अन्ना दा,
सादर प्रणाम
दादा जी आपका गांव तो खुशहाल होगा, यहां दिल्ली में आपकी वजह से दम घुट रहा है। सड़कों पर चलना मुश्किल हो गया है। हालत ये है कि 15 मिनट का रास्ता दो घंटे में भी पूरा हो जाए तो गनीमत है। दादा जी इस बार बच्चों का बहुत मन था कि वो 15 अगस्त को दिल्ली के लालकिला पहुंचे और वहां आजादी का जश्न मनाएं। इसके लिए उन्होंने बहुत तैयारी भी कर रखी थी। लेकिन सुबह से ही टीवी पर आप और आपके समर्थकों का हो हल्ला देखकर हिम्मत नहीं पड़ी कि घर से बाहर निकलें। पहले तो बच्चों को बहुत बुरा लगा, लेकिन कोई बात नहीं उनके लिए मैकडोनाल्ड से पिज्जा मंगवा लिया था, इसलिए उन्हें झंडारोहण न देख पाने का कोई मलाल नहीं है। हां एक बात और बच्चों से वादा किया था कि शाम को दिल्ली में अच्छी रोशनी होती है, वो देखने चलेंगे। लेकिन आजादी वाले दिन आपने रात को घर की बत्ती बंद रखने की बात कह कर ये मुश्किल भी आसान कर दी। बच्चों को बताया कि अन्ना दादा ने रात में पूरे घंटे भर बिजली बंद करने को कहा है, ऐसे में दिल्ली में कुछ भी हो सकता है। बच्चे डर गए और उन्होंने खुद ही मना कर दिया घर से बाहर जाने के लिए।
दादा आप जानते हैं कि स्वतंत्रता दिवस देश का राष्ट्रीय पर्व है। आज के दिन और कुछ हो ना हो, लेकिन इस दिन हम शहीदों को याद तो कर लेते हैं, और उन्हें सम्मान देते हैं। पर आपने शहीदों का ये हक भी छीन लिया। कल पूरे दिन लोग टीवी पर आपको ही तरह तरह की मुद्रा में देखते रहे। आप तो जानते ही हैं कि आजकल टीवी पर वैसे भी शहीदों के लिए कोई समय नहीं रह गया है। एक मौका था, जब शहीदों के बारे में बच्चे कुछ जान पाते तो वो मौका भी बच्चों से आपने छीन लिया। दादा देश आपको आपको गांधी कह रहा है, इसलिए आपकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ गई है, क्योंकि अगर आपने कुछ भी ऐसा किया, जो नहीं होना चाहिए तो आपका कुछ नहीं होगा, हां गांधी के बारे में बच्चों की गलत राय बनेगी। पिछले दिनों आपने फांसी देने की बात की, आपने कहा कि गांधी के रास्ते बात ना बने तो शिवाजी का रास्ता अपनाना होगा। अरे दादा आपको तो पता है कि गांधी जी कहते थे कि कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा सामने कर दो। लेकिन आप तो कुछ भी बोल रहे हैं। इससे बच्चों में गलत संदेश जा रहा है। गांधी हर हाल में अंहिसा को मानने वाले थे। दादा कई बार आप भाषा की मर्यादा भी तोडते हैं, तब बच्चे पूछते हैं कि गांधी जी भी ऐसे ही बोला करते थे, तो मैं कोई जवाब नहीं दे पाता हूं।
दादा, आपका जीवन बहुत कीमती है, पूरा देश आपको बहुत प्यार करता है। सभी लोग चाहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार ना रहे, लोगों को उनका हक मिले। हर आदमी का काम बिना रिश्वत और जल्दी हो। जरा सोचिए दादा कि अगर ऐसा हो जाए तो लोगों का जीवन कितना आसान हो जाएगा। लेकिन दादा जी अब मैं कुछ बात आपको बताना चाहता हूं, पर आप अपनी उम्र बताकर ये मत कहिएगा कि मुझे कुछ मत बताओ, मै सब जानता हूं। अन्ना दा सच ये है कि जब तक आप फौज में थे, तो आप सामान पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाते रहे, वहां से आए तो गांव में छोटे से मंदिर में रह कर गांव को दुरुस्त करने में लग गए। कई बार आपका आमना-सामना महाराष्ट्र की सरकार से हो चुका है। भूख हड़ताल तो आपकी एक तरह से आदत हो गई है। दादा आप नाराज मत होना, सच कहूं तो आप आज की दुनियादारी को आप नहीं समझ पा रहे हैं। अब हम इतना भ्रष्ट हो चुके हैं कि सुधरने की गुंजाइश नहीं रह गई है।
अन्ना दादा कडुवा सच ये है कि अगर रिश्वत बंद हो जाए, तो सरकारी नौकरी करने के लिए कोई तैयार ही नहीं होगा। प्राईवेट सेक्टर में मैनेजमेंट किए बच्चों को जो वेतन मिलता है, उससे कम वेतन आईएएस, आईपीएस को मिलता है। अन्ना दा आपको तो पता होगा कि ज्यादातर राज्यों में जिले के कलक्टर और पुलिस कप्तान का पद बिकता है। दादा जब कलक्टर और कप्तान की ये हालत है तो और पदों के बारे में क्या कहा जाए। आज बाबू की तनख्वाह से दस गुना उसकी ऊपर की कमाई है। बडे शहरों में अगर अफसर और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हो जाएं तो उसका घर चलाना मुश्किल हो जाएगा।
दादा अंदर की बात तो ये है कि भ्रष्टाचारियों को फांसी देने की आपकी मांग पूरी हो जाए तो, कम से कम 10 हजार जल्लादों की भर्ती तत्काल करनी होगी, और इन्हें देश भर मैं तैनात करना होगा। इसके बाद हर जिले में कम से कम दो सौ लोगों को अगर रोजाना फांसी पर लटकाया जाए, और ये प्रक्रिया साल भर भी चलती रहे, फिर भी हम देश को सौ फीसदी भ्रष्टाचारियों से मुक्त नहीं कर सकेंगे। दादा ऱिश्वतखोरों की पैठ बहुत गहरी है। जिस देश में मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए बाबू को पैसे देने पडें, जिस मुल्क में शहीदों के लिए खरीदे जाने वाले ताबूत में दलाली ली जाती हो, जिस मुल्क में सैनिकों को घटिया किस्म का बुलेट प्रुफ जैकेट देकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता हो, जिस देश में डाक्टर चोरी से मरीज की किडनी निकाल लेते हों उस देश को ईमानदार बना देना इतना आसान है क्या।
दादा मैं तो जानता हूं कि आपने कभी ईमानदारी से समझौता नहीं किया। आप देश में एक बार फिर रामराज्य की कल्पना कर रहे हैं। जब आप किसी आंदोलन का बिगुल फूंक देते हैं तो पीछे नहीं हटते। लेकिन दादा ये आंदोलन कामयाब हो गया तो मेरे साथ ही करोडों लोगों को बहुत मुश्किल होगी। मेरा तो बडा से बडा काम इतनी आसानी से हो जाता है कि पता ही नहीं चलता। सब लोग महीनों पहले ट्रेन में सफर करने के लिए रिजर्वेशन कराते हैं, मुझे तो टीटीई को एक फोन भर करना होता है, उसके बाद सारा इंतजाम वो खुद करता है। हां थोडा पैसा ज्यादा देना होता है। बिजली का बिल जमा करने के लिए मैं आज तक कभी लाइन में नहीं लगा। बिजली विभाग का आदमी खुद ही हर महीने आकर चेक ले जाता है। बस थोडे से पैसे देता हूं, मेरा बिल भी दूसरों के मुकाबले बहुत कम आता है। सरकारी अस्पताल में कितनी भी भीड़ हो, मुझे डाक्टर सबसे पहले देखते हैं, और दवा भी वहीं से मिल जाती है,जबकि वही दवा दूसरे लोग बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। दादा टेलीफोन विभाग से भी मुझे कोई दिक्कत नहीं होती है। वो बेचारे थोडे से पैसे लेते हैं, मेरा बिल सिर्फ महीने का किराया भर आता है।
अन्ना दा मैं जिस भी सरकारी महकमें में जाता हूं, लोग मेरी बहुत इज्जत करते हैं। इसके लिए मुझे ज्यादा कुछ नहीं करना पडता। बस थोडे से पैसे अफसरों से लेकर कर्मचारी तक को देता हूं, और दीपावली पर कुछ भेंट कर आता हूं। लेकिन काम तो कोई नहीं रुकता। आज हालत ये है कि किसी का कोई काम रुकता है तो वह भी मेरे पास आता है। मेरे फोन करने भर से लोगों की मदद हो जाती है, पर दादा अगर रिश्वतखोरी बंद हो गई तो हमारा क्या होगा। मुझे तो अपना भी कोई काम करने की आदत ही नहीं है। हमें ही नहीं हमारे जैसे करोडों लोग हैं, जो अपना काम भी खुद से नहीं कर पाते।
हां दादा आज टीवी पर देखा कि पुलिस ने आपको गिरफ्तार कर लिया और अनशन करने ही नहीं दिया। पहले तो थोडा गुस्सा आया था दिल्ली पुलिस पर, फिर लगा कि ठीक है। दिल्ली में शांति तो रहेगी, रास्ता चलना थोडा आसान रहेगा। बेवजह का शोर शराबा तो बंद रहेगा।
दादा आप जनलोकपाल के चक्कर में ना पडें। आप पुराने जमाने की सोचते हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 121 करोड की आवादी वाले देश को किसी भी कानून में नहीं बांधा जा सकता। ईमानदारी के लिए लोगों में नैतिकता की जरूरत है और आज देश में कोई नैतिक नहीं रह गया। दादा आप कहते हैं कि अगर जनलोकपाल बन गया तो आधें मंत्री जेल में होगे, ये सुनकर आप हैरत में पड जाएंगे कि अगर ईमानदारी से बेईमानों की पहचना हो गई तो सेना के आधे से ज्यादा बडे अफसरों को जेल भेजना होगा। आज जितनी भ्रष्ट हमारी सेना है, उसका किसी महकमें से मुकाबला नहीं है। दादा आपने लोगों से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आंदोलन में शामिल होने को कहा था। सरकार कर्मचारियों ने तो छुट्टी नहीं ली, सब काम पर हैं, पर घर की बाई जरूर छुट्टी चली गई। इसलिए आपको लेकर घर में भी नाराजगी है।
चलिए दादा अब पत्र बंद करते हैं, आफिस भी जाना है। हां चलते चलते आपको स्व. शरद जोशी जी की दो लाइने पढाना चाहता हूं। वो कहते हैं कि सरकार किसी काम के लिए ठोस कदम उठाती है, कदम चूंकि ठोस होते हैं, इसलिए उठ नहीं पाते। और हां देश की बर्बादी के सिर्फ दो कारण है, ना आप कुछ कर सकते हैं, ना मैं कुछ कर सकता हूं। होता वही है जो होता रहता है। दादा प्रणाम। जेल से बाहर आइये तो मुलाकात होगी।
महेन्द्र श्रीवास्तव
6 comments:
आपने बहुत अच्छे तरीक़े से बताया है कि समाज में भ्रष्टाचार हर स्तर पर बुरी तरह फैला हुआ है। इसके ख़ात्मे की शुरूआत कहीं से तो होनी ही है और किसी को तो करनी ही है। ऐसे में अगर हमारे सामने अन्ना आए हैं तो हमें उनका साथ देना चाहिए और कमियां हरेक नेता में होती हैं।
अगर अन्ना की नीयत शक शुब्हे से बालातर है तो फिर ज़्यादा बारीकियां देखना आज के हालात में ठीक न होगा।
ग़लतियां नेक नीयत आदमी की क़ाबिले दरगुज़र होती ही हैं।
अन्ना तो पूरा अन्ना है और देसी है , कांग्रेसी है
अगर कोई गन्ना भी खड़ा हो किसी बुराई के खि़लाफ़ तो हम हैं उसके साथ।
कांग्रेसी नेता कह रहे हैं कि अन्ना ख़ुद भ्रष्ट हैं।
हम कहते हैं कि यह मत देखो कौन कह रहा है ?
बल्कि यह देखो कि बात सही कह रहा है या ग़लत ?
क्या उसकी मांग ग़लत है ?
अगर सही है तो उसे मानने में देर क्यों ?
अन्ना चाहते हैं कि चपरासी से लेकर सबसे आला ओहदा तक सब लोकपाल के दायरे में आ जाएं और यही कन्सेप्ट इस्लाम का है।
अच्छे लेख से इस मंच को समृद्ध करने के लिए शुक्रिया !
सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में भी हमने यही कहा था।
बहुत सटीक बात कही है आपने .शुक्रिया
blog paheli
आप जैसे विचार सबके हो जाये तो ही देश सुधरेगा,
लेकिन ऐसा होना सम्भव नहीं है,
अत: ये परेशानी तो झेलनी ही पडेगी,
क्या आप या आपका कोई जानकार कभी इन नेताओं के काफ़िले में नहीं फ़ंसा,
जब कोई फ़ंस जायेगा, तब भी आपके विचार यही रहे तो जरुर बताना,
अन्ना जैसे तो कहीं बीस-तीस साल में दो-तीन दिन ही आपको तंग करते है,
ये नेता चाहे किसी भी पार्टी के हो हर जगह तंग करते है?
डा. अनवर साहब, शिखा जी.. आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
दरअसल मैं यहां आया हूं सिर्फ जाट देवता (संदीप पवाँर)से एक बात कहने।
भाई जिस बात का आपने जिक्र किया है वो मात्र एक संदर्भ है। मुझे लगता है कि आप एक बार फिर से पत्र पढें। मैं जो कुछ कहना चाहता हूं, शायद आप वहां नहीं पहुंच पाए।
सिर्फ उपर की एक पंक्ति पढकर कमेंट किया है। आप मेरी बातों को अन्यथा मत लीजिएगा।
बहुत अच्छी पोस्ट .. आपके इस पोस्ट की चर्चा अन्ना हजारे स्पेशल इस वार्ता में भी हुई है .. असीम शुभकामनाएं !!
पत्र के माध्यम से पूरी व्यवस्था पर कटाक्ष ...
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