माफियाओं के चंगुल में ब्लागिंग

क्या इसी सभ्यता पर करेंगे हिंदी का सम्मान


रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय ,
टूटे  से फिर ना जुटे, जुटे गांठ पड़  जाय.
मनुष्य जीवन इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना है. भगवन ने अपनी सारी कारीगरी समेट कर इसे बनाया है. जिन  गुणों और विशेषताओं के साथ इसे भेजा गया है, वे किसी अन्य  प्राणी को प्राप्त नहीं हैं. भगवान तो सबका पालनहार पिता है. उसे अपनी संताने एक सामान प्रिय हैं. और वह न्यायप्रिय है. स्वयं निराकार होने के कारण उसने मनुष्य को अपना मुख्य प्रतिनिधि बनाकर भेजा है. ताकि वह सृष्टि {विश्व व्यवस्था} की देखरेख कर सके. उसे उसकी आवश्यकता से अधिक सुख सुविधाएँ और शक्तियां इसलिए दी हैं की वह उसके विश्व उद्यान को सुन्दर,सभ्य  और खुशहाल बनाने में अपनी जिम्मेदारियों को ठीक ढंग से निभा सके. 
पर मनुष्य की पिपाशा, लोभ और स्वार्थ इतना बढ़ गया है की वह विश्व उद्यान को सजाने सवारने  के बजाय उसे नष्ट करने में जुट गया है. हम सभी मानते हैं की ईश्वर एक है,  मात्र वही एक पालनहार पूरी सृष्टि का सञ्चालन कर रहा है. धर्म या जाति का बंटवारा ईश्वर ने नहीं बल्कि मनुष्य ने किया है. हिन्दू मानता है की मनु और सतरूपा से मनुष्य जाति का प्रादुर्भाव हुवा और मुसलमान आदम और हव्वा को बताता है.  मेरी खुद की सोच है की दोनों एक को ही अलग अलग भाषाओ में परिभाषित करते हैं. हो सकता है की यही सोच आप लोंगो की भी हो. जब सभी मनुष्य जाति एक ही पूर्वज की संतान हैं तो झगडे किस बात के हो रहे हैं. सभी आपस  में भाई-भाई होने के बावजूद क्यों लड़ते हैं. यह श्रृंखला जब मैंने शुरू की तो कुछ लोंगो ने मुझपर आरोप लगाये की मैं सलीम खान और अनवर जमाल का समर्थन करता हू, जी नहीं यह बात सर्वथा अनुचित है. दोनों ब्लोगर हैं मैं दोनों का सम्मान करता हूँ. पर आपत्तिजनक विचार किसी के हो उसका मैं समर्थन नहीं करता. और न ही "बी एन  शर्मा जी ,सुरेश चिपलूनकर जी हमारे लिए दुश्मन है. जिस तरह मुसलमान सलीम खान और अनवर जमाल को अपना प्रतिनिधि नहीं मानता उसी तरह हिन्दू भी बी एन शर्मा और सुरेश चिपलूनकर को अपना प्रतिनिधि नहीं  मानता है. मेरा विरोध किसी से भी व्यक्तिगत नहीं बल्कि विचारों का है.  फिर भी इनके लेखो पर समस्त मुसलमानों और समस्त हिन्दुओ पर अंगुलिया उठाई जाने लगती हैं. जब सलीम खान ने लिखा की "

जापान दुनियाँ का पहला देश जिसने इस्लाम को प्रतिबंधित किया !

तब  मुझे यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा था क्योंकि एक तरफ उसी परमात्मा के बनाये हुए इन्सान भयंकर हादसे से पीड़ित थे और दूसरी तरफ सलीम खान "इस्लाम" का प्रचार करने में जुटे थे. मैं सलीम भाई से पूछना चाहूँगा की पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक सहित कई मुस्लिम देश जो इस्लाम को ही मानते हैं फिर उन पर मुसीबते क्यों आई. अब कोई यह मत कह देना की यहाँ मनुष्यों द्वारा शुरू की गयी लड़ाई है और वह खुदा के फज़ल से हुआ....... जी नहीं खुदा इतना कठोर नहीं हो सकता की अपनी संतानों को इस तरह की यातना दे. निश्चित रूप से हर मनुष्य अपने कर्मो की सजा भोगता है. प्रकृति के साथ किया गया खिलवाड़ मनुष्य को ही भोगना पड़ेगा.  सलीम खान की पोस्ट में अहंकार भी झलकता है जो उनके व्यक्तित्व को छोटा कर देता है. अपने ही ब्लॉग पर उन्होंने ने लिखा है. 

दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों का दुश्मन हूँ::: सलीम ख़ान


भई ! सीधा सा फ़ॉर्मूला है TIT FOR TAT ! अभी पिछले दिनों एक सज्जन ने मुझे फ़ोन करके पूछा कि आप ऐसे क्यूँ हैं?
मैं कहा::: क्यूँ वे ऐसे है, इसलिए. जब मैं मोहब्बत से बात करता हूँ तो लोग डरपोंक समझते हैं और जब मैं जूता उठता हूँ तो वो सलाम करते हैं.
तो भई जूता खाना कौन चाहता है और कौन मोहब्बत से रहना चाहता है वो खुद ही तय कर ले.
-सलीम ख़ान
हद तो यह है की ऐसे अहंकार भरे शब्दों का विरोध करने के बजाय कुछ लोंगो ने उनकी तारीफ भी की...

सलीम खान के कई लेख निश्चित रूप आपत्तिजनक है. पर उसी ब्लॉग पर उन्होंने कई ऐसे लेख भी लिखे है जो निश्चित रूप से प्रेरणा देते हैं. हम सलीम खान के उसी रूप को पसंद करते हैं जहा पर वे आपसी सौहार्द और भाईचारे की बात करते हैं. यही हाल अनवर जमाल खान का भी है. बन्दा  पठान है जोश में आकर कुछ भी लिख देता है. जैसे उन्होंने शिवलिंग के बारे में जो आपत्तिजनक बाते लिखी वह और लोंगो की तरह मुझे भी पसंद नहीं आई. पर वही अनवर भाई ने भगवन शिव के बारे में बेहतरीन पोस्ट भी लिखी है. यही नहीं प्रेम, हिन्दू-मुस्लिम एकता के बारे में भी उन्होंने काफी कुछ लिखा है. 

पर हिन्दुज्म की बात करने वाले  बी एन शर्मा और सुरेश चिपलूनकर ने इस्लाम और अल्लाह की बुराई के सिवा कुछ भी नहीं लिखा. इसी तरह कई ऐसे लेखक भी हैं जो चेहरा छुपाकर लोंगो को गालियाँ देने में ही अपनी शान समझते हैं.  उन नकाबपोशो से यह लोग अच्छे हैं जो कुछ कहते हैं तो खुलेआम कहते हैं. 

मैं मानता हूँ कश्मीर में जो हिन्दुओ के साथ हो रहा है वह निश्चित रूप से गलत है. जो गुजरात में हुआ वह भी गलत है. देखा जाय  तो हिन्दू-मुसलमान को लेकर देश में कितनी लड़ाईयां हो चुकी हैं, अब तो जाति के नाम पर, शिया सुन्नी के नाम पर  लोग एक दुसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं. आखिर क्यों.?  अभी तक बाबरी मस्जिद को लेकर लाखो लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. जिन लोंगो की जान दंगे में गयी क्या वही लोग दोषी थे, जिनके परिवार आज भी उस त्रासदी को झेल रहे हैं उनका कुसूर क्या है..? जिन बातों को बहुत पहले भुला देना चाहिए था उसी बातों को हम बार-बार जिन्दा करके कही न कही मानवता को नुकसान पहुंचा रहे हैं. 

मैंने ब्लोगिंग के दौरान बहुत से ब्लोगों पर गया और देखा की ९९ प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो किसी भी विवाद से दूर रहना चाहते हैं. ऐसे लोंगो के नाम गिनना शुरू करूँ तो शायद सारे  नाम लिखने के लिए मुझे कई दिनों का वक़्त चाहिए, मैं ऐसे सभी लोंगो को प्रणाम करता हूँ जो हिन्दू मुसलमान होने से पहले एक सच्चे इन्सान हैं और इन्ही लोंगो से आज इंसानियत जिन्दा हैं. आज यदि देश में अमन चैन कायम है तो ऐसे ही लोंगो की देन हैं., मैं देखता हूँ कई लोग मुझे गलियां देते हैं, अपशब्दों से नवाजते हैं पर मैं उनकी बातों का बुरा नहीं मानता. क्योंकि गालियाँ  देने वाले डरपोक लोग हैं. ना तो उनकी कोई पहचान होती है और ना ही ऐसे लोग अपने नाम उजागर करना चाहते है. निश्चित रूप से ऐसे लोग डरते हैं.... सच भी है जिनकी मानसिकता गलत है. जो समाज में  विन्द्वंश फैलाना चाहते हैं वे तो डरेंगे ही. यदि सच कहना ही है तो पहचान छुपाने की जरुरत क्या है. 

मैं एक पत्रकार हूँ पर यह अच्छी तरह जानता  हूँ जो बातें अख़बार में लिखी जाती हैं वह लोग पढ़ते हैं और भूल जाते है. पर ब्लॉग पर लिखी बाते हमारी आने वाली पीढियां भी पढ़ेंगी, वे क्या सोचेंगी हमारे बारे में. लिहाजा बाते वही होनी चाहिए जो इन्सान और इन्सान के बीच आपसी सौहार्द कायम रखे. आपसी प्रेम बनाये रखे. 

आज यदि हिन्दू मुसलमान के बीच बनी खाई गहरी होती जा रही है तो उसके गुनाहगार हम सभी हैं. प्रत्येक मानव धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर आपस में मनमुटाव बनाये हुए है. मात्र चंद लोंगो के किये की सजा सभी को भुगतनी पड़ती है. आखिर धर्म और जाति की बेड़ियों में जकड़कर हम कब तक मानवता को दागदार करते रहेंगे. 

एक अनुरोध सभी से...........

 आप सभी लोंगो से अनुरोध है की उन सभी ब्लागरों का विरोध करें जो आपसी प्रेम में खटास पैदा कर रहे हैं. जो मानवता को शर्मशार कर रहे हैं. उनका सबसे अच्छा विरोध यही है की उनकी किसी भी पोस्ट पर न तो कमेन्ट करें और न ही उन्हें तरजीह दें. आज दुनिया कहा से कहा जा रही है और लोग  फालतू बातो में वक्त जाया कर रहे हैं है. 

 यदि आपको लगता है की मेरे विचार गलत हैं, मुझे प्रेम व भाईचारा की बात नहीं करनी चाहिए तो आप सभी बताएं, मैं आज के बाद ब्लॉग लिखना छोड़ दूंगा. क्योंकि जहाँ पर गन्दी मानसिकता के लोंगो का जमावड़ा हो वहा पर रहना मुझे गंवारा नहीं.

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डा श्याम गुप्त की गज़ल....सिज़दे में..

            ग़ज़ल...

थे बहुत तनहा से जब हम भीड़ में |
सोचते अपना न कुछ तकदीर में |

आप जब से मिलगये जाने जहां ,
ख़ास था हाथों की कुछ लकीर में |

आप जो आये तो कुछ एसा हुआ ,
आ बसा हो खुद खुदा तस्वीह में |

अब खुदा में आप में अंतर नहीं ,
बस गए हो यूं दिले तस्वीर में |

अब तो हरसू आप हैं या खुद खुदा,
नीर घट में या की घट है नीर में |

श्याम 'सिज़दे में झुकें,किसके झुकें,
आपके ,या  खुदा की तासीर  में  ||
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Roshi: गरीबी है सबसे बड़ी बीमारी

Roshi: गरीबी है सबसे बड़ी बीमारी: "कल गई थीं चिकित्सक को दिखाने स्वयं का गला अचानक एक जर्जर काया वृद्ध सपत्निक आया था वहां वृद्ध ने लगभग रोते हुए डॉक्टर से फ़रमाया जरा&nb..."
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Roshi: अपनों और गैरो के समीकरण

Roshi: अपनों और गैरो के समीकरण: "हमने अपनों को चाह, उन्होंने की वेबफाई गैरो ने दिया साथ हमेशा और पीठ थपथपाई अपनों ने सदैव खोंपा खंजर और उफ़ भी न कर पाई ग..."
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अन्ना हज़ारे, जनतन्त्र की जीत व सरकार --कुछ विचारणीय बिन्दु---डा श्याम गुप्त ..

१-- " समाज और सरकार का हाथ मिलाना लोकतन्त्र के लिये शुभ ..."-- प्रधान मन्त्री ... 


                ---क्या हमारे प्रधान मन्त्री व सरकार ....समाज व सरकार को अलग अलग समझते हैं ? क्या सरकार ( या वर्तमान सरकार ) समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करती ? तो क्यों न इसे स्तीफ़ा देदेना चाहिये !  २--  "यह लोकतन्त्र की जीत है..."  ---सभी कह रहे हैं....
                  ------  तो फ़िर हार किसकी है ! क्या राजनैतिक दल, राजनेता, दलीय राजनीति, संवैधानिक तरीके से चुनी गयी सरकार, हमारी राजनैतिक व शासकीय व्यवस्था .....क्या अलोकतान्त्रिक सन्स्थायें हैं । ये दल , विधायक, सान्सद, मन्त्री , लोकसभा सभी लोकतान्त्रिक सन्स्थायें हैं, क्योंकि लोकतन्त्र में जनता ही जन प्रतिनिधियों माध्यम से कार्य करती है, जनता सीधे सीधे नहीं, यह लोकतान्त्रिक-विधि व्यवस्था है । फ़िर किसकी लडाई किस के विरुद्ध ? क्या यह लोकतन्त्र की असफ़लता है!  
३--क्या यह दलीय राजनीति के विरुद्ध सन्घर्ष है, जो वास्तव में दलदलीय राजनीति होगयी है और जनता सीधे सीधे सत्ता अपने हाथ में लेना चाहती है ? क्या सामान्य जन का सीधा सीधा दखल किसी नतीजे पर पहुंच सकता है? यदि हां, तो शुरू में ही संविधान में दलीय व्यवस्था की अपेक्षा यह व्यवस्था क्यों नहीं की गयी।
४-- यदि १५ अगस्त तक बिल पास नहीं हुआ तो फ़िर आन्दोलन होगा....अन्ना..
               ------ यदि सभी दल, न्यायालय, विधि-व्यवस्था पूर्ण सहमत नहीं हुई , बिल पास नहीं हुआ तो... क्या उसे जनता कीआवाज नहीं माना जायगा--- क्योंकि वह भी तो जन-तान्त्रिक भाग है देश की व्यवस्था का।
५--  क्या लोकपाल में समस्त शासकीय शक्तियां निहित करने का अर्थ ---लोकतन्त्र से एकतन्त्र ( डिक्टेटर शिप) की ओर पलायन नहीं होगा....
                         ------वस्तुतः यह केवल भ्रष्टाचार , भ्रष्ट आचरण के विरुदध एक जन जागरण है...न किसी की हार न जीत...
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इंसानियत का जो जज्बा जगाए ऐसी हर चीज़ का तलबगार हूँ में ......खुश दीप

ब्लोगिंग की दुनिया में ख़ुशी के दीप जला रहे हैं खुश दीप जी

दोस्तों एक शख्स जिसके सीने में इंसानियत के जज्बात से
भरा हुआ एक दिल हो और जिसकी हर धडकन में ब्लोगिंग  का संसार हो जो हरजगह हर कोने में खुशियों के दीप जला कर अंधेरों को उजालों में बदलने वाला हो, उसी का नाम खुशदीप ब्लोगर है और यह अनोखे ब्लोगर अपनी पेनी कलम से सख्त अल्फाजों से समाज को सही दिशा देने के प्रयासों में जुटे हैं . ब्लोगिग्न के अपने आदाब और अखलाक हैं और इस कसोटी पर जनाब खुशदीप जी खरे उतरे हैं .
जी हाँ दोस्तों जिस खुशदीप की लेखनी की ताकत के आगे आप और में नत मस्तक हैं जो खुशदीप कई बार अपने लेखों में कडवी बातें भी घोल देते हैं लेकिन उनकी कडवाहट यूँ ही बे वजह नहीं होती वोह समाज में फेली बिमारियों को सूधारने के लियें अपनी ब्लोगिंग को एक दवा बनाकर देना चाहते हैं ताकि समाज की बिमारी दूर हो सके और काफी हद तक वोह इसमें कामयाब भी हो रहे हैं कोई भी मुद्दा हो ,कोई भी विचार हो भाई खुशदीप उस मुद्दे पर अपने प्रभावशाली और मोलिक विचार जरुर रखते हैं और भाई खुशदीप इन विचारों से प्रसिद्धि भी प्राप्त कर रहे हैं , अभी जब सारा देश अन्ना जिंदाबाद कहते हुए अन्ना हजारे का दीवाना था तब भाई खुशदीप ने एक मोलिक सोच के तहत व्यवहारिक सवाल दस सवाल अन्ना के सामने उठाने का साहस किया और वोह सभी सवाल इस देश के हालातों के लियें अन्ना से पूंछना जरूरी भी थे .
उत्तर प्रदेश के नोयडा में रहने वाले भाई खुशदीप देश की राजधानी दिल्ली के नजदीक है यह अखबारों में भी खूब छपते है कारण साफ़ है के खुशदीप जी एक चिंतक और लेखक के रूप में समाज सुधारक विचारक के रूप में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं , करीब सोलह साल से यह लेखन कार्य से जुड़े हैं और ब्लोगिंग की दुनिया में जो प्यार जो नाम इन्होने कमाया है उसी का नतीजा है के हमारीवाणी के खुशदीप हीरो बन गये हैं इस
हमारीवाणी एग्रीगेटर में खुशदीप के बगेर ना ख़ुशी दिखती है न उजाला ही नजर आता है यह इस अग्रीगेटर के सलाहकारों में से एक हैं .
फरवरी २००९ से ब्लोगिग्न में अपनी जोर आज्माय्श कर रहे खुशदीप जी को लिखने और ब्लोगिंग की लत ऐसी लगी है के वोह इतना वक्त भी नहीं निकाल  पाते हैं के कुछ किताबे पढ़ डालें लेकिन उनके लेखन के चिन्तन,साधना से लगता हे के उन्होंने विश्व की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों को घोल कर पी डाला है अपने ब्लॉग स्लोग ओवर.......... देशनामा.......... के जलवे देखने लायक हे हर लेख ,हर रचना हजारों बार पढ़ी जाती हे सेकड़ों लोग इनके आलेखों पर अपने विचार टिप्पणियों के रूप में देते है और यही वजह है के भाई खुशदीप के अनुसरण कर्ताओं और टिप्पणीकारों की संख्या सर्वाधिक है करीब ५४०४ लोग है जो भाई खुशदीप को पसंद करने लगे है इन दिनों भाई खुशदीप अखबारों से दुखी हैं उनके आलेखों की चोरिया होने लगी हे उनकी मोलिकता को दुसरे लोग अपनी दूकान का सामन बताकर परोसने लगे हैं और इसकी शिकायत उन्होए अपने आलेखों के माध्यम से भी करना शुरू कर दी है खुशदीप का एक  ही विचार है उन्हें एक ही विचार से प्यार है वोह कहते हैं के .....इंसानियत का जो जज्बा जगाए ऐसी हर चीज़ का तलबगार हूँ में ............और इसीलियें भाई खुशदीप इंसानियत की तलाश में ,भाईचारा ,सद्भावना और प्यार की तलाश में घूम रहे हैं ....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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मेरे जनाज़े को कितना प्यार मिला है .........

जिंदगी गुज़र गयी 
लेकिन 
कोई भी 
मेरे पास 
दो मिनट रूककर ना बेठा ................
देखो 
आज सभी 
मेरे पास 
बेठे जा रहे हैं ............
जिंदगी भर 
कोई तोहफा न मिला 
मुझे जिनसे 
आज वाही लोग देखो 
मुझे फूल 
दिए जा रहे हैं ................
तरस गये थे हम 
जिनके हाथ से 
दिए एक कपड़े के 
रुमाल को 
आज देखो 
वही मुझे 
नये कपड़े उढ़ा रहे हैं ..............
कल कोई दो कदम 
साथ ना चलने को 
तय्यार नहीं था 
आज देखो 
मेरे पीछे 
वही 
काफिला बनाकर आ रहे हैं .............
आज पता चला 
के 
मोत कितनी हसीं होती है 
हम तो पागल थे 
उनके प्यार में 
बस यूँ ही 
जिए जा रहे थे ...........
मरने के बाद 
मेरे जनाज़े को 
इतना प्यार मिला है 
बस यही सोचकर 
कभी हम रोते थे 
तो कभी 
मुकुराए जा रहे थे .................. 
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 
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नेता ह्रदय शूल ''अन्ना'



नेता ह्रदय शूल ''अन्ना'
सत्ता-सुख का चूस रहे थे हम सब मिलकर गन्ना ,
भ्रष्ट आचरण से पूरी की हमने हरेक तमन्ना ,
लेकिन अब तो सारी जनता कहती हमें निकम्मा ,
हाय ह्रदय में शूल सा चुभता हमको तो ये ''अन्ना'.
                                   
                                          शिखा कौशिक
http://netajikyakahtehain.blogspot.com/
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अलबेला खत्री के अलबेला मिजाज़ ने देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गोरवान्वित किया

ब्लोगिंग की दुनिया का एक अंतर्राष्ट्रीय नाम ,एक प्यारा सा अलबेला नाम, जो साहित्य और हास्य बांटता है लोगों को हंसाता है ,लोगों को प्यार और अपनापन सिखाता है, जी हाँ आप सही समझ रहे हैं यह वही नाम है जो आपके दिलो दिमाग पर छाया हुआ और यह नाम हे अलबेला खत्री .
दोस्तों आज अलबेला खत्री के लियें मेने कुछ मामूली सा लिखने का प्रयास किया है लेकिन उनके लियें लिखा जाने वाला यह सब सूरज को रौशनी दिखाने के समान है और इसीलियें इस शक्सियत पर उंगलियाँ हिलाने के प्रयास भर में ही उंगलियाँ कांपने लगी हैं सीना गर्व से चोडा हो गया हे के मुझे इस शख्सियत के लियें कुछ लिखने का अवसर मिला है .
नरेंद्र मोदी के गुजरात के सूरत शहर के रहने वाले अलबेला खत्री जी एक अलबेला शख्सियत के मालिक हैं ,सभी को प्यार देना सभी को हंसाना इनकी फितरत है, और इसीलियें यह ब्लोगिंग,साहित्य,एक्टिंग सभी क्षेत्रों के लोगों में हर दिल अज़ीज़ बन गये हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खत्री भाई देश का नाम रोशन कर रहे हैं , निर्विवाद लेखनी , प्यार दो प्यार लो का संदेश देने की रचनाएँ लिखने के धनी जनाब अलबेला खत्री के कई दर्जन ब्लॉग हैं और फरवरी २००९ से विभिन्न शीर्षकों से ब्लॉग बना कर ब्लोगिंग की दुनिया को महका रहे हैं ब्लोगिंग की दुनिया को चहका रहे हैं , हंसा रहे  हैं .
अलबेला खत्री को अपने देश ,अपने राज्य गुजरात से प्यार है लेकिन उससे भी ज्यादा इन्हें अपने शहर सूरत से प्यार है इतना ही नहीं अलबेला जी को इन सभी चीजों से भी ज्यादा मानवता से प्यार है, और इसीलियें इनके हर अलफ़ाज़  में ,हर रचना हर आलेख में सिर्फ प्यार ही प्यार मिलता हे यह गम्भीर लेखनी के माध्यम से .हास्य लेखन के माध्यम से और कला यानी एक्टिंग के माध्यम से सभी को मानवता और साक्षरता का पाठ पढ़ाने के प्रयासों में जुटे हैं ,ब्लोगिंग ,कला.लेखन और अभिनय की अंतर्राष्ट्रीय बुलंदियों पर पहुंचने के बाद भी ब्लोगिंग की दुनिया में यह छोटे से लेकर सभी बढ़े ब्लोगर को टटोलते हैं उनकी रचनाएँ पढ़ते हैं उन्हें टिप्पणियों से नवाज़ते हैं यही इनका बढ़प्पन  है .
सूरत मेरे सपनों  का शहर इनका अंग्रेजी  ब्लॉग है, जबकि मुक्तक दोहे चोपाई ,हास्य व्यंग्य, भजन वन्दन,अर्ज़ किया है ,स्वर्णिम गुजरात , आरोग्य एवं स्वास्थ्य , आपकी महफिल में ,लाया हूँ चंद शेर , पोयम फ्रॉम हर्ट सहित  दर्जनों ब्लॉग अलबेला जी ने लिखे है और सभी ब्लॉग चाव से पढ़े जाते हैं , भाई अलबेला जी खत्री ने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं जो प्रकाशित होकर बाज़ार में पाठकों में प्रसिद्ध हैं ,इनके सोलह ऑडियो वीडियो प्रसारित हैं जिन्हें लोग अपने मनोरंजन के लियें लगातार देख रहे हैं,साहित्य और एक्टिंग के २८ वर्षों के सफर में अलबेला जी ने दर्जनों ड्रामों ,फिल्मों में गीत लिखे है ,एक्टिंग की है और पांच हजार से भी अधिक प्रतिष्ठित रचनाएँ लिखी गयी हैं अलबेला जी की कला ,लोफ्टर शो ने इन्हें विश्व के हर कोने पर मकबूल  कर दिया है अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी छोटे बढ़े देशों में इन्होने अपनी कला और अभिनय के जलवे दिखा कर लोगों को हंसा हंसा कर लोटपोट कर दिया है अलबेला जी अब तक तीस से भी अधिक सम्मान से पुरस्क्रत हो  चुके हैं अलबेला जी को वागेश्वरी सम्मान,टेप पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है . ऐसी प्रतिभा एके धनी जनाब अलबेला जी के लियें कुछ भी लिखने के पहले छोटा मुंह बढ़ी बात का विचार आते ही मेरे हाथ कांपने लगते हैं और अगर इस में गलतिया, गलतियाँ नहीं बहुत सारी गलतियाँ ,कमिया रह गयी हो तो इसके लियें में ज़िम्मेदार नहीं हूँ अलबेला जी का कद ही ब्लोगिंग की दुनिया में इतना उंचा है के इनकी उंचाई देखते देखते मेरे सर की टोपी नीचे गिर गयी है और गर्दन में झटका आ गया है . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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निराला युग से आगे : हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा है ----"अगीत..." ....श्याम गुप्त का आलेख ---




              कविता, पूर्व-वेदिकयुग, वैदिक युग, पश्च-वेदिक व पौराणिक काल में वस्तुतः मुक्त-छन्द ही थी। वह ब्रह्म की भांति स्वच्छंद व बन्धन मुक्त ही थी। आन्चलिक गीतों, रिचाओं , छन्दों, श्लोकों व विश्व भर की भाषाओं में अतुकान्त छन्द काव्य आज भी विद्यमान है। कालान्तर में मानव-सुविधा स्वभाव वश, चित्र प्रियता वश, ग्यानान्डंबर, सुखानुभूति-प्रीति हित;सन्स्थाओं, दरवारों, मन्दिरों, बन्द कमरों में काव्य-प्रयोजन हेतु, कविता छन्द-शास्त्र व अलन्करणों के बन्धन में बंधती गई तथा उसका वही रूप प्रचलित व सार्वभौम होता गया। इस प्रकार वन-उपवन में स्वच्छंद विहार करने वाली कविता-कोकिला, वाटिकाओं, गमलों, क्यारियों में सजे पुष्पों पर मंडराने वाले भ्रमर व तितली होकर रह गयी। वह प्रतिभा प्रदर्शन व गुरु गौरव के बोध से, नियन्त्रण व अनुशासन से बोझिल होती गयी, और स्वाभाविक , ह्रदय स्पर्शी, स्वभूत, निरपेक्ष कविता; विद्वतापूर्ण व सापेक्ष काव्य में परिवर्तित होती गयी, साथ ही देश, समाज़, राष्ट्र, जाति भी बन्धनों में बंधते गये। स्वतन्त्रता पूर्व की कविता  यद्यपि सार्व भौम प्रभाव वश छन्दमय ही है तथापि उसमें देश , समाज़, राष्ट्र को बन्धन मुक्ति की छटपटाहत व आत्मा को स्वच्छंद करने की, जन-जन प्रवेश की इच्छा है। निराला जी से पहले भी आल्हखंड के जगनिक, टैगोर की बांगला कविता, प्रसाद, मैथिली शरण गुप्त, हरिओध, पन्त आदि कवि सान्त्योनुप्रास-सममात्रिक कविता के साथ-साथ; विषम-मात्रिक-अतुकान्त काव्य की भी रचना कर रहे थे, परन्तु वो पूर्ण रूप से प्रचलित छन्द विधान से मुक्त, मुक्त-छन्द कविता नहीं थी

यथा---
"दिवस का अवसान समीप था,
गगन भी था कुछ लोहित हो चला;
तरु-शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल-वल्लभ की विभा। "

                     -----अयोध्या सिंह उपाध्याय "हरिओध’

"तो फ़ि क्या हुआ,
सिद्ध राज जयसिंह;
मर गया हाय,
तुम पापी प्रेत उसके। "

                                  ------मैथिली शरण गुप्त

"विरह, अहह, कराहते इस शब्द को,
निठुर विधि ने आंसुओं से है लिखा। "

                                  -----सुमित्रा नन्दन पन्त
                इस काल में भी गुरुडम, प्रतिभा प्रदर्शन मे संलग्न अधिकतर साहित्यकारों, कवियों, राजनैतिज्ञों का ध्यान राष्ट्र-भाषा के विकास पर नहीं था। निराला ने सर्वप्रथम बाबू भारतेन्दु व महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को यह श्रेय दिया। निराला जी वस्तुत काव्य को वैदिक साहित्य के अनुशीलन में, बन्धन मुक्त करना चाहते थे ताकि कविता के साथ-साथ ही व्यक्ति , समाज़, देश, राष्ट्र की मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो सके। ""परिमल"    में वे तीन खंडों में तीन प्रकार की रचनायें प्रस्तुत करते हैं। अन्तिम खंड की रचनायें पूर्णतः मुक्त-छंद कविताएं  हैं। हिन्दी के उत्थान, सशक्त बांगला से टक्कर, प्रगति की उत्कट ललक व खडी बोली को सिर्फ़ ’ आगरा ’ के आस-पास की भाषा समझने वालों को गलत ठहराने और खड़ी बोली की, जो शुद्ध हिन्दी थी व राष्ट्र भाषा होने के सर्वथा योग्य, उपयुक्त व हकदार थी, सर्वतोमुखी प्रगति व बिकास की ललक में निराला जी कविता को स्वच्छंन्द व मुक्त छंद करने को कटिबद्ध थे। इस प्रकार मुक्त-छंद, अतुकान्त काव्य व स्वच्छद कविता की स्थापना हुई।
                परंतु निराला युग या स्वयं निराला जी की अतुकान्त कविता, मुख्यतयाः छायावादी, यथार्थ वर्णन, प्राचीनता की पुनरावृत्ति, सामाजिक सरोकारों का वर्णन, सामयिक वर्णन, राष्ट्र्वाद तक सीमित थी। क्योंकि उनका मुख्य उद्धेश्य कविता को मुक्त छन्द मय करना व हिन्दी का उत्थान, प्रतिष्ठापन था। वे कवितायें लम्बी-लम्बी, वर्णानात्मक थीं, उनमें वस्तुतः आगे के युग की आधुनिक युगानुरूप आवश्यकता-सन्क्षिप्तता के साथ तीव्र भाव सम्प्रेषणता, सरलता, सुरुचिकरता के साथ-साथ, सामाजिक सरोकारों के समुचित समाधान की प्रस्तुति का अभाव था। यथा---कवितायें,   "अबे सुन बे गुलाब.....";"वह तोड़ती पत्थर....." ; "वह आता पछताता ...." उत्कृष्टता, यथार्थता, काव्य-सौन्दर्य के साथ समाधान का प्रदर्शन नहीं है। उस काल की मुख्य-धारा की नयी-नयी धाराओं-अकविता, यथार्थ-कविता, प्रगतिवादी कविता-में भी समाधान प्रदर्शन का यही अभाव है।
यथा--
    "तीन टांगों पर खड़ा,
      नत ग्रीव,
      धैर्य-धन गदहा"    ----अथवा--
     

       "वह कुम्हार का लड़का,
       और एक लड़की,
       भैंस की पीठ पर कोहनी टिकाये,
        देखते ही देखते चिकोटी काटी
        और......."


                       इनमें आक्रोश, विचित्र मयता, चौंकाने वाले भाव तो है, अंग्रेज़ी व योरोपीय काव्य के अनुशीलन में; परन्तु विशुद्ध भारतीय चिन्तन व मंथन से आलोड़ित व समाधान युक्त भाव नहीं हैं। इन्हीं सामयिक व युगानुकूल आवश्यकताओं के अभाव की पूर्ति व हिन्दी भाषा , साहित्य, छंद-शास्त्र व समाज के और अग्रगामी, उत्तरोत्तर व समग्र विकास की प्राप्ति हेतु नवीन धारा  "अगीत"   का  आविर्भाव  हुआ, जो निराला-युग के काव्य-मुक्ति आन्दोलन को आगे बढ़ाते हुए भी उनके मुक्त-छंद काव्य से पृथक अगले सोपान की धारा है। यह धारा, सन्क्षिप्तता, सरलता, तीव्र-भाव सम्प्रेषणता व सामाजिक सरोकारों के उचित समाधान से युक्त युगानुरूप कविता की कमी को पूरा करती है। उदाहरणार्थ----

"कवि चिथड़े पहने,
चखता संकेतों का रस,
रचता-रस, छंद, अलंकार,
ऐसे कवि के,
क्या कहने। " ....  ( अगीत )

                         --------डा रंगनाथ मिश्र ’सत्य’
   
"अज्ञान तमिस्रा को मिटाकर,
आर्थिक रूप से समृद्ध होगी,
प्रबुद्ध होगी,
नारी ! , तू तभी स्वतन्त्र होगी। " ......    ( नव अगीत )

                           ----- श्रीमती सुषमा गुप्ता

"संकल्प ले चुके हम,
पोलिओ-मुक्त जीवन का,
धर्म और आतंक के -
विष से मुक्ति का,
संकल्प भी तो लें हम। "  ..( नव-अगीत)

                  -----महा कवि श्री जगत नारायण पान्डेय

" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना;
तुमने सागर किया प्रदूषित"   ...( त्रिपदा अगीत )

                         -----डा. श्याम गुप्त

              इस धारा "अगीत" का प्रवर्तन सन १९६६ ई. में काव्य की सभी धाराओं मे निष्णात, कर्मठ व उत्साही वरिष्ठ कवि डा. रंग नाथ मिश्र ’सत्य’ ने लखनऊ से किया। तब से यह विधा, अगणित कवियों, साहित्यकारों द्वारा विभिन्न रचनाओं, काव्य-संग्रहों, अगीत -खण्ड-काव्यों व महा काव्यों आदि से समृद्धि के शिखर पर चढ़ती जा रही है।
                  इस प्रकार निश्चय ही अगीत, अगीत के प्रवर्तक डा. सत्य व अगणित रचनाकार , समीक्षक व रचनायें, निराला-युग से आगे, हिन्दी, हिन्दी सा्हित्य, व छन्द शास्त्र के विकास की अग्रगामी ध्वज व पताकायें हैं, जिसे अन्य धारायें, यहां तक कि मुख्य धारा गीति-छन्द विधा भी नहीं उठा पाई; अगीत ने यह कर दिखाया है, और इसके लिये कृत-संकल्प है।
                                                      ---------

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अगज़ल ----- दिलबाग विर्क


बहुत हो गई, अब छोडो यारो ये तकरार बे-बात की 
जिंदगी जन्नत बने, इसके लिए निभानी होगी दोस्ती .

ये वो शै है जो हर पल आमादा है लुप्त होने को 
जब मिले, जहाँ मिले, जी भरकर समेट लेना ख़ुशी .

प्यार के सब्ज़ खेत भला लहलहाएंगे तो कैसे, जब तक 
वफा की घटा, दिलों की जरखेज ज़मीं पर नहीं बरसती .

वहशियत नहीं मासूमियत हो, नफरत नहीं मुहब्बत हो 
ऐसे ख्वाबों को पूरा करने में तुम लगा दो जिंदगी .

माना दौर है तूफानों का, यहाँ नफरतों की आग है 
फिर भी हिम्मत हारना, है तुम्हारी सबसे बड़ी बुजदिली .

न तो नफरत की बात कर 'विर्क', न उल्फत से गिला कर 
किस्मत तेरी रंग लाएगी, तू खुद को बदल तो सही .

                              * * * * *
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अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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