मुर्दों के
इस देश में
रहने वाले हम लोग
आखिर
किस सुबह
किस आज़ादी की
बात कर रहे हैं
यह सत्ता के
भूखे भेडिये हैं
देख लो
यह ज़िंदा लोगों की लाशों से
बलात्कार ..अत्याचार कर रहे हैं
इन लाशों के मांस को
नोच नोच कर खा रहे हैं
हाँ
अँगरेज़ चले गए
ओलादें छोड़ गए
इसलियें यह कहा रहे हैं
और गुर्रा रहे हैं
हो सके तो इन्हें रोक लो
ऐ मेरे वतन को लोगों
तुम जो बने हो ज़िंदा लाश
जरा उठो
सत्ता के इन भूखे भेडियों का टेटुआ दबाकर
इनके जबड़ों से
चमकता सूरज
मेरे देश को छुडा कर
आज़ाद करा लो
ताके तुम्हे हमें एक बार फिर मिले
सुबह सवेरा एक नये आज़ादी का बसेरा ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
सत्ता के इन भूखे भेडियों का टेटुआ दबाकर
Posted on Sunday, September 4, 2011 by आपका अख्तर खान अकेला in
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2 comments:
क्रोध की अगन
जला रही है
तन मन गगन
पुकारता है अकेला
चले हर कोई अकेला
मिल कर एक अकेला
बन जाएगा समूह विशाल
न खडग चाहिए न ढाल
जनता भूखी स्वयं काल
शासक कभी समझते नहीं
शोषण से कभी हिचकते नहीं
मर कर भी ये मरते नहीं
अंत अब होना चाहिए
मानवता को जीना चाहिए
हो वही जो होना चाहिए
तर्क मज़बूत और शैली शालीन रखें ब्लॉगर्स :-
हमारा संवाद नवभारत टाइम्स की साइट पर ,
दो पोस्ट्स पर ये कुछ कमेंट्स हमने अलग अलग लोगों के सवालों जवाब में दिए हैं। रिकॉर्ड रखने की ग़र्ज़ से इन्हें एक पोस्ट की शक्ल दी जा रही है।
बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति ||
सादर अभिनन्दन ||
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