अरे भई साधो......: सरकार बनाई तो अब भुगतो

हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह विश्वविख्यात अर्थशास्त्री हैं. लेकिन उनका अर्थशास्त्र आम भारतीयों के पल्ले नहीं पड़ रहा है. बजट में रेल किराया से लेकर तमाम जरूरी जिंसों के दाम बढ़ा दिए. टैक्स में कोई खास छूट नहीं दी. रसोई गैस और पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोत्तरी की धमकी दे रहे हैं. फिर भी उनका दावा है कि इस बजट से महंगाई घटेगी. कैसे?....यह नहीं बता रहे. विद्वान आदमी हैं उन्हें समझाना चाहिए. यह चमत्कार कैसे होगा............

अरे भई साधो......: सरकार बनाई तो अब भुगतो
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यह चिंगारी मज़हब की."

   यह चिंगारी मज़हब की."


 

  "स्वयं सवारों को खाती है,
         गलत सवारी मज़हब की.
 ऐसा  न हो देश जला दे,
     यह चिंगारी मज़हब की."
          आज राजनीति में सबसे ज्यादा प्रमुखता पा रहा है "धर्म-जाति का मुद्दा".आज वोट पाने के  लिए राजनेता जिस मुद्दे को सर्वाधिक भुना रहे हैं वह यही है और इसी मुद्दे को सिरमौर बना आज सपा उत्तर प्रदेश में सत्ता पाने में सफल रही है और ये उसकी बड़ी बात है कि वह सत्ता पाने के बाद भी अपने वादे को भूली नहीं है और इसी अहसानमंदगी का सबूत है सपा के सत्तासीन होते ही  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर आसीन होने  वाले 33 वें  मुख्यमंत्री माननीय अखिलेश यादव जी द्वारा मुस्लिम बालिकाओं को कक्षा १० पास  करने पर तीस हज़ार के अनुदान की घोषणा .घोषणा प्रशंसनीय है क्योंकि हम सभी देखते हैं कि मुस्लिम बालिकाएं शिक्षा के क्षेत्र में उतनी  आगे नहीं जा पा रही हैं जितनी आगे अन्य धर्मों की बालिकाएं पहुँच रही हैं किन्तु यदि यह घोषणा सभी धर्मों की बालिकाओं के लिए की जाती तो इसकी महत्ता चार गुनी  हो जाती क्योंकि हमारे क्षेत्र में भी बहुत सी अन्य धर्मों की बालिकाएं ऐसी हैं जो आर्थिक कमी के कारण योग्य होते हुए भी बी.एड.करने से वंचित  हो रही हैं .आज उत्तर प्रदेश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए सत्ता को धर्म जाति के फेर से बाहर निकलना होगा क्योंकि ये मुद्दे विकास को बाधित कर देते हैं .आज जो सहायता मुख्यमंत्री केवल मुस्लिम बालिकाओं को दे रहे हैं उसकी हकदार सभी धर्मों जातियों की  योग्य बालिकाएं हैं भले ही उनके क्षेत्र से या घर से मुख्यमंत्री के दल को वोट न मिली हों क्योंकि अब वे  सरकार हैं और अब उन्हें इन  छोटी बातों को दरकिनार कर सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए.क्योंकि वैसे  भी एक  शायर कह ही गए हैं-
"दबी आवाज़ को गर ढंग से उभरा न गया,
    सूने आँगन को गर ढंग से बुहारा  न गया,
ऐ!सियासत के सरपरस्तों ज़रा गौर  से सुन लो ,
  जलजला आने को है गर उनको पुकारा न गया."
          
 

             शालिनी  कौशिक [कौशल ]
         
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लड़कियों और महिलाओं के लिए नेचुरोपैथी Naturopathy

 लड़कियों और महिलाओं के लिए नेचुरोपैथी में करिअर बनाना बहुत आसान भी है और बहुत लाभदायक भी. इसके ज़रिये वे खुद को और अपने परिवार को तंदरुस्त भी रख सकती हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बन सकती हैं.

प्राकृतिक जीवन पद्धति है नेचुरोपैथी Naturopathy in India



नेचुरोपैथी सीखने के लिए हमने भी औपचारिक रूप से  D.N.Y.S. किया है। आजकल धनी लोग इस पैथी की तरफ़ रूख़ भी कर रहे हैं। रूपया काफ़ी है इसमें। फ़ाइव स्टारनुमा अस्पताल तक खुल चुके हैं नेचुरोपैथी के और इस तरह एक सादा चीज़ फिर व्यवसायिकता की भेंट चढ़ गई।
यह ऐसा है जैसे कि भारत में जिस संत ने भी एक ईश्वर की उपासना पर बल दिया, उसे ही जानबूझ कर उपासनीय बना दिया गया।
शिरडी के साईं बाबा इस की ताज़ा मिसाल हैं। उनसे पहले कबीर थे। यह उन लोगों ने किया जिन लोगों ने धर्म को व्यवसाय बना रखा है और एकेश्वरवाद से उनके धंधा चौपट होता है तो वे ऐसा करते हैं कि उनका धंधा चौपट करने वाले को भी वह देवता घोषित कर देते हैं।
जिन लोगों ने दवा को सेवा के बजाय बिज़नैस बना लिया है वे कभी नहीं चाह सकते कि उनका धंधा चौपट हो जाए और लोग जान लें कि वे मौसम, खान पान और व्यायाम करके निरोग रह भी सकते हैं और निरोग हो भी सकते हैं।
ईश्वर ने सेहतमंद रहने का वरदान दिया था लेकिन हमने क़ुदरत के नियमों की अवहेलना की और हम बीमारियों में जकड़ते गए। हमें तौबा की ज़रूरत है। ‘तौबा‘ का अर्थ है ‘पलटना‘ अर्थात हमें पलटकर वहीं आना है जहां हमारे पूर्वज थे जो कि क़ुदरत के नियमों का पालन करते थे। उनकी सेहत अच्छी थी और उनकी उम्र भी हमसे ज़्यादा थी। उनमें इंसानियत और शराफ़त हमसे ज़्यादा थी। हमारे पास बस साधन उनसे ज़्यादा हैं और इन साधनों को पाने के चक्कर में हमने अपनी सेहत भी खो दी है और अपनी ज़मीन की आबो हवा में भी ज़हर घोल दिया है। हमारे कर्म हमारे सामने आ रहे हैं।
अब तौबा और प्रायश्चित करके ही हम बच सकते हैं।
यह बात भी हमारे पूर्वज ही हमें सिखा गए हैं।
हमारे पूर्वज हमें योग भी सिखाकर गए थे लेकिन आज योग को भी व्यापार बना दिया गया है। जो व्यापार कर रहा है लोग उसे बाबा समझ रहे हैं।
हमारे पूर्वज हमें ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग‘ मुफ़्त में सिखाकर गए थे लेकिन अब यह कला सिखाने की बाक़ायदा फ़ीस वसूल की जाती है।
कोई भगवा पहनकर धंधा कर रहा है और सफ़ेद कपड़े पहनकर। इनकी आलीशान अट्टालिकाएं ही आपको बता देंगी कि ये ऋषि मुनियों के मार्ग पर हैं या उनसे हटकर चल रहे हैं ?
कुमार राधा रमण जी की यह पोस्ट भी आपके लिए मुफ़ीद  है, देखिए:

नेचुरोपैथी में करिअर

नेचुरोपैथी उपचार का न केवल सरल और व्यवहारिक तरीका प्रदान करता है , बल्कि यह तरीका स्वास्थ्य की नींव पर ध्यान देने का किफायती ढांचा भी प्रदान करता है। स्वास्थ्य और खुशहाली वापस लाने के कुदरती तरीकों के कारण यह काफी पॉप्युलर हो रहा है।
नेचुरोपैथी शरीर को ठीक - ठाक रखने के विज्ञान की प्रणाली है , जो शरीर में मौजूद शक्ति को प्रकृति के पांच महान तत्वों की सहायता से फिर से स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए उत्तेजित करती है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो नेचुरोपथी स्वयं , समाज और पर्यावरण के साथ सामंजस्य करके जीने का सरल तरीका अपनाना है।
नेचुरोपैथी रोग प्रबंधन का न केवल सरल और व्यवहारिक तरीका प्रदान करता है , बल्कि एक मजबूत सैद्धांतिक आधार भी प्रदान करता है। यह तरीका स्वास्थ्य की नींव पर ध्यान देने का किफायती ढांचा भी प्रदान करता है। नेचुरोपथी पश्चिमी दुनिया के बाद दुनिया के अन्य हिस्सों में भी जीवन में खुशहाली वापस लाने के कुदरती तरीकों के कारण लोकप्रिय हो रहा है।
कुछ लोग इस पद्धति की शुरुआत करने वाले के रूप में फादर ऑफ मेडिसिन हिपोक्रेट्स को मानते हैं। कहा जाता है कि हिपोक्रेट्स ने नेचुरोपथी की वकालत करना तब शुरू कर दिया था , जब यह शब्द भी वजूद में नहीं था। आधुनिक नेचुरोपैथी की शुरुआत यूरोप के नेचर केयर आंदोलन से जुड़ी मानी जाती है। 1880 में स्कॉटलैंड में थॉमस एलिंसन ने हायजेनिक मेडिसिन की वकालत की थी। उनके तरीके में कुदरती खानपान और व्यायाम जैसी चीजें शामिल थीं और वह तंबाकू के इस्तेमाल और ज्यादा काम करने से मना करते थे।
नेचुरोपैथी शब्द ग्रीक और लैटिन भाषा से लिया गया है। नेचुरोपथी शब्द जॉन स्टील (1895) की देन है। इसे बाद में बेनडिक्ट लस्ट ( फादर ऑफ अमेरिकन नेचुरोपथी ) ने लोकप्रिय बनाया। आज इस शब्द और पद्धति की इतनी लोकप्रियता है कि कुछ लोग तो इसे समय की मांग तक कहने लगे हैं। लस्ट का नेचुरोपैथी के क्षेत्र में काफी योगदान रहा। उनका तरीका भी थॉमस एलिंसन की तरह ही था। उन्होंने इसे महज एक तरीके की जगह इसे बड़ा विषय करार दिया और नेचुरोपथी में हर्बल मेडिसिन और हाइड्रोथेरेपी जैसी चीजों को भी शामिल किया।


क्या है नेचुरोपैथी
यह कुदरती तरीके से स्वस्थ जिंदगी जीने की कला है। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि इस पद्धति के जरिये व्यक्ति का उपचार बिना दवाइयों के किया जाता है। इसमें स्वास्थ्य और रोग के अपने अलग सिद्धांत हैं और उपचार की अवधारणाएं भी अलग प्रकार की हैं। आधुनिक जमाने में भले इस पद्धति की यूरोप में शुरुआत हुई हो , लेकिन अपने वेदों और प्राचीन शास्त्रों में अनेकों स्थान पर इसका उल्लेख मिलता है। अपने देश में नेचुरोपैथी की एक तरह से फिर से शुरुआत जर्मनी के लुई कुहने की पुस्तक न्यू साइंस ऑफ हीलिंग के अनुवाद के बाद माना जाता है। डी वेंकट चेलापति ने 1894 में इस पुस्तक का अनुवाद तेलुगु में किया था। 20 वीं सदी में इस पुस्तक का अनुवाद हिंदी और उर्दू वगैरह में भी हुआ। इस पद्धति से गांधी जी भी प्रभावित थे। उन पर एडोल्फ जस्ट की पुस्तक रिटर्न टु नेचर का काफी प्रभाव था।


नेचुरोपथी का स्वरूप
मनुष्य की जीवन शैली और उसके स्वास्थ्य का अहम जुड़ाव है। चिकित्सा के इस तरीके में प्रकृति के साथ जीवनशैली का सामंजस्य स्थापित करना मुख्य रूप से सिखाया जाता है। इस पद्धति में खानपान की शैली और हावभाव के आधार पर इलाज किया जाता है। रोगी को जड़ी - बूटी आधारित दवाइयां दी जाती हैं। कहने का अर्थ यह है कि दवाइयों में किसी भी प्रकार के रसायन के इस्तेमाल से बचा जाता है। ज्यादातर दवाइयां भी नेचुरोपथी प्रैक्टिशनर खुद तैयार करते हैं।

कौन - कौन से कोर्स
इस समय देश में एक दर्जन से ज्यादा कॉलेजों में नेचुरोपैथी की पढ़ाई देश में स्नातक स्तर पर मुहैया कराई जा रही है। इसके तहत बीएनवाईएस ( बैचलर ऑफ नेचुरोपथी एंड योगा साइंस ) की डिग्री दी जाती है। कोर्स की अवधि साढ़े पांच साल की रखी गई है।

अवसर
संबंधित कोर्स करने के बाद स्टूडेंट्स के पास नौकरी या अपना प्रैक्टिस शुरू करने जैसे मौके होते हैं। सरकारी और निजी अस्पतालों में भी इस पद्धति को पॉप्युलर किया जा रहा है। खासकर सरकारी अस्पतालों में भारत सरकार का आयुष विभाग इसे लोकप्रिय बनाने में लगा है। ऐसे अस्पतालों में नेचुरोपैथी के अलग से डॉक्टर भी रखे जा रहे हैं। अगर आप निजी व्यवसाय करना चाहते हैं तो क्लीनिक भी खोल सकते हैं। अच्छे जानकारों के पास नेचुरोपैथी शिक्षण केन्द्रों में शिक्षक के रूप में भी काम करने के अवसर उपलब्ध हैं। आप चाहें तो दूसरे देशों में जाकर काम करने के अवसर भी पा सकते हैं।

क्वॉलिफिकेशन
अगर आप इस फील्ड में जाकर अपना करियर बनाना चाहते हैं तो आपके पास न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 12 वीं है। 12 वीं फिजिक्स , केमिस्ट्री और बायॉलजी विषयों के साथ होनी चाहिए(निर्भय कुमार,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,1.2.12)।
Source :http://www.commentsgarden.blogspot.in/2012/02/naturopathy-in-india.html
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जनता ब्लॉगर्स की सुनती ही कहां है ?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अब श्री अखिलेश यादव जी हैं।
अखिलेश यादव जी की पार्टी के लिए हिंदी ब्लॉगर्स के बहुमत ने कोई आंदोलन नहीं चलाया इसके बावजूद उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश की बागडोर संभाल रही है।
उत्तराखंड की बागडोर भाजपा के हाथ से निकल गई है हालांकि इस पार्टी के पक्ष में ब्लॉगर्स ने इंटरनेट पर ज़बर्दस्त आंदोलन चलाया। इससे यही पता चलता है कि देश की जनता पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि ब्लॉगर्स क्या सोचते हैं ?
देश की जनता पर इससे भी कोई असर नहीं पड़ता कि बाबा रामदेव या अन्ना हज़ारे क्या सोचते हैं ?
देश के साधु संत और बुद्धिजीवियों को सोचना चाहिए कि आखि़र ऐसा क्यों है कि जो कुछ वह कह रहे हैं वह जनता के मन तक नहीं पहुंच रही है और अगर पहुंच भी जाती है तो देर तक वह उसके मन में ठहरती नहीं है ?
जो लोग देश को दिशा देना चाहते हैं, उन्हें इस बात पर ज़रूर विचार करना चाहिए।
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क्या इस देश की महिलाएं बहुत स्मार्ट, आकर्षक हैं ?

सवाल-महिलाओं के लिए फेयर एंड लवली क्रीम थी पर पुरुषों के लिए फेयर एंड हैंडसम क्रीम आयी है। क्या पुरुषों को लवली नहीं होना चाहिए। उनका काम सिर्फ हैंडसम होने से चल जाता है क्यों।
जवाब- हैंडसम का मतलब है हैंड में सम यानी रकम, तब ही पुरुष का मामला जमता है। उनका काम सिर्फ लवली होने से नहीं चलता। वैसे अब तो महिलाओं का भी हैंडसम होना जरुरी है। सिर्फ लवली के बाजार भाव बहुत डाऊन हैं।
सवाल-जो पुरुष फेयर एंड हैंडसम नहीं लगाते, वे क्या हैंडसम नहीं होते।
जवाब-नहीं चुपके से लगाते होंगे। बताते नहीं है, क्या पता बाद में बतायें। जैसे बरसों तक अमिताभ बच्चन की शानदार एक्टिंग देख कर सब समझते रहे कि अमिताभजी की मेहनत-समर्पण इसके पीछे है। पर उन्होने अब जाकर बताया कि वो वाला तेल, ये वाली क्रीम, ये वाला कोल्ड ड्रिंक, वो वाला च्यवनप्राश इसके लिए जिम्मेदार हैं। असली बात लोग बाद में बताते हैं जी।
सवाल-पुरुष हैंडसम हो जाये, तो क्या होता है।
जवाब-बेटा क्लियर है, ज्यादा कन्याएं उसकी ओर आकर्षित होती हैं।
सवाल-क्या पुरुष के जीवन का एकमात्र लक्ष्य यही है कि कन्याएं उसकी ओर आकर्षित हों।
जवाब-नहीं ,इमरान हाशमी की तमाम फिल्में देखकर पता लगता है कि पुरुषों का लक्ष्य दूसरों की पत्नियों, विवाहिताओं को आकर्षित करना भी होता है।
सवाल-मैं अगर फेयर एंड हैंडसम लगाऊं और फिर भी सुंदरियां आकर्षित न हों, तो क्या मैं कंपनी पर दावा ठोंक सकता हूं।
जवाब-नहीं, तमाम इश्तिहारों के विश्लेषण से साफ होता है कि सुंदरियां सिर्फ क्रीम लगाने भर से आकर्षित नहीं होतीं। इसके लिए वह वाला टायर भी लगाना पड़ता है। इसके लिए वो वाली बीड़ी भी पीनी पड़ती है। इसके लिए वो वाली सिगरेट भी पीने पड़ती है। इसके लिए वो वाली खैनी भी खानी पड़ती है। इसके लिए वो वाला टूथपेस्ट भी यूज करना पड़ता है। इसके लिए वो वाला कोल्ड ड्रिंक भी पीना पड़ता है।
सवाल-बंदा इसी सब में सुबह से शाम तक बिजी हो जायेगा, तो फिर वह और काम क्या करेगा।
जवाब-हां,यह सब इश्तिहारों में नहीं बताया जाता कि सुंदरियों को आकर्षित करना पार्ट-टाइम नहीं फुल टाइम एक्टिविटी है।
सवाल-तमाम इश्तिहार पुरुषों से आह्वान करते हैं कि वे ये खरीद कर या वो खऱीद कर सुंदरियों को आकर्षित करें, पर सुंदरियों से यह आह्वान नहीं किया जाता कि वे ये वाला टायर खरीदकर या वो वाली सिगरेट पीकर या बीड़ी पीकर या टूथपेस्ट यूज करके पुरुषों को आकर्षित करें। इसका क्या मतलब है।
जवाब-इसका मतलब है कि इस देश की महिलाएं सहज और स्वाभाविक तौर पर ही स्मार्ट और आकर्षक हैं, पर यह बात इस देश के पुरुषों के बारे में नहीं कही जा सकती। उन्हे महिलाओँ को आकर्षित करने के लिए किसी टायर, किसी सिगरेट, किसी बीड़ी या किसी टूथपेस्ट का सहारा लेना पड़ता है।
संक्षेप में, इस देश की महिलाएं बहुत स्मार्ट, आकर्षक हैं।
इस देश के पुरुष बहुत ही ढीलू टाइप, घोंचू, घामड़ च चिरकुट हैं।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
http://alokpuranik.com/?p=1054
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ब्लॉगर्स मीट वीकली (34) Brain Food

                                       
                             ब्लॉगर्स  मीट वीकली (34)
सबसे पहले मेरे सारे ब्लोगर साथियों को प्रेरणा अर्गल का प्रणाम और सलाम / आप सबका स्वागत है इस ब्लॉगर्स मीट वीकली (३४) में भी / आप सब जिस तरह उत्साह के साथ शामिल हो रहे हैं और हमारे द्वारा चयन किये हुए लिंक्स पसंद कर रहे हैं उसके लिए हम आप सबके बहुत आभारी हैं /आप सब इस प्रत्येक सोमवार को होनेवाली ब्लोगर्स मीट में शामिल होकर हमारा उत्साह बढ़ाते रहें और इस मीट को सफल बनाते रहें यही कामना है / आभार /




आज सबसे पहले मंच की पोस्ट्स 

 अनवर जमालजी की रचनाएँ 

अपनी मानसिक विकलांगता हमें खुद ही दूर करनी होगीभारत गुलाम था आज़ाद हुआ . अच्छी बात है आज़ादी . परतु प्रश्न उठता है कि भारत किसका गुलाम था. कब यह गुलाम रहा.  कैसी यह मुहब्बत है और कैसा यह त्यौहार है ? Indian HoliDr. Anwer Jamal बलोगर्स मीट वीकली (33) Happy होली

देवेन्द्र गौतमजी की रचना 

 ग़ज़लगंगा.dg: सिलसिले इस पार से उस पार थे

सिलसिले इस पार से उस पार थे.
हम नदी थे या नदी की धार थे?

मंच के बाहर की पोस्ट  

"हमें लिखना नही आया, उन्हें पढ़ना नही आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी   'मयंक')

 

बहारें ही बहारें थी,
बड़े दिलकश नजारे थे।
चहकती थीं हसीं कलियाँ,
महकते फूल प्यारे थे।

डॉ. वेद ब्यथित जी की रचना 

 रंगोत्सव 

धीरेन्द्रजी की रचना 
माथे पर रोली सा फागुन
रंगों की झोली सा फागुन
आँचल में बेताबी बांधें,
दुल्हिन की ओली सा फागुन,
मनोज कुमारजी की रचना 

साल 2009 में दुर्घटनाबस हमारा ब्लॉग बन गया।
 नया-नया नेट लिए थे घर में, ब्रौडबैंड! नया मुरगी
 थोड़ा कुकरू कूं ज़्यादा करता है, सो समय-बेसमय
 बइठ जाते थे कंप्य़ूटर पर
शिखा कौशिकजी की रचना 

११ number   के पैवेलियन का प्रवेशद्वार 
हिंदी के सभी चर्चित प्रकाशकों की  स्टॉल इसी में थी 
डॉ .श्याम गुप्तजी की रचना 
 हमें सोचना होगा ...


  अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ८ मार्च के दिन पर

 विभिन्न कार्यक्रमों, भाषणों, उद्घोषणाओं 

आलेखों आदि मध्य उन पर गहन विचार 

करता हूँ तो कुछ यक्ष-प्रश्न  मन में आकार

 लेते हैं, घुमड़ते हैं, मन को मथते हैं ।..

शालिनी कौशिक जी की रचना 


आज  भारतीय  हॉकी  टीम सभी  के लिए 
चर्चा का  विषय  बनी है वजह केवल एक
 है और  वह है लन्दन ओलम्पिक  गोल्ड 
सभी  की इच्छा है की इस बार ये गोल्ड
 हमारे देश की झोली में आ जाये. 
महेंद्र श्रीवास्तवजी की रचना 

यूपी समेत देश के पांच राज्यों में चुनाव
 प्रक्रिया खत्म हो गई। इस चुनाव मे कौन
 जीता कौन हारा ये बात तो सामने आ गई। 
आशा सक्सेना जी की रचना 



हूँ अधूरी तुम्हारे बिना


आज मैं मैं न  होती 
यदि तुम्हारा   साथ ना पाती
थी चाहत शिखर तक पहुँचने की
रविकरजी की रचना 

चूहे रहे मुटाय, आलसी बने निगोड़े-


डालें दिन में दस दफा, बिना भूख के अन्न ।

पेटू भोजन-भट्ट का, धर्म-कर्म संपन्न ।
साधना वैदजी की रचना 

आक्रोश

अनीता जी की रचना 

कांगो में हुआ भीषण विस्फोट
एक नन्हें बच्चे को दिया अमानवीय दंड
कांप जाता है समाचार पढ़ के मन
कैलाश शर्माजी की रचना 

होली के रंग


नहीं अच्छा लगता 
लगवाना चहरे पर
हरे, पीले, लाल फ़ीके रंग,
जो रंग देते हैं 

कुवंर कुसुमेश जी की रचना 

रंगों की बौछार (दोहे)


हरे-गुलाबी-बैगनी,रंगों की बौछार.
लेकर फिर से आ गया,होली का त्यौहार.
राजेश कुमारीजी की रचना 

प्यारी बिटिया


सुर्ख जोड़े में सजी प्यारी बिटिया
हीरे की कणी सबसे न्यारी बिटिया|
कुमार राधारमण जी की रचना 

फिल्म इंडस्ट्री में कामकाजी जोड़े

घर की दहलीज से बाहर आकर अपने पति या
 पत्नी के साथ काम करना दुधारी तलवार 
साबित हो सकता है। एक ओर आपसी
 रिश्ते में तनाव तो दूसरी ओर प्रोफेशनल
 तरीके से काम न हो पाने का खतरा बना रहता है।


बदलाव की चाहत

बुजुर्ग महिला ने तल्खी से कहा, ‘भैया, क्यूं न लूं सरकार के आने या जाने से? हमारी गली में हर वक्त पानी भरा रहवे है। सड़क टूटी पड़ी है। बच्चे स्कूल आते-जाते गिरते रहवे हैं उसमें।
‘ऐसी गलियां पूरे उत्तर प्रदेश में हैं।’
पत्रकार-अख्तर खान "अकेला"

देश में धर्म के नाम पर पनप रहे अधर्म के व्यापार को रोकने के लियें प्रथक से धर्म मंत्रालय का गठन किया जाये .

धर्म की गलत परिभाषाएं पढाये जाने से देश में नफरत की आग भडक रही है और धर्म का जो मूल भाव मूल शिक्षा भाई चारे और सद्भावना राष्ट्रिय एकता की है वोह इन झगड़े फसाद में विलीन हो गयी है धर्म के नाम पर चंदा वसूली एशो इशरत एक व्यापार बन गया है और प्रत्येक धर्म का अर्थ का अनर्थ निकालकर लोगों को पढ़ाया जा रहा है जिससे नफरत का भाव निरंतर बढ़ता जा रहा है और समाज ही समाज का दुश्मन होता जा रहा है यही वजह है के समाजों में बुराइयां चरम सीमा पर हैं


आंवले की चटनी

आंवले में यदि अदरक को मिला कर पिसा जाये तो इसका कसैलापन खत्म हो जाता है 
सामग्री : २५० ग्राम  आंवला ,  ४,या ५ हरी मिर्च , २ कली लहसुन की, थोडा सा  हरा धनिया 
विधि : आंवलों को धो कर काट लें, और बाकि सब सामग्री के साथ मिक्सी में डाल कर पीस लें ,जैसे अन्य चटनियाँ बनती है , ये चटनी बहुत ही स्वादिष्ट और गुणों से भरपूर होती है ...

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बोन्साई का सा 
जीवन होता है 
लड़कियों का ,

बोन्साई

‘आर्य भोजन‘ ब्लॉग पर  

ज़्यादा खाना कर रहा है बीमार, इस्लाम की सच्चाई की गवाही देती हुई एक रिसर्च

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिखाया है कि

  • अल्लाह के नज़दीक भरे हुए पेट से ज्यादा बुरा बर्तन कोई दूसरा नहीं है ।
  • अपने पेट का एक तिहाई हिस्सा खाने के लिए , एक तिहाई हिस्सा पानी के लिए और एक तिहाई हिस्सा हवाकेलिए रखो।

'ब्रेन फूड' है ब्रेकफास्ट

स्टडीज बताती हैं कि करीब 50 पर्सेंट ओवरवेट पेशंट्स में ब्रेकफास्ट स्किप करने की आदत होती है। वहीं, जो बच्चे घर से ब्रेकफास्ट करके निकलते हैं, वे पूरा दिन एनर्जी से भरपूर रहते हैं और स्कूल में भी अच्छा परफॉर्म करते हैं। 

विटामिन-डी की कमी, समस्या और समाधान

विकीपीडिया के अनुसार :
Vitamin D is a group of fat-soluble secosteroids.
Vitamin D - sunlight through leaves

विटामिन-डी की कमी एक आम समस्या है, लेकिन ज्यादातर लोगों को इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं है। इसकी कमी के लक्षण आमतौर पर बहुत विलंब से पता चलते हैं। विटामिन-डी की कमी का कारण अपर्याप्त आहार के अलावा सूर्य की अपर्याप्त किरणें भी हैं।  
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर 

सूफ़ियों की प्रेमोपासना - Manoj Kumar

हज़रत अली हिज्वेरी रह. का कहना है कि ईश्वर के प्रति साधक के मन में जो प्रेम उत्पन्न होता है, वह इतना व्यापक हो जाता है कि प्रेमी साधक सांसारिक विषयों की ओर से अनासक्त बन जाता है और केवल प्रेम ही के नियमों का पालन कर ईश्वर से तादातम्य स्थापित करता है।

उत्तर प्रदेश में BJP क्यों हारी ?



बहुप्रतिक्षित उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2012 संपन्न हो गये, आशा के विपरीत समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला, बसपा क्यों हारी ?...
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टीम अन्ना भी करे आत्ममंथन ....

 हैरान करने वाली बात ये है कि मुलायम सिंह यादव ने जनलोकबाल बिल का विरोध किया तो उन्हें जनता ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कराई और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूडी ने जनलोकपाल बिल का समर्थन किया और जैसा जनलोकपाल बिल अन्ना टीम चाहती थी, वैसा ही बिल उन्होंने विधानसभा में पास करा दिया, नतीजा क्या हुआ कि बीजेपी तो सत्ता से बाहर हुई ही, बेचारे खंडूडी खुद भी चुनाव हार गए। कम ही ऐसा होता है जब कोई मुख्यमंत्री चुनाव हारता हो।

डा. रूपचंद शास्त्री 'मयंक' जी

डा. रूपचंद शास्त्री 'मयंक' जी
सद्र (अध्यक्ष), महफ़िल ए मुशायरा

रात आँखों में गुज़र जाती है

 हर घड़ी उनकी याद आती है
क्यों मुहब्बत हमें सताती है

चैन छीना, करार छीना है,
रात आँखों में गुज़र जाती


‘प्यारी मां‘ ब्लॉग पर

Cyclebeads या मालाचक्र : गर्भ नियोजन का एक लाभप्रद उपाय


05 दिसम्बर 2011वार्ता| तिरूवनंतपुरम। भारत की बढ़ती आबादी पर काबू पाने के लिए परिवार नियोजन के उपाय के तौर पर साइकिलबीड्स या मालाचक्र विकसित की गयी है जो न केवल बहुत सस्ती है बल्कि उससे किसी तरह के दुष्प्रभाव की कोई गुंजाइश नहीं है।यह उपाय उन लोगों के लिये है जो कण्डोम, गर्भनिरोधक गोली अथवा किसी अन्य प्रकार का गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने...

डैड ने दिया तीन बच्चों को जन्म First Male मदर


जानकर चौंक जाएंगे कि तीन बच्चों के पिता 38 साल के थॉमस ने ही तीनों बच्चों को अपने गर्भ से जन्म दिया। वैसे तो यह माना जाता है कि पूरी दुनिया में 5 मेल मदर हैं, लेकिन कैमरे के सामने प्रेग्नेंसी से लेकर जन्म तक आने वाले थॉमस पहले मेल मदर हैं। दरअसल, अमेरिका में फीनिक्स के थॉमस का जन्म लड़की के रूप में हुआ था, लेकिन 20 साल की उम्र में उन्होंने...
वज़न और जोड़ों का दर्द नियंत्रित रखने के लिए
हम जो कुछ भी खाते हैं ,वह अंत में एक मिनरल एसिड या एल्कली के रूप में परिवर्तित हो जाता है।हमारे शरीर की आवश्यकता एल्कलायन  यानि  क्षार क़ी ही होती है। अत: हमें अपने शरीर  को अधिक एसिडयुक्त खाद्य पदार्थों के द्वारा होन वाले पीएच ओवरलोड से बचाने का प्रयास करना चाहिए।
सेहत के लिए इंसान परेशान है, पैग़म्बर मुहम्मद साहब स. ने सेहत क़ायम रखने के लिए जो तरीक़े बताए हैं, उनकी जानकारी देने के लिए एक पूरा ब्लॉग आपके लिए तैयार है-
‘तिब्बे नबवी‘ के नाम से

Zaitoon (Olive) the sign of peace and friendship in this world has its description in Holy Qur’an Allah Taala says
  1. By the fig and olive
  2. And the mount of Sinai
  3. And the city of security
  4. We have indeed created man in the best of moulds
  5. Then do we abase him (to be) the lowest of low
  6. Except such as believe and do righteous deeds for they shall have a reward unfailing
  7. What then, can after this, make you deny the last judgement
  8. Is not Allah the wisest of judges” (The Fig, Surah 95)

जो चाहता है कि बीमार न हो वह खाने और पीने में एतेदाल से काम ले - इमामे रिज़ा र.

इमामे रिज़ा र. ने तूस में क़याम (सन 201 हि0 से सन 203 हि0) के दौरान मामून रशीद की फ़रमाइश पर इंसानी जिस्म और उसमें होने वाले अमराज़ के सिलसिले में तफ़सील से एक रिसाला तहरीर फ़रमाया जिसमें आप अ0 ने खाना खाने के आदाब, पूरे साल के हर माह की आब व हवा के असरात और उस माह में किन चीज़ों का इस्तेमाल मुफ़ीद है, जिस्म को सेहतमन्द रहने के लिये किन बातों रियायत ज़रूरी है और सफ़र में क्या करना चाहिये तहरीर फ़रमाया जिसमें से कुछ ज़रूरी बातें यह हैं।

दस्तूरे इमामे रिज़ा र. उन ग़िज़ाओं के बारे में जिनको एक साथ नहीं खाना चाहिये...
  • अगर लोग कम खायें तो बदन सेहतमन्द रहेंगे।

दुनिया का सबसे बड़ा झूठ....

 क्या वास्तव में हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं?

अच्छा सोचिए, सेहतमंद बनिए

जिनकी सोच पॉजिटिव वे किसी भी महफिल में छा जाते हैं
लाइफ में जैसे-जैसे भौतिक सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे नेगेटिव सोच बढ़ती जा रही है। निगेटिव थिंकिंग का ही आलम है कि हर तरफ निराशा, हिंसा का वातावरण बनता जा रहा है। आइए जानें पॉजिटिव थिंकिंग के फायदे ... 

कबाड़ की तरह पुराने विचार भी हानिकारक होते हैं

हम जिस प्रकार के विचारों का चयन करेंगे, उसी प्रकार की हमारी नियति भी हो जाएगी। हम सब एक बेहतर जीवन जीने की अपेक्षा ही रखते हैं, अत: बेहतर विचारों का चुनाव भी अनिवार्य है।

‘वेद क़ुरआन‘ ब्लॉग पर प्राचीन इतिहास और ताज़ा घटनाओं की जानकारी देती हुई एक अद्भुत पोस्ट 

अरब और हिंदुस्तान का ताल्लुक़ स्वयंभू मनु के ज़माने से ही है Makkah

काबा वह पहला घर है जो मालिक की इबादत के लिए बनाया गया है। इसे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने सबसे पहले बनाया था। आदम अलैहिस्सलाम को स्वयंभू मनु कहा जाता है। जब उनके बाद जल प्रलय आई तो उसका असर इस घर पर भी पड़ा था। इसके बाद हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आज से लगभग 4 हज़ार वर्ष पहले काबा की जगह पर कुछ दीवारें ऊंची की थीं। ...

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अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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