हाँ मेने देखा है ...........
हाँ मेने देखा है ...........
कुछ गुस्से में तुमने कलम उठाई
सफेद कागज़ पर चलाई
नाम उस पर मेरा लिखा
फिर
चेहरे पर गुस्सा आया
तुमें मेरा नाम लिखा
यह पन्ना
अपने दोनों हाथों से
बेरहमी से
मसल कर फाड़ दिया .
जी हाँ मेने देखा है
तुमने पेन्सिल उठाई
कागज़ फिर से उठाया
उस पर फिर से
मेरा नाम लिखा
फिर गुस्से में
रबड़ को
मेरे नाम पर घिस कर
उसे बेरहमी से
कागज़ के पन्ने से
मिटा दिया ..
में देखता हूँ
में सोचता हूँ
में जानता हूँ
तुम यूँ ही ऐसा कर के
वक्त अपना बर्बाद कर रही हो
कागज़ .कलम दवात से तो यूँ ही
रोज़ नाम लिख कर
तुम मिटा दोगी
लेकिन दिल में खुद के
जो मेरा नाम तुम लिख डाला है
उसे कोनसे रबड़ से
और केसे मिटा पाओगी
इसीलियें कहता
सच यही है
के हम आपके दिल में रहते हैं
और इस सच को तुम
यूँ ही मानलो .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
2 comments:
सच यही है
के हम आपके दिल में रहते हैं
और इस सच को तुम
यूँ ही मानलो .
sundar abhivyakti.
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
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