बारात लेकर गया और अपने ही दस बच्चों की मां को दुल्हन बनाकर लाया रामौतार Dulha Dulhan



married father of a daughters marriage
हरदोई/एजेंसी ! बेटी के हाथ पीले करने की खातिर किसी बाप को अगर पहले अपने हाथ पीले करने पडे़ तो यह सुनने में ही अजीब लगेगा लेकिन उत्तरप्रदेश के एक जिले में बेटी की शादी के लिए पहले पिता के विवाह करने का मामला प्रकाश में आया है।
मामला उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक गांव का है। शादी करने वाले बुजुर्ग पिता की दस संतानों में सात जीवित हैं। हरदोई के बेनीगंज थाने के बक्सापुर गांव की दो बहुए उषा वर्मा समाजवादी पार्टी की सांसद और राजेश्वरी देवी विधायक हैं। इस गांव के रहने वाले दलित बिरादरी के रामौतार ने करीब बीस साल पूर्व अपने बडे़ भाई की साली को गरीबी के कारण विवाह नहीं कर पाने के कारण अपने साथ रख लिया था तब से दोनों एक साथ पति-पत्नी के रूप में रहते थे और दोनों के दस बच्चे भी हुए जिनमें से सात जीवित हैं। एक पुत्र सबसे बड़ा और बाकी छह बेटियां हैं।
दोनों इतने साल एक साथ पति-पत्नी के रूप में रहते रहे लेकिन शादी करने की जो वजह बनी वह इनकी बेटी थी। दर असल रामौतार जब अपनी बेटी का विवाह करने के लिए रिश्ता देखने गया तो लोगों ने उससे उसके विवाह को लेकर सवाल किया । चूंकि विवाह नहीं किया है। इसलिए वह अपनी बेटी का कन्यादान नहीं कर सकेगा। इस समस्या को जब उसने अपने परिवार में बताया तो उसके सगे संबंधियों ने मिलकर उसे विवाह करने की सलाह दे डाली ।
शुभ मुहूर्त में विवाह का आयोजन किया जिसमें रामौतार दूल्हा बना और जिसे उसने बीस साल पत्नी के रूप में रखा था वह दुल्हन बनी। उसके बाद गांव के लोग रामौतार को दूल्हा बनाकर उसी के घर बारात लेकर पहुंचे जहां लंबे समय से साथ रह रही राजरानी दुल्हन के रूप में सजी उसका इंतजार कर रही थी । बारात में रामौतार का लड़का बाहर होने के कारण नहीं शामिल हुआ जबकि उसकी बेटियां बाप की बारात में शामिल हुई उसके बाद सगे संबंधियों की मौजूदगी में शादी की सारी रस्में अदा की गई और लोगों को दावत दी गई। 
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जानिये दिमाग क्या याद रखता है और क्या भूल जाता है ?


भागदोड़ और बेहद व्यस्तताओं से भरी हुई आधुनिक जीवनशैली ने इंसान को शारीरिक रूप से ही नहीं, मन-मस्तिष्क के स्तर पर भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। वैसे भी मशीनी युग में इंसान के अधिकांश शारीरिक और मानसिक कामों को आधुनिक मशीनों द्वारा किया जाने लगा है। इस अति मशीनीकरण ने जिंदगी को ज्यादा सुविधाजनक तो बना दिया है, पर साथ ही इसका सबसे बुरा असर यह हुआ है कि इससे मनुष्य की शारीरिक और मानसिक क्षमता में काफी गिरावट भी आ गई है।
कमजोर स्मरण शक्ति यानी यादाश्त की कमी की समस्या आज लगभग आम हो चुकी है। कमजोर स्मरण शक्ति के कारण व्यक्ति भूलने की आदत का शिकार हो जाता है। इस समस्या का प्रमुख कारण काम का तनाव, अधिक व्यस्तता और अनियमित दिनचर्या का होना है।
सभी चिकित्सा पद्धतियों में स्मरण शक्ति बढ़ाने के कई उपाय और औषधियां बताई गईं हैं, लेकिन ये दवाइयां कुछ समय के लिये असर दिखाकर फिर से निष्क्रीय हो जाती हैं। इसलिये यदि कोई भूलने की इस जटिल समस्या का स्थाई समाधान चाहता हो तो उसे योग में बताए गए इस उपाय को अवश्य आजमाना चाहिये..
100 फीसदी कारगर प्रयोग:
- उगते हुए सूरज की ओर मुखातिब होकर आंखें बंद करके ध्यान मुद्रा में बैठें। अब मन में लगातार उठते हुए विचारों को
आते हुए देखें। योग में इसे ही साक्षी साधना भी कहा जाता है। इस अभ्यास को लगातार 15 दिनों तक करने से आपका
मन एकाग्र होने लगेगा।
- यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि इंसान को वही बात या घटना लंबे समय तक याद रहती है जिसमें उसका मन अधिक से अधिक एकाग्र होता है। अत: जो भी करें उस समय दूसरा कुछ भी नहीं सोचें हर समय पूरी तरह से वर्तमान में जीना सीखें। – काम करते समय पिछली घटनाओं और भविष्य की चिंता से बिल्कुल दूर रहें। जो करें बस पूरी तरह से मन-मस्तिष्क से वहीं उपस्थित रहें। आप देखेंगे कि कुछ ही समय में आपकी भूलने की आदत बगैर किस दवाई के ही हमेशा के लिये मिट चुकी है।
योगिक उपचार:
- योग और आसन-प्राणायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
- सुबह की ताजी हवा में घूमें या धीमी गति से दोड़ लगाएं।
- हमेशा लंबी और गहरी सांस लें ताकि आपके शरीर और दिमाग को अधिक से अधिक आक्सीजन मिल सके.
Source : http://eeshay.com/yoga-find-out-what-the-brain-remembers-and-forgets-what/7210/
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ग़ज़लगंगा.dg: खता क्या है मेरी इतना बता दे

खता क्या है मेरी इतना बता दे.
फिर इसके बाद जो चाहे सजा दे.

अगर जिन्दा हूं तो जीने दे मुझको
अगर मुर्दा हूं तो कांधा लगा दे.

हरेक जानिब है चट्टानों का घेरा
निकलने का कोई तो रास्ता दे.

न शोहरत चाहिए मुझको न दौलत
तू मेरा नाम मिट्टी में मिला दे.

अब अपने दिल के दरवाज़े लगाकर
हमारे नाम की तख्ती हटा दे.

जरा आगे निकल आने दे मुझको 
मेरी रफ़्तार थोड़ी सी बढ़ा दे.

ठिकाना चाहिए हमको भी गौतम
ज़मीं गर वो नहीं देता, खला दे. 

---देवेंद्र गौतम 

ग़ज़लगंगा.dg: खता क्या है मेरी इतना बता दे:

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बढ़ चलो ए जिंदगी



बढ़ चलो ए जिंदगी

                            
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हर अँधेरे को मिटाकर बढ़ चलो ए जिंदगी
आगे बढ़कर ही तुम्हारा पूर्ण स्वप्न हो पायेगा.




गर उलझकर ही रहोगी उलझनों में इस कदर,
डूब जाओगी भंवर में कुछ न फिर हो पायेगा.




आगे बढ़ने से तुम्हारे चल पड़ेंगे काफिले,
कोई अवरोध तुमको रोक नहीं पायेगा.


तुमसे मिलकर बढ़ चलेंगे संग सबके होसले,
जीना तुमको इस तरह से सहज कुछ हो पायेगा.


संग लेकर जब चलोगी सबको अपने साथ तुम,
चाह कर भी कोई तुमसे दूर ना हो पायेगा.


जुड़ सकेंगे पंख उसमे आशा और विश्वास के ,
''शालिनी'' का नाम भी पहचान नयी पायेगा.


      भारतीय हॉकी टीम के हौसले बुलंद करने में लगी शिखा कौशिक जी की एक शानदार प्रस्तुति को यहाँ आप सभी के सहयोग हेतु प्रस्तुत कर रही हूँ आशा है आप सभी का इस पुनीत कार्य में शिखा जी को अभूतपूर्व सहयोग अवश्य प्राप्त होगा.उनकी प्रस्तुति के लिए इस लिंक पर जाएँ-


हॉकी  हमारा राष्ट्रीय खेल 
        
            शालिनी कौशिक 




  

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ब्लॉगर्स मीट वीकली (35) , पुरुष नारी सम्बन्ध तन मन और आत्मा तीनों स्तर पर

ब्लॉगर्स  मीट वीकली (35)

का ख़ास मौज़ू है प्रेम .
क्या प्रेम आदमी की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ा देता है ?
साइको -सेक्स्युअलिति और ओब्सेसिव कम्पल्सिव दिस -ऑर्डर की संक्षिप्त और सुन्दर व्याख्या भी यहाँ पर है .
और साथ में एक चर्चित पोस्ट :

दोगुना जीना चाहते हैं तो जीवन साथी पर आनंद रस बरसाइये Better Sex Better Life





अगर आपने अपने जीवन साथी को तन मन और आत्मा तीनों स्तर पर संतुष्ट कर दिया तो उसके रोम रोम से, उसके दिल से आपके लिए दुआएं निकलेंगी और तब बीमारियां आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं। तन के स्वस्थ रहने में मन का रोल बहुत अहम है। हमारे भारतीय बुज़ुर्ग ऐसा कहते हैं और हम यही मानते हैं और आधुनिक परीक्षणों से भी इसकी सत्यता प्रमाणित हो चुकी है।
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चाहत

लगे चुराने सपन हमारे, सुनहरे सपने सजाये रखना
ख़तम तीरगी कभी तो होगी, चिराग दिल में जलाये रखना

खोज रहा हूँ बाजारों में, वो आशियाँ जो कभी था मेरा
अपना घर फिर से एक होगा, इसी आस को बचाये रखना

मजहब के रखवालों ने मिल, लूट लिया है इंसानों को
बर्षों हमने झुकाया सर को, आज जरूरी उठाये रखना

नहीं शेष अब सहनशीलता, ह्रदय में शोले सुलग रहे हैं
हाथ मिले आपस में तबतक, उन शोलों को दबाये रखना

आग लगी है कई तरह की, हमें बचाना है उपवन को
सभी सुमन के मान बराबर, चाहत ऐसी बचाये रखना
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अश्क बनकर बह गए

भाव प्रायः जिन्दगी के, गीत मेरे कह गए
अनकहे जो रह गए, वो अश्क बनकर बह गए

ख्वाब का सुन्दर महल हर आदमी का शौक है
वैसे महलों की हकीकत, वक्त के संग ढह गए

लोग खुश होते हैं अक्सर, दिन बुलंदी के तभी
आदमी वो कीमती जो हँस के गम को सह गए

वक्त के संग हर कदम को जो बढ़ाते वक्त पर
लोग अक्सर वे बढ़े और शेष पीछे रह गए

छूट जाते प्राण जब महबूब जाते दूर को
है गलतफहमी सुमन को, यह गए कि वह गए
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चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (१६), यह एक दमदार पोस्ट है.

हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल

ब्लॉगर्स मीट वीकली (36) Vajr aasan

http://hbfint.blogspot.com/2012/03/36-vajr-aasan.html

 पेशे खि़दमत है-

प्रस्तुतकर्ता
जीवन के अलग अलग रंग होते हें और सबके संघर्ष का रंग भी अलग अलग होता है किसी के लिए vah किस रूप में सामने आता है और उसको कौन कैसे अपने ढंग से अपने अनुकूल बना कर आगे चलता है कि वह सारी चुनौती अपने पैर समेट कर पीछे हो जाती हैआज अपनी कहानी सुना रहे हें डॉ अनवर जमाल खान --

चुनौती जिन्दगी की: संघर्ष भरे वे दिन (१६)

सन 2020 तक भारत में काम करने लायक़ लोगों का प्रतिशत कुल आबादी का 64 प्रतिशत हो जाएगा। इनकी आयु 15-59 होगी । समाजशास्त्रियों को डर है कि रोज़गार के अवसर देकर इस ऊर्जा का रचनात्मक उपयोग न किया गया तो भारत एक भयंकर गृहयुद्ध में फंस जाएगा। भारत को विनाश से बचाना है तो हरेक हाथ को काम देना होगा.

यह  एक दमदार पोस्ट है.

आपका क्या ख़याल है ?

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बात वो लिखना ज़रा

भावना का जोश दिल में सीख लो रूकना ज़रा
हो नजाकत वक्त की तो वक्त पे झुकना ज़रा

जो उठाते जिन्दगी में हर कदम को सोच कर
जिन्दगी आसान बनकर तब लगे अपना ज़रा

लोग तो मजबूर होकर मुस्कुराते आज कल
है सहज मुस्कान पाना क्यों कठिन कहना ज़रा

टूटते तो टूट जाएँ पर सपन जिन्दा रहे
जिन्दगी है तबतलक ही देख फिर सपना ज़रा

दूरियाँ अपनों से प्रायः गैर से नजदीकियाँ
स्वार्थ अपनापन में हो तो दूर ही रहना ज़रा

खेल शब्दों का नहीं अनुभूतियों के संग में
बात लोगों तक जो पहुंचे बात वो लिखना ज़रा

जिन्दगी से रूठ कर के क्या करे हासिल सुमन
अबतलक खुशियाँ मिली
वो याद कर चलना ज़रा
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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    12 years ago

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