१-- " समाज और सरकार का हाथ मिलाना लोकतन्त्र के लिये शुभ ..."-- प्रधान मन्त्री ...
---क्या हमारे प्रधान मन्त्री व सरकार ....समाज व सरकार को अलग अलग समझते हैं ? क्या सरकार ( या वर्तमान सरकार ) समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करती ? तो क्यों न इसे स्तीफ़ा देदेना चाहिये ! २-- "यह लोकतन्त्र की जीत है..." ---सभी कह रहे हैं....
------ तो फ़िर हार किसकी है ! क्या राजनैतिक दल, राजनेता, दलीय राजनीति, संवैधानिक तरीके से चुनी गयी सरकार, हमारी राजनैतिक व शासकीय व्यवस्था .....क्या अलोकतान्त्रिक सन्स्थायें हैं । ये दल , विधायक, सान्सद, मन्त्री , लोकसभा सभी लोकतान्त्रिक सन्स्थायें हैं, क्योंकि लोकतन्त्र में जनता ही जन प्रतिनिधियों माध्यम से कार्य करती है, जनता सीधे सीधे नहीं, यह लोकतान्त्रिक-विधि व्यवस्था है । फ़िर किसकी लडाई किस के विरुद्ध ? क्या यह लोकतन्त्र की असफ़लता है!
३--क्या यह दलीय राजनीति के विरुद्ध सन्घर्ष है, जो वास्तव में दलदलीय राजनीति होगयी है और जनता सीधे सीधे सत्ता अपने हाथ में लेना चाहती है ? क्या सामान्य जन का सीधा सीधा दखल किसी नतीजे पर पहुंच सकता है? यदि हां, तो शुरू में ही संविधान में दलीय व्यवस्था की अपेक्षा यह व्यवस्था क्यों नहीं की गयी।
४-- यदि १५ अगस्त तक बिल पास नहीं हुआ तो फ़िर आन्दोलन होगा....अन्ना..
------ यदि सभी दल, न्यायालय, विधि-व्यवस्था पूर्ण सहमत नहीं हुई , बिल पास नहीं हुआ तो... क्या उसे जनता कीआवाज नहीं माना जायगा--- क्योंकि वह भी तो जन-तान्त्रिक भाग है देश की व्यवस्था का।
५-- क्या लोकपाल में समस्त शासकीय शक्तियां निहित करने का अर्थ ---लोकतन्त्र से एकतन्त्र ( डिक्टेटर शिप) की ओर पलायन नहीं होगा....
------वस्तुतः यह केवल भ्रष्टाचार , भ्रष्ट आचरण के विरुदध एक जन जागरण है...न किसी की हार न जीत...
------ तो फ़िर हार किसकी है ! क्या राजनैतिक दल, राजनेता, दलीय राजनीति, संवैधानिक तरीके से चुनी गयी सरकार, हमारी राजनैतिक व शासकीय व्यवस्था .....क्या अलोकतान्त्रिक सन्स्थायें हैं । ये दल , विधायक, सान्सद, मन्त्री , लोकसभा सभी लोकतान्त्रिक सन्स्थायें हैं, क्योंकि लोकतन्त्र में जनता ही जन प्रतिनिधियों माध्यम से कार्य करती है, जनता सीधे सीधे नहीं, यह लोकतान्त्रिक-विधि व्यवस्था है । फ़िर किसकी लडाई किस के विरुद्ध ? क्या यह लोकतन्त्र की असफ़लता है!
३--क्या यह दलीय राजनीति के विरुद्ध सन्घर्ष है, जो वास्तव में दलदलीय राजनीति होगयी है और जनता सीधे सीधे सत्ता अपने हाथ में लेना चाहती है ? क्या सामान्य जन का सीधा सीधा दखल किसी नतीजे पर पहुंच सकता है? यदि हां, तो शुरू में ही संविधान में दलीय व्यवस्था की अपेक्षा यह व्यवस्था क्यों नहीं की गयी।
४-- यदि १५ अगस्त तक बिल पास नहीं हुआ तो फ़िर आन्दोलन होगा....अन्ना..
------ यदि सभी दल, न्यायालय, विधि-व्यवस्था पूर्ण सहमत नहीं हुई , बिल पास नहीं हुआ तो... क्या उसे जनता कीआवाज नहीं माना जायगा--- क्योंकि वह भी तो जन-तान्त्रिक भाग है देश की व्यवस्था का।
५-- क्या लोकपाल में समस्त शासकीय शक्तियां निहित करने का अर्थ ---लोकतन्त्र से एकतन्त्र ( डिक्टेटर शिप) की ओर पलायन नहीं होगा....
------वस्तुतः यह केवल भ्रष्टाचार , भ्रष्ट आचरण के विरुदध एक जन जागरण है...न किसी की हार न जीत...
0 comments:
Post a Comment