बहाना है उपवास, मंजिल पीएम निवास....



सोचा तो था कि कुछ दिन राजनीति से दूर रह कर बाकी बातें करुंगा। वैसे भी मेरा मानना है कि आज देश में राजनीति जिस स्तर पर पहुंच गई है, उसकी चर्चा सिर्फ पैसेंजर ट्रेन की थर्ड क्लास बोगी में मूंगफली खाते हुए टाइम पास करने भर के लिए ही की जानी चाहिए। इसके लिए किसी को भी अपना कीमती वक्त जाया करने की बिल्कुल जरूरत नही है। लेकिन आज जरूरी हो गया है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन दिन के उपवास पर दो चार बातें कर ली जाएं।
मोदी के उपवास पर आज सियासी गलियारे में तरह तरह की चर्चा हो रही है। आमतौर पर मोदी जब भी मुंह खोलते हैं तो आग उगलते हैं, पर आज उपवास मंच से मोदी बहुत संयम में दिखे। जबकि वो चाहते तो केंद्र सरकार को फिर कटघरे में खड़ा कर सकते थे, क्योंकि बिना उनकी सलाह के गुजरात में लोकायुक्त की तैनाती का मुद्दा आज भी उन्हें कचोट रहा है। अपने व्यक्तित्व से बिल्कुल अलग मोदी ने पूरे भाषण के दौरान सिर्फ विकास की बात की। पहली दफा उनके मुंह से ये भी सुना गया कि जब तक गुजरात में समाज के हर तबके का विकास नहीं होगा, तब तक विकास की बात करना बेमानी है।
मतलब साफ है, मोदी अपने ऊपर लगे उस दाग को धोना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री रहने के दौरान गुजरात में अल्पसंख्यकों को कत्लेआम किया गया। बडा सवाल ये है कि आखिर कौन सी मजबूरी है, जिससे मोदी को ये दाग धोने की जरूरत पड़ रही है। इस दाग की वजह से ही तो वो गुजरात में राज कर रहे हैं। सच ये है कि मोदी अब गुजरात के बजाए देश की बागडोर संभालने की तैयारी कर रहे हैं। वो जानते हैं कि अगर उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचना है तो अपने ऊपर लगे इस दाग को धोना ही पडेगा। आपको याद होगा कि बिहार के चुनाव के दौरान वहां के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने बीजेपी आलाकमान को साफ कर दिया था कि नरेन्द्र मोदी को प्रचार के लिए बिहार ना आने दें। चलिए नीतिश की पार्टी अलग है, उनका नजरिया अलग हो सकता है, लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को साफ कर दिया कि वो विकास के नाम पर चुनाव लडेगें और अगर यहां मोदी को प्रचार के लिए भेजा गया तो इसका जनता में गलत संदेश जाएगा और पार्टी को नुकसान होगा। देश के बाकी हिस्सों से अलग थलग पड़ रहे मोदी के लिए जरूरी हो गया है कि वो इस दाग को साफ करें और इसके लिए उन्हें खुद ही पहल करनी पडेगी।
मेरा मानना है कि मोदी के लिए एक अच्छा मौका था कि वो उपवास के मंच से अल्पसंख्यक समुदाय से माफी मांग लेते और उस घटना की जिम्मेदारी लेते। शायद इससे उनका पाप कुछ जरूर कम हो जाता। लेकिन उन्होंने इस दंगे की तुलना गुजरात में आए भूकंप से करके गमगीन अल्पसंख्यक परिवारों के घाव को फिर हरा कर दिया। ये सच है कि अभी तक इस दंगे में सीधे सीधे कहीं मोदी का नाम सामने नहीं आया है, लेकिन उतना ही सच ये भी है कि कहीं ना कहीं इस दंगे में मोदी सरकार की भूमिका रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उसी समय मोदी को राजधर्म का पालन करने की नसीहत दी थी।

चलिए हम मानते हैं कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो हम उसे भूला नहीं कहते। अगर मोदी अपना दाग धोने और आगे से सबको साथ लेकर चलने की बात कर रहे हैं तो उन्हें मौका देने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन कांग्रेस को क्या हो गया है। इतनी तीखी प्रतिक्रिया क्यों आ रही है। गुजरात के एक कांग्रेसी नेता ने कहा कि अगर तीन दिन उपवास करने से मोदी का दाग धुल सकता है तो फिर मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब भी तीन दिन उपवास करके अपना दाग साफ कर सकता है। कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता ने कहा कि उपवास करके गोडसे कभी गांधी नहीं बन सकता, जबकि कांग्रेस के मित्रों आप को खुश होने की जरूरत नहीं है, सच ये है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस तरह कांग्रेस नेताओं की अगुवाई में देश भर में खुलेआम सिखों का कत्लेआम किया गया, ये दाग उतना गहरा है कि कभी साफ नहीं हो सकता।
एक ओर देश में सिखों का कत्लेआम हो रहा था, उसी दौरान पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी का बेतुका बयान आया कि जब बरगद का पेड़ गिरता है तो छोटे छोटे पौधे नीचे दब ही जाते हैं। जो नेता सड़कों पर निकल कर लोगों की हत्या करा रहे थे, उन्हें कांग्रेस ने काफी समय तक मंत्री बनाए रखा। जनता का दबाव ना होता तो कांग्रेस ने तो पिछले चुनाव में भी  हत्याकांड के आरोपियों को उम्मीदवार बनाने के लिए टिकट दे दिया था, जिसे बाद में वापस लेना पडा। पार्टी का जनाधार खिसकता देख 23 साल बाद पार्टी ने सिखों से सार्वजनिक रुप से माफी मांगी, लेकिन गांधी परिवार ने आज तक माफी नहीं मांगी।

इस पूरे घटनाक्रम में अगर मीडिया की चर्चा ना की जाए तो बेमानी होगी। दिल्ली से पत्रकारों का पूरा हुजूम इस समय अहमदाबाद में जमा है। हालांकि लोगों को बहुत मुश्किल हो रही है। उसकी वजह गुजरात का ड्राई स्टेट होना है, वहां शाम को पीने पिलाने का इंतजाम हो तो जाता है, पर जरा मुश्किल होती है। देख रहा हूं कि आज भी सभी लोग वही गुलबर्ग सोसाइटी, उसी पुराने दंगे का अनुभव सुना रहे हैं। एक छोटी सी बात सुनाता हूं, इंदिरा जी की हत्या के बाद बिग बी अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव दिग्गज नेता स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ लड़ रहे थे। अमिताभ अपनी हर सभा में एक ही बात दुहराते थे कि 31 अक्टूबर मुझे नहीं भूलता, उस दिन मैने मां इंदिरा की हत्या देखी और सिर में कफन बांध कर राजनीति में कूद पडा। बहुगुणा जी अपनी सभा में इसका जवाब कुछ इस अंदाज में देते थे, वो कभी अमिताभ का नाम नहीं लेते थे।  कहते थे, कोई लड़का मुंबई से यहां आया है, उसने एक हत्या देख ली है, और राजनीति में कूद पडा़, भाई समझाओ उसे, एक हत्या देखकर राजनीति में कूद पडा, कहीं सौ पचास हत्या देख कर कुंए में ना कूद जाए। कुछ ऐसा ही माहौल दो दिन से गुजरात का है, वहां ज्यादातर मीडियाकर्मियों ने गुजरात का दंगा देख लिया है और वो उससे बाहर निकलने को तैयार ही नहीं हैं। सच ये है कि जिस गुजरात की तस्वीर पेश की जा रही है, वह असली तस्वीर नहीं है, ये वो तस्वीर है जो समय समय पर सियासियों द्वारा क्रिएट की जाती है।

हां चलते चलते एक लाइन शंकर सिंह बाधेला के लिए भी जरूर कहना चाहूंगा। सब जानते हैं कि बाधेला जी मुख्यमंत्री मोदी के राजनीतिक गुरु हैं। मैं तो जानता था कि जब कोई शिष्य आगे बढता है तो गुरु का मान बढता है। कलयुग में ही ऐसे गुरु हो सकते हैं कि अगर कोई आत्मशुद्दि के लिए उपवास करे, तो उसके खिलाफ उपवास करने गुरु खुद सडक पर बैठ जाए।
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जेबकतरी सरकार



बढ़ती कीमत देख के मच गया हाहाकार,
जनता की जेबें काटे ये जेबकतरी सरकार |

मोटरसाईकिल को सँभालना हो गया अब दुश्वार
कीमतें पेट्रोल की चली आसमान के पार |

बीस कमाके खरच पचासा होने के आसार,
महँगाई करती जाती है यहाँ वार पे वार |

त्राहिमाम कर जनता रोती दिल में जले अंगार,
सपने देखे बंद होने के महँगाई के द्वार |

महंगाई के रोध में सब मांगेंगे अधिकार,
दो-चार दिन चीख के मानेंगे फिर हार |

तेल पिलाये पानी अब कुछ कहना निराधार,
मन मसोस के रह जाना ही शायद जीवन सार |

लुटे हुए से लोग और धुँधला दिखता ये संसार,
त्योहारों के मौसम में अब मिले हैं ये उपहार |

देख न पाती दु:ख जनता के उल्टे देती मार,
जेबकतरी सरकार है ये तो जेबकतरी सरकार |
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एक आवाज़ कन्या भ्रूण रक्षा के लिए Against Female Feticide



यह हम सब की ज़िम्मेदारी है कि सही बात को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाएं और ऐसे पहुंचाएं कि सुनने वाले क़ायल हों और अपने ज़ुल्म से तौबा करें।
कन्या भ्रूण हत्या इस ज़मीन का बदतरीन जुर्म है।
दुख की बात है कि इसे शिक्षित लोग अंजाम दे रहे हैं।
देखिए एक वीडियो .
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जी हां, चिकेन में क्या खाना चाहेंगे आप ?


चिकेन लवर्स डे पर एक ख़ास परिचर्चा

हमने एक रिपोर्ट पढ़ी तो यह सवाल हमारे सामने आ खड़ा हुआ .

आप भी देखें वह रिपोर्ट - 

खाने की प्लेट चिकेन के बिना अधूरी होती है

खाने की प्लेट चिकेन के बिना अधूरी होती है। यह बात सुनकर कोई शाकाहारी व्यक्ति भले ही मुंह बिचकाए, पर चिकेन के शौकीन  इसका पुरजोर समर्थन करेंगे। बदलते समय में जब खान-पान की आदतें बदल रही हैं और बाजार में तमाम तरह के व्यंजन उपलब्ध हैं, ऐसे समय में चिकेन से बने व्यंजन लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं। 
शेफ सुहैल हसन कहते हैं आज चिकेन से बने कई तरह के व्यंजन उपलब्ध हैं। चिकेन पारंपरिक इंडियन करी से लेकर चाइनीज, इटालियन हर तरह के खाने में मिल जाएगा।भारतीय खाने में चिकेन बिरियानी, चिकेन करी, तंदूरी चिकेन जैसे व्यंजन मिल जाएंगे। अफगानी खाने में शोरमा, अफगानी तंदूर और कबाब जैसे लजीज पकवान मिल जाएंगे। इटालियन खाने में चिकेन पिज्जा और चिकेन पास्ता मिल जाएगा, वहीं चाइनीज खाने में चिकेन चाउमीन, चिकेन सूप, चिकेन चॉप्सी, चिली चिकेन, चिकेन मोमो और चिकेन मंचूरियन जैसे स्वादिष्ट और लोकप्रिय व्यंजन मिल जाएंगे। उनके अनुसार, फास्ट फूड के शौकीनों को भी चिकेन बर्गर, चिकेन पैटीस और चिकेन रोल जैसे ढेरों व्यंजन मिल जाते हैं। एक चिकेन से आज हजारों तरह के व्यंजन बनने लगे हैं।चिकेन के एक दीवाने परमानंद मिश्र का कहना है कि खाने में रोज ही चिकेन व्यंजन हो तो क्या बात है। लेकिन जरूरत इस बात की है कि वह अलग-अलग वेराइटी में हो। उनकी पत्नी सौम्या मिश्र ने बताया कि घर हो या बाजार, ननवेजेटेरियन्स की पहली पसंद चिकेन व्यंजन ही होते हैं। साथ ही उन्होंने जोड़ा कि घर आने वाले मेहमान अगर शाकाहारी हों तो बड़ी कोफ्त होती है। समझ में नहीं आता है कि क्या बनाएं और क्या खिलाएं। चिकेन के अन्य आशिक प्रसेनजित राज्यवर्द्धन ने कहा कि रोज के खान-पान का हिस्सा बन चुके चिकेन संस्कृति को बढ़ावा देने में रेस्त्राओं का भी खासा योगदान रहा है। उनकी पत्नी दिव्या ने बताया कि घर से बाहर उनकी पहली पसंद चिकेन से बने व्यंजन ही होते हैं।रेसिपी विशेषज्ञ ममता सिंह कहती हैं चिकेन कलचर आज इस कदर फैला हुआ है कि कुछ लोगों को इसके बिना भोजन अधूरा लगता है। कभी केवल घरों में पकने वाला चिकेन आज रेस्त्रां, कैफे के अलावा गली-मुहल्ले में स्थित रोल, मोमो और चाउमीन के फास्ट फूड के ठेले पर भी मिलने लगा है। वैसे पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके के मशहूर करीम रेस्त्रां, न्यू फ्रेंडस कॉलोनी के अल बेक रेस्त्रां में दिन भर खाने के लिए लोगों की भीड़ जमा रहती है।

मैक्डोनाल्ड्स का मशहूर चिकेन बर्गर यहां आने वाले खाने के शौकीनों के सबसे पसंदीदा खाने में से एक है। वहीं केएफसी [केंटचुकी फ्राइड चिकेन] रेस्त्रां तो चिकेन प्रेमियों के लिए खास ही है। यहां चिकेन विंग्स, चिकेन बर्गर और चिकेन लेग्स जैसे चिकेन के ढेरों आइटम मिलते हैं। कनॉट प्लेस स्थित केएफसी आउटलेट मे काम करने वाले अतुल सिंह ने कहा कि इसका स्वाद एक बार चढ़ जाए तो छूटना मुश्किल होता है।
चिकेन न केवल अपने देश में, बल्कि बाहर के देशों मे भी काफी लोकप्रिय है।
अमेरिका में चिकेन इस कदर लोकप्रिय है कि वहां सितंबर महीना नेशनल चिकेन मंथ के रूप में मनाया जाता है। 15 सितंबर को वहां नेशनल चिकेन लवर्स डे के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन अमेरिका के कई रेस्त्राओं में मुफ्त चिकेन परोसा जाता है। इन्हीं में से एक पोलो ट्रॉपिकल रेस्त्रां चेन में आज के दिन हर साल दोपहर दो बजे से शाम के सात बजे तक पीले कपड़ों में आने वाले लोगों को मुफ्त में चिकेन परोसा जाता है। यानि जी भर के चिकेन खाइए वो भी बिल्कुल मुफ्त और मनाइए चिकेन लवर्स डे।


See : http://aryabhojan.blogspot.com/2011/09/blog-post_15.html
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क्या आप धनी , स्वस्थ और बुद्धिमान नहीं बनना चाहते ?

जल्दी जागने वाले रहते हैं खुश और छरहरे
लंदन, एजेंसी 
अमेरिका के निर्माताओं में एक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने सही कहा था कि जल्दी सोना और जल्दी उठना मनुष्य को धनी, स्वस्थ और बुद्धिमान बनाता है। करीब 300 साल पहले की इस उक्ति की पुष्टि अब वैज्ञानिकों ने की है। ब्रिटेन में रोहम्पटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने दावा किया है कि देर से उठने वालों की अपेक्षा जल्दी जागने वाले खुश और स्वस्थ्य रहते हैं। द डेली मेल के अनुसार, रात भर जगे रहने वालों के स्वास्थ्य और मन पर सबसे खराब असर पडता है। 
अनुसंधानकर्ताओं ने करीब 1100 पुरुष और महिलाओं से उनकी सोने की आदत के बारे में पूछने के बाद यह निष्कर्ष निकाला। पूछताछ में करीब 13 प्रतिशत ने सात बजे से पहले उठने की बात कही और बताया कि सप्ताहांत में बिस्तर पर पड़े रहने की उन्हें जरूरत नहीं पड़ती। छह प्रतिशत ने कहा कि वे रात भर जगे रहते हैं और सुबह सोते हैं। इसकी भरपाई वे शनिवार और रविवार को सोकर करते हैं। शेष 81 प्रतिशत इन दो श्रेणियों के लोगों के बीच में कहीं थे। 
अनुसंधानकर्ताओं डॉ जार्ज हूबर ने कहा कि जिन लोगों में जल्दी उठने की प्रवृत्ति होती है, उनमें बहुत कम अवसाद की समस्या पायी गयी। उनके अनुसार देर से सोने वालों को अच्छी नींद भी नहीं आती। ब्रिटिश साइक्लाजिकल सोसायटी के एक सम्मेलन में बताया गया कि ऐसे लोग अक्सर सुबह का नाश्ता करते हैं, जो छरहरे बदन से जुड़ी आदत है।
Source : http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/jeevenjizyasa/article1-story-50-51-190584.html
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एक इंजिनियर की आत्मकथा

इंजिनीयर्स डे पर "मोक्षगुंडम विश्वेस्वरैया", जिनके जन तिथि पर ये मनाया जाता है, को सादर नमन |
पेश है मेरी एक रचना |

मैं एक इंजिनियर हूँ,
जिंदगी के हर एक क्षेत्र में, कभी जूनियर तो कभी सीनियर हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बचपन से लेके आज तक,
पढ़ाई से कभी रिश्ता न गया,
किताबों और कंप्यूटर में घुसा, कहने को मैं superior हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

चार साल वो कॉलेज के,
मस्ती में ही उड़ते गए,
कंपनी दर कंपनी रगड़ता हुआ, मैं अजीब creature हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

माँ-बाप के हरेक सपने,
पुरा किया पर साथ न रहा,
सब कुछ पाकर भी खोया हुआ, बहता हुआ मैं river हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

प्यार दोस्ती भी खूब किया,
शादी-बच्चे भी संभाला है,
जिम्मेदारी से भागा नही, मैं ख़ुद अपना career हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

पैसों की तो कमी न हुई,
पर परिवार संग रह न पाया,
भाग-दौड़ में भागता हुआ, चलता हुआ मैं timer हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

हर एक रूप जिंदगी का,
देखा है मैंने करीब से,
हर कष्टों को झेला मैंने, हर प्रॉब्लम से मैं familiar हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ।

बुढ़ा हुआ तब पीछे देखा,
हाथ में कुछ न साथ में कुछ,
भटक-भटक के रुक सा गया, पड़ा हुआ एक furniture हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ |

मौत की घड़ी जब पास है आई,
पाने को कुछ न खोने को कुछ,
सबकी ही तरह रवाना होता, आसमान के मैं near हूँ,
मैं एक इंजिनियर हूँ |

(ये एक आम इंजिनियर के मन की उस समय की सोच है जब वो पुरी जिंदगी बिताने के बाद मरने के कगार पर होता है। वो एक मध्यम वर्गीय परिवार से होके भी एक इंजिनियर तो बन जाता है पर जिंदगी भर वो 'आम' ही रह जाता है। )


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दाल में काला है प्रधानमंत्री जी...



आज बात करेंगे देश को शर्मशार करने वाले एक स्पोर्टस इवेंट की। ये है फार्मूला वन इंडियन ग्रां प्री प्रतियोगिता। इसका आयोजन अगले महीने यानि अक्टूबर में दिल्ली के पास ही ग्रेटर नोएडा में होना है। आपको ये जानना जरूरी है कि इस रेस को सिर्फ अपने देश में ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में भी अभी तक "खेल" का दर्जा हासिल नहीं है, ये एक "मनोरंजक आयोजन" भर है। इस रेस का आयोजन पहली बार देश में हो रहा है। इसका आयोजन कराने वाली कंपनी के हाथ बहुत लंबे हैं और सत्ता के गलियारे में इसकी धमक है। यूपी की सरकार तो इसके ऊंगलियों के इशारे पर नाचती ही है, अब तो लगता है कि केंद्र सरकार भी दूध की धुली नहीं है।
चलिए आपको पूरा मामला समझाते हैं। इस रेस के लिए बहुत ज्यादा सामान विदेशो से यहां लाया जाना है। यहां तक की जिस ट्रैक पर ये रेस होनी है, वो ट्रैक भी विदेशों से यहां लाई जानी है। इसके अलावा कई तरह के उपकरण भी लाए जाने है। इस पर कस्टम अधिकारियों ने आयोजकों को बता दिया कि उन्हें लगभग 150 करोड रुपये कस्टम ड्यूटी का भुगतान करना होगा। वैसे तो ये भुगतान आयोजकों को और जो प्रतियोगी आ रहे हैं, उन्हें अपनी कार और अन्य सामान का कस्टम ड्यूटी देना है, लेकिन भारी भरकम ड्यूटी से प्रतियोगियों ने आयोजकों से कहा है कि अगर ड्यूटी माफ नहीं होती है तो उनका इस प्रतियोगिता में भाग लेना मुश्किल हो सकता है। चूंकि आयोजकों ने भारी भरकम कीमत में इसकी टिकटें बेच दी हैं, इसलिए वो नहीं चाहते कि किसी तरह ये आयोजन खटाई में पडे।
बस फिर क्या था, आयोजकों ने केंद्र सरकार के मंत्रियों पर डोरे डालने शुरू कर दिए। खेल मंत्रालय का ये मामला नहीं है, क्योंकि फार्मूला वन प्रतियोगिता को देश में खेल का दर्जा हासिल ही नहीं है। फिर भी मंत्रालय ने एक एनओसी जारी कर दी। इसके आधार पर कस्टम विभाग ने लगभग 150 करोड की ड्यूटी माफ कर दी है।
आइये इसका नियम भी बता दूं। नियम के मुताबिक राष्ट्रीय महत्व वाले खेल आयोजनों के लिए खेल मंत्रालय एक प्रमाण पत्र जारी करता है, इसके आधार कस्टम विभाग सीमाशुल्क में छूट देता है। राष्ट्रमंडल खेलों और क्रिकेट विश्वकप के दौरान ये प्रमाण पत्र जारी किए गए थे, इसके आधार पर कुछ छूट दी गई थी। अब बडा़ सवाल ये है कि जब फार्मूला वन प्रतियोगिता को देश में खेल का दर्जा हासिल ही नहीं है, तो खेल मंत्रालय ने ये प्रमाण पत्र कैसे जारी कर दिया। इतना ही नहीं देश में  फार्मूला वन  रेस का राज्य या फिर राष्ट्रीय स्तर पर कोई आयोजन भी नहीं होता है। फिर इस रेस को किस आधार पर राष्ट्रहित में माना जा रहा है।
इस मामले में खेल मंत्रालय और सीमा शुल्क विभाग पर उंगली उठने लगी तो बचाव में उतरे अधिकारियों का कहना है कि इसमें ज्यादातर सामान जो यहां लाया जाएगा, वो प्रतियोगिता खत्म होने के बाद वापस भेज दिया जाएगा। कुछ ऐसे सामान हैं जो यहां इस्तेमाल हो जाएंगे, उन पर लगभग आठ करोड़ रुपये सीमाशुल्क लगना है, वो आयोजकों से वसूला जाएगा। चलिए मैं कस्टम विभाग की इस दलील को स्वीकार कर लेता हूं, लेकिन इन्हीं अफसरों से मेरा एक सवाल है। क्रिकेट विश्वकप के दौरान दुबई से यहां लाए गए "वर्ल्ड कप" को इन्हीं निकम्में अफसरों ने मुंबई एयरपोर्ट पर रोक लिया था और 20 लाख रुपये सीमा शुल्क की मांग की। आयोजकों ने उस समय भी बताया था कि ये "वर्ल्ड कप"  विजेता टीम को दी जाती है, उसके बाद इसे भी यहीं से आईसीसी के दुबई मुख्यालय वापस भेज दिया जाएगा। लेकिन तब इन्होंने बिना शुल्क के कप को एयरपोर्ट से बाहर नहीं जाने दिया और भारत को "नकली वर्ल्ड कप" कप दिया गया। यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि क्रिकेट को देश में खेल का दर्जा भी हासिल है।

150 करोड  रुपये माफ करने के पीछे मुझे तो दाल में कुछ काला नजर आ रहा है। अभी मैं ये नहीं कह सकता कि इसमें खेल मंत्रालय के साथ किन किन मंत्रियों और अफसरों का हाथ है, लेकिन पक्का भरोसा है कि इस गोरखधंधे में केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों के मंत्री और अफसर शामिल हैं।
आपको यह भी बता दूं कि कस्टम विभाग और भी तमाम सहूलियत इन आयोजकों को दे रहा है। मसलन एयर कार्गो से जो भी सामान आएगा, उसे एयरपोर्ट पर खोल ये अफसर चेक नहीं करेंगे। बल्कि कुछ अफसरों की तैनाती ग्रेटर नोएडा के स्पोर्टस सिटी में की गई है, वहां कार्गो को खोले जाने के दौरान चेक किया जाएगा। भाई ऐसा भेदभाव क्यों किया जा रहा है।
अगर हम ये कहें कि फार्मूला वन रेस को देश में बढावा देने के लिए ऐसा किया जा रहा है तो आपको हैरानी होगी इसके टिकट के दाम सुनकर। इसमें 35 हजार का टिकट है, ये टिकट लेने पर आप को वीआईपी सुविधा होगी। यहां पर आपके लिए लंच और दारू का इंतजाम भी होगा, जो आप अतिरिक्त पैसे देकर ले सकते हैं। हां अगर आप तीन टिकट लेते हैं तो एक कार पार्किंग भी मिलेगी और दो टिकट लेने पर एक बाइक की पार्किंग आपको मिलेगी। इसके बाद जनरल टिकट हैं, जिसकी कीमत 12,500 से लेकर 2500 तक है। यहां आपको किसी तरह की खास सुविधा नहीं होगी। आप आसानी से समझ सकते हैं कि इस कीमत पर टिकट से क्या आम आदमी की पहुंच यहां हो सकती है। प्रधानमंत्री जी मुझे तो दाल में काला नजर आ रहा है।
मित्रों इस पूरे आयोजन में बडे़ बडे़ उद्योगपति, केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री और अफसरों की सांठ-गांठ है। इस पर मैं आगे भी आपको खास जानकारी देता रहूंगा। मैं चाहता हूं कि इस विषय पर आप सभी ब्लागर साथी भी, नई जानकारी के साथ ब्लाग पर जरूर उपस्थिति दर्ज कराएं।

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क्या है हिंदू दर्शन और इस्लाम का उपदेश ?

हिंदू दर्शन की मान्यताएं
अपरिग्रह का हिंदू दर्शन में बड़ा महत्व है।
धन संपत्ति का संग्रह न करना अपरिग्रह कहलाता है।
इसी तरह हिंदू दर्शन में अचौर्य  का भी बड़ा महत्व है।
हिंदू दर्शन यह भी सिखाता है कि एक ईश्वर तुम्हारे कर्मों का साक्षी है और वह तुम्हारे कर्मों का तुम्हें फल ज़रूर देगा। तुम्हारे शुभ अशुभ कर्मों का फल तुम्हें भोगना ही होगा।
जो ईश्वर को साक्षी मानता है वह बुरे कर्म नहीं करता ताकि उसे भविष्य में अपने बुरे कर्मों का फल न भोगना पड़े।
यह मान्यता केवल हिंदू सन्यासियों के लिए ही नहीं है जिन्होंने संसार को निस्सार समझ कर त्याग दिया है बल्कि गृहस्थ हिंदुओं को भी हिंदू दर्शन का यही उपदेश है।
हिंदू दर्शन अपने मानने वालों से यह अपेक्षा रखता है कि चाहे गुरूकुल में पढ़ने वाले युवक-युवतियां हों या गृहस्थ हों या फिर सन्यासी, सभी अच्छे और सच्चे हों। उनमें दया, प्रेम, क्षमा और अक्रोध आदि लक्षण हों।
एक आदर्श हिंदू में क्या क्या गुण होने चाहिएं, गीता का 16 वां अध्याय विस्तार से यह सब बताता है और इतने विस्तार से बताता है कि आदमी का पूरा जीवन उन गुणों की साधना में गुज़र जाता है।
हिंदू दर्शन वासनाओं को वर्जित घोषित करता है और बताता है कि एक हिंदू के लिए वासना में जीवन गुज़ारना जीवन को व्यर्थ गंवाना भी है और अपने पाप बढ़ाना भी है।
इसके बावजूद आज बहुसंख्यक हिंदू भाई-बहन वासना में ही जीवन गुज़ार रहे हैं।
इसका सीधा सा मतलब यह है कि उनका जीवन हिंदू धर्म के आदेश-निर्देश के मुताबिक़ नहीं है।
ऐसे में उनके जीवन को देखकर ईश्वर, धर्म और हिंदू महापुरूषों को दोष देना ग़लत है।
हिंदुओं में उज्जवल चरित्र के बहुत से महापुरूष हुए हैं, अगर आज हिंदू अपने दर्शन पर चलते तो वे भी उज्जवल चरित्र वाले होते। हिंदू आज भी देश में जिस ओहदे पर बैठे हैं, बड़ी ज़िम्मेदारी और ईमानदारी से अपने फ़र्ज़ को अदा कर रहे हैं लेकिन इनकी संख्या कम है और जो भ्रष्टाचार से धन कमा रहे हैं, उनकी संख्या ज़्यादा है।

इस्लाम का नज़रिया
इस्लाम का अर्थ है ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और ईश्वर का आज्ञापालन।
ईश्वर अल्लाह ने जायज़ और नाजायज़ की पूरी तफ़्सील अपने कलाम पवित्र क़ुरआन में दी है। चोरी और रिश्वत आदि के ज़रिये माल कमाने को हराम और वर्जित क़रार दिया है।
मुस्लिम वह है जो अपने मन की इच्छाओं को ईश्वर के आदेश-निर्देश के अधीन कर दे।
ऐसे मुस्लिम भी कम हैं और ऐसे ज़्यादा हैं जो अपनी मनमर्ज़ी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।
नमाज़ अदा करने वाले और ज़कात और सदक़ा देने वाले कम हैं और नमाज़ और ज़कात और सदक़ा से दूर रहने वाले मुस्लिम बहुत हैं।
बिना इरादे के अल्लाह की आज्ञा का उल्लंघन हो जाए तो अल्लाह भी सज़ा नहीं देता लेकिन इरादे के साथ अल्लाह की नाफ़रमानियां करने वाले मुसलमान बहुत बड़ी तादाद में हैं। ऐसे लोग जब तक अपने गुनाहों पर शर्मिंदा न हों और बंदों को उनका हक़ न दें और तौबा करके अपने बुरे आचरण को न सुधार लें, उन्हें ईश्वर अल्लाह हरगिज़ क्षमा नहीं करता , यह लिखा हुआ है क़ुरआन में लेकिन फिर भी मुसलमानों की बड़ी तादाद अपनी मस्ती में मस्त जी रही है।
ऐसे मुसलमानों को देखकर इस्लाम और इस्लामी शरीअत पर ऐतराज़ जताना ठीक नहीं है।
आज हालत यह है कि हिंदू हों या मुसलमान, वे अपने धर्मशास्त्रों के बताए हुए विधान और अनुशासन के विपरीत चल रहे हैं और सोचते हैं कि उनका कल्याण होगा।
क्या वास्तव में ईश्वर अल्लाह ने ऐसी दशा में उनके कल्याण का कोई वादा किया है या उल्टे सज़ा का किया है ?
सज़ा हमें मिल ही रही है।
सज़ा का ही वादा किया भी है।
हमारी आज की हालत हमारे आज के चरित्र को अच्छी तरह दर्शा रही है।
हमारा बुरा वर्तमान हमारे सामने भयानक भविष्य लाने वाला है।
अपने आज को देखकर हम अपना भविष्य अच्छी तरह जान सकते हैं।
जो ईश्वर के प्रति समर्पण नहीं करेगा, जो उसकी आज्ञा का पालन नहीं करेगा, जो उसे साक्षी मानकर शुभ कर्म नहीं करेगा और खुद को वासनाओं से नहीं निकालेगा, उसका कल्याण हरगिज़ नहीं होगा।
यह एक अटल विधान है,
यही आपको हिंदू दर्शन में मिलेगा और यही आपको इस्लाम में मिलेगा।
सनातन सत्य यही है।
जिन महापुरूषों ने इतनी अच्छी बात बताई है, वे कभी ग़लत नहीं हो सकते।
अच्छा तो यह है कि उन्हें ग़लत कहकर हम ग़लती न करें और खु़द को बेहतर बनाने में अपना समय और श्रम लगाएं।   
दुख की बात यह है कि दोनों तरफ़ के ज़्यादातर लोग जो मन मर्ज़ी जी रहे हैं वे अपने स्वार्थों की ख़ातिर रोज़ नए तूफ़ान खड़े करते हैं और नाम लेते हैं धर्म और संस्कृति का और उनका समर्थन करने वाले भी कभी नहीं सोचते कि जो ख़ुद धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं वे धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर सत्ता हासिल करने के लिए ही सारी धरती की शांति भंग कर रहे हैं।
इनमें कुछ लोग धर्म का लबादा भी ओढ़ लेते हैं लेकिन उनके अनुयायियों को देखना चाहिए कि सत्य, दया, क्षमा और अक्रोध आदि धर्म के कितने लक्षण उनके अंदर मौजूद हैं ?
जो झूठ, फ़रेब और लालच में डूबे हों, उनके पास धर्म कहां ?
ऐसे लोगों से सदैव बचना चाहिए कि ये लोग ईश्वर के आदेश के विरूद्ध चलते हैं और इसी रास्ते पर दूसरों को चलाकर उन्हें कल्याण के रास्ते से भटका देते हैं। 
कल्याण दुनिया का माल और दुनिया की हुकूमत नहीं है बल्कि कल्याण वह है जो शाश्वत है।
इसी विषय में कुछ और लेख आपको यहां मिलेंगे -
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कहते है हिन्दूस्तानी है हम....

कहते है हिन्दूस्तानी है हम,
पर जुबान पे अंग्रेजों की भाषा बसती है,
देख के अपनी विलायती तेवर,
हिन्दी हम पर यूँ हँसती है।
क्या बचपन में पहला अक्षर,
माँ कहने में शर्माया था,
रोता था जब जब तू प्यारे,
लोरी ने चैन दिलाया था।

अब बढ़ी बुद्धि,अब बढ़ा ज्ञान,
हिन्दी को क्यों बदनाम किया,
जिसके साये में पल पल कर,
हम सब ने जग में नाम किया।

मीठी भाषा,प्यारी भाषा,
हिन्दी को बस आत्मसात करो,
अंग्रेजी भाषा है अपनी गुलामी,
उस भाषा में मत बात करो........।

"साहित्य प्रेमी संघ" की ओर से आप सभी हिन्दी प्रेमीयों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.....
www.sahityapremisangh.com
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हिंदी हिन्दुस्तान है


हिंदी मेरी जान है,

भारत की पहचान है ;
भारत भाल की बिंदी है,
निज भाषा अभिमान है |

खत्री से बच्चन तक ने,
सींचा जिसे वो प्राण है;
संस्कृत के वृक्ष से निकली,
अद्भुत भाषा महान है |

देश को जोड़े एक सूत्र में,
मधुर-सी एक तान है;
है इसका समृद्ध-साहित्य,
हिन्द की ये शान है |

हिंदी ही पूजा है सबकी,
हिंदी ही अजान है;
होली, दीवाली हिंदी है,
हिंदी ही रमजान है |

देश को विकसित कर सकती,
हिंदी गुणों की खान है;
हिंदी अहित है देश अहित,
हिंदी हिन्दुस्तान है |
हिंदी हिन्दुस्तान है |
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क्या नौकरी करने के बावजूद भी औरत को सुरक्षा और सम्मान नहीं मिल पाता ?


लिव इन रिलेशनशिप  को लेकर यूरोप में कैसी भी दीवानगी देखने में आ रही हो, लेकिन भारतीय संस्कृति में यह अभी तक पूरी तरह से घूल-मिल नहीं पाई है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि भारतीय समाज पारिवारिक बंधनों में बहुत भरोसा करता है। ऐसे में दो युवाओं द्वारा अगर लिव इन रिलेशनशिप  जैसा कदम उठाया भी जाता है, तो भी पारिवारिक बंधनों के चलते ऐसे रिश्ते  कामयाब नहीं हो पाते हैं। ऐसा ही एक वाकिया हाल ही में टीवी और समाचार चैनलों पर सुर्खियों में बना हुआ है। यह मामला है एयरफोर्स की बर्खास्त पूर्व फ्लाइंग ऑफिसर अंजलि गुप्ता का, जिनके सूइसाइड के मामले में उनके प्रेमी ग्रुप कैप्टन अमित गुप्ता पर पुलिस का शिकंजा कसता जा रहा है। पुलिस का कहना है कि लिव-इन रिलेशनशिप में धोखा मिलने की वजह से अंजलि ने सूइसाइड किया है। अंजलि के परिवार वालों के मुताबिक, अंजलि और अमित पिछले सात सालों लिव-इन रिलेशनशिप में थे। उनका कहना है कि अमित ने अपनी पहली पत्नी से तलाक के बाद अंजलि से विवाह करने का वादा किया था, लेकिन अब वह इससे मुकर रहा था। अंजलि भी पिछले एक साल से भोपाल में ही रह रही थी। अंजलि की मां ने आरोप लगाया है कि अमित ने ही अंजलि को अपने सीनियरों के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न करने का आरोप लगाने के लिए उकसाया था। और, अंजलि ने 3 सीनियर अधिकारियों के खिलाफ एयरफोर्स के अधिकारियों से शिकायत की थी। इसके बाद उसका कोर्ट मार्शल कर दिया गया था। उसके बाद से अंजिली और अमित साथ रह रहे थे। अमित का पत्नी से तलाक होने वाला था। 
जाहिर है, लिव इन रिलेशनशिप  के चक्कर में अपनी जिंदगी को बर्बाद कर लेने वाली अंजलि गुप्ता इस रिष्ते की जटिलताओं का ही शिकार हुई है। अंजलि गुप्ता का कॅरिअर अच्छा चल रहा था, लेकिन अपने प्रेमी अमित के चक्कर में उन्होंने अपने सीनियर अधिकारियों के उपर झूठे इल्जाम लगाए। इसका नतीजा ये निकला कि उनका कॅरिअर पूरी तरह चैपट हो गया, उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल भी हुआ। हालांकि इसके बाद भी अंजलि संभल गई थी और वो एक खुशहाल जिंदगी जी सकती थी, अगर अमित लिव इन रिलेशनशिप  के रिष्ते को पूरी ईमानदारी के साथ निभाता और उसका साथ देता। लेकिन अमित ने सिर्फ अंजलि का इस्तेमाल किया और जैसा कि अंजलि की मां के बयानों से लगता है कि उसने बरसों तक अंजलि का यौन शोषण करने के बाद भी अपनी पहली पत्नी को छोड़कर उससे शादी करने का इरादा नहीं जताया। इसी के चलते अब अंजलि आत्महत्या पर मजबूर हुई है।
Source :
http://khabarindiya.com/index.php/articles/show/3279_desh_dunia?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+khabarindiya+%28KhabarIndiya.Com%२९
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सीनियर अधिकारियों ने अंजलि के साथ क्या किया ?
इसे केवल अंजलि और उसके अधिकारी ही जानते हैं।
नौकरी और रूपये को औरत की मज़बूती के लिए आज ज़रूरी माना जाता है लेकिन यह सब होने के बावजूद भी अंजलि ने आत्महत्या कर ली , क्यों ?
केवल एक सही सोच और एक सही तरीक़े के अभाव में।

लिव इन रिलेशनशिप भी इसी अभाव की कोख से जन्मा है और समय के साथ साथ और बहुत से मसले सामने आते चले जाएंगे।
अंजलि उनमें से एक बानगी भर है।

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अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए


आज हिंदी दिवस के शुभअवसर पर हमारे
 ब्लोगर साथियों को बहुत शुभकामनाएं 

अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए  


आज हमारे देश में हर तरफ अंग्रेजी का बोलबाला है 
/हर शिक्षित इंसान अंग्रेजी में बात करता हुआ ही
 नजर आता है /बल्कि ये कहा जाए की अंग्रेजी
 में बोलना स्वाभिमान या (स्टेटस सिम्बल) हो 
गया है तो अतिशोक्ति नहीं होगी /अगर आपको
 अंग्रेजी में बात करना नहीं आता तो आपको 
हिकारत की नजरों से देखा जाता है /तुच्छ समझा
 जाता है भले आप कितने ही पढ़े लिखे क्यों नहीं हो /
कितने ही ज्ञानी क्यों नहीं हो /अंग्रेजी बोलना नहीं 
आया तो आपका सब ज्ञान बेकार हो जाता है /
हिन्दुस्तान में रहकर आराम और बढे शान से
 इन्सान बोलता है की मुझे हिंदी बोलना नहीं 
आता  या मुझे हिंदी बोलने में  दिक्कत होती है 
/सोचिये कितने शर्म की बात है की हम अपनी
 मात् भाषा को बोलने में और पढने में शर्माते
 हैं और अंग्रेजी बोलनें में गर्व महसूस करते हैं /
आज कल स्कूलों  में हिंदी की गिनती नहीं 
 सिखाई जाती बच्चों को अगर हिंदी में संख्या
 बोल दो तो बच्चे पूछने लगतें हैं छत्तीस
 याने क्या तब उनको बोलो बेटा छत्तीस
 माने थर्टी  -सिक्स /ये हाल है हमारे देश का /
जबकि विदेशों में ऐसा नहीं होता वहां के लोग
अपनी देश की भाषा बोलनें में   गर्व महसूस
 करतें हैं /मैंने तो कई देशों के प्रधानमन्त्री
 और राष्ट्रपति को देखा है की वो अपनी
 भाषा में ही बात करना या भाषण देना 
पसंद करते हैं /चाहे उन्हें दोभाषिया की भी 
सहायता क्यों  ना लेना पढ़े / उन्हें तो अपनी
 भाषा में बोलने में कोई शर्म नहीं आती / 
हम लोग अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्त
 हो गए परन्तु अंग्रेजी के गुलाम हो गए /
मैं ये नहीं कह रही की दूसरी भाषा में बोलना
 या सीखना बुरी  बात  है  परन्तु दूसरी भाषा
 के सामने अपनी राष्ट्र भाषा  को तुच्छ समझना
 उसको बोलने में शर्म महसूस करना या कोई
 बोल रहा है उसको हिकारत की नजर से देखना
 ये तो अच्छी बात नहीं हैं /आज अगर आपको
 ऊँची सोसाइटी में आना जाना है तो अंग्रेजी
 बोलना जरुर आना चाहिए नहीं तो आप 
उनकी नजरों में गंवार नजर आयेंगे वो 
आपको निम्न समझेंगे /हमारे दक्षिण 
प्रदेशों के तो और भी बुरे हाल हैं वहां 
अंग्रेजी के कुछ शब्द तो फिर भी लोग
 समझ लेते हैं परन्तु हिंदी का कोई भी 
 शब्द नहीं समझते/बल्कि हिंदी    
बोलने वालों के साथ उनका ब्यवहार
 ही अलग होता है / अपने प्रदेशों की भाषा बोलना
 तो ठीक है परन्तु अपनी राष्ट्र भाषा का ज्ञान भी हर हिन्दुस्तानी को होना जरुरी है /
आज हिंदी दिवस पर हम सबको हिंदी भाषा के 
प्रचार और प्रसार को बढ़ाने के लिए उपयुक्त 
कदम उठाना चाहिए /और अपने जाननेवालों
 को हिंदी में बात करने के लिए प्रोत्साहित
 करना चाहिए /बच्चों को भी हिंदी भाषा का 
ज्ञान देना बहुत जरुरी है /सारे देश के स्कूलों
 में हिंदी विषय का ज्ञान जरुर  देना  चाहिए /
हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है और उसका हमें 
दिल से सम्मान करना चाहिए /उसको बोलनें में
 शर्म नहीं गर्व महसूस  करना चाहिए / 
   
सारे  जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा 
हिंदी हैं हम वतन हैं 
हिन्दुस्तां हमारा     
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अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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