त्यौहारों की बुनियाद

भारत त्यौहारों का देश है और हरेक त्यौहार की बुनियाद में आपसी प्यार, सद्भावना और सामाजिक सहयोग की भावना ज़रूर मिलेगी। बाद में लोग अपने पैसे का प्रदर्शन शुरू कर देते हैं तो त्यौहार की असल तालीम और उसका असल जज़्बा दब जाता है और आडंबर प्रधान हो जाता है। इसके बावजूद भी ज्ञानियों की नज़र से हक़ीक़त कभी पोशीदा नहीं हो सकती। ब्लॉगिंग के माध्यम से हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि मनोरंजन के साथ साथ हक़ीक़त आम लोगों के सामने भी आती रहे ताकि हरेक समुदाय...
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हमें अपनी फ़िक्र करनी चाहिए

आखि़र कोई बाप ऐसा लापरवाह कैसे हो सकता है ?रचना जी का ऐतराज़ वाजिब है . देखिये लिंक -http://mypoeticresponse.blogspot.com/2011/08/blog-post_9052.html ऐसे लोग हमारे चारों तरफ़ हैं जो कि दूसरे लोगों को बताते रहते हैं ग़लत क्या है ?और ख़ुद उसी ग़लत पर चलते रहते हैं .दूसरों की बेपर्दा लड़कियों को तकते हैं और उनके बदन के एक एक अंग का नाप ऐसे लेडीज़ टेलर की तरह निगाहों से ही ले लेते हैं।...लेकिन अपनी बहन-बेटियों को अपने ही जैसी गंदी निगाहों...
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ऐ मुसलमानों , इस्लाम को पूरा इख्तियार करो ताकि सुधार मुकम्मल हो

लड़कियों को जिंदा दफ़्न कर देना अरबों में आम था . आज वहां इस रस्म का नामलेवा एक भी नहीं हैं जबकि भारत में लड़कियों को मार डालने का चलन अभी खत्म नहीं हुआ है और अगर खत्म हुआ भी है सिर्फ मुसलमानों से . भारत के मुसलमानों ने अपनी ज़िंदगी के जितने हिस्से में इस्लाम को ले लिया है उतना हिस्सा सुधर गया है, बाक़ी में फ़िसाद आज भी है।ऐ मुसलमानों...
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तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: हिंसा की परिभाषा क्या है ?

तीर्थंकर महावीर स्वामी जी: हिंसा की परिभाषा क्या है ?: " आज हिंसा का परिभाषा क्या व्यक्त करें. आज व्यक्ति का भौतिक वास्तुनों के मोह में फंसकर इतना निर्दयी हो गया है कि-कदम-कदम पर झूठ बोलना, धोख....
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लोकपाल बिल पर ना समझों का हंगामा .............

जी हाँ दोस्तों लोकपाल बिल पर अन्ना जेसे लोग और उनके समर्थकों का भरी हंगामा , भरी दबाव, भारी आन्दोलन जेसे किया जा रहा है उससे ऐसा लगता है जेसे अगर अन्ना का लोकपाल आ गया तो देश में राम राज आ जाएगा ..हर भूखे को रोटी , हर नंगे को कपड़ा और पीड़ित को न्याय मिल जाएगा ..लेकिन दोस्तों ऐसा कुछ भी नहीं है ..लोकपाल केवल सरकार की तनख्वाह और भत्ते प्राप्त करने वाला ऐसी कठपुतली होगा जो न तो किसी को सज़ा दे सकेगा और ना ही किसी के बारे में कुछ...
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कोटा की ऐसी ही है पत्रकारिता ...

दोस्तों में आपको राजस्थान राज्य के कोटा शहर की पत्रकारिता की कुछ बानगी दिखाना चाहूँगा .दलित , शोषित और उत्पीडित लोगों की कहानी लिखने का दावा करने वाले पत्रकारिता से जुड़े लोग केसे छोटे पुलिस अधिकारीयों के आगे नत मस्तक हो जाते हैं और खबरों को चबा डालते हैं इसका एक उदाहरण नहीं अनेक उदाहरण है लेकिन एक उदाहरण ताज़ा है जो आपके सामने रखना जरूरी हो गया है ...कोटा में ठेके पार नो पार्किंग के वाहन उठाने का काम हो रहा है यहाँ कथित रूप से...
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एक प्रश्न

खुशियाँ आज़ादी की हर वर्ष मानते हैं,पर हजारों गुलामी ने अब भी है घेरा;फूल कई रंगों के हम अक्सर हैं  लगाते,पर मन में फूलों का कहाँ है डेरा ? नाच-गा लेते हैं, झंडे पहरा लेते हैं,अन्दर तो रहता है मजबूरियों का बसेरा,लोगों को देखकर मुस्कुराते हैं हरदम, मन में होती है कटुता और दिल में अँधेरा | सोच और मानसिकता आज़ाद नहीं जब तक, तो क्या मतलब ऐसे आज़ादी के जश्न का, एक दिन का उत्सव, अगले दिन फिर शुरु, गुलामी की वही जिंदगी, बिना जवाब दिए प्रश्न...
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ये कैसी जिद्द है अन्ना दा.......

एक संवेदनशील मुद्दे को आगे रख कर आंदोलन खडा करना आसान है, पर उसे समेटना बहुत मुश्किल है, लोगों को सड़क पर लाना आसान है, वापस घर भेजना मुश्किल है, लोगों को एक बार भड़काना तो आसान है, पर भड़के लोगों को समझाना बहुत मुश्किल। देश भर से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि दिल्ली पर ऐसा दाग लगने वाला है, जिसे कई साल तक...
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इस्लाम में स्त्री का स्थान Women in Islam

नारी पर प्रतिकाल में अत्याचार हुआ है। यूनानियों ने उसे शैतान की बेटी, सुक्रात ने उसे हर प्रकार के उपद्रव की मुख्य, अफ्लातून ने बुरे लोगों की प्राण , अरस्तू ने उसे अवनति का कारण कहा है। अरब वासी लज्जा के भय से उसे ज़मीन में जीवित ही गाड़ देते थे और हमारे अपने भारत में सौ  साल पहले औरत को उस के पति के मृत्यु के बाद पति के साथ जिन्दा जला (सती कर) देते थे;  परन्तु इस्लाम ने चौदह सौ साल पहले उसे बहुत ही ऊंचा स्थान दिया , बहुत...
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हुमायूं और कर्मावती के बीच का प्रगाढ़ रिश्ता और राखी का मर्म

भारतीय नारी  का एक रूप ‘बहन‘ भी है और भारतीय पर्व और त्यौहारों की सूची में एक त्यौहार का नाम ‘रक्षा बंधन‘ भी है। जहां होली का हुड़दंग और दीवाली पर पटाख़ों का शोर शराबा लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है और उनके पीछे की मूल भावना दब जाती है वहीं रक्षा बंधन का त्यौहार आज भी दिलों को सुकून देता है। यह त्यौहार मुझे सदा से ही प्यारा...
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रक्षा बंधन पर हमारी दुआ सभी हिन्दू बहनों के लिए

muslim raksha bandhan लिख कर गूगल सर्च किया तो बहुत अच्छी अच्छी फोटो देखने को मिली जिससे हिन्दू मुस्लिम एकता के दर्शन हुए । हमारी तरफ़ से भी सभी हिन्दू बहनों को ख़ास मुबारकबाद ! वे सुरक्षित रहें हर बला से ! यही हमारी दुआ है ख़ुदा से !! किस मुहूर्त में बांधे रक्षा सूत्र ? Raksha Bandhan 2...
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उमस और गर्मी से आँखेँ बीमार ~ Mind and body researches

उमस और गर्मी से आँखेँ बीमार ~ Mind and body researc...
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प्रेरक विचार: गुस्से के सात रंग

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मेहनत ~ Sansar

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* भारत माँ का आर्तनाद *

१५ अगस्त के उपलक्ष्य में विशेष रचना वर्षों की गर्भ यंत्रणा सहने के बाद सन् १९४७ की १४ और १५ अगस्त में जब कुछ घंटों के अंतराल पर मैंने दो जुडवाँ संतानों को जन्म दिया तब मैं तय नहीं कर पा रही थी कि मैं अपने आँचल में खेलती स्वतन्त्रता नाम की इस प्यारी सी संतान के सुख सौभाग्य पर जश्न मनाऊँ या अपनी सद्य प्रसूत दूसरी संतान के अपहरण पर सोग...
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कृपया ध्यान दें... (Attentions Please)

 हिन्दी ब्लॉगिंग गाइड के फेसबुक ग्रुप के सम्मानित सदस्यों कृपया मेरी बात ध्यान से सुनें... कृपया हिन्दी ब्लॉगिंग गाइड के फेसबुक ग्रुप पे श्री नीरज मित्तल जी  द्वारा लिखे गए पोस्ट के जैसे पोस्ट न लिखें... अगर आप अपने ब्लॉग का कोई लिंक यहाँ साझा करना चाहते हैं तो बेशक करें, पर अगर आपके लेख मे हिन्दी ब्लॉगिंग से संबन्धित...
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आपकी शायरी: शायरों की महफिल से

आपकी शायरी: शायरों की महफिल से: " आज आप सभी पाठकों के लिए 'जीवन का लक्ष्य' समाचार पत्र के सर्वप्रथम अंक अक्तूबर 1997 में प्रकाशित एक रचना के साथ ही पिछले दिनों मेट्रो रेल मे....
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आपकी शायरी: शायरों की महफिल से

आपकी शायरी: शायरों की महफिल से: "कटोरा और भीख कटोरा लेकर भीख भी मांग ली होती, अगर सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी होती. अपनी जीवन लीला खत्म कर ली होती, अगर कानून ने इसकी म....
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संभल जाओ पकिस्तान

कितना समझाया कितना मनाया ,तरह तरह से शांति का मार्ग दिखाया,कभी लाहोर गए तो कभी आगरा बुलाय, पर मोटी बुद्धि कुछ समझ न पाया, हमारी सहिष्णुता को कमजोरी समझकर दिया युद्ध की पहल,उलटे मुह की खानी पड़ीशरम से मुह छुपानी पड़ी; हो आई याद उनको सन ७१ की, समझ गया शक्ति वो भारत की; न लेंगे पंगा फिर वो कसम खाया, खुदा को अपना गवाह बनाया;इतना होने पर भी वो...
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समाज का डर

समाज का डरसमाज का डर समाज का डर हम पर,कुछ इस तरह छाया हैकी कुरीतियों का फैला अंधियारा हमारे जीवन मैं हर तरफ नजर आया है शादियों मैं हम कर्जा लेकर  शान-शोकत और दिखावे में खूब खर्च करते हैंफिर जिंदगी भर उसका कर्ज चुकातें हैंसमाज के डर से जब ससुराल से रोती-बिलखती बेटी शरीर में जख्मों का निशान लिए वापस ना जाने की फरियाद...
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गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

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    12 years ago

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