कहने को तो साँसें चलतीं हैं यात्रा-क्रम भी प्रतिपल बढ़ता जाता है।मैंने तो देखा सौ बर्षों में मुश्किल से कोई एक दिवस जी पाता है।।
अचानक आज अपने जिन्दगी के दिनों का मोटे तौर पर हिसाब करने लगा। कहते हैं कि साहित्य वैयक्तिक अनुभूति की निर्वैयक्तिक प्रस्तुति है और आज उसी व्यक्तिगत अनुभव को आप सब के बीच बाँटने की कोशिश कर रहा हूँ। एक इन्सान अमूमन लगभग सत्तर साल जीता है और साल के तीन सौ पैंसठ दिन के हिसाब से लगभग चौबीस हजार दिनों...
सेवा है साहित्य सुमन व्यापार नहीं
लेखन में प्रतिबंध मुझे स्वीकार नहींप्रायोजित रचना से कोई प्यार नहींबच के रहना साहित्यिक दुकानों सेजी कर लिखता हूँ कोई बीमार नहींमठाधीश की आज यहाँ बन आई हैकितने डर से करते हैं तकरार नहींधन प्रभाव के बल पर उनकी धूम मचीकोई जिनको साहित्यक आधार नहींरचना में ना दम आती विज्ञापन सेऐसे जो हैं लिखने का अधिकार नहींउठे कलम जब दिल में मस्ती आ जाएखुशबू रचना में होगी इनकार नहींखुशबू होगी तो मधुकर भी आयेंगेसेवा है साहित्य सुमन व्यापार नह...
...तब आपकी रूह आपकी सही रहनुमाई करेगी
अगर ग़लत बात को आप चंद संजीदा लोग मिलकर ग़लत कह दें तो ग़लत आदमी का हौसला टूट जायेगा.
सच को सच कहना जितना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी है ग़लत को ग़लत कहना.
जो आदमी किसी से भी बुरा नहीं बनना चाहता वह सच का साथ क्या दे पायेगा ?
इंसाफ करो और ज़ुल्म को बुरा समझो और ज़ालिम की मुखालिफ़त करो.
बुरों को समझाओ और ना मानें तो दुत्कारो.
खुद बुरा करो तो अपने आप को भी मलामत करो तब आपकी रूह आपकी सही रहनुमाई करेगी.
हिंदी...
रहस्य-रोमांच: कहानी अतृप्त आत्माओं की-1
रहस्य-रोमांच: कहानी अतृप्त आत्माओं की-1:
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ग़ज़लगंगा.dg: जाने किस-किस की आस होता है
जाने किस-किस की आस होता है.जिसका चेहरा उदास होता है.
उसकी उरियानगी पे मत जाओअपना-अपना लिबास होता है.
एक पत्ते के टूट जाने परपेड़ कितना उदास होता है.अपनी तारीफ़ जो नहीं करताकुछ न कुछ उसमें खास होता है.
खुश्क होठों के सामने अक्सरएक खाली गिलास होता है.
हम खुलेआम कह नहीं सकतेबंद कमरे में रास होता है.
वो कभी सामने नहीं आताहर घडी आसपास होता है.
----देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: जाने किस-किस की आस होता है:
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