हाँ मेने देखा है ...........

हाँ मेने देखा है ...........

हाँ मेने देखा है ...........
कुछ गुस्से में तुमने कलम उठाई 
सफेद कागज़ पर चलाई 
नाम उस पर मेरा लिखा 
फिर 
चेहरे पर गुस्सा आया 
तुमें मेरा नाम लिखा 
यह पन्ना 
अपने दोनों हाथों से 
बेरहमी से 
मसल कर फाड़ दिया .
जी हाँ मेने देखा है 
तुमने पेन्सिल उठाई 
कागज़ फिर से उठाया 
उस पर फिर से 
मेरा नाम लिखा 
फिर गुस्से में 
रबड़ को 
मेरे नाम पर घिस कर 
उसे बेरहमी से 
कागज़ के पन्ने से 
मिटा दिया ..
में देखता हूँ 
में सोचता हूँ 
में जानता हूँ 
तुम यूँ ही ऐसा कर के 
वक्त अपना बर्बाद कर रही हो 
कागज़ .कलम दवात से तो यूँ ही 
रोज़ नाम लिख कर 
तुम मिटा दोगी
लेकिन दिल में खुद के 
जो मेरा नाम तुम लिख डाला है 
उसे कोनसे रबड़ से 
और केसे मिटा पाओगी 
इसीलियें कहता 
सच यही है 
के हम आपके दिल में रहते हैं 
और इस सच को तुम 
यूँ ही मानलो .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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सत्य और श्रेष्ठ मार्ग - Dr. Anwer Jamal


आज नेता निश्चिंत हैं और अदालतें सुस्त हैं। नौकरशाह मज़े कर रहे हैं और मोटा माल कमाकर अपने बच्चों को आला तालीम दिला रहे हैं। पढ़-लिखकर वे भी मोटा माल कमाएंगे। पूंजीपति राजाओं की तरह बसर कर ही रहे हैं। आम जनता की रोज़ी-रोटी, शिक्षा और सुरक्षा सब कुछ अनिश्चित है।
साल भर हो चुका है। 8 मई आई और गुज़र गई किसी ने याद नहीं किया कि  8 मई 2010 सोमालिया के लुटेरों ने देश के 22 नौजवानों को पकड़ लिया था। आज तक उन्होंने छोड़ा नहीं और हमारे पक्षी-विपक्षी नेताओं ने उन्हें छुड़वाया नहीं। यहां गाना बजा रहे हैं ‘यह देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का‘ और मलाई चाटने वाले नाच रहे हैं। उनके समर्थक कह रहे हैं कि यह राष्ट्रवाद है।कभी इस देश का हाल यह था कि रानी लक्ष्मीबाई ने ज़नाना लिबास उतार कर मर्दाना लिबास पहन लिया और घोड़े पर बैठकर दुश्मन की तरफ़ हमला करने भागीं और आज यह आलम है कि जो लड़ने निकला था भ्रष्टाचारियों से वह मर्दाना लिबास उतार ज़नाना लिबास में लड़ाई के मैदान से ही भाग निकला और फिर औरतों की ही तरह वह रोया भी।आज जिसके पास चार पैसे या चार आदमियों का जुगाड़ हो गया। वह एमपी और पीएम बनने के सपने देख रहा है। पहले तो केवल भ्रष्टाचारी और ग़ुंडे-बदमाश ही नेतागिरी कर रहे थे और फिर हिजड़े और तवायफ़ें भी नेता बन गए। उसके बाद अब समलैंगिक भी नेता बनकर खड़े हो रहे हैं कि देश को रास्ता हम दिखाएंगे।आप एक बार देश के सभी नेताओं पर नज़र डाल लीजिए। उनमें सही लोगों के साथ-साथ ये सभी तत्व आपको नज़र आ जाएंगे।जनता इन सबसे आजिज़ आ चुकी है।

यह देश धर्म-अध्यात्म प्रधान देश है तो यहां सबसे बढ़कर शांति होनी चाहिए।
अगर हम विभिन्न मत और संप्रदायों में भी बंट गए हैं और अपने अपने मत और संप्रदाय को सत्य और श्रेष्ठ मानते हैं तो हमें एक ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पित रहते हुए शांति और परोपकार के प्रयासों में एक दूसरे से बढ़ निकलने के लिए भरपूर कम्प्टीशन करना चाहिए।अपने देश और अपने समाज को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को बचाने का तरीक़ा आज इसके सिवा कोई दूसरा है नहीं। मैं इसी तरीक़े पर चलता हूं और आपको भी इसी तरीक़े पर चलने की सलाह देता हूं।आप अपने दीपक ख़ुद बन जाइये, मार्ग आपके सामने ख़ुद प्रकट हो जाएगा। तब आप चलेंगे तो मंज़िल तक ज़रूर पहुंचेंगे और कोई भी राह से भटकाने वाला आपको भटका नहीं पाएगा। आपकी मुक्ति, आपके ज्ञान और आपके पुरूषार्थ पर ही टिकी है। किसी और को इससे बेहतर बात पता हो तो वह हमें बताए !
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कैसा धर्म ?जो जितना तड़पा कर हत्या करता है उतना ही बड़ा देवी का भक्त !

सहारनपुर मे 26 मई को हुए नरसंहार मे जिस गिरोह का हाथ सामने आ रहे है वह लोग छयमार प्रजाति के लोग कहलाते हैं ये कोई शातिर नही बल्कि क्रिमनल ट्राइब्स की निम्न प्रजाति कहलाती है । इस गिरोह की बड़ी विचित्र मान्यताएँ हैं परिवार के बेटे की शादी कराने के लिए हत्याएँ कराई जाती हैं । छयामार गिरोह के असल मकसद हत्या कर देवी को खुश करना होता है । मान्यता के अनुसार यह लोग आराम से वारदात करते हैं । टारगेट पर पहुँचते ही सबसे पहले जितने भी लोग सामने आते हैं उनकी नृशंस हत्या की जाती है जो जितना तड़पा कर हत्या करता है , उसे देवी का उतना ही बड़ा भक्त माना जाता है फिर लूटपाट की जाती है जो मिला ठीक नही मिला तो भी ठीक ।
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सत्याग्रह जारी रखने की "भीष्म प्रतिज्ञा" लेने वाले रामदेव इतने खोखले कैसे साबित को गये कि ...-Sarita Argare


दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई महाभारत के बाद पूरे देश में घमासान मच गया है। रामदेव के मुद्दे ने राष्ट्रीय राजनीति में मृतप्राय हो चली बीजेपी के लिये संजीवनी बूटी का काम किया है। चारों तरफ़ रामदेव के हाईटेक और पाँचसितारा सत्याग्रह पर हुए पुलिसिया ताँडव की बर्बरता पर हाहाकार मचा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध प्रदर्शन के ज़रिये अपनी बात सरकार तक पहुँचाने वालों का दमन किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, लेकिन संवैधानिक अधिकार की आड़ में बाबा के कुकृत्यों पर पर्दा डालना भी आत्मघाती कदम से कम नहीं होगा। मीडिया बाबा को हठयोगी, महायोगी और ना जाने कौन-कौन सी पदवी से नवाज़ रहा है, मगर हाल के दिनों की उनकी करतूतें रामदेव को "शठ योगी" ही ठहराती हैं।
बीती बातों को बिसार कर बाबाजी के हाल के दिनों के आचरण पर ही बारीकी से नज़र डालें,तो रामदेव के योग की हकीकत पर कुछ भी कहने- सुनने को बाकी नहीं रह जाता । योग का सतत अभ्यास सांसारिक  उलझनों में फ़ँसे लोगों के मन, वचन और कर्म की शुद्धि कर देता है, तो फ़िर संसार त्याग चुके संन्यासियों की बात ही कुछ और है। अष्टांग योग सिखाने का दावा करने वाले बाबाजी अगर यौगिक क्रियाओं का एक अंग भी अँगीकार कर लेते तो शायद सब पर उपकार करते। मगर रामदेव के आचरण और वाणी में यम, नियम, तप, जप, योग, ध्यान, समाधि और न्यास का कोई भी भग्नावशेष दिखाई नहीं दिये। योगी कभी दोगला या झूठा नहीं हो सकता मगर बाबा बड़ी सफ़ाई से अपने भक्तों और देश के लोगों को बरगलाते रहे। बाबा जब सरकार से डील कर ही चुके थे, तो फ़िर इतनी सफ़ाई से मीडिया के ज़रिये पूरे देश को बेवकूफ़ बनाने की क्या ज़रुरत थी? वास्तव में बाबा का काले धन के मुद्दे से कोई सरोकार है ही नहीं। अचानक हाथ आये पैसे और प्रसिद्धि से बौराए बाबाजी को अब पॉवर हासिल करने की उतावली है। इसीलिये एक्शन-इमोशन-सस्पेंस से भरा मेलोड्रामा टीआरपी की भूखे मीडिया को नित नये अँदाज़ में हर रोज़ परोस रहे हैं।

पँडाल में मनोज तिवारी देश भक्ति के गीतों से लोगों में जोश भर रहे थे और बाबाजी भी उनके सुर में सुर मिलाकर अलाप रहे थे "मेरा रंग दे बसंती चोला" और " सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है " लेकिन जब पुलिस पकडने आई, तो आधुनिक युग के भगत सिंग मंच पर गुंडों की तरह इधर-उधर भागते दिखाई दिए। ऎसे ही सरफ़रोश थे, तो गिरफ़्तारी से बचने के लिये समर्थकों को अपनी हिफ़ाज़त के लिये घेरा बनाने को क्यों कह रहे थे ? सत्याग्रह जारी रखने की "भीष्म प्रतिज्ञा" लेने वाले रामदेव इतने खोखले कैसे साबित को गये कि पुलिस की पहुँच से बचने के लिये महिलाओं की ओट में जा छिपे।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने बाबाजी को नये दौर का स्वामी विवेकानंद ठहराया है। मगर सवाल यह भी है कि बसंती चोला रंगाने की चाहत रखने वाले बाबाजी ने गेरुआ त्याग सफ़ेद सलवार क्यों पहना? मुसीबत के वक्त ही व्यक्तित्व की सही पहचान होती है। मगर बाबाजी की शख्सियत में ना धीरता दिखी और ना ही गंभीरता। देश का नेतृत्व करने की चाहत रखने वाला बाबा खाकी के रौब से इतना खौफ़ज़दा हो गया कि अपने समर्थकों को मुसीबत में छोड़कर भेस बदलकर दुम दबाकर भाग निकला। ऎसे ही आँदोलनकारी थे, देशभक्त थे, क्राँतिकारी थे, तो मँच से शान से अपनी गिरफ़्तारी देते और भगतसिंग की तरह "रंग दे बसंती" का नारा बुलंद करते। बाबाजी अब तो आप जान ही गये होंगे कि जोश भरे फ़िल्मी गीतों पर एक्टिंग करना और हकीकत में देश के लिये जान की बाज़ी लगाने में ज़मीन-आसमान का फ़र्क होता है। आँदोलन के अगुवाई के लिये पुलिस का घेरा तोड़ने की गरज से भेस बदलने के किस्से तो खुब देखे-सुने थे,मगर "आज़ादी की दूसरी लड़ाई" के स्वयंभू क्राँतिकारी का यह रणछोड़ अँदाज़ बेहद हास्यास्पद है। गनीमत है ऎसे फ़िल्मी केरेक्टर स्वाधीनता सँग्राम के दौर में पैदा नहीं हुए।

केन्द्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों के स्वार्थ के चलते देश में रामदेव जैसे तमाम फ़र्ज़ी बाबाओं की पौ बारह है। सरकारें अपने राजनीतिक हित साधने के लिये इन बाबाओं आगे बढ़ाती हैं, जिसका खमियाज़ादेश की भोलीभाली जनता को उठाना पड़ता है। मीडिया की साँठगाँठ भी इस साज़िश में बराबर की हिस्सेदार है। बाबा के अनर्गल प्रलाप का पिछले चर दिनों से लाइव कवरेज दिखाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में क्या सारे बिकाऊ या अधकचरे लोग भरे पड़े हैं,जो बाबा के चेहरे से टपकी धूर्तता को देखकर भी देख नहीं पा रहे हैं। सजीव तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलतीं। उस रात मंच पर कुर्सियाँ फ़ाँदते, भीड़ में छलाँग लगाते, शाम से लोगों को मरने-मारने के लिये उकसाते और पुलिस से बचने के लिये महिलाओं की आड़ लेने का पेशेवराना तरीका कुछ और ही कह रहा है। आज तो बाबा ने हद ही कर दी। प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान उन्होंने किसी की वल्दियत तक पर सवाल खड़ा कर दिया। जिस अँदाज़ में उन्होंने इस वाक्यांश का इस्तेमाल किया, वह हरियाण, पंजाब, राजस्थान के हिस्सों में अपमानजनक समझा जाता है। ऎसे ही एक चैनल पर पँडाल में बाबा के विश्राम के लिये बनाये गये कक्ष में अत्याधुनिक साज-सज्जा और डनलप का गद्दा देखकर आँखें फ़टी रह गईं। हमने तो सुना था कि योगियों का आधुनिक सुख-सुविधाओं से कोई वास्ता नहीं होता।
मूल सवाल वही है कि जिसका वाणी पर संयम नहीं,जिसके विचार स्थिर और शुध्द नहीं, जिसके मन से लोभ-लालच नहीं गया, जिसमें भोग विलास की लिप्सा बाकी है,जिसके आचरण में क्रूरता, कुटिलता और धूर्तता भरी पड़ी हो वो क्या वो योगी हो सकता है? खास तौर से जो शख्स करीब तीस सालों से भी ज़्यादा वक्त से लगातार योगाभ्यास का दावा कर रहा हो और अपने योग के ज़रिये देश को स्वस्थ बनाने का दम भरता हो, उसका इतना गैरज़िम्मेदाराना बर्ताव उसकी ठग प्रवृत्ति की गवाही देने के लिये पर्याप्त हैं। ये मुद्दे भी  आम जनता के सामने लाने की ज़रुरत है। बाबाजी ने तीन दिनों के घटनाक्रम के दौरान खुद ही आम जनता और मीडिया को अपने छिपे हुए रुप या यूँ कहें कि असली रुप की झलक बारंबार दी है। बाबाजी तो अपना नकाब उतार चुके अब यदि लोग हकीकत को देखकर भी नज़र अँदाज़ कर दें तो ये लोगों की निगाहों का ही कसूर होगा।
साभार विस्फोट.कॉम : http://visfot.com/home/index.php/permalink/4394.html?print
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लो बन गया लोक पाल बिल अब तो लागु करवा दो भाई ..........

लो बन गया लोक पाल बिल अब तो लागु करवा दो भाई ..........

लो बन गया लोक पाल बिल अब तो लागु करवा दो भाई ..........जी हाँ दोस्तों सरकार कहती है हम दस सालों से लोकपाल बिल बनाने की कोशिश में है भाजपा कहती है हम तो ऍन डी ऐ की सरकार में इस बिल को पारित करवाना चाहते थे लेकिन क्या कोंग्रेस ,क्या भाजपा,क्या सपा.क्या बसपा.क्या जनतादल ,क्या कोमरेड सभी इस बिल को चूहे के बिल में डाले रहे हैं कारण साफ़ है के सियासत से जुड़े हर व्यक्ति को दर है के टी ऍन शेषन जेसा लोकपाल आ गया तो वोह तो सियासत दान का जीना हराम कर देगा ...खेर पिछले दिनों लोकपाला को लेकर एक गेर राजनितिक ड्रामा हुआ बाबा रामदेव और अन्ना साथ बेठे फिर एक दुसरे से रूठ गए ड्राफ्टिंग कमेटी बनी और अभी तक यह ड्राफ्ट बे नतीजा है मेने सोचा चलो में ही थोड़ी मदद कर डालूं सो मेने भी एक बिल तय्यार किया है अगर पसंद आये तो इसे अपनी मर्जी शामिल कर राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री तक पहुंचवाने की कोशिश करना है ..
लोकपाल बिल लोकपाल बिल २०११ कहलायेगा और यह प्रकाशन की तिथि से ही लागु होगा ..
१.. देश में भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता पर अंकुश लगाने के लियें तुरंत एक लोकपाला की नियुक्ति की जाएगी ..
२..लोकपाल ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाएगा जो भारतीय कानून और संस्क्रती का जानकार हो भारतीय मूल का यानी भारत में जन्मा हो और कभी किसी पद पर नहीं रहा हो यानि सेवानिवृत्ति वाला नहीं हो ..इस पद पर ऐसे व्यक्ति को ही नियुक्त किया जा सकेगा जो देश की किसी भी मान्यता प्राप्त या गेर मान्यता प्राप्त राजनितिक या गेर राजनितिक पार्टी से सम्बद्ध न रहा हो ४५ वर्स से ६५ वर्ष तक की आयु हो पागल दिवालिया नहीं हो .
३ देश में जो भी किसी भी सरकारी तन्त्र से जुड़ा हुआ है और सरकारी खजाने से सुरक्षा,सुख सुविधा,वेतन प्राप्त करता है ..जो अपने पद को संचालित करने के पहले विधिवत शपथ लेता है ,,जो गेर सरकारी संस्था है लेकिन सरकार से मदद टेक्स की छुट रियायतें लेता है फिर चाहे वोह समाज सेवी संस्था हो या उद्ध्योग पति हो ...देश के वोह सभी अख़बार , इलेक्ट्रोनिक मिडिया जो सरकार से विज्ञापन और सुविधाएं प्राप्त करते हैं ..देश की सभी चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त राजनितिक पार्टियां और उनके सदस्य इस लोकपाल बिल की परिधि में आयेंगे .............
४. लोकपाल बिल को संचालित करने के लियें देश में लोकपाल टेक्स लगाया जाएगा जो तीन लाख से अधिक आय वाले लोग सो रूपये प्रति वर्ष देंगे इसके अतिरिक्त सरकार लोकपाल को बेठने ,कार्यालय खोलने और संचालित करने के लियें बिल पारित होते ही एक माह में सभी सुविधाएँ उपलब्ध करा देगी सरकार इसमें अगर कासिर रहती है तो ऐसी सरकार को आवश्यक रूप से बर्खास्त करने का प्रावधान होगा ..लोकपाल टेक्स से ही लोकपाल कार्यालय संचालित होगा सरकार की मदद के अलावा लोकपाल एक स्वायत शासी संस्था होगी जो सरकार के किसी दबाव में नहीं रहेगी ..
५ लोकपाल के समक्ष कोई भी शिकायत अंग्रेजी या शिकायत करता की क्षेत्रीय भाषा या फिर हिंदी में सुनवाई होगी 
६ लोकपाल का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा उसकी नियुक्ति देश के सभी विधायक,सांसद,पंच सरपंच,पार्षद, वकील ,चिकित्सक मिलकर बहुमत के आधार पर करेंगे जो आवेदन इस पद के लियें आयेंगे उनकी जांच कर यक्त लोगों में से खुले मतदान से ऐसी नियुक्ति की जा सकेगी .
७ लोकपाल का दायरा देश के चतुर्थ श्रेणी से लेकर राष्ट्रपति तक होगा जिसमे जज वगेरा भी शामिल होंगे ..
८. लोकपाल किसी भी शिकायत का निस्तारण तीन माह में करने के लियें बाध्य होगा ओर उप लोकपाल नियुक्त कर सकेगा ..
८.देश भर के सभी ६२४ जिलों में लोकपाल अपना कमसे कम एक प्रतिनिधि आवश्यक रूप से नियुक्त करेगा जिसकी नियुक्ति की अहर्ता भी लोकपाल की नियुक्ति अहर्ता की तरह होगी यह जिला प्रतिनिधि गुप्त रूप से अपने क्षेत्र की समस्त जानकारिया लोकपाल को उपलब्ध करायेंगे जिला स्तर पर सभी सम्बन्धित लोग इस जिला प्रतिनिधि को सभी जानकारियाँ उप्लाब्ध कराने के लियें बाध्य होंगे जो इसमें न नुकुर करेगा यह आरोप उसके निलंबन और साबित होने पर बर्खास्तगी का आधार होगा ..
लोकपाल बिल के यहाँ जिसकी शिकायत लंबित हो उसे फिल्ड पद से तुरंत हटा दिया जाएगा ..बोगस शिकायतों पर पेनेल्टी का प्रावधान जिसमे पचास लाख रूपये और तीन वर्ष तक के कारावास का प्रावधान हो .
लोकपाल के समक्ष शिकायत में अगर प्रमाणित शिकायत होती है तो उसे राष्ट्रपति के अलावा कपि अन्य दूसरा व्यक्ति या न्यायालय नहीं सुन सकेगा अर्थात इसकी अपील केवल राष्ट्रपति ही सुन सकेगा जो दो माह में अपील का निस्तारण हर हल में करने के लियें बाध्य होंगे ..
जो लोग इसमें दोषी पाए जायेंगे उनको आजीवन कारावास से म्रत्युदंड और आवश्यता के अनुसार दस करोड़ रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान होगा ..लोकपाल जो मुकदमा दर्ज कराएगा उसकी सुनवाई केलिए विशेष न्यायालय ६ माह में इन प्रकरणों का निस्तारण हर हल में कर देंगे और इसकी अपील भी केवल राष्ट्रपति को ही हो सकेगी .........
तो दोस्तों केसा रहा यह लोकपाल बिल पसंद आया हो तो राष्ट्रपति और अन्ना से सिफारिश कर डालो यार ......
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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ये बाबा कुछ अलग है ! -Rajesh Joshi

द्विअर्थी शब्द हमेशा अश्लील नहीं होते। लेकिन अक्सर उनका इस्तेमाल अश्लील विचारों को कहने के लिए ही किया जाता है। इसलिए सभ्य समाज ऐसे शब्दों के प्रयोग से बचता है। एक शब्द है बाबा। बाबा एक द्विअर्थी नहीं बल्कि बहुअर्थी शब्द है, पर अश्लील नहीं। अंगरेज जब इस मुल्क में आए तो उनके बच्चे बाबा लोग कहलाए। हिन्दुस्तानी आयाएं इन बाबा लोगों की परवरिश करती थीं, ताकि मेमसाहब यहां की तपती गर्मी में कुछ सुकून महसूस कर सकें।
भारतीय राजनीति में देश को चलाने के लिए बाबा लोगों का एक तबकाहमेशा तत्पर रहा है। कुछ सीधे तो कुछ परोक्ष रूप से सत्ता चलाने वालों को नियंत्रित करके। इन बाबाओं की यात्रा कि शुरुआत अध्यात्म से होती है। वो आत्मा, परमात्मा, लोक-परलोक, सत्य-असत्य, योग, शुचिता आदि कि बातें करते हुए कब अचानक सेलेब्रिटी बन जाते हैं पता ही नहीं चलता। पहले हजारों फिर लाखो लोग उनके अनुयायी बन जाते हैं और तब राजनीतिक लोगों को बाबावाद भाने लगता है। कहते हैं चंद्रास्वामी की कार प्रधानमंत्री के निवास में बिना सुरक्षा जांच के घुसती थी। उन दिनों नरसिम्हाराव से जुड़े लगभग सभी प्रकरणों में चंद्रास्वामी का नाम जरूर जुड़ा होता था।
इंग्लैंड जा बसे गुजरात के व्यापारी लाखुभई पाठक ने राव और चंद्रास्वामी दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। नामी अपराधी बबलू श्रीवास्तव ने जब सीबीआई को चंद्रास्वामी के दाऊद इब्राहीम से संबंधों के बारे में बताया, तब से स्वामीजी का सितारा डूबने लगा और नरसिम्हा राव भी किनारे लगे। लगभग उसी दौर में गहरी काली दाढ़ी और काले बाल वाले एक और गुरु कि तस्वीरें पत्रिकाओं में छपने लगीं। हमेशा सब कुछ समझ चुकने का भाव लिए उनकी मुस्कराहट उनका ट्रेड मार्क बन गई। श्री श्री रविशंकर सोने के गहनों में लदी-फदी उच्चवर्गीय महिलाओं और महंगी कारों में चलने वाले खाते पीते लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने लगे।
एक पत्रकार मित्र श्री श्री के सहचर्य के किस्से रस ले कर सुनाते हैं। वो कुछ समय के लिए श्री श्री की टीम में रहे। एक दिन श्री श्री ने मंत्रणा के लिए उन्हें बुलाया और कहा, ‘ये पता कीजिए कि सोनिया गांधी तक कैसे पहुंचा जाए? उन तक पहुंचाना बहुत मुश्किल साबित हो रहा है।’ आर्ट ऑफ लिविंग सिखाने वाले किसी बाबा को आखिर सोनिया गांधी तक अप्रोच लगाने कि क्या जरुरत पड़ गई? फिर बाबा में नोबेल पुरस्कार की इच्छा बलवती हो उठी और श्री श्री के भक्त स्टोकहोम में उनके नाम की लोबिंग करने लगे।
दस साल पहले जब मैं नौकरी के लिए लंदन रवाना हुआ तो बाबा रामदेव आस्था चैनल पर नियमित कपालभाती करने लगे थे। धीरे-धीरे उनका नाम फैलने लगा। एक दिन बीबीसी के दफ्तर में हलचल बढ़ गई कि बाबा रामदेव लंदन आए हैं और संसद में योग करेंगे। ब्रिटेन के अखबारों में उनकी चर्चा थी और एक दिन वे बीबीसी स्टूडियो पहुंच गए। लेकिन उन्होंने तब राजनीति पर एक शब्द नहीं कहा। उनका पूरा जोर भारतीयता और योग पर था।
पर ये वो दौर था जब लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे राजनीतिक लड़ाके बाबा रामदेव के साथ एक मंच पर आसीन नहीं हुए थे। शायद इसलिए बाबा के अंदर देश को राजनीतिक दिशा देने की इच्छा नहीं पनपी थी और अगर पनप रही थी तो उन्होंने उसे टीवी और अखबारों से बचा कर रखा था। बाबा रामदेव का राजनीतिक आत्मविश्वास उस दिन से अंगडाई लेने लगा जब सीपीएम की बृंदा करात को उन्होंने सरे-आम पटखनी देने में कामयाबी पाई। बृंदा ने आरोप लगाए थे कि बाबा के कारखानों में बनाई जाने वाली औषधियों में मानव हड्डियों का चूर्ण मिलाया जाता है। बृंदा ने सोचा होगा कि पश्चिम बंगाल में सफल सीपीएम के उग्र तेवरों से बाबा झटका खा जाएंगे पर यह दांव उल्टा पड़ गया। दूसरी ओर हर रंग के नेता बाबा को पलकों पर बिठा रहे थे। बाबा की उम्मीद बढ़ने लगी।
बाबा अपने अनुनायियों को समझाने लगे कि जब नेता हमारे बूते पर चुनाव जीत कर राज करते हैं तो हम सीधे चुनाव क्यों न जीतें? कपालभाती करने और पेट घुमाने से ही जब हर पार्टी के नेता गोल-गोल बाबा के चारों ओर घूमने लगे हों तो फिर बाबा खुद क्यों न नई दिल्ली के गोलघर में पहुंच कर सत्ता का स्वाद चखें? लेकिन बाबा को कल आधी रात के बाद यह अहसास हुआ होगा कि उनकी योगिक क्रियाओं पर मुग्ध हो जाने वाला राजनेता बहुत आसानी से नो एंट्री में उन्हें घुसने नहीं देगा। जिस सत्ता के चार-चार मंत्री बाबा के सामने साष्टांग करने हवाई अड्डे पहुंच सकते हैं ,वो सत्ता आधी रात को बाबा के टेंट और दरी समेटने में भी देरी नहीं करती।

लेख साभार अमर उजाला : http://www.amarujala.com/Duniya360/The%20sage%20is%20different-2320.html
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कोंग्रेस के मुंह पर जूता ............

कोंग्रेस के मुंह पर जूता ............

कोंग्रेस के मुंह पर जूता ............कोंग्रेस कार्यालय में प्रेस्कोंफ्रेंस के दोरान अचानक इस घटना असे कोंग्रेस के नेता जनार्दन द्विवेदी और म्निश्तिवारी सहित सभी मिडिया कर्मी भोचाक्के रह गए और ..और राजस्थान के एक अख़बार का खुद को संवाददाता बताने वाला सुनील जनार्दन द्विवेदी की झुंट सुनकर इतना बोखला गया के मंच के पास जाकर उनको अदब के साथ जूता दिखा डाला ....जो तस्वीरे सामने आई है उनसे तो यही लगता है के कथित पत्रकार सुनील जनार्दन जी को जूता नहीं मरना चाहता था उसे खुद ने सहमी हुई हालत में जूता दिखाया है जिसे बाद में अलग कर दिया गया सवाल यह उठता है के ऐसी नोबत आखिर क्यूँ आई .......कोंग्रेस जो सुलझी हुई कोंग्रेस है जो बुद्धिजीवियों की पार्टी मानी जाती है वोह भ्रस्ताचार और कालेधन की मन करने पर इतने खफा हो गए है के साधू संतों को इन सब कम से अलग रहने की बात कहने लगे हैं ........आज सब जानते हैं के जब जब सिंघासन बेईमान होता है तब तब देश को साधुसंत ही बचाते हैं इससे भी खतरनाक और हास्यास्पद बात यह है के कोंग्रेस भ्रस्ताचार और कालेधन की बात करने पर दंगे भडकाने की कोशिश कहती है अब आप ही बताएं क्या भ्रस्ताचार ,कालाबाजारी.लोकपाल बिल जाति सम्प्रदाय से सम्बंधित है जो इस पर दंगे होगे ...क्या किसिस साधू संत को रास्थ्र हित में कोई बात करने का हक नहीं है अगर ब्ब्रश्ताचार की बात काले धन की बात दुश्मन भी करे तो उसे मानना चाहिए ..सरकार ने द्विवेदी के माद्यम से लोकपाला बिल पर भी अपनी मंशा साफ कर दी है और साफ  कहलवा दिया है के अन्ना और बाबा आर आर एस एस के एजेंट है और इन हालातों में अन्ना और बाबा जेसे लोगों से सख्ती से निपटने की भी चेतावनी दी गयी है अब कोंग्रेस का यह कृत्य चोरी और सीना जोरी वाला नहीं तो क्या है लेकिन इस माहोल में जुटे वाले सुनील भाई साहब ने कोंग्रेस के प्रति सिम्पेथी पैदा करवा दी है क्योंकि लोकतंत्र में जुटे चप्पल की राजनीति की कतई मानयता या इजाजत नहीं दी जा सकती क्योंकि यह राजनीती इधर हुई है तो उधर भी हो सकती है और फिर अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है ..................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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मनमोहन सिंह ने नर्सिंग्घा राव का अधुरा काम पूरा किया ...............

मनमोहन सिंह ने नर्सिंग्घा राव का अधुरा काम पूरा किया ...............

मनमोहन सिंह ने नर्सिंग्घा राव का अधुरा काम पूरा किया ...... जी हाँ यह सच है ..कई वर्षों से प्रधानमन्त्री का पद हथियाने का सपना देखने वाले आर एस एस के स्वयम सेवक नर्सिंग्घा राव को राजिव गाँधी की हत्या के बाद प्रधानमन्त्री बनाया गया और उस वक्त सीताराम केसरी सहित वोह सोनिया गान्धी के दुश्मन हो गये थे उन्होंने राजिव गाँधी हत्याकांड तक की जांच  नहीं करवाई थी और आज जो चिदम्बरम , जो मनमोहन है वोह राव के मंत्रिमंडल के नो रत्न थे ..अमेरिका के दबाव में अमेरिका नीतियों को देश में लागू कर देश का रुपया विदेशों में पहुँचाने की निति बनाने के लियें ही राव ने मनमोहन की विश्व बेंक की नोकरी देख कर देश की आर्थिक व्यवस्था खत्म करने का काम सोंपा था और मनमोहन को वित्तमंत्री बनाया था आप आंकड़े उठा कर देख लें तब से आज तक मनमोहन की निति देश को डूबा रही है जनता को रुला रही है व्यापारियों,विदेशियों,विदेश   में रुपया जमा करने वालों और भ्रष्ट लोगों के मजे हैं खुद आंकड़े उठा लो देश तबाही और बर्बादी की तरफ है आज देश में गृह युद्ध की स्थिति है ...राव जो विश्व के सबसे भ्रष्ट प्रधानमन्त्री साबित हुए और प्रधानमन्त्री रहते हुए उनके खिलाफ देश की अदालत में मुकदमा चलाया गया तब उन्हें कुटिल कपिल सिब्बल मिले और उन्होंने इन्हें भी देश की बर्बाद करने की टीम में शामिल कर लिया राव गंध परिवार के दुश्मन थे इसलियें राजीव गाँधी की हत्या के बाद वोह किसी भी हालत में सोनिया गाँधी को राजनीती में नहीं आने देना चाहते थे और उन्हें खूब द्र कर रख रहे थे उस वक्त मनमोहन राव के हमजोली थे ..राव देश के नक्शे और इतिहास से कोंग्रेस को खत्म करना चाहते थे लेकिन कोंग्रेस एक बढ़ा सन्गठन था उनकी म्रत्यु के बाद फिर से सोनिया और राहुल की जांबाजी से उठ खड़ा हुआ राव की बाबरी मस्जिद लापरवाही के बाद भी मुसलमान फिर से कोंग्रेस से जुड़ गए दलित कोंग्रेस के साथ आये और सोनिया गाँधी महिलाओं को साथ लाने में कामयाब हुई जबकि राहुल गांधी ने युवाओं को एक नई दिशा दी और मुर्दा कोंग्रेस में जान फूंक दी लेकिन मनमोहन को प्रधानमन्त्री बना कर सबसे बढ़ी गलती कर डाली . मनमोहन सिंह जो कभी चुनाव नहीं जीत सकते इसलियें उन्हें चोर दरवाजे यानि राज्यसभा से लाया गया और अब वोह कोंग्रेस को बर्बाद और खत्म करने का जो काम नर्सिंग्घा राव जो अधुरा कम छोड़ गए थे उसे पूरा करने में लगे है देश में महा भ्रस्ताचार और महा अत्याचार के उदाहरणों की पराकाष्ठा है दिल्ली रामलीला मैदान और अन्ना की घटना ने देश की जनता को कोंग्रेस के खिलाफ बगावत करने को मजबूर कर दिया  है अकेले एक मनमोहन और उनकी टीम ने देश में कोंग्रेस को स्थापित करने के लिए महात्मा गाँधी ,नेहरु ,इंदिरा जी ,राजीव जी ने जो खून बहाया है उसे मनमोहन की नीतियों ने उसे मिटटी में मिला दिया है कोंग्रेस को फिर से जिंदा करने के लियें सोनिया ,राहुल और प्रियंका ने जो पसीना बहाया है उसे भी मनमोहन ने अपनी कुटिल चालों से पानी पानी कर दिया है और सच यही है जो भविष्य का इतिहास बतायेगा के कोंग्रेस को बर्बाद करने की कसम जी नर्सिंग्घराव ने खायी थी उनके अधूरे काम को आज मनमोहन सिंह ने प्रधानमन्त्री रहते पूरी कर डाली है और कोंग्रेस को अब शायद लोग हाशिये पर तलाश करते रह जायेंगे अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है सोनिया ओर राहुल राष्ट्रहित में सोच कर कोंग्रेस को बचाने के लियें भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने के लियें देश और कोंग्रेस को मनमोहन मुक्त कर दें वरना सही यही होगा के लोग कोंग्रेस को एक सफेदी के दाग की तरह ढूंढ़ते रह जायेंगे और हम भी इसमें पिस जायेंगे .....अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 
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