उत्तर प्रदेश का चन्दौली जनपद धान का कटोरा माना जाता था मगर राजनैतिक व प्रशासनिक उपेक्षा के चलते किसानों के कटोरे से धान सूख गया है। अब इसकी पहचान नक्सली जनपद के रूप में की जाती है। आखिर हो भी क्यों ना? चकिया व नौगढ़ के जंगलों में नक्सलियों के पदचाप की कोलाहल गाहे-बेगाहे सुनायी देती रही है। किसानों की बदहाली व युवाओं की बेरोजगारी के साथ संसाधनों का आभाव प्रमुख वजह है। अगर राजनैतिक परिदृष्य पर गौर फरमाये नतो चन्दौली पचास से सत्तर के दशक के बीच लोकतांत्रिक राजनीतिक चेतना का गढ़ रहा है। यहां से राजनीति की शुरूवात करने वालों ने प्रदेश की राजनीति व सरकार को जहां नेतृत्व प्रदान किया है वहीं यहां विपक्ष की राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ भी अपनी अलग पहचान रखते थें। चन्दौली से सन् 1952 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरूवात करने वाले दो राजनीतिक दिग्गज त्रिभुवन नारायण सिंह व पं0 कमलापति त्रिपाठी ने उत्तर प्रदेष सरकार की बागडोर सम्भाली। समाजवादी आनदोलन के जनक डा0 राममनोहर लोहिया ने सन् 1957 में चन्दौली से चुनाव लड़े व हार गये बावजूद इसके वे क्षेत्र से अपना सम्बंध बनाए रखे।
वैस तो जनपद में चार विधानसभा सीटें हैं मगर परिसीमन के बाद धानापुर व चन्दौली सदर दो विधानसभा सीटों का वजूद समाप्त हो गया है जिसके बाद सैयदराजा व सकलडीहा दो नये विधानसभा सृजित हुए। अब चकिया सुरक्षित के अलावा मुगलसराय, सैयदराजा व सकलडीहा जनपद की चार विधानसभा सीटें हैं। चुनाव की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है सूबे में तमाम सियासी पार्टियों का चुनावी अभियान जोर पकड़ता जा रहा है। आज पांच दषक बीतने के बाद नये परिसीमन के साथ जनपद की राजनीति भी बदली सी गयी है। तभी तो सैयदराजा विधानसभा में 2012 में होने जा रहे चुनाव में जहां एक तरफ कानून का रखवाला चुनाव लड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ कानून तोड़ने वाला भी चुनावी समर में ताल ठोंकता नजर आ रहा है।
सत्ता की हनक, विधायक की ठाट बाट और रूतबे को देखकर आज राजा से रंक तक को राजनीति का चस्का लग गया है। फिर जरायम जगत के चर्चित चेहरे सियासत का ताज पहनने से पीछे क्यों रहें? षायद यही वजह है कि जरायम की कालिख को सियासी लिबास में सफेद करने के लिए माफिया डान बृजेश सिंह भी सलाखों के पीछे से विधानसभा पहुंचने की जुगत में है। तभी तो वह चन्दौली के सैयदराजा विधानसभा सीट से प्रगतिषील मानव समाज पार्टी से चुनाव लड़ रहा है। डान के सामने पूर्व डिप्टी एसपी शैलेन्द्र सिंह भी कांग्रेस पर्टी से चुनाव लड़ रहें हैं। विदित हो कि शैलेन्द्र सिंह ने सपा सरकार में एक माफिया का एलएमजी पकड़े जाने वाले मामले में नौकरी छोड़ दी थी। लोगों में यह चर्चा आम है कि यहां मुकाबला कानून का रखवाला बनाम कानून तोड़ने वाले के बीच है। इसके अलावा सपा, बासपा, भाजपा व निर्दल उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में हैं।
सैयदराजा विधानसभा में जातिगत आंकड़े पर गौर फरमाये तो यहां तकरीबन साठ हजार अनुसूचित जाति/जन जाति, पैतालिस हजार यादव, चालीस हजार राजपूत/भूमिहार, पच्चीस हजार मुसलमान, पच्चीस हजार बिन्द/मल्लाह, पन्द्र हजार ब्राहमण समेत अन्य बिरादरी के मतदाता हैं। ऐसे में वर्तमान पूर्व मंत्री व सदर बसपा विधायक शारदा प्रसाद को अपने कैडर वोट व ब्राहमण मतदाताओ का सहारा है तो सपा के रमाशंकर सिंह हिरन को परम्परागत मुस्लिम-यादव गठजोड, कांग्रेस को राहुल के जादू व शैलेन्द्र सिंह का साफ ईमानदार छवि तो भाजपा के हरेन्द्र राय का हंगाई व भ्रश्टाचार मुददा है। सपा के बागी व निर्दल उम्मीदवार मनोज कुमार सिंह डब्लू को यादव/मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन व स्थानीय प्रतिनिधि व क्षेत्र की बदहाली के मुददे का सहारा, बृजेश सिंह को स्वजातीय मतों के अलावा बिन्द/मल्लाह के समर्थन से चुनावी नैया पार लगाने की जुगत में है। स्वाजातीय उम्मीदवारों से घिरे माफिया डान बृजेश सिंह का सियासी सफर आसान नहीं लग रहा है। इसके साथ भतीजे व धानापुर से बसपा विधायक सुशील सिंह की कारकरदगी का भी सामना इनको करना पड़ सकता है। सूत्रों की मानें तो डान का चुनवी कमान उनका साल, पत्नि व खास लोगों के कंधों पर है। इनके लोग कहीं जाति तो कहीं जान बचाने के नाम पर वोट मांग रहे हैं।
एक तरफ जहां क्षेत्र में बिलजी, पानी, सड़क व स्वास्थ सेवाओं की बदहाली तो दूसरी तरफ गंगा कटान में समाती किसानों के मकान व कास्त की जमीने भी चुनाव के प्रमुख मुददें होंगे। बदहाल किसान, बेरोजगार युवा, बदहाल षिक्षा व्यवस्था भी नेताओं के सामने होगा। पांच साल तक उपेक्षित जनता बदलाव के मूड में है। सियासी जानकारों की मानें तो ऐसे में जबर्दस्त सियासी घमास की उम्मीद है। कडाके की ठण्ड में भी सैयदराजा में सियासी पारा गर्म है। चैराहों-चैपालों में जितनी मुंह उतनी बातों का सिलसिला जारी है। आटकलों और आकलनों बाजार गर्म है। सियासी दंगल में उंट किस करवट बैठेगा लोगों में कयासों का दौर जारी है।
एम. अफसर खान सागर