![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_JckXBSN3-kEIZDqWUxtxCsuyFpiCqLShFNKgkjZsjAW8OvHHXJYZmsQXREVhMwO-OMzLKRZt9hOCmQvFX2c_Hji-fAJ24tkUEa2mGHj12EA2UQV8EdNnY673eNeJfKMHxXXIPj8U6dk/s200/Photo0072.jpg)
हर रोज वो रास्ता ढूँढ लेते हैं।
मैं छुप जाता हूँ अंधेरों में अक्सर,
फिर भी जाने किससे
वो मेरा पता पूछ लेते हैं।
कभी उनकी आवाज मुझे सताया करती थी,
आज ख़ामोशी से अपनी,
वो मेरा सीना चीर लेते हैं।
मैं कुछ भी नहीं बिन तेरे
इस जहां में माही !
फिर भी
"कोई तो है"....
ये कह के वो मुझसे मेरा
वजूद भी छीन लेते हैं ...
- महेश बारमाटे "माही"