यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं? yaun shoshan

तरूण तेजपाल ने बड़ी हिम्मत के साथ स्वीकार किया है कि हां, उन्होंने अपनी सहकर्मी महिला पत्रकार के साथ वह किया है जिसे वह यौन उत्पीड़न बता रही है।
वह सहकर्मी महिला पत्रकार भी बहुत बहादुर निकली। उसनेभी अपना उत्पीड़न भले ही करवा लिया लेकिन उसे बर्दाश्त बिल्कुल नहीं किया। उसने चिठ्ठी लिखकर तहलका पत्रिका की प्रबंध संपदिका शोमा सिंह को सारा माजरा बता दिया और सच्चाईदुनिया के सामने आ गई। पत्रकार का फ़र्ज़ यही तो होता है कि दुनिया के सामने सच्चाई ले आए।
देखिए, मॉडर्न एजुकेशन हमारे देश को कैसे कैसे बहादुर दे रही है।
उधर शोमा सिंह कह रही हैं कि मेरी पहली तरजीह महिला पत्रकार को अच्छा फ़ील कराना है और वह करा भी रही हैं।
अगर उत्पीड़िता ने अच्छा फ़ील कर लिया तो मामला आपसी सहमति से निपट भी सकता था लेकिन तरूण तेजपाल की सताई हुई पार्टियों को बैठे बिठाए मौक़ा मिल गया। वे तरूण तेजपाल को लम्बा नापने की फ़िराक़ में हैं। अगर ऐसे आड़े वक्त के लिए तरूण तेजपाल ने कोई सीडी बचाकर नहीं रखी है तो वह चौड़े में मारे जाएंगे। इसमें कोई शक नहीं है। जल में रहकर मगरमच्छों से इसीलिए तो कोई बैर नहीं करते।
बहरहाल ताज़ा ख़बर यह है कि गोवा पुलिस के उपमहानिरीक्षक ओ. पी. मिश्रा जी ने बताया है कि तरूण तेजपाल के खि़लाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है।
इस कांड के बाद एजुकेटिड पुरूषोंमें सहकर्मी महिलाओं के प्रति अविश्वास उत्पन्न होने का ख़तरा भी पैदा हो गया है। आनन्द के पलों का लुत्फ़ उठाते हुए कौन यह जान सकता है कि कल इसी लुत्फ़ को उत्पीड़न क़रार दिया जा सकता है।
तमाम अंदेशों के बावजूद होटलों में सम्मेलन और सेमिनार चलते रहेंगे और औरत और मर्द तरक्क़ी करते रहेंगे। यह भी सच है।
इस तरह की घटनाएं हमें कन्फ़्यूज़ कर देती हैं कि आखि़र यौन उत्पीड़न क्या है?
एक पढ़ी लिखी और बालिग़ लड़की को क्या चीज़ मजबूर करती है कि वह अपने आप को यौन शोषण के लिए अर्पित करने के लिए होटल के कमरे में ख़ुद ही चल कर जाए और फिर शोर मचाए।
क्या इसे मर्द का यौन उत्पीड़न न माना जाए?
Read More...

धर्म को विदा करो, विवेक को अपनाओ (कहानी)


ज्ञानतंत्र की रहस्यबोध कथाएं

वैसे तो उनका नाम तुषार था लेकिन श्री श्री गजदन्त प्रवेश पीड़क देव जी महाराज ने उसका अनुवाद करके उसे सरल कर दिया था। वह उन्हें ओला कहकर बुलाते थे। ओला बाबू ग़ज़ब के पियक्कड़थे। जब वे पी लेते थे तो बाज़ारे हुस्न की तरफ़ उनके क़दम ख़ुद ब ख़ुद उठ जाते थे। घर पर भी उनकी गर्लफ़्रेंड सेलेकर ब्वायफ़्रेन्ड तक सभी हस्बे ख्वाहिश आते जाते रहते थ। जिस समय तेज़ तूफ़ानी बरसात में उनकी पत्नी शीतल घर पर प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। उस समय भी वे बाज़ारे हुस्न की किसी सिगड़ी पर अपना दिल सेक रहेथे। बहरहाल उनके घर दो जुड़वा बच्चे हुए।  बच्चे जनते हुए शीतल तन्हाई मेंही मर गई। तूफ़ान थमा तो कोई पड़ोसन उसके पति की शिकायत लेकर आई कि शीतल का पति उसके पति को अपनी सोहबत में रखकर ख़राब कर रहा है लेकिन वहां उसे जुड़वा बच्चे रोते हुए मिले। मुहल्ले के पंडित जी ने एक का नाम धर्म रख दिया और दूसरे का विवेक। पड़ोसी कभी नहीं जान पाए कि इन में पहले कौन पैदा हुआ, धर्म या विवेक?
बेमां के बच्चे पड़ोसियों और रिश्तेदारों की देखरेख में बड़े हुए। इसलिए वे ओला बाबूके बुरे असर से बच गए। धर्म और विवेक स्कूल जाने लायक़ हुए तो ताऊ, चाचा और मामा फूफा ने, सबने उन्हें बोर्डिंग स्कूल में दाखि़ल करवा दिया। साल में एक दो बार ही वे दोनोंअपने घर आ पाते। इसलिए वे ओला बाबू की सोहबत से बच बचाकर बड़े होते चले गए।
पढ़ाई पूरी करके वे दोनों घर लौटे तोओला बाबू की जान आफ़त में आ गई। अब अगर वे शराब पीतेया कोई और ऐब करते तो धर्म और विवेक दोनों उन्हें टोकते। इस टोका टोकी के चलतेओला बाबू के गर्लर्फ़ेन्ड और ब्वाॅयफ़्रेंन्ड ने तो उनके घर आना ही छोड़ दिया था। ओला बाबू की अक्ल शराब पीकर खोखली हो चुकी थी। वे उनके पास विचार करने लायक़ अक्ल न बची थी। उनके दोस्त भी उनकी ही तरह खोखले हो चुकेथे।  फिर भी उन्होंनेअपना मसला अपने दोस्तों के सामने रखा।
ओला बाबू बोले-मैंने तय कर लिया है कि मैं अपने दोनों बच्चों को, धर्म को और विवेक को त्याग दूंगा।
जग्गी ने पूछा-लेकिन क्यों?
ओला बाबू-दोनों बहुत टोका टाकी करते हैं। यह सब मुझे पसंद नहीं है। मां मर गई लेकिन दो मुस्टंडे मेरी जान को छोड़ गई।
केशव-यह ठीक नहीं है।
शरद-हां, यह ठीक नहीं है।
ओला बाबू-यह ठीक नहीं हैतो फिर ठीक तुम बता दो।
देखोठीक तो तुम्हारी रज्जो ही बता सकती है। तुम उसी से पता कर लो।
ओला बाबू बाज़ारे हुस्न पहुंचे। रज्जो ने पूरी बात सुनी। वह दो चार बार धर्म और विवेक से मिल भी चुकी थी। उसने कहा कि दोनों को छोड़ना वाक़ई ठीक नहीं है। बुढ़ापे के लिए एक लाठी तो साथ रखनी ही चाहिए। तुम धर्म को विदा करोऔर विवेक को अपना लो।
...लेकिन टोका टोकी तो विवेक भी करता है-ओला बोला।
अब करता है। धर्म से जुदा होकर नहीं करेगा।-रज्जो बोली।
क्या मतलब?-ओला ने कॉस्मिक लेवल की हैरानी ज़ाहिर की।
देखो, धर्म सोचता है सही-ग़लत की बुनियाद पर और विवेक सोचता है नफ़े-नुक्सान की बुनियाद पर। धर्म साथ में होता है विवेक पर धर्म हावी रहता है। वह नफ़ा नुक्सान सही-ग़लत की बुनियाद पर तय करता है। आपको मनमानी करनी है तो धर्म कोविदा कर दोगे तो फिर विवेक सही-ग़लत की बुनियाद पर नहीं सोचेगा। वह सोचेगा नफ़े-नुक्सान की बुनियाद पर। विवेक को लगेगा कि अगर वह आपकोआपकी लतों पर टोकेगा तो फिर आप उसे भी विदा कर देंगे। लिहाज़ा वह आपको नहीं टोकेगा और तुम्हारी मनमानी चलती रहेगी। धर्म से कटते ही विवेक का सोचने का अंदाज़ बदल जाता है। यह हम से ज़्यादा कौन जान सकता है।-रज्जो ने अपने तजुर्बे को दलील के तौर पर पेश किया।
ओला बाबू ने अपने घर से धर्म को विदा कर दिया। विवेक अब भी उनके साथ है लेकिन विवेक के साथ कोई नहीं है। विवेक ने धर्म से जुदा नहीं होना चाहा लेकिन उसके अरमानों पर तुषारापात हो चुका है।
ओला बाबू अब इस समस्या को हल करने के विशेषज्ञ के रूप में मशहूर हो चुके हैं। दूर दराज़ से लोग उनके वचन सुनने के लिए आने लगे हैं। सबके घर में धर्म और विवेक के रूप में कोई न कोई मौजूद है। वह सबको यही सलाह देते हैं कि धर्म को विदा करो, विवेक को अपना लो।

---
कहानी कैसी लगी?
Read More...

मानवता को इमाम हुसैन की बेमिसाल देन Imam Husain

सांप्रदायिकता आतंकवाद की जननी है। सत्ता पाने के इच्छुक तत्व लोगों का समर्थन पाने के लिए सांप्रदायिकता का सहारा लेते हैं। वे सांप्रदायिकता के घिनौने चेहरे पर राष्ट्रवाद और क़ौमियत का पर्दा डाल देते हैं। अब वे अपने विरोधियों को राष्ट्र-विरोधी कहते हैं और उन्हें मार डालते हैं। इस तरह जो आतंकवाद मानवता के प्रति बदतरीन जुर्म है, उसे राष्ट्र की सेवा के रूप में पेश किया जाता है।
आतंक फैलाने के लिए जन और धन की ज़रूरत होती है। पूंजीपतियों और ज़मींदारों की मदद से राजनेता उन्हें ये दोनों मुहैया कराते हैं। आतंकवाद राजनैतिक संरक्षण के बिना पल ही नहीं सकता। दुनिया में जितने भी आतंकवादी हुए हैं या आज हैं, वे किसी न किसी राजनैतिक शक्ति के द्वारा खड़े किए गए हैं। आतंकवाद का लाभ इन राजनेताओं को ही मिलता है और वे पूंजीपतियों और ज़मींदारों को भरपूर लाभ पहुंचाते हैं। आम जनता के हिस्से मे हमेशा सिर्फ़ नुक्सान आता है।
धर्म पर चलने वाले लोग सांप्रदायिकता (अरबी में असबियत) को ख़त्म करते हैं। सांप्रदायिकता पर चलने वाले ऐसे धार्मिक लोगों को अपने रास्ते की रूकावट मानते हैं और हटा देते हैं। सांप्रदायिकता का परवान चढ़ना धर्म का नष्ट होते चले जाना है। सांप्रदायिकता धर्म की दया, प्रेम और परोपकार की भावना का लोप करती है और वह जनमानस के रूझान और उनकी रूचि को बदल देती है।
इसकी एक मिसासल यज़ीद है। उसके सैनिकों ने हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु का क़त्ल कर दिया, उनके परिवार के दर्जनों लोगों को क़त्ल कर दिया। उनके बच्चों तक को क़त्ल कर दिया। उनके घर की जिन औरतों को सब मुसलमान माँ कहकर पुकारते थे। उन्हें क़ैद कर लिया। यह सब उसने हुकूमत के लिए किया और यह सब उसने लोगों के सामने किया और लोगों के सपोर्ट से किया। यह सब उसने अपने लोगों से ही करवाया। लोगों ने उसके लिए यह सब क़बीलाई असबियत (क़बीला आधारित सांप्रदायिकता) की बुनियाद पर किया। इमाम हुसैन रज़ि. के क़त्ल के बाद उनका सिर काट कर यज़ीद के दरबार में लाया गया। उस मुबारक सिर को देखकर यज़ीद ने जो कहा, वह उसकी असबियत (सांप्रदायिकता) साबित करने के लिए काफ़ी है-
‘...और क़त्ले हुसैन और उनके साथियों के क़त्ल के बाद उसने मुंह से निकाला कि मैंने (हुसैन वग़ैरह से) बदला ले लिया है जो उन्होंने मेरे बुज़ुर्गों और रईसों के साथ बदर में किया था।’
-शहीदे करबला और यज़ीद, पृष्ठ 109, लेखकः मौलाना क़ारी तैयब साहब रह., पूर्व मोहतमिम दारूल उलूम देवबन्द
The place where Husayn's head is kept, Umayyad Mosque, Damascus

यज़ीद के सामने धार्मिक शक्तियाँ कमज़ोर पड़ चुकी थीं। वे उससे मुक़ाबला नहीं कर सकती थीं लेकिन फिर भी उसके ज़ुल्म को ज़ुल्म कहने से वे न रूके। हज़रत ज़ैद बिन अरक़म एक ऐसे ही धार्मिक शख्स थे। वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथियों में से थे। यज़ीद के वक़्त तक वह बूढ़े हो चुके थे। उन्होंने जो कहा, वह भी सांप्रदायिक शक्तियों के चाल, चरित्र और चेहरे को बेनक़ाब करता है-
‘तो ज़ैद (बिन अरक़म) रोने लगे तो इब्ने ज़ियाद ने कहा ख़ुदा तेरी आंखों को रोता हुआ ही रखे। ख़ुदा की क़सम अगर तू  बुड्ढा न होता जो सठिया गया हो और अक्ल तेरी मारी गई न होती तो मैं तेरी गर्दन उड़ा देता, तो ज़ैद बिन अरक़म खड़े हो गए और यहां से निकल गए, तो मैंने लोगों को यह कहते हुए सुना। वे कह रहे थे अल्लाह, ज़ैद बिन अरक़म ने एक ऐसा कलिमा कहा कि अगर इब्ने ज़ियाद उसे सुन लेता तो उन्हें ज़रूर क़त्ल कर देता। तो मैंने कहा, क्या कलिमा है जो ज़ैद बिन अरक़म ने फ़रमाया। तो कहा कि ज़ैद बिन अरक़म जब हम पर गुज़रे तो कह रहे थे कि ऐ अरब समाज! आज के बाद समझ लो कि तुम ग़ुलाम बन गए हो। तुमने फ़ातिमा के बेटे को क़त्ल कर दिया और सरदार बना लिया इब्ने मरजाना (इब्ने ज़ैद) को। जो तुम में के बेहतरीन लोगों को क़त्ल करेगा और बदतरीन लोगों को पनाह देगा।’
-शहीदे करबला और यज़ीद, पृष्ठ 101
हज़रत ज़ैद बिन अरक़म रज़ि. ने जो कहा था। वह हरफ़ ब हरफ़ सच साबित हुआ। इसी किताब के पृष्ठ 106 पर मशहूर अरबी किताब ‘अल-बदाया वन्-निहाया’ जिल्द 8 पृष्ठ 191 के हवाले से क़ारी तैयब साहब ने लिखा है कि जब इमाम हुसैन रज़ि. के क़त्ल पर इब्ने ज़ियाद ख़ुश हो रहा था। तब उसे हज़रत अब्दुल्लाह बिन अफ़ीफ़ अज़दी ने टोक दिया। इब्ने ज़ियाद ने उसे वहीं फांसी दिलवा दी।
यज़ीद में एक सांप्रदायिक व्यक्ति के सभी लक्षण पूरी तरह से देखे जा सकते हैं। वह एक नमूना है। यज़ीद मर गया लेकिन सांप्रदायिक प्रवृत्ति नहीं मरी। यज़ीद के बाद भी हुकूमत हथियाने के लिए सांप्रदायिकता का सहारा लिया गया और उसे राष्ट्रवाद का चोला ओढ़ाया गया।
वर्तमान पाकिस्तान सांप्रदायिक मुसलिम नेताओं की देन है। इसलाम के नाम पर पाकिस्तान मांगा गया और किसी मुसलिम धार्मिक हस्ती को पाकिस्तान सौंपने के बजाय उस पर सांप्रदायिक शक्तियां क़ाबिज़ हो गईं।
पाकिस्तानी राजनेता भारत में आतंकवादी भेजते हैं। वे भारत के सैनिकों के सिर काट कर ले जाते हैं। सिर काटने का काम केवल यज़ीदी सोच के ज़ालिम ही कर सकते हैं। इससे इस क्षेत्र में अशान्ति और अस्थिरता पैदा होती है। नेताओं को सुरक्षा के लिए हथियार ख़रीदने का बहाना मिलता है। पाकिस्तानी और भारतीय नेता, दोनों अमेरिका आदि देशों से हथियार ख़रीदते हैं। इसमें इन्हें लाभ के रूप में मोटा कमीशन मिल जाता है।
तमाम आतंकवादी घटनाओं के बाद भी भारत के नेता कहते हैं कि भारत पाकिस्तान को आतंकवाद के मामले में संदेह का लाभ देने के लिए तैयार है। आज आतंकवाद एक इंडस्ट्री बन चुकी है। इसका लाभ हथियार बेचने वाले देश उठा रहे हैं।
सांप्रदायिकता से सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिलता है। पाकिस्तानी आतंकवादियों की चर्चा भारत के सांप्रदायिक तत्वों का पौष्टिक आहार है। ये हर दम पाकिस्तान के सांप्रदायिक नेताओं और आतंकवादियों की चर्चा करते रहते हैं। राष्ट्रवादी कहलाने वाले एक संगठन के प्रशिक्षित सांप्रदायिक विचारक और प्रचारक पाकिस्तान को संदेह का लाभ नहीं देना चाहते। ये उस पर हमला करना चाहते हैं। इससे भी इस क्षेत्र में अशान्ति और अस्थिरता पैदा होगी। इसका लाभ भी यहां के पूंजीपतियों, जमाख़ोरों, कालाबाज़ारी करने वाले ब्याजख़ोरों को ही मिलेगा, आम जनता को नहीं। ये लोग बिना जंग के भी आलू-प्याज़ से लेकर नमक तक महंगा किये हुए हैं। कोई युद्ध हो जाए तो ये खाना, पानी और दवा को मुंह मांगी क़ीमत पर बेच कर कई नस्लों की ऐश का इंतेज़ाम कर लेंगे।
सांप्रदायिक व्यक्ति निजि स्वार्थ के लिए आतंकवाद का सहारा लेकर धार्मिक हस्तियों का क़त्ल करते हैं क्योंकि वे सामूहिक हित और सामाजिक न्याय के लिए काम करते हैं। जिसकी आज्ञा परमेश्वर ने दी है।
परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही धर्म कहलाता है। ‘इसलाम’ शब्द का यही अर्थ है। सांप्रदायिक व्यक्ति धर्म का पालन नहीं कर सकता। वह अपने कुकर्मों को राष्ट्रवाद के आवरण से ढक लेता है। आम जनता उन्हें पहचान नहीं पाती लेकिन धार्मिक व्यक्ति उन्हें पहचानता है। मुजरिम उन लोगों को ज़रूर क़त्ल करते हैं, जो उन्हें जुर्म करते हुए देख ले, पहचान ले और उनके खि़लाफ़ गवाही दे। मारने और बचाने के इसी काम को सत्य-असत्य का संघर्ष कहा जाता है। सत्य और असत्य का संघर्ष इमाम हुसैन रज़ि. से पहले भी हुआ है और उनके बाद आज भी हो रहा है।
हम इसे टाल नहीं सकते लेकिन चुनाव हमारे अपने हाथ में है कि हम किस पक्ष का साथ देंगे ?
इमाम हुसैन रज़ि. केवल शियाओं के ही इमाम नहीं हैं बल्कि वे सुन्नियों के भी हैं। ‘शहीदे करबला और यज़ीद’ नामक किताब एक सुन्नी आलिम की लिखी हुई किताब है। दारूल उलूम देवबन्द के संस्थापक मौलाना क़ासिम नानौतवी साहब रह. का क़ौल भी इसके पृष्ठ 85 पर दर्ज है। जो उनके एक ख़त (क़ासिमुल उलूम, जिल्द 4 मक्तूब 9 पृष्ठ 14 व 15) से लिया गया है। इसमें मौलाना क़ासिम साहब रह. ने ‘यज़ीद पलीद’ लिखा है।
आलिमों की अक्सरियत ने यज़ीद को फ़ासिक़ माना है और जिन आलिमों पर यज़ीद की नीयत भी खुल गई। उन्होंने उसे काफ़िर माना है। इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाह अलैहि एक ऐसे ही आलिम हैं। सुन्नी समुदाय में उनका बहुत बड़ा रूतबा है। इस किताब के पृष्ठ 109 पर इस बात का भी तज़्करा है।
इमाम हुसैन शिया और सुन्नी के लिए ही इमाम (मार्गदर्शक) नहीं हैं बल्कि हरेक इंसान के लिए मार्गदर्शक हैं। जो सत्य का मार्ग देखना चाहे, वह उनकी जीवनी पढ़े और ग़ौर व फ़िक्र करे कि ऐसे महान मार्गदर्शक से हम कितना लाभ उठा पाए हैं और कितना लाभ उठा सकते हैं?
आतंकवाद को समाप्त करना है तो इमाम हुसैन रज़ि. की ज़िन्दगी को जाने बिना चारा ही नहीं है वर्ना आतंकवाद को ख़त्म करने के नाम पर उन कमज़ोरों और ग़रीबों को ख़त्म किया जाता रहेगा जिनका आतंकवाद से कोई रिश्ता ही नहीं है। इससे आतंकवाद पहले से ज़्यादा भीषण रूप लेता चला जाएगा।
आज यही हो रहा है और यह सब जानबूझ कर किया जा रहा है।
इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत के क़िस्से का ज़िक्र कोई धार्मिक रस्म महज़ नहीं है बल्कि यह ज़माने की एक ज़रूरत है। यह एक आईना है। जिसमें हर शख्स अपना और अपने लीडरों को चेहरा देख सकता है। चाहे उसे कितने ही ख़ूबसूरत नक़ाब से क्यों न ढक दिया हो!
इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु इंसानियत के दुश्मनों को पहचानने की नज़र रखते थे। उन्होंने अपनी शहादत के ज़रिये हमें अपनी नज़र (दृष्टि) और अपना नज़रिया सब कुछ अता कर दिया है। अब कोई अंधा न रहेगा सिवाय उसके जिसे सत्य का विरोध ही करना है।
Read More...

Read Qur'an in Hindi

Read Qur'an in Hindi
Translation

Followers

Wievers

join india

गर्मियों की छुट्टियां

अनवर भाई आपकी गर्मियों की छुट्टियों की दास्तान पढ़ कर हमें आपकी किस्मत से रश्क हो रहा है...ऐसे बचपन का सपना तो हर बच्चा देखता है लेकिन उसके सच होने का नसीब आप जैसे किसी किसी को ही होता है...बहुत दिलचस्प वाकये बयां किये हैं आपने...मजा आ गया. - नीरज गोस्वामी

Check Page Rank of your blog

This page rank checking tool is powered by Page Rank Checker service

Promote Your Blog

Hindu Rituals and Practices

Technical Help

  • - कहीं भी अपनी भाषा में टंकण (Typing) करें - Google Input Toolsप्रयोगकर्ता को मात्र अंग्रेजी वर्णों में लिखना है जिसप्रकार से वह शब्द बोला जाता है और गूगल इन...
    12 years ago

हिन्दी लिखने के लिए

Transliteration by Microsoft

Host

Host
Prerna Argal, Host : Bloggers' Meet Weekly, प्रत्येक सोमवार
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Popular Posts Weekly

Popular Posts

हिंदी ब्लॉगिंग गाइड Hindi Blogging Guide

हिंदी ब्लॉगिंग गाइड Hindi Blogging Guide
नए ब्लॉगर मैदान में आएंगे तो हिंदी ब्लॉगिंग को एक नई ऊर्जा मिलेगी।
Powered by Blogger.
 
Copyright (c) 2010 प्यारी माँ. All rights reserved.