अरे भई साधो......: जनजीवन को जटिल बनाते अपराधी
मुट्ठी भर अपराधी और कमजोर सरकारी तंत्र आम आदमी के जीवन को जटिल बनाते जा रहे हैं. किसी ज़माने में एक खाताधारी की पहचान पर बैंक बैंक अकाउंट खुल जाता था अब इसके लिए कई तरह के दस्तावेज़ प्रस्तुत करने पड़ते हैं. ट्रेन में सफ़र करना हो किसी दूसरे शहर में होटल में ठहरना हो तो पहचान पत्र की ज़रुरत पड़ती है. आमलोगों के लिए यह पहचान पत्र हासिल करना आसमान से तारे तोड़ लेन के समान है. जनगणना वाले जरूर घर-घर जाकर सर्वे करते हैं लेकिन वोटर लिस्ट तैयार करने वाले या दूसरे पहचान पत्र बनाने वाले बाबू घर-घर नहीं जाते. इसके लिए पैरवी करनी पड़ती है. एक सीधे-सादे गरीब आदमी के लिए पहचान पत्र बनवाना आसान नहीं होता लेकिन अपराधकर्मी जितने फर्जी नामों से चाहें आसानी से बनवा लेते हैं. दूसरी बात यह कि जिन्हें रोजी-रोटी के लिए बार-बार शहर बदलने होते हैं वे हर जगह नया पहचान पत्र कैसे हासिल करें. यह समस्या रहती है.सरकारी तंत्र ख़ुफ़िया जानकारी हासिल करने में पूरी तरह निकम्मी साबित हो रही है. आतंकवादी किसी भी शहर में गोला-बारूद के साथ आकर वारदात को अंजाम दे जाते हैं और सुरक्षा एजेंसियां हाथ मालती रह जाती हैं. घोटालेबाज बड़ी-बड़ी रकमें देश-विदेश के बैंकों में रखते हैं उन्हें कोई परेशानी नहीं होती लेकिन साधारण आदमी 10 -20 लाख भी जमा कर ले तो सवालों की झड़ी लग जाती है. विदेशी बैंकों से कला धन वापस लाने की मांग होती है तो सरकार ऐसी मांग करने वालों की पिटाई करवा देती है और काले धन के खातेधारियों के हितों का परोक्ष रूप से रक्षा करती दिखाई देती है. भारत की सवा सौ करोड़ की आबादी में अपराधियों. जालसाजों, घोटालेबाजों की संख्या एक प्रतिशत भी नहीं होगी लेकिन पूरी आबादी सरकार के तुगलकी नियमों की चक्की में पिस रही है. सिर्फ इसलिए की सरकार गलत तत्वों पर नज़र रखने में विफल है या फिर उनके साथ सांठगांठ कर अपनी चौकसी की खानापूर्ति के लिए आमलोगों को परेशान कर रही है.
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थप्पड़ की प्रशंसा निंदनीय है
जो लोग आज शरद पवार के थप्पड़ मारने और उन्हें कृपाण दिखाने वाले सरदार हरविंदर सिंह की प्रशंसा कर रहे हैं,
क्या वे लोग तब भी ऐसी ही प्रशंसा करेंगे जबकि उनकी पार्टी के लीडर के थप्पड़ मारा जाएगा ?
हम शरद पवार को कभी पसंद नहीं करते लेकिन नेताओं के साथ पब्लिक मारपीट करे, इसकी तारीफ़ हम कभी भी नहीं कर सकते। इस तरह कोई सुधार नहीं होता बल्कि केवल अराजकता ही फैलती है। अराजक तत्वों की तारीफ़ करना भी अराजकता को फैलने में मदद करना ही है, जो कि सरासर ग़लत है।
धर्म और विज्ञान में विरोध इस्लाम के नज़रिये के खि़लाफ़ है किसी भी ज्ञान को अधार्मिक नहीं कहा जा सकता, उलमा साइंस की बुनियाद को समझकर पश्चिमी संस्कृति के चैलेंज का मुक़ाबला करें। - मौलाना सालिम क़ासमी साहब
धर्म और विज्ञान में विरोध इस्लाम के नज़रिये के खि़लाफ़ है.
किसी भी ज्ञान को अधार्मिक नहीं कहा जा सकता, उलमा साइंस की बुनियाद को समझकर पश्चिमी संस्कृति के चैलेंज का मुक़ाबला करें। मौलाना सालिम क़ासमी साहब ने यह बात अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सुन्नी दीनियात डिपार्टमेंट में ‘पश्चिमी संस्कृति और उलमा की ज़िम्मेदारियां‘ के विषय पर बोलते हुए कही। उन्होंने कहा कि साइंस का अर्थ हम ‘हिकमत‘ लेते हैं। जिससे इंसान की भौतिक ज़रूरतें पूरी होती हैं और धर्म इंसान की आंतरिक और आध्यात्मिक ज़रूरत को और इंसान के जीवन के उद्देश्य , सृष्टि और मरने के बाद के सवालात के जवाब देकर इंसान को शांति देता है। उन्होंने उलमा को नसीहत की कि वे साइंसी बुनियादों को समझकर इस्लामी मूल्यों की रौशनी में अपने नज़रिये को बताएं और पश्चिमी संस्कृति के चैलेंज का मुक़ाबला हिकमत और सूझ बूझ से करें।
उन्होंने कहा कि हरेक ज्ञान अल्लाह की तरफ़ से आया है। लिहाज़ा किसी भी ज्ञान को ग़ैर दीनी नहीं कहा जा सकता और आलिमों और मुफ़्तियों का यह फ़र्ज़ है कि वे मसलक और फ़िक्ह को दीन दर्जा न दें जबकि हम से ग़लती यही हुई है कि हमने फ़िक्ह व मसलक को दीन का दर्जा दे दिया है जबकि फ़िक्ह व मसलक का इख्तेलाफ़ सिर्फ़ तरजीह का इख्तेलाफ़ है और वह भी उन मामलों में कि जो ज़न्नी और इज्तिहादी हैं। क़तई उमूर में उम्मत का किसी तरह का कोई इख्तेलाफ़ नहीं है।
शिया दीनियात के डा. असग़र ने कहा कि पूर्वी क़ौमों ने इस्लाम की वजह से कभी मुसलमानों से जंग नहीं लड़ी जो कि पश्चिमी क़ौमें कर रही हैं।
आखि़र में मौलाना सालिम क़ासमी साहब की दुआ के साथ जलसा ख़त्म हुआ।
जलसे के सद्र डा. अब्दुल ख़ालिक़ साहब थे।
रिपोर्ट राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 24 नवंबर 2011 पृ. 6 के आधार पर
मज़दूर की मज़दूरी उसके शरीर का पसीना सूखने से पहले दे दो
अल्लाह कहता है कि परलोक में मैं तीन आदमियों का दुश्मन हूंगा।
एक: जिसने मेरा नाम लेकर (जैसे-‘अल्लाह की क़सम’ खाकर) किसी से कोई वादा किया, फिर उससे मुकर गया,
दो: जिसने किसी आज़ाद आदमी को बेचकर उसकी क़ीमत खाई;
तीन: जिसने मज़दूर से पूरी मेहनत ली और फिर उसे पूरी मज़दूरी न दी।
हदीस-शास्त्र !
मछली को ज़िंदा भी निगल सकती हैं हसीनाएं , चित्र सहित ...
मछली को ज़िंदा भी खाते और खिलाते हैं हमारे कुछ भाई-बहन !
देखिए -
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Treatment for asthma
Hundreds and thousands of people jostled in Hyderabad on Monday to swallow medicine stuffed inside live fish .
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पेड़ पौधों में भी होता है तंत्रिका तंत्र और वे प्रतिक्रिया भी देते हैं
पेड़-पौधे भी प्रकाश में उपस्थित कूट सूचनाओं को याद रखते हैं. इसके साथ ही वे प्रकाश की तीव्रता और उसकी क्वॉलिटी के बारे में एक पत्ते से दूसरे पत्ते तक सूचनाएं पहुंचाते हैं. मतलब यह कि वे भी सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी है, जैसे मानव का तंत्रिका तंत्र काम करता है. ऐसा सेल्स (इलेक्ट्रो-केमिकल सिग्नल) के कारण होता है. यह पेड़-पौधों के तंत्रिका तंत्र के रूप में काम करता है.
इस शोध का नेतृत्व पोलैंड के वर्साव यूनिवर्सिटी के लाइफ साइंस के स्टेनिसलॉ करपिंस्कि ने किया. शोधकर्ताओं ने पेड़-पौधों की प्रतिक्रिया जानने के लिए फ्लूअरेसंस इमेज का उपयोग किया. उन्होंने पाया कि अगर प्रकाश की किरण एक पत्ते पर पड़ती है तो उसका प्रभाव पूरे पेड़ पर पड़ता है. यह प्रतिक्रिया अंधेरे में भी जारी रहती है और पत्ते में लाइट इंड्यूस्ड केमिकल रिएक्शन के रूप में होती है. शोधकर्ताओं ने कहा कि इससे यह साबित होता है कि प्रकाश में उपस्थित कूट सूचनाओं को पेड़-पौधे याद रखते हैं.
करपिंस्कि ने कहा कि हमने प्रकाश को स़िर्फ पेड़ के सबसे निचले हिस्से में देखा. उसके बाद हमने पाया कि पेड़ के ऊपरी हिस्से में भी बदलाव होने लगा. करपिंस्कि और उनकी टीम ने पाया कि जैसे ही एक पत्ते के सेल के साथ प्रकाश का केमिकल रिएक्शन होने लगता है, वैसे ही पूरे पेड़ को इसका सिग्नल प्राप्त होने लगता है. यह प्रतिक्रिया एक विशेष प्रकार के सेल के कारण होती है, जिसे बंडल शेथ सेल कहते हैं. करपिंस्कि ने महसूस किया कि हो सकता है, पेड़-पौधे प्रकाश में उपस्थित कूट सूचनाओं का आदान-प्रदान केमिकल रिएक्शन को प्रोत्साहित और फोटजेंस से प्रतिरक्षा करने के लिए करते हों.
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हस्ती हमारी
आशियाँ हमने बना रखा है तूफानों में,
और तूफानों को समेट रखा है अरमानो में,
हस्ती अब तो इतनी है हम दीवानों में,
अँधेरे में भी तीर लगते हैं निशानों में |
आशाएं हैं भरी हमारी उड़ानों में,
हौसलों की उठान है आसमानों में,
साहस है भरा, जो बिकते नहीं दुकानों में,
अक्सर तौलतें हैं खुद को पैमानों में |
देखेंगे कितना है दम इन हुक्मरानों में,
दिखायेंगे कितना है जोश हम जवानों में,
क्या रखा है अब उन पुराने फसानों में,
वो कर दिखायेंगे जो नहीं हुआ जमानों में |
मुझे सोच कर भी शर्म आती है के कितना निकम्मा है राष्ट्रपति भवन का शिकायत निवारण विभाग
ब्लॉगर्स मीट वीकली (18) Indira Gandhi
सबसे पहले मेरे सारे ब्लोगर साथियों को प्रेरणा अर्गल का प्रणाम और सलाम सबसे पहले मैं इस मंच के सभापति आ .शास्त्रीजी का अभिनन्दन करती हूँ /और आप सभी का इस ब्लॉगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत करती हूँ की आप सभी आयें और अपने अनमोल विचारों से हमें कृतार्थ करें /
ब्लॉगर्स मीट वीकली (18)
आज सबसे पहले मंच की पोस्ट्स |
अनवर जमाल जी की रचनाएँआलू टमाटर को पसंद है मांसाहार |
श्यामल सुमन जी की रचनाअलग अलग हैअयाज़ अहमद जी की रचनाइनका एजेंडा हिडेन बिलकुल नहीं है ..क्या कांग्रेस ही छीन रही है हिंदुस्तानी मुसलमानों से उनका स्वाभिमान ? या दूसरी पार्टियां भी ऐसा ही कर रही हैं ?देवेन्द्र गौतम जीग़ज़लगंगा.dg: अपनी-अपनी जिद पे अड़े थेअरे भई साधो......: आणविक सृष्टि बनाम रासायनिक सृष्टिकुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा जी " की रचना |
मंच के बाहर की पोस्टब्लॉग की ख़बरेंस्कैन कर हिंदी को बदलिए टेक्स्ट फाइल मेंवेद क़ुर'आन परक़ुरबानी पर ऐतराज़ करते हैं लेकिन मांसाहार पर नहीं, जीवों के प्रति दया दर्शाने वाले Contradictionsआर्य भोजन परबनारस में झींगा मछली का पालन शुरूमुशायरा ब्लॉग पर...काश मैं सब के बराबर होताइस बलन्दी पे बहुत तन्हा हूँ, |
राजेश कुमारी जी की रचना लावारिसअशोक कुमार शुक्ला जी की रचना खून से लिपटी कटे हाथों वाली वह लाश किसी और की नहीं मेरी अपनी ही तो थी |
अरुण कुमार निगम जी की रचना बेटी बचाओ अभियानमहेंद्र श्रीवास्तवजी की रचना भिखारियों का अंबानी डॉ. श्याम गुप्त जी की रचना तरक्की का नया नज़रिया ....पढाई आवश्यक नहीं ...... अनामिका जी की रचना बंग भू शत वन्दना ले !मनोज जी की रचना मोनिका शर्मा जी की रचना अति महत्वाकांक्षा के भंवर में फंसती महिलाएं...! डॉ निधि टंडन जी की रचना मेरी पहचान . प्रतिभा सक्सेना जी का लेख स्वराज करुणजी की रचना मनीष सिंह निरालाजी की रचना |
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