मेरी पोस्ट हुईं तीन हजार के पार ............
भाई अनवर की बदोलत हिंदी ब्लोगिंग के मज़े लीजिये ................
भाई अनवर की बदोलत हिंदी ब्लोगिंग के मज़े लीजिये ................
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ग़ज़लगंगा.dg: लाख हमसाये मिले हैं......
लाख हमसाये मिले हैं आईनों के दर्मियां.
अजनवी बनकर रहा हूं दोस्तों के दर्मियां.
काफिले ही काफिले थे हर तरफ फैले हुए
रास्ते ही रास्ते थे मंजिलों के दर्मियां.
वक़्त गुज़रा जा रहा था अपनी ही रफ़्तार से
एक सन्नाटा बिछा था आहटों के दर्मियां.
राख के अंदर कहीं छोटी सी चिंगारी भी थी
इक यही अच्छी खबर थी हादिसों के दर्मियां.
इसलिए बचते-बचाते मैं यहां तक आ सका
एक रहबर मिल गया था रहजनों के दर्मियां.
किसकी किस्मत में न जाने कौन सा पत्ता खुले
एक बेचैनी है 'गौतम' राहतों के दर्मियां.
----देवेंद्र गौतम
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अजनवी बनकर रहा हूं दोस्तों के दर्मियां.
काफिले ही काफिले थे हर तरफ फैले हुए
रास्ते ही रास्ते थे मंजिलों के दर्मियां.
वक़्त गुज़रा जा रहा था अपनी ही रफ़्तार से
एक सन्नाटा बिछा था आहटों के दर्मियां.
राख के अंदर कहीं छोटी सी चिंगारी भी थी
इक यही अच्छी खबर थी हादिसों के दर्मियां.
इसलिए बचते-बचाते मैं यहां तक आ सका
एक रहबर मिल गया था रहजनों के दर्मियां.
किसकी किस्मत में न जाने कौन सा पत्ता खुले
एक बेचैनी है 'गौतम' राहतों के दर्मियां.
----देवेंद्र गौतम
हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड से सम्बंधित लेख मेरी नज़र में... (भाग १)
आज हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड श्रंखला की यह तीसरी कड़ी लिख रहा हूँ... 
आज कुछ भी लिखने से पहले बस यही कहना चाहूँगा कि... 
हजारों ख्वाहिशों को संग लिए,
मन में फिर एक उमंग लिए,
एक बार फिर चल पड़ा है माही
के मंजिल मुझे पुकार रही है...
तो चलो शुरू किया जाए...
आज सबसे पहले आपको बताना चाहूँगा कि हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के अपडेट्स आप फेसबुक (Facebook), लिंक्ड इन (LinkedIn) तथा गूगल ग्रुप्स के साथ - साथ अब ऑरकुट (Orkut) पे भी पा सकते हैं...
जी हाँ, हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड अब ऑरकुट में भी उपलब्ध है...
तो आज ही सदस्य बनें - ऑरकुट में हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड की कम्युनिटी के 
या 
या 
ऊपर दिए गए लिंक में से किसी भी लिंक पे क्लिक कर के हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के सदस्य बनें... तथा अपने मित्रों को भी शामिल करें...
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चलो अब आते हैं इस चरण के अगले पड़ाव पर... मेरा मतलब है 
हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के लेख व उनकी समीक्षा 
कुछ समझ में नहीं आ रहा कि हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के लेखों की समीक्षा की शुरूआत कहाँ से की जाए ? क्योंकि इसके लिए तो लेख अप्रेल २०११ से ही लिखे जाने लगे थे जब से इसके बारे में घोषणा की गयी थी. पर अब लगता है कि इसकी शुरुआत वहीँ से किया जाए जहाँ से इस विचार की उत्पत्ति हुई...
- शुरुआत होती है उस लेख से जिसे मैंने २९ अप्रेल २०११ को लिखा और ब्लॉग जगत को कुछ सुझाव दे डाले. यह लेख मैंने वर्तमान में हिंदी ब्लॉग्गिंग को ज्यादा बढ़ावा न मिल पाने की वजह से दिए थे, चूंकि मैं ब्लॉग्गिंग में नया ही था तो सारे दिग्गज ब्लॉगर को मेरे इस प्रयास से अपनी कुर्सी हिलती हुई दिखाई देने लगी. (क्षमा चाहूँगा यदि किसी को मेरे किसी भी वाक्य से बुरा लगा हो तो). बस फिर क्या था, मेरे उस लेख को मेरे ब्लॉग पे पहली बार १२ कमेंट्स मिले (जिसमे मेरे कमेंट्स भी शामिल हैं) और हिंदी ब्लॉगर फोरम इंटरनेशनल में ९ कमेंट्स मिले. जो मेरे प्रयास से खुश नहीं थे उन्होंने मेरी एक बात को लेकर झगडा सा शुरू कर दिया और जो मेरी बात से सहमत थे उनमे थे - डॉ. अनवर जमाल खान जी, अख्तर खान "अकेला" जी, डॉ. श्याम गुप्ता जी, रोहित जी, विवेक रंजन श्रीवास्तव जी, और कृति जी.. और जो मेरी बात से सहमत नहीं थे उनके नाम ना ही बताऊँ तो बेहतर होगा. अब आप जानना चाहेंगे कि आखिर मैंने ऐसा क्या लिखा कि सभी (खास तौर पे जबलपुरिया) ब्लोगरों को अच्छा नहीं लगा और उनको अपनी कुर्सी हिलने का आभास हुआ? तो लीजिए ये लिंक
सुझाव : Blogging के बेहतर कल के लिए
- इसी लेख के बाद डॉ. अनवर जमाल जी ने हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के प्रकाशन की योजना बनायीं और इसकी घोषणा उन्होंने "ब्लॉग की ख़बरें" ब्लॉग पर. कृपया लिंक देखें -
हिंदी ब्लॉग्गिंग का भविष्य रौशन करेगी : "हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड"
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/04/blog-post_7407.html
- फिर इस श्रंखला में मैंने कुछ और लेख लिखे जिनमे से प्रमुख हैं -
- हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड की रूप रेखा
- http://hbfint.blogspot.com/2011/05/blog-post_5220.html
- http://meri-mahfil.blogspot.com/2011/05/blog-post_26.html
- चूंकि अधिकाँश ब्लॉगर ने इसे पढ़ा और अपने विचार व्यक्त किये जिससे यह प्रतीत होता है कि हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड की रूपरेखा सभी को पसंद आई और इसी कारण चर्चामंच ब्लॉग पर भी २८ मई २०११ को इसे प्रस्तुत किया गया. यह रूपरेखा मेरे व डॉ. अनवर जमाल खान जी के दोनों के आपसी विचारों का संगम है, जिसे हमने भली भांति जांचा व परखा है. और इसी रूपरेखा के तहत हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड का प्रकाशन किया जा रहा है. चूंकि अभी भी इसमें कुछ बदलाव किये जा रहे हैं पर रूपरेखा की मुख्य सामग्री बदली नहीं गई है.
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आगे पढ़ें - हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड से सम्बंधित लेख मेरी नज़र में... (भाग २)
पिछले लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें -
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 - महेश बारमाटे "माही"
समस्याएं नए ब्लॉगर की Hindi Blogging Guide (8)
ब्लॉगिंग की दुनिया में मेरे प्रवेश की दास्तान
|  | 
| देवेंद्र गौतम | 
हिंदी ब्लॉगिंग गाइड के लेखों की श्रृंखला में 'हिंदी में लिखने के लिए ट्रांसलिटरेशन टूल' शीर्षक लेख पढने के बाद मुझे ब्लौगिंग की दुनिया में  अपने प्रवेश और तकनीकी  समस्याओं से जूझने के अनुभव याद आ गए. अख़बारी दुनिया से जुड़े होने के नाते कंप्यूटर और इंटरनेट से मेरा जुड़ाव तो था  लेकिन मेरा ज्ञान सिर्फ ईमेल और कम्पोज़िंग, एडिटिंग तक सीमित था.  वर्ष  2009  तक ब्लोगिंग के बारे में मुझे कुछ ख़ास जानकारी नहीं थी. सुना था कि  देवघर प्रभात ख़बर के पूर्व संपादक अविनाश जी मोहल्ला नाम का कोई ब्लॉग चला  रहे हैं लेकिन कभी उनका ब्लॉग भी देखा नहीं था. वर्ष 2009 में घर पर  कंप्यूटर और इंटरनेट लगवा लिया था. फरवरी 2010 में एक दिन अपने ईमेल अकाउंट  को साइन इन कर रहा था तो मेरी नज़र बायीं तरफ नीचे फ़ॉलो अस  पर पड़ी.  वहां  ब्लॉगर, ट्विटर, फेसबुक और बज़ का लोगो दिखा. मैंने ब्लॉगर को क्लिक कर  दिया तो Create a blog  लिखा नज़र आया. मैंने साइन इन कर दिया और फ़ॉर्म  भरता चला गया. इस तरह मेरा पहला ब्लॉग 'ग़ज़लगंगा' बन गया. अब इसके डैशबोर्ड  को समझने में कई दिन लगे. 
न्यू पोस्ट को खोलकर लिखना शुरू किया तो रोमन में  लिखा देवनागरी में परिणत होता देख आनंदित हुआ. मेरे पास कई डायरियों में  बिखरी कुछ प्रकाशित, कुछ अप्रकाशित, कुछ पूरी, कुछ अधूरी ग़ज़लें थीं. मैंने  सोचा कि क्यों नहीं उन्हें ब्लॉग पर एक जगह कर दूं. बस मैंने अपनी ग़ज़लें  पोस्ट करनी शुरू कर दीं. उस वक़्त मुझे यह भी पता नहीं था कि इन्हें लोग  पढ़ेंगे या टिप्पणी करेंगे. धीरे-धीरे कुछ लोग मेरे ब्लॉग को फ़ॉलो करने  लगे. सबसे पहले  स्वयंबरा का कमेंट आया. फिर एक दिन इस्मत ज़ैदी का एक  कमेंट आया. उन्होंने मेरी ग़ज़लों की तारीफ़ की लेकिन यह शिकायत की कि मैंने  कमेंट का आप्शन नहीं रखा है. मुझे खुद पता नहीं था कि यह आप्शन कैसे दिया  जाता है ? 
बहरहाल मैं ब्लॉग के फ़ीचर्स को क्लिक करता गया और मेरी जानकारी बढ़ती गयी. इस बीच मेरी पत्नी को किडनी की समस्या हो गयी जो लगातार गंभीर  होती गयी. मेरा दफ्तर जाना या कंप्यूटर पर बैठना भी अनियमित हो गया. मेरी  दिनचर्या घर से अस्पताल तक सीमित हो गयी. अखबार तैयार करने की ज़िम्मेदारी  धनबाद ऑफिस को शिफ़्ट कर दी और स्वयं को रांची की कुछ स्टोरी भेज देने तक  सीमित कर लिया . अंततः 20  अक्टूबर 2010 को पत्नी का देहांत हो गया. जनवरी  2011 में अपने आपको जब फिर इंटरनेट की दुनिया में व्यस्त करना शुरू किया तो  मेरे ब्लॉग पर ट्रांसलिटरेशन टूल काम नहीं कर रहा था. मीडिया जगत के तकनीकी  जानकारी रखनेवालों से पूछा तो ब्लॉगिंग के बारे में कुछ बता नहीं सके. एक  दिन अचानक गूगल पर ट्रांसलेट का आप्शन क्लिक किया तो देखा कि ट्रांसलिटरेशन  टूल काम कर रहा है. बस मैंने वहां लिखना और कॉपी कर ब्लॉग पर पेस्ट करना शुरू  किया.  वास्तव  में मेरी ब्लॉगिंग, दरअसल जनवरी 2011  से ही शुरू हुई. तक़रीबन एक-डेढ़ महीने पहले न्यू पोस्ट में 'अ' को क्लिक कर ट्रांसलिटरेशन टूल को  सक्रिय करना सीखा. अभी मैं स्वयं को ब्लॉगिंग का छात्र ही मानता हूं. इसलिए  हिंदी ब्लॉगिंग गाइड की तैयारी के बारे में सुना तो उत्साहित हुआ. कम से  कम अब जो ब्लॉगिंग की दुनिया में प्रवेश करेंगे उन्हें तकनीकी जानकारी के  लिए भटकना नहीं पड़ेगा.
मैं इस प्रोजेक्ट में लगे लोगों को इसके लिए धन्यवाद  देना चाहूंगा. ब्लॉगिंग मौजूदा दौर की एक बड़ी नेमत है क्योंकि यह इंसान को  जीवन से निराश नहीं होने देती. ब्लॉगिंग के ज़रिये आदमी अपने दुख-सुख और अपने ख़याल दूसरे लोगों के साथ शेयर कर सकता है। सार्थक लेख पढ़ सकता है और ये सभी बातें इंसान को निराशा के भंवर में डूबने से बचाती हैं। अच्छे बुद्धिजीवियों और हमदर्दों को दोस्त बनाने का बेहतरीन ज़रिया है ब्लॉगिंग। नए ब्लॉगर्स की राह से अड़चनों को दूर कर दिया जाए तो उनका समय और ऊर्जा का सही उपयोग हो सकेगा।
यह लेख भी नए ब्लॉगर के लिए काम देता है :
                                                                                                               -देवेंद्र गौतम      धर्म और राजनीति के धंधेबाजों की फंदेबाज़ी Indian Tradition
बाबा रामदेव जी ने कांग्रेस से मांग की कि वह विदेशों में जमा धन वापस लाए। मांग अच्छी थी लेकिन जिनसे यह मांग की जा रही थी, उनके लिए तो यह मांग ऐसी थी जैसे कि उनसे कंगाल होने के लिए कहा जा रहा हो। बाबा ने राजनेताओं द्वारा जमा धन को जगज़ाहिर करने की मुहिम चलाई और बीजेपी ने उनका साथ दिया। अब कांग्रेस के सलाहकारों ने केरल के मंदिर के तहख़ानों में छिपे धन को जगज़ाहिर कर दिया है और बता दिया है कि देश की ख़ुशहाली इस बात की मुहताज नहीं है कि विदेश में जमा धन को वापस लाया जाए तभी यहां ख़ुशहाली आएगी। अब मंदिर में जमा जनता के धन को जनता के कल्याण में लगाने की बात न तो बाबा रामदेव करेंगे और न ही बीजेपी करेगी। देश भर के साधु बाबा रामदेव को संभाल लेंगे। उनके ख़ास राज़दार बालकृष्ण जी की जान पहले ही आफ़त में है। सीबीआई उनके जन्मस्थान की तलाश में है।
सौदा यही पटेगा कि जनता का जो माल राजनेताओं ने डकार लिया है, उसके बारे में कोई बाबा कुछ नहीं बोलेगा और बाबा लोगों ने जो अथाह ख़ज़ाने अपने गर्भगृहों में छिपा रखे हैं, उन्हें सरकार हाथ नहीं लगाएगी बल्कि सरकार उनके ख़ज़ानों की सुरक्षा का प्रबंध करेगी और बाबा लोग भी जनता को बताएंगे कि तुम्हारे कष्टों के पीछे नेताओं का भ्रष्टाचार ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि तुम्हारे कष्टों का कारण है तुम्हारे पिछले जन्मों के पाप, जिन्हें तुम नहीं जानते। यदि तुम उन पापों से मुक्ति चाहते हो तो हमें दान दो।
धंधा अच्छा है और इसकी ख़ासियत है कि इसमें कभी मंदा नहीं आता। राजाओं और बादशाहों से ख़ज़ाने के इन रखवालों का यह पैक्ट हमेशा से चला आ रहा है।
इसीलिए परंपरागत गद्दी वाला कोई बाबा सरकार के भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ कभी कोई मुहिम नहीं छेड़ता। इस सनातन व्यवहारिक सौदेबाज़ी का पता बाबा रामदेव को नहीं था क्योंकि उन्होंने अभी अभी ताज़ा गद्दी की स्थापना की है। अब उन्हें भी अच्छी टक्कर लग चुकी है। शायद अब वे भी इस सौदे में शामिल होने के लिए राज़ी हो जाएं।
बस एक गड़बड़ हो गई है और वह यह कि जनता ने ख़जाना देख लिया है और जनता में नंगे-भूखे और मवाली भी हैं।
दैनिक हिन्दुस्तान के दिनांक 7 जुलाई 2011 के अंक में इस बारे में एक विस्तृत लेख छपा है :
सौदा यही पटेगा कि जनता का जो माल राजनेताओं ने डकार लिया है, उसके बारे में कोई बाबा कुछ नहीं बोलेगा और बाबा लोगों ने जो अथाह ख़ज़ाने अपने गर्भगृहों में छिपा रखे हैं, उन्हें सरकार हाथ नहीं लगाएगी बल्कि सरकार उनके ख़ज़ानों की सुरक्षा का प्रबंध करेगी और बाबा लोग भी जनता को बताएंगे कि तुम्हारे कष्टों के पीछे नेताओं का भ्रष्टाचार ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि तुम्हारे कष्टों का कारण है तुम्हारे पिछले जन्मों के पाप, जिन्हें तुम नहीं जानते। यदि तुम उन पापों से मुक्ति चाहते हो तो हमें दान दो।
धंधा अच्छा है और इसकी ख़ासियत है कि इसमें कभी मंदा नहीं आता। राजाओं और बादशाहों से ख़ज़ाने के इन रखवालों का यह पैक्ट हमेशा से चला आ रहा है।
इसीलिए परंपरागत गद्दी वाला कोई बाबा सरकार के भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ कभी कोई मुहिम नहीं छेड़ता। इस सनातन व्यवहारिक सौदेबाज़ी का पता बाबा रामदेव को नहीं था क्योंकि उन्होंने अभी अभी ताज़ा गद्दी की स्थापना की है। अब उन्हें भी अच्छी टक्कर लग चुकी है। शायद अब वे भी इस सौदे में शामिल होने के लिए राज़ी हो जाएं।
बस एक गड़बड़ हो गई है और वह यह कि जनता ने ख़जाना देख लिया है और जनता में नंगे-भूखे और मवाली भी हैं।
दैनिक हिन्दुस्तान के दिनांक 7 जुलाई 2011 के अंक में इस बारे में एक विस्तृत लेख छपा है :
तिरुअनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर से मिली संपत्ति ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। हमारे मंदिरों की अकूत संपत्ति हैरान करती है और हमें सोचने पर भी मजबूर करती है कि आखिर मंदिरों की संपत्ति किसकी है? किसके लिए है?
कल  तक तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर सबसे अमीर देवता थे। आज  तिरुअनंतपुरम के  पद्मनाभ स्वामी ने उन्हें बहुत पीछे छोड़ दिया है। अभी एक  तहखाना तो खुलना  बाकी है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर से मिले खजाने ने कई सवालों  को खड़ा कर  दिया है। आखिर उस खजाने का क्या किया जाए, जिसे एक लाख करोड़  का माना जा  रहा है? या देश के तमाम धार्मिक स्थलों का प्रबंधन किसके हाथ  में हो? उसकी  क्या सूरत हो? और उनकी अकूत संपत्ति का क्या किया जाए?इतिहासकार के. एम.  पणिक्कर का मानना है कि मंदिर की संपत्ति राज्य और उसके  लोगों की है।  पद्मनाभ मंदिर की पूरी संपत्ति केरल की विरासत है, इसलिए उसे  एक म्यूजियम  में रखा जाना चाहिए। एक ऐसा म्यूजियम, जिसमें जबर्दस्त सुरक्षा  व्यवस्था  हो। उसकी देखरेख विशेषज्ञों का एक ट्रस्ट करे। उसमें सरकारी  प्रतिनिधि भी  हों। लेकिन केरल भाजपा के अध्यक्ष वी. मुरलीधरन मानते हैं कि  मंदिर की  संपत्ति मंदिर की है। और किसी को उसमें दखल देने का अधिकार नहीं  है।  वैष्णो देवी मंदिर की कायापलट करने वाले जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन   राज्यपाल जगमोहन मानते हैं कि सभी मंदिरों को सरकार के हवाले कर देना   चाहिए। उनका एक बोर्ड हो, जो कायदे से उनका प्रबंधन करे। अब सवाल है कि  मंदिरों के अकूत खजाने का क्या किया जाए? हमारे धार्मिक  स्थलों की संपत्ति  देख कर महसूस होता है कि यों ही अपने देश को सोने की  चिड़िया नहीं कहा  जाता था। अपने मंदिरों में जिस कदर सोना बिखरा पड़ा है,  उससे क्या साबित  होता है? तिरुपति में एक हजार किलो सोना। पद्मनाभस्वामी  मंदिर में हजार  किलो वजन के सोने के सिक्के। पांच सौ करोड़ रुपए की कीमत की  भगवान विष्णु  की अनंत शयनम् मूर्ति। शिरडी में एक ही साल में तीन सौ करोड़  के जेवर  वगैरह-वगैरह। यह तो एक नमूना है। यह सोने की चिड़िया कितनी बड़ी  है? इसका  अंदाज लगाना ही आसान नहीं है। लेकिन सवाल है कि उस सोने की  चिड़िया से  समाज या देश का क्या भला हो रहा है? भक्तों ने ही अपने मंदिरों को सोने की  चिड़िया बनाया है। उनके चढ़ावे का  क्या हो? यही बड़ा मसला है। सुप्रीम  कोर्ट के पूर्व जज वीआर कृष्ण अय्यर का  मानना है कि वह समाज के काम आना  चाहिए। और उसके लिए हमारी संसद को कुछ  करना चाहिए। हमारे चढ़ावे का क्या  होता है? यह सवाल भी भक्त के मन में नहीं आता। प्रभु  को भक्तों ने चढ़ावा  चढ़ा दिया। उसका क्या होना है, प्रभु जानें? केरल में  नास्तिक आंदोलन  चलाने वाले यू. कलानंदन कहते हैं कि हम तो यह भी इच्छा  जाहिर नहीं करते कि  उसका किसी भले काम के लिए इस्तेमाल होना चाहिए। सो,  मंदिर का बोर्ड या जो  भी उसे देख रहा है, उसका जैसा चाहे इस्तेमाल कर लेता  है। इस तरह का  अनसोचा चढ़ावा ही समस्या की जड़ है। जाहिर है उसका फायदा  किसी और को होता  है। आखिर प्रभु तो पूर्ण हैं। उन्हें तो कुछ नहीं चाहिए। नारायण का चढ़ावा  अगर  दरिद्र नारायण के काम आ सके तो उससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। हर धर्म  में  दान को बेहद अहम माना जाता है। हम समाज से कुछ लेकर ही तो अमीर बनते  हैं।  फिर उसी पैसे का कुछ हिस्सा हम समाज को वापस करते हैं। प्रभु को  चढ़ावे के पीछे क्या तर्क है? यही न कि प्रभु़ आपकी कृपा से हमें  जिंदगी  में इतना कुछ मिला है। तो हमें भी उसका कुछ हिस्सा वापस देना चाहिए।  प्रभु  को चढ़ावे के पीछे समाज को वापस देने की ही बात है। हम प्रसाद  चढ़ाते हैं  तो प्रभु क्या लेते हैं? उसे हम ही तो खाते हैं। लेकिन हम उसे  बांट कर  खाते हैं। सो, दान समाज के लिए ही है। उसकी महिमा सब जानते हैं,  लेकिन  उसका इस्तेमाल काले धन को ठिकाने लगाने के लिए नहीं होना चाहिए। हम  प्रभु  को ही ठगना चाहते हैं। कम से कम प्रभु को तो छोड़ ही दीजिए। हर  धार्मिक  स्थल चाहता है कि हर भक्त तो पूरी ईमानदारी बरते। लेकिन उसे चलाने  वालों  को कुछ भी करने की छूट हो। वे तो प्रभु के बंदे हैं। उन पर कैसी  बंदिश?  लेकिन यह बंदिश होनी ही चाहिए। मंदिरों की पूरी व्यवस्था सरकार के हवाले हो  या किसी ट्रस्ट के हाथ में,  लेकिन इतना तो होना ही चाहिए कि उसका पैसा आम  आदमी के काम आए। नारायण का  खजाना दरिद्र नारायण के काम आ सके। समाज की  बेहतरी के लिए उसका इस्तेमाल  हो। वह चाहे कोई भी करे। कोई ट्रस्ट भी यह  काम कर सकता है और सरकार भी।   ट्रस्ट भी उसका बेजा इस्तेमाल कर सकता है और  सरकार भी।
दरअसल, धार्मिक स्थलों को लेकर एक  राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए। और वह नीति  सभी पर लागू होनी चाहिए। सबसे पहले  तो उनकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।  उन्हें किसी के लिए तो जवाबदेह होना  ही चाहिए। उनके हर काम में पारदर्शिता  होनी चाहिए। एक-एक चीज का लेखा-जोखा  होना चाहिए। कोई उसका गलत इस्तेमाल न  करे, इसे सुनिश्चित किया जाना  चाहिए। हर धार्मिक-स्थल में पूजा इबादत का  अपना तरीका हो सकता है, लेकिन  उसका प्रशासन और उसमें पारदर्शिता तो एक ही  तरह की होनी चाहिए। देश की  कानून व्यवस्था अलग-अलग नहीं हो सकती न। वही  धार्मिक स्थलों पर भी लागू  होता है।  धार्मिक ट्रस्टों के सामाजिक कार्य
- सत्यसाई ट्रस्ट द्वारा आंध्र प्रदेश में अनंतपुर, मेडक व महबूब नगर, चेन्नई और पूर्वी गोदावरी व पश्चिमी गोदावरी जल परियोजनाएं चलाई जा रही हैं।
- बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ द्वारा गरीबों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। उनके ट्रस्ट द्वारा कई योग शिक्षण और मेडिकल संस्थान चलाए जाते हैं।
- श्री श्री रविशंकर का ‘आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन’ 2003 से इराक में ट्रॉमा रिलीफ प्रोग्राम चला रहा है, जिसमें 5000 से ज्यादा लोग हिस्सा ले चुके हैं।
- तिरुपति बालाजी मंदिर की देखरेख करने वाला ‘तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम’ ट्रस्ट तिरुपति के एस.वी. इंस्टीटय़ूट ऑफ ट्रेडिशनल स्कल्पचर एंड आर्किटेक्चर, एस.वी. पॉलिटेक्नीक फॉर द फिजिकली चैलेंज्ड, बालाजी इंस्टीटय़ूट ऑफ सजर्री, रिसर्च एंड रिहैबिलिटेशन फॉर द डिसेबल्ड, श्री वेंकटेश्वर पुअर होम, श्री वेंकटेश्वर स्कूल फॉर द डेफ, श्री वेंकटेश्वर ट्रेनिंग सेंटर फॉर द हैंडीकेप्ड सहित कई शिक्षा संस्थान संचालित करता है। ट्रस्ट जरूरतमंद छात्रों को स्कॉलरशिप भी देता है।
- अम्मा के नाम से विख्यात सतगुरु माता अमृतानंदमयी सुनामी, चक्रवात, बाढ़, भूकंप में पीड़ित लोगों के लिए कई आपदा राहत कार्यक्रम चलाती हैं। अम्मा ने भारत में इंजीनयरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, पत्रकारिता, आईटी के 60 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया है।
बहुत कुछ हो सकता है इस खजाने से
- यह राशि केरल राज्य के सार्वजनिक ऋण (पब्लिक डेब्ट), जो करीब 71 हजार करोड़ रुपए है, से ज्यादा है। इस राशि से केरल की अर्थव्यवस्था बदल सकती है।
- इससे ‘फूड सिक्युरिटी एक्ट’ (करीब 70 हजार करोड़ रुपए) और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (करीब 40 हजार करोड़ रुपए) का खर्च निकल सकता है।
- यह राशि भारत के सालाना शिक्षा बजट की ढाई गुणा है।
- इस राशि से भारत का सात माह का रक्षा खर्च पूरा हो सकता है।
- यह राशि भारत के तीन राज्यों- दिल्ली, झारखंड और उत्तराखंड के सालाना बजट से ज्यादा है।
- यह कोरिया की स्टील कंपनी पॉस्को द्वारा उड़ीसा में किए जा रहे 12 बिलियन डॉलर (करीब 54 हजार करोड़ रुपए) के प्रस्तावित निवेश, जो भारत में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) है, से करीब दोगुना है।
- यह राशि भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के मार्केट वैल्यू की एक तिहाई और विप्रो (1.02 लाख करोड़) के लगभग बराबर है।
तिरुपति तिरुमला वेंकटेश्वर, आंध्र प्रदेश
1000 किलो सोना और 52,000 करोड़ रुपए की संपत्ति। सालाना आय 650 करोड़ रुपए। हर साल करीब 300 करोड़ रुपए, 350 किलो सोना दान के रूप में प्राप्त होता है। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने का पता चलने से पहले तक सबसे धनी मंदिर।
वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू व कश्मीर
यह मंदिर जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे में स्थित है। सालाना 500 करोड़ रुपए की आय। संचालन श्री माता वैष्णो देवी स्थापन बोर्ड द्वारा, जिसे श्रइन बोर्ड भी कहा जाता है। पिछले पांच साल में आय में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। तिरुपति के बाद सबसे ज्यादा श्रद्धालु इसी मंदिर में आते हैं।
शिरडी साईं बाबा, महाराष्ट्र
सालाना आय करीब 450 करोड़ रुपए। 300 करोड़ करोड़ रुपए के जेवर इसी साल दान में मिले। करीब 4.5 अरब रुपए का निवेश। संचालन शिरडी साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट द्वारा।
सिद्धिविनायक मंदिर, महाराष्ट्र
सालाना आय 46 करोड़ रुपए। 125 करोड़ रुपए का फिक्स्ड डिपॉजिट। संचालन सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट द्वारा। हर साल 10 से 15 करोड़ रुपए दान के रूप में प्राप्त होते हैं।
साभार : http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/article1-story-67-67-179196.html
अरे भई साधो......: बाबा रे बाबा! विदेशी बैंकों से ज्यादा धन तो धर्मस्थलों में पड़ा है
केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर का एक तहखाना खुलना बाकी है और अभी तक एक लाख करोड़ का धन सामने आ चूका है. फिलहाल राजघराने के अनुरोध पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से सरकार ने अगले तहखाने से निकलने वाले धन का विवरण सार्वजनिक न करने का निर्णय लिया है. साईं बाबा के देहावसान के बाद उनके तहखाने से मिली खरबों की संपत्ति के मालिकाना हक का विवाद चल ही रहा है. जाहिर है कि देश के मंदिरों, मसजिदों, गुरुद्वारों, गिरिजाघरों बी एनी धर्मस्थलों में इतना धन पड़ा हुआ है कि उसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता. यह विदेशी बैंकों में जमा भारतीय काला धन से हजारों या लाखों गुना ज्यादा है और अनुपयोगी पड़ा है. सरकार बाबा रामदेव की संपत्ति को खंगालने में लगी है जबकि वह घोषित है. उसका राजस्व भी जमा होता है और दर्जन भर कंपनियों के जरिये उसका राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान भी हो रहा है. लेकिन धर्मस्थलों के तहखानों में पड़े धन का राष्ट्रीय विकास में क्या योगदान हो रहा है? उनसे सरकार को कौन सा राजस्व प्राप्त हो रहा है. इसका राष्ट्रीय विकास में योगदान कैसे हो इसपर विचार करने की जरूरत है.
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भ्रष्टाचारःदर्द कहाँ और दवा कहाँ?
पानी   और प्रशासन का स्वाभाव एक सा है, जिसका प्रवाह हमेशा ऊपर से नीचे की ओर   होता है। अन्ना के तथाकथित सफल अभियान के बाद आजकल भारत में आम पीड़ित   लोगों के साथ साथ भ्रष्टाचारी भी "भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन"  में सक्रिय  भूमिका अदा करते हुए दिखाई पड़ने लगे हैं। प्रत्यक्षतः आम  लोगों का इससे  जुड़ना सुखद तो लगता है लेकिन भ्रष्टाचारियों के जुड़ने से  इसके विपरीत  परिणाम की आशंका अधिक दिखाई देती है। डर यह है कि आजादी की  तरह ही यह  "भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन" भी कहीं कालक्रम में घोर भ्रष्टाचारियों के  हाथ की कठपुतली न बन जाय।
चलिए पहले भ्रष्टाचार शब्द और उसके वर्तमान निहितार्थ को समझने की कोशिश करते हैं। ऐसा 'आचार' जो भ्रष्ट हो अर्थात जो आचरण सामाजिक और संवैधनिक रूप से सामान्य जन जीवन में सहज रूप से स्वीकार्य न हो, लगभग यही भ्रष्टाचार का अर्थ शाब्दिक रूप से किया जा सकता है। लेकिन आज जो भ्रष्टाचार का नया अर्थ भारतीय जन जीवन में आमतौर पर समझा जा रहा है उसकी सीमा मात्र "आर्थिक भ्रष्टाचार" तक सिमटती नजर आ रही है। जबकि भ्रष्टाचार का दायरा शाब्दिक रूप से जीवन के बहुत आयामों के नियमित आचरणों की ओर इशारा करता है। कभी कभी सोचता भी हूँ कि किसी शब्द के प्रचलित अर्थ क्या इसी तरह समय की जरूरत के हिसाब से अपना बिशेष अर्थ ग्रहण करते हैं? खैर-----
जब कोई चोर या कुकर्मी की पिटाई सरेआम होते रहती है तब एक सामान्य आदमी, जिसने आजतक एक चींटी भी नहीं मारी हो, वो भी उसपर दो हाथ चला देने में नहीं हिचकता। मेरे हिसाब से वहाँ एक मनोविज्ञान काम करता है। दरअसल वैसा व्यक्ति उस चोर को मारकर अपने भीतर के चोर को समझाता है या डराता है कि अगर वो भी ऐसा करेगा तो ऐसी ही सजा मिलेगी। अन्ना हजारे की भावना को प्रणाम करते हुए कहना चाहता हूँ कि उनके आन्दोलन के समय समग्र भारत में जो जन समर्थन मिला उसके पीछे कमोवेश इस मनोविज्ञान का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव रहा है। इसलिए ऊपर में मैंने "तथाकथित सफलता" शब्द का प्रयोग किया है।
इसी साल पहली मई को मुझे "इन्डिया एगेन्स्ट करप्शन" के एक कार्यक्रम में बुलाया गया। मैंने मंच से एक सवाल स्वयं सहित जनता के सामने रखा कि समस्त भारत में स्थापित भ्रष्टाचार की इतनी शानदार और मजबूत इमारत बनाने में क्या हमने भी तो किसी न किसी प्रकार एक ईट जोड़ने का काम तो नहीं किया है? सब अपने अपने गिरेबां में सच्चाई से तो झाँकें? यदि सचमुच हम सब आत्म-मंथन करें तो इस धधकते प्रश्न का उत्तर आसानी से नहीं दिया जा सकता क्योंकि प्रायः हम सभी ने कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार जाने अनजाने भ्रष्टाचार को मजबूत करने में अपना योगदान दिया है तभी तो आज यह भस्मासुर बनकर हम सबको, हमारी संस्कृति को नष्ट करने को आतुर है।
लगभग पैंतीस बर्ष पूर्व गरीबी की कृपा से मात्र सोलह बर्ष की उम्र में जब रोजगार के लिए घर से भावुकता में रोते रोते निकल रहा था तो याद आती है गाँव के ही एक उम्रदराज इन्सान की जिन्होंने मेरे प्रणाम करने पर कहा "बेटा रोओ मत - जीभ और आचरण (आचरण के लिए जो शब्द उन्होंने ग्रामीण परिवेश में प्रयोग किया उसका जिक्र उचित नहीं लगता) ठीक रखना - सुख करोगे"। फिर याद आती है उसके करीब पंद्रह साल बाद की एक घटना जब मैं पुनः अपने गाँव गया हुआ था। वही गाँव करीब उन्हीं के उम्र के एक व्यक्ति ने पूछा - क्या नौकरी करते हो? मैंने कहा हाँ। फिर प्रति प्रश्न कि "ऊपरी आमदनी" है कि नहीं? मेरा उत्तर नहीं। तब क्या खाक नौकरी करते हो?
यह एक नितांत व्यक्तिगत अनुभूति की बात है लेकिन यह मात्र पंद्रह बरस के अन्दर सामूहिक सांस्कृतिक अवनयन की दिशा की ओर संकेत अवश्य करता है। ठीक उसी तरह जिस तरह एक चावल की जाँच के बाद भात बनने या न बनने के संकेत मिल जाते हैं। फिर सोचने को विवश हो जाता हूँ कि ऊपर वर्णित पंद्रह बरस के बाद भी तो धरती पर और बीस बरस गुजर गए हैं जिस अवधि में गंगा का कितना पानी बह गया होगा।
नेता हो या अफसर, ये भी इसी समाज के अंग हैं, हम लोगों के बीच से ही ये लोग निकलते हैं, जो अपने ऊँचे ओहदे और दबंगई से इस भयानक बीमारी भ्रष्टाचार के कारक बने हुए हैं और स्वभावतः पूरे देश की आँखों की आजकल किरकिरी भी। लेकिन हमें ही सोचना होगा कि आखिर इन लोगों का इस दिशा में प्रशिक्षण प्रारम्भ कहाँ से हुआ? यहीं से मेरा यह कवि मन यह कहने को विवश हो जाता है कि सारे शासन तंत्रों में लोकतंत्र बेहतर होते हुए भी हमारा लोकतंत्र आजकल बीमार हो गया है और यकायक ये पंक्तियाँ निकल पड़तीं हैं कि ---
चलिए पहले भ्रष्टाचार शब्द और उसके वर्तमान निहितार्थ को समझने की कोशिश करते हैं। ऐसा 'आचार' जो भ्रष्ट हो अर्थात जो आचरण सामाजिक और संवैधनिक रूप से सामान्य जन जीवन में सहज रूप से स्वीकार्य न हो, लगभग यही भ्रष्टाचार का अर्थ शाब्दिक रूप से किया जा सकता है। लेकिन आज जो भ्रष्टाचार का नया अर्थ भारतीय जन जीवन में आमतौर पर समझा जा रहा है उसकी सीमा मात्र "आर्थिक भ्रष्टाचार" तक सिमटती नजर आ रही है। जबकि भ्रष्टाचार का दायरा शाब्दिक रूप से जीवन के बहुत आयामों के नियमित आचरणों की ओर इशारा करता है। कभी कभी सोचता भी हूँ कि किसी शब्द के प्रचलित अर्थ क्या इसी तरह समय की जरूरत के हिसाब से अपना बिशेष अर्थ ग्रहण करते हैं? खैर-----
जब कोई चोर या कुकर्मी की पिटाई सरेआम होते रहती है तब एक सामान्य आदमी, जिसने आजतक एक चींटी भी नहीं मारी हो, वो भी उसपर दो हाथ चला देने में नहीं हिचकता। मेरे हिसाब से वहाँ एक मनोविज्ञान काम करता है। दरअसल वैसा व्यक्ति उस चोर को मारकर अपने भीतर के चोर को समझाता है या डराता है कि अगर वो भी ऐसा करेगा तो ऐसी ही सजा मिलेगी। अन्ना हजारे की भावना को प्रणाम करते हुए कहना चाहता हूँ कि उनके आन्दोलन के समय समग्र भारत में जो जन समर्थन मिला उसके पीछे कमोवेश इस मनोविज्ञान का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव रहा है। इसलिए ऊपर में मैंने "तथाकथित सफलता" शब्द का प्रयोग किया है।
इसी साल पहली मई को मुझे "इन्डिया एगेन्स्ट करप्शन" के एक कार्यक्रम में बुलाया गया। मैंने मंच से एक सवाल स्वयं सहित जनता के सामने रखा कि समस्त भारत में स्थापित भ्रष्टाचार की इतनी शानदार और मजबूत इमारत बनाने में क्या हमने भी तो किसी न किसी प्रकार एक ईट जोड़ने का काम तो नहीं किया है? सब अपने अपने गिरेबां में सच्चाई से तो झाँकें? यदि सचमुच हम सब आत्म-मंथन करें तो इस धधकते प्रश्न का उत्तर आसानी से नहीं दिया जा सकता क्योंकि प्रायः हम सभी ने कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार जाने अनजाने भ्रष्टाचार को मजबूत करने में अपना योगदान दिया है तभी तो आज यह भस्मासुर बनकर हम सबको, हमारी संस्कृति को नष्ट करने को आतुर है।
लगभग पैंतीस बर्ष पूर्व गरीबी की कृपा से मात्र सोलह बर्ष की उम्र में जब रोजगार के लिए घर से भावुकता में रोते रोते निकल रहा था तो याद आती है गाँव के ही एक उम्रदराज इन्सान की जिन्होंने मेरे प्रणाम करने पर कहा "बेटा रोओ मत - जीभ और आचरण (आचरण के लिए जो शब्द उन्होंने ग्रामीण परिवेश में प्रयोग किया उसका जिक्र उचित नहीं लगता) ठीक रखना - सुख करोगे"। फिर याद आती है उसके करीब पंद्रह साल बाद की एक घटना जब मैं पुनः अपने गाँव गया हुआ था। वही गाँव करीब उन्हीं के उम्र के एक व्यक्ति ने पूछा - क्या नौकरी करते हो? मैंने कहा हाँ। फिर प्रति प्रश्न कि "ऊपरी आमदनी" है कि नहीं? मेरा उत्तर नहीं। तब क्या खाक नौकरी करते हो?
यह एक नितांत व्यक्तिगत अनुभूति की बात है लेकिन यह मात्र पंद्रह बरस के अन्दर सामूहिक सांस्कृतिक अवनयन की दिशा की ओर संकेत अवश्य करता है। ठीक उसी तरह जिस तरह एक चावल की जाँच के बाद भात बनने या न बनने के संकेत मिल जाते हैं। फिर सोचने को विवश हो जाता हूँ कि ऊपर वर्णित पंद्रह बरस के बाद भी तो धरती पर और बीस बरस गुजर गए हैं जिस अवधि में गंगा का कितना पानी बह गया होगा।
नेता हो या अफसर, ये भी इसी समाज के अंग हैं, हम लोगों के बीच से ही ये लोग निकलते हैं, जो अपने ऊँचे ओहदे और दबंगई से इस भयानक बीमारी भ्रष्टाचार के कारक बने हुए हैं और स्वभावतः पूरे देश की आँखों की आजकल किरकिरी भी। लेकिन हमें ही सोचना होगा कि आखिर इन लोगों का इस दिशा में प्रशिक्षण प्रारम्भ कहाँ से हुआ? यहीं से मेरा यह कवि मन यह कहने को विवश हो जाता है कि सारे शासन तंत्रों में लोकतंत्र बेहतर होते हुए भी हमारा लोकतंत्र आजकल बीमार हो गया है और यकायक ये पंक्तियाँ निकल पड़तीं हैं कि ---
वीर-शहीदों की आशाएँ, कहो आज क्या बच पाई?
बहुत कठिन है जीवन-पथ पर, धारण करना सच्चाई।
मन - दर्पण में अपना चेहरा, रोज आचरण भी देखो,
निश्चित धीरे-धीरे विकसित, होगी खुद की अच्छाई।।
तब दृढ़ता से हो पायेगा, सभी बुराई का प्रतिकार।
भारतवासी अब तो चेतो, लोकतंत्र सचमुच बीमार।।
कर्तव्यों का बोध नहीं है, बस माँगे अपना अधिकार।
सुमन सभी संकल्प करो कि, नहीं सहेंगे अत्याचार।।
पूरी रचना यहाँ है - http://manoramsuman.
हिंदी में लिखने के लिए ट्रांसलिट्रेशन टूल Hindi Blogging Guide (7)
आम तौर पर लोग टाइपिंग के माहिर नहीं होते। ऐसे में उनके लिए ऐसे टूल बहुत फ़ायदेमंद हैं जो कि ट्रांसलिट्रेशन की सुविधा देते हैं। आप रोमन में लिख कर जैसे ही स्पेस देंगे तो यह टूल आपके लिखे हुए शब्द को हिंदी में बदल देगा और आप इसे कॉपी करके कहीं भी पेस्ट कर सकते हैं।
 
- इस तरह की सुविधा ब्लॉगर डॉट कॉम भी देता है और जहां पोस्ट लिखने की जगह है ठीक वहीं कोने में ऊपर इसका एक बटन भी ब्लॉगर को नज़र आता है। यह बटन ‘अ‘ का चिन्ह है। इस पर क्लिक करके आप रोमन में टाइप करना शुरू कीजिए और आपका लिखा हुआ ख़ुद ब ख़ुद हिंदी में बदलता चला जाएगा।
- नीचे दिए गए लिंक पर भी यही सुविधा आपको मिलेगी। इस लिंक को आप अपने ब्लॉग में भी लगा सकते हैं और ज़रूरत के वक्त आप उस पर क्लिक करेंगे तो आपके सामने एक बॉक्स खुल जाएगा, जिसमें आप टाइप कर सकते हैं।
- आपकी सुविधा के लिए यह लिंक ‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ के साइड में भी लगा दिया गया है। जब भी आप ऑनलाइन हिंदी लिखना चाहें तो इस लिंक पर क्लिक कीजिए और मज़े से हिंदी लिखिए।
- गूगल आईएमई ट्रांसलिट्रेशन टूल ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों तरह काम देता है। यह ऑनलाइन अच्छा काम करता है और ऑफ़लाइन उतना अच्छा काम नहीं करता। इसके बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए आप निम्न लिंक पर जाएं
- इस लिंक से इसे डाउनलोड किया जा सकता है
- इसे इंस्टॉल करना थोड़ा सा मुश्किल है।
- माइक्रोसॉफ़्ट का आईएमई टूल भी इंस्टॉल करने में परेशानी होती है लेकिन यह भी काम अच्छा करता है।इस लिंक पर जाकर आप इसे इंस्टाल कर सकते हैं-
- यह भी ऑनलाइन ही ज़्यादा अच्छा काम करता है।
पासवर्ड की सुरक्षा के लिए सावधानियां Hindi Blogging Guide (6)
डा. अयाज़ अहमद साहब एक समाज सेवी के रूप में जाने जाते हैं। रोज़ाना 100 से भी अधिक पेशेंट देखना उनका रोज़ का काम है। इसी व्यस्तता के चलते वे ब्लॉगिंग में पहले जितने सक्रिय आजकल नहीं हैं लेकिन हमारी दरख्वास्त पर उन्होंने ‘हिंदी ब्लॉगिंग गाइड‘ के लिए एक लेख लिखा है और बताया है कि अपने ईमेल अकाउंट को बुरी नज़र से बचाने के लिए क्या क्या उपाय करने चाहिएं ?  
पेश है एक ऐसा लेख जिसके उसूलों को अपना कर आपका अकाउंट हो जाएगा बिल्कुल बुलेट प्रूफ़ !
पेश है एक ऐसा लेख जिसके उसूलों को अपना कर आपका अकाउंट हो जाएगा बिल्कुल बुलेट प्रूफ़ !
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|  | 
| भाई एजाज़ उल हक़ द्वारा भेजा गया नया टाइटिल | 
 जीमेल पर या किसी भी साइट पर अपना अकाउंट इस्तेमाल करने के लिए एक पासवर्ड अनिवार्य होता है। पासवर्ड निश्चित करने में आम तौर पर लोग अपने नाम का कोई हिस्सा या जन्मदिन की डेट या अपना मोबाइल नंबर या अपने स्कूल आदि का नाम इस्तेमाल करते हैं। इंटरनेट हैकर यह बात जानते हैं और इसी तरह के अनुमान से वे लोगों का अकाउंट हैक करके लोगों को तरह तरह के नुक्सान पहुंचा देते हैं। कई बार तो ये हैकर अफ़वाह फैलाकर देश की सुरक्षा तक को ख़तरे में डाल देते हैं।
अभी 4 जुलाई 2011 को जब अमेरिका के लोग आज़ादी का जश्न मनाने में जुटे थे तभी किसी हैकर ने मीडिया जगत के बेताज बादशाह रूपर्ट मर्डोक का ट्विटर अकाउंट हैक कर लिया और उनके अकाउंट से यह सूचना जारी कर दी कि राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की गोली मार कर हत्या कर दी गई है। इस खाते से जुड़े सभी विशिष्ट 33 हज़ार लोगों को यह सूचना तुरंत ही पहुंच गई और सभी लोग सन्न रह गए। इसके बाद तफ़्तीश की गई तो पता चला कि यह सूचना ग़लत है। 
- इंटरनेट पर हैकर्स सक्रिय हैं और ये लोग आए दिन किसी न किसी को अपना शिकार बनाते रहते हैं। आप इनके शिकार न बन जाएं, इसके लिए आपको अपने पासवर्ड को ऐसा बनाना होगा जिसे बारे में दूसरे लोग अंदाज़ा न लगा सकें।
- ऐसा पासवर्ड केवल वह होता है जिसमें आप अक्षर और संख्या दोनों का इस्तेमाल करते हैं और अंग्रेज़ी के अक्षरों में भी आप एक-दो अक्षरों को कैपिटल लिख देंगे तो आपका पासवर्ड ‘खुल जा सिम सिम‘ से भी ज़्यादा पॉवरफ़ुल हो जाएगा।
- एक उदाहरण देखिये : dh8RP7k3
- अगर आप केवल अक्षर ही इस्तेमाल करना चाहते हैं तब भी ये किसी व्यक्ति, स्थान और देश आदि का नाम हरगिज़ नहीं होना चाहिए और अपना नाम तो किसी भी हाल में नहीं होना चाहिए।
- अपने पासवर्ड को कभी किसी को न बताएं और न ही अपनी डायरी में लिखें और न ही अपने किसी दोस्त या परिचित को बताएं। अगर आपको अपने ब्लॉग में किसी की मदद लेनी ही पड़े तो आप उसे अपने ब्लॉग का सदस्य बनाकर उसे एडमिन पॉवर दे सकते हैं।
नए ब्लॉगर इंटरनेट की दुनिया में इधर उधर घूम कर रोज़ाना ही नई नई वेबसाइट देखते रहते हैं और उनके सदस्य भी बनते रहते हैं। हरेक जगह उनसे उनका ईमेल पता और पासवर्ड मांगा जाता है। नए ब्लॉगर समझ नहीं पाते और हरेक जगह अपना पासवर्ड देते रहते हैं। इन साइट्स में ही कुछ साइट्स पर हैकर बैठे हुए होते हैं और इस तरह उनका पासवर्ड हैकर्स के पास पहुंच जाता है। 
आप यह ग़लती कभी न करें।
आप यह ग़लती कभी न करें।
- जब भी आप किसी नई साइट के सदस्य बनें तो आप उसकी विश्वसनीयता ज़रूर जांच लें और उसके बाद भी वहां हमेशा कोई बिल्कुल ही नया पासवर्ड इस्तेमाल करें।
- हरेक साइट के लिए पासवर्ड बनाने से लोग इसलिए बचते हैं कि इतने पासवर्ड कौन याद रखेगा ?
- पासवर्ड याद रखना बहुत आसान है। इसके लिए आपको मात्र फ़ॉर्मूला याद रखना होगा।
- आप एक नियम बना लीजिए कि हम जिस भी वेबसाइट पर पासवर्ड बनाएंगे तो हम उसी वेबसाइट के नाम के शुरू या अंत के पांच अक्षर के साथ उसके शुरू या अंत में अपनी तरफ़ से 3 अंक मिला देंगे। यह 3 अंक आप निश्चित कर लीजिए। इनमें भी एक दो अक्षर कैपिटल में लिख दीजिये ।
- एक उदाहरण देखिये : वेबसाइटका नाम है www.cpsglobal.org अब आपको अपना पासवर्ड बनाना है तो आप बना सकती हैं 518cpsGL
इस तरह आप हरेक वेबसाइट के लिए एक नया पासवर्ड बना सकेंगे और वेबसाइट पर कोई हैकर भी बैठा होगा तो भी आपका अकाउंट उसकी पहुंच से बाहर ही रहेगा।    
- डा.अयाज़ अहमद
जगत-गुरु इन्डिया
 बचपन से ही सुनते पढ़ते आया हूँ कि  भारत "जगत-गुरु" है। सभ्यता, संसकृति,  ज्ञान, विज्ञान के प्रकाश वितरणके  साथ साथ गणित के शून्य से लेकर नौ तक के  अंकों का जन्मदाता भारत ही तो है।  कमोवेश यही स्थिति आजकल भी है। हमें आज  भी "जगत-गुरु" होने का गौरव है।  मेरी बातों से आप सहमत हो सकते हैं, असहमत  हो सकते हैं, आश्चर्यचकित हो  सकते हैं। आपका असहमत और आश्चर्यचकित होना  एकदम लाजिमी है, क्योंकि आप देख  रहे हैं कि विगत दशकों में पश्चिमी देशों,  खासकर अमेरिका के पीछे पीछे  लगातार चलने वाला भारत, भला जगत-गुरु कैसे हो  सकता है? जबकि हमारे  अन्दरूनी फैसले भी "व्हाइट हाऊस" के फैसले से निरन्तर  प्रभावित हो रहे  हैं। लेकिन आपके आश्चर्य करने से क्या होगा? सच्चाई तो  आखिर सच्चाई है।  सोलह आने चौबीस कैरेट सच यही है कि हम "जगत-गुरु" थे, हैं  और आगे भी  रहेंगे। यकीन नहीं आता तो इसके समर्थन में नीचे कुछ दमदार तर्क दिये जा  रहे हैं। उसे देखें और यकीन करने को विवश हो जायें।
सबसे पहले व्याकरण के उस नियम के बारे में बात करें जिसमें कहा गया है कि व्यक्तिवाचक संज्ञा का अनुवाद नहीं होता। सच भी है व्यक्ति, स्थान, देश आदि का नाम अन्य भाषाओं में भी ज्यों का त्यों लिखा जाता है। लेकिन भारत का अनुवाद "इन्डिया" किया जाता है। दुनिया के किसी भी देश को यह गौरव प्राप्त है क्या? शायद नहीं। यहाँ तक कि हमारे संविधान की शुरुआत ही "भारत दैट इज इन्डिया---------" से होती है। ऐसा लिखने के पीछे भी भारतीयों का अपना मनोविज्ञान है। अपने पूर्व के शासक के प्रति आज भी हमलोग काफी श्रद्धावान हैं और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देना चाहते हैं। प्रमाण स्वरूप देख लें आजादी हासिल करने के दशकों बाद भी हम "भारत" से अधिक "इन्डिया" को मान देते हैं। है न एक अनोखी बात? जो हमें सबसे अलग करता है?
दयालुता हमारी पूँजी है। हम दूसरे के दुख को देखकर अपना दुख भूल जाते हैं। अब देखिये न पिछले दशक में विश्व के कई भागों सहित भारत, सॅारी, इन्डिया में भी खतरनाक आतंकवादी हमले हुए। यहाँ तक कि भारतीय संसद, विधान सभाओं सहित मुम्बई का ताज होटल काण्ड भी हुआ। सारा देश दहल गया। लेकिन हमारे बुद्धजीवियों, मीडिया कर्मियों सहित देश की जनता को भी ११ सितम्बर २००१ को अमेरीकी "वर्ड ट्रेड सेंटर" पर हुए आतंकवादी हमले की तकलीफ अधिक है वनिस्पत अपने देश में हुए खतरनाक हमलों के। अपने देश पर हुए आतंकी कार्यवाही को भूलकर हमलोग "वर्ड ट्रेड सेंटर" हुए हमले की "बरसी" को हर साल श्रद्धा पूर्वक याद करते हैं। विश्व में शायद हीइस तरह का कोई दूसरा उदाहरण हो? एक बिशिष्टता और हुई हमारी "जगत-गुरु" होने की।
"अतिथि देवो भव" का सिद्धान्त हमारी संस्कृति का मूल है। विदेशों में जाने के लिए सुरक्षा जाँच के नाम पर हमारे रक्षा मंत्री तक के कपड़े क्यों न उतरवा लिए जाएँ, लेकिन अमेरिकन राष्ट्रपति बुश के आगमन के पूर्व ही उनके "कुत्ते" तक के लिए भारत में "फाइव स्टार" होटल " के कमरे आरक्षित करा दिये जाते हैं। है इस तरह की कोई मिसाल विश्व में? उसपर मान आदर इतना कि उन कुत्तों को राजघाट में राष्ट्रपिता गाँधी की समाधि तक घूमने की छूट दे दी जाती है। अभी आदरणीय "कसाब जी" की शासकीय तामीरदारी के बारे में तो हम सभी जान ही रहे हैं। हमारा यही "आतिथ्य भाव" विश्व में हमें सर्वश्रेष्ठ बनाता है।
हमारी सहनशीलता के क्या कहने? हमारा पड़ोसी मुल्क, जिसे अगर भारत ठीक से देख भी दे तो मुश्किल में पड़ जाता है, हमें कई तरह से परेशान किये हुए है। हम कई बार "आर-पार की लड़ाई" की की बात भी कर चुके हैं, सीमा पर सेना भेजकर भी लड़ाई नहीं किए और तबतक नहीं करेंगे जबतक "व्हाइट हाऊस" से ग्रीन सिग्नल नहीं मिलेगा।सहनशीलता की यह पराकाष्ठा है जो अन्यत्र शायद ही देखने को मिले। अतः इस "इन्डिया" की एक और बिशेषता मानी जानी चाहिए।
संसद, शासन का बड़ा और विधान सभा छोटा मंदिर माना जाता है। इन मंदिरों के संचालन के लिए हमलोगों ने "वोट" देकर कुछ ऐसी बिशिष्ट आत्माओं को भेज दिया है जिनका हाल ही में "अपराधी" से "नेता" के रूप में "रासायनिक परिवर्तन" हुआ है। मजे की बात है कि कल तक देश की पुलिस जिन्हें गिरफ्तार करने के लिए भटक रही थी, आज वही पुलिस उन्हें "सुरक्षा" प्रदान करने को भटक रही है। इन्डिया की इस बिशेषता पर कौन न मर जाय?
इसके अतिरिक्त और भी कई ऐसी बिशिष्टताओं से भरपूर इस इन्डिया के शान में और बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है, लेकिन कथ्य के लम्बा होने के डर से विराम दे रहा हूँ। कोई शंका होने पर उसकी भी चर्चा भबिष्य में करूँगा।लेकिन आप मान लें कि आज भी इन्डिया "जगत-गुरु" है, पहले भी था और निरन्तर उन्नति को देखते हुए आगे की संभावना बरकरार है क्योंकि कल की ही तो बात है जब हमारे शासकों ने एक संत को सबक सिखाया और हजारों सोये निहत्थे अनशनकारियों के प्रति रामलीला मैदान में पुलिसिया "दयालुता" दिखाने में जो भूमिका निभायी है वह विश्व में सबके लिए अनुकरणीय है। और अन्त में-
सबसे पहले व्याकरण के उस नियम के बारे में बात करें जिसमें कहा गया है कि व्यक्तिवाचक संज्ञा का अनुवाद नहीं होता। सच भी है व्यक्ति, स्थान, देश आदि का नाम अन्य भाषाओं में भी ज्यों का त्यों लिखा जाता है। लेकिन भारत का अनुवाद "इन्डिया" किया जाता है। दुनिया के किसी भी देश को यह गौरव प्राप्त है क्या? शायद नहीं। यहाँ तक कि हमारे संविधान की शुरुआत ही "भारत दैट इज इन्डिया---------" से होती है। ऐसा लिखने के पीछे भी भारतीयों का अपना मनोविज्ञान है। अपने पूर्व के शासक के प्रति आज भी हमलोग काफी श्रद्धावान हैं और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देना चाहते हैं। प्रमाण स्वरूप देख लें आजादी हासिल करने के दशकों बाद भी हम "भारत" से अधिक "इन्डिया" को मान देते हैं। है न एक अनोखी बात? जो हमें सबसे अलग करता है?
दयालुता हमारी पूँजी है। हम दूसरे के दुख को देखकर अपना दुख भूल जाते हैं। अब देखिये न पिछले दशक में विश्व के कई भागों सहित भारत, सॅारी, इन्डिया में भी खतरनाक आतंकवादी हमले हुए। यहाँ तक कि भारतीय संसद, विधान सभाओं सहित मुम्बई का ताज होटल काण्ड भी हुआ। सारा देश दहल गया। लेकिन हमारे बुद्धजीवियों, मीडिया कर्मियों सहित देश की जनता को भी ११ सितम्बर २००१ को अमेरीकी "वर्ड ट्रेड सेंटर" पर हुए आतंकवादी हमले की तकलीफ अधिक है वनिस्पत अपने देश में हुए खतरनाक हमलों के। अपने देश पर हुए आतंकी कार्यवाही को भूलकर हमलोग "वर्ड ट्रेड सेंटर" हुए हमले की "बरसी" को हर साल श्रद्धा पूर्वक याद करते हैं। विश्व में शायद हीइस तरह का कोई दूसरा उदाहरण हो? एक बिशिष्टता और हुई हमारी "जगत-गुरु" होने की।
"अतिथि देवो भव" का सिद्धान्त हमारी संस्कृति का मूल है। विदेशों में जाने के लिए सुरक्षा जाँच के नाम पर हमारे रक्षा मंत्री तक के कपड़े क्यों न उतरवा लिए जाएँ, लेकिन अमेरिकन राष्ट्रपति बुश के आगमन के पूर्व ही उनके "कुत्ते" तक के लिए भारत में "फाइव स्टार" होटल " के कमरे आरक्षित करा दिये जाते हैं। है इस तरह की कोई मिसाल विश्व में? उसपर मान आदर इतना कि उन कुत्तों को राजघाट में राष्ट्रपिता गाँधी की समाधि तक घूमने की छूट दे दी जाती है। अभी आदरणीय "कसाब जी" की शासकीय तामीरदारी के बारे में तो हम सभी जान ही रहे हैं। हमारा यही "आतिथ्य भाव" विश्व में हमें सर्वश्रेष्ठ बनाता है।
हमारी सहनशीलता के क्या कहने? हमारा पड़ोसी मुल्क, जिसे अगर भारत ठीक से देख भी दे तो मुश्किल में पड़ जाता है, हमें कई तरह से परेशान किये हुए है। हम कई बार "आर-पार की लड़ाई" की की बात भी कर चुके हैं, सीमा पर सेना भेजकर भी लड़ाई नहीं किए और तबतक नहीं करेंगे जबतक "व्हाइट हाऊस" से ग्रीन सिग्नल नहीं मिलेगा।सहनशीलता की यह पराकाष्ठा है जो अन्यत्र शायद ही देखने को मिले। अतः इस "इन्डिया" की एक और बिशेषता मानी जानी चाहिए।
संसद, शासन का बड़ा और विधान सभा छोटा मंदिर माना जाता है। इन मंदिरों के संचालन के लिए हमलोगों ने "वोट" देकर कुछ ऐसी बिशिष्ट आत्माओं को भेज दिया है जिनका हाल ही में "अपराधी" से "नेता" के रूप में "रासायनिक परिवर्तन" हुआ है। मजे की बात है कि कल तक देश की पुलिस जिन्हें गिरफ्तार करने के लिए भटक रही थी, आज वही पुलिस उन्हें "सुरक्षा" प्रदान करने को भटक रही है। इन्डिया की इस बिशेषता पर कौन न मर जाय?
इसके अतिरिक्त और भी कई ऐसी बिशिष्टताओं से भरपूर इस इन्डिया के शान में और बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है, लेकिन कथ्य के लम्बा होने के डर से विराम दे रहा हूँ। कोई शंका होने पर उसकी भी चर्चा भबिष्य में करूँगा।लेकिन आप मान लें कि आज भी इन्डिया "जगत-गुरु" है, पहले भी था और निरन्तर उन्नति को देखते हुए आगे की संभावना बरकरार है क्योंकि कल की ही तो बात है जब हमारे शासकों ने एक संत को सबक सिखाया और हजारों सोये निहत्थे अनशनकारियों के प्रति रामलीला मैदान में पुलिसिया "दयालुता" दिखाने में जो भूमिका निभायी है वह विश्व में सबके लिए अनुकरणीय है। और अन्त में-
जगत-गुरु इन्डिया है अबतक बदले चाहे रूप हजार।
ज्ञान योग सिखलाया पहले आज मंत्र है भ्रष्टाचार।।
जीमेल अकाउंट बनाने का तरीक़ा Gmail account -देवेंद्र गौतम Hindi Blogging Guide (5)
किसी भी किताब का या ब्लॉग का हैडर डिज़ायन करना हो तो हमें याद आती है जनाब एजाज़ उल हक़ साहब की। पहले तो वह हमारे साथ ब्लॉगिंग में बहुत सक्रिय थे, इतना ज़्यादा कि हमने उन्हें अपने ब्लॉग ‘वेद क़ुरआन‘ जैसे बिल्कुल निजी ब्लॉग का भी सदस्य बना लिया। इसी बीच उनके एक्सपोर्ट के बिज़नेस को भारी धक्का लगा, फिर उनके एक भाई इस दुनिया से चल बसे और वह दिन भी बस अभी अभी गुज़रा है जबकि वे अपने वालिद साहब के प्रोस्टैट ग्रंथि का आप्रेशन करा रहे थे और आप्रेशन कामयाब भी हो चुका था लेकिन फिर भी वह आप्रेशन टेबल पर ही चल बसे। 
इसी उतार चढ़ाव में वह ब्लॉगिंग से कट से गए लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग गाइड के टाइटिल के डिज़ायन की ज़िम्मेदारी एक ब्लॉगिंग के एक धुरंधर ने लेकर भी जब हमें टाइटिल तो क्या उसकी ख़बर तक भी न दी तो हमने फिर एजाज़ भाई को याद किया और यह प्यारा सा टाइटिल आ भी गया, महज़ एक-दो दिन में ही।
जनाब देवेन्द्र गौतम साहब (09430574498) से मेरा परिचय बिल्कुल नया है। जनाब के लेख पढ़े और अच्छे लगे तो संपर्क बना। हिंदी ब्लॉगिंग गाइड के लिए हम हरेक नए पुराने ब्लॉगर को आवाज़ लगा ही रहे थे, इसी क्रम में भाई साहब से भी अनुरोध किया और उन्होंने हमारा अनुरोध मान भी लिया और दिए गए विषय पर एक ही दिन बाद हमें लेख भेज दिया।
भाई गौतम साहब का प्रोफ़ाइल देखा तो पाया कि उनके प्रोफ़ाइल को अभी तक 492 लोगों ने ही देखा है लेकिन वह पिछले 30 साल से साहित्य की अनेक विधाओं में लिख रहे हैं।
आज पेश है टाइटिल एजाज़ भाई का और लेख देवेन्द्र भाई का
इसी के साथ एक बार फिर सहयोग चाहते हैं हम हर बहन भाई का
भाई अनवर जमाल साहब !
इसी उतार चढ़ाव में वह ब्लॉगिंग से कट से गए लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग गाइड के टाइटिल के डिज़ायन की ज़िम्मेदारी एक ब्लॉगिंग के एक धुरंधर ने लेकर भी जब हमें टाइटिल तो क्या उसकी ख़बर तक भी न दी तो हमने फिर एजाज़ भाई को याद किया और यह प्यारा सा टाइटिल आ भी गया, महज़ एक-दो दिन में ही।
जनाब देवेन्द्र गौतम साहब (09430574498) से मेरा परिचय बिल्कुल नया है। जनाब के लेख पढ़े और अच्छे लगे तो संपर्क बना। हिंदी ब्लॉगिंग गाइड के लिए हम हरेक नए पुराने ब्लॉगर को आवाज़ लगा ही रहे थे, इसी क्रम में भाई साहब से भी अनुरोध किया और उन्होंने हमारा अनुरोध मान भी लिया और दिए गए विषय पर एक ही दिन बाद हमें लेख भेज दिया।
भाई गौतम साहब का प्रोफ़ाइल देखा तो पाया कि उनके प्रोफ़ाइल को अभी तक 492 लोगों ने ही देखा है लेकिन वह पिछले 30 साल से साहित्य की अनेक विधाओं में लिख रहे हैं।
आज पेश है टाइटिल एजाज़ भाई का और लेख देवेन्द्र भाई का
इसी के साथ एक बार फिर सहयोग चाहते हैं हम हर बहन भाई का
भाई अनवर जमाल साहब !
आपके निर्देश के मुताबिक जीमेल अकाउंट बनाने  संबंधी लेख भेज रहा हूं. सरल और सरस भाषा में बात रखने की कोशिश की है.  इसमें कुछ फेर बदल की ज़रुरत हो तो बताएँगे या फिर अपने स्तर से कर लेंगे.  ब्लॉगिंग गाईड उपयोगी बने यह हमारा लक्ष्य है. 
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अपना जीमेल अकाउंट बनायें, ब्लॉगिंग की दुनिया की नागरिकता लें
ब्लॉगिंग  एक ऐसा मंच है जहां आप बिना किसी खर्च के अपनी बात खुलकर रख सकते हैं और  कुछ ही क्षणों में उसे दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा सकते हैं. खर्च सिर्फ  इन्टरनेट के कनेक्शन पर होता है. ब्लॉग  बनाने और उसे संचालित करने में कोई  खर्च नहीं होता. सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपने ब्लॉग के मालिक यानि  प्रबंधक, लेखक, संपादक, मुद्रक और प्रकाशक स्वयं होते हैं. आप किस विषय पर  क्या लिखेंगे, कैसे अपने ब्लॉग को लोकप्रिय बनायेंगे यह आपका अपना निर्णय  होता है. ब्लॉगिंग  की दुनिया की बारीकियों के संबंध में  इस मीडिया की बुनियाद रखने वाले अनुभवी लोग विस्तार से चर्चा आगे करेंगे. मैं  तो सिर्फ आपको इस दुनिया के प्रवेश द्वार तक ले चलूंगा.  
              ब्लॉगिंग  की दुनिया में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले अपना ई  मेल आईडी बनाना होता है. इसके बाद ही आगे का रास्ता खुलता है. यह बहुत ही  सरल प्रक्रिया होती है.आप कुछ ही मिनटों में जीमेल पर अपना अकाउंट खोलकर अपना सफ़र शुरू कर सकते हैं. अकाउंट बनाने के लिए गूगल या जिस भी सर्च  इंजन का आप इस्तेमाल करते हों उसपर www.gmail.com सर्च  करें. उसमें दाहिनी तरफ आपको दो बॉक्स दिखाई देंगे. नीचे वाले बॉक्स में  लिखा होगा Create a account , आप उसे क्लिक कर दें. तुरंत एक फॉर्म नज़र आएगा  जिसपर लिखा होगा Create a account , फॉर्म के अंदर लिखा होगा Get started with Gmail. इसके अक्षर भिन्न रंग के होंगे. अब आप फॉर्म को भरना शुरू  करें. 
- सबसे पहले फर्स्ट नेम और सेकेंड नेम में अपने नाम का पहला और दूसरा हिस्सा भरें. मसलन आपका नाम रमेश कुमार है तो पहले कॉलम में रमेश और दूसरे कॉलम में कुमार भरें.
- इसके बाद डिजायर्ड लॉगिंग नेम में अपना पूरा नाम भरें. आमतौर पर एक नाम के कई व्यक्ति होने के कारण आपके नाम का मेल आईडी मिल पाना कठिन होता है. यदि मिल गया तो आप सौभाग्यशाली हैं.
- इसके ठीक नीचे एक बॉक्स में Check availibility लिखा मिलेगा. आप उसे क्लिक करें. यदि आपके नाम का आईडी ख़ाली होगा तो आपको available लिखा हुआ नज़र आएगा.. बस आप आगे बढ़ जायें. उपलब्ध नहीं होने पर आपके नाम से मिलते जुलते कई विकल्प आपके सामने रख देगा. आप उनमें से जिसे क्लिक कर देंगे वह आपके मेल आईडी के लिए स्वीकृत हो जायेगा. आईडी चुनने में यह सावधानी बरतनी चाहिए कि वह आसानी से याद रह जाने वाला और कम अक्षरों वाला होना चाहिए.
- अब आपको अपना पासवर्ड चुनने को कहा जायेगा. आप ऐसा पासवर्ड चुनें जो आपको आसानी से याद रह सके. लेकिन दूसरे उसका अनुमान नहीं लगा सकें. यह गोपनीय रखा जाता है. यह पासवर्ड ही आपके ब्लॉग के ख़ज़ाने की गुप्त चाभी का काम करेगा. खुल जा सिमसिम की तरह. अगले कॉलम में पासवर्ड को दुबारा डालने को कहा गया है. आप अपना पासवर्ड दोबारा लिख दें.
- इसके बाद Security question का कॉलम आएगा. आप अपनी पसंद का सवाल चुनकर उसका जवाब दर्ज कर दें. लेकिन ध्यान रहे वह सवाल और अपना जवाब आपको याद रहना चाहिए क्योंकि इत्तेफाक से यदि कभी आप अलीबाबा के भाई क़ासिम की तरह गुफा के द्वार का कोडवर्ड भूल गए तो यही आपके लिए नई चाबी उपलब्ध कराएगा.इसके बाद Recovery email पूछा गया है. आप अपना पहला अकाउंट बना रहे हैं तो जाहिर है कि यह आपके पास नहीं होगा. बाद में आप एक और मेल आईडी बनाकर एक दूसरे का रिकवरी इमेल बना सकते हैं. फिलहाल इसे रिक्त छोड़ दें.
- इसके बाद Location पूछा गया है. आप उसके तीर के निशान को क्लिक कर वहां इंडिया भर दें.
- इसके ठीक नीचे वर्ड वेरिफिकेशन का कॉलम है. आप ऊपर दिए टेढ़े-मेढ़े अक्षरों को ध्यान से देखें और बॉक्स के अन्दर भर दें.
- उसके नीचे Terms of service लिखा है. स्क्रोल कर उसे पढ़ लें. सबसे नीचे बॉक्स में I accept, Create my account लिखा है. उसे क्लिक कर दें. आपका मेल आईडी फ़ाइनल करने के पहले हो सकता है आपका कॉन्टेक्ट नम्बर मांगा जाये. इसके बाद एसएमएस के ज़रिये आपको गूगल वेरिफ़िकेशन नम्बर आएगा. उसे भर दें..बस आपका जीमेल अकाउंट खुल गया अब आप ई-मेल भेज और प्राप्त कर सकते हैं.
                               आपका जीमेल अकाउंट इन्टरनेट की दुनिया के  प्लेटफार्म की तरह है. अब आप अपना ब्लॉग बना सकते हैं. वेबसाइट, वेब मैगज़ीन, वेब पोर्टल कुछ भी शुरू कर सकते हैं. समझ लीजिये कि आपको वर्चुअल  दुनिया की नागरिकता प्राप्त हो गयी. 
                                       -देवेंद्र गौतम 
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