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जरूरी है राजनीति के शर्मनाक दौर की हार


जरूरी है राजनीति के शर्मनाक दौर की हार 
   Bharatiya Janata Party  Nitin Gadkari not quitting, rules BJP top brass India Against Corruption Sonia Gandhi Indian National Congress
भारतीय राजनीति आज जिस दौर से गुज़र रही है उसे शर्मनाक ही कहना ज्यादा सही होगा .मेरे पूर्व आलेख ''अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे,मोदी की पत्नी क्या मुफ्त की ?"'को पढ़ किसी ने मुझे अंध कॉंग्रेसी मानसिकता का कहा तो किसी ने सभ्यता की हद में रहने को कहा .सबसे पहले तो  मैं ये कहूँगी कि मैं कॉंग्रेसी हूँ किन्तु इसकी अंध भक्त मुझे नहीं कहा जा सकता इस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गाँधी जी व् राहुल गाँधी जी को भले ही कोई कुछ भी कहे किन्तु एक बात तो उन दोनों की प्रशंसनीय है ही कि वे किसी भी राजनेता पर अभद्र व् व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करते .जो कि इस वक़्त भारतीय राजनीति में आम है .जिस लेख को लेकर मुझे सभ्यता की परिधि में रहने को कहा गया वह आलेख केवल ''शठे शाठ्यं समाचरेत ''पर आधारित है .मोदी जी जब थरूर व् सुनंदा पर व्यक्तिगत आक्षेप करते हैं और अभद्रता से करते हैं तब कोई उन्हें इस सीमा की याद  क्यों नहीं दिलाता और जब उनके मामले में सब चुप रहते हैं तो मुझे कुछ कहने को कैसे आगे बढ़ जाते हैं ?वास्तव में जो जिस भाषा को समझता है उससे उसी भाषा में बात की जाती है .सभी जानते हैं कि ''बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद ."
                                  अब आते हैं भारतीय राजनीति के इस शर्मनाक दौर पर जिसमे जिसे देखो अभद्रता की हदे पार कर रहा है .राहुल गाँधी को 'बुद्धू'कहने वाले सुब्रहमनियम  स्वामी  को यदि राहुल भी उनकी भाषा में जवाब दें तो क्या उनकी शक्ल पर बारह नहीं बज जायेंगें . सुब्रहमनियम  स्वामी का ''खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे ''वाली स्थिति तो अब राहुल गाँधी  द्वारा अदालती कारवाई की  चेतावनी पर हो गयी है .राहुल गाँधी की चिट्ठी मिलने से इंकार करने वाले ये स्वामी अपने जाल में खुद फंसते नज़र आ रहे हैं .एक बुद्धिजीवी वकील होते हुए वे सड़क छाप नेता की तरह बोल रहे हैं .कहते हैं ''कि कोई चिट्ठी नहीं मिली और अगर मिलेगी तो कूड़ेदान में फैंक दूंगा .''भला क्यूं ?यदि वे सही हैं तो चुनौती स्वीकार करें और आरोपों को साबित करके दिखलायें .भला मुझे कॉंग्रेस के अंध भक्त कहने वाले मोदी व् स्वामी के चाटुकारों  को ये देखना चाहिए कि इस तरह की छिछोरी बातों  से वे खुद ही गाँधी परिवार को मजबूती दे रहे हैं .
                                                   
         ''नॅशनल हेराल्ड ''को ९० करोड़ देने की बात पर स्वामी चुनाव आयोग पहुँच कांग्रेस की  मान्यता रद्द करने की बात करते हैं .देखा जाये तो उनके लिहाज से कॉंग्रेस को मान्यता मिलनी ही नहीं चाहिए क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही यह समाचार पत्र कॉंग्रेस की  विचारधारा को प्रसारित कर रहा है .और ये तब जबकि यह समाचार पत्र कॉग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु  जी द्वारा स्थापित  किया गया है ,और देश में कई राजनीतिक दल हैं जो अपनी विचारधारा के प्रचार -प्रसार के लिए अपना समाचार पत्र  निकालते हैं और इससे किसी भी दल की मान्यता को कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और ये जो अज स्वामी की भूरी भूरी प्रशंसा में लगे हैं उनके कंधे पर रखकर बन्दूक चला रहे हैं और और उनके सिर पर रखकर राजनीति की रोटी सेंक रहे हैं उन्हें बहुत योग्य वकील कहते हैं .और ये तब जबकि यह समाचार पत्र कॉग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु  जी द्वारा स्थापित  किया गया है ,और देश में कई राजनीतिक दल हैं जो अपनी विचारधारा के प्रचार -प्रसार के लिए अपना समाचार पात्र निकालते हैं और इससे किसी भी दल की मान्यता को कोई प्रभाव नहीं पड़ता है .स्वामी आज जिस राजनीति की डोर पकड़ कर चल रहे हैं वह केवल कुत्सित मानसिकता की परिचायक है और न केवल स्वामी बल्कि आज के अधिकांश राजनेता उसी राह पर चल रहे हैं जिसमे केवल अस्वस्थ आलोचना की जाती है .अभी कल की ही तो बात है भाजपा अध्यक्ष गडकरी जी के बयाँ को लेकर सियासी हलकों में तूफ़ान सिर उठाये है .यह तो सर्वविदित है कि स्वामी विवेकानंद  की दाऊद  इब्राहीम से कोई तुलना नहीं की जा सकती किन्तु यहाँ उन्होंने दिमाग की दिशा की बात की है जो विवाद का नहीं प्रशंसा का विषय है .स्वामी विवेकानंद जहाँ एक ओर संसार के उत्कृष्ट प्रेरक व्यक्तित्व हैं वहीँ दाऊद इब्राहीम विश्व का निकृष्टतम त्याज्य व्यक्तित्व है .गडकरी जी के अनुसार यह केवल दिमाग को दिशा देने की बात है जो दिमाग सत्कार्यों में लगा वह विवेकानंद बन जाता है और जो दुष्कृत्यों में लगा वह दाऊद इब्राहीम बन जाता है .
                                 आज अन्य सभी दलों के नेताओं ने इस बयान पर बबाल खड़े कर रखे हैं .जबकि सभी कहते हैं कि अच्छे काम को तारीफ और बुरे काम को बुराई मिलनी चाहिए .क्या हमारे राजनीतिज्ञ इससे अनभिज्ञ हैं ?पंडित जवाहर लाल नेहरु जी ने लोकसभा  में पूर्व  प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को सुनकर उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी और कहा था -"कि ये लड़का राजनीति में बहुत आगे जायेगा ."क्या आज के राजनीतिज्ञ इस नीति को नहीं अपना सकते ?
    और यही बात आम जनता के लिए है सवाल केवल कॉंग्रेस ,भाजपा ,सपा ,बसपा आदि के प्रति झुकाव का नहीं है ,सवाल योग्यता को अंधेरों से बहर लेने का है ,सवाल ईमानदारी को  सिंहासन आरूढ़ करने का है ,सवाल भ्रष्टाचार को खत्म करनेका है . केजरीवाल कहते हैं कि कॉंग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है ,कॉंग्रेस विपक्ष को ,भाजपा को दोषी ठहराती है वास्तविकता यह हैं कि भ्रष्टाचार  जनता की देन है जो अपने छोटे छोटे कामों को कराने के लिए और जल्दी करवाने के लिए किसी की कोई भी मांग मानने को तैयार हो जाती है .अगर हम सच में कुछ करना चाहते हैं और सत्ता में ईमानदार योग्य व् कुशल प्रशासक चाहते हैं तो हमें ''चाहे जैसे भी हो अपना काम होना चाहिए की नीति ''छोडनी होगी और अराजक ताकतों को मुहं तोड़ जवाब देना होगा .
                                 मोदी हों या मुख़्तार अब्बास नकवी ,दिग्विजय सिंह हों या जगदम्बिका पाल ऐसे नेताओं को अपनी राजनीति की लगाम कसनी होगी और व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप की राजनीति छोड़ नीति ,कार्यप्रणाली की आलोचना व् सुधार पर ध्यान केन्द्रित कर देश का भला करना होगा .
                     साथ ही एक बात और आज केजरीवाल के कार्य की भूरी भूरी प्रशंसा करने वालों को भी ये शपथ लेनी होगी कि आज जिस तरह वे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने में उनको शीर्ष पर चढ़ा रहे हैं ठीक वैसे ही समय आने पर वे वोट देकर उनके हाथ मजबूत करेंगे  क्योंकि उनके हाथों की मजबूती केवल उनकी नहीं वरन लोकतंत्र की ,जनता की मजबूती होगी और हमारी राजनीति के शर्मनाक दौर की हार भी .
                              शालिनी कौशिक 
                                 [कौशल ]
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