बहाना है उपवास, मंजिल पीएम निवास....

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  • Saturday, September 17, 2011
  • by
  • महेन्द्र श्रीवास्तव
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  • सोचा तो था कि कुछ दिन राजनीति से दूर रह कर बाकी बातें करुंगा। वैसे भी मेरा मानना है कि आज देश में राजनीति जिस स्तर पर पहुंच गई है, उसकी चर्चा सिर्फ पैसेंजर ट्रेन की थर्ड क्लास बोगी में मूंगफली खाते हुए टाइम पास करने भर के लिए ही की जानी चाहिए। इसके लिए किसी को भी अपना कीमती वक्त जाया करने की बिल्कुल जरूरत नही है। लेकिन आज जरूरी हो गया है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन दिन के उपवास पर दो चार बातें कर ली जाएं।
    मोदी के उपवास पर आज सियासी गलियारे में तरह तरह की चर्चा हो रही है। आमतौर पर मोदी जब भी मुंह खोलते हैं तो आग उगलते हैं, पर आज उपवास मंच से मोदी बहुत संयम में दिखे। जबकि वो चाहते तो केंद्र सरकार को फिर कटघरे में खड़ा कर सकते थे, क्योंकि बिना उनकी सलाह के गुजरात में लोकायुक्त की तैनाती का मुद्दा आज भी उन्हें कचोट रहा है। अपने व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग मोदी ने पूरे भाषण के दौरान सिर्फ विकास की बात की। पहली दफा उनके मुंह से ये भी सुना गया कि जब तक गुजरात में समाज के हर तबके का विकास नहीं होगा, तब तक विकास की बात करना बेमानी है।
    मतलब साफ है, मोदी अपने ऊपर लगे उस दाग को धोना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री रहने के दौरान गुजरात में अल्पसंख्यकों को कत्लेआम किया गया। बडा सवाल ये है कि आखिर कौन सी मजबूरी है, जिससे मोदी को ये दाग धोने की जरूरत पड़ रही है। इस दाग की वजह से ही तो वो गुजरात में राज कर रहे हैं। सच ये है कि मोदी अब गुजरात के बजाए देश की बागडोर संभालने की तैयारी कर रहे हैं। वो जानते हैं कि अगर उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचना है तो अपने ऊपर लगे इस दाग को धोना ही पडेगा। आपको याद होगा कि बिहार के चुनाव के दौरान वहां के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने बीजेपी आलाकमान को साफ कर दिया था कि नरेन्द्र मोदी को प्रचार के लिए बिहार ना आने दें। चलिए नीतिश की पार्टी अलग है, उनका नजरिया अलग हो सकता है, लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को साफ कर दिया कि वो विकास के नाम पर चुनाव लडेगें और अगर यहां मोदी को प्रचार के लिए भेजा गया तो इसका जनता में गलत संदेश जाएगा और पार्टी को नुकसान होगा। देश के बाकी हिस्सों से अलग थलग पड़ रहे मोदी के लिए जरूरी हो गया है कि वो इस दाग को साफ करें और इसके लिए उन्हें खुद ही पहल करनी पडेगी।
    मेरा मानना है कि मोदी के लिए एक अच्छा मौका था कि वो उपवास के मंच से अल्पसंख्यक समुदाय से माफी मांग लेते और उस घटना की जिम्मेदारी लेते। शायद इससे उनका पाप कुछ जरूर कम हो जाता। लेकिन उन्होंने इस दंगे की तुलना गुजरात में आए भूकंप से करके गमगीन अल्पसंख्यक परिवारों के घाव को फिर हरा कर दिया। ये सच है कि अभी तक इस दंगे में सीधे सीधे कहीं मोदी का नाम सामने नहीं आया है, लेकिन उतना ही सच ये भी है कि कहीं ना कहीं इस दंगे में मोदी सरकार की भूमिका रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उसी समय मोदी को राजधर्म का पालन करने की नसीहत दी थी।

    चलिए हम मानते हैं कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो हम उसे भूला नहीं कहते। अगर मोदी अपना दाग धोने और आगे से सबको साथ लेकर चलने की बात कर रहे हैं तो उन्हें मौका देने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन कांग्रेस को क्या हो गया है। इतनी तीखी प्रतिक्रिया क्यों आ रही है। गुजरात के एक कांग्रेसी नेता ने कहा कि अगर तीन दिन उपवास करने से मोदी का दाग धुल सकता है तो फिर मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब भी तीन दिन उपवास करके अपना दाग साफ कर सकता है। कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता ने कहा कि उपवास करके गोडसे कभी गांधी नहीं बन सकता, जबकि कांग्रेस के मित्रों आप को खुश होने की जरूरत नहीं है, सच ये है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस तरह कांग्रेस नेताओं की अगुवाई में देश भर में खुलेआम सिखों का कत्लेआम किया गया, ये दाग उतना गहरा है कि कभी साफ नहीं हो सकता।
    एक ओर देश में सिखों का कत्लेआम हो रहा था, उसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी का बेतुका बयान आया कि जब बरगद का पेड़ गिरता है तो छोटे छोटे पौधे नीचे दब ही जाते हैं। जो नेता सड़कों पर निकल कर लोगों की हत्या करा रहे थे, उन्हें कांग्रेस ने काफी समय तक मंत्री बनाए रखा। जनता का दबाव ना होता तो कांग्रेस ने तो पिछले चुनाव में भी  हत्याकांड के आरोपियों को उम्मीदवार बनाने के लिए टिकट दे दिया था, जिसे बाद में वापस लेना पडा। पार्टी का जनाधार खिसकता देख 23 साल बाद पार्टी ने सिखों से सार्वजनिक रुप से माफी मांगी, लेकिन गांधी परिवार ने आज तक माफी नहीं मांगी।

    इस पूरे घटनाक्रम में अगर मीडिया की चर्चा ना की जाए तो बेमानी होगी। दिल्ली से पत्रकारों का पूरा हुजूम इस समय अहमदाबाद में जमा है। हालांकि लोगों को बहुत मुश्किल हो रही है। उसकी वजह गुजरात का ड्राई स्टेट होना है, वहां शाम को पीने पिलाने का इंतजाम हो तो जाता है, पर जरा मुश्किल होती है। देख रहा हूं कि आज भी सभी लोग वही गुलबर्ग सोसाइटी, उसी पुराने दंगे का अनुभव सुना रहे हैं। एक छोटी सी बात सुनाता हूं, इंदिरा जी की हत्या के बाद बिग बी अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव दिग्गज नेता स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ लड़ रहे थे। अमिताभ अपनी हर सभा में एक ही बात दुहराते थे कि 31 अक्टूबर मुझे नहीं भूलता, उस दिन मैने मां इंदिरा की हत्या देखी और सिर में कफन बांध कर राजनीति में कूद पडा। बहुगुणा जी अपनी सभा में इसका जवाब कुछ इस अंदाज में देते थे, वो कभी अमिताभ का नाम नहीं लेते थे।  कहते थे, कोई लड़का मुंबई से यहां आया है, उसने एक हत्या देख ली है, और राजनीति में कूद पडा़, भाई समझाओ उसे, एक हत्या देखकर राजनीति में कूद पडा, कहीं सौ पचास हत्या देख कर कुंए में ना कूद जाए। कुछ ऐसा ही माहौल दो दिन से गुजरात का है, वहां ज्यादातर मीडियाकर्मियों ने गुजरात का दंगा देख लिया है और वो उससे बाहर निकलने को तैयार ही नहीं हैं। सच ये है कि जिस गुजरात की तस्वीर पेश की जा रही है, वह असली तस्वीर नहीं है, ये वो तस्वीर है जो समय समय पर सियासियों द्वारा क्रिएट की जाती है।

    हां चलते चलते एक लाइन शंकर सिंह बाधेला के लिए भी जरूर कहना चाहूंगा। सब जानते हैं कि बाधेला जी मुख्यमंत्री मोदी के राजनीतिक गुरु हैं। मैं तो जानता था कि जब कोई शिष्य आगे बढता है तो गुरु का मान बढता है। कलयुग में ही ऐसे गुरु हो सकते हैं कि अगर कोई आत्मशुद्दि के लिए उपवास करे, तो उसके खिलाफ उपवास करने गुरु खुद सडक पर बैठ जाए।

    7 comments:

    SANDEEP PANWAR said...

    मोदी को देख वघेला भी भूखा रहेगा,
    वो तो शुक्र करो कि इसने अन्ना की नकल नहीं की वर्ना।

    Rajesh Kumari said...

    naatkiye raajneeti chal rahi hai.ek taraf to gareeb log bhookhe mar rahe hain doosri taraf bhookh hadtaal ki tyaari par kitni raashi barbaad ki ja rahi hai ye sab naatak nahi to aur kya hai.

    रविकर said...

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||

    आपको हमारी ओर से

    सादर बधाई ||

    रविकर said...

    संघ-नाव पर बैठकर, मोदी और बघेल |
    सालों शाखा में गए, खेले संघी खेल |

    खेले संघी खेल, 'कुरसिया' लगे खेलने |
    कांगरेस - पापड़ा , बघेला बड़े बेलने |

    करत नजर-अंदाज, 'माम' नाराज दाँव-पर |
    सी एम् पद की दाल, गले न संघ नाव पर ||

    रविकर said...

    अन्ना-बाबा सावधान |
    सीधे-सीधे मान |
    सरकार को एक नया दाँव मिला है |
    आपके अनशन से
    ना कोई गिला है --
    तुम करोगे रामलीला पर अनशन -
    तो सरकार भी करेगी काउंटर अनशन ||

    रेखा said...

    यही तो राजनीति है .....

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    कहीं पो नज़र है, कहीं पे निशाना!
    आपने बहुत सही पहचाना!

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