गुड खाना और गुलगुलों से परहेज करना

जब भारत देश में हिंदी दिवस आता है तब एक दिन के लिए कलाकार (अभिनेता / अभिनेत्री), पत्रकार, कवि और साहित्यकार हिंदी का गुणगान करते नजर आते हैं और अपनी टिप्पणी/विचारों को ऐसे व्यक्त करते हैं. जैसे उन से ज्यादा बड़ा तो कोई हिंदी प्रेमी इस भारत वर्ष में कोई हैं ही नहीं. उसके बाद 364 दिन हिंदी को अपनी दुश्मन के समान समझते हैं. हिंदी के बड़े-बड़े कलाकार (अभिनेता / अभिनेत्री), पत्रकार, कवि और साहित्यकार आदि अपने नाम को सोशल वेबसाईट (फेसबुक,गूगल,ट्विट्टर आदि) पर (अपनी प्रोफाइल में) हिंदी में लिखना तक पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि कहीं लोग उनको "अनपढ़ और गंवार" ना समझे.
काश ! हमारे देश के सभी बुद्धिजीवी भी हिंदी के प्रति पूरे ईमानदार होकर ज्यादा से ज्यादा हिंदी का प्रयोग करते हुए अपनी सभी बातें/विचार/रचना हिंदी में फेसबुक/टिवटर आदि पर डाले. तब कुछ हिंदी की स्थिति में सुधार संभव है. आज हिंदी की इतनी बुरी स्थिति हिंदी के चाहने वालों की वजह से है. कई तो कहते हैं कि हम हिंदी से अपनी माँ जितना प्यार करते है.मगर फेसबुक/टिवटर आदि पर अपने विचार/बातें/रचनाएँ अंग्रेजी या रोमन लिपि में डालते हैं यानि गुड खाते हैं और गुलगुलों से परहेज करते हैं. 

 मैंने कई अवसरों पर देखा है कि कई कलाकार (अभिनेता / अभिनेत्री), पत्रकार, कवि और साहित्यकार आदि कमाई तो हिंदी की खाते हैं और जब सोशल वेबसाइट पर अपना स्टेटस (गरिमा) दिखाने के लिए हिंदी से मुँह छुपाते नजर आते हैं. इसमें एक आध अपवाद छोड़ दें, क्योंकि कई लोगों फेसबुक आदि पर हिंदी लिखने से संबंधित जानकारी नहीं होती है. वरना.....अधिकांश के पास समय ही नहीं होता है, क्योंकि हिंदी लिखने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत और समय की जरूरत है.
फेसबुक  प्रयोगकर्त्ताओं के लिए जानकारी:-
प्रश्न:-मुझे देवनागरी में नाम लिखने से सर्च करने में परेशानी होती है....इसलिए मैंने रोमन में लिखा हुआ है.....जो भी नाम देवनागरी में लिखे हैं, वो सर्च करने पर नहीं मिलते हैं.  
उत्तर:-अपनी प्रोफाइल में हिंदी में नाम कैसे लिखें:-आप सबसे पहले "खाता सेट्टिंग " में जाए. फिर आप "नेम एडिट" को क्लिक करें. वहाँ पर प्रथम,मिडिल व लास्ट नाम हिंदी में भरें और डिस्प्ले नाम के स्थान पर अपना पूरा नाम हिंदी में भरें. उसके बाद नीचे दिए विकल्प वाले स्थान में आप अपना नाम अंग्रेजी में भरने के बाद ओके कर दें. अब आपको कोई भी सर्च के माध्यम से तलाश भी कर सकता है और आपका नाम हर संदेश और टिप्पणी पर देवनागरी हिंदी में भी दिखाई देगा. अब बाकी आपकी मर्जी. हिंदी से प्यार करो या बहाना बनाओ.

पूरा लेख यहाँ  सिरफिरा-आजाद पंछी: गुड खाना और गुलगुलों से परहेज करना पर क्लिक करके पढ़ें.
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टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 1,70,000 करोड़ की लूट से दस गुनी बड़ी लूट

मत्रियों और नौकरशाहों के गठजोड़ की मिलीभगत ने 155 कोयला खदानों को बिना नीलामी के आवंटित कर देश को 10.67 लाख करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। सदन में रखे जाने से पहले कैग की एक और रिपोर्ट लीक हो गई और जनता के सामने देश के प्राकृतिक संसाधन की एक और लूट नुमाया हो गई। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में 1,70,000 करोड़ की लूट से दस गुनी बड़ी लूट। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 2004 से 2009 के बीच देश के 155 कोल ब्लॉक बगैर नीलामी प्रक्रिया के कंपनियों को सौंप दी गईं। गैरकानूनी ढंग से हुए आवंटन में निजी और सार्वजनिक, दोनों क्षेत्र की कंपनियों ने फायदा उठाया। इनमें टाटा पावर से लेकर भूषण स्टील तक और एनटीपीसी से लेकर एमएमटीसी और सीएमडीसी जैसी कंपनियां शामिल हैं। आवंटित किए गए कोल ब्लॉक में इतना कोयला है कि इससे अगले 50 साल तक हर साल 1,50,000 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है। 1,50,000 मेगावाट बिजली देश की मौजूदा जरूरत से थोड़ी ही कम है। यानी इन कंपनियों ने अगले 50 साल तक पैदा होने वाली बिजली एक ही झटके में हड़प ली और सरकारी खजाने से 10.67 लाख करोड़ रुपये लूट लिये गए। देश में दूसरी हरित क्रांति के लिए 40,000 करोड़ रुपये की जरूरत है। यानी कंपनियों की इस लूट की रकम से 25 बार हरित क्रांति हो सकती है। दरअसल यह देश के प्राकृतिक संसाधन की लूट है। कंपनियां झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र और उड़ीसा जैसे खनिज संसाधन से समृद्ध राज्यों के सबसे पिछड़े इलाकों से कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट जैसे अहम खनिजों की लूट से अपना खजाना भर रही हैं। जबकि सरकार को लगता है कि कंपनियां कारोबार कर रही हैं और उसका लाभ देश को मिलेगा। लोगों को रोजगार मिलेगा। प्रति व्यक्ति आमदनी बढ़ेगी और देश मैन्यूफैक्चरिंग में एक बड़ी ताकत बन कर उभर सकेगा। भारतीय हुक्मरानों को देश को एक महाशक्ति बनाने की जल्दी है। दुनिया में एक महाशक्ति बन कर उभरने की यह जल्दबाजी यह नहीं देखने दे रही है कि आर्थिक तरक्की के खेवनहार संसाधनों को किस तरह लूट रहे हैं। साफ है कि राजनीतिक नेताओं और नौकरशाहों का गठजोड़ कंपनियों की तिजोरी भरने में लगे हुए लगा हुआ है और बदले में उसकी भी जेबें भर रही हैं। पिछले कुछ समय से देश के कारोबारी हलकों में बिजली और स्टील कंपनियों को उत्पादन के लिए भरपूर कोयला न मिलने का रोना रोया जा रहा है। कंपनियां कह रही हैं उन्हें बाहर से महंगा कोयला मंगानापड़ रहा है। बिजली कंपनियां पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रही हैं। इससे देश को ऊर्जा की कमी का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक विकास दर को इससे झटका लग सकता है क्योंकि उत्पादन के लिए बिजली की जरूरत होती है। गैस सप्लाई में भी कमी की दुहाई दे जा रही है। फर्टिलाइजर, स्टील और सीमेंट और बिजली कंपनियां क ह रही हैं कि उन्हें पर्याप्त गैस नहीं मिल रही है उत्पादन कहां से करें। जबकि सबको पता है कि गैस की कीमतें तय करने में रिलायंस इंडस्ट्रीज को किस तरह लाभ पहुंचाया गया। पिछली तिमाहियों में देश की कॉरपोरेट दुनिया की अधिकतर कंपनियों को खासा मुनाफा हुआ है। पता किया जाना चाहिए इस मुनाफे में मिट्टी के मोल मिले रहे खनिज संसाधनों का कितना हाथ है। याद रखा जाना चाहिए कि खनिज संसाधनों पर जनता का अधिकार है। इनका इस्तेमाल आर्थिक तरक्की को रफ्तार देना में होना चाहिए। इस तरक्की में आम लोगों की हिस्सेदारी हो। खनिज संसाधन कंपनियों की बैलेंसशीट मजबूत करने का जरिया न बनें।सस्ते संसाधन को औने-पौने दाम पर हासिल करने वाली कंपनियों से यह पूछा जाना चाहिए कि जिस हिसाब से उनका मुनाफा बढ़ रहा उस हिसाब से क्या वे रोजगार भी पैदा कर रही हैं। जिन पिछड़े इलाकों से ये खनिज हासिल कर रही हैं वहां शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार और दूसरी बुनियादी सुविधाएं विकसित करने में उनका क्या योगदान है? खनिज संसाधनों को लूटने की अनुमति देने वाले मंत्रियों से यह पूछना चाहिए कि क्या वे चुने हुए प्रतिनिधि के तौर पर जनता के हितों की रक्षा में नाकाम रहने की सजा भुगतने को तैयार हैं? नौकरशाहों से यह सवाल किया जाना चाहिए कि लोगों की बेहतरी के लिए बनाई जाने वाली नीतियों को अमली जामा पहनाने की बजाय उनके संसाधनों की लूट की इजाजत उन्हें किसने दी है। आर्थिक उदारीकरण के 20 साल बाद यह साफ दिख रहा है कि आय पिरामिड में नीचे रहने वाले लोगों की समृद्धि घटी है और आम जनता और गरीब हुई है। कई कारोबारी सेक्टरों में नियमन के ढीले-ढाले तरीकों की वजह से अरबों के घोटाले सामने आ रहे हैं और यह रकम न सांसदों की है और न नौकरशाहों और न ही कॉरपोरेट कंपनियों के कर्ता-धर्ताओं की। यह हमारी और आप जैसे भारत के साधारण नागिरकों की संपत्ति है, जिसे सरेआम लूटा जा रहा है। इस संपत्ति का इस्तेमाल आम जनता की बेहतरी में होता है तो मानव विकास सूचकांक में सबसे निचले पायदानों में से एक पर खड़ा हुआ भारत शुरुआती पायदानों पर होता।
Source : http://www.aparajita.org/read_more.php?id=13&position=1
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ग़ज़लगंगा.dg: कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.

हर किसी की आंख में फिर क्यों नहीं चुभता बहुत.
कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.

इसलिए मैं धीरे-धीरे सीढियां चढ़ता रहा
पंख कट जाते यहां पर मैं अगर उड़ता बहुत.
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अगर शासन की बागडोर मेरे हाथ में आ जाये



सरकार चलाना एक बहुत बड़े प्रोजेक्ट को हैंडिल करने जैसा ही है ! समस्याएँ अनेक हैं, साधन भी कम हैं और समय की भी तो सीमा होती है ! ऐसे में आवश्यकता है उन समस्याओं की पहचान करना जिनके निदान से देश में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके, त्वरित राहत मिल सके और उनका निदान हमारे पास उपलब्ध साधनों के द्वारा ही निकाला जा सके ! साधनों से मेरा तात्पर्य हमारे पास उपलब्ध धन, तकनीक व जनशक्ति से है ! मामला ज़रा टेढ़ा तो लगता है लेकिन अगर हमारे पास दूरदृष्टि है और साथ ही शासन की बागडोर भी हमारे हाथ में आ जाये तो फिर तो क्या कहने ! हम तो देश में ऐसा जादू कर दें कि लोग देखते ही रह जायें ! 
सबसे पहले तो विकास के नाम पर जिस तरह से पब्लिक मनी का दुरुपयोग हो रहा है उस पर मैं तुरंत रोक लगा दूँगी ! हमें शहरों के सौन्दर्यीकरण के लिए नये पार्क्स, मॉल्स, या मँहगी-मँहगी मूर्तियों और मनोरंजन स्थलों के निर्माण की कोई ज़रूरत नहीं है ! शहरों की मौजूदा सड़कों और नालियों की सही तरीके से सफाई, और मरम्मत कर दी जाये, सारे शहर में यहाँ वहाँ फैले कूड़े कचरे और गन्दगी के निस्तारण की उचित व्यवस्था कर दी जाये और शहरों में उचित स्थानों पर कूड़ा एकत्रित करने के लिए ढक्कनदार गार्बेज बिन्स को ज़मीन में ठोक कर मजबूती से लगा दिया जाये तो इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है ! बाज़ारों में और सड़कों पर समुचित व्यवस्था ना होने के कारण लोग यहाँ वहाँ गन्दगी करने के लिए विवश होते हैं ! इसे रोकने के लिए स्थान-स्थान पर शौचालयों और मूत्रालयों की व्यवस्था होनी चाहिए और उन्हें साफ़ रखने के लिए कर्मचारी तैनात किये जाने चाहिए ! उनका प्रयोग करने के लिए लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए ! यदि इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाये तो शहरों की सूरत ही बदल जाये ! मेरे हाथ में शासन की बागडोर आ जाये तो मैं सबसे पहले इसी दिशा में काम करना पसंद करूँगी और उन लोगों के साथ सख्ती से पेश आऊँगी जो इसका उल्लंघन करेंगे ! शहरों की सड़कों की मरम्मत और रख रखाव की तो ज़रूरत है ही वहाँ पर राँग पार्किंग और अनधिकृत निर्माण तथा फेरी वाले और चाट पकौड़ों के ठेल वाले और उनके ग्राहकों की भीड़ उन्हें और सँकरा बना देती हैं ! जहाँ थोड़ी सी भी जगह की गुन्जाइश होती है वहाँ कूड़ों के ढेर लग जाते हैं ! सड़कों के आजू बाजू के मकानों की पेंट पुताई और मरम्मत की ओर ध्यान दिया जाये, बाउण्ड्री वाल्स पर पोस्टर्स ना लगाए जाएँ तो यही शहर चमन लगने लगेगा ! हमें अपने शहरों को ढेरों धन व्यय करके लन्दन, पेरिस, रोम या न्यूयार्क नहीं बनाना है बस थोड़ा सा ध्यान देकर बिना अतिरिक्त धन खर्च किये उन्हें साफ़ सुथरा रखें तो ही बहुत फर्क पड़ जायेगा ! मेरे हाथ में शासन की बागडोर हो तो मेरा सारा ध्यान शहरों की साफ़ सफाई, सड़कों और नालियों की मरम्मत और रख रखाव पर ही होगा जिसके लिये धन खर्च करने से अधिक मुस्तैदी से काम करने की ज़रूरत अधिक होगी !   
कोई भी प्रोजेक्ट बिना जन समर्थन के कामयाब नहीं होता ! इसके लिए नये-नये क़ानून बनाने से अधिक जनता में जागरूकता फैलाने के लिये प्रचार प्रसार माध्यमों का सही तरीके से उपयोग करने पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए ! हम इन्हें मजबूत बना कर लोगों को और शिक्षित व सचेत कर सकते हैं और उनकी संकीर्ण सोच को बदल देश में क्रान्ति ला सकते हैं  ! कन्या भ्रूण ह्त्या, बाल विवाह, विधवा विवाह, दहेज, खर्चीली शादियाँ, मृत्यु भोज, परिवार नियोजन आदि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ सिनेमा, नाटक, नुक्कड़ नाटक, टी वी धारावाहिक, सार्थक साहित्य, नृत्य नाटिकायें, पेंटिंग्स इत्यादि को माध्यम बना कर लोगों की सोच में बदलाव लाया जा सकता है ! दृश्य और प्रिंट मीडिया इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं ! मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जाये तो मैं इस दिशा में अवश्य सार्थक पहल करूँगी ! जब जब इनके लिये क़ानून बनाये गये उनका दुरुपयोग किया गया और जनता सरकार के विरुद्ध खड़ी हो गयी ! कानूनों को मन मुताबिक़ तोड़ने मरोड़ने के लिए भ्रष्टाचार बढ़ा ! इनसे निबटने के लिए क़ानून बनाने से अधिक लोगों में सही गलत का निर्णय खुद लेने की क्षमता विकसित करने की अधिक ज़रूरत है !  
बढ़ती जनसंख्या के दबाव के चलते स्थान की कमी हो रही है और जंगल बड़ी मात्रा में काटे जा रहे हैं जिनसे पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है ! मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जाये तो जो स्कूल कॉलेज वर्तमान में चल रहे हैं मैं ना केवल उन्हीं की दशा में हर संभव सुधार लाकर उन्हें और बेहतर बनाऊँगी वरन उन्हीं में दो शिफ्ट्स चला कर नये स्कूल कॉलेज खोलने के खर्च के बोझे से जनता को बचाऊँगी ! इस तरह से बिना किसी अतिरिक्त खर्च के शिक्षा के क्षेत्र में जो कमी आ रही है उसका निदान हो सकेगा ! इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं को भी सुधारा जा सकता है ! नये-नये अस्पताल खोलने की जगह यदि वर्तमान में मौजूद स्वास्थ केन्द्रों, अस्पतालों और नर्सिंग होम्स की दशाओं को सुधारा जाये तो स्थिति में बहुत सार्थक परिवर्तन लाया जा सकता है !
शासन की बागडोर मेरे हाथ में आ जाये तो मेरा अगला कदम यहाँ की न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में होगा ! न्यायालयों में वर्षों से लंबित विचाराधीन मुकदमों का अविलम्ब निपटारा होना चाहिए ! ऐसे कानून जिनका कोई अर्थ नहीं रह गया उन्हें तुरंत निरस्त कर दिया जाना चाहिए ! हर केस के लिए समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए ताकि लोगों को समय से न्याय मिल सके और शातिर अपराधियों को सबूत मिटाने का या गवाहों को खरीद फरोख्त कर बरगलाने का मौक़ा ना मिल सके ! मेरा फोकस इस दिशा में होगा और मैं इसके लिए हर संभव उपाय करूँगी !  
कई उत्पादों जैसे सिगरेट, शराब, पान तम्बाकू, गुटका, पान मसाला आदि पर वैधानिक चेतावनी लिखी होती है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं ! मुझे आश्चर्य होता है कि यदि ये वाकई हानिकारक हैं तो इन्हें बनाने और बेचने का लाइसेंस सरकार देती ही क्यों है ! मेरे हाथों में यदि शासन की बागडोर आ जाये तो सबसे पहले मैं इन हानिकारक वस्तुओं के उत्पादन एवं बिक्री पर रोक लगा दूँगी जो मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और साथ ही आर्थिक तौर पर भी खोखला बना देते हैं और वह अपना विवेक खोकर मनुष्य से जानवर बन जाता है !
भ्रष्टाचार का दानव सबसे अधिक हमारी प्रशासनिक व्यवस्था में पैर पसार कर जमा हुआ है ! इसे वहाँ से हटाना बहुत मुश्किल हो रहा है ! लेकिन ब्यूरोक्रेसी को डाउन साइज़ करके हम इसके आकार प्रकार को कम ज़रूर कर सकते हैं ! मेरे हाथों में शासन की बागडोर आ जायेगी तो सबसे पहले मैं ऐसे नियम कानूनों को हटाऊँगी जिनका अनुपालन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है ! जनता को कानूनों के फंदे में लपेटने से अधिक उचित है कि उनमें सही तरीके से सिविक सेन्स डेवलप किया जाये ताकि वे अपने देश के आदर्श नागरिक बन सकें और स्वयं देश के प्रति अपने दायित्वों और प्राथमिकताओं को समझ कर उनका स्वेच्छा से पालन करें ! यदि वे कायदे कानूनों की अहमियत को नहीं समझते तो वे उनका पालन भी नहीं करते और जब कभी क़ानून के लपेटे में आ जाते हैं तो पैसा ले देकर स्वयं को बचाने की कोशिश में जुट जाते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं ! मेरे हाथों में जिस दिन शासन की बागडोर आ जायेगी इन सभी अनियमितताओं पर मैं ज़रूर अंकुश लगा दूँगी ! लेकिन वह दिन आये तभी ना ! ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी !


साधना वैद

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आधा सच...: बहुत परेशान हैं बेचारे यमराज ...

आधा सच...: बहुत परेशान हैं बेचारे यमराज ...: गतांक से आगे.. जब से यमलोक से लौटा हूं , लोगों ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है। सुबह से शाम तक फोन की घंटी बजती रहती है। सबके एक ही सवाल ह...
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निःशुल्क चिकित्सा शिविर

निःशुल्क चिकित्सा शिविर


बड़े हर्ष के साथ सूचित किया जा रहा है कि दिनांक- 09 सितंबर 2012, दिन- रविवार को अमर वीर इण्टर कालेज, धानापुर में अदनान वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान में निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया है।
चिकित्सा शिविर में अति विशिष्ट चिकित्सकों की टीम द्वारा मरीजों का निःशुल्क परीक्षण किया जाएगा। शिविर में जनरल फिजिशियन, अस्थि रोग, नेत्र रोग, स्त्री व प्रसूत रोग, बाल रोग एवं दंत व मुख कैंसर रोग विषेषज्ञ चिकित्सक मौजूद रहेंगे।
आप समस्त क्षेत्रवासयिों से अपील की जाती है कि भारी संख्या में पहुंच कर चिकित्सा शिविर का लाभ उठायें।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें-
08896653900, 9807765879
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fact n figure: सोशल मीडिया के एक्टिविस्ट टीम की जरूरत

 प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मार्केंडेय काटजू ने इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया के नियमन की जरूरत पर बल दिया है. इसके लिए उन्होंने प्रेस काउंसिल अक्त 1978  में संशोधन का आग्रह किया है. वे इन दोनों मीडिया को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के दायरे में लेन के पक्षधर हैं. इस ब्लॉग पर 20  अगस्त के पोस्ट में मैंने भी इस तरह के विचार रखे थे लेकिन मेरी अवधारणा   थोडा भिन्न है. काउंसिल शिकायतों की सुनवाई करने वाली एक संवैधानिक संस्था है. मेरे विचार में सोशल मीडिया के अंदर गड़बड़ी फ़ैलाने या इसका दुरूपयोग करने वालों को नियंत्रित करने के लिए इतनी लंबी प्रक्रिया कारगर नहीं होगी. यह प्रिंट की अपेक्षा फास्ट मीडिया है इसलिए अफवाहों को कुछ ही क्षणों में जवाबी कार्रवाई कर निरस्त करने के जरिये ही इसपर नियंत्रण पाया जा सकता है. इसके सेवा प्रदाता अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क का संचालन करते हैं इसलिए कानूनी प्रक्रिया बहुत पेचीदा हो सकती है. राष्ट्रहित में इसपर नियंत्रण के लिए एक्टिविस्ट किस्म के लोगों की एक टीम होनी चाहिए जो इस मीडिया में दखल रखते हों. वे काउंसिल के दायरे में काम करें लेकिन उनका विंग अलग हो तभी बात बनेगी. हमला जिस हथियार से हो जवाब भी उसी हथियार से देना होता है. यह प्रोक्सी वार का जमाना है. इसका जवाब एक्टिविज्म       के जरिये ही दिया जा सकता है. दूसरी बात यह कि आरएनआई, ड़ीएवीपी जैसी संस्थाओं में कुछ अहर्ताओं के आधार पर भारतीय वेबसाइट्स को सूचीबद्ध कर उन्हें और जवाबदेह बनाने की संभावनाओं पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

---देवेंद्र गौतम
fact n figure: सोशल मीडिया के एक्टिविस्ट टीम की जरूरत:

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हज यात्रियों को मिलेगा सउदी का सिमकार्ड Sim Card

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इस साल हज पर जाने वाले भारतीय नागरिकों को पहली बार सउदी टेलीकॉम की ओर से सिमकार्ड बेहद किफायती  दर पर मुहैया कराया जाएगा। जेददा में भारतीय महावाणिज्य दूतावास ने एक बयान में कहा कि इस सिमकार्ड के जरिए कॉल करने की दर पांच रियाल होगी, जबकि इनकमिंग मुफ्त होगी। इस सिमकार्ड में पहले से ही सभी संबंधित अधिकारियों और कुछ दूसरे महत्वपूर्ण नंबर भी होंगे। बयान में कहा गया है कि ये सिमकार्ड भारत में ही विभिन्न स्थानों पर दिए जाएंगे ताकि हज यात्रियों के परिवार के लोग ये नंबर पहले से ही जान सकें। महावाणिज्य दूतावास ने कहा कि भारतीय हज यात्रियों को पूरी सुविधा मुहैया कराने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। 
सौरसे : http://www.livehindustan.com/news/videsh/international/article1-Haj-Saudi-SIM-Cards-Indian-Haj-pilgrims-2-2-256582.html
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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