माही ! हमें तुम्हारी चिंता है !

गुडगाँव की माही पिछले कई घंटों से बोरवेल में ज़िंदगी और मौत से संघर्ष कर रही है ! आज से कई साल पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी ! आज भी वह मुझे उतनी ही प्रासंगिक लगती है जितनी उस वक्त थी जब मैंने इसे लिखा था ! सोनू और माही के साथ हुए इन हादसों के बीच और भी कई ऐसे ही हादसे हो चुके हैं जिनमें कई मासूम बच्चों ने अपनी जान गँवा दी है !  हर बच्चा प्रिंस की तरह खुशनसीब नहीं निकला जो सेना और प्रशासन की अथक मेहनत के बाद बोरवेल से सकुशल जीवित बाहर निकल आया था ! आज मैं सभी लोगों से यही अपील करना चाहती हूँ अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए किसी और की मुखापेक्षा ना करें ! स्वयं सतर्क रहें और प्रयत्नशील हों !

और सोनू हार गया

    मासूम सोनू ने गहरे बोरवेल में अपनी जान गँवा दी। चार दिन तक गड्ढे के अन्दर् मौत और ज़िन्दगी के बीच लम्बी खींचतान चलती रही और गड्ढे के बाहर ग्रामीणों और अधिकारियों के बीच आरोपों प्रत्यारोपों का निष्प्रयोजन लम्बा सिलसिला चलता रहा। वहाँ लहरा पुरा में हज़ारों ग्रामवासी बोरवेल के पास और सम्पूर्ण देश में करोड़ों दर्शक टी वी के सामने चार दिन तक साँस रोके सोनू के गड्ढे से सही सलामत बाहर आ जाने की प्रतीक्षा करते रहे। लेकिन सभी की प्रार्थनायें निष्फल हो गयीं। किसी की ग़लती का ख़ामियाज़ा उस अबोध बालक ने अपने प्राणों की आहुती देकर चुकाया। आश्चर्य होता है जो ग्रामवासी चार दिन तक खाना पीना सोना सब भूल कर दिन रात बोरवेल के पास सोनू को स्वयम बाहर निकालने की अनुमति देने के लिये प्रशासनिक अधिकारियों से जूझते रहे वे दुर्घटना से पहले चार मिनिट का समय निकाल कर किसी पत्थर से उस एक डेढ़ फीट के गड्ढे को ढँक क्यों नहीं सके ? क्या हमारी ज़िम्मेदारी सिर्फ अपने घर के दरवाज़े के अन्दर तक ही सीमित है ? क्या हम और हमारे बच्चे सड़कों और रास्तों का उपयोग नहीं करते ? तो फिर हम वहाँ उनकी सुरक्षा के प्रति जागरूक क्यों नहीं हैं ? घर के दरवाज़े के बाहर घटी हर दुर्घटना के लिये क्यों हम सरकार के सिर पर ठीकरा फोड़ने के लिये तत्पर रहते हैं ? क्या नागरिकों का कोई दायित्व नहीं है ? आवश्यक्ता है खुद को चौकस और चुस्त दुरुस्त रखने की। जिस जगह बोरवेल खोदने का काम आरंभ हो उस मोहल्ले के निवासियों को स्वयम काम के ख़त्म होने तक सबकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये और ठेकेदार या खुदाई करने वाले काम बन्द करने के बाद गड्ढे को ठीक से ढँक कर गये हैं या नहीं इसकी देख रेख करनी चाहिये। जिस गाँव में बोरवेल खुदे वहाँ के प्रधान को खुद अपनी निगरानी में यह काम करवाना चाहिये। अन्यथा ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी और कई मासूम सोनू की तरह ज़िन्दगी की जंग हारते रहेंगे। नेताओं से मेरी अपील है कि वे भोले भाले ग्राम वासियों को उकसा कर सिर्फ भड़काने का काम ही ना करें उन्हें उनके कर्तव्यों के प्रति भी सचेत करें क्योंकि यह तो निश्चित है जो लोग ज़रा से इशारे पर आगजनी , पथराव ,  घेराव कर सकते हैं , घंटों के लिये जाम लगा सकते हैं , हड़ताल , आन्दोलन और संघर्ष कर सारी व्यवस्था को तहस-नहस कर सकते हैं वे सही दिशा निर्देश मिलने पर एक सुन्दर , स्वस्थ और सुरक्षित समाज का निर्माण भी कर सकते हैं।
साधना वैद
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ग़ज़लगंगा.dg: रिश्तों की पहचान अधूरी होती है

रिश्तों की पहचान अधूरी होती है.
जितनी कुर्बत उतनी दूरी होती है.

पहले खुली हवा में पौधे उगते थे
अब बरगद की छांव जरूरी होती है.

लाख यहां मन्नत मांगो, मत्था टेको
आस यहां  पर किसकी पूरी होती है.

खाली हाथ कहीं कुछ काम नहीं बनता
हर दफ्तर की कुछ दस्तूरी होती है.

किसको नटवरलाल कहें इस दुनिया में
जाने किसकी क्या मजबूरी होती है.

उनका एक लम्हा कटता है जितने में
अपनी दिनभर की मजदूरी होती है.

-----देवेंद्र गौतम

ग़ज़लगंगा.dg: रिश्तों की पहचान अधूरी होती है:

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जरुरत नहीं हिंदी सीखने की??

ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा ये बयान दिया जाना की भारत जाने वालें उनके राजनयिकों को वहां की भाषा (हिंदी) सीखने की जरुरत नहीं है, हम सबका, हिंदी का और समूचे भारत का अपमान है | उनका ये मानना है भारत में सारे काम-काज अंग्रेजी में ही होते हैं और भारत एक अंग्रेजी लोकतंत्र है | अन्य कोई भी देश जैसे चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि जाने वाले राजनयिकों को वहां की भाषा सीखना अनिवार्य है पर भारत जाने वालों का काम अंग्रेजी से ही चल जायेगा | भले ही यह कहकर उन्होंने हमारा अपमान किया हो पर उनकी बातें सच ही तो है | एक तरह से ये हमारे और हमारी सरकार के लिए बहुत ही शर्म की बात है और चेहरे पे जूता पड़ने जैसा है | हम और हमारी सरकार जब स्वयं अपनी भाषा की इज्ज़त नहीं कर पाते तो कोई और क्या करेगा ?
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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  • - कहीं भी अपनी भाषा में टंकण (Typing) करें - Google Input Toolsप्रयोगकर्ता को मात्र अंग्रेजी वर्णों में लिखना है जिसप्रकार से वह शब्द बोला जाता है और गूगल इन...
    12 years ago

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