एक सांचे में ढाल रखा था.
हमने सबको संभाल रखा था.
एक सिक्का उछाल रखा था.
और अपना सवाल रखा था.
सबको हैरत में डाल रखा था.
उसने ऐसा कमाल रखा था.
कुछ बलाओं को टाल रखा था.
कुछ बलाओं को पाल रखा था.
हर किसी पर निगाह थी उसकी
उसने सबका ख़याल रखा था.
गीत के बोल ही नदारत थे
सुर सजाये थे, ताल रखा था.
उसके क़दमों में लडखडाहट थी
उसके घर में बवाल रखा था.
उसकी दहलीज़ की रवायत थी
हमने सर पर रुमाल रखा था.
साथ तुम ही निभा नहीं पाए
हमने रिश्ता बहाल...
सोशल मीडिया नेटवर्किंग का नया चेहरा worldfloat.com Hndi Blogging Guide (39)

सोशल मीडिया के जमाने में वर्ल्डफ्लोट अपनी पुख्ता पहचान बना रही है। इसके जरिए बिना किसी रुकावट के देश-विदेश के लोगों से संपर्क साधा जा सकता है। वर्ल्डफ्लोट के बारे में जानिए यहां।
सोशल मीडिया ने आज यकीनन दुनिया को छोटा कर दिया है। फेसबुक और कई अन्य वेबसाइटों ने लोगों को एक दूसरे के बेहद करीब ला दिया है। युवाओं में खासतौर पर सोशल नेटवर्किंग...
हिंदी और उर्दू का फिजूल विवाद -Jawahar lal Nehru
कुछ दिन से फिर हिंदी और उर्दू की बहस उठी है, और लोगों के दिलों में यह शक पैदा होता है कि हिंदी वाले उर्दू को दबा रहे हैं और उर्दू वाले हिंदी को। लेकिन अगर जरा भी विचार किया जाए, तो यह बिल्कुल फिजूल मालूम होता है। साहित्य ऐसे नहीं बढ़ा करते। अक्सर साहित्य का अर्थ हम कुछ दूसरा ही लगाते हैं। हम भाषा की छोटी बातों में बहुत फंसे रहते हैं और...
Mushayera: हज़ारों साल जी लेते अगर दीदार ना होता
Mushayera: हज़ारों साल जी लेते अगर दीदार ना ह...
हुनर कहीं भी सीखें केंद्र देगा प्रमाण-पत्र -मदन जैड़ा
फैजान मोटरगाड़ियों का मिस्त्री है। मगर, यह हुनर उसने किसी ट्रेनिंग स्कूल
में नहीं सीखा, बल्कि एक मैकेनिक के यहां काम करते हुए यह सब सीख लिया।
ऐसे ही कई लोगों के पास हुनर तो है, पर किसी इंस्टीटय़ूट का सर्टिफिकेट
नहीं। सरकार अब ऐसे ही लोगों की पहचान कर उन्हें हुनर का प्रमाण-पत्र देगी।
इससे वे न केवल प्रशिक्षित कामगारों की तर्ज पर मेहनताना ले सकेंगे, बल्कि
उनके लिए करियर की नई राहें भी खुल जाएंगी।
मानव
संसाधन विकास मंत्रालय ने नेशनल...
ग़ज़लगंगा.dg: चांद निकला भी नहीं था और सूरज ढल गया.
एक लम्हा जिंदगी का आते-आते टल गया.
चांद निकला भी नहीं था और सूरज ढल गया.
अब हवा चंदन की खुश्बू की तलब करती रहे
जिसको जलना था यहां पर सादगी से जल गया.
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ग़ज़लगंगा.dg: चांद निकला भी नहीं था और सूरज ढल गया.:
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खबरगंगा: खुश रहो न !
कई दिनों की बारिश के बाद बादल एकदम चुप से थे..न गरजना न बरसना ... ठंडी हवाएं जरुर रह-रह कर सहला जाती थी...धूली, निखरी प्रकृति की सुन्दरता अपने चरम पर थी ....मुझे पटना जाना था ...ट्रेन में खिड़की वाली सीट मिली (मेरा सौभाग्य )...हमारा सफ़र शुरू हुआ .... दूर तक पसरे हरे-भरे खेत, पेड़ो की कतारें, बाग़-बगीचे दिखने लगे....मैं बिलकुल 'खो' सी गयी थी ...कि एक जगह ट्रेन 'शंट' कर दी गयी...माहौल में ऊब और बेचैनी घुलने लगी.. बचने के लिए...
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