त्यौहारों की बुनियाद

भारत त्यौहारों का देश है और हरेक त्यौहार की बुनियाद में आपसी प्यार, सद्भावना और सामाजिक सहयोग की भावना ज़रूर मिलेगी। बाद में लोग अपने पैसे का प्रदर्शन शुरू कर देते हैं तो त्यौहार की असल तालीम और उसका असल जज़्बा दब जाता है और आडंबर प्रधान हो जाता है। इसके बावजूद भी ज्ञानियों की नज़र से हक़ीक़त कभी पोशीदा नहीं हो सकती।
ब्लॉगिंग के माध्यम से हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि मनोरंजन के साथ साथ हक़ीक़त आम लोगों के सामने भी आती रहे ताकि हरेक समुदाय के अच्छे लोग एक साथ और एक राय हो जाएं उन बातों पर जो सभी के दरम्यान साझा हैं।
इसी के बल पर हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं और इसके लिए हमें किसी से कोई भी युद्ध नहीं करना है। आज भारत हो या विश्व, उसकी बेहतरी किसी युद्ध में नहीं है बल्कि बौद्धिक रूप से जागरूक होने में है।
हमारी शांति, हमारा विकास और हमारी सुरक्षा आपस में एक दूसरे पर शक करने में नहीं है बल्कि एक दूसरे पर विश्वास करने में है।
राखी का त्यौहार भाई के प्रति बहन के इसी विश्वास को दर्शाता है।
भाई को भी अपनी बहन पर विश्वास होता है कि वह भी अपने भाई के विश्वास को भंग करने वाला कोई काम नहीं करेगी।
यह विश्वास ही हमारी पूंजी है।
यही विश्वास इंसान को इंसान से और इंसान को ख़ुदा से, ईश्वर से जोड़ता है।
जो तोड़ता है वह शैतान है। यही उसकी पहचान है। त्यौहारों के रूप को विकृत करना भी इसी का काम है। शैतान दिमाग़ लोग त्यौहारों को आडंबर में इसीलिए बदल देते हैं ताकि सभी लोग आपस में ढंग से जुड़ न पाएं क्योंकि जिस दिन ऐसा हो जाएगा, उसी दिन ज़मीन से शैतानियत का राज ख़त्म हो जाएगा।
इसी शैतान से बहनों को ख़तरा होता है और ये राक्षस और शैतान अपने विचार और कर्म से होते हैं लेकिन शक्ल-सूरत से इंसान ही होते हैं।
राखी का त्यौहार हमें याद दिलाता है कि हमारे दरम्यान ऐसे शैतान भी मौजूद हैं जिनसे हमारी बहनों की मर्यादा को ख़तरा है।
बहनों के लिए एक सुरक्षित समाज का निर्माण ही हम सब भाईयों की असल ज़िम्मेदारी है, हम सभी भाईयों की, हम चाहे किसी भी वर्ग से क्यों न हों ?
हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा हमें यही याद दिलाता है।
देखिये
हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा और राखी का मर्म

रक्षाबंधन के पर्व पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं...
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हमें अपनी फ़िक्र करनी चाहिए


आखि़र कोई बाप ऐसा लापरवाह कैसे हो सकता है ?
रचना जी का ऐतराज़ वाजिब है . देखिये लिंक -
http://mypoeticresponse.blogspot.com/2011/08/blog-post_9052.html

ऐसे लोग हमारे चारों तरफ़ हैं जो कि दूसरे लोगों को बताते रहते हैं ग़लत क्या है ?
और ख़ुद उसी ग़लत पर चलते रहते हैं .
दूसरों की बेपर्दा लड़कियों को तकते हैं और उनके बदन के एक एक अंग का नाप ऐसे लेडीज़ टेलर की तरह निगाहों से ही ले लेते हैं।
...लेकिन अपनी बहन-बेटियों को अपने ही जैसी गंदी निगाहों से बचाने के लिए हिजाब ज़रूरी नहीं मानते।

दरअसल इन लोगों के पास कोई साफ़ गाइडेंस ही नहीं है कि औरत अपने शरीर का कितना भाग ढके और क्यों ढके ?
इसीलिए वे मन की मर्ज़ी कुछ भी पहन रहे हैं .
...लेकिन दुख की बात तो यह है कि आज मुसलमान भी इसी रास्ते पर है.
मुसलमान के पास तो साफ़ हिदायत मौजूद है ,
फिर वह गुमराही के रास्ते पर क्यों गामज़न है ?
हमें अपनी फ़िक्र करनी चाहिए .
...क्योंकि आखि़रत में अल्लाह हमसे दूसरों के नहीं बल्कि हमारे आमाल के बारे में सवाल करेगा और नाफ़रमानी का अंजाम आग का गड्ढा होगा .

देख लीजिये - सूरए यूनुस – चौथा रूकू

तुम फ़रमाओ कि अल्लाह हक़ की राह दिखाता है, तो क्या जो हक़ की राह दिखाए उसके हुक्म पर चलना चाहिये या उसके जो ख़ुद ही राह न पाए जब तक राह न दिखाया जाए (13)
तो तुम्हें क्या हुआ कैसा हुक्म लगाते हो {35} और(14)
उनमें अक्सर तो नहीं चलते मगर गुमान पर (15)
बेशक गुमान हक़ का कुछ काम नहीं देता, बेशक अल्लाह उनके कामों को जानता है {36}
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ऐ मुसलमानों , इस्लाम को पूरा इख्तियार करो ताकि सुधार मुकम्मल हो


लड़कियों को जिंदा दफ़्न कर देना अरबों में आम था . आज वहां इस रस्म का नामलेवा एक भी नहीं हैं जबकि भारत में लड़कियों को मार डालने का चलन अभी खत्म नहीं हुआ है और अगर खत्म हुआ भी है सिर्फ मुसलमानों से . भारत के मुसलमानों ने अपनी ज़िंदगी के जितने हिस्से में इस्लाम को ले लिया है उतना हिस्सा सुधर गया है, बाक़ी में फ़िसाद आज भी है।
ऐ मुसलमानों , इस्लाम को पूरा इख्तियार करो ताकि सुधार मुकम्मल हो।
कुछ बातों पर सबसे पहले ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि इनका ताल्लुक़ समाज की शांति से और लोगों के हुक़ूक़ से है।  

1. लड़कियों को जीवित गाड़ देने और उन्हे मार डालने से रोकना।[5]
2. हर प्रकार के अश्लील और बुरे कार्यों से मुक़ाबला।[6]
3. क़त्ल और लोगों के माल को लूटना और बिना कारण के रक्तपात करने का मुक़ाबला।[7]
4. औरतों के बारे में ग़लत विश्वासों और विचारों से मुक़ाबला।[8]

पूरा मज़्मून यहां देखा जा सकता है 
इस्लाम की महान शिक्षा के कुछ नमूने 
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तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: हिंसा की परिभाषा क्या है ?

तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: हिंसा की परिभाषा क्या है ?: " आज हिंसा का परिभाषा क्या व्यक्त करें. आज व्यक्ति का भौतिक वास्तुनों के मोह में फंसकर इतना निर्दयी हो गया है कि-कदम-कदम पर झूठ बोलना, धोख..."
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लोकपाल बिल पर ना समझों का हंगामा .............


जी हाँ दोस्तों लोकपाल बिल पर अन्ना जेसे लोग और उनके समर्थकों का भरी हंगामा , भरी दबाव, भारी आन्दोलन जेसे किया जा रहा है उससे ऐसा लगता है जेसे अगर अन्ना का लोकपाल आ गया तो देश में राम राज आ जाएगा ..हर भूखे को रोटी , हर नंगे को कपड़ा और पीड़ित को न्याय मिल जाएगा ..लेकिन दोस्तों ऐसा कुछ भी नहीं है ..लोकपाल केवल सरकार की तनख्वाह और भत्ते प्राप्त करने वाला ऐसी कठपुतली होगा जो न तो किसी को सज़ा दे सकेगा और ना ही किसी के बारे में कुछ कह सकेगा .कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा का हमारे सामने प्रमुख उदाहरण हैं ...अभी लोकपाल के अन्ना और सरकार की लड़ाई में देश के अरबों रूपये के भ्रष्टाचार ,,घोटाले ..बढ़ी हुई कीमतों के हंगामे महंगाई के मुद्दे दफ़न हो गए हैं इन दिनों अन्ना की लड़ाई की आड़ में सरकार ने घोटालों से पर्दा उठने के बाद भी मजे किये हैं ..महंगाई निरंतर बड़ाई है ...और जनता को गुमराह करने के अलावा कोई दुसरा काम नहीं हो सका है ........अब दोस्तों लोकपाल और लोकपाल आंदलन टीम की नासमझी देखो इसमें बड़े बड़े सुप्रीमकोर्ट के वकील , चिन्तक, विचारक और समाजसेवक है लेकिन लोकपाल की जिद पर अड़े हैं जो जनता के लियें ठेंगे के समान ही होगा .चाहे लोकपाल बिल कितना ही मजबूत हो ...दोस्तों अगर अन्ना की टीम वास्तव में जनता को इन्साफ दिलाना चाहती ..भ्रष्टों को सज़ा दिलवाना चाहती तो वोह यह ना समझी का खेल नहीं करती हमारे देश में हर अपराध की सजा का प्रावधान है बस प्रभावशाली लोगों को अपराध करने के बाद भी सजा से बचाने के लियें अंग्रेजों के बनाये गए कानून के बेरियर हैं उन बेरियारों को हटा दो और देश की जनता को इन्साफ मिल जायेगा हमारे देश में सभी लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने के लियें एक कानून है बस फर्क इतना है के दंड प्रक्रिया संहिता में १९७ जोड़ दी गयी है जिसमे पाबंदी है के चोर बेईमान और भ्रष्ट कर्मचारी या अधिकारी को दंडित करवाने के लियें सरकार की स्वीक्रति की आवश्यकता है और सरकार चोर मंत्रियों ,सांसदों, अधिकारीयों , प्रधानमन्त्रियों के खिलाफ मुक़दमे की इजाज़त नहीं देती हैं नतीजन भ्रष्टाचार आज चरम सीमा पर है अगर किसी भी लोकसेवक के खिलाफ चाहे मंत्री हो चाहे प्रधानमन्त्री चाहे कर्मचारी हो चाहे संतरी भारतीय कानून के तहत मुकदमा चलाने के मामले में जो पूर्व स्वीक्रति के प्रावधान हैं वोह खत्म कर दिए जाए और आम आदमी को किसी भी मंत्री संतरी के खिलाफ मुकदमा करने का अधिकार मिल जाए तो देश से भ्रस्टाचार खुद बा खुद खत्म हो जाएगा और सभी लोग भ्रस्टाचार करने से डरेंगे आम जनता को राहत भी मिलेगी और आज़ादी के साथ दोषी लोगों को सजा दिलवाने का अधिकार भी मिलेगा ....ऐसे ही कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट का प्रावधान खत्म कर दिया जाए तो न्याय विभाग भी ईमानदार हो जायेगी और जनता के प्रति जवाबदार हो जायेगी जनता को त्वरित ,सस्ता, सुलभ और जवाबदारी वाला न्याय मिल सकेगा लेकिन कोई अन्ना कोई बाबा रामदेव इस तरफ ना तो ध्यान देगा और ना ही इस बात को लागू करवाना चाहेगा क्योंकि इससे आम जनता को अधिकार और न्याय मिल रहा है हंगामा करके मीडिया का रुख बदलना जनता की सोच महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दों से हटाना नहीं है .......अप और हम सभी जानते हैं के आज तक हमारे देश में जितने भी फर्जी एन्काउंतर हुए हैं किसी मानवाधिकार आयोग ने नहीं खोले सुप्रीमकोर्ट ने ही इसमें कार्यवाही करवाई है ..जितने भी भ्रष्टाचार हुए है किसी ने भी इस मामले में कोई सबूत या शिकायत पेश नहीं की जो भी किया सुप्रीम कोर्ट के बाद किया गया है तो जनाब देश में कोर्ट की सक्रियता आज भी है ..देश के अगर सभी अयोगों के अरबों रूपये के खर्च को खत्म कर न्यायालय खोलने में लगाया जाय और मंत्री संतरी को दंड दिलवाने के लियें सभी पूर्व स्वीक्रति की बाधाएं दूर कर भ्रष्ट और अपराधियों को ना छोटा ना बड़ा के सिद्धांत पर एक आम आदमी की तर्ज़ पर मुकदमा दर्ज करवा कर सजा के प्रावधान कर दिए जाए तो जनता को खुद बा खुद न्याय मिल जाएगा और बेईमानी..भ्रष्टाचार .न्याय की खरीदफरोख्त पर अंकुश लग सकेगा क्या अन्ना जी क्या बाबा रामदेव जी क्या केजरीवाल जी क्या अग्निवेश जी यह सब कर सकेंगे ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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कोटा की ऐसी ही है पत्रकारिता ...


दोस्तों में आपको राजस्थान राज्य के कोटा शहर की पत्रकारिता की कुछ बानगी दिखाना चाहूँगा .दलित , शोषित और उत्पीडित लोगों की कहानी लिखने का दावा करने वाले पत्रकारिता से जुड़े लोग केसे छोटे पुलिस अधिकारीयों के आगे नत मस्तक हो जाते हैं और खबरों को चबा डालते हैं इसका एक उदाहरण नहीं अनेक उदाहरण है लेकिन एक उदाहरण ताज़ा है जो आपके सामने रखना जरूरी हो गया है ...कोटा में ठेके पार नो पार्किंग के वाहन उठाने का काम हो रहा है यहाँ कथित रूप से प्रतिदिन सो से भी अधिक वाहन ठेकेदार उठाता है जिसमे तीन सो रूपये प्रति वाहन से लिए जाते हैं और दो सो ठेकदार को सो रूपये सरकार को मिलते हैं बस कमाई के लालच में ठेकेदार सही जगह खड़े वाहनों को भी उठाकर ले जाते हैं और फिर चोथ वसूली करते हैं ..हाल ही में एक लडका अनवर सिटी मोल के बाहर खड़ा था उसकी दुपहिया वाहन जब उसी के सामने पार्किंग में खड़े होने के बाद भी लेजाया जाने लगा तो उसने एतराज़ जताया बस फिर क्या था पुलिस अधिकारी उसे विज्ञाननगर थाने ले गए मारा पीटा और सरकारी कर्मचारी पार हाथ उठाने का मुकदमा लगाकर उसे पुलिस लोक अप में डाल दिया ...दुसरे दिन अनवर की जमानत हुई उसने चोटों का परीक्षण करवाया और फिर अदालत में सभी पुलिस अधिकारीयों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ परिवाद पेश किया अदालत ने मामला गंभीरता से लिया और सभी पुलिस अधिकारियों , पुलिस जवानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दे दिए .... सभी कोटा के अख़बारों के अदालत बीट वाले पत्रकार हैं जो अदालत की खबरों की पत्रकारिता करते हैं उन्होंने इस खबर को पहले से ही जानकारी होना कहकर छापने में असमर्थता जताई और सीधे अख़बार के दफ्तरों में जाकर बड़े सम्पादक जी को देकर आने का सुझाव दिया खेर अनवर अदालत के परिवाद को लेकर सभी कथित रूप से कहे जाने वाले बड़े व्यापारी अख़बारों के दफ्तर में पहुंचा वहां खबर दी लेकिन सम्पादक जी के फोन की घंटियाँ घन घनायीं पुलिस पत्रकारिता गठबंधन हुआ और पुलिस ज़ुल्म का किस्सा जिसके खिलाफ अदालत ने मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही का आदेश दिया था वोह खबर अख़बारों से गायब हो गयी छोटी छोटी खबरें थीं लेकिन पुलिस ज़ुल्म की कहानी और अदालत की ज़ालिम पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही की खबर सभी कोटा बड़े अख़बार बड़े सम्पादक बड़े रिपोर्टर चबा गए थे अब बताओं कोटा की इस पत्रकारिता को आप क्या कहेंगे हम तो बस खुदा से यही दुआ करते हैं के कोटा के पत्रकारों को खुदा सद्बुद्धि और इमानदारी दे ताकि जालिमों के किस्से यूँ अख़बारों की खबरों से गायब ना हों ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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एक प्रश्न

खुशियाँ आज़ादी की हर वर्ष मानते हैं,
पर हजारों गुलामी ने अब भी है घेरा;
फूल कई रंगों के हम अक्सर हैं  लगाते,
पर मन में फूलों का कहाँ है डेरा ?

नाच-गा लेते हैं, झंडे पहरा लेते हैं,
अन्दर तो रहता है मजबूरियों का बसेरा,
लोगों को देखकर मुस्कुराते हैं हरदम,
मन में होती है कटुता और दिल में अँधेरा |

सोच और मानसिकता आज़ाद नहीं जब तक,
तो क्या मतलब ऐसे आज़ादी के जश्न का,
एक दिन का उत्सव, अगले दिन फिर शुरु,
गुलामी की वही जिंदगी, बिना जवाब दिए प्रश्न का |

www.pradip13m.blogspot.com
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ये कैसी जिद्द है अन्ना दा.......




एक संवेदनशील मुद्दे को आगे रख कर आंदोलन खडा करना आसान है, पर उसे समेटना बहुत मुश्किल है, लोगों को सड़क पर लाना आसान है, वापस घर भेजना मुश्किल है, लोगों को एक बार भड़काना तो आसान है, पर भड़के लोगों को समझाना बहुत मुश्किल। देश भर से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि दिल्ली पर ऐसा दाग लगने वाला है, जिसे कई साल तक धोना मुश्किल होगा।
बिना लाग लपेट के कुछ मुद्दों पर चर्चा करना चाहता हूं। पत्रकारिता से जुड़े होने की वजह से अक्सर देश के विभिन्न इलाकों में जाने का अवसर मिलता है। मैं जहां भी जाता हूं,लोगों से एक सवाल जरूर जानने की कोशिश करता हूं कि उनकी सबसे बड़ी समस्या क्या है। जवाब एक ही है दो वक्त की रोटी अब मुश्किल से मिलती है। मंहगाई ने ये हाल कर दिया है कि सुबह खाना खाया तो रात का गायब और रात को मिला तो सुबह नहीं। पता नहीं अन्ना और उनकी टीम को मालूम है या नहीं पिछड़े इलाकों और ज्यादातर गांवो के लोग हैरान हो जाते हैं जब उन्हें ये पता चलता है कि शहरों में लोगों के घर में एक रसोई घर अलग से होती है, जहां सिर्फ खाने पीने का इंतजाम होता है। अन्ना जी आप तो गांव से जुडे हैं, आप गांव वालों की असली मुश्किलों से वाकिफ हैं। कुछ ऐसा कीजिए कि गांव वाले भी अपने घर में एक रसोई घर बनाने लगें। ये तब होगा जब उन्हें लगेगा कि हां अब दोनों वक्त खाना बनेगा।
अन्ना जी आप क्या मांग रहे हैं, जनलोकपाल। यानि एक ऐसा कानून जिसमें भ्रष्ट्राचारियों को सख्त और जल्दी सजा मिले। जनलोकपाल में आप प्रधानमंत्री और सर्वोच्च अदालत को भी शामिल करना चाहते हैं। आप अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि सरकारी लोकपाल जिसे आप सड़कों पर फूंकते फिर रहे हैं, वो भी कम नही है। जिस सिविल सोसाइटी की रहनुमाई आप कर रहे हैं, उसमें 95 फीसदी लोग स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार के भ्रष्ट्राचार से परेशान हैं। कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, डीएम और राज्य सरकारों के अफसरों ने इनकी नींद उडा रखी है। पीएमओ के भ्रष्ट्राचार से पांच फीसदी प्रभावित होते हैं और बडे लोग हैं, वो जिस तरह का काम करते हैं, उसे पूरा करने का रास्ता भी निकाल लेते हैं। अन्ना जी अगर सरकारी लोकपाल ही संसद में पास हो जाए तो देश में एक क्रांति आ जाएगी। आप अभी पांच फीसदी लोगों को छोड़ दीजिए, 95 फीसदी को इसी सरकारी लोकपाल से राहत मिल जाएगी।
मै एक उदाहरण देता हूं आपको..। सूचना के अधिकार कानून में पीएमओ समेत कई और मंत्रालयों को इससे अलग रखा गया है, तो क्या आपको लगता है कि सूचना का अधिकार कानून बेकार है। इसमें कोई ताकत नहीं है। इसकी प्रतियां आप फूंकने लगेगें। अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल को कोई जानने वाला नहीं था, आज अगर इनकी पहचान बनी है तो आरटीआई एक्टिविस्ट के नाम से जाने जाते हैं। इसी सूचना के अधिकार के तहत उन्होंने बहुत बडी लडाई लडी। अगर इसी बात को लेकर विवाद खड़ा कर दिया जाता कि आरटीआई के तहत पीएमओ और रक्षा मंत्रालय सभी को शामिल किया जाए, तो क्या होता, एक अच्छा कानून देश में लागू ना हो पाता। अभी इस पर भी विवाद बना  रहता।
भीड़ में आप कुछ भी बोलते रहें, उसका कोई मतलब नहीं है। सच ये  है कि आपका मुद्दा सही है, पर तरीका गलत है। अन्ना दा ये तो आप भी जानते  हैं देश में कोई भी कानून जंतर मंतर या रामलीला मैदान में नहीं बन सकता। इसके लिए तो संसद की ही शरण लेनी होगी। अब आपने पहले तो नेताओं को जंतर मंतर से कुत्तों की तरह खदेड़ दिया। आपने सोचा कि अब तो कानून जंतर मंतर पर ही बन जाएगा। कुछ दिन बाद आप कांग्रेसियों के झांसे में आकर उनके साथ गलबहियां करने लगे। आज आपको ये दिन न देखना पडता अगर आपने थोडा सा सूझ बूझ के साथ काम लिया होता। दादा अन्ना ये महाराष्ट्र नहीं दिल्ली है। यहां राज ठाकरे नहीं, उनके पिता जी बैठे हैं। अगर आपने  ड्राप्टिंग कमेटी के गठन के दौरान व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को अलग कर देश हित में सोचा होता तो आज ये हालत ना होती। आपको सिर्फ इतना करना था कि कमेटी में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को प्रतिनिधित्व देने की मांग करते। यहीं सबके पत्ते खुल जाते और आपको एक एक नेता दरवाजे पर मत्था टेकना नहीं पडता।
हम सब आपमें गांधी की तस्वीर देखते हैं। हमने जब देखा कि आप एक भ्रष्ट्र नेता लालू यादव के घर गए और लोकपाल पर समर्थन मांगा, जवाब में उसने पत्रकारों के सामने आपका मजाक बनाया, तो ये अच्छा नहीं लगा। अन्ना जी सच तो ये है कि हमारे देश में पर्याप्त कानून है, बशर्ते उस पर अमल हो। आप देखें कानून की वजह से ही तो ए राजा, सुरेश कलमाडी जेल में है। यहां तक की राजकुमारी की तरह जिंदगी जीने वाली कनिमोझी को भी जेल की सलाखों के पीछे जाना पडा है। बीजेपी के मुख्यमंत्री वी एस यदुरप्पा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्वाण को भ्रष्टाचार में शामिल होने की वजह से ही कुर्सी छोड़नी पडी।    
बहरहाल अब जिस तरह से आप राजनीतिक दलों की तरह लोकपाल को जोकपाल बता रहे हैं। सड़कों पर उसकी प्रतियां फूंक रहे हैं। इससे लगता है कि आप एक राजनीतिक दल की तरह काम कर रहे हैं। इस आंदोलन के पीछे विरोधी दलों का हाथ बताया जाने लगा है। मै मानता हूं कि भ्रष्टाचार गंभीर समस्या बन चुकी है। इसे खत्म होना ही चाहिए। लेकिन अन्ना दा जब हम आतंकवादियों को सजा नहीं दे पा रहे हैं तो भ्रष्टाचारियों को क्या दे पाएंगे। बहरहाल अन्ना जी, मैं जानता हूं कि आपकी बात इतनी आगे बढ चुकी है कि पीछे नहीं हटेंगे। लेकिन मैं ये भी जानता हूं कि इस बार भी आपको सिर्फ भरोसा मिलेगा और आपको ये अनशन खत्म करना ही होगा। सरकार की नीयत भी साफ नहीं है, उसकी पूरी कोशिश होगी कि यहां भीड़ को जमा ना होने दिया जाए। इसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकती है।
देश को दो दिन बाद आजादी का जश्न मनाना है। दिल्ली में सरकार की तैयारी स्वतंत्रा दिवस समारोह को कामयाब बनाने की है, आपकी अनशन को कामयाब बनाने की। आतंकवादी खतरे के मद्देनजर पहले ही दिल्ली को अलर्ट पर रखा गया है। संसद का मानसून सत्र चल रहा है, यहां कोई काम नहीं हो पा रहा। आज आपने भी इतने सियासी दलों को अपना विरोधी बना लिया है कि सरकार जनलोकपाल की बात मान भी ले तो उसे संसद में पास कराना मुश्किल होगा। महिला आरक्षण संबधी विधेयक कितने साल से लटका हुआ है। इसे सरकार पास नहीं करा पा रही है। बहरहाल मेरा तो मानना है कि अब ये तथाकथित सिविल सोसायटी भी देश की शांति व्यवस्था के लिए एक बडा खतरा है।


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इस्लाम में स्त्री का स्थान Women in Islam

नारी पर प्रतिकाल में अत्याचार हुआ है। यूनानियों ने उसे शैतान की बेटी, सुक्रात ने उसे हर प्रकार के उपद्रव की मुख्य, अफ्लातून ने बुरे लोगों की प्राण , अरस्तू ने उसे अवनति का कारण कहा है। अरब वासी लज्जा के भय से उसे ज़मीन में जीवित ही गाड़ देते थे और हमारे अपने भारत में सौ  साल पहले औरत को उस के पति के मृत्यु के बाद पति के साथ जिन्दा जला (सती कर) देते थे;  परन्तु इस्लाम ने चौदह सौ साल पहले उसे बहुत ही ऊंचा स्थान दिया , बहुत आदर-सम्मान दिया। मर्द और औरत को एक ही स्थान पर रखा, और लोगों को ज्ञान दिया कि औरत और पुरूष्य दोनों एक ही तत्व से पैदा किए गए हैं, दोनों के जीवन का कुछ लक्ष्य हैं। सब से पहला उद्देश्य यह कि मानव जाति के सिलसिले को क़ायम रखना। पवित्र कुरआन की इस आयत को धयानपुर्वक पढ़े।
” लोगो , अपने पालनहार की अवज्ञा से बचो, जिसने तुम्हें एक जात से पैदा किया और उसी से उस का जोड़ा बनाया।फिर उन दोनों में बहुत से मर्द और औरत दुनिया में फैला दिए।”
कुरआन मजीद की इस आयत में स्पष्ट रूप से बता दिया गया है कि मर्द तथा स्त्री दोनों एक ही तरह के दो जीव हैं और दोनों जीवों की रचना का उद्देश्य मानव-जाति को बढ़ाना और उसके सिलसिले को क़ायम रखना है।
इस रचना का दुसरा उद्देश्य भी बताया गया है। धयानपुर्वक से अल्लाह ताला के कथन को पढ़े। ” वही है जिसने तुमको एक जान से पैदा किया और उसी से उस का जोड़ा बनाया ताकि उसके पास सुकून हासिल करे ”
इन दोनों आयतों पर विचार करें तो मालूम होगा कि मर्द और औरत को एक ही स्थान पर रखा गया है और दोनों को एक दूसरे की ज़रूरत है।
इसलाम ही एक मात्र धर्म है जिस ने हर मानव को उस का सही स्थान दिया है जो उस के प्राकृतिक जन्म से मेल खाता है। उसे वह अधिकार दिया जो उस के शारीरिक एंव मानसिक शक्ति  के अनुसार है। औरत प्राकृतिक और शारीरिक शक्ति के अनुसार कमज़ोर है। इसी लिए जीवन के हर पराव में एक रक्षक दिया। जब बालिका हो तो बाप और बड़ा भाई उसकी एजूकेशन,खान-पान की व्यवस्था करे, उसकी हर तरह से रक्षा करे, उस से प्रेम करे, लड़का तथा लड़की में कोई अन्तर न रखे और जब बालिका बड़ी हो जाऐ तो उचित लड़के से विवाह कर दे। अब पति पर सरी ज़िमेदारी होगी कि अपनी शक्ति के अनुसार उसे अच्छे से अच्छा कपड़ा पहनाए , अच्छा खाना खिलाए और उसकी रक्षा करे, उसके साथ अच्छा व्यवहार करे और यह एहसान नहीं बल्कि पत्नी का पति पर अधिकार है यदि कोई पति अपनी पत्नी की जिमेदारी को सही ढंग से अदा नही करता तो वह अल्लाह के पास पापी होगा। जब औरत माता श्री हो जाए तो बच्चे अपने माता-पिता की आज्ञा करे और माता को पिता पर तीन दरजा ऊंचा स्थान दिया मोहम्मद स0 अ0 स0 के कथन को पढ़े :
” एक आदमी नबी स0 अ0 स0 के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल ” कौन मेरे अच्छे व्यवहार तथा खूब सेवा का ह़क़दार है ?  
तो आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ? आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारी माँ, उस ने कहाः फिर कौन ?
आप स0 अ0 स0 ने उत्तर दियाः फिर तुम्हारा बाप। ” 
(सह़ीह़ुल बुखारीः ह़दीस संखियां- 113508)
जब माता बुढ़ापे को पहुंच जाए तो बेटा जीविका का व्यवस्था करे और उसे किसी बात पर बुरा-भला न कहे और नहीं डांटे-फटकारे बल्कि उनके किसी बात पर ” हूँ ” तक न कहे । अल्लाह तआला ने मुसलमानों को इसी का आज्ञा दिया है।
” अगर तुम्हारे पास इन में से एक या यह दोनों (माता-पिता) बुढ़ापे की उम्र को पहुंच जायें तो उनको उफ़ तक न कहना और न ही उन्हें डाँटना “( सूरः इस्राः23)
एक औरत चाहे वह बेटी हो, या पत्नी या माँ हर हाल में रानी है जिसकी सेवा करना मर्द संबंधी पर अनिवार्य है और इसलाम के नियमों में कोई भी व्यक्ती संशोधन नही कर सकता है। जो इस्लाम के आज्ञानुसार जीवन गुज़ारेगा, उसे पुण्य प्राप्त होगा और जो इस्लाम के आज्ञा का उलंघन करेगा वह पापी होगा .
Source : http://ipcblogger.net/nawaz/?p=24
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हुमायूं और कर्मावती के बीच का प्रगाढ़ रिश्ता और राखी का मर्म

भारतीय नारी  का एक रूप ‘बहन‘ भी है और भारतीय पर्व और त्यौहारों की सूची में एक त्यौहार का नाम ‘रक्षा बंधन‘ भी है। जहां होली का हुड़दंग और दीवाली पर पटाख़ों का शोर शराबा लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है और उनके पीछे की मूल भावना दब जाती है वहीं रक्षा बंधन का त्यौहार आज भी दिलों को सुकून देता है। यह त्यौहार मुझे सदा से ही प्यारा लगता आया है।
यह पर्व भाई-बहन के बीच पवित्र स्नेह का द्योतक भी है। बहन भाई की कलाई पर रेशम की डोरी यानी राखी बांधती है आरती उतार कर भाई के माथे पर टीका लगाती है तथा सुख एवं समृद्धि हेतु नारियल एवं रूमाल भाई को भेंट स्वरूप देती है। भाई भी बहन की रक्षा के संकल्प को दोहराते हुए भेंट स्वरूप कुछ रुपये अथवा वस्तुएं प्रदान करता है।
इतिहास में एक अध्याय कर्मावती व हुमायूं के बीच प्रगाढ़ रिश्ते और राखी की लाज से जुड़ा है। कर्मावती ने हुमायूं को पत्र भेज कर सहायता मांगी थी। बादशाह हुमायूं ने राखी की लाज निभाते हुए अपनी राजपूत बहन कर्मावती की मदद की थी। अतः रक्षाबंधन हमारे लिए विजय कामना का भी पर्व है।

हमें कर्मावती और हुमायूं की वह ऐतिहासिक घटना सदैव याद रखनी चाहिए कि पवित्र रिश्ते मजहब के फ़र्क़ के बावजूद भी बनाए जा सकते हैं।पवित्र रिश्तों का सम्मान करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य भी है। 
आओ और पेड़ों को राखी बांधो और उनके रक्षार्थ सामूहिक प्रयास करो। शायद यह प्रयास वृ़क्षों की अनावश्यक कटाई की रोकथाम में कारगर सिद्ध हो जाए। 
इस त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा भी बताई जाती है, जो इस प्रकार है : 
उस दिन श्रावणमास शुक्ल की चतुर्थी थी। दूसरे दिन प्रातः इंद्र देवता की पत्नी ने गुरू बृहस्पति की आज्ञा से यज्ञ किया और यज्ञ की समाप्ति पर इंद्र की दाई कलाई पर ‘रक्षा‘-सूत्रा’ बांधा। तत्पश्चात देव-दानव युद्ध में देवताओं को जीत की प्राप्ति हुई। कहा जाता है तभी से श्रावणी की पूर्णिमा को रक्षाबंधन पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
प्राचीन काल में शिष्य अपने गुरूओं के हाथ में सूत का धागा बांधकर उनसे आशीष प्राप्त करते थे। ब्राह्मण भी हाथ में सूत का धागा बांध कर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। रक्षाबंधन भले ही हिंदुओं का पावन पर्व है किंतु दूसरे धर्म के अनुयायियों ने भी स्वेच्छा से रक्षा बंधन पर्व में अपनी आस्था व्यक्त की है।
समयानुसार सभी पर्व प्रभावित हुए हैं। रक्षाबंधन भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाया। रेशम की डोरी की जगह फैंसी राखियां चलन में आ गई। हमारी अर्थव्यवस्था में रक्षाबंधन पर्व के महत्त्वपूर्ण योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। करोड़ों रूपयों का कारोबार लाखों परिवारों को आजीविका प्रदान कर रहा है।
ज्वैलरी मार्केट में भी रक्षाबंधन के दौरान उछाल आ जाता है। मिठाइयां, ड्रायफ्रुटस्, चाॅकलेटस की भी अच्छी खासी बिक्री होती है। डाक विभाग और कूरियर कारोबारी भी रक्षाबंधन के दौरान विशेष सेवाएं प्रदान करते हैं। रक्षा बंधन के पर्व को कुछ लोगों ने अपनी हरकतों से नुक्सान भी पहुंचाया है। पश्चिमी सभ्यता से रेशम की डोरी भी प्रभावित हुई है। फ्रैण्डशिप डे’ के दिन स्कूल और कालेज के विद्यार्थी एक-दूसरे की कलाइयों में फ्रैण्डशिप बेल्ट बांधते हैं नये दोस्त बनाने के लिए लड़के उन लड़कियों को भी बेल्ट बांधने से नही चूकते जिनसे जान थी और न ही पहचान।
रक्षाबंधन को भी कान्वेंट स्कूलों ने उसी तर्ज पर मनाने की परंपरा स्थापित कर नुक्सान ही पहुंचाया है। माना कि खून के रिश्ते से भी ज्यादा मायने मानवीय रिश्तों में छुपे हैं। मुंहबोली बहन अथवा भाई बनाने का फैशन ही भाई-बहन के पवित्रा रिश्ते को संदेहास्पद बनाता है। बहनों और भाइयों दोनों को रिश्तों की नाजुकता को ध्यान में रखना चाहिए। नई पीढ़ी को शायद यह नहीं पता कि भावनाओं का अनादर एवं विश्वास के साथ घात अशोभनीय है।
भैया और बहन के पावन रिश्ते को बांधने वाली रेशम की डोर का रंग और ढंग भी बदलते दौर में बदल गया है। अब इस रेशम की डोर पर फैशन का रंग चढ़ गया है। कारोबारी इस प्रेम के पर्व को अपने तरीके से कैश कर रहे हैं। बाजार में सोने और चांदी से जड़ी राखी उतारकर बहनों को आकर्षित किया जा रहा है। इसकी कीमत भी काफी हाई-फाई है। दूसरी तरफ बहनें भी अपने भैया के लिए महंगी राखी खरीदने को तवज्जो दे रही हैं। सोना-चांदी से जडि़त राखी के स्वर्णकारों के पास स्पेशल आर्डर भी आ रहे हैं। बाजार में 20 हजार रुपए कीमत वाली राखी आ गई है। बदलते दौर में स्वर्णकारों को भी भाई बहन के प्यार के पर्व पर चांदी कूटने का मौका मिल गया है। आशा शर्मा, मीना धीमान, पूजा राणा, मंजू कविता, आमना और रेखा धीमान का कहना है कि भाई की कलाई को सजाने के लिए हजारों रुपए भी कम पड़ जाते हैं।
धर्मशाला के वर्मा ज्यूलर शाप के मालिक राजेश वर्मा का कहना है कि इस राखी के पर्व पर सोने चांदी से जडि़त राखियों के अलावा मोती जडि़त राखी के आर्डर भी आ रहे हैं। सोने और चांदी से जडि़त राखी के आर्डर धर्मशाला ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में बुक किए जा रहे हैं। सोने का भाव आसमान पर है, बावजूद इसके बहनें अपने भाई की कलाई को सजाने के लिए इसकी परवाह नहीं कर रही हैं।

ब्रह्माकुमारी दादी हृदयमोहिनी कहती हैं कि
हम हर वर्ष रक्षाबंधन का पर्व मनाते हैं। हर बार हमें समझाया जाता है कि बहन, भाई को इसलिए राखी बांधती है कि वह उसकी रक्षा करेगा। लेकिन यदि बहन राखी नहीं बांधेगी, तो क्या भाई उसकी रक्षा नहीं करेगा? हिंदुओं को छोड़कर बाकी किसी संस्कृति -बौद्ध, क्रिश्चियन, मुस्लिम आदि संप्रदायों में राखी नहीं बांधी जाती, परंतु भाइयों द्वारा अपनी लौकिक बहनों की रक्षा तो वहां भी की जाती है। ऐसे कर्त्तव्य बोध के लिए कोई और त्योहार क्यों नहीं मनाया जाता? यदि कोई कहे कि यह त्योहार भाई-बहन के बीच प्रेम बढ़ने का प्रतीक है, तो भी प्रश्न उठता है कि क्या राखी न बांधी जाए तो बहन-भाई का प्रेम समाप्त हो जाएगा?
भाई-बहन को सहोदर-सहोदरी कहा जाता है, यानी एक ही उदर (पेट) से जन्म लेने वाले। जो एक उदर से जन्म लें, एक ही गोद में पलें, उनमें आपस में स्नेह न हो, यह कैसे हो सकता है। सफर के दौरान किसी यात्री के साथ दो-चार घंटे एक ही गाड़ी में सफर करने से भी कई बार इतना स्नेह हो जाता है कि हम उसका पता लेते हैं, पुन: मिलने का वायदा भी कर लेते हैं। तो क्या सहोदर-सहोदरी में स्वाभाविक स्नेह नहीं होगा, जो उन्हें आपस के प्रेम की याद दिलाने के लिए राखी का सहारा लेना पड़े।

फिर यह भी प्रश्न उठता है कि रिश्ते तो और भी हैं, क्या उनमें भी कर्त्तव्य बोध जागृत करने के लिए कोई त्योहार मनाया जाता है? क्या पिता अपने बच्चों की पालना करे, इसके लिए कोई त्योहार है? मां अपने बच्चों को खुशी दे, इसके लिए कोई त्योहार है? फिर भाई, बहन की रक्षा करे, इसी के लिए त्योहार क्यों?

वास्तव में यह त्योहार एक बहुत ही ऊंची भावना के साथ शुरू हुआ था, जो समय के अंतराल में धूमिल हो गया और इस त्योहार का अर्थ संकुचित हो गया। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास करती है। इसका अर्थ है कि सारा विश्व ही एक परिवार है। भाई-बहन का नाता ऐसा नाता है जो कहीं भी, कभी भी बनाया जा सकता है।

आप किसी भी नारी को बहन के रूप में निसंकोच संबोधित कर सकते हैं। बहुत छोटी आयु वाली को , हो सकता है , माता न कह सकें , पर बहन तो बच्ची , बूढ़ी हरेक को कह सकते हैं। वसुधैव कुटुंबकम् हमें यही सिखाता है कि संसार की हर नारी को बहन मानकर और हर नर को भाई मानकर निष्पाप नजरों से देखो।

आपकी सगी बहन सब नारियों की प्रतिनिधि है - इस निष्पाप वैश्विक संबंध की याद दिलाने यह त्योहार आता है और इसके लिए निमित्त बनती है सगी बहन , क्योंकि बहन - भाई के नाते में लौकिक बहन का नाता स्वाभाविक रूप से पवित्रता लिए रहता है। बहन जब अपने लौकिक भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो यही संकल्प देती है कि भाई , जैसे तुम अपनी इस बहन को पवित्र नजर से देखते हो , दुनिया की सभी नारियों को , कन्याओं को ऐसी ही नजर से निहारना। संसार की सारी नारियां तुझे राखी नहीं बांध सकतीं , पर मैं उन सबकी तरफ से बांध रही हूं। वो सब मुझमें समाई हुई हैं , उन सबका प्रतिनिधि बनकर मैं आपसे निवेदन करती हूं , आपको प्रतिज्ञाबद्ध करती हूं कि आप निष्पाप बनें।
मेरी सुरक्षा भी तभी होगी जब आप औरों की बहनों की सुरक्षा करेंगे। यदि आपके किसी कर्म से संसार की कोई भी बहन असुरक्षित हो गई , तो आपकी यह बहन भी किसी के नीच कर्म से असुरक्षित हो सकती है। आपसे कोई अन्य बहन न डरे और अन्य किसी भाई से आपकी इस बहन को कोई डर न हो , यही राखी का मर्म है।
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रक्षा बंधन पर हमारी दुआ सभी हिन्दू बहनों के लिए

muslim raksha bandhan लिख कर गूगल सर्च किया तो बहुत अच्छी अच्छी फोटो देखने को मिली जिससे हिन्दू मुस्लिम एकता के दर्शन हुए ।

हमारी तरफ़ से भी सभी हिन्दू बहनों को ख़ास मुबारकबाद !

वे सुरक्षित रहें हर बला से !
यही हमारी दुआ है ख़ुदा से !!

किस मुहूर्त में बांधे रक्षा सूत्र ? Raksha Bandhan 2011

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उमस और गर्मी से आँखेँ बीमार ~ Mind and body researches

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प्रेरक विचार: गुस्से के सात रंग

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मेहनत ~ Sansar

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* भारत माँ का आर्तनाद *








१५ अगस्त के उपलक्ष्य में विशेष रचना

वर्षों की गर्भ यंत्रणा सहने के बाद
सन् १९४७ की १४ और १५ अगस्त में
जब कुछ घंटों के अंतराल पर
मैंने दो जुडवाँ संतानों को जन्म दिया
तब मैं तय नहीं कर पा रही थी
कि मैं अपने आँचल में खेलती
स्वतन्त्रता नाम की इस प्यारी सी
संतान के सुख सौभाग्य पर
जश्न मनाऊँ
या अपनी सद्य प्रसूत
दूसरी संतान के अपहरण पर
सोग मनाऊँ
जिसे मेरे घर परिवार के कुछ
विघटनकारी सदस्यों ने ही षड्यंत्र कर
समाज में वैमनस्य का विष फैला
मेरी गोद से दूर कर दिया !

तब बापू थे !
उनके कंधे पर सवार हो मेरी नन्ही बेटी ने
अपनी आँखें खोली थीं
अपने सीने पर पत्थर रख कर
मैंने अपनी अपहृत संतान का दुःख भुला
अपनी इस बेटी को उनकी गोद में डाल दिया था
और निश्चिन्त होकर थोड़ी राहत की साँस ली थी !
लेकिन वह सुख भी मेरे नसीब में
बहुत अल्पकाल के लिये ही था !
३० जनवरी सन् १९४८ को
बापू को भी चंद गुमराह लोगों ने
मौत की नींद सुला दिया
और मुझे महसूस हुआ मेरी बेटी
फिर से अनाथ हो गयी है
असुरक्षित हो गयी है !

लेकिन मेरे और कितने होनहार बेटे थे
जिन्होंने हाथों हाथ मेरी बेटी की
सुरक्षा की जिम्मेदारी उठा ली,
उन्होंने उसे उँगली पकड़ कर
चलना सिखाया, गिर कर उठना
और उठ कर सम्हलना सिखाया,
मैं थोड़ी निश्चिन्त हुई
मेरी बेटी स्वतन्त्रता अब काबिल हाथों में है
अब कोई उसका बाल भी बाँका नहीं कर सकेगा !

लेकिन यह क्या ?
एक एक कर मेरे सारे सुयोग्य,
समर्पित, कर्तव्यपरायण बेटे
काल कवलित होते गए
और उनके जाने बाद
मेरी बेटी अपने ही घर की
दहलीज पर फिर से
असुरक्षित और असहाय,
छली हुई और निरुपाय खड़ी है !

क्योंकि अब उसकी सुरक्षा का भार
जिन कन्धों पर है
वे उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते
उनकी आँखों पर स्वार्थ की पट्टी बँधी है
और मन में लालच और लोभ का
समंदर ठाठें मारता रहता है !
अब राजनीति और प्रशासन में
ऐसे नेताओं और अधिकारियों की
कमी नहीं जो अपना हित साधने के लिये
मेरी बेटी का सौदा करने में भी
हिचकिचाएंगे नहीं !

हर वर्ष अपनी बेटी की वर्षगाँठ पर
मैं उदास और हताश हो जाती हूँ
क्योंकि इसी दिन सबके चेहरों पर सजे
नकली मुखौटे के अंदर की
वीभत्स सच्चाई मुझे
साफ़ दिखाई दे जाती है
और मुझे अंदर तक आहत कर जाती है !
और मै स्वयम् को 'भारत माता'
कहलाने पर लज्जा का अनुभव करने लगती हूँ !
क्यों ऐसा होता है कि
निष्ठा और समर्पण का यह जज्बा
इतना अल्पकालिक ही होता है ?
स्वतन्त्रता को अस्तित्व में लाने के लिये
जो कुर्बानी मेरे अगणित बेटों ने दी
उसे ये चंद बेईमान लोग
पल भर में ही भुला देना चाहते हैं !
अब मेरा कौन सहारा
यही प्रश्न है जो मेरे मन मस्तिष्क में
दिन रात गूँजता रहता है
और मुझे व्यथित करता रहता है !

किसीने सच ही कहा है,
"जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं
वह ह्रदय नहीं है पत्थर है,
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं !"
मुझे लगता है मेरे नसीब में
अब सिर्फ पत्थर ही पत्थर लिखे हैं !


साधना वैद
चित्र गूगल से साभार
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कृपया ध्यान दें... (Attentions Please)

 हिन्दी ब्लॉगिंग गाइड के फेसबुक ग्रुप के सम्मानित सदस्यों कृपया मेरी बात ध्यान से सुनें...

कृपया हिन्दी ब्लॉगिंग गाइड के फेसबुक ग्रुप पे श्री नीरज मित्तल जी  द्वारा लिखे गए पोस्ट के जैसे पोस्ट न लिखें... अगर आप अपने ब्लॉग का कोई लिंक यहाँ साझा करना चाहते हैं तो बेशक करें, पर अगर आपके लेख मे हिन्दी ब्लॉगिंग से संबन्धित कोई नयी - पुरानी जानकारी हो तो बहुत ही अच्छा होगा। अन्यथा आपके पोस्ट के संग आपको भी इस ग्रुप से निष्काषित कर दिया जाएगा... 
----------------

नीरज जी की लिखी हुई पोस्ट है - 

‎.. each and every hindu organisation is working for their prosperity
not .for the country , not..for the religion
hindus doesn't have FIRE 4 THIER RELIGION.....
insecurity element is very much...
savarkar analyise why we become GULAM for 1000 YEARS
even english peoples r teaching us ...HOW TO WORSHIP LORD KRSNA.....what a tragady...??
see ISKON......i like their approach towards krsna
foreigners understand our culture more than we do
pure bhakti.com is a notable site
because some egoistic personalities creates a lot of problems....somewhere we lost the scientific & analytic attitude of our rishies....& we r still paying 4 it
what rearch work is done by these dirty org. to explore hinduism in a pleasant way
is their any site on google in hindi language 4 sanatan dharma
only english sites r open when we want to find something on hinduism
vese hum hindi hindi chillatain karte rehten hain
what is your opinion ...???
PLEASE FORGIVE ME ....I CAN NOT SEE SUCH A DURDASHA OF OF OUR VEDIC WISDOM.....

please read ESSAYS ON GITA ( BY: SRI AUROBINDO)

इस पर मेरा कमेन्ट रहा - 

आप बोल रहे हैं कि हम हिन्दी-हिन्दी चिल्लाते रहते हैं, पर कुछ भी जब हिन्दुत्व (आपके अनुसार hinduism) के बारे मे खोजना होता है, इंग्लिश मे ही है...
और दूसरी तरफ आप एक वैबसाइट purehindi.com का भी विज्ञापन कर रहे हैं, जिसमे लिखी सारी बातें इंगलिश मे ही हैं...
अब आप ही बोलें कि आप क्या कर रहे हैं ? हिन्दी को बढ़ावा दे रहे हैं या हिन्दुत्व को या हमारे प्यारे भारत की राजभाषा - हिन्दी को ?
-----------------

हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के प्रमुख प्रचारक होने के नाते मैं आप सभी से अपील करता हूँ कि कृपया हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के फेसबुक ग्रुप को हिंदी लेखन व हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड या हिंदी ब्लॉग्गिंग को बढ़ावा देने में उपयोग करें, ना कि इसे धार्मिक अखाड़ा बनाने के लिए...

धन्यवाद 

महेश बारमाटे "माही"
हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड टीम
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नोट - अगर आपको मेरे किसी भी शब्द या वाक्य का बुरा लगा हो तो कृपया मुझे जरूर बताएं... मैं आपकी बात पर गौर जरूर करूँगा.. 
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यह पोस्ट मैंने हिंदी ब्लॉग्गिंग गाइड के फेसबुक ग्रुप पे भी डाली है, लिंक है - 
http://www.facebook.com/groups/hindi.blogging.guide/doc/?id=160049814069267
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आपकी शायरी: शायरों की महफिल से

आपकी शायरी: शायरों की महफिल से: " आज आप सभी पाठकों के लिए 'जीवन का लक्ष्य' समाचार पत्र के सर्वप्रथम अंक अक्तूबर 1997 में प्रकाशित एक रचना के साथ ही पिछले दिनों मेट्रो रेल मे..."
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आपकी शायरी: शायरों की महफिल से: "कटोरा और भीख कटोरा लेकर भीख भी मांग ली होती, अगर सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी होती. अपनी जीवन लीला खत्म कर ली होती, अगर कानून ने इसकी म..."
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संभल जाओ पकिस्तान

कितना समझाया कितना मनाया ,
तरह तरह से शांति का मार्ग दिखाया,
कभी लाहोर गए तो कभी आगरा बुलाय,
पर मोटी बुद्धि कुछ समझ न पाया,
हमारी सहिष्णुता को कमजोरी समझ
कर दिया युद्ध की पहल,
उलटे मुह की खानी पड़ी
शरम से मुह छुपानी पड़ी;
हो आई याद उनको सन ७१ की,
समझ गया शक्ति वो भारत की;
न लेंगे पंगा फिर वो कसम खाया,
खुदा को अपना गवाह बनाया;
इतना होने पर भी वो बाज न आया,
वापस घुसपैठ का राह अपनाया;
कश्मीर को अपनी जागीर बताया और
इसपे अपना अधिकार जताया;
तो ले अब मैं तुम्हे बताता हूँ,
तुम्हारा भरम मिटाता हूँ;
न था यह कभी तुम्हारा,
ये तो नितांत से है हमारा;
छोड़ कर साथ तू जिद का,
हाथ बढ़ा दे दोस्ती का;
हम ख़ुशी से तुम्हे अपनाएंगे,
सारे गिले शिकवे भूल जायेंगे,
पर तू जो फिर न माना,
वापस इसे कमजोरी जाना,
तो समझोता नहीं;
फिर रण होग,
जीवन जय होगा,और फिर मरण होगा .

(यह रचना मेरे एक मित्र द्वारा लिखी गयी है उसने किसी से साझा नहीं किया पर मैं चाहता हूँ सब पढ़े उसकी ये रचना .-प्रदीप )
 
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समाज का डर


समाज का डर

समाज का डर


समाज का डर हम पर,कुछ इस तरह छाया है
की कुरीतियों का फैला अंधियारा हमारे जीवन मैं हर तरफ नजर आया है 
शादियों मैं हम कर्जा लेकर  शान-शोकत और दिखावे 
में खूब खर्च करते हैं
फिर जिंदगी भर उसका कर्ज चुकातें हैं
समाज के डर से 
जब ससुराल से रोती-बिलखती बेटी शरीर में जख्मों 
का निशान लिए वापस ना जाने की फरियाद करती हुई 
माता-पिता के पास आती है ,पर वो उसे समझाकर वापस 
ससुराल भेज देतें हैं 
समाज के डर से 
कुछ दिनों बाद उसी बेटी की हत्या या आत्महत्या का
समाचार सुन खूब हो -हल्ला मचाते हैं 
कोर्ट -कचहेरी करतें हैं,पर आई बेटी को नहीं अपनातें हैं  
समाज के डर से 
बाल -विवाह का अंजाम और कानूनी अपराध को 
जानते हुए भी आज भी कई छैत्रों में
बाल -विवाह हो रहें हैं पर इस कुरीति को हम छोड नहीं पा रहे हैं 
समाज के डर से
बिना जांच -पड़ताल किये विदेश के मोह में विदेश में बसे 
लडके से अपनी लड़की की शादी करके धोखा खातें हैं 
फिर समाज से छुपाने के लिए झूठे बहाने बनाते हैं 
समाज के डर से 
बेटी पैदा होने से नाक नीची होती है,.बेटा तो वंश चलाता है 
इस कुरीति से बेटियों की गर्भ में ही ह्त्या कर देते  है 
दहेज़ जैसी कुरीति के कारण भी बेटी को जन्म नहीं देना चाहते हैं         
समाज के डर से 
धर्म के नाम पर कब तक ढोंगी-पाखंडी बाबाओं को 
दान-पुण्य के नाम पर धन लूटातें रहेंगे 
इनकी बातों में आते रहेंगे और अपने को छलते रहेंगे 

समाज के डर से
ऐसी कितनी कुरीतियों को हम निभाते रहेंगे 
और इंसानों की  जिंदगियों से खेलते रहेंगे
समाज से कभी इन कुरीतियों ख़त्म नहीं कर पायेंगे
समाज के डर से 
समाज हमसे है हम समाज से नहीं 
बुराइयों को छोडकर अच्छाइयों को अपनाओं
शिक्षित  समाज में नई रीतियों को बनाओ
पुराने समाज की पुरानी कुरीतियों को भूल जाओ  
समाज के डर से    

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