श्रम
दिवस के उपलक्ष्य में विशेष
सड़क
मार्ग से सफर करो तो कई बार ट्रक्स के पीछे बड़ी शानदार शायरी पढ़ने के लिये मिल
जाती है ! ऐसे ही एक सफर में -‘पढ़ी लिखी लड़की, रोशनी घर की’ के जवाब में एक मज़ेदार
सा शेर पढ़ने को मिला ! ज़रा आप भी मुलाहिज़ा फरमाइये ‘पढ़ी लिखी लड़की, न खेत की न घर
की !’
उस
समय तो इस शेर के रचयिता के मसखरेपन का मज़ा लेकर हँस दिये और फिर उसे भूल भी गये लेकिन
चंद रोज़ पहले चौका बर्तन का काम करने वाली एक अशिक्षित महिला की बातों ने...
ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना
मेरी बर्बादियों का गम न करना.तुम अपनी आंख हरगिज़ नम न करना.
हमेशा एक हो फितरत तुम्हारीकभी शोला कभी शबनम न करना.
कई तूफ़ान रस्ते में मिलेंगेतुम अपने हौसले मद्धम न करना.
जो आया है उसे जाना ही होगाकिसी की मौत का मातम न करना.
ये मेला है फकत दो चार दिन कायहां रिश्ता कोई कायम न करना.
हरेक जर्रे में एक सूरज है गौतमकिसी का कद कभी भी कम न करना.
----देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना:
'via Blog th...
Subscribe to:
Posts (Atom)