
अफजल- कसाब से कई , ठूंसे हमने जेल ।
फाँसी लटकाए नहीं , देश रहा है झेल ।। देश रहा है झेल , किया खर्च करोड़ों में । पारा बनकर बैठ , ये गए हैं जोड़ों में ।। कहे विर्क कविराय , मिले ऐसा इनको फल । ...
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