अरे भई साधो......: सितारों के आगे चलो घर बसायें
सामाजिक सुधार का द्वार आत्मिक सुधार ही है
समय गुज़र रहा है लेकिन इंसान के अंदर ज़्यादा लाभ के लिए ज़ुल्म कर डालने की भावना क़ाबू में नहीं आ पा रही है। यही भावना इंसान की जागरूकता को मक्कारी में बदल कर रख देती है।
व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से इस भावना पर क़ाबू पाए बिना जागरूकता को रचनात्मकता में बदलना संभव नहीं है।
हिंदी ब्लॉगिंग में आना ऐसा लगता है जैसे कि देना ज़्यादा और पाना कम।
इंसान के पास वक्त सबसे क़ीमती सरमाया है।
ब्लॉगिंग में वक्त बहुत लगता है।
हम हट गए और हमारे साथियों में से भी कुछ फ़ेसबुक वग़ैरह की तरफ़ मुड़ गए लेकिन हमारे एक साथी डा. अनवर जमाल साहब ब्लॉगर डॉट कॉम पर ही डटे और अपने ब्लॉग बढ़ाते रहे।
अब ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ के लिए हमें बार-बार ईमेल करके बुलाया कि आप भी ‘हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल‘ के सदस्य हो। इसलिए मीट में आओ और सक्रियता दिखलाओ।
एक दो टिप्पणी तक तो ठीक है लेकिन सक्रियता दिखाने का मतलब ?
बहुत लंबे अर्से बाद एक पोस्ट लिख रहा हूं और चाहता हूं कि आपसे सुझाव और मार्गदर्शन मांगू कि क्या हिंदी ब्लॉगिंग में वापसी करना ठीक रहेगा ?
क्या ब्लॉगर्स मीट वीकली सचमुच हिंदी ब्लॉगर्स को जोड़ पाने में कामयाब रहेगी ?
यदि आपका जवाब हां हो तो फिर इसमें वक्त लगाने का कुछ फ़ायदा है वर्ना तो सूखे तिलों को निचोड़ने से फ़ायदा क्या है ?
देखिए ब्लॉगर्स मीट वीकली की पहली नशिस्त
http://hbfint.blogspot.com/2011/07/1-virrtual-step-to-be-unite.html
और
ब्लॉगर्स मीट वीकली की दूसरी नशिस्त
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/2-love-for-all.html
एक कतरा लहू का मेरे बस देश के काम आये
अन्ना , कोंग्रेस ,भाजपा मिलकर देश में महंगाई और भ्रष्टाचार से ध्यान हटाना चाहते हैं ...........
ग़ज़लगंगा.dg: हर वक़्त कोई रंग हवा में.......
टिप्पणी देते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? Hindi Blogging Guide (23)
--------------------------
"टिप्पणियों से मत मापो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
एक नारी के रूप अनेक
Kuchh Dil Se...: हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड : मेरी नज़र से (भाग 5)
के ज़मीन पे पैर अब पड़ते नहीं मेरे...
आज हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के अन्य लेखों व लेखकों के बारे में चर्चा करने से पहले मैं आपको एक नयी खुशखबरी देना पसंद करूँगा. वैसे खुश खबरी एक नहीं दो - दो हैं, एक हमारी प्यारी हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड की तरफ से और दूसरी मेरी तरफ से...
तो पहले कौन सी सुनाऊं ?
चलिए हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के बारे में ही खुशखबरी दे देता हूँ सबसे पहले...
तो वह खुशखबर ये है कि हमारी "हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड" के फेसबुक पेज के २ अगस्त २०११ को ३० प्रसंशक होने की ख़ुशी में फेसबुक ने हमें एक नया तोहफा दिया है और वो ये कि अब हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड का खुद का एक नया यूज़र नेम मिल गया है, आसान शब्दों में अगर कहूँ तो हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड को एक नया परमानेंट लिंक मिल गया है. मैं इस लिंक को यहाँ साझा कर रहा हूँ...
वैसे शायद ये सूचना आपको मेरे द्वारा फेसबुक पे मिल ही गई होगी. फिर भी ख़ुशी को जितना बांटो उतना ही कम होता है, और ख़ुशी तो बांटने से हमेशा बढ़ती ही जाती है.
फेसबुक किसी भी पेज को ३० प्रसंशक होने पर ही नया यूज़र नेम प्रदान करता है, कल ही ४ नए प्रसंशक शामिल हुए हैं इसके फैन लिस्ट में... और दिन - प्रतिदिन यह संख्या बढ़ती ही जा रही है. अब बस चाहत है कि यह संख्या ३० से बढ़ कर तीस करोड़ तक पहुंचे... बस इसके लिए आप सभी के प्रयास की जरूरत है... आप सभी से मैं तहे-दिल से अनुरोध करता हूँ कि हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड को बढ़ावा दें और नए हिंदी ब्लॉगर निर्माण में हमारी सहायता करें...
तो हुई न ये सच में एक खुशखबरी... ?
चलिए अब हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के बारे में चर्चा शुरू की जाए...
क्या... ?
दूसरी खुशखबरी ?
हा हा हा !
व.. वो.. वो मैं... सोच रहा था कि...
तब बताऊँ जब
उसकी पुष्टि पूरी तरह हो जाए...
मेरा मतलब है... कि कुछ दिनों का इंतजार और करें फिर सार्वजानिक रूप से एक नए लेख में मैं अपनी उस खुशखबरी के बारे में आपको बताऊंगा... वो क्या है न... इंतजार का अपना ही मज़ा है... :)
अब शुरू करते हैं चर्चा - "हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड : मेरी नज़र से" का सातवाँ अध्याय...
मैंने अपने पिछले लेख में आपको श्री रूपचंद शास्त्री जी, डॉ० अयाज़ अहमद जी, श्री देवेन्द्र गौतम जी के परिचय के साथ उनके लिखे लेखों की जानकारी दी थी.
मेरा पिछला लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें -
आज मैं आपको डॉ० अनवर जमाल खान जी, सलीम के बारे में तथा उनके हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के लिए योगदान के बारे में जानकारी दूँगा..
आगे पढ़ने के लिए क्लिक करें...
और जानें - कौन है वे लोग जिन्होने ब्लॉग जगत में मुझे बहुत प्रभावित किया है....
हरे राम का तोता
एक जलाती, एक डुबाती है;
मत मोलो खतरा,
बोले, हरे राम का तोता।
डर, आलस के पास न जाओ,
एक रोकती, एक रुकवाती है;
आए खतरा तो लडो,
बोले, हरे राम का तोता।
पैसा, लड़की को समझ से झेलो,
एक भागती, एक भगाती है;
जानकारी ही बचाव,
बोले, हरे राम का तोता।
प्यार, दोस्ती को मिक्स मत करो,
एक सवांरता, एक बचाता है;
दोनों का दरकार,
बोले, हरे राम का तोता।
नशा, पढ़ाई के अंत को जानो,
एक गिराती, एक उबारती है;
नशा नहीं थोड़ा भी,
बोले, हरे राम का तोता।
गम, खुशी के भेद को समझो,
एक रुलाती, एक हँसाती है;
मस्ती ही हो फितरत,
बोले, हरे राम का तोता।
www.pradip13m.blogspot.com
हरियाली तीज
हरियाली तीज
इन्द्रधनुष के रंगों में खो जाइये
प्रकृति ने अद्धभुत छटा बिखराई है
हमारी धरा को नई दुल्हन सी सजाई है
बादल पहाड़ों पर झूक रहे हैं
पेड-पोधे भी उमंग से झूम रहे हैं
नदियाँ अपने पूरे उफान
सागर से मिलने को बेकरार हो रही हैं
मदहोश करता एक अजब खुमार छाया है
लो सावन का महीना आया है
रूत सुहानी आई है
चारों और हरियाली छाई है
औरतें सोलह श्रंगार करके धानी चुनरिया पहन के
ढोलक पर कजरी,सावन के गीत गा रही हैं
फूलों और पत्तों से झूले खूब सजा कर
अपने प्रियतम के साथ खूब ऊँचे पेंच लड़ा रही हैं
ये सब पर कैसी मस्ती छाई हुई है
देखो सावन की हरियाली तीज आई है
..... ना हम खाली ना तुम खाली
वैसे ऐसा कई बार होता है कि हम लोग काम खत्म करने के बाद एक साथ कारोबार करते हैं। शायद आप कारोबार का मतलब ना समझ पाएं इसलिए बता देता हूं। मतलब कार में बार... यानि गाड़ी में पीना पिलाना हो जाता है। फिर सब अपनी अपनी कार में सवार हो जाते हैं और अपार्टमेंट पहुंचते पहुंचते तो भूल जाते हैं कि हम सब एक दूसरे को जानते भी हैं। एक बात और बता दूं, त्यौहार हम सब साथ मनाते हैं। कोई भी त्यौहार हो सब लोग चंदा करते हैं और अपार्टमेंट के गार्डेन एरिया में खाना सभी का एक साथ होता है। बहुत कम ऐसा होता है कि हम सब एक दूसरे के घर जाएं। ऐसा नहीं है कि कोई लडाई, झगडा है, आपस में कोई मन मुटाव भी नहीं है, बस मन ही नहीं होता कहीं जाने का। यहां एक शेर याद आ रहा है......
तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली ना हम खाली।
अब आप सोच रहे होगे कि कहां हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल और कहां श्रीवास्तव जी का अपार्टमेंट, दोनों की ये क्या तुलना है। लेकिन मेरे ख्याल से है। जैसे हम अपार्टमेंट में बाकी लोगों से मतलब नहीं ऱखते, यहां भी किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है। हम किसी के लेख पर कभी नहीं जाते, अगर चले भी गए, तो वहां एक मिनट रुक कर कमेंट नहीं देते हैं। जैसे अपार्टमेंट के लोगों ने अपने को सीमित कर लिया है, वैसे ही यहां भी लोगों ने खुद को अपने तक समेट लिया है। लेकिन एक अच्छी बात यहां भी है, जैसे हम अपार्टमेंट में त्यौहारों पर खाना साथ खाते हैं, यहां वीकली मीट में कितने लोग एक साथ जमा होते हैं। मित्रों मैं कोशिश करुंगा कि अपने अपार्टमेंट के इस रवैये को बदूलूं और आप एक कोशिश कीजिए करें कि एक दूसरे की रचनाओं का ख्याल रखें। एक कवि का नाम तो मुझे याद नहीं आ रहा, लेकिन उनकी एक लाइन जरूर याद आ रही है।
तुम भले मुझे कवि मत मानों,
पर वाह वाह की ताली दो।
तो मित्रों मुझे लगता है कि जो बात मैं कहना चाहता था, आप तक पहुंच गई होगी। वाह वाह की ताली ना भी सही गाली ही दो लेकिन मित्रों दीजिए जरूर। इससे हम सबका उत्साह बढता है और लिखने की इच्छा जागृत होती है। वैसे मैं जानता हूं कि ये बात लिखने का मुझे कोई अधिकार नहीं है, लेकिन भाई अनवर से यहीं पर इसके लिए माफी भी मांग लेता हूं।
अच्छी टिप्पणियाँ ही ला सकती हैं प्यार की बहार Hindi Blogging Guide (22)
अजब ब्लॉग दुनिया के भी हैं झमेले,धड़ा-धड़ यहाँ पोस्टों के हैं रेले.
कहीं बात अम्नो-अमाँ की भी देखी,कई धर्म की आड़ ले ले के खेले.
क्या ऐसा करना ब्लोगर की साफ़-सुथरी और स्वस्थ मानसिकता को दर्शाता है ?
ये सारे सवाल टिप्पणीकर्ताओं पर एक बड़ी और निम्न महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी डालते हैं,मसलन :-
- हमें अच्छे समाज की संरचना के लिए ब्लॉग को सावधानी से पढ़ते हुए निष्पक्ष टिप्पणी देनी होगी.
- हमें सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने का साहस जुटाना होगा.
- हमें गुणवत्तापरक टिप्पणियों पर ध्यान देना होगा.
और अंत में अपने प्यारे ब्लोगर साथियों को समर्पित मेरे निम्न अशआर:-
आप मेरे हमसफ़र हैं,हमक़दम,हम ख्वाब हैं.हम उसी दर्ज़ा यक़ीनन आपके अहबाब है.
आप मंजिल की तरफ बेताब हो के देखिये,मंजिलें भी पास आने के लिए बेताब हैं.
कुँवर कुसुमेश
4/738, विकास नगर ,लखनऊ-226022मोबा :- 09415518546
Blog : kunwarkusumesh.blogspot.comE-Mail : kunwar.kusumesh@gmail.कॉम
औरत हया है और हया ही सिखाती है , ‘स्लट वॉक‘ के संदर्भ में
औरत हमारी मां है, हमारी बहन है और हमारी बेटी है।
एक औरत ही हमारी अर्धांगिनी होती है। बचपन में जब हम नंगे घूमते हैं तो एक औरत ही हमें सिखाती है कि बेटा नंगे मत घूमो। एक औरत ही यह बात मर्द बच्चे को बताती है और अपना हक़ मानती है। वह कभी नहीं सोचती कि यह तो नर बच्चा है, हम तो औरत हैं इसे क्यों बतायें कि इसे क्या पहनना है और क्या नहीं ? एक औरत ही अपनी बेटी को तन के साथ सिर ढकना भी सिखाती है। एक औरत ही बताती है कि लड़की के कपड़े लड़कों के कपड़ों से अलग होने चाहिएं। इसी को हम सभ्यता और संस्कृति कहते हैं। यह हमें मां सिखाती है जो कि एक औरत होती है। बच्चे की पहली पाठशाला उसकी मां होती है। बचपन में एक मां अपने बच्चे को जो कुछ सिखा देती है वह उसके दिलो-दिमाग़ से कभी निकल नहीं पाता। आज लोग कपड़े पहनते हैं और सार्वजनिक रूप से उतारने को बेशर्मी मानते हैं और यह लोगों के मन में इतनी गहराई तक जमा हुआ है कि जो लोग प्रचार पाने के लिए ऐसा फूहड़पन करते भी हैं तो इसे वे भी ‘बेशर्मी‘ ही मानते हैं और ऐसी वॉक को ‘बेशर्मी की चाल ‘ ही कहते हैं। भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसे बेशर्मी ही माना जाता है जिसे ‘स्लट वॉक‘ का नाम दिया गया है। नंगापन पश्चिमी संस्कृति नहीं है। नंगेपन को पश्चिम में भी बुरा ही माना जाता है। नंगापन बाज़ारवाद की देन है। मुनाफ़ाख़ोर व्यापारियों ने अपना माल बेचने के लिए ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नारी देह का इस्तेमाल किया और फिर उसे सुनियोजित ढंग से जीवन के एक दर्शन के तौर पर पेश किया। नादान लोग उसकी चपेट में आ गए। जीवन और जगत को सतही ढंग से लेने वाले इन्हीं बाज़ारवादी पूंजीपतियों के हित साधन करने के लिए पश्चिमी सभ्यता का नाश करने के बाद अब भारतीय नैतिकता पर प्रहार कर रहे हैं। हरेक धर्म-मत के नर-नारी इन्हें एक आवाज़ होकर धिक्कार रहे हैं। इन्हें धिक्कार तो रही है ख़ुद इनकी आत्मा भी लेकिन सवाल है कॉन्ट्रेक्ट का। लोग पेट की ख़ातिर जुर्म तक कर डालते हैं, हो सकता है कि इन्हें भी इनकी मजबूरियां और इनकी ज़रूरतें या फिर इनकी हवस तन के कपड़े उतारने के लिए मजबूर कर रही हो। औरत बहरहाल साक्षात हया होती है। किसी मजबूरी में ही वह बेहया होती है। जैसे हम वेश्याओं के बारे में सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हैं, ऐसे ही ‘स्लट वॉक‘ में शामिल औरतों के बारे में भी हमें हमदर्दी के साथ उनकी पृष्ठभूमि जानने की ज़रूरत है।
जल्दी में हमें औरतों को कुछ भी बुरा नहीं कहना चाहिए।
हमें संयम से काम लेना चाहिए।
रमज़ान का यह महीना भी हमें संयम की ही शिक्षा देता है।
मुस्कुरा दिया करना
ये हैं क्रिकेट के बद्तमीज़
मित्रों काफी दिनों से सोच रहा था कि ब्लाग जगत में खेलों की चर्चा बहुत ही कम हो रही है, जबकि देश का एक बडा तपका इससे जुड़ा हुआ है। इसलिए खेल और खिलाड़ियों के बारे में भी कुछ बात कर ली जाए। सच कहूं तो हिम्मत नहीं हो रही है, कि पता नहीं इस लेख को कितना समर्थन मिलेगा, लेकिन अब चर्चा करना जरूरी हो गया है, क्योंकि पानी सिर के ऊपर हो चुकाहै। बहरहाल छोटी छोटी सिर्फ दो चार बातें कर लेते हैं। बात खेल की हो तो इसकी शुरुआत क्रिकेट से होती है और क्रिकेट से ही खत्म हो जाती है। इसलिए मैं भी क्रिकेट पर ही ज्यादा बात करूंगा, लेकिन दूसरे खिलाड़ियों को यहां याद करना जरूरी है, जिन्होंने देश का नाम रोशन किया है।बैडमिंटन- सायना नेहवाल, गोपीचंद फुलेला, मुक्केबाजी- विजेन्दर सिंह, कुश्ती, डिस्कस थ्रो- कृष्णा पूनिया, एथलीट- आशीष कुमार, टेनिस- साइना मिर्जा, शूटिंग- गगन नारंग, अभिनव बिन्द्रा के साथ तमाम और लोग भी हैं, जिन्होंने अपने अपने क्षेत्र में देश का नाम रोशन किया है। इनके प्रयासों को मैं सलाम करता हूं।
चलिए अब बात करते हैं भारतीय क्रिक्रेट और उसके बद्तमीज़ों की...। विश्वकप में जब भारत ने जीत हासिल की तो देश ने क्रिकेटरों को सिर पर बैठा लिया और कई दिन तक उनके जयकारे लगाए। क्रिकेटर जहां भी जाते उनके फैंस उन्हें घेर लेते। क्योंकि इस टीम ने देश का नाम रोशन किया था। लेकिन ये क्रिकेटर बद्तमीज़ होते जा रहे हैं। आज हालत ये हो गई है कि पैसे के लिए ये देश के मान सम्मान की भी चिंता नहीं करते। इसके लिए एक हद तक तो बीसीसीआई भी कम जिम्मेदार नहीं है। आइये देश को शर्मशार करने वाली कुछ घटनाओं की याद दिलाते हैं।
पिछले साल खेल में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए महेन्द्र सिंह धोनी और हरभजन सिंह को पदमश्री से सम्मानित करने का फैसला किया गया, लेकिन गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक धोनी और हरभजन ने राष्ट्रीय सम्मान पद्मश्री लेने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। इसके बाद भी जब उनको पुरस्कार दिया गया तो वे इसे लेने नहीं पहुंचे। आपको हैरत होगी कि इन दोनों ने इस पुरस्कार को इतना असम्मानित किया कि इन्होंने अपना बायोडाटा तक गृहमंत्रालय को नहीं भेजा। यहां तक कि धोनी ने तीन महीने तक गृहमंत्रालय के फोन का जवाब तक नहीं दिया। सम्मान समारोह के कुछ दिन पहले हरभजन ने एसएमएस किया कि वो पद्मश्री लेने नहीं आ सकते, लेकिन धोनी ने तो आखिरी समय तक कोई जवाब नहीं दिया। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने जब इन दोनों को आठ-दस बार फोन किया तो इनके घरवालों से ये जवाब सुनने को मिला कि वो सो रहे हैं।
धोनी के बारे में एक और जानकारी दे दूं, पिछली बार उन्हें खेल जगत का सर्वोच्च सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड दिया गया। उस दौरान वे श्रीलंका में सीरीज खेल रहे थे। केंद्र सरकार ने उन्हें ऑफर दिया गया कि यदि वे आने को तैयार हों तो उनके लिए विशेष विमान की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन धोनी से आने से मना कर दिया।
ये तो कुछ पुरानी बातें हैं। अभी टीम इंडिया इंगलैंड में टेस्ट सीरीज खेल रही है। टीम के सम्मान में लंदन में भारतीय उच्चायोग ने एक डिनर पार्टी का आयोजन किया। इसमें इंगलैंड के साथ ही दुनिया के दूसरे देशों के राजदूतों को भी आमंत्रित किया गया था। प्रोटोकाल के अनुसार इस आयोजन मे शामिल होने से कोई इनकार नहीं कर सकता है। लेकिन बेहूदे क्रिकेटरों ने इस आयोजन में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया। बाद में पता चला कि उच्चायोग के डिनर में जाने से क्रिकेटरों ने इस लिए इनकार किया कि धोनी की पत्नी के नाम वाले साक्षी फाउंडेशन का एक कार्यक्रम था। इसमें विश्वकप के दौरान जिस बल्ले से धोनी ने खेला था उसकी नीलामी थी। धोनी का बल्ला यहां 71 लाख रुपये में नीलाम हुआ। पैसा जब क्रिकेटरों के लिए देश से बडा हो जाए, तो हमें आपको इस पर जरूर सोचना चाहिए। सच तो ये है कि अगर बीसीसीआई ने समय रहते इन पर लगाम नहीं लगाया तो ये देश की साख को पैरों तले रौंद देंगे।
यहां आपको ये बताना जरूरी है देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न खिलाडियों को भी दिया जा सके, इसके लिए संविधान में संशोधन किया जा रहा है। देश भर से मांग उठ रही है कि सचिन तेंदुलकर को ये सम्मान मिलना चाहिए। इसके मद्देनजर सरकार इस सम्मान के प्रावधानों को बदलने भी जा रही है। लेकिन बडा सवाल ये कि क्रिकेट ये बदतमीज देश के सम्मान को कब तक ठोकर मारते रहेंगे।
बात खत्म करूं इसके पहले कल के मैच में हुई भारत की हार की चर्चा जरूरी है। खेल में हार जीत एक सामान्य बात है, होती रहती है, लेकिन इनके हास्यास्पद तर्क से कई सवाल खडे हो जाते हैं। टेस्ट मैंच में हार के बाद धोनी ने कहा कि वेस्टइंडीज के दौरे के बाद उनकी टीम को आराम नहीं मिला, जिसकी वजह से प्रदर्शन निराशाजनक रहा। अब धोनी से कौन पूछे कि विश्व कप के थकान भरे मैच के दो दिन बाद ही आईपीएल खेलने के समय ये शिकायत क्यों नहीं की। क्योंकि यहां उन्हें और खिलाडियों को पैसा दिख रहा था। इतना ही नहीं आईपीएल के बाद वेस्टइंडीज दौरे में तमाम खिलाडियों ने आराम के लिए टीम से नाम वापस ले लिया। अगर इन्हें देश की फिक्र होती तो ऐसा नहीं करते। आईपीएल में तो विरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर घायल होने के वाबजूद खेलते रहे।
खैर अब जरूरी हो गया है कि क्रिकेटरों पर लगाम लगाया जाए, क्योंकि देश के मान सम्मान से समझौता नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वो कितना ही बडा खिलाडी क्यों ना हो। समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो ये क्रिकेट के बद्तमीज देश की नाक कटवा देगें।