साझा ब्लॉग कैसे बनाएं ? Hindi Blogging Guide (33)


दोस्तों ! अब तक तो आप साझा ब्लॉग की महिमा को जान ही चुके होंगे, तो क्यों न अब अपना खुद का कोई साझा ब्लॉग बनाया जाये ? जैसा कि हमने आपको बताया कि साझा ब्लॉग हर ब्लॉगर अपने नज़रिए से बनाता है, तो पहले ये सुनिश्चित कर लें कि आप किस विशेष उद्देश्य के लिए साझा ब्लॉग बनाना चाहते हैं ? अब नीचे दिए जा रहे स्टेप्स को ध्यान पूर्वक पढ़ें और उनके अनुसार जुट जाइए अपना स्वयं का पहला साझा ब्लॉग बनाने में...
  1. सबसे पहले अपने ब्लॉगर अकाउंट पे लॉगिन करें.
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  1. अब एक नया ब्लॉग बनाएं (अगर आप अपने व्यक्तिगत ब्लॉग को साझा ब्लॉग में तब्दील न करना चाहें तो).
  2. अब अपने डैशबोर्ड पे अपने नए व्यक्तिगत ब्लॉग की सैटिंग पर क्लिक करें.
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  1. सैटिंग पे क्लिक करते ही बेसिक सैटिंग पेज खुल जायेगा. जिस पे बिलकुल दायीं तरफ "Permissions" नाम के लिंक पर क्लिक करें.
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  1. अब Add Authors बटन पर क्लिक करें.
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  1. अब एक नया टेक्स्ट बॉक्स "Invite more people to write to your blog" के नीचे दिखाई देगा. इस टेक्स्ट बॉक्स में आप जिन जिन ब्लॉगर सदस्यों को अपने साझा ब्लॉग में शामिल करना चाहें उनके ईमेल एड्रेस लिखें. एक से ज्यादा ईमेल एड्रेस होने पर सभी ईमेल को अल्पविराम (या Comma ",") के द्वारा पृथक करते जाएँ.
  2. अब Invite बटन पर क्लिक करें.
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ये लीजिये आपका साझा ब्लॉग तैयार हो गया. जैसे ही आप Invite बटन पर क्लिक करेंगे ब्लॉगर.कॉम एक ईमेल, सम्बंधित सदस्य को भेजेगा. जिसमे दिए गए लिंक को क्लिक करने के बाद वह व्यक्ति सीधे ब्लॉगर.कॉम के लॉगिन पेज पे पहुँच जायेगा जिसमे उसे अपने जीमेल अकाउंट से लॉगिन करना होगा ताकि वो आप के आमत्रण को स्वीकार कर सके. आमंत्रण स्वीकार करने के बाद वह ब्लॉगर (या व्यक्ति) आपके साझा ब्लॉग का सदस्य बन जाएगा और आपको उस व्यक्ति का ईमेल एड्रेस तथा नाम इसी Permission पेज पर दिखाई देने लगेगा.
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अगर आमंत्रित व्यक्ति का पहले से ब्लॉगर.कॉम पर कोई अकाउंट नहीं है तो उसे अपने जीमेल अकाउंट का उपयोग करते हुए बस अपना display name (ब्लॉग में दिखने वाला नाम) डाल कर साइन अप करना होगा और फिर वह व्यक्ति आपके साझा ब्लॉग का सदस्य बन जायेगा.
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साझा ब्लॉग से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :
  • अब अगर आप चाहें तो किसी सदस्य की सदस्यता समाप्त भी कर सकते हैं, उसके लिए आपको बस permission पेज पर उक्त ब्लॉगर के नाम के सामने लिखे "Remove" लिंक पर क्लिक करना होगा.
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  • अगर आपका साझा ब्लॉग का उद्देश्य ऐसा हो जहाँ आपको लेखकों के अलावा ब्लॉग के देख-रेख के लिए एक नियंत्रण समिति का होना जरूरी है तो आप किसी भी सदस्य को एडमिन पॉवर दे सकते हैं. परन्तु ध्यान रहे कि एडमिन पॉवर देने के बाद उक्त सदस्य का भी आपकी ही तरह ब्लॉग पे पूरा नियंत्रण हो जायेगा और अगर वो चाहे तो आपकी ही तरह सारे ब्लॉग को डिलीट कर सकता है यहाँ तक कि वह आपसे आपका एडमिन पॉवर भी छीन सकता है. अतः आपको पूरी सावधानी बरतते हुए ही किसी को एडमिन पॉवर देनी चाहिए.
एडमिन पॉवर व्यवस्था बनाए रखने के लिए होती है। अगर संयोजक ख़ुद ही ज़्यादातर इंटरनेट पर रहता है और वह तकनीकी महारत भी रखता है तो बेहतर है कि वही इसकी देखरेख और सजावट करे और अगर वह ऐसा नहीं कर सकता तो फिर जो समय दे सकता हैउसे एडमिन पॉवर दे दें ताकि अनापेक्षित कमेंट आदि हटाये जा सकें। ऐसा मेरा मानना है।
डॉ. अनवर जमाल खान
  • किसी सदस्य को एडमिन पॉवर देने से पहले उस व्यक्ति से आपको ईमेल के जरिये अनुमति ले लेना चाहिए कि क्या वे इस पद भार के लिए तैयार हैं ?
  • अगर सामने वाले की अनुमति है तो उसे पहले कुछ नियम व शर्तों से अवगत कराएँ, जैसे कि -
1. आप बिना नियंत्रण मंडल की अनुमति के इस साझा ब्लॉग पर एकाधिकार नहीं कर सकते.
2. किसी ब्लॉगर की सदस्यता समाप्त करने के लिए आपको पहले उस ब्लॉगर को चेतावनी देनी होगी, और अगर वह ब्लॉगर फिर भी आपकी बात नहीं मानता तब आप नियंत्रण मंडल की सहमति से उस ब्लॉगर को एक और चेतावनी दे के अपने ब्लॉग से बहार कर सकते हैं
3. और जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर जाएँ –
शीर्षक - साझा ब्लॉग आपकी जागीर नहींलेखक -  एस. एम. मासूम.
  • इस तरह के कुछ नियमो के बाद आप एडमिन पॉवर उक्त ब्लॉगर को प्रदान करने के लिए निम्न तरीका अपनाएँ -
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Login → Settings → Permissions → Grant admin privileges → और फिर एक चेतावनी ब्लॉगर.कॉम की ओर से आपके समक्ष आयेगी, तब आप GRANT ADMIN PRIVILEGES बटन पर क्लिक करें.
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  • एडमिन  पॉवर देने का मतलब ये नहीं कि आपने सामने वाले को अपना जीमेल अकाउंट या व्यक्तिगत ब्लॉग चलाने की अनुमति दे दी है. एडमिन पॉवर मिल जाने के बाद उक्त ब्लॉगर केवल उसी साझा ब्लॉग को पूरी स्वतंत्रता से इस्तेमाल कर सकता है जिसके लिए उसे एडमिन पॉवर मिली है. वो आपके और किसी व्यक्तिगत या साझा ब्लॉग को कुछ नहीं कर सकता.
तो क्या सोच रहे हैं आप ?
आज क्या नया करने जा रहे हैं ? एक साझा ब्लॉग या और कुछ ?

इंजी० महेश बारमाटे "माही"

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साभार – Blog Tutorial : Create a Blog with Multiple Authors

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ब्रह्मचर्य का मतलब क्या होता है ?


सुरक्षित गोस्वामी 
आध्यात्मिक गुरु 
ब्रह्मचर्य का मतलब क्या होता है? क्या ब्रह्मचर्य धारण करने से ताकत और सहन शक्ति बढ़ जाती है?
एक पाठक 
संस्कृत भाषा में ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है परमात्मा या सृष्टिकर्ता और चर्य का अर्थ है उसकी खोज। यानी आत्मा के शोध का अर्थ है ब्रह्मचर्य। आम भाषा में ब्रह्मचर्य को कुंवारेपन या सेक्स से दूरी रखना माना जाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी माना गया है कि मन, कर्म और विचार से सेक्स से दूर रहना ब्रह्मचर्य है। मेडिकल साइंस ही नहीं बल्कि पुरातन ज्ञान भी नहीं कहता कि ब्रह्मचर्य का मतलब वीर्य इकट्ठा करना है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, कामसूत्र और अष्टांग हृदय में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया है। 

कुछ लोग इस गलत धारणा में रहते हैं कि सेक्स से परहेज करना स्वास्थ्य व खुशी के लिए अच्छा है। वे अपनी तथाकथित ऊर्जा को सेक्स संबंधों से परहेज रखकर सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं। उन्हें लगता है कि सेक्स से दूर रहकर जिंदगी लंबी होती है, बदन हृष्टपुष्ट होता है और मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है। यह हकीकत नहीं है। वीर्य एक रस है जो 24 घंटे बनता रहता है। अगर कोई उसे रोकना चाहे, तो भी नहीं रोक सकता। वीर्य को अनिश्चित समय के लिए रोककर रखना मुमकिन नहीं है, चाहे कोई कितना भी संयम करे या योगी और संन्यासी हो। जिस तरह से अनिश्चित काल के लिए मलमूत्र को रोकना नामुमकिन है, उसी तरह वीर्य को भी रोककर रखना असंभव है। 

वीर्य बनने की यह प्रक्रिया दिन-रात चलती रहती है। मिसाल के तौर पर पानी से भरे गिलास में अगर और पानी भरने की कोशिश करेंगे तो वह छलक जाएगा। उसी तरह अगर कोई आदमी मैथुन या हस्तमैथुन नहीं करता तो उसका वीर्य स्वप्न मैथुन या निद्रा मैथुन के जरिए बाहर आ ही जाएगा। यह भी गलतफहमी है कि सौ बूंद खून से एक बूंद वीर्य बनता है और एक बूंद खून बनाने के लिए उससे कई गुना पौष्टिक आहार लेने की जरूरत पड़ती है। हकीकत में तो आहार और वीर्य का कोई संबंध ही नहीं है। यह सोच कि अगर हम वीर्य नष्ट नहीं करेंगे तो ज्यादा स्वस्थ रहेंगे और लंबा जीवन जिएंगे, सही नहीं है। इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ज्यादातर ब्रह्मचारी या अविवाहित लोगों का इंतकाल जल्दी हुआ है। इनमें बड़े-बड़े लोगों के नाम भी शामिल हैं। 

सेक्स से परहेज करना नपुंसकता का एक कारण बताया गया है। जब लोग परहेज रखकर सेक्स से दूरी बना लेते हैं तो उनमें अपराधबोध और एंजाइटी हो जाती है। कामेच्छा दबाने की यह प्रक्रिया जब बार-बार होती है तो समस्या की जड़ें फैल जाती हैं। दिमाग में एक भावनात्मक असंतुलन पैदा होता है और ऐसे लोगों में सेक्स के ही ज्यादा विचार आने लगते हैं। ध्यान केंद्रित न होना, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और घबराहट बढ़ जाती है। अगर कोई ज्यादा सेंसिटिव है तो ज्यादा समस्या हो जाती है। कई बार जननांगों का स्वाभाविक कामकाज प्रभावित हो जाता है। उनमें कमजोरी आने लगती है। इसका कारण उनका प्रयोग न करना होता है। ज्यादातर मानसिक कमजोरी आ जाती है जो बाद में शारीरिक कमजोरी में भी बदल सकती है। 

ब्रह्मचर्य धारण करने से कोई चमत्कार नहीं होता है। गृहस्थ में रहकर भी ब्रह्म की खोज यानी ब्रह्मचर्य पाया जा सकता है। पूज्य बापू महात्मा गांधी ने भी इसके बारे में बहुत कुछ लिखा है, लेकिन यह जानना जरूरी है कि बापू पॉलिटिशियन थे, सेक्सॉलजिस्ट नहीं।

source :
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पुलिस की इतनी हिम्मत.....


 जरा इस सिपाही की हिम्मत तो देखिए, दिल्ली हाईकोर्ट बम विस्फोट में घायल महिला को खुद ही उठाकर एंबूलेंस तक ले जा रहा है, इसे कानून का जरा भी डर नहीं है और ये भी कि वो कैमरे में कैद हो रहा है। कुछ देर में टीवी और अखबार में उसकी तस्वीर आ जाएगी। इसे हो क्या गया है महिला सिपाही का इंततार भी नहीं कर रहा। भाई तुम्हारे अंदर का इंसान भले तुम्हें इस महिला की मदद करने की इजाजत दे रहा हो, पर दोस्त जो वर्दी तुमने पहन रखी है ना, ये इजाजत नहीं देता कि तुम महिला को गोद में उठाने की हिमाकत करो। बहरहाल तुमने अपने मन की सुनी और महिला की मदद की, मैं तुम्हें सलाम करता हूं।
मित्रों, ब्लास्ट के अगले दिन जब मैने अखबारों में ये तस्वीर देखी तो अपनी सोच पर बहुत शर्मिंदा हुआ और आपको भी होना चाहिए, सबसे ज्यादा शर्मिंदा तो बाबा रामदेव को होना चाहिए। वैसे मुझे भरोसा तो नहीं है कि राहुल गांधी शर्मिंदा होने को तैयार होगें, लेकिन मौका है कि इस तस्वीर को देखकर वो भी शर्मिंदा हो जाएं तो शायद उनका पाप भी कुछ कम हो जाए।
सुरक्षा जांच में लगे पुलिसकर्मी ने अगर किसी महिला के पर्स को चेक भर कर लिया तो देश में तथाकथित सामाजिक संगठन हाय तौबा करने लगते हैं। अरे ये क्या बात हुई, महिला को कैसे कोई पुरुष सिपाही छू सकता है। रामलीला मैदान में अनशनकारियों को हटाने गए पुलिसकर्मियों पर बाबा रामदेव खूब बरसे। उन्होंने सबसे पहले यही आरोप लगाया कि मैदान में महिलाएं भी मौजूद थीं, बिना महिला सिपाही के दिल्ली पुलिस यहां आ धमकी और महिलाओं के साथ बुरा सलूक किया। राहुल गांधी भी नोएडा के पास भट्टा पारसौल गांव में जमीन अधिग्रहण के विवाद को नया रंग देने लगे। उन्होंने आरोप लगाया कि गांव में छापेमारी के दौरान पुलिस वालों ने महिलाओं के साथ बलात्कार किया। पुलिस वालों पर ये आरोप हमेशा लगते रहे हैं। यहां सिर्फ एक बात बताना जरूरी समझता हूं कि बाबा रामदेव ने जब कहा कि पुलिस ने महिलाओं के साथ दुर्व्यहार किया और उन्होंने किसी एक का नाम तो बताया नहीं। ऐसे में रामलीला मैदान पहुंचे सभी पुलिसकर्मी अपने परिवार की नजर में बहुत छोटे हो जाते हैं। राहुल ने गांव में महिलाओं के साथ बलात्कार का आरोप लगाया तो यहां गए सिपाही अपने बीबी बच्चों की नजरों का सामना कैसे करते हैं, ये वही बता सकते हैं। हालाकि मैं ये दावा बिल्कुल नहीं कर रहा कि पुलिस वाले बहुत साफ सुथरे हैं, उन पर गलत आरोप लगाए जाते हैं। लेकिन पुलिस का जितना खराब चेहरा हम लोगों के दिमाग में है, मुझे लगता है कि अभी ये पुलिसकर्मी उतने खराब नहीं हैं। इसीलिए जब कभी ये अच्छा काम करें तो उसकी सराहना भी होनी चाहिए।
माल में घूमने आई महिलाओं को पुलिसकर्मी से सुरक्षा जांच कराने में आपत्ति है, एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच में भी आपत्ति है, मैं तो कहता हूं कि किसी भी जगह महिलाओं को पुरुष सिपाहियों से सुरक्षा जांच में कराने में बहुत दिक्कत होती है, लेकिन बहुमंजिला इमारतों में आग लगने पर जब फायरकर्मी आठवीं और दसवीं मंजिल पर पहुंचता है तो उसकी पीठ पर सवार होकर जान बचाने में किसी महिला को आपत्ति नहीं है।
इस तस्वीर के जरिए मैं आमंत्रित करता हूं तथाकथित महिला संगठनों को कि आएं और विरोध दर्ज कराएं कि ये सिपाही किसी महिला को गोद में लेकर कैसे एंबूलेंस तक जा सकता है। क्या इस सिपाही ने घायल महिला को मदद देने से पहले उसकी इजाजत ली है, उसके परिवार वालों से पूछा है। अगर नहीं तो ऐसा करने के लिए क्यों ना इसके खिलाफ कार्रवाई की जाए। महिला संगठन क्यों नहीं दिल्ली पुलिस कमिश्नर का घेराव करतीं। मित्रों पुलिस की जो तस्वीर हम पेश कर रहे हैं, इससे उनके परिवार पर क्या गुजरती है, शायद आप सब इससे वाकिफ नहीं है। खैर मैं किसी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहता, मैं इस सिपाही को सलाम जरूर करना चाहता हूं और ये भी चाहता हूं कि इसे आप भी सलाम करें।
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आतंकवाद के ख़ात्मे का सही तरीक़ा

आज लोग आतंकवाद को ख़त्म होते हुए देखना चाहते हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि फ़िलहाल आतंक का अंत तो क्या यह कम होता हुआ भी नहीं लग रहा है।
विदेशी लोग इस क्षेत्र को अशांत देखना चाहते हैं और इस क्षेत्र के राजनीतिज्ञ उनकी नीति को जानते हुए भी उन्हें बुरा तक नहीं कह सकते।
धर्म-मत और क्षेत्रीय अलगाव को आधार बनाकर ये विदेशी शक्तियां एशिया को आपस में लड़ाती आ रही हैं बहुत पहले से।
ईरान इराक़ को लड़ाया और अब पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को लड़ा रहे हैं। इसी तरह वे भारत को पाकिस्तान और चीन से लड़ाना चाहते हैं। एक दूसरे के प्रति आशंका के चलते ही वे अपने बेकार हथियारों को यहां भारी क़ीमत पर बेच पाते हैं और इसी ख़रीद फ़रोख्त में मोटा माल कमीशन के रूप में हमारे रक्षक ले लेते हैं। अलगाववादी नेता और अभ्यस्त बलवाई भी विदेशों से करोड़ों रूपया हवाला के ज़रिये लाते हैं तो कुछ कर दिखाना उनकी भी मजबूरी होती है। सो आतंकवाद आज एक उद्योग का रूप ले चुका है। जिसमें शिक्षित लोग अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
हक़ीक़त तो यह है।
ऐसे नारे भी सुनने में आते है कि अमुक देश पर हमला कर देना चाहिए। इस तरह की बातों को बेवक़ूफ़ी के बजाय राष्ट्रवाद का नाम दिया जाता है।
उन्हें नहीं मालूम कि ऐसे हमले जब कभी किये जाते हैं तब भी राजनीतिज्ञ यह सब अपने हितों के मददेनज़र ही करते हैं न कि जनता के व्यापक हित के लिए।
जब सरकार घरेलू मोर्चे पर हार रही होती है तो वह अपने नागरिकों को ध्यान बंटाने के लिए किसी न किसी पर हमला कर भी देती है। अमेरिका भी ऐसे ही करता है।
इस तरह आतंकवाद घटने के बजाय और बढ़ जाता है।
फिर उस आक्रमण के बाद स्थिति शांत होने के बजाय पीड़ित पक्ष प्रतिशोध के लिए खड़ा हो जाता है जैसे कि बांग्लादेश विभाजन के बाद हुआ।
अब यह क्षेत्र इसी राजनीति, कूटनीति और प्रतिशोध के जाल में फंसा हुआ चल रहा है।
जो सच बोलता है, जनता उसकी सुनती नहीं है और जो उसे धोखे देता है उसे यह अपना नेता चुनती है।
जो फ़रेब देकर एमएलए और एमपी बन जाते हैं, उन्हें क्या चिंता है कि जनता में कौन मरेगा या कौन जिएगा ?
जब तक आतंकवाद है, उनसे जनता विकास कार्यों के बारे में पूछेगी नहीं और न ही उनके भ्रष्टाचार को देखेगी।
कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुददे पर बुरी तरह नंगी हो चुकी है।
जनता उससे नाराज़ है।
ऐसे में जनता का ध्यान कैसे बंटाया जाए ?
ये धमाके जिसने भी किए हैं, उसने कांग्रेस को लाभ ही पहुंचाया है।
अब भ्रष्टाचार और जन लोकपाल की चर्चा को मीडिया में दबाना आसान है।
लोग मरते हैं और नेता उनकी चिताओं पर अपनी रोटियां सेकते हैं।
यही असल वजह है जिसकी वजह से आतंकवाद है और आतंकवाद इसी वजह से बना भी रहेगा।
बेहतर नेता चुनने के लिए जनता को खुद भी बेहतर बनना होगा।
धर्म-मत, भाषा-क्षेत्र और राजनैतिक विचारधारा के अंतर के बावजूद हमें आपस में एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना सीखना होगा।
हम बेहतर होंगे तो हमारे बीच से निकलने वाला हमारा नेता बदतर हो ही नहीं सकता।
आतंकवाद का ख़ात्मा ऐसे ही होगा और इस बदलाव को लाने में लंबा समय लगेगा।
जो इस बात को नहीं जानता और नारे लगा रहा है, वह सत्य को न जानकर व्यर्थ की आशा में जीवन गंवा रहा है और जो किसी समुदाय के विरूद्ध भड़काऊ नारे लगा रहा है, वह भी आतंकवाद की बुनियादों को ही मज़बूत कर रहा है।
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जुलुस ,धार्मिक स्थल और पथराव फिर नफरत ही नफरत इसे जरा रोक लो यारों ...........


दोस्तों एक तरफ तो देश के दुश्मन आतंकवादी हाई टेक हैं कड़ी सुरक्षा के बीच चेलेंज देकर , विस्फोट कर सभी धर्म के लोगों को चोटिल और आहत कर रहे हैं और दूसरी तरफ हम गली छाप गुंडों के कहने में आकर वही पुराना दकियानूसी राजनितिक खेल खेल रहे हैं जिसमे धार्मिक जुलुस का एक धार्मिक स्थल से निकलना फिर वहां धूम धडाका होना शोर शराबे के बाद पथराव फिर तोड़फोड़ और दंगे फसाद का माहोल और एक खास पार्टी को फायदा होता है .हम कल भी पागल थे आज भी पागल हैं हमारी इक्कीसवीं सदी और आज का हमारा वही पिछड़ा पन हमारी लानत के लियें काफी है ...........कल कोटा के नजदीक मोड़क में जब यही घिसी पिटी केसिट चलाई गयी जल झुलनी का जुलुस एक मस्जिद के पास से निकला वहन रुका और फिर पथराव के आरोप के बाद भगदड़ तोड़फोड़ के बाद तनाव हो गया अमन पसंद लोग और प्रशासन परेशान हो गया लोगों की धडकने थम गयी और पुलिस तथा जिला प्रशासन भाग्दोड़ में लग गया लेकिन मुख्य दोषी कोन था पता ही नहीं चल सका और पता भी केसे चले इनका उद्देश्य तो योजनाबद्ध होता है कभी राजनीति से यह प्रेरित होते हैं तो कभी विदेशी ताकतों से यह मिले रहते हैं या कट्टर पंथी बुखार से यह पीड़ित रहते हैं .लेकिन एक शोध से हमारे देश में दंगों का एक ख़ास बहाना एक खास बुनियात जुलुस का धार्मिक स्थल के पास से निकलना और फिर उस पथराव होना फिर भगदड़ और फिर दंगे फसाद एक पक्ष नारेबाजी के आरोप लगाता है तो दुसरा पक्ष पथराव का आरोप लगाता हैं जाने जाती हैं सम्पत्ति को नुकसान पहुंचता है बड़े दंगों में आयोग बेठता है फिर सब वेसा का वेसा ही दोहराया जाता है .दोस्तों हम और देशवासी इस घिसी पिटी केसिट से तंग आ गये हैं लेकिन प्रशासन और पुलिस ने इससे कोई सबक न तो लिया है और ना ही कोई एहतियाती कार्ययोजना तय्यार की हैं .इसके लियें एक फार्मूला है अगर आपको ठीक लगे तो मुझे थोड़ी शाबाशी देने के लिए एक पत्र प्रधानमन्त्री ,,राष्ट्रपति ,राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अवश्य डालना ....
फार्मूला नम्बर एक ............जब भी धार्मिक जुलूसों का आयोजन हो धार्मिक स्थलों के मार्ग से जुलुस निकलने को जितना टाला जा सकता हों टाला जाए ...........अगर मुख्य मार्ग पर ही धार्मिक स्थल हो तो जुलुस पहुंचने के आधे घंटे पहले ऐसे धार्मिक स्थल को खाली करवा कर पुलिस धार्मिक अदब के साथ अपने कब्जे में ले और सम्बंधित धार्मिक स्थान के बाहर जुलुस का ठहराव प्रदर्शन वर्जित हो और तुरंत वहां से जुलुस को निकाल कर वापस सम्बंधित धार्मिक स्थल धर्म से जुड़े लोगों के सुपुर्द कर दिया जाए ऐसा देश के हर छोटे बढ़े जुलुस में हो और इस मामले में आवश्यक दिशा निर्देश जारी होकर कानून बना कर इसकी पालना हो ताकि देश के किसी भी कोने में कमसे कम किसी भी धार्मिक जुलुस पर धार्मिक स्थल से पथराव करने का बहाना लेकर किसी भी आसामाजिक तत्व द्वारा दंगा फसाद नहीं करवाया जा सके .............दोस्तों आज हाईटेक युग है जुलुस .प्रदर्शनों की विडियोग्राफी अनिवार्य रूप से की जाती है फिर कहां किसकी गलती है उसे नामज़द कर दंडित क्यूँ नहीं क्या जाता उन कमरों में बंद साक्ष्य को सार्वजनिक क्यूँ नहीं क्या जाता जो पुलिस के पास सुरक्षित रहते हैं और अगर पुलिस का केमरामेन जुलुस पथराव की घटना मामले में ऐसे आपराधिक तत्वों की विडियोग्राफी करने में अक्षम रहता है तो उसे भी दंडित करना चाहिए ........तो जनाब करो कुछ ऐसा करिश्मा के यह देश ऐसा लगे थोडा तुम्हारा थोड़ा हमारा है इस देश के प्रति मान सम्मान थोड़ा तुम्हारा है तो थोडा हमारा है .यहा इसी देश की मिटटी में तुम्हे मिलजाना हिया तो हमें भी इसी देश की मिटटी में दब कर खुदा के घर जाना है इसलियें जाती धर्म राजनीति से बढ़ा देश और देश की सुक्ख शान्ति देश का भाईचारा है बस इसीलियें अपनी अक्ल से काम लोग खुदा इश्वर भगवान और अल्लाह से डरो और इस संकट के वक्त देश और देशवासियों के साथ खड़े होकर देश का साथ दो ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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पतन { कविता }---दिलबाग विर्क

http://sahityasurbhi.blogspot.com/2011/09/12.html

                                            * * * * *
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आतंक का अंत



क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

आये दिन हो जाता है विस्फोट,
कई जिंदगियों का अस्तित्व उखड जाता है,
हो जाते हैं अनाथ कई मासूम,
और न जाने कितनो का सुहाग उजड़ जाता है |

अस्पतालों का भी तब विहंगम दृश्य होता है,
किसी का हाथ तो किसी का पैर धड़ से अदृश्य होता है |

विस्फोट की आवाज तो क्षणिक होती है,
पर कईयों के कानों में वो जिंदगी भर गूंजती है |

नेता इस में भी राजनीति से नहीं चुकते,
सरकार के नुमाइंदें भी समाधान नहीं, बस आश्वाशन देते हैं |

कब इस दहशत के माहौल से उबरेंगे ?
कब हमारी जिंदगियों की कीमत होगी और वो सुरक्षित होगी ?
कब तक दिल दहलाने वाले ये दृश्य हम देखते रहेंगे ?
कब तक अपनों को इस कदर हम खोते रहेंगे ?

क्या होगा कभी,
इस आतंक का अंत ?
क्या निज़ात पायेंगे,
देर से ही सही या तुरंत ?

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आतंकवादियों की पहचान और उनका सही इलाज

‘हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशल‘ की ओर हम शोक व्यक्त करते हैं उन सभी लोगों की मौत के प्रति जो दिल्ली बम धमाके में आतंकवादियों के शिकार बने हैं और उनके परिवार के प्रति सहानुभूति रखते हैं और इसी के साथ एक बड़े ख़तरे के प्रति सावधान करते हैं जो कि हमेशा बम धमाकों के बाद देखने में आता ही है और यही आतंकवादियों का मक़सद होता है जिसे देसी लोग अंजाम देते हैं और उस पर राष्ट्रवाद का आवरण चढ़ा देते हैं।
नफ़रत पर आप किसी भी नाम का आवरण चढ़ा दीजिए, वह नफ़रत ही रहेगी और हमेशा नुक्सान ही देगी।
नफ़रतें पहले दिलों में दीवार उठाती हैं और अपनों को ग़ैर और दुश्मन दिखाती हैं और फिर वही दिलों की दीवारें ज़मीन पर आ जाती हैं।
कोई बम किसी मुल्क को तोड़ ही नहीं सकता और हिंदुस्तान को भी आज तक तोड़ नहीं सका है जबकि दर्जनों बार बम धमाके हो चुके हैं।
आतंकवादी आज तक नाकाम हैं और इंशा अल्लाह आगे भी नाकाम ही रहेंगे।
आतंकवादी बस धमाके कर सकते हैं लेकिन आपस में नफ़रत नहीं फैला सकते।
यह काम हमारे और आपके पास में रहने वाले शैतान करते हैं। आतंकवादी जिस मिशन में नाकाम रहते हैं हर बार , ये इंसानियत के दुश्मन उन्हें कामयाब करने की हमेशा कोशिश करते हैं।
हमेशा ये लोग विदेशी आतंकवादियों को गालियां देने के नाम पर पूरे विश्व में और भारत में बसे एक विशेष समुदाय और उसके धर्म को गालियां देते हैं ताकि प्रति उत्तर में सामने वाला भी गालियां दे और उनके पूरे समुदाय से नफ़रत करे।
यह इनकी चाल होती है।
विदेश के जिस खाते से विदेशी आतंकवादियों को डॉलर मिलते हैं, आप चेक करेंगे तो उसी खाते से इन देसी वैचारिक बमबाज़ों को भी डॉलर मिलता पाएंगे।
अंग्रेज़ दो टुकड़ों में भारत को पहले ही बांट गए थे और तीसरे के बंटने के हालात पैदा कर गए थे और साथ ही अरूणाचल समस्या भी अंग्रेज़ों की ही देन है।
उन्होंने ऐसा इसलिए किया था ताकि भारत हमेशा अशांत बना रहे और उन्हें अपना जज बनाकर उनसे फ़ैसले कराता रहे और नये नये आंदोलनों के फ़ैसले मानवाधिकार के नाम पर करते हुए वे इसे और छोटे छोटे टुकड़ों में बांटते चले जाएं और इसका नक्शा बिल्कुल ऐसा हो जाए जैसा कि मुसलमानों के आने से पहले था। हज़ारों छोटे छोटे राज्य और उनके ख़ुदग़र्ज़ शासक।
खिलाफ़त का ख़ात्मा अंग्रेज़ों ने इसीलिए किया और उसे बहुत से छोटे छोटे टुकड़ों में बांट कर रख दिया और सारे अरबों को अपने सामने बेबस और कमज़ोर बना दिया।
एक सशक्त एशिया अंग्रेज़ों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।
भारत हो या पाकिस्तान, दोनों ही जगह बम धमाके हो रहे हैं तो इसके पीछे दोनों का साझा दुश्मन है।
वह दुश्मन कौन है ?
उसे पहचानिए और उसका उपाय कीजिए और एशिया में आबाद लोगों को प्रेम का संदेश देते हुए अपनी शक्ति बढ़ाते हुए चलिए।
मौजूदा दौर में करने का काम यही है ,
...और इसी के साथ जो मुजरिम किसी लालच में या नफ़रत में अंधे होकर बम धमाके कर रहे हैं, उनकी सुनवाई अलग अदालतों में तेज़ी से की जाए और ईरान की तरह मात्र 3 दिनों मे चैराहे पर क्रेन में लटका दिया जाए और उसका वीडियो पूरी दुनिया को दिखाया जाए कि हमारे यहां आतंकवादी का हश्र यह होता है और तुरंत होता है और यही हश्र उन वैचारिक आतंकवादियों का भी होना चाहिए जो किसी के धर्म, समुदाय और महापुरूषों को गालियां देकर नफ़रत फैला रहे हैं क्योंकि ये आतंकवादियों से भी बदतर हैं।
आतंकवादियों ने इतने भारतीयों की जान आज तक नहीं ली है जितने लोगों को ये बलवाई दंगों में मार चुके हैं। देश को बांटने वाले दरअसल यही हैं और चोला इन्होंने देशप्रेम का ओढ़ रखा है
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भारत माँ रो रही



 भारत माँ रो रही
    भारत माँ रो रही अपने ही लालों की कारस्तानियाँ देखकर
 जिसके कपूत  खुश  हो रहे अपने ही देश को लूटकर     
 जहाँ देखो घोटाले हो रहे ,भ्रस्टाचारी सीना तान कर जी रहे
       देश का पैसा विदेशी बैंकों में काले धन के रूप में जमा कर रहे 
  देश के पालनहार ह़ी देश की कर रहे बर्बादी 
     भारत माँ शर्मशार हो रही देखकर इनकी कारगुजारी 
कभी भी उसके सीने पर बम फूट जातें हैं 
    निर्दोष लोगों की जान से खेल जातें हैं
    नेता घायलों को देखने  अस्पताल जातें हैं
    मृतकों के परिवारवालों को कुछ पैसे दिखाते हैं                            
जनता ,और विपक्षी पार्टियां सरकार के खिलाफ गुस्सा दिखातीं हैं
मीडिया भी तीन चार दिन  टी.वी .पर दिखा कर खूब हो हल्ला मचाती है 
       फिर सब शांत हो जाता है,इंसान अपने काम में ब्यस्त हो जाता है

         रोते रह जातें हैं वो लोग जिनके परिवार का कोई मरा है,या अस्पताल में पडा हैं 
  आतंकवादी सीना ठोककर कतले- आम करने की जिम्मेदारी लेतें है  
      हमारी सुरक्षाकर्मी और सरकार फिर भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाते हैं
         आम जनता मर रही, परेशान हो रही बाकी इनकी तो मोज हो रही
      आम लोगों को एकजूट होकर अपनी सुरक्षा के लिए आवाज उठानी होगी
    नहीं तो अनाथ बच्चों और बिखरे परिवारों की संख्या बढती रहेगी

    यहाँ हर समय खोफ के साए में हम मरते हुए जीते रहेंगे 
     और हर धमाके के साथ अपनों को खोते रहेंगे
                  उसके कपूतों की करनी देश की जनता अपनी कुर्बानी से चुका रही
                    भारत माँ देश की दुर्दशा को देख खून के आंसू बहा रही 



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कितने प्रतिशत नारियां हैं बेवफ़ा ?

अंग्रेज़ों में और हम में क्या ख़ास फ़र्क़ है ?
फ़र्क़ है तो बस शोध का फ़र्क़ है।
हम जिस बात को मानना चाहते हैं बस यूं ही मान लेते हैं किसी के बताने भर से।
किसी ने कह दिया कि श्री रामचंद्र जी ने सीता माता की अग्नि परीक्षा ली थी और फिर गर्भावस्था में निकाल दिया था और हम मान लेते हैं कि हां ऐसा ही हुआ होगा।
हम बताने वाले से यह नहीं पूछते कि भाई, हिंदू गणना के अनुसार श्री रामचंद्र जी हुए थे 12 लाख 76 हज़ार साल पहले और आप बता रहे हैं तो इतनी पुरानी बात आप तक कैसे पहुंची ?
इतने लंबे अर्से में बात पहुंचते पहुंचते कुछ की कुछ भी तो हो सकती है ?
एक आदमी कहता है कि राधा जी से श्री कृष्ण जी के प्रेम संबंध थे, कोई कहता है उनसे श्री कृष्ण जी ने आजन्म विवाह नहीं किया और कोई कहता है कि कर लिया था और कुछ यह भी कहते हैं कि राधा रायण की पत्नी और श्री कृष्ण जी की मामी थीं।
हम उस बताने वाले से यह नहीं पूछते कि भाई श्री कृष्ण जी को हुए 5 हज़ार साल हो गए हैं। हम तक बात किसने पहुंचाई ?
भारतीय ग्रंथों में सबसे पुराने वेद हैं और उनमें इस तरह की किसी घटना का उल्लेख नहीं है न तो श्री रामचंद्र जी के बारे में और न ही श्री कृष्ण जी के बारे में और जिन ग्रंथों में ये बातें लिखी मिलती हैं, उनकी उम्र चंद सौ साल से ज़्यादा नहीं है।
अगर इन महापुरूषों के साथ कोई अच्छा गुण जोड़कर बताया जाए तो एक बार उसे तो बिना किसी शोध के मान लेने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन जो बात हम आज अपने लिए ठीक नहीं मानते, उसे अपने से अच्छे अपने पूर्वजों के बारे में हम मान लेते हैं और कोई खोज नहीं करते।
यह तो हुई मानने की बात कि मानना चाहें तो हम बिना किसी सुबूत के ही मान लेते हैं और न मानना चाहें तो चाहे सारी दुनिया साबित कर दे कि शराब, गुटखा, तंबाकू और ब्याज, ये चीज़ें इंसान की सेहत और अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देती हैं लेकिन हम मानते ही नहीं।
बुरे लोग अंग्रेज़ों में भी हैं लेकिन उनके बहुसंख्यक लोगों का स्वभाव शोध करने का बन चुका है।
बात चाहे कितनी ही मामूली क्यों न हो लेकिन बात मानने से पहले वे यह ज़रूर देखेंगे कि बात में सच्चाई कितनी है ?
और यह हमारे लिए कितनी हितकारी है ?
मस्लन औरत की वफ़ा के साथ उसकी बेवफ़ाई के क़िस्से भी सदा से ही आम हैं और बेवफ़ा औरत के लिए ही भारत में त्रिया चरित्र बोला जाता है लेकिन अंग्रेज़ों ने इस पर भी शोध कर डाला।
देखिए आप भी यह दिलचस्प शोध :

धोखा देने में महिलाएं भी नहीं हैं कुछ कम

आमतौर पर केवल पुरुषों के विषय में ही यह माना जाता है कि वह अपने प्रेम-संबंधों को लेकर संजीदा नहीं रहते. वह जरूरत पड़ने पर अपने साथी को धोखा देने से भी नहीं चूकते. लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारी मानसिकता बिल्कुल बेबुनियाद है क्योंकि विश्वासघात और संबंधों से खेलना केवल पुरुषों का ही शौक नहीं है बल्कि महिलाएं भी इन तौर-तरीकों को अपनाने से नहीं हिचकतीं. प्रेमी को धोखा देने और उसके पीठ पीछे दूसरा प्रेम-संबंध बनाने में महिलाएं पुरुष के समान नहीं बल्कि उनसे कहीं ज्यादा आगे हैं.

डेली एक्सप्रेस में छपे एक शोध के नतीजों ने यह खुलासा किया है कि केवल पुरुष नहीं बल्कि महिलाएं भी अपने रिश्ते की गंभीरता को समझने में चूक कर बैठती हैं. लव-ट्राएंगल जैसे संबंधों में महिलाओं की भागीदारी अधिक देखी जा सकती है. इस सर्वेक्षण में 2,000 लोगों को शामिल किया गया था जिनमें से लगभग एक चौथाई महिलाओं ने यह बात स्वीकार की है कि उन्होंने एक ही समय में एक से ज्यादा पुरुषों के साथ प्रेम-संबंध स्थापित किए हैं. जबकि केवल 15% पुरुषों ने ही यह माना है कि उन्होंने एक बार में दो से ज्यादा महिलाओं से प्रेम किया है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि लव-ट्राएंगल में महिलाओं की अधिक संलिप्तता का कारण यह है कि वह पुरुषों की अपेक्षा जल्द ही भावनात्मक तौर पर जुड़ जाती हैं जिसके कारण वह प्रेम और आकर्षण में भिन्नता नहीं कर पातीं. फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों के आगमन से भी लोगों की जीवनशैली बहुत हद तक प्रभावित हुई है. ऐसी साइटों पर पर अधिक समय बिताने के कारण महिलाएं विभिन्न स्वभाव और व्यक्तित्व वाले पुरुषों के संपर्क में आ जाती हैं. लगातार बात करने और एक-दूसरे के संपर्क में रहने के कारण वह उनके साथ जुड़ाव महसूस करने लगती हैं और अपनी भावनाओं पर काबू ना रख पाने के कारण वह जल्द ही लव ट्राएंगल के फेर में पड़ जाती हैं.

इस शोध की सबसे हैरान करने वाली स्थापना यह है कि अधिकांश लोग यह मानते हैं कि एक समय में दो या दो से अधिक लोगों से प्यार करना और उनके साथ संबंध बनाना कोई गलत बात नहीं हैं. व्यक्ति चाहे तो वह दो लोगों से प्यार कर सकता है.

महिलाओं के विषय में एक और बात सामने आई है कि वे अधिक आमदनी वाले पुरुषों की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं. धन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए महिलाएं आर्थिक रूप से सुदृढ़ पुरुष को मना नहीं कर पातीं.
Source >  http://lifestyle.jagranjunction.com/2011/08/26/women-also-cheats-love-triangle/
ग़र्ज़ बात जो भी हो हमें उसे मानने से पहले यह ज़रूर देख लेना चाहिए कि इसमें सच्चाई कितनी है ? 
यह तो हुई बेवफ़ाई की बात,
आप पकड़ सकते हैं अपने जीवन साथी को बेवफ़ाई करते हुए,
जानिए कैसे पकड़ा जाता है जीवन साथी की बेवफ़ाई को ?
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तिहाड़ गए संसद पर कलंक लगाने के मुल्ज़िम

कल हमने एक लेख लिखा था
क्या शैतानों की जमात है बीजेपी ?
और कल ही भाजपा के दो पूर्व सांसद जेल भेज दिए गये।
इन पर भारतीय संसद के इतिहास में कलंक कहलाने वाले ‘कैश फ़ॉर वोट‘ कांड में शामिल होने का आरोप है।
ये दोनों मुल्ज़िम हैं महावीर भगोड़ा और फग्गन सिंह कुलस्ते। इनके साथ ठाकुर अमर सिंह जी भी तिहाड़ भेज दिए गए हैं।
गंदी राजनीति के कारण ये लोग जेल गए हैं और अब इनकी गिरफ़्तारी के बाद भी इनके हिमायतियों के द्वारा गंदी राजनीति की जाएगी।
यही लोग देश को अपने निजी स्वार्थ के लिए बर्बाद कर रहे हैं।
इन चंद लोगों का जेल जाना अनिवार्य था लेकिन राजनीति के तालाब की सफ़ाई मात्र इन मछलियों के पकड़ लिए जाने से होने वाली नहीं है।
यही बात सबसे ज़्यादा निराश करती है।
इसके बावजूद देश की मर्यादा से खेलने वालों को यह संदेश ज़रूर मिल गया है कि हर बात की एक हद होती है।
देखिये ख़बर साभार हिंदुस्तान दैनिक 
भारत के संसदीय इतिहास में कलंक कहलाने वाले ‘कैश फोर वोट’ कांड में मंगलवार को राज्य सभा सदस्य व समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह को अदालत ने जेल भेज दिया। कभी किंग मेकर रहे अमर के अलावा कोर्ट ने भाजपा के दो पूर्व सांसदों फग्गन सिंह कुलस्ते व महावीर भगोरा को भी 19 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजा है। तीनों पर 22 जुलाई, 2008 को हुए इस कांड में शामिल होने का आरोप है। 
फैसला सुनाए जाने के बाद अमर सिंह अचम्भित नजर आए। हालांकि पुलिस उन्हें तुरंत कोर्ट से ले गई। शाम करीब साढ़े छह बजे अमर को तिहाड़ जेल पहुंचा दिया गया। कोर्ट से 25 अगस्त को जारी हुए समन के बाद मंगलवार को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में फग्गन और भगोरा तो हाजिर हो गए थे पर अमर सिंह नहीं आए।
सिंह की ओर से कहा गया था कि कुछ साल पहले उनके गुर्दे का प्रत्यारोपण हुआ था और उन्हें नियमित रूप से अस्पताल जाना पड़ता है। उन्हें उच्च रक्तचाप की भी शिकायत है। इसलिए वह पेश नहीं हो सकते। इस पर विशेष न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल ने उनके वकील से अमर के स्वास्थ्य की चिकित्सा रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में इसका जिक्र होना चाहिए कि कब उनके गुर्दे का प्रत्यारोपण हुआ था और उसके बाद वह कितनी बार डॉक्टर के पास गए। अदालत से मांगी गई इस जानकारी के बाद अमर अदालत में हाजिर हो गए। न्यायाधीश ने उनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए तीनों आरोपियों को 19 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया। अमर की गिरफ्तारी को जहां सपा ने नाजायज करार दिया वहीं भाजपा ने सिंह पर हुई कार्रवाई को तो वाजिब ठहराया पर अपने पूर्व सांसदों की गिरफ्तारी पर ऐतराज जताया। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के सहायक रहे सुधीन्द्र कुलकर्णी को भी पेश होना था, लेकिन इन दिनों वह अमेरिका में हैं। कुलकर्णी के वकील ने कहा कि उनका मुवक्किल अमेरिका में हैं तथा वह दो सप्ताह के भीतर अदालत में पेश होगा। इस कांड में अमर सिंह के पूर्व सहायक संजीव सक्सेना और सोहैल हिन्दुस्तानी पहले से ही जेल में हैं।

Source : http://www.livehindustan.com/news/desh/today-news/article1-story-329-329-189165.html
 ...और अंत में एक अपील
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ऐ मेरे देश के सांसदों थोड़ा शर्म करों क्या यही है संसद के विशेषाधिकार


दोस्तों जरा उठो और मेरे देश के इन बेशर्म सांसदों से जरा यह तो पूछ लो क्या संसद में रिश्वत लेकर वोट डालना ..रिश्वत लेकर सवाल पूंछना राष्ट्रहित से अलग हट कर संसद में अपनी पार्टी की गलत नीतियों की तरफ दुम हिलाना ....खर्राटें भरना या फिर बिना किसी वोट के संसद से बाई कोट कर देना ही तुम्हारा विशेषाधिकार हैं ...............दोस्तों मेरे देश के इन सांसदों को जेल में भरे पढ़े नेताओं के किस्से सुनाओ लालू का चारा ..अमरसिंह का संसद रिश्वत काण्ड ..झारखंड मुक्ति मोर्चा का रिश्वत काण्ड .संसद की जूतम पैजार ..रामजेठमलानी के फटेहाल कपड़े .....हर्षद मेहता का समर्थन .....क्या यही सब संसद का विशेषाधिकार है .दोस्तों अपने भी संसद देखी है आपने भी संसद पर हमले के वक्त संसद में दहाड़ने वाले इन लोगों की पतली दाल और दिल की धडकन देखी है हमारे देश में सर्वे करवा लो कुछ्द्र्जन सांसदों को अगर हम छोड़ दें तो सभी एक ही थाली के चाटते बट्टे हैं क्योंकि सो के लगभग जो सांसद देश का बन्टाधार कर रहे हैं उस मामले में यह लोग उनके खिलाफ जनहित में आवाज़ नहीं उठाते और जब जनता में इनकी छवि बिगडती है इनकी स्थिति बाहर बताई जाती है तो फिर यही लोग संसद के विशेषाधिकार के नाम पर खुन्नस खाकर जनता को सच बताने वालों को जेल डर दिखाते हैं अरे मेरे देश के सांसदों थोड़ा तो शर्म करो तुम सवा करोड़ लोगों की भावना से खेल रहे हो तुम में से कई ठीक लोग है तो कई कितने गंदे लोग है तुम भी तो जानते हो फिर क्यूँ ऐसे लोगों को संसद में आने से रोकने के लियें कानून नहीं बनवाते हो अगर ऐसा नहीं होता है और वेतन के मामले में तुम एक हो जाते हो जनता के हितों के मामले में धड़ों और पार्टियों में बंट जाते हो संसद में जनता के लियें जब कानून बन रहा हो तब तुम सो जाते हो .रिश्वत लेकर वोट डालते हो .रिश्वत लेकर सवाल पूंछते हो और वोह भी जनता के रुपयों पर जनता के टेक्स से दो करोड़ प्रतिवर्ष का खर्च लाखों का वेतन और दस रूपये का मुर्गा चिकन मटन खाते हो यानी हमारा खाते हो और हम पर ही गुर्राते हो जरा सुधरो अंतरात्मा को टटोलो राष्ट्रहित में इन सवालों का जवाब खोजो और जनता को कुछ करके दिखाओ जनता तो तुम्हे पलक पांवे बिछा कर कन्धों पर बिठाएगी और फिर कोई तुम्हारी तरफ ऊँगली भी उठाएगा तो जनता खुद ही उसकी ऊँगली काट देगी तो सांसदों जरा एक बार सिर्फ एक बार राष्ट्रहित और जनहित में तो सोचो यार तुम कहा गलत हो कहां तुम्हे सुधार करना है खुद ही समझ लोगे और संसद के विशेषाधिकार की बात करते हो तो जो आरोप तुम सांसदों पर लग रहे हैं जरा जन मत करा लो सवा करोड़ के सवा करोड़ को ही तुम्हे जेल भेजना होगा क्या कर सकोगे ऐसा सांसदों झूंठ मत बोलों खुदा के पास जाना है ......अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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तुम मुझे पंत कहो, मैं तुम्हे निराला...


मै जानता हूं कि ये लेख मेरे लिए आत्महत्या करने से कम नहीं है, क्योंकि इससे लोग नाराज हो सकते हैं, उन्हें लग सकता है कि ये लेख उनकी आलोचना करने के लिए लिखा गया है। लेकिन सच बताऊं इसमें किसी की आलोचना नहीं है। पांच छह महीनों में व्लाग पर जो कुछ देख रहा हूं, उसके बारे में ये मेरी व्यक्तिगत राय है। मिंत्रों मैं जो सोचता हूं, उसे अंजाम तक पहुंचाए बगैर चैन की नींद सो ही नहीं पाता हूं। इसलिए आज बात करुंगा ब्लागर्स की, जिसे मैं एक परिवार मानता हूं, इसलिए आप कह सकते हैं बात होगी पूरे ब्लाग परिवार की। "ब्लाग परिवार" के नाम से एक ब्लाग भी है, वो सभी लोग माफ करेंगे, क्योंकि हम जो बात कह रहे हैं वो किसी भी खास व्यक्ति, व्लाग या समूह के लिए नहीं है, बल्कि सभी के लिए है।
मैं बिना किसी भूमिका के इस बात की शुरुआत कर रहा हूं। वैसे तो शीर्षक से ही साफ है कि मैं क्या कहना चाहता हूं। जी हां ज्यादातर ब्लागर्स के लिए मेरी अब तक यही राय है कि तुम मुझे पंत कहो तो मैं तुम्हें निराला कहूंगा। भाई "गिव एंड टेक" कहीं से गलत नहीं है। लेकिन कई बार किसी भी लेख या रचना पर टिप्पणी देखता हूं तो हैरान हो जाता हूं। उसमें लेख के बारे में तो दो शब्द और लेखक की प्रशंसा कई पंक्तियों में। पहली नजर में तो ये अटपटा लगा, फिर मैने देखा कि जिस ब्लागर भाई ने लेखक की इतनी तारीफ की है, इसकी वजह क्या है। जब मैं उसके ब्लाग पर गया तो देखा कि उन्होंने तो सिर्फ कर्ज अदा किया है, क्योंकि ये टिप्पणी और भावनाओं का आदान प्रदान है।
कुछेक मंचों की चर्चा करना भी जरूरी है। जहां लोगों के ब्लाग के लिंक शामिल कर दिए जाते हैं और दूसरे ब्लागर्स को आमंत्रित किया जाता है कि आप इन्हें भी पढें। मेरा अपना मानना है कि ये बहुत अच्छा प्रयास है, कुछ लोग बिना किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के नए लेखकों को मंच दे रहे हैं, यहां से उनके ब्लाग के लिंक्स बहुत सारे लोगों के बीच पहुंच जाती है। पर बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है इसमें ईमानदारी नहीं बरती जाती।
चर्चाकार पहले तो अपनी चर्चा करते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है। फिर साथी चर्चाकारों पर उनकी नजर जाती है, मुझे लगता है कि उसमें भी कोई बुराई नहीं है। फिर अपने शहर और प्रदेश को निपटाते निपटाते वो बुरी तरह थक चुके होते हैं, तब दूसरे लोगों की बारी आती है। ऐसे में शुरू में जिनकी बारी आ गई, उनकी तो बल्ले बल्ले हैं। बाद वालों का भगवान ही मालिक है। हां एक बात और किस ब्लागर की तस्वीर लगेगी, किसकी नहीं। इसका भी को निर्धारित मानदंड नहीं है। ये निजी और व्यक्तिगत संबंधों पर निर्भर है।
अब तो दुनिया बहुत आगे हो गई, वरना कुछ साल पहले आप किसी भी शहर में निकलें तो सिनेमा के पोस्टर दीवारों पर देखे जाते थे। लेकिन मित्रों पोस्टर में भले ही अमिताभ बच्चन क्यों ना हों इन्हें जगह कूडा करकट के आसपास की ही दीवारों पर मिलती थी। कुछ ऐसा ही ब्लागों में मैं दिखाई दे रहा है। किसकी कहां तस्वीर मिल जाएगी, कोई भरोसा नहीं। मित्रों माफ कीजिएगा एक मसाले का विज्ञापन याद आ रहा है, उसके मालिक अपने विज्ञापन में किसी माडल को तरजीह नहीं देते हैं। वो बुजुर्गवार खुद ही तरह तरह की मुद्रा में छाए रहते हैं। ऐसे ही कई लोगों को अक्सर ब्लागों पर भी देखता हूं।
मित्रों ब्लागों की चर्चा अच्छी बात हैं, हम जैसे नए लोगों को काफी प्रोत्साहन मिलता है। लेकिन चर्चा को चमचागिरी से आगे लाने की जरूरत है। चर्चाकार सिर्फ लिंक्स लगाने का काम ना करें, जिस लिंक्स को वो शामिल कर रहे हैं, उसके बारे में अपनी राय भी लिखें, ये रचना क्यों उन्हें पसंद आई। बेहतर तो ये होगा कि जिस तरह से टीवी और समाचार पत्रों में फिल्मों की समीक्षा के साथ उन्हें ग्रेड दिया जाता है, उसी तरह का कुछ ग्रेड ब्लाग पर भी हो तो बेहतर है। लेकिन इससे चर्चा इतनी आसान नहीं रह जाएगी, चर्चाकारों को सभी लेख, कहानी, कविता को पढना होगा, क्योंकि ग्रेड भी देना होगा। इसके फायदे भी होंगे कि लोग कम से कम उन ब्लागों पर तो चले ही जाएंगे, जिन्हें अच्छे ग्रेड मिले होंगे।
अभी तो हालत ये है कि जिनके लिंक्स चर्चा में शामिल होते हैं, वो आकर अपना फर्ज अदा कर देते हैं। सुंदर लिंक्स, और मुझे भी शामिल करने के लिए शुक्रिया। शामिल करने के लिए शुक्रिया की बात तो समझ में आती है, लेकिन इतनी जल्दी सुंदर लिंक्स कैसे वो समझ जाते हैं, ये कम से कम मेरी समझ से परे है। मित्रों एक दिन एक चर्चा में 12 लोगों ने लिखा था कि बेहतर लिंक्स, सुंदर लिंक्स, बहुत अच्छे लिंक्स। बाद में मैने उस दिन की चर्चा में शामिल सभी लेखों, कविताओं और कहानियों को देखा तो चर्चा पर कमेंट करने वाले सभी 12 ब्लागर साथी कहीं नहीं दिखे। कुछ हमारे साथी "कट पेस्ट" के भी एक्सपर्ट हैं। कई बार होता है लेख और उसपर कमेंट देखता हूं, बहुत सुंदर कविता।
खैर, मुझे लगता है कि जो बात मैं कहना चाहता हूं, वो बात सभी तक पहुंच गई होगी। बडे और बुजुर्ग में इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन उन्हें भी पोस्टर मोह त्यागना होगा। वैसे मुझे उम्मीद कम है। वो इसलिए भी कम है कि समीक्षा करने वाले जो ब्लागर पहले अपनी छोटी तस्वीर लगाया करते थे, अब अपनी पूरी तस्वीर लगाने लगे हैं। मैं बडे ही विनम्रता से एक और बात कहना चाहता हूं कि एकाध जगह मुझे जाति विरादरी की भी बू आती है।
और हां यहां भी मैने तमाम बुजुर्गों को अन्ना के साथ खडे़ देखा है। ब्लाग पर भी खूब नारे लगे हैं, मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना, अब तो सारा देश है अन्ना। अन्ना को समर्थन देंने से बेहतर है कि लोग ईमानदारी का शपथ लें। चलिए मित्रों बंद करता हूं हम सभी घर बनाने की कोशिश करेंगे गिरोह नहीं।

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क्या बीजेपी शैतानों की जमात है ?

अल्लाह के नाम से हलफ़ उठाने पर बीजेपी भड़की
झारखंड के गवर्नर सय्यद अहमद पर संविधान की पामाली का इल्ज़ाम
जमशेदपुर (यूएनआई)। झारखंड के नए गवर्नर डाक्टर सय्यद अहमद के अल्लाह के नाम से हलफ़ उठाने पर ऐतराज़ करते हुए झारखंड की हुक्मरां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आज यह कहा कि यह चीज़ संविधान के बिल्कुल और डाक्टर अहमद को संविधान की धारा 159 के मुताबिक़ फिर से शपथ दिलाई जानी चाहिए।
आज यहां एक प्रेस कांफ़्रेंस को संबोधित करते हुए बीजेपी की प्रदेशीय इकाई के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व उप मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि नए गवर्नर ने हलफ़ उठाते हुए संविधान को रौंद डाला है। डाक्टर अहमद झारखंड के आठवें गवर्नर हैं। उन्हें कल झारखंड हाई कोर्ट के क़ायम मक़ाम चीफ़ जस्टिस माननीय श्री पी. सी. तात्या ने शपथ दिलाई थी। मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, असेंबली के स्पीकर सी. पी. सिंह, केन्द्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय और दीगर मुमताज़ शख्सियतें इस कार्यक्रम में मौजूद थीं।
(बहवाला - राष्ट्रीय सहारा उर्दू दैनिक मुख पृष्ठ दिनांक 6 सितंबर 2011 दिल्ली)


यह है बीजेपी की असलियत
एक तरफ़ तो बीजेपी के बड़े मुस्लिम पीरों की दरगाहों पर क़ीमती चादरें चढ़ाते हुए और मुस्लिम टोपी पहनकर रमज़ान में अफ़्तार करते और कराते हुए देखे जा सकते हैं और दूसरी तरफ़ उनका हाल यह है कि उन्हें अल्लाह का नाम लेने पर भी ऐतराज़ है।
क्या भारतीय संस्कृति में ईश्वर का नाम लेने पर प्रतिबंध है ?
नहीं , भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है बल्कि ऐसा करने की प्रेरणा दी गई है और कहा गया है कि
‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति‘
अर्थात एक ही सत्य को विद्वानों ने बहुत प्रकार से कहा है। हरेक शुभ कार्य की शुरूआत परमेश्वर के नाम से की जाए, ऐसी प्रेरणा भारतीय ऋषियों ने दी है।
बीजेपी लीडर ख़ुद को भारतीय संस्कृति की रक्षा करने वाला बताते हैं लेकिन हक़ीक़त यह है कि वे भारतीय संस्कृति को सिर्फ़ नुक्सान पहुंचा रहे है, उसका विरोध कर रहे हैं। अपनी नफ़रत और अपनी राजनीति के फेर में वे अंधे हो चुके हैं, उन्हें यह भी नज़र नहीं आ रहा है कि ‘अल्लोपनिषद‘ सहित अनेक संस्कृत ग्रंथों में भी ‘अल्लाह‘ का नाम मौजूद है।
देखिए
अल्लो ज्येष्‍ठं श्रेष्‍ठं परमं पूर्ण ब्रहमाणं अल्लाम् ।। 2 ।।
अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।
अर्थात ’’ अल्लाह सबसे बड़ा , सबसे बेहतर , सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्र है । मुहम्मद अल्लाह के श्रेष्‍ठतर रसूल हैं । अल्लाह आदि अन्त और सारे संसार का पालनहार है । (अल्लोपनिषद 2,3)

अदालतों में आज भी हरेक आदमी को उसी की आस्था के अनुसार उसके माननीय धर्मग्रंथ पर हाथ रखकर शपथ दिलाई जाती है कि वह सत्य का पालन करेगा। तब यह काम संविधान के विरूद्ध कैसे हो जाएगा ?
आए दिन सरकारी कार्यक्रमों में सरस्वती की मूर्ति पर माला चढ़ाकर और उसके सामने दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरूआत की जाती है और तब बीजेपी को कोई ऐतराज़ नहीं होता। सरकारी योजनाओं के अधिग्रहीत भूमि के भूमि पूजन करने पर और राष्ट्रीय निधि से और सामूहिक  प्रयासों से वुजूद में आने वाले अस्त्र शस्त्रों के नाम भी केवल एक वर्ग विशेष के लोगों के नामों पर रखे जाते हैं, तब किसी बीजेपी लीडर को ऐतराज़ नहीं होता ?
बीजेपी ऐसा करके सय्यद अहमद साहब को या किसी मुसलमान को नहीं बल्कि ख़ुद को ही नुक्सान पहुंचा रही है। हिंदी अख़बारों में यह सूचना मुझे नज़र नहीं आई लेकिन उर्दू अख़बारों ने यह सूचना मुस्लिम अवाम तक पहुंचा दी है कि देखो ये है बीजेपी लीडरों की नफ़रत का आलम, ये तुम्हारे रब के नाम से भी चिढ़ते हैं और रब के नाम से सिर्फ़ शैतान ही चिढ़ सकता है।
क्या बीजेपी शैतानों की जमात है ?
यह बात बिना किसी के बताए मुसलमानों के दिमाग़ में पहले से ही है और समय समय पर इस धारणा को बीजेपी लीडर्स ख़ुद ही पुष्ट करते रहते हैं।
झारखंड के मुस्लिम गवर्नर ने अपने काम की शुरूआत अल्लाह के नाम से की तो उसे सराहने के बजाय विवाद पैदा करके वे मुसलमानों के दिलों में अपने लिए मौजूद संदेह को और ज़्यादा गहरा कर रहे हैं।
मज़ारों पर चादरें भेजना या रमज़ान में अफ़्तार पार्टियों का आयोजन ये लोग मुसलमानों को केवल धोखा देने के लिए करते हैं।
भगवा रंग और राम नाम का इस्तेमाल भी ये लोग इसी मक़सद से करते हैं।
ये रहीम के नहीं हैं तो क्या, ये तो राम के भी न हुए।
इसीलिए ये न घर के हुए और न घाट के रहे।

इनका यही अमल जारी रहा तो ये बीच में घूमने लायक़ भी नहीं बचेंगे।
यह ज़मीन प्रभु परमेश्वर की है, वही एक इसका अधिपति है और उसके सहस्रों नाम हैं। जो जिस भाषा को जानता है, उसे उस भाषा में उसका नाम ज़रूर लेना चाहिए। भारतीय संस्कृति यही है और यही ऋषियों का संदेश है।
शैतान के रोकने से न रूकें, अपने मालिक का नाम लेते रहें, कल्याण वही करता है और शैतान तो केवल भाई को भाई के खि़लाफ़ भड़काता है और एक का ख़ून दूसरे के हाथ कराता है।
सत्य को जानें और शांति से रहें, यही हमारा धर्म है और यही हमारा कर्तव्य है।
भारतीय संस्कृति भी यही है।
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तस्मेव श्री गुरुवे नम:


गुरु की महिमा क्या कहूँ, कह न पाऊँ मित्र |
जीवन को महकाते हैं, तन को जैसे इत्र ||

सीखलाते हैं पाठ ये, जीने का भी ढंग |
बतलाते जीवन का मर्म, कितने होते रंग ||

ईश्वर से भी बढ़कर है, गुरु की महिमा जान लो |
गुरु के बिन जीवन दुष्कर, अर्थहीन ये मान लो ||

मन को देते ज्ञान ये, तन को जैसे प्राण |
शुद्धि करते अंतर की, दे शिक्षा का दान ||

आदि काल से शिक्षक ही, करते विकास संपूर्ण |
बिन गुरु के होता है, मानव ही अपूर्ण ||

(शिक्षक दिवस पर सभी को शुभकामनाएँ | तथा उन सभी ब्लॉगरों को प्रणाम जिनसे कुछ भी सीखा है |)
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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  • - कहीं भी अपनी भाषा में टंकण (Typing) करें - Google Input Toolsप्रयोगकर्ता को मात्र अंग्रेजी वर्णों में लिखना है जिसप्रकार से वह शब्द बोला जाता है और गूगल इन...
    11 years ago

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Prerna Argal, Host : Bloggers' Meet Weekly, प्रत्येक सोमवार
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