जुलुस ,धार्मिक स्थल और पथराव फिर नफरत ही नफरत इसे जरा रोक लो यारों ...........

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  • Friday, September 9, 2011
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  • आपका अख्तर खान अकेला
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  • दोस्तों एक तरफ तो देश के दुश्मन आतंकवादी हाई टेक हैं कड़ी सुरक्षा के बीच चेलेंज देकर , विस्फोट कर सभी धर्म के लोगों को चोटिल और आहत कर रहे हैं और दूसरी तरफ हम गली छाप गुंडों के कहने में आकर वही पुराना दकियानूसी राजनितिक खेल खेल रहे हैं जिसमे धार्मिक जुलुस का एक धार्मिक स्थल से निकलना फिर वहां धूम धडाका होना शोर शराबे के बाद पथराव फिर तोड़फोड़ और दंगे फसाद का माहोल और एक खास पार्टी को फायदा होता है .हम कल भी पागल थे आज भी पागल हैं हमारी इक्कीसवीं सदी और आज का हमारा वही पिछड़ा पन हमारी लानत के लियें काफी है ...........कल कोटा के नजदीक मोड़क में जब यही घिसी पिटी केसिट चलाई गयी जल झुलनी का जुलुस एक मस्जिद के पास से निकला वहन रुका और फिर पथराव के आरोप के बाद भगदड़ तोड़फोड़ के बाद तनाव हो गया अमन पसंद लोग और प्रशासन परेशान हो गया लोगों की धडकने थम गयी और पुलिस तथा जिला प्रशासन भाग्दोड़ में लग गया लेकिन मुख्य दोषी कोन था पता ही नहीं चल सका और पता भी केसे चले इनका उद्देश्य तो योजनाबद्ध होता है कभी राजनीति से यह प्रेरित होते हैं तो कभी विदेशी ताकतों से यह मिले रहते हैं या कट्टर पंथी बुखार से यह पीड़ित रहते हैं .लेकिन एक शोध से हमारे देश में दंगों का एक ख़ास बहाना एक खास बुनियात जुलुस का धार्मिक स्थल के पास से निकलना और फिर उस पथराव होना फिर भगदड़ और फिर दंगे फसाद एक पक्ष नारेबाजी के आरोप लगाता है तो दुसरा पक्ष पथराव का आरोप लगाता हैं जाने जाती हैं सम्पत्ति को नुकसान पहुंचता है बड़े दंगों में आयोग बेठता है फिर सब वेसा का वेसा ही दोहराया जाता है .दोस्तों हम और देशवासी इस घिसी पिटी केसिट से तंग आ गये हैं लेकिन प्रशासन और पुलिस ने इससे कोई सबक न तो लिया है और ना ही कोई एहतियाती कार्ययोजना तय्यार की हैं .इसके लियें एक फार्मूला है अगर आपको ठीक लगे तो मुझे थोड़ी शाबाशी देने के लिए एक पत्र प्रधानमन्त्री ,,राष्ट्रपति ,राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अवश्य डालना ....
    फार्मूला नम्बर एक ............जब भी धार्मिक जुलूसों का आयोजन हो धार्मिक स्थलों के मार्ग से जुलुस निकलने को जितना टाला जा सकता हों टाला जाए ...........अगर मुख्य मार्ग पर ही धार्मिक स्थल हो तो जुलुस पहुंचने के आधे घंटे पहले ऐसे धार्मिक स्थल को खाली करवा कर पुलिस धार्मिक अदब के साथ अपने कब्जे में ले और सम्बंधित धार्मिक स्थान के बाहर जुलुस का ठहराव प्रदर्शन वर्जित हो और तुरंत वहां से जुलुस को निकाल कर वापस सम्बंधित धार्मिक स्थल धर्म से जुड़े लोगों के सुपुर्द कर दिया जाए ऐसा देश के हर छोटे बढ़े जुलुस में हो और इस मामले में आवश्यक दिशा निर्देश जारी होकर कानून बना कर इसकी पालना हो ताकि देश के किसी भी कोने में कमसे कम किसी भी धार्मिक जुलुस पर धार्मिक स्थल से पथराव करने का बहाना लेकर किसी भी आसामाजिक तत्व द्वारा दंगा फसाद नहीं करवाया जा सके .............दोस्तों आज हाईटेक युग है जुलुस .प्रदर्शनों की विडियोग्राफी अनिवार्य रूप से की जाती है फिर कहां किसकी गलती है उसे नामज़द कर दंडित क्यूँ नहीं क्या जाता उन कमरों में बंद साक्ष्य को सार्वजनिक क्यूँ नहीं क्या जाता जो पुलिस के पास सुरक्षित रहते हैं और अगर पुलिस का केमरामेन जुलुस पथराव की घटना मामले में ऐसे आपराधिक तत्वों की विडियोग्राफी करने में अक्षम रहता है तो उसे भी दंडित करना चाहिए ........तो जनाब करो कुछ ऐसा करिश्मा के यह देश ऐसा लगे थोडा तुम्हारा थोड़ा हमारा है इस देश के प्रति मान सम्मान थोड़ा तुम्हारा है तो थोडा हमारा है .यहा इसी देश की मिटटी में तुम्हे मिलजाना हिया तो हमें भी इसी देश की मिटटी में दब कर खुदा के घर जाना है इसलियें जाती धर्म राजनीति से बढ़ा देश और देश की सुक्ख शान्ति देश का भाईचारा है बस इसीलियें अपनी अक्ल से काम लोग खुदा इश्वर भगवान और अल्लाह से डरो और इस संकट के वक्त देश और देशवासियों के साथ खड़े होकर देश का साथ दो ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

    1 comments:

    DR. ANWER JAMAL said...

    आतंकवाद के ख़ात्मे का सही तरीक़ा

    आज लोग आतंकवाद को ख़त्म होते हुए देखना चाहते हैं।
    लेकिन सच्चाई यह है कि फ़िलहाल आतंक का अंत तो क्या यह कम होता हुआ भी नहीं लग रहा है।
    विदेशी लोग इस क्षेत्र को अशांत देखना चाहते हैं और इस क्षेत्र के राजनीतिज्ञ उनकी नीति को जानते हुए भी उन्हें बुरा तक नहीं कह सकते।
    धर्म-मत और क्षेत्रीय अलगाव को आधार बनाकर ये विदेशी शक्तियां एशिया को आपस में लड़ाती आ रही हैं बहुत पहले से।
    ईरान इराक़ को लड़ाया और अब पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान को लड़ा रहे हैं। इसी तरह वे भारत को पाकिस्तान और चीन से लड़ाना चाहते हैं। एक दूसरे के प्रति आशंका के चलते ही वे अपने बेकार हथियारों को यहां भारी क़ीमत पर बेच पाते हैं और इसी ख़रीद फ़रोख्त में मोटा माल कमीशन के रूप में हमारे रक्षक ले लेते हैं। अलगाववादी नेता और अभ्यस्त बलवाई भी विदेशों से करोड़ों रूपया हवाला के ज़रिये लाते हैं तो कुछ कर दिखाना उनकी भी मजबूरी होती है। सो आतंकवाद आज एक उद्योग का रूप ले चुका है। जिसमें शिक्षित लोग अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
    हक़ीक़त तो यह है।
    ऐसे नारे भी सुनने में आते है कि अमुक देश पर हमला कर देना चाहिए। इस तरह की बातों को बेवक़ूफ़ी के बजाय राष्ट्रवाद का नाम दिया जाता है।
    उन्हें नहीं मालूम कि ऐसे हमले जब कभी किये जाते हैं तब भी राजनीतिज्ञ यह सब अपने हितों के मददेनज़र ही करते हैं न कि जनता के व्यापक हित के लिए।
    जब सरकार घरेलू मोर्चे पर हार रही होती है तो वह अपने नागरिकों को ध्यान बंटाने के लिए किसी न किसी पर हमला कर भी देती है। अमेरिका भी ऐसे ही करता है।
    इस तरह आतंकवाद घटने के बजाय और बढ़ जाता है।
    फिर उस आक्रमण के बाद स्थिति शांत होने के बजाय पीड़ित पक्ष प्रतिशोध के लिए खड़ा हो जाता है जैसे कि बांग्लादेश विभाजन के बाद हुआ।
    अब यह क्षेत्र इसी राजनीति, कूटनीति और प्रतिशोध के जाल में फंसा हुआ चल रहा है।
    जो सच बोलता है, जनता उसकी सुनती नहीं है और जो उसे धोखे देता है उसे यह अपना नेता चुनती है।
    जो फ़रेब देकर एमएलए और एमपी बन जाते हैं, उन्हें क्या चिंता है कि जनता में कौन मरेगा या कौन जिएगा ?
    जब तक आतंकवाद है, उनसे जनता विकास कार्यों के बारे में पूछेगी नहीं और न ही उनके भ्रष्टाचार को देखेगी।
    कांग्रेस भ्रष्टाचार के मुददे पर बुरी तरह नंगी हो चुकी है।
    जनता उससे नाराज़ है।
    ऐसे में जनता का ध्यान कैसे बंटाया जाए ?
    ये धमाके जिसने भी किए हैं, उसने कांग्रेस को लाभ ही पहुंचाया है।
    अब भ्रष्टाचार और जन लोकपाल की चर्चा को मीडिया में दबाना आसान है।
    लोग मरते हैं और नेता उनकी चिताओं पर अपनी रोटियां सेकते हैं।
    यही असल वजह है जिसकी वजह से आतंकवाद है और आतंकवाद इसी वजह से बना भी रहेगा।
    बेहतर नेता चुनने के लिए जनता को खुद भी बेहतर बनना होगा।
    धर्म-मत, भाषा-क्षेत्र और राजनैतिक विचारधारा के अंतर के बावजूद हमें आपस में एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करना सीखना होगा।
    हम बेहतर होंगे तो हमारे बीच से निकलने वाला हमारा नेता बदतर हो ही नहीं सकता।
    आतंकवाद का ख़ात्मा ऐसे ही होगा और इस बदलाव को लाने में लंबा समय लगेगा।
    जो इस बात को नहीं जानता और नारे लगा रहा है, वह सत्य को न जानकर व्यर्थ की आशा में जीवन गंवा रहा है और जो किसी समुदाय के विरूद्ध भड़काऊ नारे लगा रहा है, वह भी आतंकवाद की बुनियादों को ही मज़बूत कर रहा है।

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