावे के साथ कहता हूं कि भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए हमारे पास कानून की कमी नहीं है। उसका कड़ाई से पालन भर किया जाए तो बहुत कुछ समस्या का समाधान हो सकता है। तमाम बडे बडे नेताओं को भ्रष्टाचार के मामले में जेल की हवा खानी पड़ चुकी है। आज भी कई नेता जेल में हैं। सैकडो आईएएस और आईपीएस अफसर भ्रष्टाचार के मामले में पकडे जा चुके हैं। लेकिन कानून का पालन ही ना हो, तो लोकपाल बन जाने से भी कुछ नहीं होने वाला है।
मैं जानना चाहता हूं किस कानून में लिखा है कि आतंकवादी अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के पांच साल बाद तक उसका मामला गृहमंत्रालय में सिर्फ इसलिए लटकाए रखा जाए, हमें एक खास तपके का वोट चाहिए। मुंबई हमले के आरोपी कसाब को वीआईपी सुविधाएं दी जाएं। आतंकवादियों के खिलाफ सख्त और जल्दी कार्रवाई के लिए बने पोटा कानून को इसी कांग्रेस की सरकार ने खत्म कर दिया। सिविल सोसाइटी क्यों नहीं इस मामले में सरकार से जवाब मांग रही है।
मुझे इस बात पर भी आपत्ति है कि इस आंदोलन को आजादी की दूसरी लडाई कहा जाए। समझ लीजिए ये कह कर हम आजादी के लिए दी गई कुर्बानी और शहीद हुए लोगों को गाली दे रहे हैं। अन्ना खुद को गांधी कहे जाने पर गर्व जरूर महसूस करें, लेकिन मैं उन्हें गांधीवादी तो कह सकता हूं, पर दूसरा गांधी नहीं। जो लोग उन्हें दूसरा गांधी बोल रहे हैं, वो पहले गांधी को गाली दे रहे हैं। मुझे लगता है कि ये जिम्मेदारी अन्ना की है कि लोगों उन्हें दूसरा गांधी कहने से रोकें। बहरहाल मैं तो इस आंदोलन को आंदोलन कम आराजकता ज्यादा मानता हूं।
गणपति बप्पा मोरिया, गणपति बप्पा मोरिया।
राजघाट में गांधी बाबा सुबुक-सुबुक के रो रिया।।

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कबूतर की तरह भी पकड़ी जाती हैं टिप्पणियां Hindi Blogging Guide (28)

एक महिला ब्लॉगर शुरू से ही 50 टिप्पणियां लेने के लिए जानी जाती हैं। ऐसा इस वजह से है कि वह ब्लॉगर्स की टिप्पणियों को कबूतर की तरह पकड़ती हैं। टिप्पणी पाने की उनकी यह तकनीन डिज़ायनर ब्लॉगिंग में ‘पीजन तकनीक‘ के नाम से जानी जाती है।
कबूतर पालने के शौक़ीन दूसरों के कबूतर कैसे पकड़ते हैं ?
दूसरों के उड़ते हुए कबूतरों को वह लाख पुकार कर बुलायें लेकिन वह पुकार सुनकर आने वाले नहीं हैं। इसके लिए कबूतरबाज़ पहले अपने कुछ कबूतर हवा में उड़ाता है। वे कबूतर ऊपर हवा में चक्कर काटने लगते हैं। अजनबी कबूतर भी उनमें आकर शामिल हो जाता है। फिर वे कबूतर जब अपने ठिकाने पर लौटते हैं तो नया कबूतर भी उनके साथ ही आ जाता है। ठीक ऐसे ही दूसरों की टिप्पणियां पाने के लिए कुछ ब्लॉगर्स अलग अलग आई डी से अपने ब्लॉग पर ख़ुद ही सहमति-असहमति और ऐतराज़ की टिप्पणियां करके एक बहस का माहौल क्रिएट कर देते हैं और ब्लॉग पर बहस और चर्चा का माहौल बना देखकर दूसरे ब्लॉगर सचमुच ही उसमें बहस लेने के लिए शामिल हो जाते हैं। इस तरह उन्हें ब्लॉग पर आने की आदत पड़ जाती है और डिज़ायनर ब्लॉगर अपनी टिप्पणियां कम करता चला जाता है और एक समय ऐसा भी होता है जब उसे अपने ब्लॉग पर टिप्पणी करने से ‘विरक्ति‘ सी हो जाती है।
डिज़ायनर ब्लॉगिंग के लिए जानी जाने वाली एक महिला ब्लॉगर के ब्लॉग की स्कैनिंग के बाद पाया गया कि उसने 15 आई डी बना रखी हैं और उनसे उसने ब्लॉग भी बना रखे हैं। वह इन सब को समय समय पर अपडेट भी करती रहती है। यह वाक़ई एक मेहनत का काम है। मेहनत हमेशा रंग लाती है और अगर उसे एक अच्छे प्लान के साथ किया जाए तो मेहनत बहुत कम समय में ही बहुत ज़्यादा रंग ले आती है।
जो ब्लॉगर चाहते हैं कि उनके ब्लॉग पर टिप्पणियों की संख्या बढ़ जाए तो उनके लिए ‘पीजन तकनीक‘ एक बेहतरीन तरीक़ा है। इसका सबसे बड़ा गुण यह है कि यह ब्लॉगर को तुरंत रिज़ल्ट देता है और उसके अंदर आत्मविश्वास का संचार करता है।
हिंदी ब्लॉग जगत में अपनी सेवाओं के लिए पुरस्कृत बहुत से ऊंचे नाम इस ‘पीजन तकनीक‘ का इस्तेमाल करते हुए देखे जा सकते हैं। इस विधि के कारगर होने के लिए यह एक उम्दा सुबूत है।
इस तकनीक के कारगर होने के बावजूद इसका एक नकारात्मक पक्ष भी है और वह यह है कि ऐसा करने वाला ब्लॉगर यदि इस तकनीक का प्रयोग करते हुए पकड़ा गया तो उसकी छवि पर आंच आ सकती है।
एक ही ब्लॉगर जब बहुत सी आई डी बनाकर कमेंट करता है तो वह अगर होशियार नहीं है तो उससे कुछ ऐसी ग़लतियां हो जाती हैं, जिनके ज़रिये वह पहचान लिया जाता है। ऐसे में थिंक टैंक टाइप डिज़ायनर ब्लॉगर्स ने कुछ टिप्स दिए हैं जिन्हें अपनाने के बाद पकड़ में आना मुश्किल हो जाता है। उन टिप्स की चर्चा भी किसी पोस्ट में अवश्य की जाएगी।
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"छोटू"


चाय की दुकान पे,
एक बालक है रहता |
नौ-दस वर्षीय, सकुचाया हुआ-सा |

चाय पीने वालों का मुख निहारता रहता ;
पेंट भी है ढीला, गंजी भी फटेहाल |

ग्लास हाथ से छूटने का इंतज़ार करता रहता,
चाय ख़त्म होते ही झट ग्लास ले जाता,
धोकर वापस अपने मालिक को थमाता |
कभी पेंट ठीक करता,
कभी गंजी को उठाकर नाक पोंछा करता |
यही उसका कार्यक्रम, यही उसकी दिनचर्या,
बदले में शाम को मिलता, तीस या चालीस रुपैया |

एक दिन मैंने उसे बुलाया,
पास में बिठाया,
पूछा मैंने बाबू तेरा नाम क्या है?
असमंजस सा खड़ा उसने मुझे देखा,
ठठक कर बस एक ही शब्द कहा-
"छोटू"
इधर-उधर से वापस वो ग्लास समेटने लगा,
मैंने तब उसको पुनः पास बुलाया,
बोला, छोटू तुम कभी स्कूल क्यों नहीं जाते,
सीखने को मिलेगा कुछ पढ़ क्यों नहीं आते?


मालिक की तरफ देखा फिर मुझे देखकर बोला,
माँ रहती बीमार और पिता है शराबी,
काम नहीं करूंगा तो होगा बहुत खराबी;
पैसे लेकर जाता हूँ, तब खाना खाता हूँ,
बाप की प्यास मिटाने को शराब भी तो लता हूँ |
 सहज भाव से बोल के वो निकल गया,
पर नेत्र का कोना भींगा और दिल मेरा भर आया |

न जाने सरकार के कितने सारे योजना है,
पर जहाँ जरुरत है वहां तक वो कभी पंहुचा ही नहीं;
ऐसे ही कितने "छोटू" भारत में हैं बसते,
भारत हो रहा विकसित, फिर भी हम कहते |

क्या यही जनता का शासन है ?
क्या यही प्रजातंत्र है ?
क्या यही हमारी व्यवस्था है ?
क्या यही हमारा लोकतंत्र है ?

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यात्रा

प्रकृति के अनमोल नजारों का हसीन सफर




सैर कर दुनियां की गाफिल जिन्दगानी फिर कहां
गर जिन्दगानी भी रही तो ये जवानी फिर कहां!

आप अगर चाहते हैं कि प्रकृति के अनमोल नजारों, इतिहास व तिलिस्म के स्वर्णिम यादों के सफर का लुत्फ उठाना तो एक बार जरूर चकिया की जानिब रूख करिए। यहां आपकों मिलेगा चन्द्रकान्ता की अमर प्रेम कहानी की निशानियां राजदरी, देवदरी और विन्दम्फाल जैसे मनमोहक जल प्रपात। गहडवाल राजपूत राजवंश के स्वर्णिम इतिहास भी विंध्य पर्वत श्रृंखला की इन्ही पहाड़ियों में ध्वंसावशेष के रूप में बिखरे पड़े हैं। दरअसल विंध्यपर्वत श्रृंखला की गोद में बसा उत्तर प्रदेश का जनपद चन्दौली की चकिया तहसील अपने गोद में न जाने कितने रहस्य और तिलिस्म दफन किए है।



बात अगर जल प्रपातों व जलाषयों की हो तो चकिया के औरवाटांड ग्राम के पास कर्मनाशा नदी पर 58 मीटर उचां सुन्दर जल प्रपात है जिसे बड़ी दरी के नाम से जाना जाता है। इसी समीप नौगढ़ बांध का निर्माण सन् 1957-58 में हुआ है, जिसका क्षेत्रफल 19.6 वर्ग किलोमीटर में है। जिसका पानी एक-दूसरे बांधों से जुडे मूंसाखाड़ व लतीफशाह जलाशयों में जाता है। यहां का नजारा बेहद हसीन व सुहाना होता है। दूसरी नदी चन्द्रप्रभा है जिसका उद्गम स्थल पडोसी जनपद मिर्जापुर में है, यह नदी पहाड़ी मार्ग से लहराती व बलखाती हुई दो जल प्रपातों देवदरी व राजदरी के बीच से तकरीबन 400 फीट नीचे उतरती है। इन प्रपातों का दृष्य अत्यन्त आकर्षक एवं मनोहारी होने के कारण आमोद-प्रमोद की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जिसकी वजह से बारिश के मौसम में पर्यटकों का जमावडा देखने को मिलता है।
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डिज़ायनर ब्लॉगिंग में रामबाण है ‘हनी बी तकनीक‘ Hindi Blogging Guide (27)

डिज़ायनर ब्लॉगिंग की तकनीक को जानने के बाद आप अपने ब्लॉग को हिंदी का एक सफल ब्लॉग बना सकते हैं, एक ऐसा ब्लॉग जिसे बहुत पढ़ा जाएगा और जिस ब्लॉग को बहुत से पाठक पढ़ते हैं, वह ब्लॉग ख़ुद ब ख़ुद सफल हो जाता है। ब्लॉगर की असल ताक़त उसका लेखन है और उसकी असल कामयाबी यह है कि उसके लिखे हुए को ज़्यादा से ज़्यादा लोग पढ़ें।
पाठकों का सैलाब अपने ब्लॉग पर देखने के लिए आपको पहले यह देखना होगा कि पाठक फ़िलहाल कहां जमे हुए हैं ?
किन ब्लॉग्स को आजकल ज़्यादा पढ़ा जा रहा है ?
आप देखेंगे कि उपदेश वाले ब्लॉग पर सबसे कम पाठक मौजूद होंगे और हल्की फुल्की पोस्ट लिखने वाले ब्लॉगर्स के पास पाठकों की बड़ी तादाद मौजूद होगी।
इसका मतलब यह है कि लोग खुलकर इंजॉय करना चाहते हैं। उन्हें यह करो और वह मत करो का उपदेश और अनुशासन अपनी आज़ादी पर पाबंदी लगती है।
लोगों के मिज़ाज को जांच लेने के बाद अब आप भी एक हल्की फुल्की सी पोस्ट लिखिए।
मिसाल के तौर पर सबसे पहले आप अपनी पोस्ट की थीम तय करते हैं तो वह एक लतीफ़ा निश्चित होती है और वह लतीफ़ा यह है कि

एक दोस्त - यार ग़ज़ल और उपदेश में क्या अंतर है ?
दूसरा दोस्त - शादी से पहले महबूबा की हर बात ग़ज़ल लगती है और शादी के बाद पत्नी की हर बात उपदेश लगने लगती है।

सहज ब्लॉगर तो इस लतीफ़े को मात्र दो तीन लाइन में लिखकर बैठ जाएगा और सोचेगा कि उसने बहुत मनोरंजक पोस्ट लिखी है, अब इस पर बहुत कमेंट आ जाएंगे लेकिन जब उसकी उम्मीद के खि़लाफ़ होगा तो उसका मन खिन्न हो जाएगा।
एक डिज़ायनर ब्लॉगर इसी बात को सादा अंदाज़ में बयान करने के बजाय इसे कहने के लिए एक डिज़ायन बनाएगा। इसके लिए वह ‘हनी बी तकनीक‘ का इस्तेमाल करेगा।
‘हनी बी तकनीक‘ अर्थात मधुमक्खी तकनीक एक सफल तकनीक है जो सदा काम करती है और आपके ब्लॉग तक पाठक खींच लाती है और न सिर्फ़ बहुत से पाठक खींच लाती है बल्कि उन पाठकों को टिप्पणी करने के लिए मजबूर भी करती है।

यह बात सभी लोग जानते हैं कि शहद के छत्ते की सभी मक्खियां रानी मक्खी के पीछे होती हैं। जहां रानी मक्खी जाएगी वहां उसकी मज़्दूर और सैनिक मक्खियां भी जाएंगी। यही हाल लोकप्रिय हिंदी ब्लॉगर्स का भी है।
एक डिज़ायनर ब्लॉगर इसी बात को कहने के लिए पांच-सात लोकप्रिय हिंदी ब्लॉगर्स के नाम का ज़िक्र अपनी पोस्ट में ज़रूर करेगा और इस तरह उसकी पोस्ट कुछ इस तरह के डिज़ायन में नज़र आएगी।
डिज़ायनर पोस्ट
ब्लॉगवाणी के जिस ब्लॉग को मैंने सबसे पहले फ़ोलो किया वह डाक्टर टीकाराम जी का था और मुझे आज भी याद है कि मैंने चिठ्ठाजगत पर सबसे पहले जिस ब्लॉग के शीर्षक पर क्लिक किया वह ब्लॉग मिस कंचन का था। उसके बाद मैंने कितने ही ब्लॉग पढ़े और उनसे बहुत कुछ सीखा और गर्व होता है कि हमारे बीच अमीर लाल जी, कबीर लाल जी , नयनसुख जी और मुन्नीबाई जी जैसे हिंदी के सशक्त हस्ताक्षर मौजूद हैं। मुझे भाई अरबाज़ हुसैन की पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में इन सभी के साथ रू ब रू मिलने का इत्तेफ़ाक़ भी हुआ और वे पल जीवन के अविस्मरणीय पल बन चुके हैं।
मुझे याद है कि जब मुझे इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बुलाया गया तो ठीक उसी दिन हमारा कुत्ता टॉमी बीमार हो गया। जिसका इलाज फ़ॉरेन रिटर्न डाक्टर टेकचंद गोयल जी से कराया जाना बहुत ज़रूरी था। इसका मतलब यह था कि अपनी पज़ेरो तो टॉमी के लिए बुक हो गई और बेटा अपनी स्पोर्ट मोटर साइकिल हमें देगा नहीं। मन मारकर हमें सूमो पर ही समझौता करना पड़ा। हमारी श्रीमति जी ने हमें बहुत शर्म दिलाने की कोशिश की कि हम अपना कार्यक्रम रद्द करके उनके साथ टॉमी को लेकर डाक्टर के पास चलें लेकिन हमें तो उनकी हर बात बस एक ऐसा उपदेश लग रही थी जिसे पूरा करना हमारे बस में नहीं था और सही भी है। इस बात को एक मशहूर लतीफ़े में इस तरह बयान किया गया है

एक दोस्त - यार ग़ज़ल और उपदेश में क्या अंतर है ?
दूसरा दोस्त - शादी से पहले महबूबा की हर बात ग़ज़ल लगती है और शादी के बाद पत्नी की हर बात उपदेश लगने लगती है।


...और इन महान हस्तियों से मिलने के बाद मुझे अपने फ़ैसले पर गर्व ही हुआ।
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एक डिज़ायनर ब्लॉगर ने दो लाइन का संदेश देने के लिए जिस तरह व्यूह रचना की है, वह वाक़ई एक उम्दा डिज़ायन है। इसमें कुछ फ़ोटो अपनी कार, कोठी और कुत्ते के भी लगा दिए जाते हैं ताकि वाक़या ‘आंखन देखी‘ भी बन जाए।
पोस्ट लिखने के बाद यह पोस्ट एग्रीगेटर पर तो नज़र आएगी ही और गिनती के कुछ लोगों को लिंक भी भेज दिया जाता है। ये वे लोग होने चाहिएं जिनका नाम पोस्ट में आया है या फिर वे जो कि उनके प्रशंसक हैं। इस तरकीब से उसने सात लोगों को अपने ब्लॉग पर आकर टिप्पणी देने के लिए मजबूर कर दिया।
जो लोग उन सात ब्लॉगर्स को ‘रानी मधुमक्खी‘ जैसा मान देते हैं उनमें से भी कुछ लोग आकर वहां ‘बहुत ख़ूब, सुंदर प्रस्तुति और बधाई‘ लिखे बिना न मानेंगे। हरेक का एक एक भी मानकर चलें तो कुल चैदह टिप्पणियां तो हो ही गईं। कुछ लोग ईमानदारी से पढ़कर टिप्पणी देते हैं। उनमें से भी तीन टिप्पणियां आ जाएंगी तो सत्रह टिप्पणियां हो गईं और कुछ लोग आदमी के पास दो-दो कार , कार में सवार कुत्ता और स्पोर्ट मोटर सायकिल देखकर ही सोचते हैं कि आदमी रूतबे वाला है, कभी भी काम आ सकता है। वे यही सोचकर टिप्पणी देने लगते हैं और टिप्पणियां बीस से ऊपर कूद जाती हैं। इसके बाद कुछ लोग वहां ब्लॉगर्स का जमावड़ा देखकर अपनी पोस्ट का लिंक देने के लिए पहुंच जाते हैं और जब वहां टिप्पणियां होने लगती हैं तो दूसरे लोग भी वहां अपना चेहरा और नाम चमकाने पहुंच जाते हैं। इस तरह टिप्पणियां तीस के आस पास पहुंच जाती हैं और डिज़ायनर ब्लॉगर बीच बीच में किसी को भाई और किसी को बहन और किसी को मां कहकर कभी उनका आभार प्रकट करता है और कभी उनके सवाल न पूछने के बावजूद भी उनकी बात में से कोई अंश उठाकर उसका सवाल बनाकर हल कर देता है और कभी ख़ुद ही उसकी व्याख्या कर देता है और कभी उससे मिलती जुलती एक और बात बढ़ा देता है और अपनी टिप्पणियों में मुस्काता भी है कि उसका डिज़ायन सफल रहा। इस तरह उसकी टिप्पणियां आराम से 40 पार कर जाती हैं।
40 के बाद भी कुछ ब्लॉगर्स की पोस्ट पर टिप्पणियां आती रहती हैं तो यह टिप्पणियां वे ब्लॉगर करते हैं जो उनसे नियमित टिप्पणियां पाते रहते हैं।
लोगों को आब्लाइज करने के लिए और उनके ब्लॉग पर टिप्पणी देने के लिए अपनी आसानी की ख़ातिर ये ब्लॉगर बहुत सारे ब्लॉग्स का लिंक भी अपने ब्लॉग पर लगाए रहते हैं और जितने ब्लॉगर्स द्वारा ख़ुद को फ़ोलो होते हुए देखना चाहते हैं, ख़ुद उससे दो गुने और तीन गुने ब्लॉग्स को फ़ोलो कर लेते हैं जबकि पढ़ना इन्हें ख़ाक भी नहीं होता।
समय का मूल्य जानने वाला डिज़ायनर ब्लॉगर और सहज ब्लॉगर दोनों की नज़र में ही ये टिप्पणियां प्रायोजित और कृत्रिम टिप्पणियां सिद्ध होती हैं और ऐसी टिप्पणियों को वे बेकार मानते हैं लेकिन हमारी नज़र में ये टिप्पणियां भी ब्लॉग का श्रृंगार हैं और औरत के पास ज़ेवर जितने भी हों वे कम ही लगते हैं।
यह सही है कि ब्लॉगर की असल ताक़त उसका लेखन है लेकिन जिसके पीछे लोग जुटने लगते हैं तो यह जुटना भी उसकी ताक़त को बढ़ाता ही है।
यह टिप्पणियां देने वाले केवल मेरे ब्लॉग पर ही जुटें या फिर मेरी पसंद के ब्लॉग्स  पर और जिन्हें मैं पसंद नहीं करता, उन पर ये ब्लॉगर टिप्पणी न करें, जब इसके लिए एक डिज़ायनर ब्लॉगर पोस्ट लिखता है तो इससे एक ‘एम्बेडिड डिज़ायनिंग वॉर‘ की शुरूआत होती है और युद्ध कोई भी हो उसके नतीजे अच्छे नहीं होते।
डिज़ायनर ब्लॉगिंग के कुछ मशहूर और सदाबहार डिज़ायन और भी हैं, जिन्हें किसी दूसरी पोस्ट में बताया जाएगा। आज आपके सामने डिज़ायनर पोस्ट तैयार करने का तरीक़ा और उसका नफ़ा-नुक्सान आ गया है। अब आप इसके नुक्सान से बचते हुए इससे लाभ उठाएं और ज़्यादा से ज़्यादा पाठकों को अपने ब्लॉग तक खींच लाएं।
हमारी दुआएं आपके साथ हैं।
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खबरगंगा: एक उजडी हुई बस्ती की दास्तां

एक उजडी हुई बस्ती की दास्तां


शंकर प्रसाद साव


बाघमारा : मैं रायटोला हूं. कभी मैं बहुत सुंदर थी. सैकडों लोग यहां बसा करते थे. 50 से अधिक घरों का यह टोला में लोग खुशहाल थे. सभी चिजों की सुख सुविधा थी. बिजली पानी की कभी परेशानी नही हुई. यहां आ कर लोग राहत महशूस करते थे. आज मै बहुत बदसुरत हो गयी हूं. दर्जनों घर एक-एक कर के गोफ में समा गये. जान बचाने के लिए लोग इधर-उधर भाग रहे हैं.कुछ दिनों के बाद मेरा नामोनिशान मिट जायेगा. मुझे इस हाल में बीसीसीएल ने पहुंचाया हैं. अगर रायटोला बस्ती न होकर कोई मनुष्य होता तो यह दर्दभरी दास्तां इसी तरह से बयान करता. जिस तरह यहां के ग्रामीण अपना दुखडा सुनाते हैं.



सुर्खियों में है यह मामला

वर्ष 2005 में घटी घटना को अभी तक लोग भुला नहीं पाये हैं. लोगों के जहन मे डर अभी तक खौफ खाये हुए है. इसी तरह बरसात के समय अचानक 6 घर गोफ में समा गये थे. इसके ठिक दूसरे-तिसरे दिन लगाातार कुल 12 घर भी भरभरा कर गिर गया. जिसमें दर्जनों की संख्या में बैल, बकरी, मुर्गी भी गोफ में समा गये थे. अधिकांश लोग घायल हो गये थे. इस घटना के बाद मची कोहराम से जिला प्रशासन को आगे आना पडा था. तत्कालीन डीसी श्रीमती बिला राजेश की हस्तक्षेप के बाद बीसीसीएल प्रबंधन ने पीडित परिवारों को भिमकनाली क्वाटर में सिट कराया था

क्या था योजना

विश्व बैंक की मदद से चालु किये गये ब्लॉक टू ओसीपी का विस्तारी करण के एद्देश्य से रायटोला बस्ती को खाली कर ग्रामीणों को पूर्नवास कराने को था. यह योजना बर्ष 1992 में ही पूर्व सीएमडी ए के गंप्ता के कुशल नेतृत्व में बनी थी. योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए बीसीसीएल की हाई पावर की टिम द्धारा सर्वे भी किया गया था. जिसमें जिला प्रशासनिक अधिकारियों भी शामिल किया गया था.

अधर में लटका मामला

सर्वे के दौरान की कॉरपोरेट विलेज की अवधारणा 27 भू-स्वामियों को नियोजन देने के अलावा सभी ग्रामीणों को खानूडीह के पास सरकारी लैंड में बसाने के साथ पानी, बिजली, सडक, सामुदायिक भवन, स्कूल, अस्पताल सहित सभी सुविधायुक्त व्यवस्था देने के अलावा विस्थापित बेरोजगारों कोलडंप रोजगार देने की योजना बनी थी. इस योजना पर आंदोलित सभी ट्रेड यूनियनों ने सहमति जतायी थी. फिलहाल मामला अधर में लटका हुआ हैं.

आंदोलन की रूप रेखा तैयार

रायटोला के ग्रामीणों की मांग एंव अस्तित्व की लडाई लड रहे घटवार आदिवासी समाज के लोग आर-पार की लडाई लडने के लिए प्रबंधन को नोटिस थमाया हैं. जिसमें कोलियरी का चक्का जाम करने की चेतावनी दी हैं. आंदोलन का नेतृत्व जिप सदस्य सह समाज के वरिय नेता सहदेव सिंह कर रहे हैं.

खबरगंगा: एक उजडी हुई बस्ती की दास्तां


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डिज़ायनर ब्लॉगिंग के ज़रिये अपने ब्लॉग को सुपर हिट बनाईये Hindi Blogging Guide (26)

अपने मन के विचारों को या अपनी रचनाओं को बिना किसी योजना के सहज भाव से ब्लॉग पर लिख देना सहज ब्लॉगिंग कहलाता है।
इसके विपरीत डिज़ायनर ब्लॉगिंग एक जटिल प्रक्रिया है। जिसमें ब्लॉगर किसी वांछित लक्ष्य के लिए योजनाबद्ध तरीक़े से पोस्ट लिखता है और उस पर आने वाली टिप्पणियों के जवाब देता है और जब वह दूसरे ब्लॉग पर टिप्पणी देता है तब भी वह अपने निहित उद्देश्य की पूर्ति ही कर रहा होता है।
यह वांछित लक्ष्य और निहित उद्देश्य किसी के लिए केवल निजी हित हो सकता है तो किसी के लिए मानव मात्र की भलाई। किसी का वांछित लक्ष्य और निहित उद्देश्य नकारात्मक हो सकता है और किसी का सकारात्मक। इसके स्तर और इसकी प्रकृति में अंतर के बावजूद इसका लक्ष्य और इसका उद्देश्य सुनिश्चित होता है और इसके भले बुरे नतीजों से ब्लॉगर अच्छी तरह परिचित भी होता है। इसका एक बड़ा लक्षण यह भी है कि डिज़ायनर ब्लॉगर बहुत कम समय में ही अपने ब्लॉग पर बहुत से ब्लॉगर्स को जोड़ लेता है।
अच्छे और बुरे, दोनों ही मक़सद के लिए डिज़ायनर ब्लॉगिंग आज हिंदी ब्लॉगिंग में धड़ल्ले से प्रचलित है। इसके अच्छे और बुरे नतीजे भी सामने आ रहे हैं लेकिन फिर भी यह निर्बाध रूप से चल रही है और चलती रहेगी क्योंकि ब्लॉगिंग की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि इसमें किसी भी ब्लॉगर को उसकी योजना, विचार और शैली बदलने पर मजबूर नहीं किया जा सकता।
डिज़ायनर ब्लॉगिंग का एक लक्षण यह भी है कि इसके अंतर्गत लिखी गई कोई भी पोस्ट प्रायः कमेंट से ख़ाली नहीं पाई जाती। प्रायः 10 कमेंट से लेकर 60 कमेंट तक इस तरह की पोस्ट पर अनिवार्य रूप से मिलते हैं। कभी कभी इन पर कमेंट की संख्या 100 से लेकर 400 तक भी पाई जाती है।
ऐसे हालात में जब एक नया ब्लॉगर हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया में अपना क़दम रखता है और ‘सहज ब्लॉगिंग‘ करता है तो कुछ समय बाद ही वह पाता है कि जहां दूसरों की पोस्ट्स पर 10 से लेकर 100 तक कमेंट मौजूद हैं वहीं उसकी पोस्ट पर एक दो कमेंट आना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में वह समझता है कि शायद उसके लेखन में ही कोई कमी है और वह ग़लत जगह आ गया है। ऐसा समझकर वह निराश हो जाता है और हिंदी ब्लॉगिंग को अलविदा कह देता है या फिर हीन भावना का शिकार होकर रह जाता है।
हिंदी ब्लॉगिंग से इस पलायन को रोकने के लिए यह ज़रूरी है कि उन्हें सही सूरते हाल से आगाह किया जाए और उन्हें कुछ ऐसी बातें बताई जाएं जिन्हें अपनाने के बाद उनके ब्लॉग तक न केवल पाठक पहुंचें बल्कि वे वहां अपनी राय दर्ज करने पर भी मजबूर हो जाएं।
कोई भी ब्लॉगर अपनी रचना केवल इसीलिए सार्वजनिक करता है कि उसे ज़्यादा से ज़्यादा पाठक मिलें। पाठकों के सुझाव भी उसकी परफ़ॉर्मेंस को बेहतर बनाते हैं और उनकी सराहना भी उसका जोश बढ़ाती है। टिप्पणियों का कुल हासिल यही है। इस मक़सद के लिए अगर कोई समूह बन जाए तो उसमें भी कोई बुराई नहीं है लेकिन जब यह समूह किसी को उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध हो जाए तो वह  देर सवेर निंदा और जगहंसाई का पात्र बनकर रह जाता है।
‘आदमी लाभ के लिए ही काम करता है।‘
यह इंसान की प्रवृत्ति है।
अगर आप एक नए ब्लॉगर हैं और आप विदेश में रहते हैं या आप मोटी सैलरी वाली नौकरी या बड़े टर्न ओवर वाला बिज़नेस करते हैं तो आपको टिप्पणियों की क़िल्लत का सामना कभी नहीं करना पड़ेगा। वास्तविक जगत की तरह यहां ब्लॉग जगत में भी आपका स्वागत गर्मजोशी से किया जाएगा।
हिंदी ब्लॉगिंग में डिज़ायनर ब्लॉगिंग का श्रेय भी इसी वर्ग को जाता है।
लेकिन अगर आपमें ये ख़ूबियां नहीं हैं और आप कम आमदनी पर संतोष करते हुए अपनी मातृभूमि की सेवा कर रहे हैं तो आपके लिए इस मार्ग में कठिनाईयां कम नहीं हैं।
ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखना आपके लिए अनिवार्य है जिससे आपको भरपूर पाठक भी मिलेंगे और टिप्पणियां भी इतनी तो ज़रूर ही मिल जाएंगी जितनी कि आपको हिंदी ब्लॉगिंग में स्थापित करने के लिए ज़रूरी हैं।
इस सिलसिले में हमने एक लंबे समय तक डिज़ायनर ब्लॉगिंग का अध्ययन किया और गहन अनुसंधान के बाद कुछ ऐसे अचूक टोटके भी खोज निकाले हैं, जिन पर बड़े ब्लॉगर्स की ब्लॉगिंग फल फूल रही है और जिनका इस्तेमाल करने के बाद आपका नाम भी निश्चय ही बुलंदी पर चमकने लगेगा।
इस विषय पर हमारे अलावा दूसरे हिंदी ब्लॉगर्स ने भी काम किया है और हम चाहते हैं कि अपने शोध परिणाम को सामने लाने से पहले उन भाईयों की मेहनत को भी सामने लाया जाए ताकि उनकी जो मेहनत भुला दी गई है। उसका उचित सम्मान किया जा सके और उनकी पुरानी पोस्ट को भी हमारे ज़रिये कुछ नए पाठक मिल सकें।
इस क्रम में हम भाई युगल मेहरा जी का नाम लेना चाहेंगे। अंग्रेज़ी के ब्लॉग्स पर घूमते हुए उन्हें कुछ काम की बातें पसंद आईं तो उन्होंने एक पोस्ट के माध्यम से वे बातें हिंदी ब्लॉगर्स तक पहुंचाना अपना फ़र्ज़ समझा और उनकी आवाज़ को आप तक पहुंचाना अब हम ज़रूरी मानते हैं क्योंकि उनकी बातें सभी हिंदी ब्लॉगर्स के लिए फ़ायदेमंद हैं और हमारे द्वारा खोजे गए कुछ तरीक़े भी उनकी सूची में दर्ज हैं।
...तो क्लिक कीजिए युगल मेहरा जी की पोस्ट के शीर्षक पर 
ब्लॉग पोस्टिंग के 76 तरीक़े जो आपके ब्लॉग को चमका देंगे

इन तरीक़ों को इस्तेमाल करने के बाद आपके ब्लॉग की वैल्यू बढ़ना यक़ीनी है।
अभी हालात चाहे जो हों लेकिन आने वाला समय वह है जबकि हिंदी ब्लॉग केवल अपने मन की तसल्ली के लिए ही न लिखे जाएंगे बल्कि उनसे आमदनी भी होगी और दूसरी प्रॉपर्टी की तरह उन्हें ख़रीदा और बेचा भी जाएगा।
यह बात हिंदी ब्लॉगिंग के लिए अभी भले ही सपना हो लेकिन इंग्लिश ब्लॉगिंग में यह एक सामान्य व्यवहार है। निम्न लिंक पर जाकर आप हमारी बात की तस्दीक़ भी कर सकते हैं :

Sell Your Blog: How Much is Your Blog Worth?

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ग़ज़लगंगा.dg: हर लम्हा जो करीब था........

हर लम्हा जो करीब था वो बदगुमां मिला.
उजड़ा हुआ ख़ुलूस ही हरसू रवां मिला.

सर पे किसी भी साये की हसरत नहीं रही
मुझपे गिरा है टूट के जो आस्मां मिला.

उडती हुई सी खाक हूं अपना किसे कहूं
हर शख्स अपने आप में कोहे-गरां मिला.

बैठे हुए थे डालियों पे बेनवां परिन्द
उजड़े हुए से बाग़ में जब आशियां मिला.

वहमों-गुमां की धुंध में खोया हुआ हूं मैं
मुझको किसी यकीन का सूरज कहाँ मिला.

गौतम उसे सुकून की दौलत नसीब हो
जिसके करम से मुज्महिल तर्ज़े-बयां मिला.

---देवेंद्र गौतम

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अरे भई साधो......: मसखरे हीरो नहीं बन सकते

मसखरे हीरो नहीं बन सकते


यह एक ध्रुव सत्य है कि हीरो मसखरी कर सकता है लेकिन मसखरे हीरो नहीं बन सकते. ठीक उसी तरह जिन्हें राजनीति की समझ नहीं हो, जो स्थितियों को सही आकलन नहीं कर सकते वे तानाशाह नहीं बन सकते. अन्ना के आंदोलन के साथ मनमोहन सरकार ने इंदिरा गांधी के अंदाज में निपटने का प्रयास किया और अपनी भद पिटा ली. अन्ना को गिरफ़्तारी और जेल का भय दिखने की कोशिश की. उनकी टीम के लोगों को तिहाड़ जेल भेज कर उनके आंदोलन को नेत्रित्वविहीन करने की कोशिश की लेकिन देश भर में ऐसा जन सैलाब उमड़ा की सरकार के पसीने छूट गए. सात दिन की न्यायिक हिरासत की व्यवस्था की और शाम होते-होते उनको जेल से बाहर आने के लिए मिन्नतें करने लगे. एक-एक कर उनकी तमाम शर्तें स्वीकार करनी पड़ी. प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह तक अपरिपक्व बयान जारी कर आलोचना के पात्र बने. गृह मंत्री को अपनी यू टर्न लेना पड़ा. कांग्रेस के मुताबिक उसका विरोध उसकी शर्तों के आधार पर करना चाहिए. इसकी अनुमति लेकर. कांग्रेस की इस पीढ़ी को यह बात समझ में नहीं आती कि विरोध अनुमति लेकर नहीं किया जाता. अन्ना गांधीवादी और अहिंसक तथा शांतिपूर्ण आंदोलन के पक्षधर हैं इसलिए अनशन के लिए जगह देने की गुजारिश की वरना क्या माओवादियों ने कभी सरकार के पास आवेदन दिया कि वे रेल की पटरी उड़ना चाहते हैं कृपया इसकी अनुमति प्रदान की जाये. या वे पुलिस वाहन को लैंडमाइन विस्फोट कर उड़ना चाहते हैं इसकी अनुमति दी जाये. कानून के दायरे में रहकर यदि कोई शांतिपूर्ण विरोध करना चाहता है तो उसपर दमनचक्र चलाना या उसपर शर्तें लादना यह बतलाता है कि सरकार गांधी की भाषा सुनने को तैयार नहीं माओ की भाषा में बोलो तो कोई समस्या नहीं. जेपी आंदोलन के बाद बोध गया महंथ के विरुद्ध संघर्ष वाहिनी के अहिंसक वर्ग संघर्ष को भी इसी तरह कुचला गया था जिसका नतीजा बाद के वर्षों में हिंसक आंदोलनों में अप्रत्याशित वृद्धि के रूप में सामने आया और देश आजतक माओवादी और आतंकवादी हिंसा के रूप में झेल रहा है. मनमोहन सिंह जी की पूरी मंडली इस बात को नहीं समझ रही है कि इस मुद्दे को यदि अन्ना की जगह किसी हिंसक संगठन ने लपक लिया और उसे ऐसा जन समर्थन मिल गया तो क्या होगा. क्या दिल्ली पुलिस या भारतीय पुलिस उसे संभल सकेगी. दुर्भाग्य है कि देश की ऐसे अपरिपक्व और नासमझ लोगों के हाथ में है और अगले चुनाव तक इसे झेलना जनता की मजबूरी है. आज देश का बच्चा समझ रहा है कि किसके विदेशी बैंक खाते को बचाने के लिए देश की प्रतिष्ठा और एक एक गौरवपूर्ण पृष्ठभूमि वाली पार्टी की गरिमा को दावं पर लगाया जा रहा है. कहीं यह व्यक्तिगत निष्ठां पूरे संगठन की ताबूत में आखिरी कील न बन जाये. इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.


-----देवेंद्र गौतम


(ise bloggers meet ke liye bhi rakhiyega)
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Sansar: बस छोटा सा जीव हूँ मैँ

Sansar: बस छोटा सा जीव हूँ मैँ: "बस छोटा सा जीव हूँ मैँ छोटा सा पेट है मेरा थोड़ा सा ही खाता हूँ उसे भी ना पचा पाता हूँ।"
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corruption in india 

corruption in india



आज हमारे भारत देश में भ्रस्टाचार जिस तरह एक लाइलाज 
  बीमारी की  तरह फेल रहा है /उसमे सबसे ज्यादा जिम्मेदार 
      हमारे देश के नेता हैं /जो देश के सबसे ज्यादा जिम्मेदार
    नागरिक हैं, और जिम्मेदार पदों पर आसीन हैं /उन्हें ही जिम्मेदार 
    ठहराया  ज़ायेगा /आज जिस आन्दोलन की शरुआत अन्ना हजारेजी 
    ने की है ,वो कई साल पहले शुरू हो जाना चाहिए था /देश के हालात 
    इतने बिगड़ गए हैं ,की अब सुधार होना असंभव है  /सबसे पहले
   इन नेताओं के सुधार के लिए कुछ नियम बनाने होंगे / 
१.इनके लिए भी अवकाश प्राप्ति की एक उम्र निश्चित करनी पड़ेगी |
२.परिवारवाद ख़त्म करना होगा |
३.इनके लिए भी जिस तरह से सरकारी अधिकारिओं की हर साल गोपनीय रिपोर्ट लिखी जाती है.इसी तरह इनके किया हुए काम का लेखा जोखा रखने के लिया एक कमेटी बंनानी चाहिये |  उसकी रिपोर्ट के आधार पर उसे आगे के काम के लिया निउक्त करना चाहिये |
४.अपनी सम्पति का ब्योरा हर साल इनको देना  चाहिये.|
५.पढाई के लिये भी कम से कम स्नातक तो होना ही चाहिये
६.सहूलियतें उतनी  ही  दें जितनी जरुरत हों.सारे रिश्तेदार पालने की जिम्मेअदारी सरकार की थोड़ी है.
अगर देश के नेता सुधर   गए तो उनके आधीन सरकारी तंत्र अपने आप सुधर जाएगा |
अन्ना हम आपके साथ हैं आप ने बहुत अच्छा   मुद्दा  लेकर आन्दोलन सुरु किया है.भगवान् इन नेताओं को सदबुधि दे |  

                             साथी हाथ बढाना, भारत से भ्रस्टाचार को है मिटाना 
                                   एक अकेला थक जाएगा,मिलकर हाथ बढाना  
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Mind and body researches: ग्वारपाठा(घृतकुमारी) पेट तथा स्किन के लिए रामबाण

Mind and body researches: ग्वारपाठा(घृतकुमारी) पेट तथा स्किन के लिए रामबाण: "ग्वारपाठा या
घृतकुमारी(एलोवेरा) को
20gm. मात्रा मेँ लेकर
20ml. पानी के साथ
मिक्सी मेँ जूस बनाकर रख
लेँ। इसी तरह रोजाना ताजा
जूस बनाये..."
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चिठ्ठी: अन्ना दादा के नाम....


अन्ना दा,
सादर प्रणाम
दादा जी आपका गांव तो खुशहाल होगा, यहां दिल्ली में आपकी वजह से दम घुट रहा है। सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया है। हालत ये है कि 15 मिनट का रास्ता दो घंटे में भी पूरा हो जाए तो गनीमत है। दादा जी इस बार बच्चों का बहुत मन था कि वो 15 अगस्त को दिल्ली के लालकिला पहुंचे और वहां आजादी का जश्न मनाएं। इसके लिए उन्होंने बहुत तैयारी भी कर रखी थी। लेकिन सुबह से ही टीवी पर आप और आपके समर्थकों का हो हल्ला देखकर हिम्मत नहीं पड़ी कि घर से बाहर निकलें। पहले तो बच्चों को बहुत बुरा लगा, लेकिन कोई बात नहीं उनके लिए मैकडोनाल्ड से पिज्जा मंगवा लिया था, इसलिए उन्हें झंडारोहण न देख पाने का कोई मलाल नहीं है। हां एक बात और बच्चों से वादा किया था कि शाम को दिल्ली में अच्छी रोशनी होती है, वो देखने चलेंगे। लेकिन आजादी वाले दिन आपने रात को घर की बत्ती बंद रखने की बात कह कर ये मुश्किल भी आसान कर दी। बच्चों को बताया कि अन्ना दादा ने रात में पूरे घंटे भर बिजली बंद करने को कहा है, ऐसे में दिल्ली में कुछ भी हो सकता है। बच्चे डर गए और उन्होंने खुद ही मना कर दिया घर से बाहर जाने के लिए।  
दादा आप जानते हैं कि स्वतंत्रता दिवस देश का राष्ट्रीय पर्व है। आज के दिन और कुछ हो ना हो, लेकिन इस दिन हम शहीदों को याद तो कर लेते हैं, और उन्हें सम्मान देते हैं। पर आपने शहीदों का ये हक भी छीन लिया। कल पूरे दिन लोग टीवी पर आपको ही तरह तरह की मुद्रा में देखते रहे। आप तो जानते ही हैं कि आजकल टीवी पर वैसे भी शहीदों के लिए कोई समय नहीं रह गया है। एक मौका था, जब शहीदों के बारे में बच्चे कुछ जान पाते तो वो मौका भी बच्चों से आपने छीन लिया। दादा देश आपको आपको गांधी कह रहा है, इसलिए आपकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ गई है, क्योंकि अगर आपने कुछ भी ऐसा किया, जो नहीं होना चाहिए तो आपका कुछ नहीं होगा, हां गांधी के बारे में बच्चों की गलत राय बनेगी। पिछले दिनों आपने फांसी देने की बात की, आपने कहा कि गांधी के रास्ते बात ना बने तो शिवाजी का रास्ता अपनाना होगा। अरे दादा आपको तो पता है कि गांधी जी कहते थे कि कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा सामने कर दो। लेकिन आप तो कुछ भी बोल रहे हैं। इससे बच्चों में गलत संदेश जा रहा है। गांधी हर हाल में अंहिसा को मानने वाले थे। दादा कई बार आप भाषा की मर्यादा भी तोडते हैं, तब बच्चे पूछते हैं कि गांधी जी भी ऐसे ही बोला करते थे, तो मैं कोई जवाब नहीं दे पाता हूं।
दादा, आपका जीवन बहुत कीमती है, पूरा देश आपको बहुत प्यार करता है। सभी लोग चाहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार ना रहे, लोगों को उनका हक मिले। हर आदमी का काम बिना रिश्वत और जल्दी हो। जरा सोचिए दादा कि अगर ऐसा हो जाए तो लोगों का जीवन कितना आसान हो जाएगा। लेकिन दादा जी अब मैं कुछ बात आपको बताना चाहता हूं, पर आप अपनी उम्र बताकर ये मत कहिएगा कि मुझे कुछ मत बताओ, मै सब जानता हूं। अन्ना दा सच ये है कि जब तक आप फौज में थे, तो आप  सामान पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाते रहे, वहां से आए तो गांव में छोटे से मंदिर में रह कर गांव को दुरुस्त करने में लग गए। कई बार आपका आमना-सामना महाराष्ट्र की सरकार से हो चुका है। भूख हड़ताल तो आपकी एक तरह से आदत हो गई है। दादा आप नाराज मत होना, सच कहूं तो आप आज की दुनियादारी को आप नहीं समझ पा रहे हैं। अब हम इतना भ्रष्ट हो चुके हैं कि सुधरने की गुंजाइश नहीं रह गई है।
अन्ना दादा कडुवा सच ये है कि अगर रिश्वत बंद हो जाए, तो सरकारी नौकरी करने के लिए कोई तैयार ही नहीं होगा। प्राईवेट सेक्टर में मैनेजमेंट किए बच्चों को जो वेतन मिलता है, उससे कम वेतन आईएएस, आईपीएस को मिलता है। अन्ना दा आपको तो पता होगा कि ज्यादातर राज्यों में जिले के कलक्टर और पुलिस कप्तान का पद बिकता है। दादा जब कलक्टर और कप्तान की ये हालत है तो और पदों के बारे में क्या कहा जाए। आज बाबू की तनख्वाह से दस गुना उसकी ऊपर की कमाई है। बडे शहरों में अगर अफसर और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हो जाएं तो उसका घर चलाना मुश्किल हो जाएगा।
दादा अंदर की बात तो ये है कि भ्रष्टाचारियों को फांसी देने की आपकी मांग पूरी हो जाए तो, कम से कम 10 हजार जल्लादों की भर्ती तत्काल करनी होगी, और इन्हें देश भर मैं तैनात करना होगा। इसके बाद हर जिले में कम से कम दो सौ लोगों को अगर रोजाना फांसी पर लटकाया जाए, और ये प्रक्रिया साल भर भी चलती रहे, फिर भी हम देश को सौ फीसदी भ्रष्टाचारियों से मुक्त नहीं कर सकेंगे। दादा ऱिश्वतखोरों की पैठ बहुत गहरी है। जिस देश में मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए बाबू को पैसे देने पडें, जिस मुल्क में शहीदों के लिए खरीदे जाने वाले ताबूत में दलाली ली जाती हो, जिस मुल्क में सैनिकों को घटिया किस्म का बुलेट प्रुफ जैकेट देकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता हो, जिस देश में डाक्टर चोरी से मरीज की किडनी निकाल लेते हों उस देश को ईमानदार बना देना इतना आसान है क्या।
दादा मैं तो जानता हूं कि आपने कभी ईमानदारी से समझौता नहीं किया। आप देश में एक बार फिर रामराज्य की कल्पना कर रहे हैं। जब आप किसी आंदोलन का बिगुल फूंक देते  हैं तो पीछे नहीं हटते। लेकिन दादा ये आंदोलन कामयाब हो गया तो मेरे साथ ही करोडों लोगों को बहुत मुश्किल होगी। मेरा तो बडा से बडा काम इतनी आसानी से हो जाता है कि पता ही नहीं चलता। सब लोग महीनों पहले ट्रेन में सफर करने के लिए रिजर्वेशन कराते हैं, मुझे तो टीटीई को एक फोन भर करना होता है, उसके बाद सारा इंतजाम वो खुद करता है। हां थोडा पैसा ज्यादा देना होता है। बिजली का बिल जमा करने के लिए मैं आज तक कभी लाइन में नहीं लगा। बिजली विभाग का आदमी खुद ही हर महीने आकर चेक ले जाता है। बस थोडे से पैसे देता हूं, मेरा बिल भी दूसरों के मुकाबले बहुत कम आता है। सरकारी अस्पताल में कितनी भी भीड़ हो, मुझे डाक्टर सबसे पहले देखते हैं, और दवा भी वहीं से मिल जाती है,जबकि वही दवा दूसरे लोग बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। दादा टेलीफोन विभाग से भी मुझे कोई दिक्कत नहीं होती है। वो बेचारे थोडे से पैसे लेते हैं, मेरा बिल सिर्फ महीने का किराया भर आता है।
अन्ना दा मैं जिस भी सरकारी महकमें में जाता हूं, लोग मेरी बहुत इज्जत करते हैं। इसके लिए मुझे ज्यादा कुछ नहीं करना पडता। बस थोडे से पैसे अफसरों से लेकर कर्मचारी तक को देता हूं, और दीपावली पर कुछ भेंट कर आता  हूं। लेकिन काम तो कोई नहीं रुकता। आज हालत ये है कि किसी का कोई काम रुकता है तो वह भी मेरे पास आता है। मेरे फोन करने भर से लोगों की मदद हो जाती है, पर दादा अगर रिश्वतखोरी बंद हो गई तो हमारा क्या होगा। मुझे तो अपना भी कोई काम करने की आदत ही नहीं है। हमें ही नहीं हमारे जैसे करोडों लोग हैं, जो अपना काम भी खुद से नहीं कर पाते।
हां दादा आज टीवी पर देखा कि पुलिस ने आपको गिरफ्तार कर लिया और अनशन करने ही नहीं दिया। पहले तो थोडा गुस्सा आया था दिल्ली पुलिस पर, फिर लगा कि ठीक है। दिल्ली में शांति तो रहेगी, रास्ता चलना थोडा आसान रहेगा। बेवजह का शोर शराबा तो बंद रहेगा।
दादा आप जनलोकपाल के चक्कर में ना पडें। आप पुराने जमाने की सोचते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 121 करोड की आवादी वाले देश को किसी भी कानून में नहीं बांधा जा सकता। ईमानदारी के लिए लोगों में नैतिकता की जरूरत है और आज देश में कोई नैतिक नहीं रह गया। दादा आप कहते हैं कि अगर जनलोकपाल बन गया तो आधें मंत्री जेल में होगे, ये सुनकर आप हैरत में पड जाएंगे कि अगर ईमानदारी से बेईमानों की पहचना हो गई तो सेना के आधे से ज्यादा बडे अफसरों को जेल भेजना होगा। आज जितनी भ्रष्ट हमारी सेना है, उसका किसी महकमें से मुकाबला नहीं है। दादा आपने लोगों से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आंदोलन में शामिल होने को कहा था। सरकार कर्मचारियों ने तो छुट्टी नहीं ली, सब काम पर हैं, पर घर की बाई जरूर छुट्टी चली गई। इसलिए आपको लेकर घर में भी नाराजगी है।
चलिए दादा अब पत्र बंद करते हैं, आफिस भी जाना है। हां चलते चलते आपको स्व. शरद जोशी जी की दो लाइने पढाना चाहता हूं। वो कहते हैं कि सरकार किसी काम के लिए ठोस कदम उठाती है, कदम चूंकि ठोस होते हैं, इसलिए उठ नहीं पाते। और हां देश की बर्बादी के सिर्फ दो कारण है, ना आप कुछ कर सकते हैं, ना मैं कुछ कर सकता हूं। होता वही है जो होता रहता है। दादा प्रणाम। जेल से बाहर आइये तो मुलाकात होगी।

महेन्द्र श्रीवास्तव
 

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अश्लील खेल ले गया जेल, रमेश आडवाणी को Under The Blanket

क्योंकि हवा में उड़ते प्लेन में वह अपने पास की सीट पर सोई हुई औरत के साथ अश्लील हरकतें करने लगे थे। 

कोर्ट ने उन्हें जेल की सज़ा सुनाई है।



कितने साल की ?
यह जानने के लिए देखिए
यह लिंक 

Indian in US jailed for sexual abuse on plane

इससे यही सबक़ मिलता है कि नारी को सम्मान दोगे तो अपना भी सम्मान बचा रहेगा।

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नेकी को इल्ज़ाम न दो

इस्लाम में न कट्टरता कल थी और न ही आज है
एक नेक औरत अपने एक ही पति के सामने समर्पण करती है, हरेक के सामने नहीं और अगर कोई दूसरा पुरूष उस पर सवार होने की कोशिश करता है तो वह मरने-मारने पर उतारू हो जाती है। वह जिसे मारती है दुनिया उस मरने वाले पर लानत करती है और उस औरत की नेकी और बहादुरी के गुण गाती है। इसे उस औरत की कट्टरता नहीं कहा जाता बल्कि उसे अपने एक पति के प्रति वफ़ादार माना जाता है। दूसरी तरफ़ हमारे समाज में ऐसी भी औरतें पाई जाती हैं कि वे ज़रा से लालच में बहुतों के साथ नाजायज़ संबंध बनाये रखती हैं। उन औरतों को हमारा समाज, बेवफ़ा और वेश्या कहता है। वे किसी को भी अपने शरीर से आनंद लेने देती हैं, उनके इस अमल को हमारे समाज में कोई भी ‘उदारता‘ का नाम नहीं देता और न ही उसे कोई महानता का खि़ताब देता है।

अपने सच्चे स्वामी को पहचानिए
ठीक ऐसे ही इस सारी सृष्टि का और हरेक नर-नारी का सच्चा स्वामी केवल एक प्रभु पालनहार है, उसी का आदेश माननीय है, केवल वही एक पूजनीय है। जो कोई उसके आदेश के विपरीत आदेश दे तो वह आदेश ठोकर मारने के लायक़ है। उस सच्चे स्वामी के प्रति वफ़ादारी और प्रतिबद्धता का तक़ाज़ा यही है। अब चाहे इसमें कोई बखेड़ा ही क्यों न खड़ा हो जाय।

बग़ावत एक भयानक जुर्म है
जो लोग ज़रा से लालच में आकर उस सच्चे मालिक के हुक्म को भुला देते हैं, वे बग़ावत और जुर्म के रास्ते पर निकल जाते हैं, दौलत समेटकर, ब्याज लेकर ऐश करते हैं, अपनी सुविधा की ख़ातिर कन्या भ्रूण को पेट में ही मार डालते हैं। वे सभी अपने मालिक के बाग़ी हैं, वेश्या से भी बदतर हैं।
पहले कभी औरतें अपने अंग की झलक भी न देती थीं लेकिन आज ज़माना वह आ गया है कि जब बेटियां सबके सामने चुम्बन दे रही हैं और बाप उनकी ‘कला‘ की तारीफ़ कर रहा है। आज लोगों की समझ उलट गई है। ज़्यादा लोग ईश्वर के प्रति अपनी वफ़ादारी खो चुके हैं।

खुश्बू आ नहीं सकती कभी काग़ज़ के फूलों से 
अपनी आत्मा पर से आत्मग्लानि का बोझ हटाने के लिए उन्होंने खुद को सुधारने के बजाय खुद को उदार और वफ़ादारों को कट्टर कहना शुरू कर दिया है। लेकिन वफ़ादार कभी इल्ज़ामों से नहीं डरा करते। उनकी आत्मा सच्ची होती है। नेक औरतें अल्प संख्या में हों और वेश्याएं बहुत बड़ी तादाद में, तब भी नैतिकता का पैमाना नहीं बदल सकता। नैतिकता के पैमाने को संख्या बल से नहीं बदला जा सकता।
दुनिया भर की मीडिया उन देशों के हाथ में है जहां वेश्या को ‘सेक्स वर्कर‘ कहकर सम्मानित किया जाता है, जहां समलैंगिक संबंध आम हैं, जहां नंगों के बाक़ायदा क्लब हैं। सही-ग़लत की तमीज़ खो चुके ये लोग दो-दो विश्वयुद्धों में करोड़ों मासूम लोगों को मार चुके हैं और आज भी तेल आदि प्राकृतिक संपदा के लालच में जहां चाहे वहां बम बरसाते हुए घूम रहे हैं। वास्तव में यही आतंकवादी हैं। जो यह सच्चाई नहीं जानता, वह कुछ भी नहीं जानता।

वफ़ादारी
आप मीडिया को बुनियाद बनाकर मुसलमानों पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं। यही पश्चिमी मीडिया भारत के नंगे-भूखों की और सपेरों की तस्वीरें छापकर विश्व को आज तक यही दिखाता आया है कि भारत नंगे-भूखों और सपेरों का देश है, लेकिन क्या वास्तव में यह सच है ?
मीडिया अपने आक़ाओं के स्वार्थों के लिए काम करती आई है और आज नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया का आक़ा मुसलमान नहीं है। जो उसके आक़ा हैं, उन्हें मुसलमान खटकते हैं, इसीलिए वे उसकी छवि विकृत कर देना चाहते हैं। आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए।
ग़लतियां मुसलमानों की भी हैं। वे सब के सब सही नहीं हैं लेकिन दुनिया में या इस देश के सारे फ़सादों के पीछे केवल मुसलमान ही नहीं हैं। विदेशों में खरबों डालर जिन ग़द्दार भारतीयों का है, उनमें मुश्किल से ही कोई मुसलमान होगा। वे सभी आज भी देश में सम्मान और शान से जी रहे हैं। उनके खि़लाफ़ न आज तक कुछ हुआ है और न ही आगे होगा। उनके नाम आज तक किसी मीडिया में नहीं छपे और न ही छपेंगे क्योंकि मीडिया आज उन्हीं का तो गुलाम है।

सच की क़ीमत है झूठ का त्याग
सच को पहचानिए ताकि आप उसे अपना सकें और अपना उद्धार कर सकें।
तंगनज़री से आप इल्ज़ाम तो लगा सकते हैं और मुसलमानों को थोड़ा-बहुत बदनाम करके, उसे अपने से नीच और तुच्छ समझकर आप अपने अहं को भी संतुष्ट कर सकते हैं लेकिन तब आप सत्य को उपलब्ध न हो सकेंगे।
अगर आपको झूठ चाहिए तो आपको कुछ करने की ज़रूरत नहीं है लेकिन अगर आपको जीवन का मक़सद और उसे पाने का विधि-विधान चाहिए, ऐसा विधान जो कि वास्तव में ही सनातन है, जिसे आप अज्ञात पूर्व में खो बैठे हैं तब आपको निष्पक्ष होकर न्यायपूर्वक सोचना होगा कि वफ़ादार नेक नर-नारियों को कट्टरता का इल्ज़ाम देना ठीक नहीं है बल्कि उनसे वफ़ादारी का तौर-तरीक़ा सीखना लाज़िमी है।
धन्यवाद! 
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टिप्पणी को बोल्ड और इटालिक दिखाने के लिए कोड Hindi Blogging Guide (25)

टिप्पणी में किसी बात पर विशेष ध्यान दिलाने के लिए उसे बोल्ड यानि कि मोटा भी किया जा सकता है। इसके लिए एक एचटीएमएल कोड की ज़रूरत पड़ती है। 
इस कोड का इस्तेमाल कैसे किया जाता है ?, 
इसे आप नीचे के उदाहरण से समझ सकते हैं।

<b>वाक्य</b>

जिस वाक्य को बोल्ड दिखाना चाहें तो उसके शुरू और बाद में विशेष चिन्हों के साथ अंग्रेज़ी का अक्षर b लिख दीजिए। टिप्पणी का प्रीव्यू लेकर पहले चेक कर लीजिए और संतुष्ट होने के बाद उसे पब्लिश कर दीजिए। कोड छिप जाएगा और अपनी टिप्पणी के जिस वाक्य को आप बोल्ड दिखाना चाहते हैं वह बोल्ड नज़र आएगा।
इसी तरह आप अपने वाक्य को इटालिक यानि तिरछा भी दिखा सकते हैं। इसके लिए आपको अंग्रज़ी में b के बजाय i लिखना होगा।
देखिए -
<i>वाक्य</i>

अगर आप किसी वाक्य को इटालिक करने के साथ साथ उसे बोल्ड भी करना चाहते हैं तो आपको एचटीएमएल के दो कोड एक साथ इस्तेमाल करने होंगे और उनके इस्तेमाल का तरीक़ा यह होगा :

 <b><i>वाक्य</i></b>
इस कोड विधि का इस्तेमाल करके आप अपनी बात को ज़्यादा बेहतर तरीक़े से कह सकते हैं।
अपनी टिप्पणी को आकर्षक बनाने के लिए आप कुछ और कोड भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हरेक चिन्ह के सामने उसका कोड लिखा हुआ है। आप जो कोड अपनी टिप्पणी में लिखेंगे, पब्लिश होने के बाद वही चिन्ह प्रकट हो जाएगा।
है न मज़ेदार ?
इन्हें आज़माइये और अपनी टिप्पणी को दूसरी टिप्पणियों से ज़्यादा आकर्षक बनाइये ! 

यही सब जानकारी आप इस वीडियो के ज़रिये भी हासिल कर सकते हैं  


और देखिए हिंदी ब्लॉगिंग गाइड की एक और यादगार पोस्ट

डिज़ायनर ब्लॉगिंग के ज़रिये अपने ब्लॉग को सुपर हिट बनाईये Hindi Blogging Guide (26)

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देश तुम्हारे साथ है अन्ना



भ्रष्टाचार पर तीर की भाँति,
अन्ना आँधी चल निकली है।
भ्रष्टाचारियों!! सावधान अब,
जनता भी जगने चली है।

लोकपाल बिल हो मंजूर,
जनता की भी भागेदारी हो।
सख्त नियम और सख्त कदम हो,
भ्रष्टों की न साझेदारी हो।

हाथ से हाथ जुड़ते ही रहे,
देशहित में सब साथ हो चलें।
यह आँधी बस कामयाब हो,
हम अन्ना के हाथ बन चलें।

देशभक्ति के भाव को दिल में,
फिर से अब जगाना होगा।
गोरों को गाँधी ने खदेड़ा,
हमे अपनो को भगाना होगा।

अन्ना ने जो दी है ज्वाला,
इसे अग्नि बनाना होगा।
अन्ना के संग सर उठाकर,
भ्रटाचार जलाना होगा।

क्रांति की अगणित मशालें,
अब हमारे हाथ है अन्ना।
तुम अकेले नहीं हो यहाँ,
देश तुम्हारे साथ है अन्ना।

भारत माता की जय।



इस कविता का लिंक
मेरा ब्लॉग-मेरी कविता
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रक्षा बंधन

रक्षा बंधन

सभी ब्लोगर भाइयों ,बहनों को रक्षाबंधन की 


शुभकामनाये

        
रक्षा बंधन 


  
 भाई बहन के पवित्र प्यार को याद दिलाने आता हैये प्यारा त्यौहार जिससे दूर होकर भी भाई बहन मिल लें ,याद कर लें साल में एक बार                                                                                       रक्षा के वचन और स्नेह के बंधन का प्रतीक है रक्षाबंधन                                           भाई बहन में प्यार और विस्वास रहे सारा जीवन

  
एक दूसरे के दुःख -सुख में काम आयें अपने रिश्ते का मान बढ़ाएं 
  नई पीढ़ी को भी इस त्यौहार का महत्व सीखाएं ,त्यौहार का अर्थ समझाएं 
रिश्तों को स्वार्थ की आँखों से नहीं दिल में बसे प्यार की गहराई से अपनाइए   
खून का रिश्ता टूट नहीं सकता जरुरत पढ़ने पर अपना फर्ज निभाइए   



 कडुवे बोल ,किसी को नीचा दिखानेवाले बोल नहीं,
मीठा बोलिए रिश्ते का मान करिए 
 लालच ,स्वार्थ .जलन जैसी बुराइयों के कारण 
भाई बहन के रिश्ते को  मत तोडिये 
भारतीय संस्कृति इसी लिए तो अच्छी मानी जाती है 
क्योंकि ये हर रिश्ते को प्यार के रिश्ते से बांधती है  
त्योहारों की उमंग रिश्तों को और पास ले आती है  

दिलों में  प्यार और उल्लास जगाती है 
टूटे रिश्ते भी इस उमंग में जुड़ जाते हैं   
दिलों को एक दूसरेकेकरीब ले आते हैं  
 भारतीय त्योहारों और भारतीय संस्कृति का निराला है अंदाज  
हम भारतियों को होना चाहिए उस पर दिलों जान से नाज 

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