हिंदी व्लागर्स फोरम इंटरनेशनल पर जब भी मैं आता हूं, तो सच कहूं मुझे दिल्ली के अपने अपार्टमेंट की याद आ जाती है, जहां मैं पिछले छह साल से रह रहा हूं। हमारे अपार्टमेंट में कुल आठ ब्लाक हैं, जिसमें लगभग दो सौ फ्लैट हैं। दस मंजिले वाली इस इमारत के हर फ्लोर पर चार फ्लैट हैं। हां ये पत्रकारों की सोसायटी है, इसमें पत्रकारों के अलावा कोई बाहरी आदमी नहीं रहता है। यहां सभी चैनलों, अखबारों के साथ ही न्यूज एजेंसी के लोग रहते हैं। एक बात और तमाम लोग ऐसे भी हैं जो एक ही चैनल और अखबार में काम करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये सब बातें मैं क्यों बता रहा हूं। सिर्फ इसलिए कि लोगों को एक दूसरे से बिल्कुल मतलब नहीं हैं। मैं खुद सातवीं फ्लोर पर रहता हूं, मुझे नहीं पता कि मेरे साथ वाले वाकी तीन फ्लैट में और कौन लोग रहते हैं। मैं जिस टीवी चैनल में हूं, यहां के चार और लोग भी अपार्टमेंट में रहते हैं, लेकिन हममें से किसी को एक दूसरे का फ्लैट नंबर नही मालूम है।
वैसे ऐसा कई बार होता है कि हम लोग काम खत्म करने के बाद एक साथ कारोबार करते हैं। शायद आप कारोबार का मतलब ना समझ पाएं इसलिए बता देता हूं। मतलब कार में बार... यानि गाड़ी में पीना पिलाना हो जाता है। फिर सब अपनी अपनी कार में सवार हो जाते हैं और अपार्टमेंट पहुंचते पहुंचते तो भूल जाते हैं कि हम सब एक दूसरे को जानते भी हैं। एक बात और बता दूं, त्यौहार हम सब साथ मनाते हैं। कोई भी त्यौहार हो सब लोग चंदा करते हैं और अपार्टमेंट के गार्डेन एरिया में खाना सभी का एक साथ होता है। बहुत कम ऐसा होता है कि हम सब एक दूसरे के घर जाएं। ऐसा नहीं है कि कोई लडाई, झगडा है, आपस में कोई मन मुटाव भी नहीं है, बस मन ही नहीं होता कहीं जाने का। यहां एक शेर याद आ रहा है......
तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली ना हम खाली।
अब आप सोच रहे होगे कि कहां हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल और कहां श्रीवास्तव जी का अपार्टमेंट, दोनों की ये क्या तुलना है। लेकिन मेरे ख्याल से है। जैसे हम अपार्टमेंट में बाकी लोगों से मतलब नहीं ऱखते, यहां भी किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है। हम किसी के लेख पर कभी नहीं जाते, अगर चले भी गए, तो वहां एक मिनट रुक कर कमेंट नहीं देते हैं। जैसे अपार्टमेंट के लोगों ने अपने को सीमित कर लिया है, वैसे ही यहां भी लोगों ने खुद को अपने तक समेट लिया है। लेकिन एक अच्छी बात यहां भी है, जैसे हम अपार्टमेंट में त्यौहारों पर खाना साथ खाते हैं, यहां वीकली मीट में कितने लोग एक साथ जमा होते हैं। मित्रों मैं कोशिश करुंगा कि अपने अपार्टमेंट के इस रवैये को बदूलूं और आप एक कोशिश कीजिए करें कि एक दूसरे की रचनाओं का ख्याल रखें। एक कवि का नाम तो मुझे याद नहीं आ रहा, लेकिन उनकी एक लाइन जरूर याद आ रही है।
तुम भले मुझे कवि मत मानों,
पर वाह वाह की ताली दो।
तो मित्रों मुझे लगता है कि जो बात मैं कहना चाहता था, आप तक पहुंच गई होगी। वाह वाह की ताली ना भी सही गाली ही दो लेकिन मित्रों दीजिए जरूर। इससे हम सबका उत्साह बढता है और लिखने की इच्छा जागृत होती है। वैसे मैं जानता हूं कि ये बात लिखने का मुझे कोई अधिकार नहीं है, लेकिन भाई अनवर से यहीं पर इसके लिए माफी भी मांग लेता हूं।
वैसे ऐसा कई बार होता है कि हम लोग काम खत्म करने के बाद एक साथ कारोबार करते हैं। शायद आप कारोबार का मतलब ना समझ पाएं इसलिए बता देता हूं। मतलब कार में बार... यानि गाड़ी में पीना पिलाना हो जाता है। फिर सब अपनी अपनी कार में सवार हो जाते हैं और अपार्टमेंट पहुंचते पहुंचते तो भूल जाते हैं कि हम सब एक दूसरे को जानते भी हैं। एक बात और बता दूं, त्यौहार हम सब साथ मनाते हैं। कोई भी त्यौहार हो सब लोग चंदा करते हैं और अपार्टमेंट के गार्डेन एरिया में खाना सभी का एक साथ होता है। बहुत कम ऐसा होता है कि हम सब एक दूसरे के घर जाएं। ऐसा नहीं है कि कोई लडाई, झगडा है, आपस में कोई मन मुटाव भी नहीं है, बस मन ही नहीं होता कहीं जाने का। यहां एक शेर याद आ रहा है......
तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली ना हम खाली।
अब आप सोच रहे होगे कि कहां हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल और कहां श्रीवास्तव जी का अपार्टमेंट, दोनों की ये क्या तुलना है। लेकिन मेरे ख्याल से है। जैसे हम अपार्टमेंट में बाकी लोगों से मतलब नहीं ऱखते, यहां भी किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है। हम किसी के लेख पर कभी नहीं जाते, अगर चले भी गए, तो वहां एक मिनट रुक कर कमेंट नहीं देते हैं। जैसे अपार्टमेंट के लोगों ने अपने को सीमित कर लिया है, वैसे ही यहां भी लोगों ने खुद को अपने तक समेट लिया है। लेकिन एक अच्छी बात यहां भी है, जैसे हम अपार्टमेंट में त्यौहारों पर खाना साथ खाते हैं, यहां वीकली मीट में कितने लोग एक साथ जमा होते हैं। मित्रों मैं कोशिश करुंगा कि अपने अपार्टमेंट के इस रवैये को बदूलूं और आप एक कोशिश कीजिए करें कि एक दूसरे की रचनाओं का ख्याल रखें। एक कवि का नाम तो मुझे याद नहीं आ रहा, लेकिन उनकी एक लाइन जरूर याद आ रही है।
तुम भले मुझे कवि मत मानों,
पर वाह वाह की ताली दो।
तो मित्रों मुझे लगता है कि जो बात मैं कहना चाहता था, आप तक पहुंच गई होगी। वाह वाह की ताली ना भी सही गाली ही दो लेकिन मित्रों दीजिए जरूर। इससे हम सबका उत्साह बढता है और लिखने की इच्छा जागृत होती है। वैसे मैं जानता हूं कि ये बात लिखने का मुझे कोई अधिकार नहीं है, लेकिन भाई अनवर से यहीं पर इसके लिए माफी भी मांग लेता हूं।
7 comments:
इससे हम सबका उत्साह बढता है और लिखने की इच्छा जागृत होती है।
बहुत सुन्दर ||
बधाई ||
तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली ना हम खाली।
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मतभेद तो चलते रहते हैं मगर मनबेद नहीं होने चाहिएँ!
आपका शुक्रिया कि आपने फ़ोरम के लिए कुछ सोचा तो सही
जनाब महेंद्र श्रीवास्तव जी ! आप हमारे बड़े भाई हैं और आपका आकलन सही है। आपके द्वारा माफ़ी मांगे जाने के शब्द क़तई दुरूस्त नहीं हैं। इस अजनबियत को तोड़ने के लिए हमने काफ़ी प्रयास किए और ईमेल द्वारा भी संबोधित करके सदस्यों का ध्यान इस तरफ़ दिलाया लेकिन कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा तो हमने ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ के ज़रिये इस ख़ामोशी और ख़ुदपसंदी को तोड़ने की कोशिश की है और अब तक आयोजित दोनों ही मीट को लोगों ने इतना ज़्यादा पसंद किया है कि वे पहले दिन ही ब्लॉग की लोकप्रिय पोस्ट्स में शामिल हो गई हैं। इसी मीट की बदौलत कुछ नए ब्लॉगर इस फ़ोरम से लेखक और फ़ोलोअर के रूप में भी जुड़े हैं।
इस ब्लॉग के सभी सदस्य किसी एक वजह से ख़ामोश तमाशाई नहीं बने हैं बल्कि उन सभी की वजहें अलग-अलग हैं। अक्सर तो ऐसे हैं कि वे बहुत से ब्लॉग्स से जुड़े हुए हैं और कुछ तो ख़ुद भी कई साझा ब्लॉग चला रहे हैं।
इनमें जो नौजवान ब्लॉगर हैं उनकी जवानी को शर्मिन्दा करने वाले हमारे एक बुज़ुर्ग श्री रूपचंद शास्त्री जी जिस ऊर्जा के साथ ब्लॉग पढ़ते हैं और तुरंत ही टिप्पणी देते हैं, वह अद्भुत है। जहां उनकी एक टिप्पणी आ जाती है तो फिर वह एक ही टिप्पणी हमारे लिए दस के बराबर हो जाती है। उनकी टिप्पणी को यह मक़ाम उनकी विद्वत्ता, उनकी निष्पक्षता और उनकी निरभिमानता के कारण प्राप्त है।
...बल्कि मैं समझता हूं कि ‘टिप्पणियों के सौदागर‘ और ‘टिप्पणी माफ़िया‘ की टिप्पणियां न ही मिलें तो बेहतर है। जो लोग हौसला तोड़ने की नीयत से ही लेख को पढ़ने और उसे सकारात्मक पाने के बाद भी टिप्पणी नहीं देते, तो उनकी टिप्पणी पाने से बेहतर है कि लेख बिना टिप्पणी के ही रहे और वह हिंदी ब्लॉगिंग में स्नेह और प्यार की बात करने वालों को उनकी हक़ीक़त बताता रहे।
यहां केवल ब्लॉगिंग नहीं चल रही है। यहां गंदी राजनीति और गुटबाज़ी भी चल रही है। ‘हिंदी ब्लागर्स फ़ोरम इंटरनेशनल‘ अपनी पैदाइश के समय से ही इन सभी मुश्किलों से लड़ता आ रहा है और उन्हें रौंदकर अपनी फ़तह का परचम फहराता हुआ नित नई बुलंदियों की तरफ़ बढ़ रहा है।
आपका शुक्रिया कि आपने ख़याल तो किया कि फ़ोरम का हित किस बात में है ?
टिप्पणी के लेन-देन के पीछे छिपी हक़ीक़त को बेनक़ाब होता हुआ देखने के लिए हमने एक कहानी लिखी है
आप क्या जानते हैं हिंदी ब्लॉगिंग की मेंढक शैली के बारे में ? Frogs online
बहुत बढ़िया आलेख है महेंद्र जी !
वैसे आपका कहना मुझे अच्छा लगा कि ताली न सही गाली ही दो...
पर मैं आपको कोई गाली नहीं दे सकता... मैंने जहां तक संभव हुआ जीतने ब्लोगस मे गया, 1 कमेंट जरूर किया। और इसी क्रम को बरकरार हमेशा ही रखने की ठानी है... आगे आगे देखिये होता है क्या ?
तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, ना तुम खाली ना हम खाली।
bahut achcha kataksh kiya Mahendra ji.apne lekh me aapne bahut kuch sachchai bayan kar di hai.mera vichar to yah hai ki jo kavita aur saahitya,aalekh ko samajhne ka hardya rakhta ho bas uska comment hi kafi hai.jo sirf aupcharikta nibhata hai uska kya fayda.
jankari bahut kuch
आपकी पोस्ट " ब्लोगर्स मीट वीकली {३}"के मंच पर सोमबार ७/०८/११को शामिल किया गया है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
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